Shri Ramcharitra Manas

क्या राम हमारे आदर्श हैं?
क्या राम हमारे आदर्श हैं?
19 min
ये युग, मूल्यों के संक्रमण का युग है। मूल्य संकुचित होते जा रहे हैं और राम जिन मूल्यों के प्रतिनिधि हैं, वो मूल्य हमें नहीं पसंद आने वाले भाई! कदम-कदम पर राम, कर्तव्य पर चलते हैं। वो ये नहीं देखते कि उन्हें लाभ क्या होगा? वो ये नहीं देखते कि उन्हें सुख, खुशी, प्रसन्नता मिलेगी कि नहीं मिलेगी। वो ये देखते हैं कि कर्तव्य क्या है ये बताओ? मैं तो अपने कर्तव्य का पालन करूँगा। आज कौन अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहता है? तुम अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करना चाहते तो राम क्यों अच्छे लगेंगे तुमको?
सीता मैया नहीं कमाती थीं, तो हम क्यों कमाएं?
सीता मैया नहीं कमाती थीं, तो हम क्यों कमाएं?
12 min

आचार्य प्रशांत: (प्रश्न पढ़ते हुए) कह रहे हैं कि आप कहते हैं कि महिलाओं का कमाना उनकी आन्तरिक और भौतिक प्रगति के लिए ज़रूरी है, पर हमारी प्राचीन देवियाँ जैसे माँ सीता, देवी अनुसुइया, यहाँ तक कि साध्वियाँ जैसे मीराबाई भी कभी कमाती तो नहीं थीं, तो क्या वो सब

रामायण, महाभारत को ऐसे मत देखो || आचार्य प्रशांत, आइ.आइ.टी दिल्ली में (2022)
रामायण, महाभारत को ऐसे मत देखो || आचार्य प्रशांत, आइ.आइ.टी दिल्ली में (2022)
13 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, प्रणाम। मेरा प्रश्न युग के बारे में है। जैसे हम पढ़ते हैं, चार युग होते हैं– सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग। और जो एक युग होता है उसको लगभग लाखों वर्षों का मानते हैं। जबकि एस्ट्रोफिजिक्स (खगोल भौतिकी) के अनुसार जो स्टार्स (तारों) की पोजीशन (स्थिति) है,

लोगन राम खिलौना जाना || आचार्य प्रशांत (2024)
लोगन राम खिलौना जाना || आचार्य प्रशांत (2024)
18 min

प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी। सर, मेरा प्रश्न ये है जैसे कई लोगों को सांसारिक दुख बहुत मिलते हैं या जैसे माया में भी जिन लोगों को दुख बहुत मिलते हैं, तो उन्हें भक्ति मार्ग की तरफ़ ज़्यादातर जाते हुए देखा जाता है। या तो उन्हें संसार में कुछ नहीं मिल

राम और कृष्ण न आपका सहारा चाहते हैं, न आपकी सफ़ाई || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव (2022)
राम और कृष्ण न आपका सहारा चाहते हैं, न आपकी सफ़ाई || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव (2022)
21 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, प्रणाम। कई भ्रांतियाँ मैंने देखी है कि फैली हुई हैं। जैसे कि उत्तरकांड को बहुत से लोग रामायण का हिस्सा नहीं मानते। कहते हैं, रामायण युद्धकांड पर समाप्त हो जाती है, वाल्मीकि जी ने उससे आगे उसको नहीं कहा था।

ऐसे ही कुछ सनातन धर्म पर आक्षेप

Excerpts from Articles
How Can The Common Man Make Better Decisions In Life?
First of all, we have to realize what our life is like. You know, I can’t change something without firstly understanding its processes and its actuality. I must know what this thing called my life is. We keep living without knowing a thing about life. And we’re blinded by names and identities.
आश्रित महिलाएँ और अध्यात्म
जो आश्रित महिलाएँ हैं, इनको सबसे बड़ी सज़ा यह मिलती है कि इनका अध्यात्म की तरफ़ बढ़ने का रास्ता बिल्कुल रोक दिया जाता है। परमेश्वर की ओर कैसे बढ़ोगे अगर पति ही परमेश्वर है? जो कैद में है, उसके लिए साधना है — दीवारों को तोड़ो और बाहर आओ। बाहर निकलकर कोई नया ज्ञान, कला, या कोई कुशलता सीखो।
The Female Body, Chastity and 'Rape Culture'
Rape is happening all over the place. A husband raping a woman is not something new. Public apathy—nobody reporting the rape—that is again not something new. What is new is the woman standing up. And not just standing up in a way that displays raw courage, but standing up in a way that displays something deeper. She is challenging the very notion of female honor.
Science and Spirituality Always Go Hand in Hand
The most common thing in spirituality and science is 'an honest urge to know the Truth.' Science observes the external universe, and spirituality observes the mind. These two have to be in tandem. The one thing that enables true knowledge in any field is honesty and integrity.
How to Break Free from the Trap of Seeking External Validation?
The relationship can be very strong, but the strength of the relationship may not necessarily be an auspicious thing. You can have a very, very strong relationship with the external, and yet it could be from a very wrong center. And what do we mean by wrong? The center of inner ignorance.
What Makes a Woman Beautiful?
The woman is not beautiful; the man is not beautiful either. Truth and compassion are beautiful. The compassionate one stands head and shoulders above the gorgeous woman or the handsome man. And this is possible only when love and appreciation for the right, gender-independent values are fostered in both the man and the woman.
Kids and Anxiety: What’s Going Wrong?
If a kid has been continuously told that the world is everything, how will an untouched point remain within? The world, as we know, is quite fickle, while our real nature is stability or permanence. It is this dichotomy that pushes us into stress and anxiety. A big portion of the mental health problem can be addressed if we provide the right value system to the kid—the right literature.
How Influencers Fool Us So Easily
We have reserved critical thinking only for problems related to science and technology, but not for life itself. Why can’t the same spirit of inquiry be present in everything? Without the filter of thought and inquiry, you will be enslaved and exploited. So, pause at every sentence, analyze, and refuse to move on until you are satisfied.
Why Do We Hide Things In Relationships?
Cultures place too much value on conforming to relationship stereotypes. These dogmas and rigid opinions do not easily accept reality. And so, to please them, you become a habitual liar. But good relationships are founded on freedom; they are not based on obligations, and they are not afraid of reality. In good company, the other might frown, but less on what you did, and more on what you hid.
How to Raise a Daughter?
Please be an observer and a compassionate witness. Keep watching, watch from a distance. Meddling is not needed. Being a parent of a girl child today is a humongous opportunity. You have the chance to give rise to a new world—if you can truly raise one girl as a free girl.
इंसान हो तो ज़िंदगी से जूझकर दिखाओ
दुनियादारी सीखो, भाई! और मुझसे अगर प्रेम है या कोई नाता है, इज्जत है, तो मेरी अभी स्थिति क्या है, वो समझो। प्रेम अगर है, तो प्रेम यह देखता है ना कि सामने वाला क्या चाहता है, उसकी क्या जरूरत है? प्रेम आत्म-केंद्रित थोड़ी हो जाएगा कि "मैं अपने तरीके से!" अपने तरीके से है, तो फिर प्रेम नहीं है, स्वार्थ है ना!
Leadership and Spiritual Insights from the Bhagavad Gita
My concern is the way we are. My concern is the face of the human being. My concern is the little sparrow. I'm not here to tell people what God has said. I'm here to take care of the sparrow. That's my concern. And the sparrow cannot be taken care of unless we go to the Gita. Hence, the Gita.
Astrology: A Myth People Believe
It has been extremely conclusively proven, demonstrated that astrology is not a science at all. It's a conjecture. It's a belief system. Belief system with no material basis at all.
Living Without Illusions: A Lesson on Expectations and Reality
It is not that the way the world is, the ignorance, the stupidity, the suffering, the perverseness of it all. It's not that that hurts or surprises you. What shocks is that adverse things come from people you think of as decent, respectable and wise. It is not events or people, therefore, who are shocking you, it is the expectations that you hold of them.
कॉमेडी हो तो ऐसी
हमारी ज़िंदगी में तो लगातार वही सबकुछ हो रहा है जो होना नहीं चाहिए। आप लोगों को हमारी ज़िंदगी का ही आईना दिखा दो न। हम सब अपने गधों को अपनी पीठ पर बैठाकर चल रहे हैं। इतनी जोर की हँसी आएगी कि मज़ा आ जाएगा। कुछ ऐसा है जो बेमेल है, विसंगत है, और हमारी ज़िंदगियाँ मूर्खता की ही एक अंतहीन कहानी हैं। ये एब्सर्डिटी दिखाओ न लोगों को, खूब हँसेंगे।
इस चीज़ से बच गए, तो फिर कभी नहीं डरोगे || आचार्य प्रशांत कार्यशाला (2023)
इस चीज़ से बच गए, तो फिर कभी नहीं डरोगे || आचार्य प्रशांत कार्यशाला (2023)
35 min

प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी। कल का सत्र बहुत अच्छा था और जब सत्र में जुड़ने करने के लिए हम आवेदन करते हैं, मेल भेजते हैं, उसमें सबसे पहला सवाल पूछा जाता है कि आपकी अपेक्षा क्या है सत्र में भाग लेने से? मेरी जो अपेक्षा थी, वो पहले दस मिनट

क्या सिर्फ़ राम को याद रखना पर्याप्त है? || आचार्य प्रशांत, श्रीरामचरितमानस पर (2019)
क्या सिर्फ़ राम को याद रखना पर्याप्त है? || आचार्य प्रशांत, श्रीरामचरितमानस पर (2019)
16 min

प्रश्नकर्ताः तुलसीदास जी ने कहा है : 'नहिं कलि करम न भगति बिबेकू, राम नाम अवलंबन एकू।' आपका भी वीडियो सुना जहाँ कहीं भी राम नाम का शीर्षक मिला कि राम नाम एक ऐसी चीज़ है जो निराकार और साकार दोनों के बीच का है। तो मैं बच्चों को ये

हनुमान चालीसा का वास्तविक अर्थ || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव (2023)
हनुमान चालीसा का वास्तविक अर्थ || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव (2023)
76 min

प्रश्नकर्ता: नमस्ते, सर। मैं शायद उत्तर भारत के जो करोड़ों लोग हैं, उनमें से ही एक हूँ जिन्हें बचपन से ही हनुमान चालीसा सुन-सुन कर याद हो जाती है या याद करा दी जाती है। पर मैंने देखा कि हाल ही तक ही मुझे हनुमान चालीसा की जो चौपाइयाँ हैं,

राम, कृष्ण, शिव - सबमें खोट दिखती है? || आचार्य प्रशांत
राम, कृष्ण, शिव - सबमें खोट दिखती है? || आचार्य प्रशांत
13 min

प्रश्नकर्ता: मेरा सवाल ये है कि बहुत सारी कहानियों में, जैसे राम और कृष्ण की कहानी हम पढ़ते हैं या कोई और भी। इन अवतारों को बचपन से ही बहुत ऐसे दिखाया जाता है कि इनमें बचपन से ही सारे गुण थे, या ये बचपन से ही अच्छे थे, निपुण

दीवाली पर इस बड़ी गलती से बचें || आचार्य प्रशांत (2022)
दीवाली पर इस बड़ी गलती से बचें || आचार्य प्रशांत (2022)
41 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, एक बार आपसे ये समझना चाहता था कि धर्म और संस्कृति – इन दोनों चीज़ों में क्या सम्बंध है? साथ में इसको यदि मैं अभी के परिप्रेक्ष में देखूँ तो हम सभी ने सांस्कृतिक दिवाली देखी है जिसमें मिठाइयों का आदान-प्रदान चलता है, जिसमें नये कपड़े पहने

भूत-पिशाच निकट नहीं आवैं || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव (2022)
भूत-पिशाच निकट नहीं आवैं || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव (2022)
10 min

प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी, मेरा नाम शांतनु है और इसी सत्र के दौरान किन्हीं ने चर्चा की थी हनुमान चालीसा के ऊपर कि उन्होंने हनुमान चालीसा पढ़ी है बचपन में। मैंने भी हनुमान चालीसा पढ़ी है और बहुत सारे लोग होंगे जिन्होंने पंक्ति-दर-पंक्ति हनुमान चालीसा को एकदम याद कर लिया

रामायण-महाभारत की घटनाओं को सच मानें कि नहीं?
रामायण-महाभारत की घटनाओं को सच मानें कि नहीं?
11 min

प्रश्नकर्ता: सर नमस्कार! रामायण और महाभारत में जो कहानियाँ हैं, क्या वो सत्य घटनाओं पर आधारित हैं?

आचार्य प्रशांत: घटनाएँ सत्य या असत्य नहीं होतीं, घटनाएँ तथ्य कहलाती हैं। ठीक है?

उदाहरण के लिए - कोई एक घर से निकला और सड़क का इस्तेमाल करके आधे किलोमीटर दूर किसी दूसरे

होइहै वही जो राम रचि राखा || (2019)
होइहै वही जो राम रचि राखा || (2019)
18 min

प्रश्नकर्ता: मन में हमेशा एक ऐसा विचार आता है, मतलब कई बार; पिछले बार कई बार पढ़ा उसके हिसाब से, कि अगर कहते हैं, "होइहै वही जो राम रचि राखा", तो क्या मतलब ये अध्यात्म में ऐसा मानें कि आत्मा-परमात्मा अलग रहे बहुकाल? तो ये ऐसा होता ही है मतलब

चाहे कृष्ण कहो या राम
चाहे कृष्ण कहो या राम
5 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, सांसारिक दृष्टि से, श्रीकृष्ण को सोलह गुणों का धनी माना जाता है और श्रीराम को बारह गुणों का धनी माना जाता है, ऐसा क्यों? उनमें क्या कोई भेद है?

आचार्य प्रशांत: राम ने मर्यादा के चलते, अपने ऊपर आचरणगत कुछ वर्जनाएँ रखीं, कृष्ण ने नहीं रखीं है।

राम का भय ही पार लगाएगा
राम का भय ही पार लगाएगा
38 min

रामहि डरु करु राम सों ममता प्रीति प्रतीति।

तुलसी निरुपधि राम को भएँ हारेहूँ जीति।।

~ संत तुलसीदास

आचार्य प्रशांत: ध्यान देना होगा! कुछ ऐसा है यहाँ पर जो आपको चौंका सकता है।

राम से ही डरो! हो राम से ही ममता-प्रीत और राम ही हों सर्वत्र प्रतीत। तुलसी निरुपधि

माया मिली न राम
माया मिली न राम
11 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, चीज़ें समझ में आ रही हैं लेकिन फिर भी ऐसा लगता है कि बीच में फँसा हुआ हूँ, खींचा हुआ सा महसूस करता हूँ, ऐसी हालत में क्या होगा?

आचार्य प्रशांत: कुछ टूटेगा। या इधर टूटेगा या उधर टूटेगा।

पर हम बड़े होशियार लोग हैं, जैसे स्ट्रैटजी

रात और दिन दिया जले
रात और दिन दिया जले
9 min

प्रश्नकर्ता: ज्योति दिये की दूजे घर को सजाए का क्या अर्थ है?

आचार्य प्रशांत: बिल्कुल सही जगह उंगली रखी है यही सवाल पूछने लायक है। बढ़िया!

गहरा ये भेद कोई मुझको बताए

किसने किया है मुझपर अन्याय

जिसका ही दीप वो बुझ नहीं पाए

ज्योति दिये की दूजे घर को

मन में तो साकार राम ही समाएँगे
मन में तो साकार राम ही समाएँगे
14 min

जानें जानन जोइए

बिनु जाने को जान।

तुलसी यह सुनि समुझि हियँ

आनु धरें धनु बान।।

~ संत तुलसीदास

आचार्य प्रशांत: जान कर के जान जाएँगे आप और बिना जाने कौन जानेगा? तुलसी खेल रहे हैं, मानो चुनौती-सी दे रहे हैं। कह रहे हैं- अब ये सुनो और समझो और

राम का इतना गहरा विरोध?
राम का इतना गहरा विरोध?
20 min

प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी, दिवाली के अवसर पर देशभर से लोग यहाँ पर आपके साथ दीवाली मनाने के लिए उपस्थित हैं। उन्होंने अपने प्रश्न भेजे हैं। पहला प्रश्न है- प्रणाम आचार्य जी, कलयुग में रावण के मोक्ष का मार्ग क्या है? त्रेता में हरि के हाथों मृत्यु पाकर रावण पार

क्या हम त्योहारों का असली अर्थ समझते हैं?
क्या हम त्योहारों का असली अर्थ समझते हैं?
18 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, आज दीवाली है, मेरे मन में ये प्रश्न आ रहा है कि क्या हम त्योहारों को उनके सही अर्थों में मनाते भी हैं या नहीं?

आचार्य प्रशांत: अगर धर्म वास्तव में ये है - ईमानदार, बोधपूर्ण, एकांत तो ये दिन (त्योहार) हमें और धार्मिक बनाते हैं या

वो बात बिल्कुल याद नहीं आती? || आचार्य प्रशांत, श्री रामचरितमानस पर (2019)
वो बात बिल्कुल याद नहीं आती? || आचार्य प्रशांत, श्री रामचरितमानस पर (2019)
22 min

प्रश्नकर्ता: पिछले बाईस वर्षों से मैं एक साधना कर रहा था। अब ऐसा लगता है कि मैं ग़लत रास्ते पर साधना कर रहा था। तो इस संबंध में एक चौपाई आयी है कि शिव जी कहते हैं कि,

उमा कहूँ मैं अनुभव अपना।

सत हरि भजन जगत सब सपना।।

आचार्य

राम - निराकार भी, साकार भी
राम - निराकार भी, साकार भी
9 min

आचार्य प्रशांत: मन को अगर कुछ भाएगा नहीं तो मन जाने के लिए, हटने के लिए तैयार नहीं होगा। मन हटता ही तभी है जब उसे ऐसा कोई मिल जाता है जो एक सेतु की तरह हो: मन के भीतर भी हो, मन उसे जान भी पाए, मन उसकी प्रशंसा

सत्य समझ में क्यों नहीं आता? || आचार्य प्रशांत, श्रीरामचरितमानस पर (2017)
सत्य समझ में क्यों नहीं आता? || आचार्य प्रशांत, श्रीरामचरितमानस पर (2017)
16 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, मैं ध्यान नहीं करती। आँखें तो बंद हैं ही, और बंद करके क्या फ़ायदा? कोई साधना भी नहीं करती। साधना और साध्य यदि दो हैं तो गोल-गोल चक्कर काटने से क्या फ़ायदा? बस सत्संग देखना-सुनना, साहित्य पढ़ना, राम कथा, भागवत कथा भाव से सुनना-देखना—इन सब में शांति

व्यर्थ ही मार खा रहे हो जीवन से || श्रीरामचरितमानस पर (2017)
व्यर्थ ही मार खा रहे हो जीवन से || श्रीरामचरितमानस पर (2017)
11 min

ज्यों जग बैरी मीन को आपु सहित बिनु बारि। त्यों तुलसी रघुबीर बिनु गति आपनी बिचारि।। ~ संत तुलसीदास

आचार्य प्रशांत: तुलसी का अंदाज़ ज़रा नर्म है। वो इतना ही कह रहे हैं कि मीन का समस्त जग बैरी है, यहाँ तक कि वह स्वयं भी अपनी बैरी है। वो

किसको मूल्य दे रहे हो?
किसको मूल्य दे रहे हो?
11 min

नाम राम को अंक है, सब साधन है सून।

अंक गए कुछ हाथ नहिं, अंक रहे दस गून।।

~ संत तुलसीदास

आचार्य प्रशांत: तुमने अपनी ज़िंदगी में जो इकट्ठा किया है, सब ‘सून' है। अब सून को सूना मानो चाहे शून्य मानो—असल में दोनों एक ही धातु से निकलते हैं।

जन्म से पहले, मृत्यु के बाद
जन्म से पहले, मृत्यु के बाद
19 min

सुनहु राम स्वामी सन चल न चतुरी मोरि।

प्रभु अजहुँ मैं पापी अंतकाल गति तोरी।।

~ संत तुलसीदास

आचार्य प्रशांत: विचित्र लीला है। कहीं से आते नहीं हम और न कहीं को चले जाते हैं। मध्य में वो है जिसे हम कहते हैं कि 'हम' हैं। जन्म से पहले तुम

क्या श्रीराम भी दुःख का अनुभव करते होंगे? || आचार्य प्रशांत, श्रीरामचरितमानस पर (2017)
क्या श्रीराम भी दुःख का अनुभव करते होंगे? || आचार्य प्रशांत, श्रीरामचरितमानस पर (2017)
12 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, क्या प्रभु श्रीराम को भी सामान्य व्यक्ति की तरह दुःख का अनुभव होता था?

आचार्य प्रशांत: प्रश्न है कि अनेक कहानियाँ कहती हैं कि राम को भी चोट लगती थी। ख़ास तौर पर सीता के वन-गमन के पश्चात राम भी उदासी में जीने लगे थे। मानने वालों

कुमाता कौन और सुमाता कौन?
कुमाता कौन और सुमाता कौन?
23 min

जद्यपि जनमु कुमातु तें, मैं सठु सदा सदोस।

आपण जानि न त्यागहहिं, मोहि रघुबीर भरोस।।

~ संत तुलसीदास

आचार्य प्रशांत: कोई-कोई ही नहीं होता जिसका जन्म कुमाता से होता है। अगर आप इस श्लोक को सिर्फ प्रकरण के संदर्भ में देखेंगे तो आपको ऐसा लगेगा जैसे कि किसी पात्र-विशेष ने

कौन हैं तुलसी के राम?
कौन हैं तुलसी के राम?
35 min

आचार्य प्रशांत: इतना तो हम सभी जानते हैं कि राम के स्पर्श ने रामबोला को तुलसीराम और तुलसीराम को तुलसीदास बना दिया। लेकिन याद रखना होगा कि जैसा भक्त होता है, वैसा ही उसका भगवान भी होता है। भगवान तो भक्त को रचता ही है, भक्त के हाथों भी भगवान

सीता का मार्ग, और हनुमान का मार्ग || आचार्य प्रशांत, श्रीरामचरितमानस पर (2017)
सीता का मार्ग, और हनुमान का मार्ग || आचार्य प्रशांत, श्रीरामचरितमानस पर (2017)
12 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, जब सीता और हनुमान दोनों ही राम तक पहुँचने के मार्ग हैं, तो इनमें मूलभूत रूप से क्या अंतर है?

आचार्य प्रशांत: एक है अपने को मिटा देना, और दूसरा है अपने को मिला देना।

मिटा देना ऐसा है कि जैसे कोई सपने से उठ गया हो,

माया तो राम की ही दासी है || आचार्य प्रशांत, श्रीरामचरितमानस पर (2017)
माया तो राम की ही दासी है || आचार्य प्रशांत, श्रीरामचरितमानस पर (2017)
15 min

तव माय बस फिरऊॅं भुलाना ।

ताते मैं नहिं प्रभु पहिचाना ।।

~ संत तुलसीदास

आचार्य प्रशांत: "तव माय", तुम्हारी माया। "बस फिरऊॅं भुलाना", उसी के वश होकर भूला-भूला सा, भटका-भटका सा फिर रहा हूँ। "ताते", उस कारण। "मैं नहिं प्रभु पहिचाना", मैं प्रभु को पहचान नहीं पाया।

हास्य है

स्मरण और स्मृति में क्या अंतर है? || आचार्य प्रशांत, श्रीरामचरितमानस पर (2017)
स्मरण और स्मृति में क्या अंतर है? || आचार्य प्रशांत, श्रीरामचरितमानस पर (2017)
18 min

नामु राम को कलपतरु, कलि कल्यान निवासु।

जो सिमरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास।।

~ संत तुलसीदास

आचार्य प्रशांत: राम का नाम 'कल्पतरु' है, कल्पवृक्ष; माँगे पूरी करने वाला, मन चाहा अभीष्ट देने वाला। और कल्याण निवास है, "कल्यान निवासु" – वहाँ पर तुम्हारा कल्याण बसता है। “जो सिमरत भयो"

राम से दूरी ही सब दुर्बलताओं का कारण || आचार्य प्रशांत, श्रीरामचरितमानस पर (2017)
राम से दूरी ही सब दुर्बलताओं का कारण || आचार्य प्रशांत, श्रीरामचरितमानस पर (2017)
11 min

तुलसी राम कृपालु सों, कहिं सुनाऊँ गुण दोष।

होय दूबरी दीनता, परम पीन संतोष।।

~ संत तुलसीदास

आचार्य प्रशांतः कृपालु राम के आगे अपने सारे गुण-दोष खोल कर रख दो, कह दो, सुना दो। इससे जो तुम्हारी दीनता है, जो तुम्हारी लघुता है, जो तुम्हारी क्षुद्रता है, वो दूबरी हो

निराकार तो मनातीत, साकार राम से होगी प्रीत || श्रीरामचरितमानस पर (2017)
निराकार तो मनातीत, साकार राम से होगी प्रीत || श्रीरामचरितमानस पर (2017)
7 min

भगत हेतु भगवान प्रभु राम धरेउ तनु भूप। किए चरित पावन परम प्राकृत नर अनुरूप।।

~ संत तुलसीदास

आचार्य प्रशांत: भक्तों के हित की ख़ातिर ही, राम-ब्रह्म (ब्रह्म-राम) ने मनुष्य राम का शरीर-रूप धारण किया, और धरती पर मनुष्य-संबंधी, मनुष्य के तल पर बहुत सारी लीलाएँ करीं।

खोट मत ढूँढने

बस राम को चुन लो, आगे काम राम का || आचार्य प्रशांत, श्रीरामचरितमानस पर (2017)
बस राम को चुन लो, आगे काम राम का || आचार्य प्रशांत, श्रीरामचरितमानस पर (2017)
9 min

तुलसी ममता राम सों सकता सब संसार।

राग न द्वेष न दोष दु:ख दास भए भव पार।।

~ संत तुलसीदास

आचार्य प्रशांत: राम से ममता, संसार में समता।

संसार में कुछ ऐसा नहीं जो कुछ दे सकता है, और कुछ ऐसा नहीं जो कुछ ले सकता है, तो यहाँ तो

राम को भुला देने से क्या आशय है?
राम को भुला देने से क्या आशय है?
10 min

प्रश्नकर्ता: जीवन में राम को भुला देने से क्या आशय है?

आचार्य प्रशांत: राम को भूलने से आशय हैं - बहुत कुछ और याद कर लेना।

राम को भूलने से यह आशय है कि –(कमरे की ओर इशारा करते हुए) ये कक्ष है छोटा सा, आपने इसको चीज़ों से इतना

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बेवजह की मान्यता है कि संसारी वह, जो भोगता है, और आध्यात्मिक आदमी वह, जो त्यागता है। अगर मामला राम और मुक्ति का हो, तो आध्यात्मिक व्यक्ति संसारी से ज्यादा संसारी हो सकता है। शृंगार का अर्थ है स्वयं को और आकर्षक बनाना, बढ़ाना—ऐसा जो तुम्हारे बंधन काट दे। जो करना हो, सब करेंगे—घूमना-फिरना, राजनीति, ज्ञान इकट्ठा करना, कुछ भी हो; कसौटी बस एक है—‘राम’। जो राम से मिला दे, वही शृंगार और वही प्रेम।
चित्रा त्रिपाठी द्वारा आचार्य प्रशांत का साक्षात्कार : भारत साहित्य उत्सव
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गीता जीवन को बेहतर नहीं बनाती है गीता जीवन देती है, गीता हमें पैदा करती है। तो इसलिए बहुत सारे जानने वालों ने, महापुरुषों ने गीता को मां कहा है अपनी कि वो हमें पैदा ही करती है। उसके पहले तो हम वैसे ही होते हैं जैसे इंसान का बच्चा पैदा होता है, तो पशुवत होता है, जानवर जैसे होते हैं। जब ज़िन्दगी में समझ आती है, बोध की गहराई आती है, ऋषियों का, ज्ञानियों का सानिध्य आता है, तब जा करके हम अपने आप को इंसान कहलाने के लायक बनते हैं। तो वही मेरा काम है। सब तक गीता का संदेश पहुंचा रहा हूँ।
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खाना कौन बनाए, यह बाद की बात है। असली मुद्दा यह है कि भोजन ज़िंदगी में इतना महत्वपूर्ण कैसे हो गया? जब जीवन में कोई ऊँचा लक्ष्य नहीं होता, जिसे खुलकर और डूबकर जिया जा सके, तो उसकी भरपाई हम जबान के स्वाद से करने लगते हैं। जिसके जीवन में ऊँचा उद्देश्य होता है, वे मसालों और घंटों लंबी रेसिपीज़ में समय नहीं गंवाते, बल्कि वे अपने जीवन को विज्ञान, कला, साहित्य, राजनीति और खेल से भरकर जीवन को स्वादिष्ट बनाते हैं। इसलिए ज़िंदगी को एक अच्छा, ऊँचा उद्देश्य दो और अपने हर पल का हिसाब रखो!
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Can't Say 'No'?
20 min
You’ve to remember the end. If the end is remembered, practically anything can be a means to that end. If the end is remembered, no means is important. Only that particular means is important that leads to the end at any particular moment. And, you don’t need to stick to any particular means. Because, life changes, so means have to change. The end alone is changeless, the end alone is endless. Everything else must come to an end, except the end itself.
परिवार भी संभालना है, ईश्वर भी पाना है || आचार्य प्रशांत (2019)
परिवार भी संभालना है, ईश्वर भी पाना है || आचार्य प्रशांत (2019)
15 min

प्रश्नकर्ता: नमन, आचार्य जी। जीवन में अजीब-सा अधूरापन रहता है। लगता है कुछ कमी है लेकिन जीवन की भागादौड़ी और परिवार में इतना उलझे हुए हैं कि समय ही नहीं मिल पा रहा ईश्वर की आराधना के लिए। इस तरह निरंतर जीवन खर्च होता जा रहा है, समाधान क्या है?

The Fine Line Between Innocence and Foolishness!
The Fine Line Between Innocence and Foolishness!
10 min
Innocence is when you can make profits, but you don’t care to. You still work very hard—probably harder than the for-profit concern—but you work so hard to give back tenfold. That’s innocence. These two will look similar to the clever mind because the clever mind is about making profits. The clever mind looks down at foolishness and sees no profits. It also looks up at innocence, and there also, it sees no profits. So, it thinks that probably these two are the same. They’re not similar.
कॉमेडी हो तो ऐसी
कॉमेडी हो तो ऐसी
18 min
हमारी ज़िंदगी में तो लगातार वही सबकुछ हो रहा है जो होना नहीं चाहिए। आप लोगों को हमारी ज़िंदगी का ही आईना दिखा दो न। हम सब अपने गधों को अपनी पीठ पर बैठाकर चल रहे हैं। इतनी जोर की हँसी आएगी कि मज़ा आ जाएगा। कुछ ऐसा है जो बेमेल है, विसंगत है, और हमारी ज़िंदगियाँ मूर्खता की ही एक अंतहीन कहानी हैं। ये एब्सर्डिटी दिखाओ न लोगों को, खूब हँसेंगे।
प्रेम, विवाह, और अध्यात्म
प्रेम, विवाह, और अध्यात्म
8 min
प्रेम तो जीवन में उतरता ही तब है, जब उसका (परमतत्व) आगमन होता है, अगर वो नहीं आया जीवन में तो तुम किस प्रेम की बात कर रहे हो? तुम्हारा सिर अभी अगर झुका ही नहीं उस पारलौकिक सत्ता के सामने, तुम्हारा सिर अकड़ा ही हुआ है, तो तुम किस प्रेम की बात कर रहे हो? तुमने प्रेम जाना ही नहीं है, झूठ बोल रहे हो अपने आप से भी कि तुम्हें प्रेम है, प्रेम है। होगा तुम्हारा बीस साल, पचास साल का रिश्ता, कोई प्रेम नहीं है। प्रेम अध्यात्म की अनुपस्थिति में हो ही नहीं सकता। जिसको अध्यात्म से समस्या है, उसको प्रेम से समस्या है।
झूठ से फ़ुर्सत पा लो, फिर सच की बात करना
झूठ से फ़ुर्सत पा लो, फिर सच की बात करना
11 min
तुम्हारे पास खाली समय रहता ही नहीं, क्योंकि तुम्हारे दिमाग में वो सब चलता रहता है। और वो सब चलता इसलिए रहता है क्योंकि तुम पचास चीज़ों के गुलाम हो, वो तुम्हें खाली छोड़ती ही नहीं। जब तुम्हें लगता है कि तुम उनसे खाली हो गए, तो तुम उनकी कल्पनाओं से भर जाते हो। अगर मुझे स्त्री से बहुत आसक्ति हो, तो जब तक स्त्री सामने है तब तक तो मैं उससे लिपटा ही हुआ हूँ, और जब वो सामने नहीं है तब भी दिमाग में क्या चलेगा? उसकी कल्पना। ये फ़िलॉसफ़ी नहीं कहलाती कि तुम बैठे-बैठे कुछ सोच रहे हो, ये आसक्ति कहलाती है।
Why Don't Indian Women Pay on Dates?
Why Don't Indian Women Pay on Dates?
13 min
See the conditioning. The forces of conditioning, they cut both ways. So, just as women are trained to be homemakers, similarly men are trained to be the breadwinners and the ones who would bring in the cash. So, from your point of view, it might be quite surprising that she didn’t offer to pay but probably from where she was looking at it, it was quite natural that you being the man, would take care of the payment.