Laziness

जागो, नहीं तो ज़िंदगी पीट कर जगाएगी
जागो, नहीं तो ज़िंदगी पीट कर जगाएगी
17 min
तामसिकता का अर्थ आलस्य होना आवश्यक नहीं, हालांकि सतह पर यह आलस्य जैसा लग सकता है। असली तमस स्वयं को यह भरोसा दिलाने में निहित है कि "मैं ठीक हूँ," "मैं स्वस्थ हूँ," "मुझे सब पता है," जबकि वास्तव में न तो मैं ठीक हूँ, न स्वस्थ, न ही स्वयं का जानकार। ऐसे व्यक्ति या तो स्वयं जागें, या फिर ज़िंदगी शायद उन्हें झंझोड़कर जगा पाए — जिसकी संभावना बहुत कम होती है। सबसे अच्छा विकल्प है स्वयं जाग जाना, क्योंकि जब जीवन सिखाता है, तो फिर वह किसी भी तरह की रियायत नहीं देता।
How To Stop Being Lazy?
How To Stop Being Lazy?
14 min
Those who are lazy, lack not in energy but in understanding. In physical nature, there is a tendency toward work minimization. If something gives you more output with less work, you will do it. You do not know that the right work brings benefits, dividends, and joy. Had you known it, you would have chosen the right action over laziness every moment.
काम टालना अच्छा है या बुरा?
काम टालना अच्छा है या बुरा?
9 min
काम को टालना बुरा नहीं है, पर यह समझना ज़रूरी है कि टालने वाला कौन है और क्यों टाल रहा है। यदि टालने वाला छोटा बने रहने, डरे रहने या अहंकार बचाने के लिए टाल रहा है, तो यह गलत है। लेकिन यदि भीतर सच्चाई, प्रेम और बोध है, और इसीलिए तुम जानते हो कि कौन सा काम सही नहीं है, और उसे टालते हो, तो टालना गलत नहीं है।
How to Overcome Laziness?
How to Overcome Laziness?
14 min
'Laziness' is an unnecessary pejorative. You’re imposing morality on Prakriti (physical nature) and calling it laziness. There’s nothing called laziness. In nature, there’s a tendency towards work minimization, which is logical—get maximum output with minimum effort. You view it through a moral lens and call it laziness. If something gives more output with less work, you’ll choose it. You call it laziness, but it’s simply efficiency. You calculate the pleasure-to-effort ratio, and if lying in bed offers more pleasure than working out, you’ll naturally choose the bed.
आलस कैसे दूर करें?
आलस कैसे दूर करें?
6 min
आलस, एक अर्थ में तो सन्देश देता है कि जीवन नीरस है। कुछ है नहीं ऐसा कि तुममें बिजली कौंध जाए। ज़िंदगी में जिन-जिन चीज़ों में शामिल हो, उन चीज़ों को पैनी दृष्टि से देखो। प्रेम है कहीं पर? या मजबूरी में ही ढोये जा रहे हो? जहाँ मजबूरी होगी, वहाँ आलस होगा। आलस अपने आप में कोई दुर्गुण नहीं है। आलस सिर्फ़ एक सूचक है। जब कुछ अच्छा मिल जाएगा, आलस अपने आप पलक झपकते विदा हो जाएगा।
मुश्किल चुनौतियों से कैसे निपटें?
मुश्किल चुनौतियों से कैसे निपटें?
11 min
आदमी और आदमी में बस यहीं पर अन्तर स्थापित हो जाता है। एक आदमी होता है जिसको जब मुश्किल आती है तो वो और कमर कस लेता है और दूसरे आदमी को जब मुश्किल आती है तो फूँक मार कर गायब हो जाता है। एक आदमी होता है, जो कोई काम कर रहा होगा जैसे ही उस काम में वो मुश्किल के तल पर पहुँचेगा, जहाँ बाधा आने लग गई है, शरीर को, मन को चुनौती मिलने लग गई; वो कहेगा, 'अब जाकर के जान आई खेल में, अभी तक तो बोर हो रहे थे।'
Going with the flow, and being a lazy loser || Acharya Prashant (2016)
Going with the flow, and being a lazy loser || Acharya Prashant (2016)
13 min

Question: How to differentiate between and recognize, whether one trusts in the universe to unfold one’s destiny and goes with the flow, and allows the life to unfold, and be the one who is a loser, who is lazy and does nothing?

Acharya Prashant (AP):

The lazy one does a

Laziness is a dirty trick to defy the Truth || Acharya Prashant (2017)
Laziness is a dirty trick to defy the Truth || Acharya Prashant (2017)
48 min

Question: What is Life?

How do you call somebody alive?

AP: A dewdrop vanishes in no time, does it have a life?

Talk about yourself. What do you call as ‘your life’, your aliveness? We have this instrument here. Anybody can push the buttons and get it to operate in

The body’s secret  || Neem Candies
The body’s secret || Neem Candies
1 min

Treat the body as a companion, and see how this companion behaves when you fulfill its demands, and how it behaves when you do something that is for your own welfare. This companion is very, very selfish, very greedy. It cares only about itself; it has no respect for what

Procrastination is the carrying forward of misery || Acharya Prashant, with youth (2013)
Procrastination is the carrying forward of misery || Acharya Prashant, with youth (2013)
2 min

Question: Does procrastination imply that the priorities in the life are wrong?

Acharya Prashant: What is this thing about sending something, delegating something to the future. What is this thing about procrastination? Would you ever postpone something to the future if you are really in love with it? Would you

Laziness is to be conditioned against a particular activity || Acharya Prashant, with youth (2015)
Laziness is to be conditioned against a particular activity || Acharya Prashant, with youth (2015)
7 min

Questioner: What is laziness?

Shri Prashant: When you are conditioned against something, then you do not want to do it. This is laziness. Nothing else is laziness.

The Clarity Sessions at Advait Sthal start at 9:00 a.m. One day, in one such session, some of the visitors reached late. So

Feeling lazy? || Neem Candies
Feeling lazy? || Neem Candies
1 min

Those who are lazy lack not in energy but in understanding. You do not know that you need to work and that work will get you benefits, dividends, joys. Therefore, you are preferring inaction over action. Had you really known the sweetness, the ambrosia of right action, you would have

तनाव आलस को आमन्त्रण है || आचार्य प्रशांत (2017)
तनाव आलस को आमन्त्रण है || आचार्य प्रशांत (2017)
37 min

प्रश्नकर्ता: न आलस है, न उठा हुआ है, न सोया हुआ, कुछ ऐसा मतलब एक कंफ्यूजन (संशय) है कि क्या ये, ये क्या है? नींद भी है उसमें हल्की सी, जागृति भी है, अब जागृति का तो पता नहीं लेकिन कुछ है, विचार भी नहीं है लेकिन कुछ है। लेकिन

जिसकी छाती में छुरा घुपा हो || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू
जिसकी छाती में छुरा घुपा हो || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू
3 min

आचार्य प्रशांत: तुम्हारी हालत ऐसी है कि जैसे किसी आदमी की छाती में छुरा घुपा हुआ हो। और वो पूछ रहा हो कि इस शहर में सैंडविच कहाँ मिलता है। और जूतों का कोई नया ब्रांड आया है क्या बाज़ार में? और वो जो लड़की जा रही है, बड़ी ख़ूबसूरत

मज़बूत कंधे, तेज़ बुद्धि, विराट हृदय - ऐसा युवा चाहिए || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू
मज़बूत कंधे, तेज़ बुद्धि, विराट हृदय - ऐसा युवा चाहिए || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू
8 min

आचार्य प्रशांत: तुममें से भी ज़्यादातर लोग ट्वेंटीज़ (दूसरे दशक) में, थर्टीज़ (तीसवें दशक) में हैं। मुझे नहीं लगता कि अभी मेरे सामने जितने लोग हैं, उसमें से ज़्यादा लोग चालीस पार के हैं, शायद कोई भी नहीं।

क्या करते हो दफ़्तर के बाद, ये बताओ न। और कारण है

उठना, खपना, खाना, सोना - क्या यही जीवन है? || आचार्य प्रशांत (2019)
उठना, खपना, खाना, सोना - क्या यही जीवन है? || आचार्य प्रशांत (2019)
8 min

प्रश्नकर्ता: मैं सुबह उठता हूँ, अपना काम करता हूँ और रात को खाकर सो जाता हूँ, क्या यही जीवन है? नहीं तो क्या? मुझे इसके सिवा कुछ दिखाई ही नहीं देता, कृपया मार्गदर्शन करे ।

आचार्य प्रशांत: किनका है? न मैं खाने की चीज़ हूँ न मेरे बगल में सोते

वो जो घर में ही पड़े रहते हैं || नीम लड्डू
वो जो घर में ही पड़े रहते हैं || नीम लड्डू
1 min

लड़का पच्चीस साल का, तीस साल का है और कुल एक भाई एक बहन है। अकसर माँ-बाप कार्यरत रहे थे, दोनों ही कमाते थे तो बचत है घर में। मकान अपना है। लड़का अगर पच्चीस-तीस साल का है तो माँ-बाप कितने साल के हैं?

साठ-पैंसठ।

अभी-अभी रिटायर (सेवानिवृत) हुए हैं,

वेल्लों की असली पहचान || नीम लड्डू
वेल्लों की असली पहचान || नीम लड्डू
1 min

नौ बजे खाना लगना है मेज़ पर, सात बजे से सूँघना शुरू कर देते हैं।

“तो आज क्या बन रहा है? तो आज क्या बन रहा है?”

जब ज़िंदगी बिलकुल बैरोनक और खाली होती है तो दिमाग में सिर्फ़ खाना और थाली होती है।

नौ बजे खाना लगना होता है,

लक्ष्य प्राप्त कैसे करें? || नीम लड्डू
लक्ष्य प्राप्त कैसे करें? || नीम लड्डू
1 min

जिनके दिल नहीं टूटते उनके लिए जीवन में कोई प्रगति संभव नहीं है। जो अपनी असफलता को भी चुटकुला बनाए घूमते हैं, जिन्हें लाज ही नहीं आती, उनके लिए जीवन में कोई उन्नति, उत्थान संभव नहीं है।

इंसान ऐसा चाहिए जो लक्ष्य ऊँचा बनाए। और लक्ष्य फिर ना मिले तो

ज़्यादा सोने की आदत है? || नीम लड्डू
ज़्यादा सोने की आदत है? || नीम लड्डू
1 min

कुछ साल मिले हैं जगने के लिए, उसके बाद तो खूब सोना है। तो यह तुम कैसे आदत अभी पाले हुए हो कि, “ज़रा और सो लें एक घण्टा, दो घण्टा”?

भीतर एक चेतना होनी चाहिए, लगातार एक गूंज होनी चाहिए कि, “लंबे पाँव पसार कर के अनंत समय के

जवान हो, मेहनत करो || नीम लड्डू
जवान हो, मेहनत करो || नीम लड्डू
1 min

लड़के यहाँ आते हैं – लड़के भी क्यों कहूँ – युवा, मर्द पच्चीस-पच्चीस, तीस-तीस साल के। वो कहते हैं, “घर वालों के कारण घर पर पड़ा हुआ हूँ, कोई काम नहीं करता और घर का माहौल कुछ ऐसा है कि काम करने की प्रेरणा नहीं मिलती।“ सारा दोष घर वालों

आलस के मज़े || नीम लड्डू
आलस के मज़े || नीम लड्डू
2 min

आलस के मज़े होते हैं। आलस से ज़्यादा मज़ेदार कुछ मिला ही नहीं अभी तक!

बहुत मोटे-मोटे बच्चे देखे हैं मैंने, तीन साल, चार साल की उम्र तक घर पर पड़े थे एकदम मोटे, उनका स्कूल में दाखिला होता है वह तुरंत पतले हो जाते हैं। दोस्त-यार मिल गए, खेल

आलस की समस्या का आखिरी हल || नीम लड्डू
आलस की समस्या का आखिरी हल || नीम लड्डू
1 min

तुमको आलस प्यारा है तो कर लो आलस, बस यह झूठ मत बोल देना कि आलस ने तुम्हें विवश कर दिया, कि आलस ने तुम्हें पकड़ लिया। आलस ने तुम्हें नहीं पकड़ लिया, तुमने आलस को पकड़ा है। कोई विवशता नहीं है, आलस तुम्हारा चुनाव है। हर बात में तो

सब समझ आता है, पर बदलता कुछ नहीं || (2019)
सब समझ आता है, पर बदलता कुछ नहीं || (2019)
11 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, जब सब पता चलता है, सब दिखता भी है कि सब ठीक नहीं चल रहा उसके बावजूद भी कुछ बदलता क्यों नहीं है?

आचार्य प्रशांत: आप जो बात बोल रहे हैं न, वो जीवन के मूल सिद्धांत के ख़िलाफ़ है। जीवेषणा समझते हैं क्या होती है? और

अगर जीवन में हिम्मत की कमी लगती हो
अगर जीवन में हिम्मत की कमी लगती हो
8 min

प्रश्नकर्ता: नमस्कार गुरुजी, मुझे ये बोलना है कि मुझे काफ़ी हिम्मत की कमी महसूस होती है। उस कारण से कोई निर्णय भी स्पष्टता से नहीं ले पाता हूँ, न कुछ पूरी तरह हाँ होता है और न कुछ पूरी तरह ना होता है। मुझमें कोई स्पष्टता नहीं आ पाता। कृपया

जब आलस के कारण कुछ करने का मन न हो
जब आलस के कारण कुछ करने का मन न हो
12 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, आजकल कुछ भी मन नहीं करता करने क — न धन के लिए, न ध्यान के लिए। आलस से भरा रहता हूँ। कुछ कहें।

आचार्य प्रशांत: कौन कह रहा है कि मन कुछ भी करने का नहीं करता? आलस करने का नहीं करता? मन यदि कुछ नहीं

अतीत के ढ़र्रे तोड़ना कितना मुश्किल? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
अतीत के ढ़र्रे तोड़ना कितना मुश्किल? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
5 min

प्रश्न: आचार्य जी, बीस साल से जिन ढर्रों पर चलता आ रहा था, आपने आकर बोल दिया कि वो ठीक नहीं हैं। तो अब मैं उन्हें ठीक करने की कोशिश करूँगा। दो-चार दिन चलूँगा, फिर पाँचवें दिन लगेगा सब ऐसे ही चल रहे हैं तो ठीक है रहने दो, मैं

मन के मोटापे से बचो || आचार्य प्रशांत, युवाओ के संग (2012)
मन के मोटापे से बचो || आचार्य प्रशांत, युवाओ के संग (2012)
4 min

आचार्य प्रशांत: कॉलेज, घर, दोस्त, माता-पिता, शिक्षक, शॉपिंग मॉल; तुम्हारा संसार यही है, इतना ही है। यही है न?

कोई और होगा जिससे मैं पूछूँ, “संसार माने क्या?,” वो शायद बोलेगा, ‘*लेबोरेटरी*‘(प्रयोगशाला)। यह उसका संसार है। अगर कोई प्रेम में है और मैं उससे पूछूँ, “संसार क्या है?,” वो कहेगा,

कल्पनाएँ ही आलस्य हैं || आचार्य प्रशांत, युवाओ के संग (2012)
कल्पनाएँ ही आलस्य हैं || आचार्य प्रशांत, युवाओ के संग (2012)
18 min

आचार्य प्रशांत : क्या है आलस्य?

हम चीज़ों को, उनके लक्षणों के आधार पर भ्रमित कर लेते हैं। हम चीज़ को उसके नाम से भ्रमित कर लेते हैं। अच्छा, दाल क्या है? दाल का नाम है दाल? क्या दाल का नाम है दाल?

मैं कहूँ, “पानी”, तो इससे प्यास बुझ

नींद और मौत क्या बताते हैं? || आचार्य प्रशांत, कुरान शरीफ़ पर (2013)
नींद और मौत क्या बताते हैं? || आचार्य प्रशांत, कुरान शरीफ़ पर (2013)
15 min

ईश्वर खींच लेता है जीवों को उनकी मृत्यु के समय , और जिन्हें मृत्यु नहीं आयी उन्हें निद्रा की स्थिति में खींच लेता है। फिर जिन की मृत्यु निश्चित हो चुकी होती है , उन्हें रोक लेता है और शेष को विदा कर देता है , एक निश्चित अवधि

आलस माने क्या? || आचार्य प्रशांत (2015)
आलस माने क्या? || आचार्य प्रशांत (2015)
13 min

श्रोता : सर, अभी आपने बात की थी कि आलस बिल्कुल नहीं होना चाहिए| तो उस पर थोड़ा और बता देंगे कि आलस को अहंकार किस तरह से इस्तेमाल करता है?

वक्ता : आलस बड़ी चालाक चीज़ होती है | कोई भी फ़िज़ूल काम करने में तुम्हें कभी आलस नहीं

जान कर अनजान? || आचार्य प्रशांत (2013)
जान कर अनजान? || आचार्य प्रशांत (2013)
9 min

प्रश्न: ऐसा बहुत बार होता है कि सत्य की झलक मिलती है। पर हम झलक मिलने के बाद भी क्यों अनजान बने रहते हैं?

वक्ता: जिस क्षण में तुम्हें झलक मिलती है, उस क्षण में तुम कुछ भी नज़रंदाज़ नहीं कर रहे होते हो। सत्य की झलक मिलने के बाद

टाल-मटोल की आदत || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
टाल-मटोल की आदत || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
5 min

प्रश्न : सर टाल-मटोल की आदत से कैसे बचें?

वक्ता : क्या तुम इस सवाल को टाल रहे हो अभी? अभी ये सवाल पूछ रहे हो। तुम चाहते तो इसे टाल सकते थे कि ‘कौन पूछे? यहाँ इतने लोग बैठे हैं सभी थोड़े ही सवाल पूछ रहे हैं’, तुमने पूछा

नींद से उठने में थोडा कष्ट तो होगा || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
नींद से उठने में थोडा कष्ट तो होगा || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
3 min

वक्ता: सूरज का निकलना रात की मौत है, तो क्या सूरज नहीं निकले?

रोशनी का आना, अँधेरे की मौत है। तो क्या रोशनी न आये? दवाई का खाना, बैक्टीरिया और वायरस की मौत है। तो क्या दवाई न खाई जाये? जवानी का आना, बचपन की मौत है। तो क्या जवानी

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सच्चा प्रेमी ज़िंदगी में चुनौती बनकर आता है। वो आपको बेहतर होते देखना चाहेगा—बढ़ते, बदलते। उससे असुविधा होगी, मन में आएगा कि ये ज़िंदगी में आया ही क्यों? ये परेशान करता है, मेहनत करवाता है, चुनौती देता है। पर हम तो उन प्रेमियों को ढूंढ़ते हैं, जो बस सुख दें, झूठी तसल्ली दें, तारीफ़ें करें। तो परखना है कि प्रेम सच्चा है या नहीं—तो देखो, वो तुम्हें दे क्या रहा है? सुख या होश?
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सभी देवता वास्तव में आपकी आंतरिक शक्तियों के प्रतीक हैं, क्योंकि स्थूल जगत में कोई देवता नहीं होते; वे आपके भीतर ही हैं। दानव तुम्हारा वही हिस्सा है जो बार-बार चोट खाकर भी हठी की तरह खड़ा हो जाता है, अपनी पुरानी गलतियाँ दोहराने के लिए। यदि तुम्हें अपने भीतर के दानव को परास्त करना है, तो अपने काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ और भय — इन 6 गुणों को सत्य और ऊँचाई की सेवा में माने देवी को समर्पित करना होगा।
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टूटफूट ही वो जरिया है जो आपको बताएगा कि आपके पास कुछ ऐसा भी है जो टूट नहीं सकता। जब सब बिखरा पड़ा होगा उसके बीच ही अचानक आपको पता चलेगा, अरे एक ऐसी चीज है जो नहीं बिखरी बड़ा मजा आएगा। उसके बाद यही लगेगा कि इसको और बार-बार पटको और जितना बार-बार पटको और जितना यह नहीं टूटता उतना इसमें विश्वास और गहरा होता जाता है और आदमी और खुलकर खेलता है। यह सबके पास है। यह सबके पास है। हमें इसका पता इसीलिए नहीं है क्योंकि हमने इसको कभी आजमाया ही नहीं।
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हर वो चीज़ जो हमारे भीतर के "जानवर" को अच्छी लगती है, वह तुरंत प्रसिद्ध हो जाती है। आप लोकप्रिय होना चाहते हो? कोई बहुत अच्छा या ऊँचा काम मत करना—कोई एकदम घटिया काम कर दो, तुरंत पॉपुलर हो जाओगे। कोई ऐसा काम करो जो एकदम ही गिरे हुए तल का हो। ऊँचा काम करोगे, तो लोगों को समझ में नहीं आएगा, दिखाई भी नहीं देगा और लोग डर भी जाएँगे—क्योंकि ऊँचाई खतरा होती है और ऊँचाई कुर्बानी मांगती है। कौन ऊँचा चढ़े? श्रम भी बहुत लगता है। तो बिल्कुल, कोई एकदम साधारण या साधारण से भी नीचे का कुछ करने लगो, लोग आकर्षित हो जाते हैं आपकी ओर।
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बेवजह की मान्यता है कि संसारी वह, जो भोगता है, और आध्यात्मिक आदमी वह, जो त्यागता है। अगर मामला राम और मुक्ति का हो, तो आध्यात्मिक व्यक्ति संसारी से ज्यादा संसारी हो सकता है। शृंगार का अर्थ है स्वयं को और आकर्षक बनाना, बढ़ाना—ऐसा जो तुम्हारे बंधन काट दे। जो करना हो, सब करेंगे—घूमना-फिरना, राजनीति, ज्ञान इकट्ठा करना, कुछ भी हो; कसौटी बस एक है—‘राम’। जो राम से मिला दे, वही शृंगार और वही प्रेम।
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प्रेम तो जीवन में उतरता ही तब है, जब उसका (परमतत्व) आगमन होता है, अगर वो नहीं आया जीवन में तो तुम किस प्रेम की बात कर रहे हो? तुम्हारा सिर अभी अगर झुका ही नहीं उस पारलौकिक सत्ता के सामने, तुम्हारा सिर अकड़ा ही हुआ है, तो तुम किस प्रेम की बात कर रहे हो? तुमने प्रेम जाना ही नहीं है, झूठ बोल रहे हो अपने आप से भी कि तुम्हें प्रेम है, प्रेम है। होगा तुम्हारा बीस साल, पचास साल का रिश्ता, कोई प्रेम नहीं है। प्रेम अध्यात्म की अनुपस्थिति में हो ही नहीं सकता। जिसको अध्यात्म से समस्या है, उसको प्रेम से समस्या है।
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Love relates to the topmost point because love knows that the purpose is topmost. If you are to serve the topmost purpose, then you have to relate to the topmost point in the others being. So, the student will come to me and seek not flesh but wisdom from me or whatever I can give, some knowledge, something, the intent is very different, desire wants blind gratification, love wants illuminated liberation, the very intent.
प्रेम के बदले नफ़रत क्यों मिलती है?
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