Dreams

Understand Your Dreams, Don't Just Follow
Understand Your Dreams, Don't Just Follow
21 min
Dreams arise from internal restlessness and a deep subconscious desire; there is nothing wrong with that. But if that desire is not understood properly, you'll end up chasing the wrong objects, assuming that the objects of your dreams are all that you want. So, don't take your dreams at face value. Go deep and see what your heart really longs for. A hint: dreams can guide you, but only if you read them properly.
कहाँ से आते हैं सपने?
कहाँ से आते हैं सपने?
9 min
जो बात मन में नहीं है, वो सपने में भी नहीं आ सकती। और जो कुछ सपने में आ रहा है, वो निश्चित रूप से जाग्रत अवस्था में कहीं-न-कहीं मन में है। वरना सपने में नहीं आता। न बंद ऑंखों वाले सपने सच्चे हैं, न खुली ऑंखों वाले सपने सच्चे हैं। सच्ची है सिर्फ़ तुम्हारी समझने की शक्ति।
How to get rid of daydreaming? || Acharya Prashant, with youth (2013)
How to get rid of daydreaming? || Acharya Prashant, with youth (2013)
2 min

Questioner: Sir, how to get rid of the problem of daydreaming?

Acharya Prashant: Are you day dreaming and knowing that it is day dreaming?

No! It’s not possible. You know that you have been dreaming only after the dreaming ceases. Right?

Now you are obviously helpless when the process of

The difference between dream and vision || Acharya Prashant, with youth (2013)
The difference between dream and vision || Acharya Prashant, with youth (2013)
14 min

Listener: Sir, in the last session we were told that all dreams arise from past experiences. I agree that dreams arise from past but then how do I dream of something which is not at all present in my past? How do I dream of something that I have not

Searching for a relationship || Neem Candies
Searching for a relationship || Neem Candies
1 min

You were once a girl; you would have read mathematics, history, science, geography, languages. Didn’t you find inspiring figures there? Didn’t those books arouse fantastic ideas in you?

I am sure that when you were younger, you thought of excellence, didn’t you? You would have had dreams. In your dreams,

Purposeful life, or purposeless? || (2020)
Purposeful life, or purposeless? || (2020)
6 min

Questioner: You advise us to have a purposeless, aimless life. But if we will not aim for anything, then how will I crack my exams? In your younger days, you too prepared for exams like MBA, IIT JEE, Civil services, etc. But now you say having aims is no good.

The real meaning of daydreaming || Acharya Prashant (2015)
The real meaning of daydreaming || Acharya Prashant (2015)
20 min

Questioner: What is daydreaming?

Speaker: The ones who coined this word ‘daydreaming’ used it as a kind of a pejorative, as a condemnation. Their assumption was that, dreaming befits only the sleeping state of consciousness and in the waking state, dreaming must not happen ; that dreaming must not be

The perils of being goal-oriented || (2016)
The perils of being goal-oriented || (2016)
11 min

Questioner (Q): Acharya Ji, you once said that motivation and ambitions are symptoms of suffering but I think if one lives with ambition, the journey will teach him a lot. Life will become disarrayed. Please explain.

Acharya Prashant (AP): Don’t you see an obvious contradiction in what you are saying?

Three states of consciousness, death, and liberation || Acharya Prashant, on Raman Maharshi (2019)
Three states of consciousness, death, and liberation || Acharya Prashant, on Raman Maharshi (2019)
13 min

Questioner: Ramana Maharshi says, “There is no difference between the dream and the waking state except that the dream is short and the waking state is long.” Further at another place he says, “Just before waking up from sleep there is a very brief state free from thought. That should

An IIT - IIM education must widen your choices, not limit them || Acharya Prashant, with youth(2018)
An IIT - IIM education must widen your choices, not limit them || Acharya Prashant, with youth(2018)
9 min

Questioner (An engineering student) : Acharya Ji, what made you inclined towards Spirituality, after education from premier institutions like IIT-D and IIM-A?

Acharya Prashant (AP): A couple of decades ago, I was on that side where you all are sitting now, in another engineering college, IIT-Delhi. We too used to

सपनों में भगवान मत देखो, जीवन में भगवान उतारो || आचार्य प्रशांत (2016)
सपनों में भगवान मत देखो, जीवन में भगवान उतारो || आचार्य प्रशांत (2016)
9 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, सपनों में या ध्यान में किसी भी भगवान के दर्शन हो जाने को बड़ा महत्व दिया गया है, लोगों को ध्यान में शिव दिखते हैं और ऐसी बहुत कहानियाँ और भी प्रचलित हैं, ये सब क्या है कृपया स्पष्ट करें?

आचार्य प्रशांत: और शिव का भी वही

चलो पॉज़िटिव हो जाएँ || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू
चलो पॉज़िटिव हो जाएँ || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू
5 min

आचार्य प्रशांत: बी पॉज़िटिव ताकि तुम इस दुनिया से और ज़्यादा लूट सको। बी पॉज़िटिव माने उम्मीदें बुलंद रखो। उम्मीद है किस बात की? तुम्हें सच्चाई की उम्मीद है, तुम्हें मुक्ति की उम्मीद है, तुम्हें सच्चे प्यार की उम्मीद है? या कोई तुम्हें तुम्हारे झूठे सपनों से झंझोड़ कर जगा

कितनी तनख्वाह है आपकी? (सैलरी बढ़ाने का एक अचूक तरीका) || आचार्य प्रशांत (2023)
कितनी तनख्वाह है आपकी? (सैलरी बढ़ाने का एक अचूक तरीका) || आचार्य प्रशांत (2023)
14 min

प्रश्नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी। मेरा प्रश्न है कि कॉर्पोरेट जगत में काम कर रहे हैं तो मुख्य रूप से मार्जिन , क्वार्टरली प्रॉफ़िट आदि को लेकर हम कामना-केन्द्रित होते हैं। ऐसे में हम करुणा पर कैसे ध्यान दें? मैं आपसे स्पष्ट जानना चाहती हूँ।

आचार्य प्रशांत: कुल मिलाकर के आप

UPSC छात्र का बेबाक साक्षात्कार (जिनमें दम हो, वो ही देखें) || आचार्य प्रशांत (2023)
UPSC छात्र का बेबाक साक्षात्कार (जिनमें दम हो, वो ही देखें) || आचार्य प्रशांत (2023)
21 min

प्रश्नकर्ता सर, समाज में कुछ लोगों का दावा होता है कि वो समाज कल्याण के लिए काम करना चाहते हैं। लेकिन उसमें भी उनकी कामना छुपी हुई होती है। लेकिन कुछ लोग सचमुच ऐसा समझते हैं कि वो काम इसीलिए करना चाहते हैं क्योंकि वो वाक़ई समाज कल्याण करना चाहते

आओ तुम्हें अमीर बनाएँ || आचार्य प्रशांत, बातचीत (2022)
आओ तुम्हें अमीर बनाएँ || आचार्य प्रशांत, बातचीत (2022)
37 min

प्रश्नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी, आज सुबह से थोड़ा मैं परेशान था इसलिए मैं चाहता था मैं आपसे थोड़ा बात करूँ इस विषय में। मेरा एक दोस्त है उसका मुझे सुबह फ़ोन आया था और सुबह जो उसका फ़ोन आया था उसके पीछे थोड़ा बैकग्राउंड (पृष्ठभूमि) है वो बताना चाहूँगा पहले।

एक ही गलती कितनी बार करनी है? || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव (2022)
एक ही गलती कितनी बार करनी है? || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव (2022)
9 min

प्रश्नकर्ता : नमस्ते आचार्य जी, मेरा नाम शिखर है। कल आपने अपना एक कॉर्पोरेट (निगम) का थोड़ा सा अनुभव बताया था कि आप जेंटल इलैक्ट्रिक में काम करते थे, तो वहाँ पर आपने पूछा कि अच्छा, आपके ऊपर कितने लोग काम करते थे, तो किसी को कोई मतलब नहीं था।

मौज करो, गंभीर मत हो जाना || नीम लड्डू
मौज करो, गंभीर मत हो जाना || नीम लड्डू
1 min

यही जीवन जीने की कला है, मौज करो, मस्ती करो! गंभीर मत हो जाना। बिलकुल हल्के रहो, क्योंकि रखा क्या है?

आज तुम जिस बात को गंभीरता से लेते हो, कल वो तुम्हारे लिए दो पैसे की हो जाएगी। याद है, जब चौथी-पाँचवी में रिज़ल्ट आया था तो तुम कैसे

सुन्दर लड़की के सामने छवि बनाने की कोशिश
सुन्दर लड़की के सामने छवि बनाने की कोशिश
5 min

प्रश्नकर्ता: एक विचार बरक़रार ही रहता है कि 'क्या लोग सोचते हैं या क्या है छवि?' कभी थोड़ा कम दिखता है पर रहता ही है। फिर ये क्यों है, ऐसा सब के साथ तो नहीं है, जैसे अभी कोई छोटा कुत्ता है, तो उसके लिए तो मैं नहीं सोच रहा

जवानी जलाने का पूरा और पक्का इंतज़ाम -2
जवानी जलाने का पूरा और पक्का इंतज़ाम -2
13 min

आचार्य प्रशांत: (प्रश्न पढ़ते हुए) "नाम तो मेरा लक्की है पर मैं बहुत अनलक्की हूँ। मैं पिछले नौ साल से यू.पी.एस.सी. की तैयारी कर रहा हूँ। चार बार फ़ेल हो चुका हूँ, नौ साल से घर से बाहर हूँ और अब घर लौटने में डर लगता है। यू.पी.एस.सी. के अलावा

दूसरे क्या सोचेंगे, दुनिया क्या कहेगी?
दूसरे क्या सोचेंगे, दुनिया क्या कहेगी?
43 min

प्रश्नकर्ता: मैं जब अपनी ज़िन्दगी के बीते सालों को देखता हूँ तो दिखता है कि बहुत कुछ किया जा सकता था पर दूसरे क्या सोचेंगे, क्या कहेंगे, ये ख़्याल कर-करके मैंने कुछ किया नहीं। और आपका जीवन देखता हूँ तो पाता हूँ कि आपने सब कुछ लीग (संघ) से हटकर

जो सामने है, उसपर ध्यान दो
जो सामने है, उसपर ध्यान दो
7 min

प्रश्नकर्ता: मैं अपने जीवन में हारा हुआ महसूस करता हूँ और जीवन की असफलताओं से बहुत अधिक परेशान हो जाता हूँ। इससे कैसे बाहर निकलूँ?

आचार्य प्रशांत: एक-से-एक चोटियाँ हैं चढ़ने के लिए, आई-आई-टी का एग्जाम क्लियर नहीं हुआ बहुत छोटी चोटी है वह। हजारों लोग हर साल करते हैं

आओ तुम्हें जवानी सिखाएँ || आचार्य प्रशांत (2020)
आओ तुम्हें जवानी सिखाएँ || आचार्य प्रशांत (2020)
22 min

प्रश्नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी, “जवानी अकेली दहाड़ती है शेर की तरह”—आपकी यह पंक्ति जब से सुनी है, तब से ख़ुद को युवा कहने में शर्म आती है। मुझ में उत्साह की कमी है। वो धार नहीं है जो इस उम्र में होनी चाहिए। किसी भी कर्म में डूबने की कोई

अपने लक्ष्य को कैसे हासिल करें? || युवाओं के संग (2019)
अपने लक्ष्य को कैसे हासिल करें? || युवाओं के संग (2019)
3 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, अपने लक्ष्य को कैसे हासिल करें?

आचार्य प्रशांत: जो तुम उपलब्ध करना चाहते हो, अपने-आप को बार-बार याद दिलाओ कि वो तुम क्यों उपलब्ध करना चाहते हो, और वो उपलब्ध करके क्या मिलेगा। उपलब्धि से पहले की प्रेरणा क्या है, इंस्पिरेशन क्या है – ये अपने-आप को

अतीत के ढ़र्रे तोड़ना कितना मुश्किल? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
अतीत के ढ़र्रे तोड़ना कितना मुश्किल? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
5 min

प्रश्न: आचार्य जी, बीस साल से जिन ढर्रों पर चलता आ रहा था, आपने आकर बोल दिया कि वो ठीक नहीं हैं। तो अब मैं उन्हें ठीक करने की कोशिश करूँगा। दो-चार दिन चलूँगा, फिर पाँचवें दिन लगेगा सब ऐसे ही चल रहे हैं तो ठीक है रहने दो, मैं

संकल्प पूरे क्यों नहीं कर पाते? || आचार्य प्रशांत, छात्रों के संग (2014)
संकल्प पूरे क्यों नहीं कर पाते? || आचार्य प्रशांत, छात्रों के संग (2014)
8 min

प्रश्न : आचार्य जी, हम जीवन में संकल्प करते हैं और पाते हैं कि जल्द ही फीका पड़ने लगता है। ऐसा क्यों?

आचार्य प्रशांत: सही बात तो ये है कि जो काम शुरू किया, वो शुरू ही इसलिए नहीं किया कि ख़ुद समझ आई थी कोई बात, वो शुरू इसलिए

आँख खोल के देखो, दुनिया दूसरी हो जाएगी || आचार्य प्रशांत (2014)
आँख खोल के देखो, दुनिया दूसरी हो जाएगी || आचार्य प्रशांत (2014)
2 min

आचार्य प्रशांत: कुंदन ने बात कही है एक कि अगर यह स्पष्ट ही दिखने लग जाए कि दुनिया कैसी है तो क्या इस दिखने के बाद दुनिया वैसी ही रह जाती है?

नहीं, बिलकुल भी नहीं!

क्योंकि दुनिया रूप और आकर से ज़्यादा नाम और धारणा है, एक बार आपकी

आदमी की खोपड़ी कभी नहीं भरती || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2012)
आदमी की खोपड़ी कभी नहीं भरती || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2012)
9 min

आचार्य प्रशांत : एक कहानी सुना रहा हूँ, ठीक है? इसको तार्किक तरीके से मत सुनना, इसका भाव समझने की कोशिश करना। कहते हैं, कि एक बार एक फ़कीर आया एक राजा के यहाँ पर। बड़ा राजा था, राजा से बोलता है एक छोटा सा कुछ चाहिये, मिलेगा? थोड़ा सा

कल्पनाएँ ही आलस्य हैं || आचार्य प्रशांत, युवाओ के संग (2012)
कल्पनाएँ ही आलस्य हैं || आचार्य प्रशांत, युवाओ के संग (2012)
18 min

आचार्य प्रशांत : क्या है आलस्य?

हम चीज़ों को, उनके लक्षणों के आधार पर भ्रमित कर लेते हैं। हम चीज़ को उसके नाम से भ्रमित कर लेते हैं। अच्छा, दाल क्या है? दाल का नाम है दाल? क्या दाल का नाम है दाल?

मैं कहूँ, “पानी”, तो इससे प्यास बुझ

न इच्छाएँ तुम्हारी, न उनसे मिलने वाली संतुष्टि तुम्हारी || आचार्य प्रशांत, युवाओ के संग (2012)
न इच्छाएँ तुम्हारी, न उनसे मिलने वाली संतुष्टि तुम्हारी || आचार्य प्रशांत, युवाओ के संग (2012)
10 min

आचार्य प्रशांत: सब कुछ तो सिर्फ़ जानना है न? खुद जानना। बस सुन नहीं लेना। किसी ने बोल दिया कि इंजीनियरिंग कर लो, तो कर ली। अब किसी ने बोल दिया कि चलो सॉफ्टवेयर वाली जॉब ले लो, तो ले ली। फिर किसी ने बोल दिया कि अब ये है,

बोध में स्मृति का क्या स्थान है? || आचार्य प्रशांत (2015)
बोध में स्मृति का क्या स्थान है? || आचार्य प्रशांत (2015)
4 min

श्रोता: एक बात मन में आती है कि जब अवेयरनैस (जागरुकता) है, तब अवेयरनैस है, आप नहीं हैं। तो जब तक इस शरीर में हैं, तब तक मस्तिष्क भी है, स्मृति भी है। जब अवेयरनैस है, तो स्मृति का क्या होता है? क्या वो कार्य नहीं करती?

वक्ता: नहीं, रहती

कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)
कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)
5 min

प्रश्न: सर, ये कहा जाता है कि ‘कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है’, ये कहाँ तक सही है?

वक्ता: ‘कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है’, जिस प्रकार से ये कही गई है, वैसे लगता है कि जीवन व्यापार है और उसमें अगर सफलता पानी है, तो

सपने नहीं, समझ || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2012)
सपने नहीं, समझ || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2012)
4 min

वक्ता: क्या इस बात को समझ रहे हो? इस पल में जो है, उसी से तो अगला निकलता है। अगर ये पल ठीक नहीं है तो क्या अगला ठीक हो सकता है?

श्रोता १: उसका कोई कारण भी तो होना चाहिए?

वक्ता: जिसको तुम आगे जाना कह रहे हो, उसका

मत पूछो कि करें क्या? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
मत पूछो कि करें क्या? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
3 min

वक्ता: सवाल है, ‘करें क्या’?

देखो बेटा सवाल है क्या इसको ध्यान से समझना। अक्सर मैं देखता हूँ कि छात्र यही बातें करते आते हैं कि हम समझ गए हैं कि ये ठीक है, ये नहीं । ये जान गए कि हम डरे हुए हैं, ये भी जान गए कि

पंख हैं पर उड़ान नहीं || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
पंख हैं पर उड़ान नहीं || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
12 min

प्रश्नकर्ता: सर, हम मुक्त होते हुए भी मुक्त क्यों नहीं हैं?

आचार्य प्रशांत: कुछ सवाल महत्वपूर्ण होते हैं, लेकिन मैं कहता हूँ कि ये बहुत महत्वपूर्ण सवाल है। मुझे ये भी नहीं पता है कि ये जो सवाल पूछा गया है क्या उसे ये पता भी है कि उसने पूछा

परम लक्ष्य सबसे पहले || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)
परम लक्ष्य सबसे पहले || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)
13 min

वक्ता: जहाँ कहीं भी तुम परम लक्ष्य बनाओगे, उससे चाहते तो तुम एक प्रकार की ख़ुशी ही हो। यही तो चाहते हो और क्या चाहते हो? परम लक्ष्य नही होता है। परम ये होता है कि उसी ख़ुशी में रह कर तुम ने अपने बाकी सारे काम करे। छोटे- बड़े,

करने से पहले सोचने की ज़रूरत || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)
करने से पहले सोचने की ज़रूरत || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)
2 min

प्रश्नकर्ता: सर, कहा जाता है कि कोई भी काम करने से पहले उसमें सोचना-विचारना ज़रूरी है। लेकिन मेरी ऐसी आदत है कि जो भी मैं सोचता हूँ, उसे कर देता हूँ। ये हमारे लिए अच्छा होगा या बुरा?

आचार्य प्रशांत: दोनों हो सकते हैं, निर्भर करता है कैसे। अगर मुद्दा

सपने नहीं, जागृति का उत्सव || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
सपने नहीं, जागृति का उत्सव || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
5 min

वक्ता: सपने क्यों? आंख खोलो और जियो! सपने तो इस बात की निशानी हैं कि आंख बंद है।

क्यों, किसलिए? पर मैं समझ रहा हूँ कि तुम कहाँ से आ रहे हो। तुम आ रहे हो वहाँ से जहाँ पर बड़े-बड़े लोगों ने कई बार तुमको ये कहा है कि

अतीत के बोझ का क्या करूँ? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
अतीत के बोझ का क्या करूँ? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
5 min

वक्ता: सवाल अच्छा है। ईमानदार सवाल है, ध्यान से देखेंगे इसे। सतीश कह रहे हैं कि ये सब बातें ठीक हैं पर जीवन का एक सत्य ये है कि हम सब अपनी परिस्तिथियों की पैदाइश हैं। बच्चा छोटा होता है, उसे वो ग्रहण करना ही होता है जो उसके आसपास

न तुम, न तुम्हारा श्रम || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
न तुम, न तुम्हारा श्रम || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
12 min

प्रश्न: सर सफलता कैसे पाएँ?

वक्ता: तुम मुझे बताओ कि सफलता क्या है?

श्रोता: परिश्रम करने से सफलता मिलती है।

वक्ता: तुम कहना चाहते हो कि परिश्रम करने से सफलता मिलती है। यह पंखा देखो। यह कितना परिश्रम कर रहा है, परिश्रम करते-करते गरम हो गया है।

श्रोता: यह पंखा

अवसर अभी है || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2012)
अवसर अभी है || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2012)
2 min

श्रोता: सर, कहा जाता है कि जो लोग सफल होते हैं वो अपने अवसर ख़ुद बनाते हैं! हम अपने अवसर ख़ुद कैसे बनायें?

वक्ता: बनाना क्यों है? है! अवसर अभी है!

और बनाओगे भी तो किस फैक्ट्री में बनाओगे जरा ये बताना? ये सारी बेकार की बातों पर क्यों ध्यान

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Questioner (Q): The theme of today’s interaction is inner growth. Usually when we talk of growth, we talk of external growth. For example, for an individual growth usually means job promotions, better income, or more comforts, etc. For a company, growth may mean growing in profits. For an institution, it

पैसा नहीं कमाया तो दोस्त छूटने लगे?
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अपने साथ जो चले — जानने वालों ने उसको बस एक नाम दिया है। बोले तुम्हारे साथ जो चले वो वो भी नहीं हो सकता जो तुम्हारे बगल में खड़ा हो। जो तुम्हारे साथ हमेशा चले वो सेल्फ होता है — तुम ही सिर्फ़ अपने साथ चल सकते हो। तुम्हारे अलावा कोई तुम्हारे साथ नहीं चल सकता।
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ये रुपए पैसे का खेल ये आदमी द्वारा आदमी का शोषण। ये एक आदमी द्वारा ये मानकर दुख झेलना — कि मैं तो अमीर हूँ और दूसरे आदमी द्वारा ये मानकर दुख झेलना — कि मैं तो गरीब हूँ। तुम्हें ये सारा खेल समझ में आएगा कि ये कैसे चल रहा है। खेल के शिकार मत बनो, खेल के खिलाड़ी मत बनो। थोड़ा सा बाहर निकलो और इस खेल के दृष्टा बनो। ये खेल ऐसा है कि जो इसे खेलने लग जाते हैं उन्हें ये खेल कभी समझ में नहीं आता। ये खेल उन्हें खा जाता है, इस खेल को वही समझ सकता है जो इस खेल से थोड़ा बाहर आ गया है।
Can Money and Spirituality Go Together?
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16 min
Good spirituality is good economics. We do not know what to purchase. We do not know what really is valuable, even in the material domain. The punishment of not being spiritual is that you lead a very bad, a very ruined worldly life and that includes an economic life, a ruined economic life. It is not merely the person, even nations, actually the entire world suffers when the one making the economic decision is spiritually bankrupt.
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21 min
दो ही चीज़ें होती हैं जो जीवन को समृद्ध करती हैं — तन के लिए व्यायाम, मन के लिए अध्यात्म। युवा होने का अर्थ होता है कि सुडौल शरीर हो, विराट हृदय और दुनिया की समझ। दुनिया की सारी क्रांतियाँ जवान लोगों ने की हैं; क्रांति का मतलब एक नया सृजन होता है। वो जवानी जो पढ़ती नहीं, लिखती नहीं, जो अपने आप को बोध से भरती नहीं — वो जवानी व्यर्थ ही जा रही है।
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For those who already have a certain level of financial, social, intellectual, and familial attainment but are still not satisfied, the only thing that can fulfill them is forgetfulness towards their personal success. Serve a cause bigger than yourself, and there will be no time or opportunity to keep wondering whether your demands have been met. This is when you have really succeeded.
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Those who work towards 'an end' find that they are defeated both in the work and in achieving 'the end' because even if they somehow manage to reach that end, they find that it's not really what they wanted. So, they proceed to the next destination; this is a vicious cycle. On the other hand, those who work because the work itself is a celebration, they win doubly because the work itself is the end, and they celebrate all the way to success.
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It’s not capitalism versus socialism; if the center I am operating from is itself animalistic, then I will want to earn profits for myself, whatever be the social cost. The change that we need is inward- ‘self-knowledge’. We need an education system in which the child is very openly helped to face his/her animalistic nature, then we will develop a certain humility to look for solutions beyond our tendencies.
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प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी, कल गुरु गोविन्द सिंह जी की जयन्ती है, तो हम उन्हें आदर्श रूप में कैसे स्थित करके अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं? जैसा कि आपने भी बोला है कि युवा के पास ऊर्जा तो है लेकिन सही आदर्श नहीं हैं, हमने आदर्श ग़लत लोगों

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जीतने के लिए मत खेलो। तुम खेलो वो सर्वश्रेष्ठ करने के लिए, जो तुम कर सकते हो। और जो सर्वश्रेष्ठ तुम कर सकते हो, वो जीतने से ज़्यादा ऊपर की बात है। परिणाम की चिंता न करते हुए, प्रतिपक्षी की चिंता न करते हुए, जीवन के हर मैदान में, तुम अपना सर्वश्रेष्ठ करो। खिलाड़ी का धर्म है कि वो लगातार उत्कृष्टता की ही पूजा करे। चाहे क्रिकेट का मैदान हो, चाहे जीवन का कोई भी क्षेत्र हो।