माया मिली न राम

Acharya Prashant

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माया मिली न राम

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, चीज़ें समझ में आ रही हैं लेकिन फिर भी ऐसा लगता है कि बीच में फँसा हुआ हूँ, खींचा हुआ सा महसूस करता हूँ, ऐसी हालत में क्या होगा?

आचार्य प्रशांत: कुछ टूटेगा। या इधर टूटेगा या उधर टूटेगा।

पर हम बड़े होशियार लोग हैं, जैसे स्ट्रैटजी (रणनीति) बोली ना, हम वॉशिंग-मशीन (कपड़े धुलने की मशीन) लेके नाले में गिरेंगे, सोलर-पावर्ड (सौर-ऊर्जा से संचालित) वॉशिंग-मशीन। नाले में तो हैं, पर साथ ही साथ धुलते जा रहे हैं, ऐसा नहीं होगा, दोनों में से एक टूटेगा।

प्रश्नकर्ता: टूटेगा, मतलब?

आचार्य जी: या तो इधर के रहोगे या उधर के रहोगे।

प्रश्नकर्ता: ऐसा भी तो मुमकिन है कि बहोत, मतलब पूरी ज़िन्दगी बीत गई और हम बीच में ही रह गए, इधर से भी खिंचते रहे, उधर से भी खिंचते रहे।

आचार्य जी: हाँ हो सकता है, ज़्यादा संभावना उसी की है। माया मिली..?

श्रोतागण: न राम।

आचार्य जी: न राम।

एक श्रोता: मेजोरिटी (बहुलता) तो यहीं पर रहती है।

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, मन को कैसे समझाया जाए ऐसी हालत में?

आचार्य जी: ये सब बातें कन्विंस (समझाना) करने की नहीं होती हैं। तुम हर काम खुद करना चाहते हो इसीलिए तुम्हारे सारे काम ख़राब होते हैं।

तुमसे ना हो पाएगा।

एक श्रोता: आपने अभी बोला, “तुम हर काम खुद करना चाहते हो इसलिए तुम्हारे हर काम बर्बाद होंगे।“ इसको थोड़ा और एक्सप्लेन (समझाना) कर दीजिए।

आचार्य जी: इसका मतलब है आउटसोर्स (बाहरी स्रोत से सेवाएँ प्राप्त करना)।

दुनिया ने तो आज सीखी है आउटसोर्सिंग, और आध्यात्मिकता ने बहुत पहले सिखा दी थी। जो अपने बूते का हो वो करो, जो ना हो वो उसको करने दो जो कर सकता है। कुछ काम खुद करने में नुकसान हो जाता है। माने किसी और को करने दो, आउटसोर्स।

एक श्रोता: कुछ चीज़ें आउटसोर्स कैसे आएँगी? मतलब मन किसी साइड भाग रहा है, और वो चीज़ मान लेना कुछ भी है, X है। मन ने कहा कि X अगर मिल जाएगा तो सही रहेगा, आराम रहेगा। मुझे नहीं पता X क्या है और वो मुझे मिला भी नहीं है, तो वो आउटसोर्स कैसे हो जाएगा, कोई मुझे कैसे बता देगा कि X में कुछ रखा ही नहीं? मुझे तो कुछ नहीं पता उसके बारे में। सामने वाला अगर बोलेगा तो मैं उसकी बात या तो मान लूँगा या नहीं मानूँगा।

आचार्य जी: X जो है न, एक पूरा सेट है, एक्स वन, X2, X3, X4 तुम्हें X4 नहीं मिला है, X1, X2, X3 मिले हुए हैं। पहला काम है ये जानना कि इस सेट के भीतर ये जितने भी X हैं, ये सब मूलतः एक हैं।

ये जो X का सेट है, ये एक अनंत, इनफाइनाइट (अनंत) सेट है, इसमें बहुत सारे X हैं। अगर ये कहोगे कि X(10,000) मिल गया है, तब भी दस-हज़ार-एकवाँ अभी बाकी होगा। तो X4 या X10 की भी बात नहीं है। कितने भी X पा लोगे, उसके बाद जो अगला है वो पाने के लिए बाकी रहेगा।

तुम मानलो कि तुम्हें अभी X4 आकर्षित कर रहा है। X1, X2, X3 को देखो, और देखो कि एक्स फोर मूलतः उनसे भिन्न नहीं है। जब X1, X2, X3 तुम्हें नहीं दे पाए जो उन्होंने वादा किया था, तो X4 कैसे दे देगा?

तुम अपनी पीड़ा के प्रति जगे हुए नहीं हो। X1, X2, X3 ये सब तुम्हें पीड़ा ही देके गए थे, उस पीड़ा का ही समाधान खोजने के लिए X4 के पास जाना चाहते हो। तुम्हें यदि अपने से हमदर्दी होती तो तुम कहते, “ये और पीड़ा क्यों जुगाड़ रहा हूँ?”

X4 तक जाना क्यों चाहते हो, X1, 2, और 3 की वजह से ही जाना चाहते हो। 1 ने घाव दिए, 2 ने दिए, 3 ने दिए, अब उनका इलाज खोज रहे हो 4 में। और ये समझ लो कि 1, 2, और 3, 4 से अलग नहीं थे, 4 भी वही देगा जो पहले 3 ने दिए।

श्रोता: तो यही मेरा सवाल है कि अगर एक्स फोर जब तक नहीं मिलेगा तब तक रहेगा शायद प्रॉमिस (वादा) है..।

आचार्य जी: मिल चुका है, मिल चुका है। 1, 2 और 3 वही थे जो 4 है, उसका रूप अलग है बस। उसका रूप अलग है बस, और कुछ नहीं है।

तुम देखो ना, कुछ भी पाने की पूरी आकांक्षा, प्रेरणा, प्रक्रिया सब एक ही तो होती है। एक के साथ भी अगर गुज़रे हो, एक अनुभव से भी अगर हो आए हो, तो सारे अनुभवों का सार तुम्हें दिख जाना चाहिए, इसी को बोध कहते हैं, यही इंटेलिजेंस (बुद्धिमत्ता) है, कि मुझे बार-बार करने की ज़रूरत नहीं पड़ी, एक बार करके ही समझ गया कि माजरा क्या है, पूरा मामला खुल गया एक बार में ही।

और जो एक बार में न समझ पाए, उनके लिए बार-बार।

श्रोता: फिर तो वो समझेगा ही नहीं।

आचार्य जी: फिर, हो सकता है दस बार, पंद्रह बार, क्या पता। कई ऐसे होते हैं, छह बार फेल (अनुत्तीर्ण) हो गए सातवीं में। अभी एक सज्जन आए थे, बोले, “नौ साल में बी. टेक. किया।“

एक भी अनुभव जिससे तुम गुज़र चुके हो वो तुम्हारे बाकी अनुभवों से अलग नहीं है। रूप, आकार, परिस्थिति, नाम भर का भेद है,वरना जो भी कुछ घट रहा है वो सब बासी है, उसमे कुछ नया नहीं है। तुम्हारी आज की इच्छा और वासना, तुम्हारी कल की इच्छा और वासना से भिन्न है क्या? उसका विषय थोड़ा बदल गया है, परिस्थितियाँ बदल गई हैं, ऊपर-ऊपर से रंग-रोगन बदला है, भीतर से तो सब वही है।

गज्जू पहलवान से तुम पहले दिन पिटे, तब वो सिर्फ लंगोट डालके घूम रहा था। दूसरे दिन पिटे जब वो कुर्ता-पाजामा डालके घूम रहा था। तीसरे दिन पिटे जब उसने सूट पहन रखा था। चौथे दिन पिटे जब उसने निक्कर पहन रखी थी। तुम पिटने वाले भी वही हो और गज्जू पहलवान भी वही है, और तुम सवाल ये पूछने आए हो कि ये बताइए ये जो पाँचवाँ आदमी पीटने आएगा इससे कैसे बचें? “चार लोग हमें पीट गए, अब पाँचवें से जब तक मार ना खालें तब तक पता कैसे चले कि वो दोस्त है कि दुश्मन है, पीटने आया है कि गले मिलने आया है।“

अरे वही है, वो तीन बार भेष बदल के तुम्हें पीट चुका है, अब चौथी बार निक्कर डालके, कच्छा डालके पीटने आया है, भागो। वही है, कोई और नहीं है, तुम भी वही हो। न वो बदला है न तुम बदले हो, रूप बदला है बस।

एक श्रोता: ये बात पकड़ में आने के लिए ना, पिटने से प्रॉब्लम (समस्या) होनी चाहिए।

आचार्य जी: हाँ।

श्रोता: पिटने में, के आदी हो जाते हैं, मैं अपना बात कर रहा हूँ। और फिर हम कहानियाँ सुनाते हैं, “मुझे गज्जू पहलवान ने मारा।“

आचार्य जी: नहीं, गज्जू ने पहली बार मारा था।

(सभी श्रोता हँसते हुए)

आचार्य जी: दूसरी बार मिस्टर (श्रीमान) गजराज थे, वो सूट वाले। फिर अंगोछा डालके आया था तो गुजिया था।

ये भी अगर हम बोल पाएँ ना, कि चार बार एक ही आदमी से पिटे हैं तो भी थोड़ी शरम आए। हमें तो भ्रम ये रहता है ना, कि अलग बार अलग-अलग स्थितियों में हमारी हार हुई, अलग बार अलग-अलग तरीके से धोखा खाया। पहली बार लीला से ब्रेकअप (संबंध-विच्छेद) हुआ, दूसरी बार टीना से हुआ, फिर मीना से हुआ, फिर झीना से हुआ, तो चार बार अलग-अलग ब्रेकअप हुए हैं।

जब चार बार चार अलग-अलग ब्रेकअप हुए होते हैं तो उम्मीद बची रह जाती है कि, “अब हसीना मिली है। न ये टीना है, न मीना है, न झीना है, ये हसीना है, तो अब इस बार ब्रेकअप नहीं होगा।“ तुम्हें समझ में नहीं आता वो सब एक हैं। वो सब एक हैं, उनके नाम, रूप, रंग, आकार बस यही अलग हैं।

पहली बार ही जब कटे, 'मन' कटे, तो समझ जाना चाहिए कि मामला क्या है।

एक श्रोता: इसको ऐसे भी देख सकते हैं कि वो सब एक हैं, मैं वही हूँ, तो जब तक मैं वही रहूँगा तब तक हालात भी वही रहेंगे।

आचार्य जी: ठीक है। ये एक ही बात है, एक ही बात है।

पर एक बात बताओ, तुम अगर वही हो जिसे कल समझ में नहीं आई थी ये बात, तो आज कैसे समझ में आ गई? और अगर तुम्हारी बात सही है कि तुम वही हो, तो समझ में आ नहीं सकती, और अगर तुम्हारी बात गलत है कि तुम वो नहीं हो सिर्फ तब समझ में आ सकती है। हालाँकि ये कहने में कोई हर्ज़ा नहीं है, पर सतर्क रहना।

एक श्रोता: तो बात फिर वही आ जाती है कि हम खुद ही बेहोश हैं। तो जो बेहोश है..।

आचार्य जी: तुम्हारी हालत ऐसी है कि तुम गए हो लल्लन हलवाई के यहाँ। अब तुमने उससे ली रसमलाई, और रसमलाई में आ रही थी बदबू। तुमने पकड़ लिया, किस्मत अच्छी तुम्हारी।

तुमने अब कहा, “लल्लन, ये गंधाता क्यों है?”

लल्लन ने भी वैसे ही मुस्कुराके बोला, “काहेकि बबुआ, दूध सड़ा हुआ है।“

तुमने कहा, “ये देखो, हम होशियार हैं और लल्लन हितैषी।“ तो तुमने रसमलाई फेंक दी, तुमने कहा, “लाओ गुलाब जामुन लाओ।“

नहीं समझ में आई बात?

श्रोता: दोनों एक ही दूध से बने हैं।

आचार्य जी: आई बात?

जो टीना थी वही मीना है, मूल में दोनों एक हैं, बस मूल छुपा हुआ है। जो दिखता है वो अलग-अलग सा है, तो धोखा खा जाते हो। मिठाई में दूध कहीं नज़र आता है? लीना और टीना में भी वैसे ही दूध तुम्हें नज़र नहीं आ रहा। देखो, कि फटा हुआ है, बीमार होगे और कुछ नहीं होगा।

तुम्हारी समस्या ये है कि तुम ये समझ भी जाते हो, तुम कोने खड़े भी हो जाते हो। तभी तुम देखते हो कि पूरी एक भीड़ आई और वो छेना, और बर्फी, और गुलाबजामुन, और कौन सी मिठाईयाँ होती हैं दूध की?

एक श्रोता: पेड़ा।

आचार्य जी: जितनी होती हैं, पेड़ा, जो भी होती हैं, सब खा खा, पैक करा करा ले गए। तुम कहते हो, “मैं ही अभागा हूँ।“

ओशो वो कहानी सुनाते हैं ना, कि जुबैदा मर रही है, मुल्ला नसीरुद्दीन की बारहवीं बीवी है, और वो मर रही है। और वो मुल्ला से कह रही है, “देखो मुल्ला, मुझे पता है कि तुम्हारा मन जो है, रेशमा पे फिसला हुआ है, और मैं मरूँगी तुम उसे घर ले आओगे। तो मैं तुमसे ऐसा कोई वादा नहीं चाहती कि उससे तुम अगला निकाह ना करो, तेरहवाँ उसी से होगा तुम्हारा। बस ये वादा कर दो कि वो जो मेरी माँ के कंगन हैं, वहाँ मैंने छुपा के अलमारी में रखे हुए हैं, वो तुम उसे नहीं दोगे। हमारे खानदानी कंगन हैं, माँ की शादी में माँ ने पहने थे, मेरी शादी में मैंने पहने, अब वो तुम रेशमा को देखो मत दे देना, ये वादा करो।“

मुल्ला उसको बोलता है, “अरे तू चैन से मर, तू बिल्कुल परवाह मत कर। तेरे ये कंगन उसे वैसे भी फिट (उपयुक्त) आए नहीं।“

(सभी हँसते हुए)

“नाप ही अलग है, कैसे दूँगा?“

क्या पता? जुबैदा से नहीं मिला जो, क्या पता रेशमा से मिल जाए।

जो बी. ए. से नहीं मिला, क्या पता एम. ए. से मिले। जो एम. ए. से नहीं मिला, क्या पता एम. फिल. से मिले, क्या पता पीएच. डी. से, क्या पता डी. लिट. से।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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