Adi Shankaracharya

सांसारिक काम करते हुए अध्यात्म के साथ कैसे रहें?
सांसारिक काम करते हुए अध्यात्म के साथ कैसे रहें?
14 min
सांसारिक कर्म आप कर ही नहीं रहे हैं। सांसारिक कर्म हो रहे हैं अपनेआप। मूल भ्रम यही है कि सांसारिक कर्म करने वाले आप हैं। इन्द्रियाँ हैं, मस्तिष्क है, बुद्धि है, अंतःकरण है, स्मृति है, ये सब अपना काम करना बख़ूबी जानते हैं। आप न जाने किस दंभ में हैं कि ये सब काम दुनिया के आप कर रहे हैं!
Advait or Dvait?
Advait or Dvait?
4 min

Questioner: Shankaracharya proclaimed the Advait (non-dualism) philosophy and Madhavacharya proclaimed Dvait (dualism) philosophy. We cannot say who is correct and who is incorrect. That was their truth. These two are extremely opposite. Which is the exact Truth?

Acharya Prashant: One may put it in words of his personal choice. And

Shiva's Caste
Shiva's Caste
15 min

Questioner: Acharya Ji, Juliana Hathovic has been listening to you for quite some years now and she has been very regular with what happens in the socio-spiritual domain in India.

She went through the recent statements by the Vice-chancellor of JNU on Shiva's caste. She just sent me a query

How to Be True to Oneself? Are Memory and Intelligence Related?
How to Be True to Oneself? Are Memory and Intelligence Related?
9 min
Intelligence isn’t the same as knowledge. Knowledge relies on history, memory, and experience, while intelligence allows one to relate to others in the present moment. Knowledge helps with comprehension, but true understanding comes from intelligence, which goes beyond knowledge. Even without knowing the language, intelligence can still enable a deep connection. If knowledge is there—wonderful! Even without knowledge, intelligence isn’t limited or lame. It can still operate effectively, allowing one to relate and understand fully.
क्या मैं धर्म अनुसार आचरण कर रहा हूँ?
क्या मैं धर्म अनुसार आचरण कर रहा हूँ?
15 min

प्रश्नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी। मेरा नाम गवाक्ष जोशी है। मैं आइआइटी कानपुर में पीएचडी का छात्र हूँ। और विद्युत अभियान्त्रिकी विभाग से। मेरा प्रश्न धर्म को लेकर है। मैं हितोपदेश मित्रलाभ पढ़ रहा था! तो एक श्लोक आया था मेरे सामने, जिसका अर्थ ये था — भोजन, निद्रा, भय और

देश दुर्दशा में है - भारत में रहूँ, या छोड़ दूँ?
देश दुर्दशा में है - भारत में रहूँ, या छोड़ दूँ?
25 min

प्रश्नकर्ताः धन्यवाद, सभा में उपस्थित सभी लोगों का अभिनन्दन! मैं डा. कुमार मनोज, मैं आधुनिक चिकित्सा में यूरोप से प्रशिक्षित एक चिकित्सक हूँ। और फिलहाल मैं दिल्ली के एक शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय में मनोरोग विभाग में कार्यरत हूँ। मैं जब भारत वापस आया तो मैं अपने भारतीय समाज की सेवा

The two levels of falseness || On Vivekachudamani (2018)
The two levels of falseness || On Vivekachudamani (2018)
25 min

Questioner: The entire universe, the gross and subtle objects, people, gods and goddesses, feelings, thoughts, they are all nothing but mind stuff. As I live in this world, being an entity, I am unable to see this world as non-existent; I still see differences. I am unable to wake up.

The love for the Truth and the love for the world || On Vivekachudamani (2018)
The love for the Truth and the love for the world || On Vivekachudamani (2018)
8 min

अतीताननुसन्धानं भविष्यदविचारणम् । अउदासीन्यमपि प्राप्तं जीवन्मुक्तस्य लक्षणम् ॥

atītānanusandhānaṃ bhaviṣyadavicāraṇam audāsīnyamapi prāptaṃ jīvanmuktasya lakṣaṇam

Not dwelling in the past, taking no thought for future, and looking with indifference upon the present, are characteristics of the liberated-in-life.

~ Verse 432

✥ ✥ ✥

Questioner (Q): My mind wanders into the past

Gita: Beware false interpretations || Acharya Prashant, with NIT-Calicut (2022)
Gita: Beware false interpretations || Acharya Prashant, with NIT-Calicut (2022)
6 min

Questioner (Q): Good afternoon, Sir. I have a doubt. In the market, there are a number of Bhagavad Gitas available. Somebody told me that there are eighty varieties of the Gita. Even though the slokas are the same, from what I have seen, the explanation was not making sense. In

The master and the shadow || On Vivekachudamani (2018)
The master and the shadow || On Vivekachudamani (2018)
13 min

छायया स्पृष्टमुष्णं वा शीतं वा सुष्ठु दुःष्ठु वा । न स्पृशत्येव यत्किंचित्पुरुषं तद्विलक्षणम् ॥

chāyayā spṛṣṭamuṣṇaṃ vā śītaṃ vā suṣṭhu duḥṣṭhu vā na spṛśatyeva yatkiṃcitpuruṣaṃ tadvilakṣaṇam

If the shadow of a man is touched by heat or cold, good or evil, it does not in the least affect the man,

To get rid of suffering, pass through a higher suffering || On Vivekachudamani (2018)
To get rid of suffering, pass through a higher suffering || On Vivekachudamani (2018)
23 min

यावद्वा यत्किंचिद्विषदोषस्फूर्तिरस्ति चेद्देहे । कथमारोग्याय भवेत्तद्वदहन्तापि योगिनो मुक्त्यै ॥

yāvadvā yatkiṃcidviṣadoṣasphūrtirasti ceddehe kathamārogyāya bhavettadvadahantāpi yogino muktyai

As long as there is even a trace of poison left in the body, how can one hope for complete recovery? Even so, the yogi cannot attain liberation as long as a trace of

The call beyond the personal universe || On Vivekachudamani (2018)
The call beyond the personal universe || On Vivekachudamani (2018)
16 min

अत्यन्तवैराग्यवतः समाधिः समाहितस्यैव दृढप्रबोधः । प्रबुद्धतत्त्वस्य हि बन्धमुक्तिः मुक्तात्मनो नित्यसुखानुभूतिः ॥

atyantavairāgyavataḥ samādhiḥ samāhitasyaiva dṛḍhaprabodhaḥ prabuddhatattvasya hi bandhamuktiḥ muktātmano nityasukhānubhūtiḥ

For the extremely dispassionate man alone there is samādhi, and the man of samādhi alone gets steady realization, the man who has realized the Truth is alone free from bondage,

सच के सामने झुको, सच होने का दावा मत करो || आचार्य प्रशांत, निर्वाण षटकम् पर (2020)
सच के सामने झुको, सच होने का दावा मत करो || आचार्य प्रशांत, निर्वाण षटकम् पर (2020)
4 min

प्रश्नकर्ता: प्रणाम, आचार्य जी। 'निर्वाण षटकम्' की एक पंक्ति है —

'न धर्मो न चार्थो न कामो ना मोक्ष: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम्।'

तो इसमें जो मोक्ष के विषय में कहा गया है कि मैं मोक्ष भी नहीं हूँ, तो क्या शिव को मोक्ष भी नहीं चाहिए?

आचार्य प्रशांत: हाँ,

आप ही भगवान हैं? || आचार्य प्रशांत, स्वामी विवेकानन्द पर (2022)
आप ही भगवान हैं? || आचार्य प्रशांत, स्वामी विवेकानन्द पर (2022)
26 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, आपको सादर प्रणाम। मैंने एक लेख पढ़ा था स्वामी विवेकानन्द जी के ऊपर जिसमें उनका एक वक्तव्य था कि यू आर नीयरली गॉड इफ यू नो योर सेल्फ़ देट यू आर अ सोल (तुम अपनेआप को यदि आत्मा जानते हो, तो तुम ब्रह्म ही हो)। तो मुझे

शिव कौन हैं
शिव कौन हैं
69 min

आचार्य प्रशांत: महाशिवरात्रि का समय है और आपकी बहुत-सी जिज्ञासाएँ आयी हैं। आपने कहा कि जैसे अभी पूरी बात समझायी आपने कि ईश्वर माने क्या, आत्मा माने क्या, माया माने क्या, चार राम कौन से होते हैं — और श्री कृष्ण की गीता पर तो लंबे और पूरे व्याख्यान होते

सेक्स से इतना घबराता क्यों है धर्म? || आचार्य प्रशांत कार्यशाला (2023)
सेक्स से इतना घबराता क्यों है धर्म? || आचार्य प्रशांत कार्यशाला (2023)
18 min

प्रश्नकर्ता: नमस्कार आचार्य जी! आदि शंकराचार्य के विषय में ये कथानक है कि जब काशी में मंडन मिश्र के साथ उनका एक शास्त्रार्थ होता है, तो उनकी पत्नी काम (सम्भोग) से सम्बन्धित एक प्रश्न पूछतीं हैं। तो जैसा मुझे पता है कि वो अपने स्थूल शरीर को त्यागकर किसी सम्राट

लड़कियों से बात करने में झिझक || आचार्य प्रशांत (2018)
लड़कियों से बात करने में झिझक || आचार्य प्रशांत (2018)
6 min

प्रश्नकर्ता: लड़कियों से बात करने में झिझक क्यों होती है?

आचार्य प्रशांत: तुम हर समय लड़के बनकर क्यों घूमते हो? तुम जितना ज़्यादा देहभाव में जियोगे, उतना अपने लिए परेशानियाँ खड़ी करोगे। लड़कों के सामने कौन शर्माती है? लड़की। लड़की माने क्या? लड़की का हाथ, लड़की का जिस्म, लड़की के

स्त्री नर्क का द्वार है? आचार्य प्रशांत, वेदांत पर (2022)
स्त्री नर्क का द्वार है? आचार्य प्रशांत, वेदांत पर (2022)
16 min

प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी, मेरा प्रश्न है कि ‘प्रश्नोत्तरी श्री आदि शंकराचार्य रचित’ में बताया गया है कि स्त्री नरक का प्रधान द्वार है। नारी-रूपी पिशाचिनी से बचकर जो रह गया वह समझदार है। प्राणियों के लिए साँकल नारी ही है। तो मेरा प्रश्न ये है कि ये कितना सच

श्रवण, मनन, निदिध्यासन और समाधि || आचार्य प्रशांत, रमण महर्षि पर (2013)
श्रवण, मनन, निदिध्यासन और समाधि || आचार्य प्रशांत, रमण महर्षि पर (2013)
14 min

श्रवणादिभिरुद्दीप्तज्ञानाग्निपरितापितः । जीवः सर्वमलान्मुक्तः स्वर्णवद्द्योतते स्वयम् ॥

हृदाकाशोदितो ह्यात्मा बोधभानुस्तमोऽपहृत् । सर्वव्यापी सर्वधारी भाति भासयतेऽखिलम् ॥

दिग्देशकालाद्यनपेक्ष्य सर्वगं शीतादिहृन्नित्यसुखं निरंजनम् । यः स्वात्मतीर्थं भजते विनिष्क्रियः स सर्ववित्सर्वगतोऽमृतो भवेत् ॥

जब जीव श्रवण आदि द्वारा प्रज्वलित ज्ञानाग्नि में भलीभाँति तप्त होता है, तो वह साड़ी मलिनताओं से मुक्त होकर स्वर्ण की

आत्मा को जानना है? || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव ऋषिकेश में (2022)
आत्मा को जानना है? || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव ऋषिकेश में (2022)
7 min

आत्मा को आत्मा के द्वारा ही जाना जा सकता है।

~ विवेक चूड़ामणि, आदि शंकराचार्य

प्रश्नकर्ता: मेरा प्रश्न तो कम है, मेरी जिज्ञासा है। अभी सुबह जब मैं गया था तपोवन घाट पर, तो विवेक चूड़ामणि पढ़ रहा था उस समय। उसमे ये दिया हुआ है स्पष्ट तरीक़े से कि

जम के दूत, बड़े मज़बूत || आचार्य प्रशांत, भज गोविन्दम पर (2017)
जम के दूत, बड़े मज़बूत || आचार्य प्रशांत, भज गोविन्दम पर (2017)
1 min
हर परिस्थिति में सम कैसे रहें? || (2018)
हर परिस्थिति में सम कैसे रहें? || (2018)
26 min

एवं देहद्वयादन्य आत्मा पुरुष ईश्वरः। सर्वात्मा सर्वरूपश्चसर्वातीतोऽहमव्ययः।।

इस प्रकार आत्मा पुरुष या ईश्वर स्थूल एवं सूक्ष्म दोनों प्रकार के शरीरों से भिन्न है। अतः मैं सर्वात्मा, सर्वरूप, अविनाशी और सबसे परे हूँ।

~ अपरोक्षानुभूति (श्लोक ४०)

आचार्य प्रशांत: (प्रश्न पढ़ते हुए) शंकराचार्य के श्लोक को उद्धृत किया है, “आत्मा स्थूल

श्रध्दा है समाधान || (2018)
श्रध्दा है समाधान || (2018)
12 min

यत्राज्ञानाद्भवेद्दवैतमितरस्तत्र पश्यति। आत्मत्वेन यदा सर्वं नेतरस्तत्र चाण्वपि।।

“जहाँ अज्ञान से द्वैत-भाव होता है, वहीं कोई और दिखलाई देता है। जब सब आत्मरूप ही दिखाई देता है, तब अन्य कुछ भी नहीं रहता।”

~अपरोक्षानुभूति (श्लोक ५३)

यस्मिन्सर्वाणि भूतानि ह्यात्मत्वेन विजानतः। न वै तस्य भवेन्मोहो न च शोकोऽद्वितीयतः।।

“उस अवस्था में सम्पूर्ण

अपरोक्षानुभूति से विपरीत जीवन || (2018)
अपरोक्षानुभूति से विपरीत जीवन || (2018)
47 min

प्रश्नकर्ता: अपरोक्षानुभूति में बताया गया है कि मैं सब गुणों, सब क्रियाओं के पार हूँ, मैं अमर और मुक्त हूँ। तो फिर जीवन में किए गए कार्यों के लिए मैं ज़िम्मेदार कैसे हुआ?

आचार्य प्रशांत: अपरोक्षानुभूति कह रही है कि “जीव अमर है और मुक्त है, जीव अकर्ता है, जीव

माया दो प्रकार की || (2018)
माया दो प्रकार की || (2018)
18 min

अहंशब्देन विख्यात एक एव स्थित: पर:। स्थूलस्त्वनेकतां प्राप्त: कथं स्याद्देहक: पुमान्।।

“ ‘अहं’ शब्द से प्रसिद्ध परमात्मा एकमात्र स्थित है, अर्थात् वह अनेक तत्वों का संघात नहीं है। फिर जो स्थूल है और अनेक भावों को प्राप्त हो रहा है, वह देह पुरुष कैसे हो सकता है?”

~अपरोक्षानुभूति (श्लोक ३१)

आत्मा का क्या रूप है? (2018)
आत्मा का क्या रूप है? (2018)
29 min

आचार्य प्रशांत: (प्रश्न पढ़ते हुए) मूलतः बात ये पूछी है कि “आत्मा को कहा तो निर्गुण जाता है, और निर्गुण का अर्थ हुआ कि कोई एट्रिब्यूट (गुण) नहीं, कोई उपमा-उपाधि नहीं। तो फिर आत्मा को निर्गुण के साथ ही निर्विकार, निर्मल, निराकार, अविनाशी, नित्य, शुद्ध, अजर-अमर इत्यादि क्यों कहा जाता

ब्रह्म – एक या अनेक? || (2018)
ब्रह्म – एक या अनेक? || (2018)
20 min

दोषोऽपि विहित: श्रुत्या मृत्योर्मृत्युं स गच्छति। इह पश्यति नानात्वं मायया वन्चितो नर:।।

“‘मृत्यु से मृत्यु को प्राप्त होता है’, ऐसा कह कर श्रुति ने दोष भी बतलाया है। मनुष्य माया से ठगा जा कर ही संसार में नानात्व देखता है।” ~अपरोक्षानुभूति (श्लोक ४८)

आचार्य प्रशांत: अड़तालीसवाँ श्लोक है अपरोक्षानुभूति का।

आदि शंकराचार्य ने कर्म और शरीर के इतने भेद क्यों बताए? || तत्वबोध पर (2019)
आदि शंकराचार्य ने कर्म और शरीर के इतने भेद क्यों बताए? || तत्वबोध पर (2019)
8 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, ग्रंथों को पढ़कर, तत्वबोध को पढ़कर काफ़ी विभाजनों के बारे में पता चला है, जैसे कि अलग-अलग तरह के कर्म, अलग-अलग तरह के शरीर इत्यादि। ये सब विभाजन क्यों हैं? यह सब बड़ा सैद्धांतिक-सा लगता है। इतना विभाजन है कि समझ नहीं आता, कैसे इन सबको समझा

आगामी कर्म, संचित कर्म और प्रारब्ध कर्म || तत्वबोध पर (2019)
आगामी कर्म, संचित कर्म और प्रारब्ध कर्म || तत्वबोध पर (2019)
4 min

कर्माणि कतिविधानी सन्तीति चेत् आगामीसंचितप्रारब्धभेदेन त्रिविधानी सन्ति। ज्ञानोत्पत्तनन्तरं ज्ञानिदेहकृतं पुण्यपापरूपं कर्म यदस्ति तदागामीत्यभिधीयते। संचित कर्म किम्? अनंतकोटिजन्मनां बीजभूतं सत् यत्कर्मजातं पूर्वार्जितं तिष्ठति तत्संचितं ज्ञेयं। प्रारब्ध कर्म किमिति चेत्। इदं शरीरमुत्पाद्य इह लोके एवं सुखदुःखादिप्रदं यत्कर्म तत्प्रारब्धं भोगेन नष्टं भवति प्रारब्धकर्मणां भोगादेव क्षयं इति। संचितं कर्म ब्रहैवाहमिति निश्चयात्मकज्ञानेन नश्यति। आगामि कर्म

ब्रह्म सत्य है, ईश्वर भ्रम मात्र || आचार्य प्रशांत (2019)
ब्रह्म सत्य है, ईश्वर भ्रम मात्र || आचार्य प्रशांत (2019)
6 min

अविद्योपाधि: सन् आत्मा जीव इत्युच्यते। मायोपाधि: सन् ईश्वर इत्युच्यते।

अविद्या उपाधि से युक्त आत्मा को जीव कहते हैं। माया उपाधि से युक्त आत्मा को ईश्वर कहते हैं।

—तत्वबोध, श्लोक २८-२९

तस्मातकारणात् न जीवेश्वरयोर्भेद बुद्धि स्वीकार्या।

इसलिए जीव-ईश्वर में भेद बुद्धि को स्वीकार नहीं करना चाहिए।

—तत्वबोध, श्लोक ३१

प्रश्नकर्ता: आचार्य

जो अनुभव में आए सो झूठ || तत्वबोध पर (2019)
जो अनुभव में आए सो झूठ || तत्वबोध पर (2019)
11 min

स्थूलशरीराभिमानि जीवनामकं ब्रह्मप्रतिबिम्बं भवति। स एव जीव: प्रकुत्या स्वस्मात् ईश्वर भिन्नत्वेन जानाति।।

स्थूलशरीर अभिमानी जीव नामक ब्रह्म का प्रतिबिंब होता है। वह ही जीव स्वभाव से ही ईश्वर को अपने से भिन्न जानता है।

—तत्वबोध, श्लोक २७

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, नमन। मैं स्वयं विभिन्न प्रकार से स्वभाव में स्थित रहने

अपरोक्ष ज्ञान - जीवनमुक्ति का आधार || तत्वबोध पर (2019)
अपरोक्ष ज्ञान - जीवनमुक्ति का आधार || तत्वबोध पर (2019)
10 min

यथा देहोऽहं पुरुषोऽहं ब्राह्मणोऽहं शूद्रोऽहमस्मीति दृढनिश्चयस्तथा नाहं ब्राह्मण: न शूद्र: न पुरुष:। किन्तु असंगः सच्चिदानन्दस्वरूप प्रकाशरूपः सर्वान्तर्यामी चिदाकाशरूपोऽस्मीति दृढनिश्चयरूपः अपरोक्षज्ञानवान् जीवन्मुक्तः॥

जिस तरह हम देह हैं, हम पुरुष हैं, हम ब्राह्मण हैं, हम शूद्र हैं, इस प्रकार का दृढ़ निश्चय होता है, वैसा ही दृढ़ निश्चय हम ब्राह्मण नहीं हैं,

अनुभव के पार निकल जाना || तत्वबोध पर (2019)
अनुभव के पार निकल जाना || तत्वबोध पर (2019)
7 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, शिव और शंकर दोनों एक हैं, या अलग-अलग हैं?

आचार्य प्रशांत: जब उनको मूर्त कर दें तो कह दीजिए शंकर, जब अमूर्त हों तो कह दीजिए शिव। जब असीम हैं तो शिव हैं, जब साकार कर दिया, ससीम कर दिया तो कह दीजिए शंकर। कुछ भी जो

गुरुकृपा क्या होती है? || तत्वबोध पर (2019)
गुरुकृपा क्या होती है? || तत्वबोध पर (2019)
9 min

ध्यानमूलं गुरुर्मूर्ति, पूजामूलं गुरुर्पदम्। मन्त्रमूलं गुरुर्वाक्यं, मोक्षमूलं गुरूर्कृपा॥

ध्यान का मूल, गुरु की मूर्ति है। पूजा का मूल, गुरु के चरण कमल हैं। मंत्र का मूल, गुरु के शब्द हैं। मोक्ष का मूल, गुरु की कृपा है।

—(गुरुगीता, श्लोक ७६)

प्रश्नकर्ता: गुरुकृपा क्या होती है?

आचार्य प्रशांत: अगर तुम सच-सच

ऊँचा उठने के लिए विनम्रता भी चाहिए और श्रद्धा भी || तत्वबोध पर (2019)
ऊँचा उठने के लिए विनम्रता भी चाहिए और श्रद्धा भी || तत्वबोध पर (2019)
4 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, प्रणाम। मेरे जीवन में समझदारी कभी रही ही नहीं, सारा जीवन ही बेवकूफियों में चला गया, सब बेहोशी में बीता। कृपया मार्ग सुझाएँ।

आचार्य प्रशांत: बस मार्ग यही है – जैसे हैं इस प्रश्न को लिखते वक़्त, वैसे ही रहिए। विनम्रता तो इतनी बड़ी बात है कि

जीवन एक व्यायामशाला है || तत्वबोध पर (2019)
जीवन एक व्यायामशाला है || तत्वबोध पर (2019)
7 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, प्रणाम। जैसे पहले दुनियादारी बोझ लगती थी, अब सत्य को जानना, अध्यात्म में उतरना भी एक दायित्व लगता है, वासना ही लगती है। हर वक़्त बोझिल रहता हूँ, सहज नहीं हूँ; चाहता हूँ कि सत्य अभी मिल जाए। कृपया मदद करें।

आचार्य प्रशांत: दो बातें हैं, विचार

सार्थकता मत ढूँढों, पहले अंधी दौड़ से थमो || तत्वबोध पर (2019)
सार्थकता मत ढूँढों, पहले अंधी दौड़ से थमो || तत्वबोध पर (2019)
6 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, पूरी दुनिया में सब भाग रहे हैं, पर आपने तो अपने करिअर का चुनाव कर लिया और रुक गए। हम कैसे समझें कि हमें कहाँ रुकना है?

आचार्य प्रशांत: तो कुछ लोग भाग-भागकर करिअर बनाते हैं, मैं शायद रुक-रुककर बना रहा होऊँगा! इतना तो तुमने पक्का ही

तामसिक, राजसिक और सात्विक अहंकार || तत्वबोध पर (2019)
तामसिक, राजसिक और सात्विक अहंकार || तत्वबोध पर (2019)
8 min

प्रश्नकर्ता: क्या अहंकार भी सात्विक, राजसिक, तामसिक होता है? कृपया मार्गदर्शन करें।

आचार्य प्रशांत: होता है। अहम् के साथ भी तुम इन तीनों गुणों को जोड़कर देख सकते हो। प्रकृति के गुण हैं, अहम् पर ही लागू होते हैं।

तामसिक अहंकार क्या है?

जिसने धारणा बना ली है कि, "मैं

सुबुद्धि क्या? कुबुद्धि क्या? || तत्वबोध पर (2019)
सुबुद्धि क्या? कुबुद्धि क्या? || तत्वबोध पर (2019)
12 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, कृपया मन और बुद्धि के सम्बन्ध पर प्रकाश डालने की कृपा करें। क्या बुद्धि मन को सही विकल्प चुनने हेतु दी गई है?

आचार्य प्रशांत: मन है अहम् की गति। अहम् एक तड़प है, वो शांत नहीं बैठ सकती। उसे नाचना है, और उसका ये नृत्य कोई

इंद्रियों से संसार है, और संसार से इंद्रियाँ || तत्वबोध पर (2019)
इंद्रियों से संसार है, और संसार से इंद्रियाँ || तत्वबोध पर (2019)
3 min

प्रश्नकर्ता: तत्वबोध के अनुसार आकाश, जल, वायु और अग्नि आदि तत्वों से कान, नाक, जीभ, त्वचा और आँख आदि इंद्रियों की उत्पत्ति हुई, लेकिन पाँच तत्व तो अचेतन हैं, उनसे इंद्रियों की उत्पत्ति कैसे हो सकती है? कृपया समझाएँ।

आचार्य प्रशांत: यहाँ उत्पत्ति विषयों की और इंद्रियों की क्रमशः नहीं

आत्मा - निर्गुण होते हुए भी गुणवान || तत्वबोध पर (2019)
आत्मा - निर्गुण होते हुए भी गुणवान || तत्वबोध पर (2019)
9 min

प्रश्नकर्ता: प्रणाम, आचार्य जी। गुरु शंकराचार्य जी ने आत्मा को इस तरह परिभाषित किया है – "स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर से जो पृथक है, जो तीनों अवस्थाओं का साक्षी है तथा जो सच्चिदानंदस्वरूप है, वह आत्मा है”, और वहीं यह भी कहा है कि "स्थूल शरीर अभिमानी आत्मा को

आध्यात्मिक मनोरंजन के ख़तरे || तत्वबोध पर (2019)
आध्यात्मिक मनोरंजन के ख़तरे || तत्वबोध पर (2019)
2 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, जैसा आपने अपने सत्रों में आध्यात्मिक मनोरंजन का ज़िक्र किया है व निंदा की है, तो मैं जानना चाहती हूँ कि कथा और सत्संग इत्यादि में जो सामूहिक भजन-कीर्तन और नाम जपा जाता है, वह क्या माना जाएगा?

आचार्य प्रशांत: कुछ मानने की ज़रूरत नहीं है, जाँच

हम कैसे जानें 'ब्रह्म सत्य, जगत मिथ्या'? || तत्वबोध पर (2019)
हम कैसे जानें 'ब्रह्म सत्य, जगत मिथ्या'? || तत्वबोध पर (2019)
6 min

प्रश्नकर्ता: प्रणाम, आचार्य जी। तत्व विवेक की परिभाषा में कहा गया है कि, "आत्मा सत्य है, उससे भिन्न सब मिथ्या है, ऐसा दृढ़विश्वास ही तत्व विवेक है।"

मेरा सवाल यह है कि सिर्फ़ आत्मा को ही सत्य समझना क्या साधना की एक उच्च अवस्था पर पहुँचने के बाद ही हो

स्थूल शरीर क्या? सूक्ष्म शरीर क्या? कारण शरीर क्या? || तत्वबोध पर (2019)
स्थूल शरीर क्या? सूक्ष्म शरीर क्या? कारण शरीर क्या? || तत्वबोध पर (2019)
9 min

स्थूलशरीरं किम्? पंचीकृतपञ्चमहाभूतै: कृतं सत्कर्मजनयं सुखदुःखादिभोगायतरन शरीरं अस्ति जायते वर्धते विपरिणमते अपक्षीयते विनश्यतीति षड्विकारवदेतत्स्थूलशरीरं।

सूक्ष्मशरीरं किम्? अपंचीकृतपञ्चमहाभूतै: कृतं सत्कर्मजनयं सुखदुःखादिभोगसाधनं पञ्चज्ञानेन्द्रियाणि पञ्चकर्मेन्द्रियाणि पञ्चप्राणादयः मनश्वैचकं बुद्धिश्वैचकं एवं सप्तदशाकलाभिः सह यत्तिष्ठति तत्सूक्ष्मशरीरं।

स्थूल शरीर क्या है? जो पंचीकृत पाँच महाभूतों से बना हुआ, पुण्य कर्म से प्राप्त, सुख-दु:खादि भोगों को भोगने का

सत्-चित्-आनंद का क्या अर्थ है? || तत्वबोध पर (2019)
सत्-चित्-आनंद का क्या अर्थ है? || तत्वबोध पर (2019)
20 min

सत्किम्? कालत्रयेअपि तिष्ठतीतिसत्। चित्किम्? ज्ञानस्वरूपः। आनंद कः? सुखस्वरूपः।

सत् किसे कहते हैं? जो तीनों कालों में रहता है। चित् क्या है? जो ज्ञानस्वरूप है। आनंद क्या है? जो सुखस्वरूप है।

—तत्वबोध, श्लोक १६.२-१६.४

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, सत्, चित् और आनंद के बारे में आदि शंकराचार्य बता रहे हैं। कृपया इसे

स्वाद शब्दों में नहीं, संगति में है || तत्वबोध पर (2019)
स्वाद शब्दों में नहीं, संगति में है || तत्वबोध पर (2019)
3 min

प्रश्नकर्ता: अपने आध्यात्मिक जीवन में नित्यता कैसे लाएँ?

आचार्य प्रशांत: नित्यता तो कसौटी है। नित्यता कसौटी है जिस पर तुम अनित्य को वर्जित करते हो, अनित्य को गंभीरता से लेने से इन्कार करते हो। जब भी कुछ लगे कि मन पर हावी हो रहा है, तो कसौटी का प्रयोग करना

शमन क्या है? शमन दमन से महत्वपूर्ण कैसे? || तत्वबोध पर (2019)
शमन क्या है? शमन दमन से महत्वपूर्ण कैसे? || तत्वबोध पर (2019)
3 min

शमः कः? मनो निग्रहः।

शम क्या है? मन के ऊपर नियंत्रण प्राप्त करना ही शम है।

—तत्वबोध, श्लोक ५.३

आचार्य प्रशांत: दमन जो काम स्थूल रूप से करता है, शमन वही काम सूक्ष्म रूप से करता है। दमन का मतलब है यह हाथ लड्डू की ओर बढ़ना चाहता है, यह

अष्टावक्र और आदि शंकराचार्य के मुक्ति मार्ग में अंतर क्यों? || तत्वबोध पर (2019)
अष्टावक्र और आदि शंकराचार्य के मुक्ति मार्ग में अंतर क्यों? || तत्वबोध पर (2019)
4 min

प्रश्नकर्ता: तितिक्षा क्या है?

आचार्य प्रशांत: तितिक्षा है कि साधक इधर-उधर के संवेगों के प्रति उदासीन हो जाता है। उसको एक चीज़ चाहिए, बाकी सबके प्रति वह अनासक्त हो जाता है, अक्रिय हो जाता है, जैसे बहुत सारी चीज़ें उसके लिए अदृश्य हो गई हों। बहुत कुछ हो जो दिखाई

स्वधर्म और कर्तव्य || तत्वबोध पर (2019)
स्वधर्म और कर्तव्य || तत्वबोध पर (2019)
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उपरमः कः? स्वधर्मानुष्ठानमेव।

उपरम क्या है? स्वधर्म का अनुष्ठान ही उपरम है।

—तत्वबोध, श्लोक ५.५

आचार्य प्रशांत: स्वधर्म क्या है और स्वधर्म का जीव के पारिवारिक और सामाजिक कर्तव्यों से क्या लेना-देना है — इसको बहुत ध्यान से समझेंगे सभी, क्योंकि इस विषय पर भ्रम बहुत हैं और यहीं पर

सही राह कौन-सी? || तत्वबोध पर (2019)
सही राह कौन-सी? || तत्वबोध पर (2019)
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प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, प्रणाम। बोध का अर्थ शायद अनुभूतिपूर्ण अपरोक्ष ज्ञान है। जगद्गुरू आदिशंकराचार्य ने इसके लिए जो आवश्यक साधन-चतुष्टय बताए हैं, उनको उपलब्ध किए बिना इस ज्ञान का सिर्फ़ श्रवण या पठन क्या एक दुविधा अथवा एक प्रकार का मानसिक अनुकूलन नहीं पैदा करेगा? यह दुविधा या मानसिक अनुकूलन