Duty

90-Hour Weeks: Your Salary, My Control!
90-Hour Weeks: Your Salary, My Control!
37 min
The man who lives with his heart—there will be heart in his work as well. Heart will be visible in his every step. And the one who is doing something for money—he will say that he will marry where he’s getting more dowry. "I will take up a job where I get a high CTC. And I will give the contract to the one who’s paying more bribe." And this—who teaches this love? Learning this is wisdom. This is self-knowledge. This is self-observation.
हफ़्ते में 90 घंटे काम?
हफ़्ते में 90 घंटे काम?
38 min
जहां काम का मतलब सिर्फ़ पैसा और कामनाएँ पूरी करना है, वहाँ बिल्कुल ज़रूरी है कि काम के घंटे सीमित रखे जाएँ। अगर मामला loveless है, तो वर्क-लाइफ बैलेंस का कॉन्सेप्ट बिल्कुल एप्लीकेबल है, और दुनिया की ज़्यादातर आबादी अपने काम से नफरत करती है। सवाल यह है कि तुम्हारा काम एक दिली चीज़ क्यों नहीं हो सकता? काम आशिकी होती है। जो आदमी दिल से जिएगा, उसके काम में भी दिल होगा। उसके एक-एक कदम में दिल दिखाई देगा।
Why Do We Avoid Right Action?
Why Do We Avoid Right Action?
6 min
Right action brings us peace, relaxation, and reasonless contentment. But we avoid it because it’s incompatible with our entire life structure, built on a wrongly lived past and the great stakes raised in it. Now, even if we accidentally make the right decision, it causes a lot of suffering and shakes up our foundations, making us go back to our dated, pre-existing ways.
कैरियर का चुनाव कैसे करूँ?
कैरियर का चुनाव कैसे करूँ?
21 min
बहुत बदहाल और गई-गुज़री होती है वो ज़िंदगी जिसमें आप पैसा कमाने के लिए वो काम कर रहे होते हो जिसमें प्यार नहीं है। मैं बार-बार कहता हूँ — दो काम बिना प्यार के नहीं करने चाहिए; एक, किसी का साथ और दूसरा, नौकरी। और दुनिया के जितने लोग हैं न और खासकर भारत में, इन सबने पहली बात तो बिना प्यार के साथी चुना और दूसरे बिना बना प्यार की नौकरियाँ कर रहे हैं।
Why Do We All Act so Blindly?
Why Do We All Act so Blindly?
18 min

Questioner: * I am Darshan, and my question is very simple yet complicated. So why do we not work? So even after knowing that if we work, we will get something that we are looking for. So, to take an example, I had the opportunity to interact with a lot

अच्छी नौकरी क्यों नहीं मिलती?
अच्छी नौकरी क्यों नहीं मिलती?
10 min
आप कहते हो, ‘देखो, मुझे सही राह पर तो जाना है, लेकिन मेरी कुछ शर्तें हैं।’ सही चीज़ से बड़ी ये शर्तें कैसे हो गईं? असल में, आपने अपनी वर्तमान स्थिति के साथ मोह या स्वार्थ बैठा लिए होते हैं, जिन्हें आप बदलने देना नहीं चाहते। जैसे, खर्चे इतने हैं कि सही नौकरी तो चाहिए, लेकिन दो लाख रुपये महीना भी चाहिए। यही खर्चे आपको गुलाम बनाते हैं। वरना, सच तो सरल होता है, पर आपकी ये शर्तें ही आपको बाँधकर रखती हैं।
नौकरी करनी है?
नौकरी करनी है?
13 min
काम में आपको रोज़ाना आठ घंटे, दस घंटे बिताने हैं; वो काम अगर ऐसा नहीं है जो आपकी ज़िंदगी को सार्थकता की ओर ले जाता हो, जो आपके माध्यम से दुनिया में एक सही बदलाव लाता हो, तो वो काम आपको खा जाएगा। आप सोच रहे हो कि आप उस काम की रोटी खा रहे हो? नहीं, वो काम आपको रोटी नहीं दे रहा खाने के लिए, वो काम आपको ही धीरे-धीरे करके खा रहा है। बस वो आपको जिस तरीके से खा रहा है वो चीज़ आपको पता नहीं लगती, क्योंकि आपके शरीर पर असर नहीं दिखाई देता; वो आपके मन को खा रहा है, आपकी चेतना को।
Living a Life of Dignity
Living a Life of Dignity
3 min

Acharya Prashant: The Buddha used to quote three types of horses. Coming from his palatial background, it seems he was fond of horses. So, he would say that the worst type of horses are those that move only when spanked. That’s how our energy rises—it rises upon spanking. When there

आप दुनिया को बर्बाद होने से कैसे रोक सकते हैं
आप दुनिया को बर्बाद होने से कैसे रोक सकते हैं
16 min

प्रश्न: आचार्य जी, हम पूर्णता के भाव तक कैसे पहुँचे?

आचार्य प्रशांत: पूर्णता के भाव तक पहुँचे कैसे, शुरुआत यहाँ से करते हैं। पूर्णता कोई भाव है ही नहीं, तो उस तक पहुँचने का भी कोई प्रश्न नहीं है।

आप (प्रश्नकर्ता) कहते हैं कि आपने मेरा लिखा पढ़ा है, थोड़ा

Confront Yourself before you Confront Others || AP Neem Candies
Confront Yourself before you Confront Others || AP Neem Candies
1 min

Acharya Prashant: You must never be afraid of questioning others. More importantly, you must never be afraid of questioning yourself. The second part is tougher. It is easy to question others, relatively easy at least. Questioning oneself hurts the ego, but that’s what one must practice.

Question yourself: “What am

Afraid of Being Judged by Others?
Afraid of Being Judged by Others?
8 min
Put your heart fully into your work, and your mind will no longer be in the audience. When there is no heart in your work, then your mind wanders in the world. Love your work, and you will forget the world. Your problem is not that you are too concerned with people’s opinions. Your problem is that there is no heart in your work.
How to Remain Non-Violent?
How to Remain Non-Violent?
6 min
Spirituality is about belonging to existence. Not belonging to a narrow household, or caste or ideology. All these are boundaries. So, wherever there are boundaries, there is violence. Wherever there are boundaries, there is also the fear of being small, powerless, limited. The really non-violent one is at home, everywhere and in every situation. Non-violence is not about following duties. Non-violence is an action in clarity and love. That alone is non-violence.
If Everything is Temporary, Why Do Anything?
If Everything is Temporary, Why Do Anything?
6 min

Questioner: Good Evening Sir. My name is Tarun Singh from IIM Nagpur. Sir my question is this, actually we understand this thing that in life everything is temporary. Be it my existence on this earth, or any relationship, or my friendship, or any environment around me, everything is temporary. So,

Your Battle, Your Battlefield || AP Neem Candies
Your Battle, Your Battlefield || AP Neem Candies
3 min

Acharya Prashant: Arjuna's hell was in his day-to-day activities, your hell too lies in your day-to-day activities. Arjuna could sense the evil in what appeared normal to the others, you must also be able to sense that there is something extremely fishy in what appears normal to others.

Do not

क्या मैं धर्म अनुसार आचरण कर रहा हूँ?
क्या मैं धर्म अनुसार आचरण कर रहा हूँ?
15 min

प्रश्नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी। मेरा नाम गवाक्ष जोशी है। मैं आइआइटी कानपुर में पीएचडी का छात्र हूँ। और विद्युत अभियान्त्रिकी विभाग से। मेरा प्रश्न धर्म को लेकर है। मैं हितोपदेश मित्रलाभ पढ़ रहा था! तो एक श्लोक आया था मेरे सामने, जिसका अर्थ ये था — भोजन, निद्रा, भय और

संस्था में स्वंयसेवियों का जीवन कैसा है? || आचार्य प्रशांत, केदारनाथ यात्रा पर (2019)
संस्था में स्वंयसेवियों का जीवन कैसा है? || आचार्य प्रशांत, केदारनाथ यात्रा पर (2019)
14 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी प्रणाम। मैं आपके द्वारा लोगों को लाभ पाता देखता हूँ। इस शिविर में भी बहुत से लोग ऐसे हैं जो लाभान्वित हुए हैं, और अपनी कृतज्ञता भी व्यक्त करते हैं और साथ में संस्था के जो स्वयं सेवक हैं उनके कार्य को भी देखता हूँ, तो मेरा

Never forget who you are! || Acharya Prashant (2019)
Never forget who you are! || Acharya Prashant (2019)
5 min

Questioner 1 (Q1): Sir, in the process of spirituality we do have some responsibilities regarding our family in terms of financial and physical availability. So how do we tackle that?

Acharya Prashant (AP): Who are you?

Q2: Atṛpt chetanā 1.

AP: So what is your responsibility?

Q2: To get

बेटा, आगे क्या करना है? || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव ऋषिकेश में (2021)
बेटा, आगे क्या करना है? || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव ऋषिकेश में (2021)
18 min

प्रश्नकर्ता१: नमस्ते आचार्य जी, मैं आपको दस महीने से सुन रहा हूँ लगभग और मैं इक्कीस साल का हूँ। तो अभी फ़िलहाल दो महीने पहले मेरी जॉब (नौकरी) लगी है। तो प्रॉब्लम (समस्या) यह है कि मुझसे जब भी कोई पूछता है, तुझे आगे क्या करना है; घर से भी

रक्षाबंधन मनाने वाले सब लोगों के लिए (किसको रक्षा चाहिए आज?) || आचार्य प्रशांत (2021)
रक्षाबंधन मनाने वाले सब लोगों के लिए (किसको रक्षा चाहिए आज?) || आचार्य प्रशांत (2021)
10 min

प्रश्नकर्ता: सर, मैंने आपका संदेश पढ़ा कि रक्षाबंधन को नए और ऊँचे अर्थ दो। मैं अपने घर की एकमात्र कमाने वाली सदस्या हूँ। मेरे पिता और दोनों छोटे भाई हर तरह से मुझ पर निर्भर हैं। आज बहुत सी महिलाएँ ऐसी हैं, जिन्हें पुरुषों से किसी तरह की सुरक्षा की

जब पिता ही अधर्म करें || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव ऋषिकेश में (2022)
जब पिता ही अधर्म करें || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव ऋषिकेश में (2022)
17 min

प्रश्नकर्ता : सबसे पहले आपको और इस संस्था से जुड़े सभी वॉलन्टियर्स (स्वयंसेवकों) को कोटि-कोटि नमन, हम सभी के जीवन में एक अलग अलख जगाने के लिए। मैं पिछले दो वर्षों से आपको सुन रहा हूँ, जिसकी वजह से अन्दर से एक अलग आवाज़ आती है।

आचार्य जी, मेरा प्रश्न

सर, आपने मौत को करीब से देखा है कभी? || आचार्य प्रशांत, बातचीत (2021)
सर, आपने मौत को करीब से देखा है कभी? || आचार्य प्रशांत, बातचीत (2021)
18 min

प्रश्नकर्ता: वायरस की आपने बात कही तो ये ऑमिक्रॉन (कोरोना वायरस का एक वेरिएंट) और एक के बाद एक आते जा रहे हैं। मैं जानती हूँ आप बहुत बार इस पर भी बात कर चुके हैं, पर यह क्या एक ब्लैक होल है जो खुल चुका है और अब ऑमिक्रॉन

सुनने के बाद, अमल भी करना पड़ता है || आचार्य प्रशांत (2018)
सुनने के बाद, अमल भी करना पड़ता है || आचार्य प्रशांत (2018)
4 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी! जब डेढ़ साल पहले किताबें पढ़नी शुरू की थी तो पढ़ने में बहुत मज़ा आता था, लगता था रोज़ कुछ नया जानने को मिल रहा है। लेकिन अब न पढ़ने का मन करता है, न ही यूट्यूब पर सुनने का। मन को लगता है कि शब्द के

बड़ा मुश्किल है सच को जिताना || आचार्य प्रशांत, उत्तर गीता पर (2020)
बड़ा मुश्किल है सच को जिताना || आचार्य प्रशांत, उत्तर गीता पर (2020)
9 min

आचार्य प्रशांत: दानं व्रतं ब्रह्मचर्यं यथोक्तम ब्रह्मधारणम्। दमः प्रशान्तता चैव भूतानां चानुकम्पनम्॥॥

दान, व्रत, ब्रह्मचर्य, शास्त्रोक्त रीति से वेदाध्ययन, इन्द्रियग्रह, शान्ति, समस्त प्राणियों पर दया।

संयमश्चानृशंस्यं च परस्वादान्वर्जनम्। व्यलीकानामकरणं भूतानां मनसा भुवि॥॥

चित्त का संयम, कोमलता, दूसरों के धन लेने की इच्छा का त्याग, संसार के प्राणियों का मन से

न शरीर को मालिक बना लेना, न समाज को || आचार्य प्रशांत (2023)
न शरीर को मालिक बना लेना, न समाज को || आचार्य प्रशांत (2023)
22 min

प्रश्नकर्ता: अब मेरा रोज़ का देखना होता है कि मेरे पीछे कोई बल है, कोई फोर्स है जो मुझे संचालित करता है। जैसे मैं सुबह उठा और मैं ऑफ़िस की तरफ़ चल दिया। बैग लिया और चल दिया। तो एक डर है पीछे जो मुझे उधर जाने के लिए विवश

क्या मजबूरी है, क्यों इतने लाचार हो? || आचार्य प्रशांत (2021)
क्या मजबूरी है, क्यों इतने लाचार हो? || आचार्य प्रशांत (2021)
11 min

प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी, आपने अतीत से मुक्त होने की बात करी थी, जब मैं देखता हूँ तो लगता है कि अतीत कोई एंटिटी (इकाई) नहीं है – मतलब कि पूरा-का-पूरा ही मैं अतीत हूँ। जैसे जिद्दू कृष्णमूर्ति कहते हैं, यू आर द मेमोरी (आप आपकी याद्दाश्त हैं) समझ आती

एक अकेला आशिक़ - जो रातभर जूझता रहा || आचार्य प्रशांत (2023)
एक अकेला आशिक़ - जो रातभर जूझता रहा || आचार्य प्रशांत (2023)
10 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, चाँद या सूरज?

आचार्य: चाँद।

प्र: क्यों?

आचार्य: अकेले चमकता है न। अंधेरा होता है और उसके बीच में ये अपने अकेलेपन में भी मुस्कराता रहता है। जैसे चारों तरफ़ इसके अंधेरा हो और उस अंधेरे के बीच में यह बैठा है अपने दिल में सूरज को

सिर्फ़ उनके लिए जिन्हें अपने माँ-बाप पसंद नहीं || आचार्य प्रशांत (2021)
सिर्फ़ उनके लिए जिन्हें अपने माँ-बाप पसंद नहीं || आचार्य प्रशांत (2021)
26 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, एक बेटे या बेटी का माँ-बाप के प्रति क्या ऋण होता है? मेरे पिता भ्रष्ट व्यक्ति हैं, मुझे पसंद नहीं हैं। लेकिन बार-बार यह ऋण चुकाने वाली बात मन पर हावी हो जाती है। कुछ कहें!

आचार्य प्रशांत: संतान का और माँ-बाप का रिश्ता दो तलों पर

घर और कर्तव्यों का पालन करते हुए मुक्ति कैसे पाएँ? || आचार्य प्रशांत (2020)
घर और कर्तव्यों का पालन करते हुए मुक्ति कैसे पाएँ? || आचार्य प्रशांत (2020)
15 min

प्रश्नकर्ताः आचार्य जी, मेरा प्रश्न यह है कि ये हम चीज़ सब कुछ छोड़कर ही कर पाएँगे या फिर सब में रहते हुए भी कर सकते है? मतलब कि मैं घर-बार छोड़कर या फिर वैराग्य लेकर या सन्यास लेकर ही वो चीज़ कर पाऊँगा, या फिर मैं घर पर रहकर

कर्तव्य विनाश की ओर क्यों ले जाता है? || आचार्य प्रशांत, त्रिपुरा रहस्य पर (2018)
कर्तव्य विनाश की ओर क्यों ले जाता है? || आचार्य प्रशांत, त्रिपुरा रहस्य पर (2018)
1 min

एवं जना हितेच्छाभिः कर्तव्यविषमूर्च्छिताः। अहो विनाशं यान्त्युच्चैर्मोहेनान्धीकृताः खलु।।

~ त्रिपुरा रहस्य, अध्याय 2, श्लोक 50

प्रसंग:

कर्तव्य विनाश की ओर क्यों ले जाता है? कर्तव्य करके हम अपना अहीत क्यों कर लेते है? त्रिपुरा रहस्य में ऐसा क्यों बताया गया है? कर्तव्य माने क्या? हमें कर्तव्य क्यों बताया जाता है?

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हमने ज्ञान को बड़ी एक परालौकिक चीज़ बना दिया है की ज्ञान माने आसमानों पर क्या हो रहा है। वही ज्ञान है। कभी मैंने आपसे कहा कि उपनिषद् साफ-साफ बताते हैं। विद्या और अविद्या दोनों चाहिए। और आसमानों की बात तो बाद में हो जाएगी। उपनिषद् कहते हैं कि जो ज़मीन की बात नहीं समझता, वो अगर आसमानों की बात करे तो दो चांटा लगाओ उसको।
Why Do the Vedas Emphasize Rituals Over Philosophy?
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If only the Upanishads are given to you, you will be overawed. You'll almost be struck with an inferiority complex—"Oh my God, where did this come from?" And you will not be able to develop any direct relationship with the Upanishads. But when you look at the entire body of the Vedas, what you see is a very human thing. But you look at the honesty of the compiler—he didn't hide anything. He said, "This is the entire process, this is the entire body of knowledge, and we are presenting everything to you."
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ये सब जो काम होते है न बीमारों की सेवा कर देना, धर्म के नाम पर भंडारा लगा देना। क्या मतलब है इनका धर्म से? क्या मतलब है? तुम खुद उस व्यवस्था में भागीदार हो जो शोषणकारी है, दमनकारी है, जिसमें किसी को अमीर करने के लिए हज़ारों को गरीब रखना जरूरी है। वो गरीब खुद तुमने पैदा करे है। उसके बाद साल में एक-दो दिन तुम उनको खाना खिला के और कम्बल बांट के, अपने आप को धार्मिक घोषित कर रहे है और कह रहे हो मैं तो कमज़ोरों का मसीहा हूँ।
यूज़ मी (Use Me): मेरा पूरा इस्तेमाल कर लो
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27 min
और वो जो नियति है वो आपके चाहने से, कहने से बदलनी नहीं है। कौन जाने जितना भी है यूज़ मी। पूरा इस्तेमाल कर लो। मेरी परवाह नहीं करो। मेरा इस्तेमाल करो। पूरे तरीके से निचोड़ लो मुझको। और वही मैं चाह रहा हूं। इसमें कुछ ऐसा नहीं है कि मेरा शोषण हो जाएगा। मैं वही चाह रहा हूं। पूरे तरीके से एक-एक बूंद निचोड़ लो। शरीर जले तो बस शरीर जले। कुछ बचा नहीं। पहले ही सब निचुड़ गया था। यमाचार्य आके खड़े हुए। उन्हें कुछ मिला ही नहीं। खाली हाथ लौटना पड़ा। कहां गया इसका सारा माल? वो मैंने बांट दिया था। पहले ही बांट दिया था।
छोटे बच्चे की बलि: कितनी जानें लेगा अंधविश्वास?
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पता किसी को नहीं है, खर्च सबको करना है। ये सुपरस्टिशन है। बात सिर्फ़ भूत-प्रेत, डायन, चुड़ैल की नहीं है, दूल्हा-दुल्हन की भी है। या तो उनको ही बोल लो। पर जो कुछ भी तुम्हारी जिंदगी में चल रहा है और तुम्हें कुछ पता नहीं है कि मामला क्या है, वो सब अंधविश्वासी ही है, और बहुत दूर तक जाता है। सोचो सात साल का बच्चा रहा होगा और किसी अनपढ़ ने नहीं मारा, प्रिंसिपल (प्राचार्य) ने मारा है।
ऐसे नहीं प्रसन्न होंगी देवी
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18 min
दुर्गासप्तशती का केंद्रीय संदेश यही है — प्रकृति को भोगोगे, प्रकृति को कंज़म्पशन की चीज़ मानोगे तो देवी तुम्हारा वही हाल करेंगी जो चंड-मुंड, मधु-कैटभ और शुंभ-निशुंभ का किया था। महिषासुर कौन है? जो प्रकृति को कंज्यूम करने निकलता है। जो कहता है, मैं मौज करूँगा प्रकृति को भोगकर। वही महिषासुर है। देवी का त्योहार इसलिए थोड़े ही आता है कि हम खुद ही महिषासुर बन जाएँ। आपसे निवेदन करता हूँ आपकी मौज किसी की मौत न बने।
ऐसे देखो अपनी हस्ती का सच
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18 min
कह रहे हैं कि ये तुमने जो तमाम तरह की कहानियाँ गढ़ ली हैं, ये कहानियाँ तुम्हारे अंजन का ही विस्तार हैं, निरंजन की कोई कथा नहीं हो सकती। सारी समस्या तब होती है जब धर्म में कथाएँ घुस जाती हैं। जितनी तुमने किस्से बाज़ियाँ और कहानियाँ ये खड़ी की हैं, इन्होंने ही तुम्हारे धर्म को चौपट कर दिया है। श्रीराम को निरंजन ही रहने दो, श्रीकृष्ण को भी निरंजन ही रहने दो। जैसे ही तुमने गोपी संग गोविंद बना दिया, वैसे ही मामला अंजन का हो गया। गोविंद को गोविंद रहने दो, गोपियाँ मत लेकर के आओ।
भगवद गीता - कर्मयोग: अध्याय 3, श्लोक 9
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53 min

यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धन: | तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसङ्ग: समाचर ||3. 9||

अन्वय: यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र (यज्ञ के लिए किए कर्म के अलावा अन्य कर्म में) लोकोऽयं (लगा हुआ) कर्मबन्धनः (कर्मों के बन्धन में फँसता है) कौन्तेय (हे अर्जुन) मुक्तसङ्गः (आसक्ति छोड़कर) तत्-अर्थ (यज्ञ के लिए) कर्म (कर्म) समाचर (करो)

काव्यात्मक अर्थ: बाँधते

(Gita-8) The Self and the Joy of Immortality
(Gita-8) The Self and the Joy of Immortality
37 min
If all that the Ego wants is liberation from itself, which means coming to see its own non-existence, then the only way to see its non-existence is by paying attention to itself. The more the Ego pays attention to itself, it sees that it does not exist. The more the Ego remains attached to this and that, all the sensory inputs, the Ego feels that is real and this is real.
श्रीकृष्ण कब अवतरित होंगे?
श्रीकृष्ण कब अवतरित होंगे?
7 min
जब-जब तुम सच्चाई की ओर नहीं बढ़ते, तब-तब जीवन दुख, दरिद्रता, कष्ट, रोग और बेचैनियों से भर जाता है। अधर्म अपने चरम पर चढ़ जाता है, और विवश होकर तुम्हें आँखें खोलनी पड़ती हैं। तब मानना पड़ता है कि तुम्हारी राह ग़लत थी, और ग़लत राह को छोड़कर तुम्हें सत्य की ओर मुड़ना पड़ता है। अतः जब तुम अंधेरे को पीठ दिखाते हो, तो श्रीकृष्ण को अपने समक्ष पाते हो। यही श्रीकृष्ण का अवतरण है।
एंटी मैटर मिलने के बाद हमारी तलाश खत्म हो जाएगी?
एंटी मैटर मिलने के बाद हमारी तलाश खत्म हो जाएगी?
3 min
ये इलेक्ट्रॉन पोजिट्रॉन करके आपका दुख दूर होता हो तो कहिए मैं कुछ बोलूँ उसपे फिर। इन चीज़ों से बहुत अच्छा, आज मैंने ये सब कर दिया थोड़ा क़्वांटम थ्योरी वगैरह। इसलिए आप सक्रिय हो गए। मैं इन सबसे बहुत बचता हूँ जहाँ लगता भी है कि यहाँ पर विज्ञान का कोई उदाहरण एकदम समीचीन होगा तो भी उसको दबा देता हूँ थोड़ा। क्योंकि अहम को अपने अलावा किसी और तरफ देखने का बहाना चाहिए। मैं जैसे ही विज्ञान की बात करना शुरू करूँगा तो आप आत्म अवलोकन करने की जगह विज्ञान अवलोकन शुरू कर देंगे।
How Gita Transforms Your Mind?
How Gita Transforms Your Mind?
43 min
The entire Bhagavad Gita is devoted to Freedom from the conditioning of the body and the conditioning of the mind. Gita is about letting Arjuna know who he is. In a very liberal way, Shri Krishna says, "If you realize who you are, then you will know what to do. I do not need to instruct you. So Arjuna is not even being motivated, let alone being instructed. He's being illuminated." And that illumination enables him to do what he must.
भगवद गीता - कर्मयोग: अध्याय 3, श्लोक 8
भगवद गीता - कर्मयोग: अध्याय 3, श्लोक 8
52 min

श्लोक: नियतं कुरु कर्म, त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः। शरीरयात्रापि च ते न, प्रसिद्ध्येदकर्मणः॥3.8॥

काव्यात्मक अर्थ:

कर्म के परि त्याग से, श्रेष्ठ है नि यत कर्म । कर्मयात्रा पर चल पड़े, जि स क्षण लि या जीव जन्म॥

आचार्य जी: श्रीमद्भगवद्गीता गीता, तीसरा अध्याय कर्म का विषय है, पिछले सत्र में

उसे सौंप दो, उसे संभालने दो, तुम रास्ते से हटो
उसे सौंप दो, उसे संभालने दो, तुम रास्ते से हटो
47 min
यह आदमी जो अपने ऊपर हंसना शुरू करता है, यह अकर्ता हो जाता है। नॉन-डूअर हो जाता है। नॉन-डूअर का मतलब यह नहीं कि अब नॉन-डूइंग हो गई। डूइंग तो बहुत होगी! ज़बरदस्त होगी! घनघोर होगी! कल्याणप्रद होगी! ऑसपिसियस होगी! डूइंग होगी, डूअर नहीं होगा। पर कर्ता नहीं होगा। और जो यह कर्ता-हीन कर्म होता है, "द डीड विदाउट डूअर", इसके क्या कहने! यह फिर अवतारों की लीला समान हो जाता है। यह जीवन को खेल बना देता है। यह पृथ्वी पर स्वर्ग उतार देता है। यह बहुत पुराना जो कैदी है, उसे आकाश की आज़ादी दे देता है।
Is Sartre’s Existentialism Contradicting Gita?
Is Sartre’s Existentialism Contradicting Gita?
7 min
They don't contradict each other. Existentialists like Sartre argue that humans cannot suppress consciousness and are 'condemned to be free.' We are born without a predetermined purpose—existence precedes essence. You exist first and must then discover your essence. In the spirit of 'Neti Neti' (neither this nor that), no external force can define your essence; it is your freedom to consciously determine what life is for.
कुछ भी अपना है तुम्हारा?
कुछ भी अपना है तुम्हारा?
4 min
विधि तो एक ही है, जो भीतर बैठ कर के बोलता रहता है, मैं हूँ, मैं हूँ, उसके झूठ को बार बार रंगे हाथों पकडते रहो। इरादा नेक हो तो हर चीज़ विधि बन जाती है। घर पर जाएँगें अपने भाई बहनों को देखेंगे कहेंगे मैं कैसे कह दूँ मेरी शक्ल मेरी है, ये मेरा भाई है नालायक, इसकी शक्ल भी मेरे जैसी है। फिर दादा को देखेंगे कहेंगे कैसे कह दूँ कि मेरी जो चपटी नाक है, यह मेरी है, ये तो दादा की नाक है। तो जब मेरा सब कुछ किसी और का है तो मैं कहाँ हूँ या तो मैं कह दूँ, ‘मैं हूँ ही नहीं या मैं कह दूँ कि सब मैं ही मैं हूँ, मैं ही मैं हूँ, मैं ही मैं हूँ,’ जैसे मुनि अष्टावक्र कहते हैं न, या तो मैं कुछ नहीं हूँ या फिर मैं सब कुछ हूँ।
The Truth About Modern Spirituality. When Spirituality Becomes a Mask | Coldplay, Gita & the Real Wisdom
The Truth About Modern Spirituality. When Spirituality Becomes a Mask | Coldplay, Gita & the Real Wisdom
16 min
There's a small secret here. It's not that we do not understand that we are being fooled. We choose to be fooled. When that fellow comes to you and professes his or her love it's not that you do not know that it's not love. It's just that you find it to be a convenient, comfortable bargain. Like masks greeting each other. Truth should be the simplest, easiest, nearest thing.
श्रीमद्भगवद्गीता दूसरा अध्याय २, श्लोक 15-24
श्रीमद्भगवद्गीता दूसरा अध्याय २, श्लोक 15-24
45 min
मनुष्य की देह होने भर से आपको कोई विशेषाधिकार नहीं मिल जाता, यहाँ तक कि आपको जीवित कहलाने का अधिकार भी नहीं मिल जाता। सम्मान इत्यादि का अधिकार तो बहुत दूर की बात है, ये अधिकार भी नहीं मिलेगा कि कहा जाए कि ज़िन्दा हो।
Is Pop Religion Compatible With the Gita?
Is Pop Religion Compatible With the Gita?
38 min
The center of the Gita is 'Nishkamta'—desireless action stemming from self-knowledge. Whereas popular religion is all about the fulfillment of desire. We go to a supernatural power and beg him to grant our desires. That is popular religion. You can either have the Gita or the entirety of religion as practiced in common culture. They are totally incompatible.
भगवद गीता - अर्जुन विषाद योग: अध्याय 1, श्लोक 1-19
भगवद गीता - अर्जुन विषाद योग: अध्याय 1, श्लोक 1-19
49 min

श्रीमद् भगवत गीता प्रथम अध्याय अर्जुन विषाद योग

धृतराष्ट्र उवाच | धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः | मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय || 1.1 ||

धृतराष्ट्र ने कहा, “हे संजय! धर्मक्षेत्र, कुरुक्षेत्र में युद्ध करने के लिए एकत्रित हुए मेरे पुत्रों और पांडवों ने क्या किया?”

आचार्य प्रशांत: जिज्ञासा से आरंभ हो

भगवद गीता – अध्याय 2 (सांख्य योग), श्लोक 5-11
भगवद गीता – अध्याय 2 (सांख्य योग), श्लोक 5-11
22 min

गुरूनहत्वा हि महानुभावान् श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके। हत्वार्थकामांस्तु गुरूनिहैव भुञ्जीय भोगान्तधिरप्रदिग्धान् ।।५।।

“मैं तो महानुभाव गुरुओं को न मारकर, इस लोक में भिक्षान्न भोजन करना कल्याणकर मानता हूँ, क्योंकि गुरुओं का वध करके मैं रक्त से सने हुए अर्थ और काम रूपी भोगों को ही तो भोगूँगा।“

~ श्रीमद्भगवद्गीता, श्लोक