महाभारत सदा स्वयं से ही लड़ी जाती है
तस्मादसक्त: सततं कार्यं कर्म समाचर ।।
असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पूरुष: ।।३.१९।।
इसलिए अनासक्त भाव से सदा शुभ कार्य या कर्तव्य कर्म उत्तम रूप से करते रहो, क्योंकि मनुष्य निष्काम रहकर कर्म का अनुष्ठान करते हुए श्रेष्ठ पद मोक्ष प्राप्त करता है।
~ श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय ३, श्लोक १९
आचार्य प्रशांत: हमने… read_more