Shri Ram

Excellence Begins with Shri Ram
Excellence Begins with Shri Ram
9 min
Shri Ram is the source of all excellence—Kabir Sahab’s excellence, the excellence of an astronaut, the excellence of a deep-sea diver, the excellence of a professional, etc. If you don’t have excellence in what you do, it is because you have been disloyal to Ram. Without Ram, you can’t do anything nicely.
श्री राम को कैसे प्राप्त करें?
श्री राम को कैसे प्राप्त करें?
18 min
राम कोई खिलौना थोड़ी ही हैं, जो कहीं से "मिल जाएँगे"। राम की प्राप्ति जैसा कुछ नहीं होता, अहंकार को मिटाना होता है, और इसी को ‘रामत्व’ कहते हैं। अपनी रोज़मर्रा की हरकतों को देखिए—सुबह से शाम तक क्या किया, क्या सोचा, क्या अनुभव किया; तो पता चलेगा कि बड़ा अंधकार है। और वह स्वयं को जानने से ही मिटेगा। उसके बाद जो शेष बचेगा, उसी को 'राम' बोलते हैं।
सीता मैया नहीं कमाती थीं, तो हम क्यों कमाएं?
सीता मैया नहीं कमाती थीं, तो हम क्यों कमाएं?
12 min

आचार्य प्रशांत: (प्रश्न पढ़ते हुए) कह रहे हैं कि आप कहते हैं कि महिलाओं का कमाना उनकी आन्तरिक और भौतिक प्रगति के लिए ज़रूरी है, पर हमारी प्राचीन देवियाँ जैसे माँ सीता, देवी अनुसुइया, यहाँ तक कि साध्वियाँ जैसे मीराबाई भी कभी कमाती तो नहीं थीं, तो क्या वो सब

Shopping and bling—the way of Rama?  || Neem Candies
Shopping and bling—the way of Rama? || Neem Candies
1 min

Rama’s festival has become the festival of shopping, shoppers and shopkeepers—Rama, who never had anything to do with shops; Rama, who was never a buyer or a seller or a consumer; Shri Rama, who stands for that which can neither be bought nor be sold. This festival has turned into

Is there Dharma in your life? || Neem Candies
Is there Dharma in your life? || Neem Candies
1 min

What is it that Shri Rama stands for? He stands for detachment. He stands for fearlessness. He stands for compassion. He stands for Dharma.

Is there Dharma really in your life? And by Dharma I do not mean a creed or a cult, or observation of certain rituals, or the

Rama is the source of real strength || Neem Candies
Rama is the source of real strength || Neem Candies
1 min

When you stand in front of a client and make a presentation, what is it that makes you go weak in the knees? Expectation. Greed. And there is only one solution to greed: Rama.

You try to feel like a champion, but in front of your boss you have feet

Why live 364 days without Rama? || Neem Candies
Why live 364 days without Rama? || Neem Candies
1 min

I say, if you have lived up to Rama for 364 days, only then must you celebrate the festival of Rama-ness. How is it that for 364 days your life had nothing to do with Shri Rama, and on the 365th day you jump up and join the bandwagon, the

Let’s apologize to Rama || Neem Candies
Let’s apologize to Rama || Neem Candies
1 min

Diwali, for most people, must be a festival of austerity, of repentance. We must, on this day, offer our prayers to Shri Rama and say, “We are very sorry, O Holy One! We are extremely sorry. We couldn’t live by your life, your message, your teachings. We are very sorry.

Have you lived up to Rama? || Neem Candies
Have you lived up to Rama? || Neem Candies
1 min

I say, if for 364 days you have really lived up to Rama, only then must you honestly celebrate the festival of ‘Rama-ness’. How is it that for 364 days your life really had nothing to do with Shri Rama, and on the 365th day you jump up and join

Where is Rama in your celebration? || Neem Candies
Where is Rama in your celebration? || Neem Candies
1 min

Just think if Rama was there in his bodily shape, in his mortal life, and were to see you celebrating his festival. What would he say? He would call you, “Hey you! Yes, you! Come here. You just did something taking my name? All this tamasha (commotion) is in my

राम अब भाते नहीं || आचार्य प्रशांत (2021)
राम अब भाते नहीं || आचार्य प्रशांत (2021)
21 min

प्रश्नकर्ता: पिछले बीस-चालीस साल से ऐसा क्यों हो रहा है कि लोगों को राम पसंद आने बहुत कम हो गए हैं? तो आम जनमानस को ख़ासतौर पर जो नई पीढ़ी है उसे तो नहीं ही पसंद आते राम, इधर पिछले बीस-चालीस साल के कुछ प्रसिद्ध गुरुओं ने भी राम का

हममें और चुन्ना भाई में कोई अंतर? || आचार्य प्रशांत (2019)
हममें और चुन्ना भाई में कोई अंतर? || आचार्य प्रशांत (2019)
5 min

आचार्य प्रशांत: (मुस्कुराते हुए) चुन्ना भाई की कहानी सुनेंगे? ये बड़ा गूढ़ रहस्य था, जो कभी कोई जान नहीं पाया कि चुन्ना भाई आठवीं कक्षा तक पहुँचे कैसे? मैं आठवीं की बात बता रहा हूँ। ब्रह्मांड के सब रहस्यों पर से पर्दा उठ सकता है, चुन्ना भाई आठवीं तक आ

तनाव कम करने के तीन तरीके (तीसरा खतरनाक है) || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू
तनाव कम करने के तीन तरीके (तीसरा खतरनाक है) || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू
15 min

आचार्य प्रशांत: जो तनावग्रस्त है, उसकी ज़िन्दगी में तनाव, चिंता और मनोविकार लगातार है। बस वो कुछ मौकों पर प्रदर्शित हो जाता है। ये आपके लिए कोई खुशखबरी नहीं है कि आपका तनाव दिन में दो-चार घंटे ही प्रकट होता है। ऐसे समझ लीजिए, यदि आपका तनाव चौबीस घंटे बना

यारां दे यार || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू
यारां दे यार || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू
7 min

आचार्य प्रशांत: ऐसों से बचना जो मिलते ही ये कहते हैं कि चल यार, वीकेंड (सप्ताहान्त) पर पीते हैं। ऐसों से बचना जो जब तुमसे मिलने आते हैं तो तुम्हारे लिए साथ में गलौटी कबाब लेकर आते हैं, बचना। ये तो आया ही है देह का सुख साथ लेकर के।

श्रीराम ने बड़ा अन्याय किया? || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव (2022)
श्रीराम ने बड़ा अन्याय किया? || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव (2022)
12 min

प्रश्नकर्ता: नमस्कार सर! मेरा क्वेश्चन (प्रश्न) है मेरे सामाजिक जीवन से। सर! हमारे समाज में जैसे मैं ट्राइबल कम्यूनिटी (आदिवासी समुदाय) से आता हूँ, तो उसमें एक धारणा, एक मिथ (कल्पित कथा) है जो यह प्रचलित है सर! ये कि जो हमारे धार्मिक ग्रन्थों में जो हिंसा है जैसे— भगवान

दो छिपकलियों का प्यार, पहला नशा पहला खुमार || आचार्य प्रशांत (2023)
दो छिपकलियों का प्यार, पहला नशा पहला खुमार || आचार्य प्रशांत (2023)
15 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी प्रणाम। हम जब बोलते हैं कि सुख और दुख की उपेक्षा भी नहीं करनी है, और उनको सिर पर भी नहीं चढ़ा लेना है। तो क्या मेरा अंडरस्टैंडिंग (समझ) करेक्ट (सही) है, कि फॉर एग्जांपल (उदाहरण के लिए) जब भी मुझे कुछ दुख हो रहा है, तो

राम और कृष्ण न आपका सहारा चाहते हैं, न आपकी सफ़ाई || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव (2022)
राम और कृष्ण न आपका सहारा चाहते हैं, न आपकी सफ़ाई || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव (2022)
21 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, प्रणाम। कई भ्रांतियाँ मैंने देखी है कि फैली हुई हैं। जैसे कि उत्तरकांड को बहुत से लोग रामायण का हिस्सा नहीं मानते। कहते हैं, रामायण युद्धकांड पर समाप्त हो जाती है, वाल्मीकि जी ने उससे आगे उसको नहीं कहा था।

ऐसे ही कुछ सनातन धर्म पर आक्षेप

क्या सिर्फ़ राम को याद रखना पर्याप्त है? || आचार्य प्रशांत, श्रीरामचरितमानस पर (2019)
क्या सिर्फ़ राम को याद रखना पर्याप्त है? || आचार्य प्रशांत, श्रीरामचरितमानस पर (2019)
16 min

प्रश्नकर्ताः तुलसीदास जी ने कहा है : 'नहिं कलि करम न भगति बिबेकू, राम नाम अवलंबन एकू।' आपका भी वीडियो सुना जहाँ कहीं भी राम नाम का शीर्षक मिला कि राम नाम एक ऐसी चीज़ है जो निराकार और साकार दोनों के बीच का है। तो मैं बच्चों को ये

राम, कृष्ण, शिव - सबमें खोट दिखती है? || आचार्य प्रशांत
राम, कृष्ण, शिव - सबमें खोट दिखती है? || आचार्य प्रशांत
13 min

प्रश्नकर्ता: मेरा सवाल ये है कि बहुत सारी कहानियों में, जैसे राम और कृष्ण की कहानी हम पढ़ते हैं या कोई और भी। इन अवतारों को बचपन से ही बहुत ऐसे दिखाया जाता है कि इनमें बचपन से ही सारे गुण थे, या ये बचपन से ही अच्छे थे, निपुण

राम से राम तक की यात्रा है जीवन || आचार्य प्रशांत, श्रीकृष्ण एवं कबीर साहब पर (2019)
राम से राम तक की यात्रा है जीवन || आचार्य प्रशांत, श्रीकृष्ण एवं कबीर साहब पर (2019)
19 min

प्रश्नकर्ता: प्रिय आचार्य जी, प्रणाम! गीता का पाठ संभव कर देने के लिए धन्यवाद। अध्याय ७, १३ और १५ में श्रीकृष्ण प्रकृति, दो प्रकार के पुरुष, और पुरुषोत्तम के बारे में बताते हैं और कबीर साहब ने चार रामों की बात कही है-

चार राम हैं जगत में, तीन राम

इन्हें पसंद नहीं मेरे राम || आचार्य प्रशांत, बातचीत (2020)
इन्हें पसंद नहीं मेरे राम || आचार्य प्रशांत, बातचीत (2020)
19 min

आचार्य प्रशांत: राम आज ज़्यादातर लोगों को क्यों पसंद आएँगे? देखो हर युग, उस युग के मूल्यों के हिसाब से अपने आदर्शों को, नायकों को चुनता है। चुनता भी है, गढ़ता भी है। तो जिस युग के जो मूल्य होते हैं, जो वैल्यूज़ होती हैं उसी के हिसाब से उस

सत्य के ध्यान की विधि? || आचार्य प्रशांत (2018)
सत्य के ध्यान की विधि? || आचार्य प्रशांत (2018)
35 min

आचार्य प्रशांत: मुकेश पूछ रहे हैं कि क्या ध्यान करते समय किसी पर केंद्रित होना है? गिरेन्द्र कह रहे हैं कि मन एक बार में एक ही काम क्यों करना चाहता है? कहते हैं कि जब ईश्वर को याद करता हूँ तो संसार को भूलता हूँ। जब संसार याद आता

(गीता-14) चिंताओं की नदियाँ, समुद्र को चंचल नहीं कर पातीं || आचार्य प्रशांत, भगवद् गीता पर(2022)
(गीता-14) चिंताओं की नदियाँ, समुद्र को चंचल नहीं कर पातीं || आचार्य प्रशांत, भगवद् गीता पर(2022)
19 min

आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं समुद्रमाप: प्रविशन्ति यद्वत्। तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे स शान्तिमाप्नोति न कामकामी।।

जिस प्रकार अनेक नदियों का जल समुद्र में निरन्तर प्रविष्ट होता रहता है, किन्तु समुद्र उससे विक्षुब्ध नहीं होता अर्थात् बढ़ नहीं जाता, इस प्रकार आत्मज्ञान में प्रतिष्ठित जिस योगी के मन में विषय की चिन्ताएँ प्रविष्ट होकर

भूत-पिशाच निकट नहीं आवैं || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव (2022)
भूत-पिशाच निकट नहीं आवैं || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव (2022)
10 min

प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी, मेरा नाम शांतनु है और इसी सत्र के दौरान किन्हीं ने चर्चा की थी हनुमान चालीसा के ऊपर कि उन्होंने हनुमान चालीसा पढ़ी है बचपन में। मैंने भी हनुमान चालीसा पढ़ी है और बहुत सारे लोग होंगे जिन्होंने पंक्ति-दर-पंक्ति हनुमान चालीसा को एकदम याद कर लिया

राम से नाता नहीं, और चले हैं दीवाली मनाने || आचार्य प्रशांत (2019)
राम से नाता नहीं, और चले हैं दीवाली मनाने || आचार्य प्रशांत (2019)
28 min

प्रश्नकर्त्ता: आचार्य जी, भारत अब कोरोना महामारी से संक्रमित लोगों की संख्या में चौथे स्थान पर आ चुका है। अमेरिका लंबे समय से सबसे ऊपर, पहले स्थान पर है ही। भारत और अमेरिका दोनों ही जनतंत्र की मिसाल माने जाते हैं। अमेरिका सबसे शक्तिशाली जनतंत्र, और भारत सबसे बड़ा जनतंत्र।

काम तो राम ही आएँगे || नीम लड्डू
काम तो राम ही आएँगे || नीम लड्डू
2 min

सागर पार करके लंका पहुँचने हेतु पुल बन रहा था। उसमें यह सब वानर, भालू सब लगे हुए थे, हनुमान तो थे ही, इंजीनियर थे नल-नील, यह सब। और वहाँ एक फुदकी गिलहरी, वो भी लगी हुई है साथ में पूँछ उठाए। वह क्या कर रही है? वह बालू के

सीता का मार्ग, और हनुमान का मार्ग || आचार्य प्रशांत, श्रीरामचरितमानस पर (2017)
सीता का मार्ग, और हनुमान का मार्ग || आचार्य प्रशांत, श्रीरामचरितमानस पर (2017)
12 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, जब सीता और हनुमान दोनों ही राम तक पहुँचने के मार्ग हैं, तो इनमें मूलभूत रूप से क्या अंतर है?

आचार्य प्रशांत: एक है अपने को मिटा देना, और दूसरा है अपने को मिला देना।

मिटा देना ऐसा है कि जैसे कोई सपने से उठ गया हो,

इसमें तेरा घाटा, उनका कुछ नहीं जाता || आचार्य प्रशांत (2020)
इसमें तेरा घाटा, उनका कुछ नहीं जाता || आचार्य प्रशांत (2020)
11 min

प्रश्नकर्ता: गर्भवती पत्नी को वन में छोड़ने पर भी राम मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। जुऐ में द्रौपदी को हारकर भी युधिष्ठिर धर्मराज कहलाए। अरे! अगर ये धर्म है तो, फिर अधर्म क्या है?

आचार्य प्रशांत: ताली बजादूँ डायलॉग पर या जवाब दूँ? चलो जवाब दिए देता हूँ।

क्रिकेट विश्व कप के

श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम क्यों कहते हैं? || आचार्य प्रशांत (2016)
श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम क्यों कहते हैं? || आचार्य प्रशांत (2016)
8 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, श्रीराम को 'मर्यादा पुरुषोत्तम' कहा जाता है, जबकि उन्होंने सीता जी की अग्नि परीक्षा ली थी, और जब वो गर्भवती थीं तो उन्हें घर से निकाल दिया था। मैं श्रीराम के इस व्यवहार को ग़लत मानती हूँ। कृपया मेरी इस शंका को दूर कीजिए।

आचार्य प्रशांत: मर्यादा

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का जाति:। जातिरिति च। न चर्मणो न रक्तस्य न मांसस्य न चास्थिनः। न जातिरात्मनो जातिर्व्यवहारप्रकल्पिता॥१०॥

शरीर (त्वचा, रक्त, हड्डी आदि) की कोई जाति नहीं होती। आत्मा की भी कोई जाति नहीं होती। जाति तो व्यवहार में प्रयुक्त कल्पना मात्र है।

~ निरालंब उपनिषद (श्लोक क्रमांक १०)

आचार्य प्रशांत: आज जो

Cross the river and burn the bridges
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Question: What do I do to cross the river? To me, it is such a challenge.

Acharya Prashant: Crossing the river is easy. Just hold the hand of someone who knows the other side, and cross. You have already crossed the river a thousand times with me. Your failure is

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Questioner: Sir, I have been reading Krishnamurti and Vivekananda for the past three years and having learned from them, I genuinely feel that the teachings of such great teachers should be at the core of our education system. I personally feel that my decisions regarding my career and life would

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पुरानी कबीलाई रवायतें और इस्लामिक दर्शन — ये दोनों बातें आपस में गुथ गई हैं। बहुत सारी चीज़ें, जिनको आम मुसलमान मज़हब समझता है, वो वास्तव में बस अरब की प्रथाएँ हैं। धर्म के नाम पर जो चल रहा है, वो हज़ारों-लाखों लोगों की मौत बन रहा है। इसके प्रतिरोध में पूरी दुनिया कट्टर होती जा रही है। संसद, न्यायालय, कार्यालय, शैक्षिक संस्थाएँ — हर जगह से मुसलमान नदारद है। इस पिछड़ेपन का कारण अशिक्षा और ग़रीबी है। इसे दूर करने के लिए ज्ञान का प्रकाश चाहिए — विज्ञान, इतिहास, तर्क में शिक्षा चाहिए।
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प्रेम में साथ रह भी सकते हो, और नहीं भी। मूल मुद्दा रिश्ते के स्वास्थ्य का है। जिस रिश्ते में प्रेम नहीं होता, वहाँ दूरी बनते ही घबराहट होती है। भीतर असुरक्षा चिल्लाती है — “नज़रों के सामने नहीं है, दूर चला गया, लौटेगा या नहीं, न जाने क्या कर रहा होगा, कहीं हमें भूल न जाए।” लेकिन रिश्ता अगर बढ़िया है, तो वह एक विश्वास देता है कि दूरी बनाई जा सकती है और नुक़सान भी नहीं होगा। इसलिए, न साथ रहना ज़रूरी होता है, न दूर जाना — बस प्रेम ज़रूरी होता है। प्रेम है, तो सब सही है।
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14 min
असली के साथ रहे आओ, नकली से लड़ने की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी, वो झड़ जाएगा। तुम्हें पता भी नहीं चलेगा, वो जीवन से कहाँ चला गया। उसका खयाल आना बन्द हो जाएगा। जिनकी ज़िन्दगी में मोहब्बत आ जाती है, यकीन मानो, उनका पीना अपने आप छूट जाता है। उन्हें पता ही नहीं चलता कहाँ चला गया। और जिनकी ज़िन्दगी से प्रेम चला जाता है, तुम गौर करोगे, वो तुरन्त शराब की ओर भागते हैं। तो शराब क्या है? प्रेम का अभाव।
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7 min
जो लक्ष्य हमें एक विशेष परिस्थिति ने, एक विशेष दिन ने दिए होते हैं, उसके प्रति लिए गए संकल्प भी उस परिस्थिति और दिन के बीतते ही स्वयं भी बीत जाते हैं। जीवन का एक ही लक्ष्य हो सकता है – अपने तक वापस आ जाना। ऐसे संकल्प लें जो हर पल होश बनाए रखने में सहायक हों। ग्रंथ अध्ययन, कला, खेल, पर्यावरण और पशुओं के प्रति जागरूकता, दुनिया के बारे में समझ; ये सभी संकल्प हैं जो आपके निर्भीक और मुक्त जीवन की ओर एक नई शुरुआत करेंगे।
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The same suffering that we hide behind so many things— entertainment, even knowledge, so-called distractions, achievements, pleasures, accumulations, prestige, sanctions, and approvals from all around. We hide that fact of human suffering behind all these things. So, it's a big problem. It's a big problem that we want to address. So now, I want to look at — why am I suffering? Why am I suffering?
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Question: I want to know why the world is at the moment so harsh?

Acharya Prashant: There is nothing that one group, one community or one person experiences that the other has never experienced or is not experiencing even to the slightest degree. Fundamentally we are all one. As human

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धर्म की दिशा सबसे पहले भीतरी होती है। दूसरों को काफ़िर कहकर मार देना धर्म की दिशा नहीं है। धर्म जब गलत दिशा ले लेता है, तो ऐसी व्यापक तबाही करता है जिसकी कोई इंतहा नहीं होती। धर्म दोधारी तलवार है — अगर सही से समझा गया, तो ऊँचाइयों पर ले जाएगा; और नहीं समझा गया, तो ऐसा गिराएगा कि उठना असंभव हो जाएगा।
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पर एक साधारण सी बात है कि दूसरों की गंदगी बताने से पहले अपनी गंदगी तो साफ करूँ और मेरी गंदगी साफ होगी। उसके बाद कोई आकर के मुझसे बात करना चाहेगा उसके घर की गंदगी के बारे में। तो मैं प्रस्तुत हूँ। भई आखिरकार तो आप इंसान हो और हर इंसान से आपका सरोकार है। बात पंथ, मज़हब, संप्रदाय की तो नहीं होती है। कोई भी आकर आपसे बात करेगा और वो साफ होना चाहता है। बेहतर होना चाहता है तो आप बिल्कुल खुलकर बात करोगे। उसमें कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन सबसे पहले तो आप अपनी बात करोगे ना। अपना भीतर झाँक कर देखोगे।
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जो सच का प्रेमी होता है, उसके हाथ में थोड़ा-सा संसाधन भी कमाल कर देता है। रावण की पूरी सेना और सारे अस्त्र-शस्त्र, माँ सीता के एक तिनके के आगे विफल हो गए — जीत तो बस उस तिनके की हुई। उन्होंने श्रीराम, अर्थात् सत्य को ही स्वीकार किया। जो शिव-शक्ति का संबंध है, वही राम-सीता का संबंध है। सीता के रूप में शक्ति हमको सिखा रही है कि राम को अपने आगे-आगे चलने दो। जब एक बार राम जीवन में आ जाएँ, तो फिर डर, लालच, स्वार्थ के कारण विचलित मत होना।
When Will Life Be Sorted for Good?
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There has never, ever been anybody 100% sorted. There are always challenges, and those challenges arise from the body itself; your enemy is within you, and it will remain as long as you are alive. So, learn to revel in this situation — it's called life. And instead of asking for a final victory, start asking for a good battle — battles where, even in your pain, you can say, “This one was good!”
'धर्म हिंसा तथैव च' शास्त्रों में लिखा है?
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महाभारत में एक दर्जन जगह आया होगा 'अहिंसा परमो धर्म:,’ लेकिन उसमें साथ में आगे कहीं भी नहीं लिखा है कि 'धर्म हिंसा तथैव च।' 'धर्म हिंसा तथैव च' — अहिंसा तो परम धर्म है लेकिन हिंसा भी धर्म है; किसी भी ग्रंथ में कहीं पर भी नहीं लिखा हुआ है। इससे आपके रोंगटे खड़े हो जाने चाहिए कि ये कौन लोग हैं और ये कौन-सी सेंट्रलाइज़्ड जगहें हैं, जहाँ इस तरह की साज़िशें की जा रही हैं। जो उन्होंने जोड़ा है इसी से उनके मंसूबे पढ़िए — वो हिंसा करना चाहते हैं। यहाँ सीधे-सीधे धर्मग्रंथ के साथ पूरी खिलवाड़ ही कर दी गई है।
बल सत्य से आता है
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बल सत्य से आता है। जब आपको सत्य पता ही नहीं तो आप में बल कहाँ से आएगा? आपको किसी ने बोल दिया 'धर्म हिंसा तथैव च।' आपने कहा, 'हो सकता है लिखा होगा।' आपको किसी ने बोल दिया गाँधी जी बहुत अच्छे आदमी थे, राष्ट्रपिता थे। आपने मान लिया। आज आपको बोला जा रहा गाँधी जी और नेहरू से ज़्यादा बुरा कोई नहीं था, इन्होंने देश बर्बाद करा। आपने वो भी मान लिया। तो थाली के बैंगन हैं, जो जिधर को लुढ़काना चाहे लुढ़का सकता है।
True Relationships Arise from Aloneness
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You may say that you are in love; but do you love that man, or do you love what you get through that man? When you are needy and lonely, then your relationships are like band-aids: they are there to take care of your wounds. But if you live your life from a point of aloneness — which is totally different from loneliness — your relationships will take on a different colour. Then you will really be free and not a slave.
Religion and Violence
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Religious violence is not about a handful of terrorists; it's an entire ecosystem of passive toxicity supported by lakhs of people. When toxicity is beamed to you on TV and social media, you don't resist. And one day, it explodes into active violence. This is because we're still animals who live without understanding ourselves — this is called ignorance. Therefore, we need wisdom literature to help us transcend our animal disposition.
धर्म के नाम पर आतंकवाद
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लोकधर्म हमेशा मान्यताओं पर चलता है। एक आतंकवादी अपनी मान्यता के लिए किसी को मार रहा है, क्योंकि जो उसकी मान्यता, उसकी कहानी में विश्वास नहीं करेगा, वो गंदा आदमी है। बहुत सारे बुद्धिजीवी यही कहते हैं कि रिलीजन इज़ वन ऑफ़ द फॉरमोस्ट सोर्सेज ऑफ़ स्ट्राइफ़ एंड कॉन्फ्लिक्ट। धर्म एकता का स्रोत सिर्फ़ तब हो सकता है, जब वो व्यक्ति को सब विभाजनों से दूर कर दे। वेदांत ही शायद एक अकेला है जो ‘ग्रेट यूनिफ़ायर’ है, बाक़ी तो सब तोड़-फोड़ के अड्डे हैं।
कुंभ: झूठ के सागर में खो गया सच का अमृत
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अमृत केंद्र में है इस कहानी के।और अमृत कहां से मिलना है? आत्म मंथन से। जो जितना स्वयं को जानता जाएगा उतना वो स्वयं से माने मृत्यु से मुक्त होता जाएगा। हम जो बने बैठे हैं वही मृत्यु है। जो आप अपने आप को समझते हो ना उसी का नाम मौत है। और जितना आप खुद को देखते जाते हो उतना समझ में आता जाता है कि मैं अपने आप को जो मानता हूं वो सब व्यर्थ है। मैं वो हूं ही नहीं। “नकार नेति”। अमृत माने कुछ पाना नहीं। अमृत माने मृत्यु से मुक्त होना। यही अमृतत्व है। मृत्यु से मुक्त होना।
हीन भावना से कैसे बाहर आएं?
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हीन भावना बहुत तगड़ी ज़िद होती है, जो आपका ही चुनाव होता है। हीनता नहीं होती है, स्वार्थ होते हैं। जो भी चीज़ आपको सता रही है, उसमें आपकी सहमति शामिल है। देखिए, आपका स्वार्थ कहाँ है? ज़रूर कोई फ़ायदा है हीन बने रहने में, इसलिए तुम हीन बने हुए हो। आपकी हर बेबसी, हर कमज़ोरी में आपका लालच मौजूद है। तुम अनंत हो, और जो अनंत है, वो किसी से छोटा हो सकता है क्या?
बदले की आग में जलता है मन
बदले की आग में जलता है मन
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अतीत की बुरी घटनाओं को याद करके तुम अपने वर्तमान को भी खराब कर रहे हो। जो बीत गया, वह अतीत है, लेकिन प्रतिशोध के विचार तुम्हारे इस पल को भी प्रभावित करते हैं। तुम्हारे विचार जिस स्तर के होते हैं, तुम्हारा मन भी वैसा ही बन जाता है। प्रतिशोध का ख्याल दिल की आग को ठंडा नहीं करता। यह आग केवल आत्मज्ञान, बोध और अपने आप को जानने से शांत होती है।