Hazrat Muhammad

इज़राइल-हमास: धर्म का काम बस कत्लेआम? || आचार्य प्रशांत (2023)
इज़राइल-हमास: धर्म का काम बस कत्लेआम? || आचार्य प्रशांत (2023)
1 min
स्वयं का विसर्जन ही महादान है || आचार्य प्रशांत, पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद पर (2015)
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20 min

वक्ता: पैगम्बर हज़रत मोहम्मद का वक्तव्य है कि जो ज़कात छिपी होती है, वो अल्लाह के गुस्से को शांत करती है। तो माहे रमज़ान चल रहा है, अच्छा है, कि इस समय पर ये सवाल आया है। ज़कात का महत्त्व तो साल भर ही होता है। रमज़ान में और बढ़

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जहां काम का मतलब सिर्फ़ पैसा और कामनाएँ पूरी करना है, वहाँ बिल्कुल ज़रूरी है कि काम के घंटे सीमित रखे जाएँ। अगर मामला loveless है, तो वर्क-लाइफ बैलेंस का कॉन्सेप्ट बिल्कुल एप्लीकेबल है, और दुनिया की ज़्यादातर आबादी अपने काम से नफरत करती है। सवाल यह है कि तुम्हारा काम एक दिली चीज़ क्यों नहीं हो सकता? काम आशिकी होती है। जो आदमी दिल से जिएगा, उसके काम में भी दिल होगा। उसके एक-एक कदम में दिल दिखाई देगा।
श्रीमद्भगवद्गीता दूसरा अध्याय २, श्लोक 15-24
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45 min
मनुष्य की देह होने भर से आपको कोई विशेषाधिकार नहीं मिल जाता, यहाँ तक कि आपको जीवित कहलाने का अधिकार भी नहीं मिल जाता। सम्मान इत्यादि का अधिकार तो बहुत दूर की बात है, ये अधिकार भी नहीं मिलेगा कि कहा जाए कि ज़िन्दा हो।
Is Pop Religion Compatible With the Gita?
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The center of the Gita is 'Nishkamta'—desireless action stemming from self-knowledge. Whereas popular religion is all about the fulfillment of desire. We go to a supernatural power and beg him to grant our desires. That is popular religion. You can either have the Gita or the entirety of religion as practiced in common culture. They are totally incompatible.
प्रेम और मोह में ये फर्क है
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जहाँ प्रेम है, वहाँ मोह हो नहीं सकता, और जहाँ मोह है, वहाँ प्रेम की कोई जगह नहीं है। मोह में सुविधा है, सम्मान है। प्रेम तो सब तोड़-ताड़ देता है—पुराने ढर्रें, पुरानी दीवारें, सुविधाएँ, आपका आतंरिक ढाँचा, और जो सामाजिक सम्मान मिलता है। प्रेम सब तोड़ देता है। प्रेम इतनी ऊँची चीज़ है कि आप उसमें पुरानी व्यवस्था का विरोध नहीं करते, पुरानी व्यवस्था को भूल जाते हो। प्रेम और मोह दो अलग-अलग दुनियाओं के हैं।
Is Secularism Possible Without Religion?
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A secular person is one who does the right thing irrespective of his religious association. And if you want this, then you should be deeply religious. Because in secularism, you want equanimity, a certain detachment, respect towards divergent opinions, and non-violence; but who teaches these things? Religion. Therefore, if secularism is in strife with religiosity, it means both are misplaced. The religiosity is fake, and the secularism is shallow.
ऐसे देखो अपनी हस्ती का सच
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कह रहे हैं कि ये तुमने जो तमाम तरह की कहानियाँ गढ़ ली हैं, ये कहानियाँ तुम्हारे अंजन का ही विस्तार हैं, निरंजन की कोई कथा नहीं हो सकती। सारी समस्या तब होती है जब धर्म में कथाएँ घुस जाती हैं। जितनी तुमने किस्से बाज़ियाँ और कहानियाँ ये खड़ी की हैं, इन्होंने ही तुम्हारे धर्म को चौपट कर दिया है। श्रीराम को निरंजन ही रहने दो, श्रीकृष्ण को भी निरंजन ही रहने दो। जैसे ही तुमने गोपी संग गोविंद बना दिया, वैसे ही मामला अंजन का हो गया। गोविंद को गोविंद रहने दो, गोपियाँ मत लेकर के आओ।
ऐसे नहीं प्रसन्न होंगी देवी
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दुर्गासप्तशती का केंद्रीय संदेश यही है — प्रकृति को भोगोगे, प्रकृति को कंज़म्पशन की चीज़ मानोगे तो देवी तुम्हारा वही हाल करेंगी जो चंड-मुंड, मधु-कैटभ और शुंभ-निशुंभ का किया था। महिषासुर कौन है? जो प्रकृति को कंज्यूम करने निकलता है। जो कहता है, मैं मौज करूँगा प्रकृति को भोगकर। वही महिषासुर है। देवी का त्योहार इसलिए थोड़े ही आता है कि हम खुद ही महिषासुर बन जाएँ। आपसे निवेदन करता हूँ आपकी मौज किसी की मौत न बने।
छोटे बच्चे की बलि: कितनी जानें लेगा अंधविश्वास?
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पता किसी को नहीं है, खर्च सबको करना है। ये सुपरस्टिशन है। बात सिर्फ़ भूत-प्रेत, डायन, चुड़ैल की नहीं है, दूल्हा-दुल्हन की भी है। या तो उनको ही बोल लो। पर जो कुछ भी तुम्हारी जिंदगी में चल रहा है और तुम्हें कुछ पता नहीं है कि मामला क्या है, वो सब अंधविश्वासी ही है, और बहुत दूर तक जाता है। सोचो सात साल का बच्चा रहा होगा और किसी अनपढ़ ने नहीं मारा, प्रिंसिपल (प्राचार्य) ने मारा है।
How To Express Love?
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Love and realization are things that roar aloud. They are extremely intimate, yet if they are there, there is no way you can hide them. These are not things that you can ever prevent from getting expressed. So, don’t even try. This expression means living it. Every thought is an expression, every action is an expression. You just express. By blocking it, you are blocking the thing itself. You don’t allow it to be expressed, and it’s gone.
Why Did Sufi Poets Like Kabir Emphasize Love in Bhakti?
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The saints don't display affection at all. Affection actually means disease. Affection means disease. The saints have no affection. The saints have love and love has nothing to do with affection. Affection and affliction go together. It is not affection that characterizes a saint. It is love that characterizes him. Affection and dryness, they go together. Together always. And affection and love, they never go together. So you have to be very clear about what accompanies what.
हमारी ज़िंदगी में प्यार क्यों नहीं है?
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हमारे जीवन में किसी भी क्षेत्र में, किसी भी तार में प्रेम नहीं होता है। हम काम से कैसे प्रेम कर लेंगे? कोई नहीं मिलेगा आदमी। होगा, हजारों-करोड़ों में कोई एक होगा। जो कहे कि काम काम के लिए करता हूं। उसमें से जीविका चल जाती है, वह अलग बात है। पर पैसे नहीं भी मिल रहे होते तो काम तो मैं यही कर रहा होता। तो जहां मौका मिला नहीं वहां काम बंद। बारिश हो रही है काम बंद। कुछ हो रहा है काम बंद। कोई त्योहार आया है उसके दस दिन पहले से काम बंद। उसके दस दिन बाद काम शुरू होगा। और ज़िंदगी जितनी मीडियोक्रिटी की होती है ना आदमी काम उतनी जल्दी बंद करता है।
How to Honor Dead Ancestors?
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The best way to honor your ancestors is by becoming what they were destined to be — which Shri Krishna calls your Niyati or Liberation. Liberate yourself from ignorance and help the entire planet. That should be the meaning of Shraddh. Instead, it has become an elaborate ceremony of superstition, with beliefs about souls floating in other universes, being hungry, and talk of crows, sparrows, and crude myths.
Why Do We Avoid Right Action?
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Right action brings us peace, relaxation, and reasonless contentment. But we avoid it because it’s incompatible with our entire life structure, built on a wrongly lived past and the great stakes raised in it. Now, even if we accidentally make the right decision, it causes a lot of suffering and shakes up our foundations, making us go back to our dated, pre-existing ways.
सोशल मीडिया, पॉडकास्ट और तंत्र-मंत्र का खेल
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आपने कोई किताब नहीं पढ़ी, आप बैठकर पॉडकास्ट देख रहे हो। आप जो-जो बोला जा रहा है, पहले तो आपको पता नहीं चलेगा कि वो जो आदमी वहाँ बैठा है, वो यूँही कोई फ्रॉड, फ़र्जी है या कोई असली आदमी है। ज़्यादातर जो लोग आते हैं, वो फ्रॉड ही होते हैं। और दूसरी बात, अगर वो मान लो असली आदमी भी है जो पॉडकास्ट में बैठा है, तो उसकी बात आपको समझ में नहीं आएगी क्योंकि आपकी अपनी तो कोई प्रिपरेशन, कोई ग्राउंडिंग है ही नहीं। आपने आज तक कोई किताब नहीं पढ़ी, तो वो जो बोल रहा है, वो समझ में भी नहीं आएगा।
धर्म का विकृत व प्रचलित रूप है "लोकधर्म"
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भगवद्गीता में श्रीकृष्ण को बोलना पड़ता है, “अर्जुन! ये सीधा-सीधा श्लोक है बिल्कुल इन्हीं शब्दों में है; अर्जुन! जब तक तुम वेदों की सकाम ऋचाओं से ऊपर नहीं उठते, जब तक जो काम्य कर्म हैं तुम उनसे बँधे हुए हो, तब तक तुम्हें मेरी बात समझ में नहीं आएगी।” उपनिषदों में कामनाओं की बात नहीं है, पर मंत्रों में है, वहाँ सब कुछ कामनागत ही है। सब प्राकृतिक देवी, देवताओं से कहा जा रहा है हमारी ये कामना पूरी कर दो वो कामना, और कामनाएँ सारी वही हैं पुरानी कामनाएँ — बेटा दे दो, ज़मीन दे दो, हमारे पशुओं के ज़्यादा दूध आए और हमारे शत्रुओं को आग लगाकर के मार दो, यही हैं। ये लोकधर्म है। और वास्तविक धर्म — निष्कामता।
शिक्षा के नाम पर ये सब?
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भारत में इतनी सदियाँ, शताब्दियाँ बीती हैं, पुराना राष्ट्र है हमारा। ज्ञान-विज्ञान में निश्चित रूप से कुछ बड़ी उपलब्धियाँ हासिल करी हैं। उनके बारे में बताना एक बात है। आप आर्यभट्ट के बारे में बता रहे हैं, आप वराहमिहिर के बारे में बता रहे हैं, या कि आप महर्षि पाणिनी के बारे में बता रहे हैं, ये एक बात होती है। और आप भारत में क्या-क्या प्रथाएँ परंपराएँ रही हैं और भारतीयों ने क्या-क्या बातें मान्यता के तौर पर मानी हैं, अंधविश्वास के तौर पर मानी हैं, उनको आप बता रहे हैं छात्रों को; ये दो बहुत अलग-अलग बातें हैं।
Message For the Youngsters
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There has to be a love for freedom. Especially as a young person, one should remain young all his life. You see, but you know, at least when you are in your 20s or 30s, you need to have a burning desire to to live as a sovereign entity. And when that is there, then anything that comes your way would be rightfully utilized, including crutches.
Is the Concept of Afterlife Just a Fear-Based Belief?
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There has to be somebody. The question that Vedanta would ask is for whom? For whom is heaven or for whom is hell? And science today is in a position to answer that. There is actually nobody inside your body. There is just the body. The consciousness that you identify with is actually a product of the body. It arises with the body and it's gone with the body. There is nothing that survives the body. So for whom is heaven and for whom is hell?
कैरियर का चुनाव कैसे करूँ?
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बहुत बदहाल और गई-गुज़री होती है वो ज़िंदगी जिसमें आप पैसा कमाने के लिए वो काम कर रहे होते हो जिसमें प्यार नहीं है। मैं बार-बार कहता हूँ — दो काम बिना प्यार के नहीं करने चाहिए; एक, किसी का साथ और दूसरा, नौकरी। और दुनिया के जितने लोग हैं न और खासकर भारत में, इन सबने पहली बात तो बिना प्यार के साथी चुना और दूसरे बिना बना प्यार की नौकरियाँ कर रहे हैं।
क्या ज्योतिषी भविष्य बता सकते हैं?
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यदि तुम पूर्व-निर्धारित ढ़र्रे पर ही जीते हो तो किसी ज्योतिषी की भी ज़रूरत नहीं है। कोई राह चलता भी तुम्हारी शक्ल देखकर बता देगा कि बाईस तक पढ़ाई, पच्चीस में सगाई, फिर विदाई, फिर दनादन पिटाई। क्योंकि जो ढ़र्रे पर चल रहा है उसका सबकुछ तय है, इसलिए उसका भविष्य निर्धारित किया जा सकता है। परंतु यदि तुम्हारा जीवन आज़ादी में, मुक्ति में, होश में बीत रहा है, तो कोई भी ज्योतिषी नहीं बता सकता, कि तुम्हारा कल कैसा होगा।
भगवान को बच्चा बना दो, और धर्म को खिलौना
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हम इतने छोटे से रह गए हैं और हमारे सामने आ जाएँ बिलकुल कि जैसे सचमुच थे राम और जो सचमुच रौद्र रूप है दुर्गा का तो बात हमें अपमान की लगती है कि ये तो इतने बड़े, हम इतने छोटे तो क्या करते हैं? हम उनको ही छोटा बना देते हैं ताकि वो हमारे हाथ का खिलवाड़ बन जाएँ, हमारे हाथ का खिलौना बन जाएँ। लोग छोटी-छोटी देवी लेकर घुम रहे हैं इस बार। ये देवी हैं कि पहाड़ से भी बड़ी पहाड़, और हम उनको क्या बना रहे हैं? तो यही है ताकि सबकुछ हमारे खिलौने जैसा हो पाए। क्योंकि धर्म को ही हमने अपना खिलौना बना लिया है, “लोगन राम खिलौना जाना।”
तीर्थयात्रा के नाम पर मज़ाक? || आचार्य प्रशांत
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आचार्य प्रशांत: उत्तरांचल को बर्बाद करके उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल बच लेंगे क्या? क्यों नहीं बचेंगे? एक छोटा-सा नाम है ‘गंगा’। बाढ़-सूखा कुछ भी आपने गंगोत्री का जो हाल कर दिया है उसके बाद ये आवश्यक नहीं है कि बाढ़ ही आये। जब ग्लेशियर नहीं रहेगा तो गंगा जी कहाँ

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Questioner: * I am Darshan, and my question is very simple yet complicated. So why do we not work? So even after knowing that if we work, we will get something that we are looking for. So, to take an example, I had the opportunity to interact with a lot

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If you can deal with human ignorance only then there is the chance, we will be more friendly, more compassionate towards animals. Otherwise, a sectoral approach, a fragmented approach will at most make you feel good about yourself. But in the bigger picture, it does no favor to the animals or to the environment.
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महाकुंभ जैसे पावन पर्व तथा गंगा तट के किनारे श्रीमद्भगवद्गीता जैसे ५०० धार्मिक ग्रंथों को जलाया गया। ऐसा आक्रमण कोई पहली बार नहीं हुआ है। हम खिलजी की बात करते हैं कि उसने नालंदा आकर के विश्व का सबसे बड़ा पुस्तकालय जला दिया था और हम उसे भारत पर हुए अत्याचार की तरह देखते हैं। दरअसल, यह वास्तविक धर्म और विकृत लोकधर्म के बीच का संग्राम है जो भारत राष्ट्र और महान सनातन धर्म का भविष्य तय करेगा।
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The purpose of all instruments of religion, methods of religion is to unblock. The truth is here, there, inside, outside, everywhere. But there is a blockage. That blockage is called the ego. The ego prevents the truth from coming to itself. So, religion is a device, a tool so that Truth can flow to the ego. The ego wants to defend itself against the truth because once the truth flows in, it dissolves the ego.
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The one who is religion-less. A real Hindu does not have any religion. To go beyond all religions is to be a Hindu. There are religions that are on one plane, and then there is Sanatan Dharma, which is another dimension — the eternal religiousness. Liberation from religion is religiousness. Sanatan Dharma is awakened intelligence.
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You look at this video camera, it's a product of human ingenuity. It is not a product of rituals or beliefs. And we should be grateful. Even the astrologers are using the latest technology without being grateful at all. Latest technology that astrology didn't give birth to. And yet astrology is exploiting the technology for its own furtherance. And it has been extremely conclusively proved, demonstrated that astrology is not a science at all. It's a belief system. Belief system with no material basis at all.
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किससे मिल रहे हो? किससे नहीं मिल रहे हो? कहाँ रोज़ पहुँच जाते हो? कहाँ से पैसे ला रहे हो? पहली बात – क्या ईमानदारी से काम रहे हो? दूसरी बात – जो कमा रहे हो, उसको खर्च कहाँ कर रहे हो? छः घण्टे से कोई खबरिया चैनल लगा कर

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जनमानस में तो शिव और शंकर एक ही हैं, जिनके सहस्रों नाम हैं। सब नाम सुंदर हैं। पर अध्यात्म की सूक्ष्मताओं में जाकर अगर हम इन नामों का अभिप्राय समझें तो उनका सौंदर्य और बढ़ जाएगा। ‘शिव’ अर्थात आत्मा, सत्य मात्र। आप कहते हैं ‘शिवोहम्’, ठीक जैसे उपनिषद कहते हैं,

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साहब नज़र रखना, मौला नज़र रखना तेरा करम सबको मिले, सबकी फ़िक्र रखना न आदमी की आदमी झेले गुलामियाँ, न आदमी से आदमी मांगे सलामियाँ जो फ़र्क पैदा हो रहे, वो फ़र्क गर्क हों सबको बराबर बाँट, ये धरती ये आसमान कोई भी न हो दर्द में, सबकी ख़बर रखना

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*भूले मन..!समझ के लाग लदनियां..! थोड़ा लाद..अधिक मत लादे.. टूट जाये तेरी गर्दनिया..!..*

*भूले मन…भूखा हो तो भोजन पा ले.. आगे हात न बनिया…!*

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मैं छुपाना जानता तो जग मुझे साधु समझता।

शत्रु मेरा बन गया है छल रहित व्यवहार मेरा।।

प्रश्न: सर, क्या यह पंक्तियाँ सही कह रही हैं?

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निश्छलता आती है इस गहरी आश्वस्ति के साथ कि मुझे छल, धोखा, चालाकी की ज़रुरत

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प्रश्न: मनुष्य ‘स्वार्थी’ है या ‘मतलबी’?

उत्तर: तुमने ‘स्वार्थ, मतलब’ के बारे में जानना चाहा है।

अर्थ माने कुछ ऐसा जो तुम्हें लुभावना, प्रिय लगता हो।

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स्वार्थ माने वो जो अहंकार को प्यारा लगे।और मतलब माने भी अर्थ।

सत्य मात्र ‘होता है’, और उसका ‘मतलब’

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रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय।

टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय।।

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सनातन धर्म के सामने सबसे बड़ा खतरा क्या?
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धर्म की बुनियाद धर्मग्रंथ होते हैं। वे बताते हैं कि कैसे जीना है और जीव की सच्चाई क्या है। जिसे तुम हिंदू कहते हो, उसका अपने धर्म की केंद्रीय किताबों से कोई संबंध ही नहीं रह गया है। सनातन धर्म को अन्य धर्मों से नहीं, बल्कि इस वक्त सबसे बड़ा खतरा झूठे धर्मगुरुओं से है, जो भीतर-भीतर सनातन धर्म की नींव खोद रहे हैं। सनातन धर्म में हिंदुओं को किसी दूसरे धर्म से बाद में खतरा होगा; पहला खतरा उन्हें हिंदुओं से ही है, क्योंकि जिसे तुम हिंदू कहते हो, वह केवल परंपरा और अंधविश्वास को मानने वाला हिंदू है।
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Sanatan Dharma is not about following traditions in the name of Dharma. It is about constantly moving towards that which will take you beyond your mind: the Sanatan. All our beliefs and rituals might be religious, but they are not Sanatan because they are just mind stuff. Since both Sanatan Dharma and Vedanta discard mind stuff as trivial, one cannot be a Sanatani if one is not a Vedanti.
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प्रश्नकर्ता: सनातन धर्म का अर्थ क्या है?

आचार्य प्रशांत: सनातन कौन है, ये समझ लीजिए तो ये भी समझ जाएँगे कि सनातन धर्म क्या हुआ।

सनातन माने वो जो लगातार है; जो लगातार है। लगातार कौन है? लगातार प्रकृति है, अस्तित्व है न लगातार? तो माने प्रकृति है लगातार, और

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जाप भर करने से क्या होगा अगर बोध नहीं हुआ? समझ जागने के बजाय, वह रुक जाती है जब आप रटने में विश्वास करने लगते हैं, और चेतना जड़ हो जाती है। मंत्र अथवा श्लोकों को रटकर समझ नहीं पाएंगे। साफ़ उच्चारण एक प्रशंसनीय बात है, पर उच्चारण भर से काम नहीं चलेगा। वेद का अर्थ ही होता है ‘जानना’, ‘बोध’; अतः उनके मंत्रों को रटकर दोहराना बहुत अपर्याप्त है।
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असल में नकली ग्रंथ को, या नकली साधक को, या नकली आध्यात्मिक गुरु को पहचानने का ये एकदम रामबाण तरीका है। ये देखो कि उसका साइंस, विज्ञान के प्रति रुख क्या है। जिस स्पिरिचुअल (आध्यात्मिक) ग्रंथ में, या टीचर में साइंस के लिए इज़्ज़त न हो, वो आदमी साइंस को ही नहीं स्पिरिचुअलिटी को भी इज़्ज़त नहीं देता। अगर आपको कोई स्पिरिचुअल लीडर मिला जो साइंस का मज़ाक उड़ाता है, या साइंस के महत्व पर ज़ोर नहीं देता, तो वो आदमी साइंस ही नहीं स्पिरिचुअलिटी से भी अनभिज्ञ है। उसको पूरी तरह हटाओ।
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मुझे बड़ा आनंद रहेगा अगर आप कहो कि नहीं मात्र परमात्मा ही मात्र चाहिए, सत्य के अलावा कोई कामना नहीं है। पर जब तक आप उस स्थिति में न पहुँच जाओ जहाँ सत्य के अतिरिक्त कोई कामना नहीं, तब तक जो चाहिए वो साफ़-साफ़ जानो और साफ़-साफ़ बताओ भी, क्योंकि अगर साफ़-साफ़ नहीं बताओगे तो बात खुद से ही छुपी रह जाएगी। जब जो चाह रहे हो, वो बता पाना थोड़ा लज्जास्पद लगता है तो हम ऐसे जताते हैं कि जो हम चाह रहे हैं वो बात बताई ही नहीं जा सकती।
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Now, how does man relate with the world? How does man know what to do, how to approach, how to touch, how to live, how to eat, how to talk, how to connect? That, to me, is the essence of religion. Man’s relationship with himself and the world. That is religion, and that is also the essence of all organized religions.
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स्नेह, प्रेम, श्रद्धा, भक्ति समझाने के तरीके हैं। मन का मतलब होता है गति। या तो वो किसी दिशा में बढ़ता है, क्योंकि जो उसके सामने है वो उसे आकर्षक लग रहा है, या वो किसी दिशा से भागता है, क्योंकि जो उसके सामने है उससे उसे भय या विकर्षण हो रहा है। गति के यही दो कारण होते हैं — या तो राग या द्वेष, या तो आकर्षण या विकर्षण। तो विषय के आधार पर समझाने के लिए भेद किया जा सकता है, उसी प्रकार का एक भेद आपके द्वारा पढ़े गए साहित्य में उल्लिखित है।
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Spirituality is neither a tradition nor a culture. Spirituality is not at all about following something or somebody. When it is said that you must follow the Guru, the Guru is the Truth, not a person not a man. Spirituality would never say, “Follow the words of a man.” Spirituality says, “Let the mind follow the Center, the Truth or you may call it the Heart or God.”
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Any belief is stupid because all beliefs come from a lack of investigation, and a lack of investigation comes from deep fear and a feeling of insecurity. If you are insecure and afraid, then you will not dare to ask questions and investigate. And it is from that fear and insecurity that the concept of God has arisen. Now, God and reality are two different things. God and Truth are not the same thing. The mark of religiosity or true spirituality is an abiding faith in the truth.
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एक बार को ज़िंदगी में चोर आ रहा हो, लुटेरा आ रहा हो, भ्रष्टाचारी आ रहा हो तो मजबूरी में उसको स्वीकार कर लेना, हालत ऐसी बने तो। पर ज़िंदगी में अगर अंधविश्वासी आ रहा हो, पलटकर भागना। आपने कभी सोचा ये डर क्या है? ये अहंकार है, ये अज्ञान है जो मानता ही नहीं कि तुम पूरे तरीके से कंडीशन्ड (संस्कारित) हो।
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जो लड़की अपने प्रेमी से जाकर बोले कि ‘मेरे पिताजी तुम्हारी जाति को पसंद नहीं करते,’ वो लड़की क्या किसी की जीवनसाथी बनेगी? या फिर वो लड़का? शारीरिक और जन्मगत श्रेष्ठता एकदम व्यर्थ की बात है। यह कौन-सा प्यार है जहाँ समाज, वर्ग, जाति और परिवार बीच में आ जाएं? साथी चुनने से पहले बोध, गहराई और समझदारी की बातें करनी होती हैं। ज़िंदगी, आशिकी और रिश्ते इतनी सस्ती नहीं होते कि कहीं भी जाकर बंध जाओ।