प्रश्नकर्ता: नमस्कार सर! मेरा क्वेश्चन (प्रश्न) है मेरे सामाजिक जीवन से। सर! हमारे समाज में जैसे मैं ट्राइबल कम्यूनिटी (आदिवासी समुदाय) से आता हूँ, तो उसमें एक धारणा, एक मिथ (कल्पित कथा) है जो यह प्रचलित है सर! ये कि जो हमारे धार्मिक ग्रन्थों में जो हिंसा है जैसे— भगवान राम और रावण की लड़ाई और महिषासुर की लड़ाई।
तो उसमें यह माना जाता है कि यह जो लड़ाई है वो आर्य और अनार्य जाति के बीच की लड़ाई है। तो जिसके कारण हम जब कभी वेदान्त की बात करते हैं तो वो बोलते हैं कि ये कथा सब बनी बनाई काल्पनिक कथाएँ हैं जो कि एक जाति और दूसरी जाति की लड़ाई की कहानी है, उसको प्रचारित किया जा रहा है। तो सर! ये मेरा संशय है, कृपया इसका समाधान करें।
आचार्य प्रशांत: नहीं, आर्य-अनार्य की लड़ाई बतानी होती तो बता देते न कि आर्य और अनार्य की लड़ाई है, वो बताने में क्या समस्या थी? बता ही देते। ये लिखने में उन्हें कोई कष्ट हो जाता कि अनार्यों को मारा जा रहा है? वो ये थोड़ी कह रहे हैं कि अनार्यों को मारा जा रहा है। वो तो बता रहे हैं कि उनको मारा जा रहा है जिन्होंने साफ़-साफ़ अधर्म करा था। और क्या अधर्म करा था वो भी आपको लिखा हुआ मिल जाता है साफ़। या उनका अधर्म ये बताया गया कि वो अनार्य थे।
प्र: जी सर! वो लोग एससी (सिड्यूल कास्ट), एसटी (सिड्यूल ट्राइब) और ओबीसी (अदर बैकवर्ड कास्ट) को बोलते हैं कि ये अनार्य हैं।
आचार्य: हम सोच तो कुछ भी सकते हैं, पर रावण को अगर मारा गया तो रावण को क्या ये कहकर मारा गया कि तू अनार्य है इसलिए अब तेरा वध होगा। और रावण अनार्य था क्या? हमें तो ये पता है कि ब्राह्मण था, तो इसमें ये बात कहाँ से आ गयी कि आर्यों ने जो यहाँ पर बसने वाला मौलिक जन समुदाय था आर्य वर्ण-व्यवस्था से परे, उसका शोषण किया।
कंस क्या था? कंस किसी आदिवासी पृष्ठभूमि से आता था? या कंस भी उसी पृष्ठभूमि का था जिस पृष्ठभूमि के कृष्ण थे? बोलिए?
प्र: हाँ सर! सेम (समान) पृष्ठभूमि।
आचार्य: सेम। दुर्योधन क्या था? आदिवासी था या अर्जुन का ही भाई था?
प्र: अर्जुन का ही भाई था।
आचार्य: और वर्ण व्यवस्था की आप बात करो तो साधारण रूप, पारम्परिक रूप से वर्णों में जिसको उच्चतम माना गया है, रावण तो वहाँ से था। और अगर रावण वहाँ से था तो ये रावण के जितने भाई बन्धु थे, ये सब भी क्या रहे होंगे? रावण यदि ब्राह्मण है तो मेघनाद क्या हुआ?
प्र: वो भी ब्राह्मण।
आचार्य: तो कुम्भकर्ण क्या हुआ?
प्र: ब्राह्मण।
आचार्य: तो शास्त्र अगर यही दिखाना चाहते कि ये जितने तथाकथित नीचे के लोग हैं, इनको मारना है ऊँचे लोगों द्वारा, तो ब्राह्मणों की इतनी क्यों दुर्गति करायी जाती रामायण में। पूरी रामायण में लंका में पिटाई लगातार किसकी हो रही है? ब्राह्मणों की ही तो हो रही है पिटाई, तो इसमें ये बात कहाँ से आ गयी कि ये सब तो कहानियाँ अनार्यों को अपमानित करने के लिए और छोटा बताने के लिए की गयी हैं। कौनसा अनार्य? कौनसा अनार्य?
और अगर अनार्य हैं तो वो शिव भक्त कहाँ से हो गये? ये कैसी बातें हैं? कुछ नहीं है, बात बस इतनी सी है, शास्त्रों के पास न जाने के लिए कोई बहाना चाहिए क्योंकि शास्त्र अहंकार को तोड़ते हैं, शास्त्र अहंकार को तोड़ते हैं। और कोई बात नहीं है और नहीं कोई बात है। तो उसके लिए हम कहीं-न-कहीं से कोई-न-कोई बात निकाल लेंगे।
वर्णों में राम ने सैकड़ों ऐसे पापियों का वध किया हो जो ऊँचे वर्ण के थे तो उसकी हम कोई चर्चा नहीं करेंगे। हम ये नहीं कहेंगे कि रामायण कितना क्रान्तिकारी दस्तावेज़ है जिसमें सारे दुष्ट ब्राह्मण हैं और वहाँ ये नहीं देखा जा रहा कि ये ब्राह्मण हैं, तो इनके साथ कोई रियायत होगी।
ब्राह्मण होगा या कुछ होगा, तू मरेगा, अधर्मी है तो तू मरेगा। पर इस दृष्टि से रामायण को कभी नहीं देखा जाता। महाभारत को भी ऐसे नहीं देखते कि मेरे घर का हो चाहे राजवंशी हो तू लेकिन मरेगा अगर अधर्म कर रहा है, ऐसे भी नहीं देखते।
उसमें ये जोड़ देते हैं कि नहीं, ये तो देखिए अनार्यों का दमन किया गया है। अरे! बाली को मारा तो राजा कौन बना? राम ख़ुद बने थे? जिसको मारा उसी का भाई तो बना था, तो उसमें आर्य-अनार्य की बात कहाँ से आ गयी? ये एक घर का एक था पहले राजा, उसी घर का दूसरा हो गया राजा। किष्किन्धा हो चाहे लंका हो, दोनों जगह यही तो घटना घटी थी न। बालि गया तो कौन आया?
श्रोता: सुग्रीव।
आचार्य: और रावण गया तो कौन आया?
श्रोता: विभीषण।
आचार्य: तो इसमें आर्य और अनार्य का क्या मामला है फिर? हाँ, एक घटना मिल गयी है वो भी जो सिर्फ़ ‘वाल्मीकि रामायण’ में मिलती है – ‘शम्बूक वध’। तो उसको लोगों ने पकड़ लिया है।
मैं कहता हूँ, मान लीजिए वैसा कुछ हुआ भी तो आपको एक वो बात याद रखनी है या ये याद रखना है कि राम ने जिन हज़ारों लोगों को मारा उनमें उन्होंने कभी नहीं कोई भेदभाव किया वर्णगत आधार पर। और अवतार हैं राम, ब्रह्म तो हैं नहीं। ब्रह्म एकमात्र होता है जो निर्दोष होता है। अगर आप निर्गुण नहीं हैं तो निर्दोष नहीं हो सकते। और जो अवतारी है वो निर्गुण तो हो नहीं सकता वो तो सगुण है। जो सगुण है वो सदोष भी होगा और दोष है तो ग़लती कर बैठा।
रावण को मारा, उसकी पूरी आततायी सेना को मारा, इस बात का कोई श्रेय नहीं राम को लेकिन शम्बूक वध के लिए जितनी निन्दा की जा सकती है उससे बढ़-बढ़कर निन्दा हो रही है। उसको आप क्षमा क्यों नहीं कर सकते? हालाँकि वही शम्बूक वध आपको फिर तुलसी की रामचरितमानस में मिलता भी नहीं है लेकिन फिर भी आप उसे पकड़कर बैठ गये हैं और फुग्गा फूलता ही जा रहा है, फूलता ही जा रहा है।
दीवाली नहीं मनाएँगे क्योंकि राम तो दलित विरोधी थे, कैसे? कैसे? दलितों को सबसे ज़्यादा समस्या ब्राह्मणों से है और ब्राह्मणों में जो परम बलशाली और ज्ञानी दोनों था उसको किसने मारा? तो राम तो दलितों के सर्वोच्च पूज्य होने चाहिए न? इसी नाते उनको पूज लो भाई कि ब्राह्मणों को काटने वाला कौन? राम। तो राम फिर हमारे नेता हुए। इसी नाते राम हमारे नेता हुए कि जो ब्राह्मणों में सबसे पुरोधा था उसको काटा था राम ने। इसी नाते पूज लो राम को।
जहाँ तक आदिवासियों और जनजातियों की बात है, अब इस बात को ध्यान से सुनिए— उन्होंने तो राम को जितना प्यार किया उतना प्यार तो शायद अयोध्यावासी न कर पाएँ हों। आपको क्या लग रहा है कि वो जो पूरी सेना बनायी थी राम ने वो आर्यों की सेना थी? वो किनकी सेना थी? वो कौन लोग थे? रावण जैसी सशस्त्र, सुसज्जित, संगठित सेना किसी की नहीं थी उस समय में।
अगर हम मान लें कि वो जो इतिहास है, जो महाकाव्य है, एपिक (महाकाव्य, एक ऐसा काव्य जिसमें वीरों का वर्णन किया गया हो) है वो हिस्ट्री (इतिहास) नहीं है ठीक है न। शास्त्रों में जब हम कहते हैं— श्रुति, स्मृति, पुराण, इतिहास, तो इतिहास का अर्थ हिस्ट्री नहीं होता। इतिहास का अर्थ होता है एपिक (महाकाव्य)। वो एक महाकाव्य है। हम सोचते हैं, हिन्दी में इतिहास माने हिस्ट्री होता है, तो जब हम कहते हैं कि रामायण, महाभारत इतिहास हैं तो वो भी हिस्टॉरिकल (ऐतिहासिक) होंगे, वो ऐतिहासिक नहीं हैं।
फिर से समझिए, इतिहास माने हिस्ट्री नहीं होता, इतिहास माने एपिक (महाकाव्य) होता है शास्त्रीय भाषा में। हाँ! सड़क की भाषा में इतिहास माने हिस्ट्री होता है। पर हम यहाँ पर सड़क की बात तो नहीं कर रहे, हम तो शास्त्र की बात कर रहे हैं। है न! लेकिन कुछ तो ऐतिहासिक आधार होता है महाकाव्यों का भी।
ऐसा नहीं है कि राम कोई काल्पनिक चरित्र हैं और रावण कोई काल्पनिक चरित्र है या कृष्ण और अर्जुन काल्पनिक हैं। वो काल्पनिक नहीं हैं, लेकिन आपके सामने जो राम लाए गये हैं वो वाल्मीकि और तुलसीदास द्वारा लाए गये हैं और आपके सामने जो कृष्ण, अर्जुन लाए गये हैं वो वेदव्यास द्वारा लाए गये हैं।
समझिएगा बात को, राम ने स्वयं रामायण नहीं बोली है, न उनकी कोई रिकॉर्डिंग (अभिलेखन) मौजूद है। आपको जो पता चल रहा है वो राम का चरित्र तो होगा ही, साथ-ही-साथ वो वाल्मीकि का और तुलसीदास का वृत्तान्त है। और इसीलिए वाल्मीकि की बात में और तुलसीदास की बात में भी आपको भेद मिलता है।
और आपको पता है? दर्जनों अलग-अलग रामायण हैं और भारत भर में ही नहीं हैं। पहली बात तो भारत में ही बहुत अलग-अलग हैं। उत्तर भारत में बहुत सारी अलग-अलग हैं, फिर दक्षिण भारत में अलग हैं फिर दक्षिण पूर्व एशिया में अलग-अलग रामायण हैं। इनमें सबमें इतना अलग-अलग कैसे वर्णन आ जाता है राम, सीता, रावण का? राम, सीता, रावण तो एक थे।
आप तक जो पहुँच रही है वो बात राम, सीता, रावण की बाद में है, लेखक की और कवि की पहले है। वो लेखक बता रहा है अपने हिसाब से। इसीलिए किसी लेखक ने किसी हिसाब से बताया, किसी लेखक ने किसी हिसाब से बताया। ये आपको समझ आ रही है बात? और जो बात आपको बताई गयी है वो बात आपको कुछ सिखाने के लिए बतायी गयी है, वो बात सिखाने के लिए बतायी गयी है। वो बात इसलिए नहीं बतायी गयी है कि आपको पता चले कि इतिहास में किस तरीक़े से उत्तर ने दक्षिण को जीता या उत्तर ने दक्षिण का दमन किया या आर्यों ने जनजातियों को किस तरीक़े से परास्त करके उन पर शासन करा।
तो हम बात कर रहे थे कि राम की सेना में कौन था। बताइए कौन था? हम तो कह देते हैं ऐसे ही बिना सोचे-समझे, बिना विचार करे, हम कह देते हैं, ‘वानरों की सेना थी जी।’ या जामवंत भी अग्रणी सेनापति थे तो रीक्ष थे बहुत सारे और अन्य जानवर थे और पुल बनाने में गिलहरी योगदान दे रही थी।
अरे भाई! उसमें कुछ इतिहास भी है न, कुछ तो काव्य है पर कुछ तो इतिहास भी है न उसमें। कुछ तो उसमें तथ्य भी है न, तो क्या ऐसा तथ्य हो सकता है कि बन्दरों ने और रीक्षों ने लड़ाई करी होगी? क्या ये तथ्य हो सकता है कि कोई गिलहरी वास्तव में रेत का कण ला रही थी? तथ्य क्या रहा होगा? तथ्य ये है कि ये सब लोग वहीं की जनजातीय आबादी के थे। तो राम तो आदिवासियों से बहुत प्रेम पाये हुए हैं।
राम और हनुमान जैसा प्रेम किसी और का चित्रित हुआ आज तक? कि हनुमान ऐसे छाती फाड़ते हैं और भीतर छवि राम की है। अब आप छाती फाड़ोगे तो छवि नहीं आएगी, पर वो एक सशक्त प्रतीक है। उसका अर्थ समझिए, क्या अर्थ है उसका? क्या अर्थ है? कि हनुमान के मन में राम के लिए अथाह प्रेम है, अथाह प्रेम। और वो जितने सब सेना में थे, वो सब वहीं पर रहने वाले साधारण आदिवासी ही थे।
और ये राम का ज़बरदस्त प्रबन्धन था, उनकी प्रतिभा थी और उनकी असाधारण क्षमता थी कि उन्होंने इन लोगों को भी संगठित करके रावण की सेना से लोहा भी ले लिया और परास्त भी कर दिया। राम तो हमेशा गले लगते दिखाई दिए जाते हैं न। जो भी सब अवतारों में पतित पावन किसको बोलते हैं? पतित पावन किसको बोलते हैं? कृष्ण को बोलते हैं? पतित पावन श्रीराम को बोलते हैं, क्यों?
जो सबसे नीचे का है उसे उठाकर वो गले लगाते हैं। जो पत्थर की हो गयी है उसको स्पर्श कर देते हैं। शबरी हो, कि केवट हो, अहिल्या हो, ये सारे दृष्टान्त क्या बताते हैं? पतित पावन हैं राम। और हम कह दें कि नहीं, वो तो आर्यों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे और जितने अनार्य थे और उनको सबको मार रहे थे, ये कैसी भद्दी बात है? और फिर उसको दोहराऊँगा, ये महाकाव्य है, ये इतिहास लिखे गए हैं कि आप इनसे कुछ सीखें। जो सीखने वाली बात है उस पर ध्यान दीजिए।
“सार सार को गहि रहे थोथा देय उड़ाय।”
बाकी बातों पर क्यों ध्यान देना? सादगी, समर्पण, सरलता, त्याग, ये सीखिए न श्रीराम से। और जो बातें आपको नहीं रुचतीं, उनकी उपेक्षा कर दीजिए भाई, कौन आपसे ज़बरदस्ती कर सकता है? लेकिन जो चीज़ जहाँ से सीखी जा सकती है इंसान सीखे, यही बेहतर है।