इस्लाम में सुधार कैसे हो? धर्म में कट्टरता के नतीजे क्या होते हैं?

Acharya Prashant

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इस्लाम में सुधार कैसे हो? धर्म में कट्टरता के नतीजे क्या होते हैं?
ये साइकिल तो जब भी चलेगा तो वो दुख का ही होता है जो भवचक्र होता है ना तो ज्ञानियों ने कहा कि उसमें तो दुख ही है। हमें तो कुछ ऐसा चाहिए कि वह चक्र टूट जाए। अगर ऐसा होना है कि आप तथाकथित रूप से आधुनिक और लिबरल हो जाओगे, बिना जाने स्वयं को तो उस लिबरलिज्म के खिलाफ ऐसा विद्रोह उठाएगा कि जल्दी ही फिर आपको धार्मिक होना पड़ेगा। और बिना स्वयं को जाने आप यह जो धार्मिक स्ट्रक्चर लेकर के आओगे, यह भी अंधा होगा। आत्मज्ञान के बिना में एक लिबरल स्ट्रक्चर भी अंधा होता है। और आत्मज्ञान के अभाव में एक धार्मिक स्ट्रक्चर भी अंधा होता है। यह सारांश प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के स्वयंसेवकों द्वारा बनाया गया है

प्रश्नकर्ता: नमस्कार आचार्य जी। बात थी बेसिकली अबाउट जिहाद एंड जिहाद के बारे में जितना सबको जो पता होता है मीडिया के थ्रू वो ये होता है कि एक्सटर्नल स्ट्रगल। जो जिहाद नफ्स है वो कुरान में ये लिखा है जिहादु नफ्स इस द अफजल जिहाद दैट्स माने इंटरनल स्ट्रगल। ये इतना डिफिकल्ट समझने के लिए भी और ट्रांसलेट करने के लिए भी इतना क्यों हो गया कि बाहर की लड़ाई और बाहर का जिहाद आसान हो गया और ज्यादा सर चढ़ के बोलता है और जो इंटरनल जिसके ऊपर इतना स्ट्रेस दिया गया है हमेशा से वही चीज को इतना नीचे दबा दिया गया जबकि उससे तो हमें सारे आंसर्स सारे खुलासे उसी से हमारे होने वाले हैं। तो यह शिफ्ट कैसा होता है और क्यों होता है और इसका हम किस तरीके से इसके ऊपर सर हम चेंज ला सकते हैं?

हम जो भी हैं जैसे भी हैं वो हमारी गतिविधि के हर क्षेत्र में दिखाई देगा ना। तो हम धर्म का क्षेत्र कह देते हैं ऊंचे से ऊंचा है। फिर व्यापार का क्षेत्र कह देते हैं कि बाहर की दिशा देखता है। फिर एक क्षेत्र होता है हमारी व्यक्तिगत गतिविधियों का जिसको हम कहते हैं साधारण जिंदगी। लेकिन हम जैसे धर्म के क्षेत्र में होते हैं, वैसे ही जिंदगी के सभी छोटे-छोटे छोटे-छोटे क्षेत्रों में होते हैं। तो, हम कहीं भी क्या कर रहे हैं, उससे यह भी पता चल जाएगा कि धर्म में भी जो गड़बड़ हुई है, वह क्यों हुई।

आप ऑफिस में होते हैं। आपको एक प्रेजेंटेशन बनानी थी, एक रिपोर्ट बनानी थी। वो आपने सब गड़बड़ कर दी। उतने में बेचारा कोई ट्रेनी या कोई प्यून कोई आपका मातहत सबोर्डिनेट घुसता है आप उसको जोर से डांट देते हैं। हुआ है? अरे जिन्होंने डांट लगाई नहीं है उन्होंने खाई होगी घरों में होता है आप खाना बना रहे हैं खाना आप कुछ और कहीं दिमाग चला गया खाना जला दिया खराब कर दिया कुछ कर दिया। तभी वह छोटा आ गया। एक चांटा पटाक से उसको पड़ा। वो कह रहा है मुझे क्यों तोड़ा? कह रहे जा सोच कि तूने क्या किया कि तुझे तोड़ा गया। और अगर तू नहीं बता पाया सोच के और तोड़ा जाएगा। ये सब क्या है?

हम बने ऐसे हैं कि हमारे लिए भीतर की गलती को देखना और भीतर जो गलत है उसको सजा देना बड़ा मुश्किल है। तो गलती भीतर की होती है। सजा बाहर किसी बाहर वाले को दे देते हैं। अगर समझाने वाले कह रहे हैं कि तुम्हारे भीतर जो बैठा है नफ्स उसको तोड़ना है। यह तो बड़ी महंगी बात लगती है। इससे अच्छा क्या है? इसको क्यों ना तोड़ दूं आज? यही है। काफ़िर। और उसको तोड़ने से बात बनेगी नहीं। क्योंकि भीतर जो सुराख है, भीतर जो गंदगी है, वह तो जस की तस है। तो फिर एक से काम भी नहीं चलता। यह जितने हैं सबका सर उड़ा दो। सबका सर उड़ाने के बाद भी क्या मिलेगा? कुछ मिलता है?

मुगलों में सबसे जो मजहबी बादशाह हुआ वो कौन था?

श्रोता: औरंगजेब।

आचार्य प्रशांत: औरंगजेब। और सबसे दुखी जो मरा वो वही कौन था?

श्रोता: औरंगजेब।

आचार्य प्रशांत: काम उसने सारे वो करे। जिससे यह साबित हो सके कि वह बिल्कुल दीन का बंदा है। शाही खजाने से एक रुपया भी नहीं लेता था। अपना काम चलाने के लिए वह टोपियां तैयार करता था और वो टोपियां बेची जाए। उन टोपियों से पैसा आए तो उससे उसका सब व्यक्तिगत खाना पीना और जो भी उसका अपना खर्चा है वह चलता था। अच्छी लंबी जिंदगी जी उसने और उससे ज्यादा दुखी जिंदगी किसी ने नहीं जी। पता नहीं कितनों को उसने काफिर बता के कितनों से मेरा आशय है सैकड़ों हजारों में काफिर बता के उसने मार दिया बस एक जिसको मारना था उसको उसने कभी नहीं मारा किसको मारना था खुद को खुद को नहीं मारा खुद को नहीं मारा बड़ा लंबा जिया और ऐसी बेजारी में मरा यह कोई मिसाल नहीं है।

दुनिया भर में उसने जितना उल्टा पुल्टा हो सकता था सब करा, वो सब आसान लगता गया और मौत ऐसी हुई औरंगजेब की कि औरंगजेब नहीं पूरी सल्तनत ही समाप्त हो गई। उसके बाद भी आए दो चार पर उनका कोई वजूद नहीं था पहले उनको मराठों ने धकिया दिया उसके बाद अंग्रेजी ही आ गए खत्म सब।

प्रश्नकर्ता: वैसे वो लोग कहते हैं कि औरंगजेब हैड टू डू दैट बिकॉज़ उससे पहले जो मुगल एपरर्स थे वो काफी ज्यादा ड्रग्स और अल्कोहल में मुब्तला थे। तो उन चीजों के ऊपर और ये जो आप अफगानिस्तान और ये सब जगहों पे भी देखते हैं उनके लिए जो बाहरी डिस्टरबेंसेस हो जाते हैं जिसकी वजह से इकोनॉमिक और सोशल उथलपुथल हो जाता है तो उनको यह लगता है कि रिलीजियस एंड स्पेशली एक्सट्रीम रिलीजियस कंट्रोल बिकम्स इंपेडेंट फॉर देम टू अप्लाई। ये वो लोग कहते हैं।

आचार्य प्रशांत: दीन की बात करते हैं ईमान की धर्म की तो उसकी दिशा तो सबसे पहले भीतरी होती है ना। दूसरों को काफिर कह देना, यह कर देना, वो कर देना, इत को पकड़ लिया, उसको मार दिया। जिनको काफिर कह दिया, उन पे जजिया लगा दिया। यह सब कर दिया। यह यह धर्म की दिशा नहीं है। पहली बात तो यह है कि आप अपनी भीतरी ही सफाई करें कि मेरे भीतर कौन है जो मुझे यह सब करने के लिए प्रेरित कर रहा है। अब यह आपने बड़ा बड़ा रोचक मुद्दा उठाया कि औरंगजेब से पहले वाले कैसे थे? औरंगजेब से पहले वाले कैसे थे? एक ऐसा था जो बड़ा भाई था उसका सर ही काट दिया था। और जिसका सर काटा था वह कौन था? जो ना होता तो उपनिषद और बहुत देर बाद पहुंचते यूरोप। उसने फारसी में करवाया उनका अनुवाद तर्जुमा वो वहां से आगे बढ़ के फिर यूरोप तक पहुंच गया नहीं तो 100- 200 साल और लग जाते वहां पहुंचने में। वो दारा शिकोह का सर काटा और ले जाकर के रख दिया किसके सामने? किसके सामने?

श्रोता: शाहजहां के सामने

आचार्य प्रशांत: और शाहजहां को उठा के कहां कैद कर दिया? आठ साल तक वो वहां पर… यह बाप है। तो पहले के जो मुगल हैं उन्होंने कम से कम वो तो नहीं करा था ना जो औरंगजेब ने किया। और यह सब किसके नाम पर करा? धर्म के नाम पर करा। धर्म के साथ यह बड़ी भारी समस्या है।

कई बार जो लोग अपने आप को अधार्मिक बोलते हैं वह बेहतर होते हैं उनसे जो अपने आप को धार्मिक बोलते हैं। जो अधार्मिक होता है या कि जो अपने आप को नास्तिक वगैरह बोल देते हैं। उनमें कम से कम एक साधारण स्तर की सामाजिक नैतिकता तो होती है। इतना तो होता है ना? जो अपने आप को धार्मिक बोलना शुरू कर देता है। अगर उसका धर्म सही है, साफ है तब तो वह बिल्कुल आसमानी रोशनी बन जाएगा। नहीं तो वह फिर साधारण मोरल आदमी से भी नीचे गिर जाता है।

और फिर औरंगजेब जैसे जो होते हैं उनका खामियाजा पूरे पूरे देश को भुगतना पड़ता है। देखिए मुगलों को आप अच्छा बोल सकते हैं, बुरा बोल सकते हैं। कुछ मामले में ऐसा वैसा एक उसमें संतुलित दृष्टि कोण होना चाहिए। लेकिन जो भी है औरंगजेब के समय तक भी भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था। या आप ऐसा कह सकते हैं कि औरंगजेब को जो राज्य विरासत में मिला था वो लगभग चीन के बराबर की अर्थव्यवस्था था दुनिया में। आकार में साइज में जीडीपी में।

औरंगजेब ने जो कुछ करा उसके बाद जो हाल हुआ है भारत का जो लोग आए और भारत पर छा गए ये हाल हुआ कि जब वो छोड़कर गए हैं तो भारत दुनिया के सबसे गरीब देशों में था। गलत दिशा जब ले लेता है धर्म तो ऐसी व्यापक तबाही करता है जिसकी कोई इंतहा नहीं होती। लगभग यही बात मैं आपको तीन और मुल्कों के नाम बताए देता हूं जिन पर लागू होती है। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान। यह आपकी कल की एक्टिविटी भी हो सकती है।

1970 तक यह देश कैसे हुआ करते थे इसको देखिएगा और उसके बाद यह देश धार्मिक हो गए। उसके बाद यह देश इस्लामी हो गए। अब धार्मिक होना अपने आप में बहुत खूबसूरत बात भी हो सकती है। लेकिन जब धर्म का स्वरूप बिगड़ जाए तो धार्मिक होना अधार्मिक होने से कहीं बदतर बात हो जाती है। काबुल की यूनिवर्सिटी में महिलाएं प्रोफेसर हुआ करती थी और हम 200 साल पहले की बात नहीं कर रहे। हम अभी कुछ दशक पहले की बात कर रहे हैं। जहां आज लड़कियां स्कूल नहीं जा सकती। वहां महिलाएं यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर हुआ करती थी। उसके बाद अफगानिस्तान इस्लामिक हो गया।

प्रश्नकर्ता: ये सब सोशल रिफॉर्म के नाम पर हो रहा है।

आचार्य प्रशांत: काबुल को और कराची को दोनों को पेरिस ऑफ द ईस्ट और वेनिस ऑफ ईस्ट बोला जाता था। उसके बाद पाकिस्तान में जनरल जियाउल हक आ गए। और यही बात ईरान पर लागू होती है। ईरान जैसा खुला देश एशिया में मिलना मुश्किल था। उसके बाद वहां इस्लामिक क्रांति हो गई। तो धर्म दुधारी तलवार है। अगर सही से समझा गया ऊंचाइयों पर ले जाएगा और नहीं समझा गया तो ऐसा गिराएगा ऐसा गिराएगा कि उठना असंभव हो जाएगा। वही खतरा आज भारत के ऊपर भी है। बगल में बांग्लादेश में हो ही रहा है।

प्रश्नकर्ता: सोशल और पॉलिटिकल धर्म के बारे में जब बताते हैं और एक वास्तविक धर्म के बारे में बताते हैं। तो वो जो सारी जो पॉलिटिकल और सोशल धर्म मैं देखती हूं जो आपने एग्जांपल दिए पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान के तो जब उनका जो रिलेशन है धर्म से वो बाहरी हो गया है। एवरीथिंग इस गॉट टू डू विद आउटर अपीयरेंस आउटर परफॉर्मेंस आपकी माने मस्जिद जाना या बाहर बाहरी लोगों के साथ कम्युनिटी एक बनाना अपने ही अपने लोग अपने अपने लोगों में बनाए रखना जबकि अपने ही लोगों में इतनी ज्यादा यूनिटी नहीं है एक्चुअली।

आचार्य प्रशांत: बात आपस की देखिए देखिए बात आपस की यूनिटी की भी नहीं है। वो बाद में आता है कि मेरा ये सब मेरे हम मजहबी लोग हैं। इनसे क्या रिश्ता है? पहली बात यह आती है कि मेरा मुझसे क्या रिश्ता है? मैं स्पोक्सपर्सन बनकर निकल पड़ा हूं धर्म का। मैं धर्म को समझता भी हूं क्या? भारत में ही इतने सब हैं, ये सब धर्मुरु बन के घूम रहे हैं। कोई इनसे सवाल करने वाला नहीं है कि हम कैसे माने कि तुम धर्म को समझते भी हो? तुम कैसे प्रतिनिधि हो गए धर्म के? तुम कैसे खड़े होकर कह रहे हो कि हम बताएंगे सनातन या हम बताएंगे इस्लाम। तुम हो कौन?

तो आप पूछेंगे ऐसा सवाल तो अधिक से अधिक अपनी परंपरा बता देंगे कि हम फलानी परंपरा से आते हैं। हम फलाने संप्रदाय से आते हैं। यही हमारी पात्रता है। धर्म में परंपरा पात्रता नहीं होती है। धर्म में हृदय पात्रता होता है। धर्म कोई पुश्तैनी दुकान है क्या कि पहले मेरे बाप की थी तो अब मेरी है। मेरी परंपरा मेरा कुल मेरी पात्रता है। धर्म ऐसे नहीं होता। और मैं कह रहा था यही चीज आप बांग्लादेश में भी होते देख रहे हैं। यह जो वरुण उन्होंने जाकर मुजीब उर रहमान का घर जलाया है अभी यह बड़ी सांकेतिक घटना है। यह सिर्फ एक घर को नहीं जलाया है। वो अपने अतीत के एक बड़े महत्वपूर्ण हिस्से को जला रहे हैं। वो उसको बिल्कुल डिसओन कर देना चाहते हैं कि यह तो कभी था ही नहीं। वही काम जो हम कह रहे हैं पाकिस्तान, ईरान, अफगानिस्तान ने किया।

प्रश्नकर्ता: तो फिर आचार्य जी आपको क्या लगता है कि बिकॉज़ बहुत चीजें मुझे साइक्लिक दिखती है। जब आप हिस्ट्री देखते हैं साइक्लिक दिखती है आपको कि ये ऐसा हो चुका है पहले दे वर एक्सट्रीमिस्ट पहले भी फिर उनका एक रेवोल्यूशन आया जब लोग जब आम जनता उठी जैसे ईरान में आप देख रहे हैं कि आम जनता उठती है एंड दे प्रोटेस्ट अगेंस्ट द गवर्नमेंट तो यह आपको लगता है कि ये चीजों का भी एक साइक्लिक वापस आएगा व्हेन पीपल विल नॉट…

आचार्य प्रशांत: ये साइकिल तो जब भी चलेगा तो वो दुख का ही होता है जो भवचक्र होता है ना तो ज्ञानियों ने कहा कि उसमें तो दुख ही है। हमें तो कुछ ऐसा चाहिए कि वह चक्र टूट जाए। अगर ऐसा होना है कि आप तथाकथित रूप से आधुनिक और लिबरल हो जाओगे, बिना जाने स्वयं को तो उस लिबरलिज्म के खिलाफ ऐसा विद्रोह उठाएगा कि जल्दी ही फिर आपको धार्मिक होना पड़ेगा। एक रिलीजियस रिवॉल्यूशन होगा और वह जो सारा लिबरल सिस्टम था उसको धराशाई कर देगा। और बिना स्वयं को जाने आप यह जो धार्मिक स्ट्रक्चर लेकर के आओगे, यह भी अंधा होगा। आत्मज्ञान के बिना में एक लिबरल स्ट्रक्चर भी अंधा होता है। और आत्मज्ञान के अभाव में एक धार्मिक स्ट्रक्चर भी अंधा होता है। तो जब ये धार्मिक स्ट्रक्चर अंधा है तो यह जुल्म करेगा और इसमें कई तरह की कमियां रहेंगी, तो जनता आ करके फिर इसके विरुद्ध भी क्रांति करके इसको गिरा देगी और फिर क्या वापस आ जाएगा? एक लिबरल स्ट्रक्चर और लिबरल स्ट्रक्चर भी अंधा होगा क्योंकि उसमें भी आत्मज्ञान नहीं है। तो यह चक्र यह चक्र दुख का है। यह तोड़ना होगा।

वास्तविक धर्म इस चक्र को तोड़ने में है। वास्तविक धर्म इस चक्र के भीतर नहीं है। इसीलिए मैं बार-बार.....

प्रश्नकर्ता: पहले ये कोई आप एग्जांपल दे सकते हैं कि जिसमें ये जो आप वास्तविक धर्म का एक पूरा सोसाइटी रही है। ये कभी एक साथ कभी रही है। मैं पूरे वर्ल्ड की बात नहीं कर रही हूं। जस्ट इंडिया की बात करते हैं। इंडियन सबक्टिनेंट

आचार्य प्रशांत: बड़ा मुश्किल है उदाहरण देना। बल्कि जो उदाहरण मौजूद है वो आपको थोड़ा चौंका देगा। आप कहोगे ये कैसा उदाहरण दे रहे हैं? क्योंकि वो उदाहरण बिल्कुल काउंटर इंट्यूटिव है। चाइना आज का चीन।

प्रश्नकर्ता: अच्छा। आज का।

आचार्य प्रशांत: आज का चीन।

प्रश्नकर्ता: वाओ। नेवर थॉट के ये होगा।

आचार्य प्रशांत: कोई सोचेगा भी नहीं ना क्योंकि चीन का संबंध हम धर्म से कभी लगाते ही नहीं। चीन में तो आधिकारिक तौर पर धर्म लगभग प्रतिबंधित है। आप वहां ओपनली अपना रिलीजन वगैरह लेकर के चलोगे तो सरकार आपको पसंद नहीं करेगी।

पर सच्चे अर्थों में देखिए तो बहुत सारे ऐसे काम अरे नहीं नहीं मैं कोई नहीं कह रहा हूं कि चीन बिल्कुल इस समय एपिटमी है ट्रू रिलीजसिटी। ये नहीं कह रहा हूं पर बहुत सारे ऐसे काम जो काफी हद तक सचमुच धार्मिक माने जाने चाहिए वो तो चीन में ही हो रहे हैं और चीन में इसलिए हो रहे हैं क्योंकि चीन ने नकली धर्म को प्रतिबंधित कर दिया है। वास्तविक धर्म आता ही तभी है जब नकली धर्म पहले तुम चुप करो यह लोक धर्म नहीं चलेगा।

ये आपकी दिल्ली है उधर बीजिंग है। बीजिंग जितना आज दिल्ली प्रदूषित था इतना ही बीजिंग प्रदूषित होता था। उन्होंने सब ठीक कर दिया। उन्होंने जितने भी कोल फायर्ड प्लांट्स थे वो बाहर निकाल दिए या बंद कर दिए। सारा डीजल बंद कर दिया। सारा जो पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम था वो ईवी पे शिफ्ट कर दिया। जितने तरीके के काम कर रहे थे उन्होंने कर डाले और 5 साल के भीतर उन्होंने बीजिंग बिल्कुल साफ कर दिया।

अब प्रकृति का नाश करना धार्मिक काम है या अधार्मिक? अधार्मिक आप मानते हो तो प्रकृति की सहायता करना फिर क्या हुआ? तो चीन ने तो धार्मिक ही तो काम करा है ना। इसके विपरीत उदाहरण बहुत दिए जा सकते हैं। आप बहुत तरीकों सिद्ध कर सकते हो कि चीन में बहुत काम अधर्म के हो रहे हैं। वो मैं मान लूंगा। पर एक एक मोटे तौर पर एक उदाहरण दे रहा हूं मैं चीन का।

जहां जो कंटेन्यूअस साइकिल होता है ना एक तरफ आप मान लीजिए कोई इंटेलेक्चुअल रिवॉल्यूशन कर रहे हो और आप कह रहे हो कि ये पुरानी इललिबरल वैल्यू्यूज नहीं चलेंगी हम फ्रेंच रिवॉल्यूशन जैसा कुछ कर रहे हैं और लिबर्टी इक्वलिटी फ्रेटरनिटी लेकर के आ रहे हैं। एक और इस तरह की आप क्रांतियां कर रहे हो। एक और ईरानियन इस्लामिक रिवॉल्यूशन आप कर रहे हो जहां आप कह रहे हो कि ये सब नहीं चलेगा और यहां पर अब पूरे तरीके से शरिया के हिसाब से काम होगा। वो कर रहे हो। ये तो चक्र चलता ही रहेगा ना ऐसे-ऐसे। से चीन में थोड़ी सी आहट आ रही है कि यह चक्र तोड़ दिया गया है।

हालांकि जिन्होंने तोड़ा है कोई ज्ञानी वगैरह नहीं है। बहुत हद तक संयोग की बात हो सकती है कि वहां ये चक्र टूटा है पर टूटा तो है। और यही कारण है कि वो सिर्फ आर्थिक सामरिक दृष्टि से आगे नहीं बढ़ रहे हैं। बहुत सारे ऐसे काम जो सचमुच धरती को बचाने वाले हैं। पिछले पांच सात सालों में हम देख रहे हैं कि चीन उनमें भी अग्रणी है। नदियां चीन अपनी साफ कर ले रहा है। क्लाइमेट गोल्स में चीन बहुत आगे नहीं है पर दुनिया के बाकी देशों से तो बेहतर है थोड़ा। बहुत और मामले हैं जिनमें चीन गड़बड़ है। उदाहरण के लिए मास का जो का जो कंसमशन है वो चीन में बढ़ता ही जा रहा है। हम नहीं कह रहे हैं कि चीन एक आदर्श राष्ट्र है।

प्रश्नकर्ता: बट लोगों की सफरिंग कम है बनिस्बत। बाकी सब देशों के

आचार्य प्रशांत: सफरिंग भी कम है और लोगों को नालायकी में पढ़ने नहीं दिया जाता। उदाहरण के लिए छोटे बच्चों को जो वहां शिक्षा दी जा रही है उसमें जो कुछ मूल्य उनको दिए जाते हैं वो बहुत अच्छे मूल्य हैं। आप उनको लगभग धार्मिक मूल्य कह सकते हो। किस तरीके से अगर काम सही है और आपको आपके शिक्षक ने दे दिया है तो आपको उस पर घंटों तक ध्यानस्थ रहना है। चीन की शिक्षा में ये बड़ा एक केंद्रीय मूल्य है। है।

सस्ते मनोरंजन को चीन में सम्मान नहीं मिलता है। भारत में मिलता है। कोई छोटा-मोटा स्कूल में भी फंक्शन हो जाए तो उसमें आप देखिए लड़के लड़कियों को छोटे-छोटे बच्चे होते हैं उनको घाघरा चोली और ये सब करके सस्ते गानों पे नचाते हैं। ये आपको चीन में नहीं मिलेगा। अब यह करना अधार्मिक है ना। छोटे बच्चों को इस तरह नचाना अधार्मिक है ना? और अगर यह अधार्मिक है तो चीन जो कर रहा है वह क्या हुआ? फिर कम से कम थोड़ा बहुत तो धार्मिक हुआ।

प्रश्नकर्ता: आई थिंक दे लर्न देयर लेसन वो याद है जब वो लोग अपना बहुत ज्यादा जब इंडिया से ही बहुत ज्यादा हीरोइन या ओपीएम जब बहुत ज्यादा सप्लाई होता था तो दे सॉ दैट और वो लोग ने उस चीज के ऊपर रियली स्ट्रगल किया और…..

आचार्य प्रशांत: बेइज्जती जबरदस्त हुई थी। एक समय था जब चीन की जो पूरी एक पीढ़ी थी उसको जबरदस्ती ओपीएम की लत लगा दी गई थी सिर्फ इसलिए ताकि ये ओपीएम है, यह बिकती रहे। पैदा कहां की जाती थी? भारत में। बेची कहां जाती थी? वो बिकती रहे तो इसके लिए चीन की पूरी एक पीढ़ी को नशेबाज बना दिया गया था। तो ये बड़ा ह्यूमिलिएशन रहा है जो उस देश ने सहा है।

उसके बाद जापानियों ने आकर के बुरी तरह तोड़ा। हमें तो बस जो द्वितीय विश्व युद्ध है वो हम उसकी बात कर लेते हैं। रेप मैकर ऑफ और ये सब पर उसके पहले से भी चीन की बड़ी दुर्दशा रही और फिर उन्होंने कहा कि नहीं ये बर्दाश्त नहीं करना है, बदलना है। यह बदलना है।

भारत में वो गरिमा क्यों नहीं आ पा रही कि भारत कहे कि हमें यह सब बदल देना है एक झटके में क्योंकि चीन में जो बदलाव आया है ना मनुष्य के पूरे इतिहास में इतनी जल्दी कोई एक राष्ट्र नहीं बदला है। 1990 तक भी चीन और भारत की जो प्रति व्यक्ति आय थी वो लगभग एक समान थी। 1990 तक भी और उसके बाद चीन ऐसे तो ये तो अगर आप जो एक थोड़ा हिस्टोरिकल टाइम लाइन ले तो यह तो ब्लिंक ऑफ द आई है। ऐसे बदला है। भारत भी सुधर सकते थे।

प्रश्नकर्ता: और पपुलेशन भी इतनी थी।

आचार्य प्रशांत: हां हां

प्रश्नकर्ता: वो कंट्रोल कर ली थी उन लोगों ने जब उन्होंने वन चाइल्ड पॉलिसी किया उससे काफी फर्क पड़ा उनका। यस अ लॉट ऑफ डिफरेंट बहुत सारे अलग-अलग वजह हैं। बट एट दी एंड एक बड़े नेशन लेवल पे भी चेंज लाया जा सकता है। ये एक छोटा एग्जांपल डेफिनेटली चीन ने सेट कर दिया है।

आचार्य प्रशांत: एक चीज पक्की है। जिन भी देशों में लोकधर्म हावी है वो देश बर्बाद है। चाहे वो लोकधर्म किसी भी नाम से हो। दुनिया में आप देखिए चारों तरफ और जहां भी आप पाएंगे कि यह जो पॉपुलर किस्म का रिलीजन होता है सस्ता धर्म इसका बड़ा दबदबा है। वो देश निसंदेह बर्बाद है या फिर बर्बादी की तरफ वह बहुत तेजी से बढ़ रहा है। वास्तविक धर्म से बड़ा कोई अमृत नहीं होता और लोक धर्म से बड़ा कोई जहर नहीं होता।

आप जानते हो कितनी इनकी खराब हालत थी। हम चीनियों की ह्यूमिलिएशन की बात कर रहे थे। आप आज कहते हो ना कोरोना कहां से आया? क्योंकि वेट मार्केट्स होती हैं। जहां पे हर तरीके का जानवर बिक रहा होता है और वो जाके खा लेते हैं। चीनियों के ऊपर दाववाद का और बौद्ध मत का पारंपरिक रूप से बड़ा प्रभाव रहा है। वो ऐसे नहीं थे यह सब खाने वाले। यह सब खाना उन्होंने पिछले 60 साल में शुरू करा है। और क्यों शुरू हुआ था?

द ग्रेट लीप फॉरवर्ड। नाम सुना है? उसमें पड़ गया अकाल। दुनिया की सबसे बड़ी आबादी का देश और लोगों के पास अन्न का एक दाना नहीं खाने को। तो किसी तरीके से अपनी जान बचाने के लिए वो इधर-उधर निकल जाए और जो कोई जानवर मिले उसको पकड़ पड़ के खाएं। वहां से उनकी आदत पड़ गई कि अब जो भी चीज कुछ भी हिल डुल रहा है तो खा लो। इस तल का उन्होंने अपमान झेला है। लेकिन अपमान बहुतों का होता है। कोई ही होता है जो कहता है कि अब नहीं झेलना और।

जिस पाकिस्तान में भी हम सुनते हैं कि ब्लासफेमी का नाम लेके लिंचिंग कर दी गई और यह सब हो गया। ठीक है? तो कराची की बीच कैसी होती थी? इसकी कुछ तस्वीरें निकालिएगा। आपको गोवा याद आ जाएगा। जितना आपको आज गोवा दिखाई देता है ना कि आजाद है और खुली हवा के लिए पूरा भारत वहां जाता है। कुछ कुछ वैसा कराची हुआ करता था। 1960-1970 तक। उसके बाद 71 में मार पड़ी। और जैसी मनुष्य की वृत्ति होती है यह नहीं माना कि मार पड़ी है क्योंकि भीतर कुछ गलत था। तो सारा इल्जाम ले जाकर किसके ऊपर डाल दिया? बाहरी कारणों के ऊपर।

जैसे वहां मुजीब उर रहमान को वेरीफाई कर दिया है। वहां भुट्टो को तो सीधे फांसी दे दी। और पूरे देश का क्या कर दिया? इस्लामीकरण कर दिया। इस्लामिक रिपब्लिक तो पहले से था। शुरू से ही था पर एक लिबरल इस्लामिक रिपब्लिक था। या काबुल की कुछ फोटो मिलेंगी तो खोजिएगा कि स्ट्रीट्स ऑफ काबुल इन द 1960 और 50।

जो अधिकार यूरोप तक में नहीं थे महिलाओं को वो अफगानिस्तान में थे। उसके बाद उसके बाद क्या हुआ? फिर मजहब आ गया। महिलाएं हैं बहुत सारी। आप लोगों को लोकधर्म ज्यादा पसंद आता है। और आपको ही वो खा जाता है। सतर्क रहिए। कहीं पर जाकर देखो जहां पर कुछ इस तरीके का धर्म के नाम पर सस्ता कुछ कार्यक्रम चल रहा होगा। वहां सबसे ज्यादा क्या बैठी होती हैं। उन्हें समझ में नहीं आता कि यही चीज उनको बंधन में रखने के लिए उनको खा जाएगी। किसी का अभी वक्तव्य आया है कि नाम नहीं याद रहता। दैट टुडे इन काबुल अ कैट हैज़ मोर फ्रीडम देन अ गर्ल। माने बिल्ली भी अपना इधर-उधर कर सकती है। नॉट अ वुमन।

प्रश्नकर्ता: धन्यवाद आचार्य जी।

प्रश्नकर्ता: नमस्कार आचार्य जी। मैं ताहिर और मेरा भी यही एक प्रश्न था आपसे कि हर रिलीजन में शुद्धिकरण हुआ है। जैसे हिंदूइज़्म में हुआ है। बुद्ध के टाइम पर फिर महावीर लॉर्ड महावीर उसके बाद गुरु नानक फिर राजा राममोहन रॉय गांधी जी ऐसे क्रिश्चियनिटी में मार्टिन लूटर किंग जर्मनी में और इस्लाम में ऐसा कुछ हुआ नहीं है। तो मैंने उसके ऊपर थोड़ा रिसर्च किया और पढ़ना स्टार्ट किया तो उसमें पता चला कि ये इसलिए हुआ क्योंकि क्रिश्चियनिटी मोस्टली क्योंकि सेंट्रलाइज्ड रिलजन थी। उधर चर्च था तो उसको रिवॉल्व करना इजी था।

इस्लाम सब जगह फैला हुआ है और दूसरे हर धर्म शिया में सेक्स है, सुन्नी में सेक्स है, काफी है। उसमें बदलाव लाना बहुत डिफिकल्ट है। सोफिज्म ने ट्राई किया वो मगर उतना बदलाव लाया नहीं। और आज के जब आपने बात की कि वो दुख का साइकिल चलता रहता है। लिबरलिज्म फिर बाद में लोक धर्म। तो मेरा प्रश्न है कि फिर उससे बाहर निकलने के लिए खुद अपना ही रिलीजन लाना पड़ता है। जैसे हिंदूइज़्म में बुद्धिज्म आया। वो शायद बुद्धा ने भी ट्राई किया रहेगा कि हिंदूइज़्म में चेंज लाने के लिए मगर वो नहीं ला पाए इसलिए उन्होंने अलग से अपना रिलजन बनाया महावीर ने भी सेम, गुरु नानक और फिर अंबेडकर जी ने भी ट्राई किया बहुत ट्राई किया बाद में उन्होंने बोला कि अभी मुझे बुद्धिज्म में कन्वर्ट करना पड़ेगा तो आपकी प्रक्रिया जानना चाहता हूं इस पर।

आचार्य प्रशांत: देखो जो इस तरह से धाराएं निकलती भी है ना सफाई की पूरी प्रक्रिया में वो ऐसा नहीं है कि वो धाराएं बिल्कुल अलग जाती हैं। बुद्ध के बाद जो उपनिषद आते हैं उनमें बुद्ध की सफाई परिलक्षित होती है। बुद्ध और महावीर के काल के बाद जो वैदिक साहित्य भी है उसमें अहिंसा एक महत्वपूर्ण शब्द हो जाता है। तो ऐसा नहीं है कि भगवान बुद्ध भगवान महावीर है तो वह अपनी-अपनी धारा लेकर के अलग निकल लिए। नहीं, उनके होने से जो मेन स्ट्रीम रिलीजन था, जो मुख्य धारा थी सनातन या हिंदू धर्म की, उसका भी शुद्धिकरण हुआ। और यही बात फिर सिख पंथ पर भी लागू होती है।

आप अगर जाएंगे तो पंजाब में, हरियाणा में जो हिंदू भी हैं वो भी गुरुद्वारे जाते हैं। और जो निर्गुणी भक्ति है सिख की उसका हिंदुओं पर भी पूरा प्रभाव है। एक परंपरा ऐसी होती थी कि हिंदू घरों का जो सबसे बड़ा लड़का होता था वो सिख बन जाता था। पंजाब के हिंदुओं में भी अगर आप देखेंगे चरित्रगत दृष्टि से तो तो सिखों की तलवार की खनक सुनाई देती है वहां भी। तो वहां भी ऐसा नहीं हुआ है कि सिख धारा अलग निकल गई। और जो अह हिंदू धर्म की मुख्यधारा थी वह पहले की तरह रह गई। नहीं, वह ठीक है। अपने आप में अलग पंथ बन रहा है। लेकिन उसके होने से जो मुख्यधारा है उसको भी बहुत लाभ होता है। समझ रहे हो।

तो जब भी कोई रिफॉर्मर आता है तो भले ही ऐसा लगे कि उसने अपना कुछ अलग बना लिया और कई उसकी मजबूरी होती है कि उसको थोड़ा अलग चलना पड़ता है। जैसे आपने अभी डॉ. अंबेडकर का नाम लिया। पूरी जिंदगी प्रयास करने के बाद जब नहीं सुन रहे हो मेरी बात तो अंत में जाकर के बोले कि भाई हम अपने अनुयायियों को लेके बहुत धो रहे हैं। लेकिन उसका नतीजा यह भी है ना फिर कि जो मेन स्ट्रीम हिंदू समाज है उसके भी थोड़े कान खड़े हुए। उसने कहा कि देखो यह जो व्यवस्था है जिसमें शोषण है, उत्पीड़न है यह नहीं चलेगा।

तो उस रिफॉर्मर को आना होता है। चाहे वह अपने आप में कोई खुद नई धारा ही शुरू कर दे जैसे बौद्ध या जैन धारा या फिर वो जाकर के किसी धारा का हिस्सा बन जाए जैसे डॉ. अंबेडकर कि पहले से बौद्ध धारा थी वो उसमें आकर शामिल हो गए। लेकिन उसके होने से ही शुद्धि होती है। और यह बड़ा इंडिविजुअल काम होता है। ये किसी एक आदमी कि अपनी पहल से शुरू किया हुआ काम होता है। महात्मा बुद्ध से पहले बौद्ध होते थे क्या? अकेले एक आदमी ने शुरू करा। अब ठीक है। भगवान महावीर तीर्थंकरों की पूरी श्रंखला है वहां पर।

लेकिन फिर भी उनसे पहले के जो तीर्थंकर हैं, उनको आप नहीं जानते हो। इसी तरह गुरु नानक देव आ जाते हैं। स्वयं शुरू कर रहे हैं कुछ। इसी तरीके से पिछले 200 साल में जो सुधार कार्यक्रमों की पूरी श्रृंखला रही है। वो सब लोग एज इंडिविजुअल्स व्यक्ति के तौर पर निकले थे सुधारने के लिए क्योंकि उनके अपने हृदय अपने जमीर की बात थी कि मैं कुछ देख रहा हूं जो मेरे धर्म पंथ मजहब में गलत है और मैं उसको स्वीकार नहीं करता। मैं उसको ठीक करने निकला हूं। उसमें कई लोगों ने कुछ ऐसा भी कर लिया जो ऐसा लगता है कि यह तो एक नई शाखा ही निकाल दी। चाहे वो ब्रह्म समाज हो, आर्य समाज हो।

लेकिन उन नई शाखाओं के बावजूद जो जो जो मुख्य धारा है उसको शुद्धि ही मिली। उन शाखाओं से जो मुख्य धारा है वो कमजोर नहीं हो गई। साफ हो गई। अब और मैं कह रहा हूं यह बहुत इंडिविजुअल बात होती है। तो ये तो मुस्लिमों को स्वयं ही देखना पड़ेगा। नहीं तो यह बड़ी बेतुकी एब्सर्ट स्थिति हो जाएगी कि इस्लाम में सुधार के लिए कोई बौद्ध, कोई हिंदू, कोई ईसाई या कोई सिख खड़ा हो। कितनी अजीब बात हो जाएगी ना। हां, प्रेरणा आप ले सकते हो। बिल्कुल प्रेरणा ले सकते हो। राजा राममोहन रॉय ने मार्टिन लूथर से प्रेरणा ली है। बिल्कुल ली है। महात्मा गांधी ने दोस्तोस्की से लेके टॉलस्टॉय तक सबसे प्रेरणा ली है। फिर नेल्सन मंडेला ने महात्मा गांधी से प्रेरणा ली है। प्रेरणा आप किसी से ले सकते हो। पर अपने देश का और अपने धर्म का काम तो उसी देश के लोगों को और उसी धर्म या उसी मजहब के लोगों को खुद ही करना पड़ता है। हां, प्रेरणा आप ले लो किसी से। वो अलग बात है।

तो यह काम तो मुसलमानों को खुद ही करना पड़ेगा। अपने घर में सफाई सबको खुद ही करनी पड़ती है। कोई दूसरा आकर के समझा सकता है, बता सकता है, उदाहरण दे सकता है, प्रेरणा दे सकता है, उत्साह बढ़ा सकता है, हौसला भी दे सकता है। लेकिन अस्तित्व में ऐसा चलता नहीं है कि रहना आपको है और कोई और आकर के झाड़ू मारे। तो वह हौसला तो मुस्लिमों को स्वयं ही दिखाना पड़ेगा।

आते हैं ना लोग कितने तो होते हैं। सबसे बड़ी मुझसे शिकायत ही बहुत लोगों को यह है। कि आप सनातन के बारे में इतनी गलतियां निकालते हो। हिम्मत हो तो इस्लाम के बारे में बोल के दिखाओ। हिम्मत की क्या बात है? और मैं बिल्कुल कह रहा हूं मैं मुसलमान होता तो मैं इस्लाम के बारे में बोलता और आज भी यहां अभी स्क्रीन पर मुस्लिम थी, आप भी मुस्लिम हो आज भी कोई मुस्लिम आकर बात करे तो मैं इस्लाम के बारे में बोलूंगा पर ना मैं मुस्लिम ना मुझसे बात करने वाला मुस्लिम और मैं बोलने लग जाऊं इस्लाम के बारे में तो बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना मैं पागल हुआ हूं?

ना मैं मुस्लिम ना मुझसे सवाल करने वाला मुस्लिम और में लगा हुआ हूं इस्लाम के बारे में बोलने में कोई तुक है? पर मुझ पर आक्षेप करने वालों की ये बड़ा दर्द है उनको खरे इस्लाम पे क्यों नहीं बोलते? तुम आओ सामने बैठो करो बात तो बोल लेंगे। मुझसे ये पूछने से पहले मैं इस्लाम पर क्यों नहीं बोलता तुम ये बताओ कि तुम सिर्फ इस्लाम पर ही क्यों बोलते हो इस देश में कई लोगों का ये पूर्ण कालीन पेशा है, कि वो अपने घर के अलावा बाकी सबके घरों पर फफ्तियाँ कोसते रहते हैं। अपने दामन में झांकने की बजाय वह दूसरों को बताते रहते हैं कि तेरी शर्ट गंदी है, तेरा यह है, तेरा वो है। दूसरों का क्या है, कैसा है, मुझे भी दिख रहा है। और मुझे भी दिखता है कि गंदगी है दूसरों में।

पर एक साधारण सी बात है कि दूसरों की गंदगी बताने से पहले। अपनी गंदगी तो साफ करूं और मेरी गंदगी साफ होगी। उसके बाद कोई आकर के मुझसे बात करना चाहेगा उसके घर की गंदगी के बारे में। तो मैं प्रस्तुत हूं। भई आखिरकार तो आप इंसान हो और हर इंसान से आपका सरोकार है। बात पंथ मजहब संप्रदाय की तो नहीं होती है। कोई भी आकर आपसे बात करेगा और वो साफ होना चाहता है। बेहतर होना चाहता है तो आप बिल्कुल खुलकर बात करोगे। उसमें कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन सबसे पहले तो आप अपनी बात करोगे ना। अपना भीतर झांक कर देखोगे।

कितनी अजीब बात है। है। मेरा पूरा घर सो चुका है। एकदम गंदा पड़ा हुआ है। और मैं छत पर खड़ा हो गया हूं। और वहां उधर दूर मोहल्ला है। एकदम दूर है। उनको दूरबीन लगा के देख रहा हूं। और बहुत खुश हो रहा हूं कि देखो वो मुझसे भी ज्यादा गंदे हैं। ये कैसी खुशी है? ये काहे की खुशी है? पूछने वाले आए हैं। कई तरफ से आए हैं। जितनी धाराएं हो सकती हैं और कई देश हैं। कई देशों से आए हैं। उन्होंने पूछा है तो हमने बोला है। कुरान की आयतों को लेके भी सवाल आए हैं उन पर भी बात हुई है।

लेकिन पहली बात तो अपना धर्म अपना फर्ज है ना? खुद ही करना पड़ेगा कि नहीं? और यह भी पूरी तरह सही नहीं है कि इस्लाम में रिफॉर्म मूवमेंट्स नहीं रहे हैं। आप जाकर के खोजो पूरा जो जो सूफी सिलसिला है वही क्या है? वही एक तरह का रिफॉर्म मूवमेंट है। और उसके अलावा भी आप जाकर के देखोगे तो भारत ही नहीं खान अब्दुल गफ्फार खान क्या थे? उन्हें सीमांत गांधी क्यों बोलते थे? आज चाहे जो हालत कर ली हो एएमयू की पर एएमयू की स्थापना किस लिए हुई थी? हां वो भी रिफॉर्मशन ही था। क्योंकि जो पूरी मुस्लिम कौम थी वो बुरी तरह पिछड़ी हुई थी अंधविश्वास में घिरी हुई थी। उनको उबारने के लिए।

आगे भी होने चाहिए और ये जिम्मेदारी तो मुसलमानों को खुद ही उठानी पड़ेगी।

प्रश्नकर्ता: सर उसमें मैंने देखा है कि जिन्होंने ट्राई किया है जैसे मैं दाऊदी बोरा कम्युनिटी से हूं। तो एक अली असगर इंजीनियर थे जिन्होंने ट्राई किया कि शुद्धिकरण करें। तो उन्हें फिर काफिर कह के उनको हटा दिया गया और उन्हें

आचार्य प्रशांत: आज भी किसी की मौत हुई है। कहीं के थे जिन्होंने जो पहले इस्लाम के भीतर से धार्मिक शख्सियत थे जिन्होंने खुलकर के जो अपना नॉन मेन स्ट्रीम सेक्सुअल ओरिएंटेशन था वो घोषित कर दिया तो शायद उनको आज गोली वगैरह मार दी है। तो देखो भाई मुश्किल काम करने में फिर सुकून भी गहरा मिलता है। इस्लाम में सुधार करना मुश्किल काम है। टेढ़ी खीर है और फिर जो कर पाएंगे उनको सुकून भी ज्यादा मिलेगा। ये गोलीबाजी ज्यादा चलती है। चार्ली हेबड्डो पकड़ लिया उनको मार दिया। सलमान रशदी, टर्की में।

प्रश्नकर्ता: एंबेसडर एंबेसी में किसको मार दिया उसका नाम याद नहीं आ रहा।

आचार्य प्रशांत: हर महीने ही यह खबर में रहता है। जो आम मुसलमान है इतनी दहशत में रहता है। कहता है कुछ बोलो नहीं तो लेकिन फिर कह रहा हूं जो काम मुश्किल होता है वो करने में फिर फक्र भी बड़ा होता है। सुकून भी ज्यादा होता है।

पर इस काम की जरूरत बहुत है। और जरूरत एक वजह से और भी बताता हूं। इस्लाम अगर इतना ही कट्टर रह गया तो उसकी प्रतिक्रिया में दुनिया भर के बाकी लोग कट्टर हुए जा रहे हैं। दुनिया भर में जो यह राइट विंगज्म इतना प्रबल हो रहा है इसका बड़ा कारण जो है वो एंटी इस्लामिज्म है। क्योंकि रिफ्यूजीस दुनिया भर के सब देशों में पहुंचे हुए हैं। यूरोप में भरे हुए हैं। अमेरिका में भी पहुंचे हुए हैं। अमेरिका में रिफ्यूजी इतने नहीं इमीग्रेंट्स हैं। पर यूरोप में तो रिफ्यूजी है, यूरोप में आप चारों तरफ जो आप देख रहे हो ना राइट विंग गवर्नमेंट्स आ रही है। उसका बड़ा रीजन यह है। यह रिफ्यूजीस वहां पहुंचते हैं और अपनी कट्टरता दिखाते हैं। और जब कट्टरता दिखाते हैं तो आम जनता कहती है कि हम ही क्यों लिबरल बने रहे? यह कट्टर बनके हमारा इतना नुकसान कर रहे हैं। तो फिर एक एक हार्डनिंग ऑफ एटीट्यूड हो जाता है। तो इस्लाम का सुधरना जरूरी है। नहीं तो बाकी सारे धर्म भी बराबर के कट्टर हो जाएंगे।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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