आचार्य प्रशांत: राम आज ज़्यादातर लोगों को क्यों पसंद आएँगे? देखो हर युग, उस युग के मूल्यों के हिसाब से अपने आदर्शों को, नायकों को चुनता है। चुनता भी है, गढ़ता भी है। तो जिस युग के जो मूल्य होते हैं, जो वैल्यूज़ होती हैं उसी के हिसाब से उस युग के प्रचलित आदर्श हो जाते हैं।
आज के युग का सबसे बड़ा आदर्श है- भोग, कंज़म्पशन। "खाओ! खाओ! खाओ! भोगो! भोगो! भोगो!" तो इस युग को फिर ऐसे ही चरित्र, लोग, आदर्श, नायक पसंद आएँगे, जिन्होंने अपनी ज़िंदगी में खूब भोगा हो। अब आप राम को देखिए - पिता के कहने पर हाथ में आया राज्य और सिंहासन ठुकरा कर के जंगल की ओर निकल जाते हैं। आज का कौन-सा इंसान, कौन-सा लड़का? कौन-सा बेटा, ये करना चाहता है कि हाथ में आयी धन, संपदा, सत्ता को ठुकरा कर के जंगल की ओर निकल जाये? तो आज के किसी लड़के को, आदमी को, किसी भी व्यक्ति को राम क्यों पसंद आएँगे? क्योंकि राम जो आदर्श बता रहे हैं, राम जो अपनी ज़िंदगी से उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं, वो उदाहरण हमें पसंद ही नहीं आ रहा, हमें उसका पालन ही नहीं करना। आज का हाल तो ये है कि तुम्हारे हाथ में जो चीज़ नहीं भी आ रही हो, जिसके तुम लायक नहीं हो, जिसके तुम पात्र नहीं हो, जो तुमने अर्जित नहीं भी करा, तुम उसको भी किसी तरीके से छल-कपट से, 'हुक ऑर क्रुक', येन-केन प्रकारेण हासिल करो और राम हासिल की हुई चीज़ को छोड़ देते हैं। कोई फिर आज क्यों कहे कि राम मेरे रोल मॉडल हैं? ये युग ही ऐसा है कि इस युग में ऐसा व्यक्ति कैसे बहुत पसंद आएगा आपको, जिसका जीवन त्याग और मर्यादा पर केंद्रित रहा हो?
समय देखिए आज का, आज का समय वो है जब मर्यादा को छलनी-छलनी करना ही उपलब्धि बन गया है। कहीं भी, किसी भी चीज़ को पवित्र मत मानो, किसी भी चीज़ को ऐसा मत मानो जो स्पर्श नहीं की जा सकती, गन्दी नहीं की जा सकती। किसी भी चीज़ को ऐसा मत मानो जिसे भोगा नहीं जा सकता, जिसके सामने सर झुकाना ज़रूरी है। तो ऐसे जब आज के मूल्य हैं, तो कोई ऐसा व्यक्ति, मत मानिए अवतार, व्यक्ति ही कह दीजिए- कोई ऐसा व्यक्ति आपको क्यों पसंद आएगा जिसके जीवन की धुरी ही 'मर्यादा' रही हो? आज तो सबको अमर्यादित होना है न? तो मर्यादा पुरुषोत्तम आपको क्यों पसंद आएँगे?
इसी तरीके से अब कौन हैं राम? राम वह हैं जिन्होंने एक सीता का हाथ पकड़ लिया तो फिर निभाया और सीता भी ऐसी ही हैं। आज का युग ऐसा है कि कम-से-कम पन्द्रह-बीस, स्त्री-पुरुष तो आपकी ज़िंदगी में होने ही चाहिए भई, नहीं तो आप क्या कर रहे हैं? इधर जाइये, उधर दन्द-फन्द करिये, उधर कहीं पर तार डालिये, कहीं पर टाँका जोड़िये और जो जितना ज़्यादा ये सब कर ले, वो उतना सफल माना जाता है। तो राम को आप क्यों सफल मानेंगे फिर? राम कैसे सफल हो गये आपकी दृष्टि में? राम तो एक पत्नीवादी थे।
रावण के साथ तो खेल ही सारा ऐसे शुरू हुआ- कि सूर्पनखा आयी बोली, "राम आ जाओ मेरे साथ" तो राम बोले "नहीं! मैं तो बस सीता के साथ हूँ।" आज कहाँ लोगों को ऐसा मन चाहिए? जो हाथ में आया मौका गँवा दे? आज का नायक तो वो है कि- सूर्पनखा सामने आई है, तो चाँस पे डाँस कर लो, सीता को पता न लगने पाए या सीता सामने है, तो सूर्पनखा से बोल दो, "तू जा" और इशारे से बोल दो-जंगल में मिलना।
आज का जो आम आदमी है, उसकी तो वृत्ति ये है, उसकी इच्छा तो ये है कि- जितनी दुनिया में चीज़ें हो सकती हैं भोगें, जितने सुख है उनको भोगें, जितने आदमी है उनको भोग लें, जितनी औरतें हैं उनको भोग लें। राम तो त्याग की प्रतिमूर्ति हैं। राम कौन हैं? राम वो हैं जिन्होंने कभी व्यक्तिगत सुख की आकांक्षा नहीं रखी, राम वो हैं जिन्होंने जान लगा दी एक बहुत ऊँचे उद्देश्य में और उसके बाद जब जीत ली सोने की लंका, तो विभीषण के हवाले कर दी। क्यों? खुद क्यों नहीं रख सकते थे? या अपना ही कोई प्रतिनिधि क्यों नहीं नियुक्त कर सकते थे? कि चलो भाई हमें तो अयोध्या जाना कोई बात नहीं हमारा एक प्रतिनिधि रहेगा अयोध्या से जो लंका पर शासन किया करेगा, वाइसरॉय की तरह। पर नहीं करा, उन्होंने रावण के ही छोटे भाई को लंका सौंप दी कि तुम संभालो, तुम्हारी चीज़, तुम जानो हमें लंका का कोई मोह कभी था नहीं, सोना हमें चाहिए नहीं था, धर्म की बात थी। रावण को हराना जरूरी था, रावण अधर्म की तरफ खड़ा हुआ था और फिर चुपचाप अपना वापस लौट गए और वापस भी लौट गये तो कौनसा सुख भोगने के लिए वापस लौट गए? 'रामराज्य' की स्थापना करी और रामराज्य वो है जिसमें कहते हैं कि- शेर और बकरी एक ही घाट पर पानी पीते थे। न ऊँच-नीच, न छुआछूत। शेर और बकरी के एक घाट पर पानी पीने का अर्थ समझ रहे हो न? कोई किसी का शोषण नहीं कर सकता, कोई किसी पर हिंसा नहीं कर सकता। इस हद तक कि एक बहुत साधारण-सा व्यक्ति था उनके राज्य का, एक धोबी। उसने भी आक्षेप लगा दिया कि "अरे, मैं कोई राम थोड़े ही हूँ जो पराए घर से आई सीता को स्वीकार कर लूँ।" अपनी पत्नी से बोल रहा था धोबी। तो राम ने, अपनी प्रजा के इस अदने से व्यक्ति की बात को भी महत्व दिया। उन्होंने ये नहीं कह दिया कि, "ये तो छोटा आदमी है, धोबी है, मैं इसकी बात पर ध्यान क्यों दूँ? मैं तो राजा हूँ!"उन्होंने ऐसा नहीं करा। उन्होंने ध्यान दे दिया। ये बात निश्चित रूप से विवाद का मुद्दा हो सकती है, बहस हम कर सकते हैं कि सीता को जो उन्हेंने फिर देश निकाला दे दिया था, वो उचित था? नहीं था, क्या बात थी? उस पर हम विवाद कर सकते हैं लेकिन इस पर तो कोई विवाद नहीं हो सकता न कि कोई पति अपनी पत्नी को, अपनी गर्भवती पत्नी को, अपनी प्यारी पत्नी को जिसके साथ चौदह वर्ष जंगल में ही बिता दिये, उसे बाहर निकालने पर खुश तो नहीं हो सकता।
तो राम वो हैं, जिन्होंने अपने व्यक्तिगत सुख को कभी प्राथमिकता दी नहीं और आज के युग का जो व्यक्ति है, उसके लिए व्यक्तिगत सुख से ज्यादा प्राथमिक कुछ है नहीं, तो राम हमें क्यों पसंद आएँगे? यही कारण है कि राम आज के समय में, विशेषकर युवाओं में धीरे-धीरे आउट ऑफ फैशन होते जा रहे हैं, अप्रचलित होते जा रहे हैं और नए-नए आदर्श खोजे जा रहे हैं, इधर के, उधर के, तमाम।
ये युग, मूल्यों के संक्रमण का युग है। मूल्य संकुचित होते जा रहे हैं और राम जिन मूल्यों के प्रतिनिधि हैं, वो मूल्य हमें नहीं पसंद आने वाले भई! कदम-कदम पर राम, कर्तव्य पर चलते हैं। वो ये नहीं देखते कि उन्हें लाभ क्या होगा। वो ये नहीं देखते कि उन्हें सुख, खुशी, प्रसन्नता मिलेगी कि नहीं मिलेगी। वो ये देखते हैं कि, "कर्तव्य क्या है ये बताओ? मैं तो अपने कर्तव्य का पालन करूँगा।" आज कौन अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहता है? तुम अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करना चाहते तो राम क्यों अच्छे लगेंगे तुमको?
राम कौन हैं? राम वो हैं जो कभी केवट के साथ बैठकर आँसू बहा लेते हैं, कभी शबरी के जूठे बेर खा लेते हैं। वो ये नहीं देखते कि कौन ऊँचे कुल का है, कौन नीचे कुल का है? राम कौन हैं? राम वो नहीं है जिनके पास उच्च कोटि के संसाधन हो, जो बहुत ऊँची जिंदगी बिता रहे हों। राम वो हैं जो जंगल में जाकर के, जंगल के निवासियों की ही सेना बना लेते हैं। वानरों की, रीछों की। अब वानर और रीछ की नहीं सेना थी, वो जंगल के ही निवासी थे- वो जो वानरों की ही उपासना करते थे, अन्य जीवों की उपासना करते थे। पर थे तो वो सब जंगल के ही निवासी न? और उनकी सेना बना करके राम भिड़ जाते हैं उस समय के 'सुपर पावर' से। रावण उस समय का सुपर पावर था, लंका उस समय का अमेरिका था और राम भिड़ जाते हैं। ऐसा कोई क्यों हमें पसंद आएगा जो अपने आपको एक सुपर पावर के विरुद्ध खड़ा कर देता हो? हम तो सब वो लोग हैं जो उसी की तरफ भागते हैं जिसके हाथ में सत्ता है और राम ने उससे जाकर के युद्ध ले लिया जो इतना ज्यादा ताकतवर था कि कहते थे कि देवताओं को कैद करके रख लेता था और उससे युद्ध ले लिया, किनकी सेना बना कर के? बंदर-भालुओं की। ऐसा राम हमें क्यों पसंद आएगा?
और राम उस अर्थ में बहुत आकर्षक भी नहीं है जिस अर्थ में आज का जो माचो पुरुष होता है, जो होता है। वो जो 'एक्सेसिव मसक्यूलनिटी' (अत्यधिक पौरुष) आज का आदर्श बन गई हैं, राम वैसे है भी नहीं न! लक्ष्मण को शक्ति लग जाती है मेघनाद की और राम लक्ष्मण के ऊपर झुके हुए हैं और रोए जा रहे हैं, रोए जा रहे हैं, "हा लक्ष्मण! हा लक्ष्मण!" आज का जो हीरो है वो रोता कहाँ है? वो तो सख्त है, फौलादी है, चट्टान का बना हुआ है लेकिन राम तो बात-बात में रो पड़ते हैं। राम के चरित्र में जितनी शक्ति है उतना ही स्त्रीत्व भी है। राम बहुत भावुक हैं, राम बहुत कोमल हैं और कोमलता आज के युग में मान्य नहीं, आज कठोरता चाहिए। जैसे आज के समय में दो लड़के आपस में बात करते हैं न? तो कैसे एक दूसरे को बोलते हैं न? 'सख्त लौंडा है।' राम क्यों पसंद आएँगे आपको? राम तो वो हैं जिनसे आप वचन ले कर के अगर उनका राज्य भी माँग लें तो वो राज्य दे देंगे।
ये अलग बात है कि राम के हृदय में वज्र जैसी दृढ़ता है, कठोरता कहना ठीक नहीं होगा। लेकिन वो दृढ़ता सत्य की दृढ़ता है। उनकी दृढ़ता जड़ता की दृढ़ता नहीं है। एक पत्थर भी बहुत कठोर होता है दृढ़-सा ही लगता है और सत्य भी बहुत दृढ़ होता है। राम की दृढ़ता सत्य की दृढ़ता है, वो हमें नहीं चाहिए। आज का समय तो झूठ का है न, और झूठ के समय में राम क्यों किसी को पसंद आने लगें? भई! कौन एक ऐसे आदमी को पसंद करेगा जो चौदह साल तक जंगल में फिर रहा था? हमको तो चाहिए सजे-सजाए घर, हमको चाहिए सुख सुविधा से संपन्न जीवन, लाइफ़स्टाइल। और राम वहाँ पर घूम रहे हैं और सीता के पाँव में काँटे लग रहे हैं, तो राम ने सीता को एक चट्टान पर बैठा दिया है और सीता के पाँव से काँटे निकाल रहे हैं। ऐसा राम किस पुरुष को पसंद आएगा? ऐसा राम किस स्त्री को भी पसंद आएगा? लड़कियाँ कहती हैं, हमारी जिससे शादी हो वो हमें हर तरह की सुविधा में रखें, बिलकुल अय्याशी ही करा दे हमारी और यहाँ देखो राम को कि अपनी नवविवाहिता पत्नी को लेकर के कहाँ पहुँच गये तुरंत? जंगल में। और चौदह साल तक उसको जंगल में भटका रहे हैं और कहते हैं- बहुत ही नाज़ों से, बड़े प्यार से, पाली गईं थी सीता। जनक ने उनको बहुत ही प्यार से परवरिश दी थी। और ऐसी सीता को लेकर के वो जंगल-जंगल फिर रहे हैं। किसको पसंद आएँगे ऐसे राम?
और भी बहुत सारी बातें हैं राम के चरित्र में, जो आज के मूल्यों से मेल खाती नहीं हैं। लेकिन एक बात साफ समझ लीजिए- अगर आपको राम अब कुछ विशेष आकर्षक नहीं लगते, तो इसमें राम का कुछ नहीं जाता। राम जिस ऊँची चेतना के प्रतिनिधि हैं, वो ऊँची चेतना हमेशा मूल्यवान, कीमती रहेगी। आपको राम नहीं समझ में आते तो इससे बस ये पता चलता है कि आपकी चेतना कितनी गिर गई है। आज तो जिससे दुश्मनी होती है, इंसान कहता है इसको बस खत्म कर दो, नफरत करो, देखते नहीं हो? अब तो वीडियो गेम भी आते हैं तो उसमें कितने बर्बर तरीके से जादुई तलवारें वगैरह लेकर के दुश्मनों को काटा जाता है और राम कौन हैं? राम वो हैं कि रावण गिरा पड़ा है, तो लक्ष्मण को बोलते हैं, "जाओ इसके पाँव की तरफ खड़े हो और नमन करके ज्ञान माँगो क्योंकि रावण महाज्ञानी है, महाविद्वान है।" ये मूल्य आज किसको पसंद आएगा? कौन करना चाहता है ये? आज तो कहते हैं वही- "बाय हुक ऑर बाय क्रुक जस्ट कॉनकर" (कैसे भी करके बस विजय प्राप्त कर लो)
एक-एक करके ऐसे ही याद आ रहा है, तुमने पूछा है तो। वापस लौटते हैं, माताएँ सामने पड़ती हैं, वो भी हैं जिन्होंने राम को वनवास दिलाया था पर राम बस एक शांत, स्निग्ध मुस्कुराहट है उनके होठों पर। द्वेष का नामोनिशान नहीं। कहीं पर कोई चिन्ह ही नहीं, किसी भी तरह की चोट का। बीते हुए चौदह-पन्द्रह साल भी, ज़रा भी आहत नहीं कर पाए राम को। वो मुस्कुरा ही रहे हैं। भरत आते हैं उनके पास, कहते हैं, "आप वापस चलिए, राज्य आपका है।" राम कहते हैं, "भरत तुम्हारा है।" लक्ष्मण कुछ अवसरों पर अमर्यादित होने लगते हैं। राम तुरंत उनको टोक देते हैं, डाँट भी देते हैं, ऐसे थे राम। जो आज ऐसा होना चाहे, लोग उस पर हँसेंगे उसको चिढ़ाएँगे। उसको कहेंगे, "ये देखो! ये ज्यादा सदाचारी हो रहा है।" और राम तो सदाचारी ही थे।
और न जाने कितनी घटनाएँ हैं, राम के चरित्र से, राम के वृत्त से। अभी तो सब, एक झटके में याद भी न आएँ पर इतना पता है मुझे- राम इस युग को पसंद नहीं आएँगे, आ ही नहीं रहे हैं। कोई बात नहीं समय का चक्र है, हर तरह के रंगों से गुजरता है। आने वाले किसी समय में फिर हम राम को समझेंगे।
राम तुम्हारा वृत्त स्वयं ही काव्य है, कवि कोई बन जाए सहज संभाव्य है।
कोई वजह है कि कबीर साहब जैसा मूर्धन्य ज्ञानी राम! राम! राम! और बस राम का ही नाम लेता रहता है। कोई वजह है कि गुरु ग्रंथ साहिब में राम का नाम सैकड़ों-हजारों बार आया है। उस राम को अगर आज हम मूल्य या सम्मान नहीं देना चाहते, तो हमारी मर्जी।
राम जानते हो कौन हैं? राम वो हैं जो जानते-बूझते अपने ऊपर कष्ट आमंत्रित करे। राम वो हैं जो पीड़ा से, कष्ट से गुजरते हैं और समय, आज का, सुख माँगता है। हमें प्लेज़र चाहिए, ये युग हैप्पीनेस का पुजारी है और तुम्हें राम के चरित्र में हैप्पीनेस बहुत कम मिलेगी। राम तो कष्ट को, सफरिंग को न्योता देते हैं। कहते हैं, "आओ!" बहुत बड़ा दिल चाहिए जानते-बूझते दर्द आमंत्रित करने के लिए और सच्चाई के प्रति बड़ी ज़बरदस्त निष्ठा चाहिए, जानते-बूझते अपने जीवन में दर्द बुलाने और बैठाने के लिये। जो हैप्पीनेस के पुजारी हैं, उनको राम कैसे पसंद आएँगे?
सीता को उठा ले गया रावण और राम रो रहे हैं और जानवरों से, पक्षियों से, वृक्षों से, सब से पूछ रहे हैं-
हे खग-मृग हे मधुकर श्रेणी तुम देखी सीता मृगनयनी
जटायु के पास पहुँचते हैं, वो गिरा पड़ा है, आख़िरी साँसे ले रहा है, क्षत-विक्षत उसका शरीर है। राम उसको छाती से लगा लेते हैं, वो वहीं पर शांत होकर के अपनी आख़िरी साँस लेता है। फिर अपने हाथों से उसका संस्कार करते हैं। भाव प्रवण हैं राम! एक नन्ही-सी गिलहरी है, जब पुल बन रहा है लंका को पहुँचने के लिए, तो वो मुँह में रेत के दो-दो, चार-चार दाने भर के समुद्र की ओर भाग रही है। वो कह रही है, "मैं भी पुल बनाने में योगदान दूँगी।" राम जाते हैं, गिलहरी को देखते हैं मुस्कुराते हैं, हथेली में उठा लेते हैं और उसकी पीठ पर स्नेह से हाथ फिरते हैं।
ऐसे हैं राम! कोई बहुत जगमगाहट नहीं है, चकाचौंध कर देने वाला कुछ नहीं है उनके चरित्र में, कोई बहुत बड़े-बड़े चमत्कार नहीं। भाई मरने को पड़ा हुआ है तो भी उसकी जान वो कोई चमत्कार करके नहीं बचा लेते। वो अब आश्रित हैं कि हनुमान जाएँ और वैद्य से दवा पूछें और फिर वो दवा ढूंढ़े और फिर वो दवा लेकर आएँ। बहुत साधारण हैं राम। आज कौन साधारण रहना चाहता है? आज कौन आँसू बहाना चाहता है? आज कौन किसी गिलहरी की पीठ पर हाथ फेरना चाहता है? आज कौन वानरों को गले लगाना चाहता है? आज तो हम चाहते हैं कि एक चकाचौंध भरी जिंदगी मिले। आज तो हमें वो सब कुछ चाहिए जिसमें उत्तेजना हो, जिसमें ताकत हो और उस ताकत का इस्तेमाल करके हम दुनिया को भोग सकें और, और सुख पा सकें। आज कौन हाथ आई सोने की लंका छोड़ देना चाहता है?
ऐसा व्यक्ति जो यूँ जिया जैसे उसके लिए अपना कुछ है ही नहीं। जो जी रहा हो ज़्यों सिर्फ अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए। हमारी छोटी बुद्धि में ऐसा व्यक्ति घुसेगा ही नहीं। हम पूछेंगे सिर्फ और सिर्फ कर्तव्य का पालन? धर्म का पालन? मर्यादा का पालन? तो हैप्पीनेस कहाँ है? प्लेज़र कहाँ है? ये हमें समझ में ही नहीं आएगी बात।
आक्षेप भी लगते हैं राम पर। कहते हैं- सीता की अग्नि परीक्षा ले ली, बाली को धोखे से मार दिया। अरे! उसमें उनको क्या मिल रहा था? जिस पत्नी की खातिर, वो जाकर के मौत से भिड़ गए, उन्हें जरा भी संदेह होता सीता पर, तो वो राम होते क्या? अगर वो राम हैं, तो वो ऐसी सीता चुनेंगे ही नहीं जिस पर संदेह किया जा सकता है। अगर वो राम हैं तो ऐसी सीता जिस पर संदेह किया जा सकता हो, उसकी खातिर इतना बड़ा युद्ध करेंगे ही नहीं। उन्हें कोई संदेह नहीं है। उन्हें कोई सुख नहीं मिल रहा है, किसी भी तरह की अग्नि परीक्षा वगैरह का। ये भी तो देखो- उन्हें क्या मिल रहा है?
पर हाँ, लोगों का मुँह, लोगों की बात- लोगों ने कहा, "अग्नि परीक्षा!" बोले, "ठीक है!" लोगों ने कहा कि, "तुम्हारी पत्नी रावण के घर रह कर के आई है, क्यों उसे अपने साथ रख रहे हो?" तो दिल पर पत्थर रख कर बोले, "ठीक है!" सीता के साथ तो इसमें अन्याय हुआ ही है, राम को क्या सुख मिल गया? पर ये व्यक्ति ऐसा है जो अपने सुख की खातिर कभी कुछ कर ही नहीं रहा था। इसीलिए फिर हमें सीता का चरित्र भी समझ में नहीं आता। हम समझते हैं सीता, जैसे कोई उत्पीड़ित नारी हो। और आजकल के लिबरल बुद्धि लोगों में तो, सीता को एक शोषित नारी दिखाने का चलन ही हो गया है। सीता क्या है, वो समझने के लिए, सीता जैसी-ही कोई असाधारण स्त्री चाहिए, जिसका मन बहुत साफ हो। जिनका मन साफ नहीं है, वो सीता को देखेंगे तो उन्हें एक शोषित स्त्री ही नजर आएगी।
वो युग दूसरा था, वो युग ऐसा था जहाँ रावण भी आज के नायकों से कहीं ज्यादा ऊँचाई लिये हुए था। वो तो राम के सामने पड़ गया रावण इसलिए दोषी या खलनायक कहलाता है, अपराधी कहलाता है। राम की तुलना में रावण दोषी कहला जाता है। अगर आज के समय में हो रावण, तो आज का तो महापुरुष होगा। आज तो रावण के स्तर की चेतना भी रखने वाला कौन है बोलो? रावण भी बहुत नियमों का पालन करता था। ठीक है, कुछ नियम उसने तोड़े- सीता का अपहरण कर लिया इत्यादि। अन्यथा वो स्वयं भी पंडित था, विद्वान था, धर्म का ज्ञाता था और धर्म का पालन करता था। वो युग दूसरा था। वो राम का, सीता का, हनुमान का, रावण का युग था। ये बहुत ऊँचे लोग थे। रावण भी बहुत ऊँचा व्यक्ति था।
आज ये तो छोड़ दो कि राम नहीं हैं। त्रासदी ये है इस युग की, विडंबना ये है कि आज रावण भी नहीं है। ये युग 'टुच्चई का युग' है। जिधर देखो उधर, चरित्र के बौने नजर आते हैं और ये ऊँचे लोग थे, बहुत ऊँचे लोग थे- राम, सीता, रावण, लक्ष्मण, हनुमान, विभीषण भी, बहुत ऊँचे लोग थे। आज तो चारों तरफ बस बौने हैं, ड्वार्फस। इन्हें न राम समझ में आने हैं, न सीता समझ में आनी हैं, न रावण समझ में आने हैं, न रामायण समझ में आनी है। हाँ, दिवाली पर ज़रूर ये काजू-किशमिश, बर्फी चमका लेंगे, पटाखे फोड़ लेंगे, धनतेरस पर गहने और सिक्के खरीद लेंगे। राम के नाम का जितना दुरुपयोग ये कर सकते हैं, वो सब कर लेंगे।
चलो, जैसी राम की मर्जी!