Grateful for Acharya Prashant's videos? Help us reach more individuals!
Articles
नवरात्रि के नौ रूपों को कैसे समझें? || आचार्य प्रशांत (2019)
Author Acharya Prashant
Acharya Prashant
8 min
47 reads

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, कल से जो हिन्दुओं की परंपरा का एक प्रमुख उत्सव माना जाता है, नवरात्रि, वो शुरू हो रहा है। शक्ति के नौ रूपों की आध्यात्मिक उपयोगिता क्या है? शिव-शक्ति को माना जाता है कि एक ही उनका स्वरूप है, फिर ये नौ अलग-अलग स्वरूप क्या दर्शाते हैं? इनकी क्या महत्ता है और ये क्या सिग्निफाई (दर्शित) करते हैं?

कभी हम देखते हैं कि कोई माता है शैलपुत्री या ब्रह्मचारिणी, उनके हाथ में कमंडल है। किसी के हाथ में सिर्फ़ माला है। और एक वो रंग देखते हैं, कात्यायनी भी वहीं है, दुष्टों का संहार भी वो करने वाली है। तो क्या ये अलग-अलग रूप हैं, या ये हमारे भीतर के ही कुछ अलग चेहरे हैं?

नवरात्रों का क्या महत्व है हमारे लिए, और हम उसको कैसे अपने आम जीवन के लिए समझ सकते हैं?

आचार्य प्रशांत: पहली बात तो ये कि नौ को 'नौ' मत मानो। नौ का आंकड़ा सांकेतिक है। नौ का मतलब कोई एक नहीं, नौ का मतलब दो भी नहीं, नौ का मतलब तीन भी नहीं; नौ का मतलब बहुत सारे। शिव की शक्ति जितने भी अनंत रूपों में प्रकट हो सकती है, होती है। ब्रह्मचारिणी है, महागौरी है तो शांत है, क्षमा करने वाली है। और तुमने कहा कात्यायनी है या चंद्रघंटा है, स्कंदमाता है तो संहार करने वाली हैं। सृजन भी कर सकती है, विनाश भी कर सकती है।

सब तरह के कर्म शिव की अर्थात सत्य की शक्ति के द्वारा संभव हैं। जब सब तरह के कर्म संभव हैं तो फिर कौन-सा कर्म किया जाए? वो कर्म किया जाए जिसके केंद्र में शिव बैठे हों। जब तक तुम्हारे कर्म के केंद्र में शिव बैठे हैं, तब तक तुम जो भी कर्म कर रहे हो वो शुभ ही होगा, सम्यक ही होगा।

और नवरात्रि हमें बताती है कि परवाह मत करो कि कर्म का रूप-रंग-नाम-आकार दुनिया ने क्या रखा है, कैसा रखा है। शक्ति महागौरी के रूप में सामने आए तुम्हारे, तो तुम्हें लगेगा – ममतामयी माँ। और शक्ति काली के रूप में सामने आए तुम्हारे, तो थर्रा उठोगे, थरथरा जाओगे, कहोगे, “अभी वध होता है।" यही हाल शुभ-सम्यक कर्मों का है।

सही कर्म कभी दाएँ को जाता है तो कभी बाएँ को भी जाता है; कभी जन्म देता है तो कभी मृत्यु भी देता है; कभी सीधा-सीधा चलता है तो कभी उड़ चलता है। तो इसीलिए परवाह ही मत करो कि कर्म कैसा चल रहा है। कर्म की परवाह तो वो करते हैं जो कर्मों से गहरे देखना जानते ही नहीं। तुम ये देखो कि कर्म के पीछे 'कर्ता' कौन है। शक्ति के पीछे जो असली कर्ता बैठे हैं उनका नाम है ‘शिव'। तो बस तुम ये देख लो कि तुम्हारा काम, तुम्हारा विचार और तुम्हारा पूरा जीवन ही शिवत्व के केंद्र से आ रहा है या नहीं आ रहा है।

जितनी विविधताएँ संभव हो सकती हैं अस्तित्व में और जीवन में, सबका प्रतीक है नवरात्रि। कोई विविधता बुरी नहीं है, कोई विविधता अच्छी नहीं है।

जीवन में भी कोई विशेष कर्म पाप नहीं कहला सकता और कोई विशिष्ट कर्म पुण्य भी नहीं कहला सकता। सही-ग़लत का, अच्छे-बुरे का, पाप-पुण्य का निर्धारण बस एक बात करती है कि शिव से निकला है कर्म या नहीं निकला, सच्चाई से निकला है या नहीं निकला। सच्चाई से अगर नहीं उद्भूत होगा तुम्हारा कर्म, तुम्हारा जीवन, तो फिर वो कहाँ से संचालित हो रहा होगा? सच से नहीं चल रहा तो झूठ से चल रहा होगा। तो झूठ माने क्या? डर, बेचैनी, लोभ, भय, ईर्ष्या, भ्रम। यही देखना है।

यही संदेश है नवरात्रि का कि – ज़िंदगी  जी किस आधार पर रहे हो? कर्म नहीं, बाहरी बात नहीं, रूप-रंग-कलेवर नहीं; मर्म, आधार। किस आधार पर जी रहे हो? शिव के आधार पर जी रहे हो, या शव के आधार पर जी रहे हो? सत्य के आधार पर जी रहे हो, या भ्रम और मोह और अंधेरे में ही जिए जा रहे हो?

तो जब शिवरात्रि हम मनाएँ तो देवियों की उपासना करते समय ये लगातार याद रखें कि शक्ति और कुछ नहीं, शिव का ही साकार रूप हैं। और शिव के साकार रूप अनंत हो सकते हैं। सब रूप प्यारे हैं जब तक वो शिव के हैं। शिव का है तो भीषण-से-भीषण और भयानक-से-भयानक रूप भी प्यारा है, पूजनीय है, पवित्र है। और शिव का यदि नहीं है तो, सुंदर-से-सुंदर, मोहक-से-मोहक और आकर्षक-से-आकर्षक रूप भी त्याग योग्य है।

रूप पर नहीं जाना है, रूप अनंत हो सकते हैं; केंद्र पर जाना है, मर्म पर जाकर देखना है। मर्म अगर ठीक है तो सब रूप पूजनीय हैं, सब रूपों का उत्सव मनाओ। यही है नवरात्रि।

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, एक कथा जो नवरात्रि से जुड़ी है, वो कहती है कि शक्ति का जो नौवाँ रूप है, सिद्धिदात्री की जो बात होती है, उसमें कहते हैं कि शिव ने, जो आदि पराशक्ती थीं, जो अव्यक्त रूप हैं शक्ति का, उनसे उपासना की थी, तो उसके बाद उन्होंने एक व्यक्त रूप लिया, और वो उस शक्ति के नौवे रूप में प्रकट हुईं। तो अभी जैसे आपने समझाया कि जो आधार है हमारे कर्मों का, उसको देखें, शक्ति के माध्यम से हम शिव की तरफ़ बढ़ें। तो इस कथा में शिव ख़ुद शक्ति से उपासना कर रहे हैं, तो इसको कैसे समझें?

आचार्य: सब कुछ संभव है, इसको ऐसे ही समझो। जब मैने कहा कि कर्म, जीवन, विचार, संसार इनका रूप-रंग मत देखो, सीधे केंद्र पर ध्यान दो, तो फिर रूप, रंग, कर्म, घटनाएँ कैसी भी हो सकती हैं। जब तुम कह रहे हो कि - "शिव उपासना कर रहे हैं, कथा कहती है कि शिव उपासना कर रहे हैं,"—शिव उपासना कर ही नहीं सकते। शिव अद्वैत ब्रह्म हैं, किसकी उपासना करेंगे?

तो ये उपासना की कहानी भी यही बता रही है कि शिवत्व अगर केंद्र पर हो तो वहाँ ये भी पवित्र ही है कि तुम शिव को लेकर एक मिथ (काल्पनिक कथा), एक कहानी गढ़ लो जिसमें शिव संसार की ही पूजा कर रहे हैं, जिसमें शिव भी प्रार्थी नज़र आते हैं। जहाँ भी शिव कुछ करते नज़र आएँ, जहाँ शिव कर्ता हो जाएँ, वहाँ जान लो कि बात शक्ति की ही हो रही है।

शिव मूल अकर्ता हैं; उनकी उपस्थिति भर है, अचल उपस्थिति; न उनका रूप है, न रंग है, न आकार है। पर चूँकि हमारी आँखों को तो सिर्फ़ रूप-रंग-आकार ही दिखाई देता है, तो शिव का जो व्यक्त रुप है इस पूरे संसार में, जो ऊर्जा का प्रवाह है, जो चलती-फिरती चीज़ें हैं, इनमें निहित शिवत्व को दर्शाने के लिए हम नाम लेते हैं 'शक्ति' का। और चूँकि दुनिया में बहुत सारी विविधताएँ हैं, अलग-अलग चीज़ें हैं, तो शक्ति के भी हम स्थिति अनुसार, समय अनुसार, संयोग अनुसार फिर अलग-अलग नाम देते हैं।

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, यदि शिव हमारे माध्यम से किसी को कुछ समझाना चाहते हैं, या किसी के माध्यम से हमें कुछ समझाना चाहते हैं, तो क्या अन्ततः शक्ति ही समझा रही हैं?

आचार्य प्रशांत: नहीं, शिव को माध्यम मिला नहीं (ऐसा नहीं है), माध्यम ने चुना कि शिवत्व को अभिव्यक्ति देनी है। आप एक चुनाव करते हैं कि शिवत्व को अभिव्यक्ति देनी है।

साधारणतया हमारा चुनाव ये रहता है कि हमारे भीतर जो कूड़ा-कचरा इत्यादि भरा हुआ है, वही अभिव्यक्त होता रहे हमारे माध्यम से। कभी-कभार ऐसा होता है कि ये जो अहम है, ये शिव को चुने। जब ये शिव को चुनता है, तो फिर ये शिव में लीन हो जाता है। शिव में लीन हो जाता है तो फिर शिव ही इसके माध्यम से अभिव्यक्त होते हैं, काम करते हैं।

ऐसे कह लो कि अहम जब शिव को चुन ले, तो शक्ति हो गया।

शक्ति नाम किसका है? उसका जिसने शिव को चुन लिया। शिव नहीं आतुर हैं कुछ भी करने के लिए।

जगत चलता हो, चले; भस्म होता हो तो भस्म हो जाए; शिव की कोई आतुरता नहीं है। हाँ, तुम्हें चैन चाहिए तो तुम शिव का चुनाव करोगे। ग़रज़ तुम्हारी है। तुम नहीं चुनाव करोगे, तुम ही परेशान पड़े रहोगे।

तुम अपनी ख़ातिर शिव का चुनाव करो।

Have you benefited from Acharya Prashant's teachings?
Only through your contribution will this mission move forward.
Donate to spread the light