एक की पत्नी छोड़ गई, दूजे की ज़िंदगी में मौज है: कथा माया की

Acharya Prashant

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एक की पत्नी छोड़ गई, दूजे की ज़िंदगी में मौज है: कथा माया की
फिल्मी बातें वही पूरा का पूरा लोकधर्म भी क्या है? प्लेजेंट एक्सपीरियंसेस, द रोमांस ऑफ लोक धर्म। तुम्हें अपनी जिंदगी खराब करनी है, समय नष्ट करना है तो कर लो। कितना भी इसमें समय लगा सकते हो। कोई अंत नहीं है। कोई शारीरिक काम हो तो शरीर थक भी जाता है। मन तो अतल कुआं है। उसमें कितना भी आप शायरी डाल दो, रोमांस डाल दो, भावनाएं डाल दो, रील्स डाल दो, यही सब होता है। वो थोड़ी कभी भी भरता है। यह सारांश प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के स्वयंसेवकों द्वारा बनाया गया है

प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी। आचार्य जी थोड़ा स्वार्थपूर्ण प्रश्न है आज मेरा और बहुत जरूरी है मेरे लिए खासकर। अभी मेरे घर की स्थिति थोड़ी ज्यादा खराब चल रही है। गृह क्लेश प्लस दांपत्य जीवन में मेरी स्थिति इतनी ज्यादा खराब है कि मैं डिवोर्स की स्थिति तक मैं आ गया हूं। मेरे घर में ये स्थिति है कि मैं आठ महीने से अपनी वाइफ से नहीं मिला हूं। छोटा बच्चा है वो भी रह रहा है वाइफ के साथ में और मदर की स्थिति यह है कि वो उनको लेना नहीं चाहती हैं और मैं तो सबके साथ एडजस्ट कर सकता हूं, करना भी चाह रहा हूं क्योंकि मुझे अपनी चेतना का स्तर बढ़ाना है इस स्थिति में मैं आ रहा हूं कुछ तरक्की हो रही है आध्यात्मिक की और तो मैं रुकना नहीं चाहता मैं आगे ही बढ़ना चाहता हूं बट मेरे टांग खींचे जा रहे हैं दोनों तरफ से मैं कुछ कर नहीं पाता हूं पारिवारिक रूप से मैं बहुत परेशान हो गया हूं।

अब ये स्थिति आ गई है कि लीगल हर्डल भी आ गया आने वाला है मुझे ऐसा महसूस हो रहा है तो मैं कैसे बढ़ पाऊंगा मुझे यह समझ में नहीं आ रहा है। आपके सारी शिक्षाओं से मैं आगे बढ़ रहा हूं। बट वो कुछ रुकावट सी होती है कि मैं बार-बार फिर पीछे खिसक जा रहा हूं बार-बार। मुझे पता है इस प्रश्न पे आपने काफी बार बोला है। मैंने सारी चीजें सुन के आया हूं साहब। लेकिन मेरी स्थिति बड़ी अभी गंभीर बनी हुई है। मैं क्या करूं? अभी मेरा रिसेंटली प्रमोशन भी हुआ है बट मुझे कोई खुशी नहीं है क्योंकि घर में स्थिति ये बनी हुई है अभी।

आचार्य प्रशांत: आगे बढ़ पाऊंगा माने क्या?

प्रश्नकर्ता: आगे बढ़ना सर मैं कुछ समझ में नहीं आ रहा कि मैं करूं क्या?

आचार्य प्रशांत: क्यों क्यों नहीं समझ में आ रहा अभी जो चल रहा है उसमें समस्या क्या है?

प्रश्नकर्ता: कोई समस्या नहीं है सर। मैं तो इसको छोड़ना ही नहीं चाहता बिल्कुल भी बट इसको कुछ नहीं छोड़ना चाहता हूं मैं आपको भी नहीं छोड़ना।

आचार्य प्रशांत: समस्या क्या है?

प्रश्नकर्ता: समस्या सर परिवार में इस तरह से क्लेश बना रहा तो मैं आगे

आचार्य प्रशांत: क्लेश कहां है? वो तो अलग रहती हैं आपसे।

प्रश्नकर्ता: यस सर।

आचार्य प्रशांत: तो क्लेश कहां है? क्लेश तो खत्म हो गया।

(सब हँसते हैं)

लीगल हर्डल माने क्या? हर्डल तो होता है बाधा! माने मैं कुछ करना चाहता हूं कुछ कामना है उसकी राह में जो बाधा होती है उसको हर्डल बोलते हैं। जब आपका सब ठीक चल रहा है तो आपकी कामना क्या है, कामना तो होनी नहीं चाहिए सब ठीक है तो? कामना क्या है?

प्रश्नकर्ता: सर वो वो मुझे नहीं छोड़ना चाहती ना

आचार्य प्रशांत: आप अपनी कामना बताओ ना पहले, आपकी क्या कामना है?

प्रश्नकर्ता: मेरी कामना बस ये है कि मैं बस जुड़ा रहूं यहां से

आचार्य प्रशांत: किससे जुड़ा रहूं?

प्रश्नकर्ता: आपसे

आचार्य प्रशांत: तो मैं निकाल थोड़ी रहा हूं आपको

प्रश्नकर्ता: लेकिन मेरी स्थिति ये आ रही है कि

आचार्य प्रशांत: समस्या क्या है

प्रश्नकर्ता: समस्या ये है कि अब मैं उसको लेके आऊं कि नहीं ले आऊं?

आचार्य प्रशांत: किसको लेके आऊं

प्रश्नकर्ता: वाइफ को।

आचार्य प्रशांत: अभी तो बोला मत लेके आओ।

प्रश्नकर्ता: मम्मी बोलती है कि एक बार आचार्य जी से पूछ।

आचार्य प्रशांत: पहले आप समस्या बताओ साफ।

प्रश्नकर्ता: सर मदर ने आज बोला है कि आप पूछ के आइए आचार्य जी से।

आचार्य प्रशांत: पूछना क्या? मैं मना करता हूं। मुझसे पूछ के होता है क्या? वहां कहीं पे एक बटन लगा होता है प्रूव्ड बाय आचार्य जी। मैं थोड़ी होता है। जो रजिस्टर कर ले कर ले मेरा क्या है?

हां। तो समस्या बताइए पहले।

प्रश्नकर्ता: समस्या सर यही है कि अब मैं कुछ

आचार्य प्रशांत: आपका प्रमोशन हो गया है। कोई समस्या है?

प्रश्नकर्ता: नहीं सर।

आचार्य प्रशांत: आप गीता से जुड़े हुए हैं। कोई समस्या है?

प्रश्नकर्ता: बिल्कुल नहीं सर।

आचार्य प्रशांत: तो फिर समस्या क्या है?

प्रश्नकर्ता: मैं सर कंसंट्रेट नहीं कर पा रहा हूं।

आचार्य प्रशांत: क्यों नहीं कर पा रहे? समस्या बताइए।

प्रश्नकर्ता: क्योंकि वो मेरी टांग खींचते रहते हैं।

आचार्य प्रशांत: टांग कैसे खींचते हो? वो तो दूर है।

प्रश्नकर्ता: सर उसी समय ऐप पे मैं सुन रहा हूं आपको फोन आते रहते हैं।

आचार्य प्रशांत: तो फोन तो आ रहा है। साइलेंट पे कर दीजिए बंद कर दीजिए। कुछ कर दीजिए। समस्या क्या है? जब तक समस्या बताओगे नहीं ईमानदारी से तब तक बात बनेगी नहीं।

प्रश्नकर्ता: कुछ फंसा हुआ है सर। समझ में नहीं आ रहा।

आचार्य प्रशांत: ऐसे बोल रहे हो जैसे जानते ही नहीं क्या फंसा हुआ है। 8 महीने से सेक्स नहीं मिला होगा और क्या है? इधर-उधर की बातें दुनिया भर की। यही है?

प्रश्नकर्ता: नहीं सर ऐसा नहीं।

आचार्य प्रशांत: तो फिर रोमांटिक? मीठी-मीठी बातें नहीं करी आठ महीने से।

प्रश्नकर्ता: सर, छोटा बच्चा है उसको भी देखना है इसलिए।

आचार्य प्रशांत: छोटा बच्चा कहां है?

प्रश्नकर्ता: वाइफ के साथ।

आचार्य प्रशांत: तो मां के साथ है, खुश है, आपको क्या समस्या है? साफ-साफ समस्या बताइए, नहीं तो बात नहीं बनेगी।

प्रश्नकर्ता: बस मैं सर आगे क्या करूं? मुझे ये….

आचार्य प्रशांत: आगे क्या करना है? चल तो रहा है जो चल रहा है। ऑफिस जाते हैं, वापस आते हैं, दौड़ो, पिक्चर देखो, मौज करो, रात में सेशन करो। समस्या क्या है?

प्रश्नकर्ता: शायद मैं खुद ही समस्या बन गया हूँ।

आचार्य प्रशांत: नहीं नहीं नहीं नहीं दार्शनिक नहीं मामला…

प्रश्नकर्ता: क्योंकि सर कई बार

आचार्य प्रशांत: व्यवहारिक रखिए, समस्या क्या है?

प्रश्नकर्ता: कई बार सर मैंने सोचा है कि मैं ही कुछ साइड हट जाऊं तो

आचार्य प्रशांत: फिर साइड हट जाऊं माने क्या? प्रतीकों में बात मत करिए। व्यवहारिक समस्या बताइए। आपका पूरा दिन रहता है। उसमें समस्या कहां पर आ रही है? यादें आती हैं।

प्रश्नकर्ता: हां सर ये है।

आचार्य प्रशांत: तो बोल क्यों नहीं रहे हो? गंदे गंदे गाने सुनते हो ना? मोहब्बत भी जरूरी थी, बिछड़ना भी जरूरी था। मगर भटके तो याद आया, भटकना भी जरूरी था। सुनते हो ना? बता क्यों नहीं रहे हो?

प्रश्नकर्ता: सर फिलहाल तो सर आपके उस एपी सजेस्ट सॉन्ग है यूट्यूब पे, वही सुनता हूं मैं तो।

आचार्य प्रशांत: तुम उसमें भी कुछ निकाल लेते होगे। तेरा मेरा प्यार अमर, फिर क्यों मुझको लगता है डर? मैं तो अहम् और आत्मा की बात कर रहा हूं। आप वहां कोई और बात कर रहे हो।

ये गुलाबी समस्याओं का कोई समाधान नहीं होता है। वो मुझे याद आती है उसकी छुप-छुप के तस्वीरें देखता हूं वो गाने सुनता हूं। इसका कोई समाधान नहीं होता है। कुछ नहीं हो सकता इसका। सुन लिया करो गाने इसका यही है।

प्रश्नकर्ता: कोशिश की सर मैंने उसको काफी बुक्स भी दी है पढ़ने के लिए। मैंने कहा

आचार्य प्रशांत: बुक्स! वो चली गई है। अब क्या बुक्स भेज रहे? आपको नहीं स्वीकारा आपकी बुक्स को स्वीकार रही है? होता है कभी ऐसा? किस मुगालते में हो?

फिल्मी बातें वही पूरा का पूरा लोकधर्म भी क्या है? प्लेजेंट एक्सपीरियंसेस, द रोमांस ऑफ लोक धर्म। फिर ऐसा होता है फिर ऐसा होता है फिर एक जोड़ी बनती है और उस जोड़ी में दोनों एक दूसरे के लिए होते हैं क्या मतलब? कैसी बातें कर रहे हो? फिर वो बिछड़ जाती है तो एक अलग स्टीरियोटाइप, एक अलग टेंपलेट एक्टिवेट हो जाता है उसमें शराब-वराब भी पी जाती है गंदी गंदी गजलें और ऐसे गाने सुने जाते हैं। इसका क्या कोई क्या समाधान देगा?

तुम्हें अपनी जिंदगी खराब करनी है, समय नष्ट करना है तो कर लो। कितना भी इसमें समय लगा सकते हो। कोई अंत नहीं है। कोई शारीरिक काम हो तो शरीर थक भी जाता है। मन तो अतल कुआं है। उसमें कितना भी आप शायरी डाल दो, रोमांस डाल दो, भावनाएं डाल दो, रील्स डाल दो, यही सब होता है। वो थोड़ी कभी भी भरता है। और ये सब कितना प्रेडिक्टेबल है ना। जो जिसको बहुत प्यार से घर लेकर आए होते हैं जब वो चली जाती है छोड़छाड़ करके और अपना रौद्र रूप दिखा देती है, तो फिर वो अलग आते हैं। कि वो तो कितने मासूम थे, क्या से, क्या हो गए, देखते-देखते। और बार-बार सुन रहे हैं उस रील को लूप में। क्या से क्या हो गए देखते-देखते, लगता है बिल्कुल मेरे लिए ही तो गाई गई है। आपके लिए भी गाई गई है, वो पूरी मानवता के लिए गाई गई है क्योंकि ये सबकी कहानी है क्योंकि ये एक अनिवार्य दुष्टचक्र है जिसमें आप फंसोगे ही फसोगे आप जैसे पैदा होते हो और जैसे ये पूरा सामाजिक ढर्रा है तो इसीलिए वो चीजें सब पर लागू हो जाती हैं। हां किसी पर 25 की उम्र में किसी पर 45 की उम्र में किसी पर हो सकता है 55-65 एक 105 की उम्र में।

अभी तो आ रहा है एक बड़े अभिनेता का 40 साल के बाद अब भारत में उसका डिवोर्स हो रहा है। उधर मुंह लटकाने की क्या बात है? सबके साथ होना ही था तुम्हारे साथ भी हो रहा तो मौत जैसी चीज है। तो होनी ही है। इसमें क्या परेशान हो रहे हो? और परेशान हो सकते हो कितना भी? होना है तो हो लो। चुनाव की बात है कि कितना परेशान होना है। पर ये होना सबके साथ है। जिनके साथ ऊपर-ऊपर से नहीं हो रहा उनके साथ अंदर-अंदर से हो गया है। आप आठ महीने के वियोग में परेशान हो रहे हो ऐसा भी हो सकता है कि एक ही घर, एक ही कमरे, एक ही बिस्तर में आठ साल से रहते हो तो भी वियोग पूरा-पूरा हो। उनकी व्यथा और गहरी होती है। पर यह होना सबके साथ है चाहे स्थूल चाहे सूक्ष्म। इसमें कोई एक्सेप्शन नहीं होता। यह नियम है।

अब यह होने के बाद चाहे तो शायरी सुनो, चाहे तो गीता सुनो। वो आपका चुनाव है। आ गई बात?

अच्छे काम में जिंदगी में डूबने। का यही फायदा होता है। यह जो भावनात्मक दलदल होती है ना, यह खा जाएगी नहीं तो। कोई इससे नहीं बच सकता। और इंसान पैदा हुए हो तो कोई ऐसा नहीं होगा जिस पर भावनाओं के जख्म ना हो। कोई ऐसा हो ही नहीं सकता। जिंदगी इसलिए नहीं होती है कि आपको बहुत सुख देगी। जिंदगी तो जख्म ही देती है। वो आपको सब तालते भी रहेंगे। यादें भी आती रहेंगी, जीना दुश्वार होता रहेगा। उसका एक ही तरीका है। डट के काम करो, खूब थक जाओ, सो जाओ। और काम के बाद भी ऊर्जा मिली है तो रैकेट उठा के जाकर के तोड़ फाड़ दो। कोर्ट को भी, नेट को भी सब तोड़-ताड़ दो। एकदम टूट जाओ जाके सो जाओ। बाकि मजनू बनने का अलग मजा है। वो वो वो वो लुत्फ उठाना है तो उठाओ।

मेरे ख्याल से हीर राझा का है। उसमें अभिनेता राजकुमार ये दुनिया ये महफिल मेरे काम की नहीं। क्या गजब का पिक्चराइजेशन है। अच्छा खासा आदमी बिल्कुल उसमें बाबा बन जा रहा है। एक गाने के अंदर-अंदर 5 मिनट के गाने में उसका पूरा रूपांतरण हो जा रहा है। तो चाहो तो वह सब भी कर सकते हो। जिंदगी तुम्हारी है। पूरी स्वाधीनता है। बर्बाद करना चाहो तो पूरी छूट है। क्यों भाई? और यह मसले सबके साथ होते हैं। जो बोले नहीं है मक्कार। हमें कैसे पता यह सब रील्स सुनी जाती हैं। सबके साथ होता है।

प्रश्नकर्ता: थैंक यू सो मच।

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी प्रणाम। आचार्य जी मुझे कोई समस्या नहीं है।

आचार्य प्रशांत: मुझे इसी बात से समस्या है।

प्रश्नकर्ता: मैं लगभग आपको तीन साल से सुन रहा हूं बदलाव बहुत है। मैं खुश बहुत हूं। अब आत्मविश्वास बहुत है। मैं खेल रहा हूं, कूद रहा हूं। मतलब मैं मन का काम भी कर रहा हूं। आचार्य जी, खुशी बहुत है। बस मैं जैसे ही अभी मुझे प्रमोशन मिला आचार्य जी तो मैंने उसे डिनाइ कर दिया कि मुझे घर से दूर जाना है। क्योंकि अभी मेरा सब बंधा हुआ है। मेरे शेड्यूल बंधे हुए हैं। मैं आपको सुनता हूं। सुबह खेलता हूं, लेखन करता हूं म्यूजिक मैं जा रहा हूं आचार्य जी और केष्ठा वगैरह भी करता हूं। अच्छी जॉब है। सब बहुत अच्छा है आचार्य जी। मुझे ऐसा लगता है मैं मुक्ति में जी रहा हूं मैं मोक्ष में जी रहा हूं।

पर आचार्य जी बस मेरी एक दुविधा है कि मुझे ऐसा लगता है कि इससे क्या मेरी प्रगति रुक रही है। मैं कोई लक्ष्य नहीं बना पा रहा हूं। ये समस्या नहीं है। दुविधा है। मैं क्या करूं?

आचार्य प्रशांत: नौकरी क्या है? सरकारी है ना?

प्रश्नकर्ता: हां पर मैं।

आचार्य जी मैं आपका शिष्य हूं और मैं बहुत मेहनत करता हूं आचार्य जी। यहां तक कि फीडबैक भी आते हैं कि आप प्राइवेट जॉब में हो। मैं बहुत मेहनत करता हूं। बस मैं खुश बहुत हूं। बस दुविधा यही है कि क्या मेरी प्रगति रुक रही है इससे? मैं बस इतना मैं द्वंद में हूं ऐसा बस।

आचार्य प्रशांत: बेटा, दुनिया में जब भी प्रगति होती है, वह किसी बाधा के विरुद्ध होती है ना। आप पहाड़ चढ़ते हो उसे बोलते हो आरोहण है। एसेंशन प्रगति है। क्योंकि आप गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध जा रहे हो। कोई बाधा तो होनी चाहिए सर्वप्रथम प्रगति के लिए? अन्यथा उसे गति बोलते हैं बस। बाधा कुछ नहीं है ऐसे-ऐसे चल रहे हैं, उसे बोलते हैं गति। तो प्रगति और अगति में कुछ तो अंतर होगा। प्रगति माने क्या होता है? जब नीचे खींचने वाली बाधा के विरुद्ध गति करी जाए। आपके पास तो कोई बाधा ही नहीं है, मस्त नौकरी है पेट भरा हुआ है खेलते हैं कूदते हैं तंतूर बजाते हैं, सो जाते हैं तो फिर इसमें। जब कोई बाधा ही नहीं है तो प्रगति कहां से होगी?

इलेक्ट्रिकल इंजीनियर कोई है यहां पे? एक सर्किट है जिसमें रेजिस्टेंस ही नहीं है, उस सर्किट का क्या होगा? रुक जाएगा फट से। जब बाधा ही नहीं है तो करंट भी नहीं बह सकता कितनी अजीब बात है। हम उसको नाम देते हैं रेजिस्टेंस। पर क्या वो रेजिस्टेंस है? वो तो इनेबलर है। एक रेजिस्टेंस लेस सर्किट हो तो रुक जाएगा। हम रेजिस्टेंस इसीलिए मिनिमाइज करते हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स जीरो रेजिस्टेंस की जो अवस्था होगी वो बड़ी गड़बड़ होती है। मिनिमाइज तो हम करना चाहते हैं ताकि लॉसेस ना हो। पर जीरो रेजिस्टेंस…. इसी तरीके से हम इस पे चलते हैं। हम बोलते हैं फ्रिक्शन है। हां फ्रिक्शन तो गड़बड़ चीज है पर फ्रिक्शन ना हो तो मैं गिर पडूंगा। फ्रिक्शन ना हो तो आप खड़े क्या? आप बैठे भी नहीं रह सकते। आप गिर जाओगे। सोफे से भी गिर जाओगे बैठे-बैठे। बाधा कहां है? बाधा तो होनी चाहिए तब तो प्रगति होगी। जीवन में जब आपने अभी तक कोई बाधा ही नहीं चुनी, कहीं आपने कोई ऐसा लक्ष्य ही नहीं चुना जो पाने लायक हो। सीधे कहूं तो आप अभी तक अपना दुश्मन ही चिन्हित नहीं कर पा रहे। तो आपकी प्रगति कौन सी होगी?

ऐसे ऐसे करिए करिए। (डंबल्स करने का संकेत करते हुए)

यही माइक पहन माइक पकड़ के करिए ऐसे बार-बार इधर डंबल्स कर रहे हैं। मसल्स बन जाएंगी। क्यों है? ऐसे ही तो कर रहे हो। ऐसे ही तो करते हैं सब। करो। माइक पकड़ के करो ना। बन गई। क्यों? क्यों नहीं बनी? कोई बाधा नहीं है। हाथ में बाधा पकड़नी पड़ती है तब ऐसे करने से कुछ होता है यहां पे।

प्रश्नकर्ता: लेकिन आचार्य जी मुझे ऐसा लगता है कि मैं मुझे यहीं तक आना था और बाधाएं मैं पार करके आया हूं। खूब संघर्ष किया। फिर मैं यहां तक आया। रिलेशन अच्छा, यह भी अच्छा। जितना मुझे चाहिए था उतना मिल रहा है। और मैं आपसे जुड़ा हुआ हूं। और 3 साल हो रहे हैं आचार्य जी आपसे। और मुझे लगता है खुश हूं। बहुत खुश हूं। तो बस मतलब प्रगति बस मुझे यहीं तक जाना है कि…

आचार्य प्रशांत: यहीं तक जाना है तो यहीं तक रहो। उसका कोई इलाज नहीं है। ये तो अपनी स्वेच्छा की बात है कि मैं अपने अब कुआं मिल गया है। उसमें पानी भी है छोटे-मोटे कीड़े भी हैं। पेट भर जाता है। सरकारी नौकरी मस्त है। क्या समस्या है? कुछ नहीं है। बस जितना वक्तव्य है तुम्हारा उसमें से एक छोटा सा वाक्यांश कट जाएगा। कट ये जाएगा कि मैं तो बड़ी से बड़ी चुनौतियां स्वीकार करके उनके विरुद्ध संघर्ष कर रहा हूं। तो मेरे साथ तो वही चल पाएंगे जो चुनौतियां उठाने को स्वीकार हो। बाकी सब तो मेरे लिए डेड वेट जैसे हैं ना। एक फाइटर प्लेन और एक कमर्शियल एयरलाइनर दोनों के वजन में क्या अनुपात होता है? फाइटर प्लेन बहुत हल्का होता है। क्योंकि फाइटर प्लेन को युद्ध करना है और कमर्शियल प्लेन को बस गृहस्थों को उठा के उनकी कामना की जगह पर ले जाना है।

फाइटर प्लेन डेड वेट लेके थोड़ी चल सकता है। मैं फाइटर प्लेन हूं। जो बॉम्ब बनने को तैयार हो, जो खुद ही एक्सप्लोड करने को तैयार हो, वो तो मेरे साथ नजर आएंगे। डेड वेट थोड़ी फाइटर प्लेन के साथ होता है। आपको कहना है कि सब ठीक है। कुछ ही बदलने की जरूरत क्या है? और मैं कह रहा हूं कुछ भी ठीक नहीं है सब कुछ बदलने की जरूरत है। अब तेरा मेरा मनवा कैसे एक होई रे? तुम कह रहे हो सब ठीक ही चल रहा है। मैं कह रहा हूं कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। तो हम दोनों एक साथ कैसे चलेंगे फिर?

तुमको चलना है अधिक से अधिक 700 की रफ्तार पर। मुझको चलना है मार्क तीन पर। हम साथ कैसे चलेंगे बताओ? पढ़ते हो दुनिया में क्या चल रहा है? सब ठीक है मुझे यहीं तक आना था आगे जाना नहीं है। पढ़ते हो दुनिया में क्या चल रहा है? या बस अपना पेट भर गया तो संतुष्ट हो?

दुनिया के लिए कोई तुम्हारे मन में संवेदना नहीं है? पेट तो मेरा भी भरा हुआ था। आप जिस सरकारी नौकरी में होगे उससे ऊपर की मेरे पास थी। तो मैंने क्यों नहीं कह दिया कि मेरा भी सब अच्छा ही चल रहा है। मुझे क्यों बाहर जाकर के आफत मोल लेनी है, संघर्ष करना है। कुछ करुणा, कुछ संवेदना, कुछ सेंसिटिविटी है दुनिया के लिए कि नहीं है? या बस यह कहोगे कि मेरा सब ठीक चल रहा है। या मैं अपने व्यक्तिगत घर के लिए संघर्ष कर रहा हूं। मेरे चार छोटे-छोटे बच्चे हैं। मुझे उनके लिए कुछ वसीयत विरासत छोड़ के जानी है? तो उनके लिए पैसा इकट्ठा कर रहा हूं? मैं ये जो कुछ कर रहा हूं किसके लिए कर रहा हूं? और तुम सारी बातें वो बोल रहे हो। मेरे पास नौकरी है। मेरा ठीक चल रहा है। मैं ऑफिस में मेहनत कर लेता हूं। मैं इससे संतुष्ट हूं। मैं वापस आके गाना सुन लेता हूं। मैं दौड़ भाग कर लेता हूं फिर मैं गीता सुन लेता हूं। मेरा सब ठीक चल रहा है। यह इतनी जो मेरा मेरा की बात है इसको अहंकार नहीं बोलते तो क्या बोलते हैं? अहंकार माने क्या? ‘मैं’ मेरा तो सब ठीक चल रहा है ना मुझे दुनिया से क्या लेना देना? मेरा सब ठीक चल रहा है। ऑफिस जाते हो घर से कितनी दूर है ऑफिस?

प्रश्नकर्ता: सेवेन कि.मी.

आचार्य प्रशांत: 7 कि.मी. में सड़क पर कोई कुत्ता, गाय, जानवर क्रूरता का शिकार दिखाई नहीं देता क्या? तो कैसे सब ठीक चल रहा है? अंधे होके जाते हो ऑफिस? 7 कि.मी. में तो बहुत कुछ दिख जाता है तुमने कुछ नहीं देखा? तो कैसे सब ठीक चल रहा है? किस शहर में जाते हो?

प्रश्नकर्ता: सिटी है सर।

आचार्य प्रशांत: कौन सी सिटी?

प्रश्नकर्ता: जबलपुर एमपी।

आचार्य प्रशांत: जबलपुर

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी मैं आपके साथ हूं। मैं हमेशा से…

आचार्य प्रशांत: मेरे साथ नहीं हो। मेरे साथ हो एहसान कर रहे हो जैसे? मेरे साथ, कैसे मेरे साथ हो लोगे इतना सस्ता है, कैसे साथ हो?

प्रश्नकर्ता: हर चीज में लोगों को…

आचार्य प्रशांत: हर चीज में कैसे साथ हो? तुम तो ऑफिस जाते हो जॉब करते हो वापस आते हो खाना खाते हो संगीत सुनते हो व्यायाम करते हो सो जाते हो मेरे साथ कैसे हो? मेरे साथ कैसे हो बताओ? कह और रहे हो मुझे तो मेरी जिंदगी की लक्ष्य मिल गया है। मंजिल मिल गई है। बहुत मेहनत करी थी। नौकरी मिल गई सरकारी अब मैं उसमें बहुत खुश हूं। तुम्हें तुम्हारी मंजिल मिल गई है। और मैं कहता हूं कि मैं जिस यात्रा पर हूं उसमें मंजिल अनंत है। मुझे पता है मुझे मरते दम तक मंजिल नहीं मिलनी। मेरे साथ कैसे हो तुम?

भाई मेरा काम उनके लिए नहीं है जो अपनी घर गृहस्ती में संतुष्ट होकर बैठ गए हैं। कल को तुम शादी ब्याह कर लोगे, बच्चे पैदा कर लोगे और ज्यादा संतुष्ट हो जाओगे। नहीं भी करोगे तो पहले से ही संतुष्ट हो तुम तो। मेरा काम उनके लिए है जिनकी असंतुष्टि रुकने का नाम नहीं ले रही। जिनके दिल में आग लगी हुई है। मेरा काम उनके लिए है।

जो मस्त है बिल्कुल कि अब तो अपना मोटा बधा बधाया सिक्योर पैसा आता है। परेशानी क्या है लाइफ में? चलो हॉबी की तरह गीता भी पढ़ लेते हैं। उनके साथ मेरा थोड़ा चलेगा। मुझे एक पल का चैन नहीं। और तुम्हें कहीं बेचैनी नहीं। तुम मेरे साथ कैसे हो बताओ? मैं तो अभी आधे घंटे का ब्रेक भी हुआ था उसमें भी काम कर रहा था। मुझे एक पल का चैन नहीं है। तुम कह रहे हो मुझे कोई बेचैनी, कोई समस्या नहीं है। हम दोनों एक साथ कैसे हैं? बताओ।

प्रश्नकर्ता: यही जवाब लेने आया था।

प्रश्नकर्ता: साहब नमस्कार। मैं जाति सवाल पूछना नहीं चाहता था लेकिन छिड़ गया है तो फॉलो अप पूछ रहा हूं। मेरा बिल्कुल रिवर्स है। करियर में एक लीनियर ग्रोथ लगातार मिलती जा रही है। जैसे सोचा था कि इस पॉइंट पर इतने पैसे मिल जाएंगे तो ठीक रहेगा। इस पॉइंट पर इतने पैसे मिल जाएंगे। सब कुछ वो हो रहा है। लेकिन वो लगातार डिसटिस्फेक्शन खाए जा रहा है अंदर से खाए जा रहा है। और अब मैं बहुत ज्यादा कॉन्शियस हो रहा हूं कि अभी तक मैं जैसा हूं मैंने जैसे चीजें चूज़ करी थी उसकी वजह से मैं यहां पहुंच गया। अब मैं ऐसे ही रहते हुए अब अगला कुछ ऑप्शन चूज़ कर लूंगा तो और ज्यादा फंस जाऊंगा। तो रुक गया हूं और रुक के अब बस खंगाल रहा हूं कि कौन सी ऐसी चीज है जहां पर बिल्कुल बिल्कुल अंदर तक जाया जा सकता है।

लेकिन वो प्रोसेस बहुत स्लो चल रहा है। चीजें अंदर तक उतरने का इंतजार कर रहा हूं कि कॉन्शियसली चुनू ना चुनूं क्या चुनूं कौन सी परेशानी है जिसमें बिल्कुल झुका जा सकता है। बिल्कुल खत्म हुआ जा सकता है। लेकिन इस सबके बीच में वो जो मतलब जो ऑफिस के जितने भी केपीआई हैं परफॉर्मेंस हैं वो अपने आप स्लो होती जा रही है। क्योंकि मतलब मैं 100% निकल ही नहीं रहा है कि मैं मतलब मैं दिल नहीं लगा पा रहा हूं कि जो जरूरी है वो कर दूंगा लेकिन उससे ज्यादा नहीं हो पाएगा। तो मैं बस ये समझना चाह रहा हूं कि क्या जो दूसरा वाला प्रोसेस है जो जिसमें बहुत टाइम लग रहा है जिसमें चूज़ करने में टाइम लग रहा है क्या वो किसी तरीके से मैं और कैसे उसमें इंप्रोवाइज कर सकता हूं। कैसे बेटर कर सकता हूं?

आचार्य प्रशांत: देखो दो तरह के लोग होते हैं। एक झटका वाले एक हलाल वाले। झटका वाले वह कि जिनमें दम होता है कि एक बार में ही जो चीज खत्म होनी चाहिए कर दिया और दूसरे वो होते हैं जो कहते हैं कि धीरे धीरे धीरे धीरे स्लो ब्लड लेटिंग हो रही है उसके बाद रिश्ता टूटेगा। तो ऐसे में जब कोई आकर बोलता है कि आचार्य जी मुझे दिखाई देता है कि मेरी जॉब मीनिंगलेस से काम में अब मन नहीं लगता और मेरे जितने केपीआई हैं और परफॉर्मेंस मैट्रिक्स हैं वो सब डिप कर रहे हैं। तो मैं उनको कहता हूं बेटा उन्हें और तेजी से डिप करने दो ताकि तुम्हें वो जल्दी से निकाल दें क्योंकि खुद तो तुम निकलने से रहे। झटका वाला तुम्हारा हिसाब है नहीं। तुम खुद कभी निकलोगे नहीं। तो तुम्हारे लिए अच्छा यही है कि तुम्हारा काम इतनी तेजी से खराब हो कि तुम्हारा बॉस ही तुमको फायर कर दे।

अब थोड़ी गरिमा रहती तो अच्छा ही होता खुद निकल गए होते या थोड़ा साहस दिखाया होता तो अच्छा ये होता कि खुद कुछ अपने लिए एक नया जहान बना लिया होता काम का वो बनाया नहीं। कई बार वो इसलिए भी होता है कि कोई विकल्प पता नहीं चल रहा होता है तब अस्तित्व खुद ऐसी स्थितियां तैयार कर देता है कि आपका जो पुराना जहान है वो टूट जाए डिस्मेंटल हो जाए क्योंकि आप उसमें मन नहीं लगा पाओगे ध्यान नहीं दे पाओगे तो फिर वह खुद ही आपको जो है इजेक्ट कर देगा। वह खुद ही आपको बाहर निकाल देगा। वो प्रक्रिया अगर चल पड़ी है तो उसको और गति लेने दीजिए ताकि वह खुद ही आपको हां जाओ भाई रुखसत कर दिया। जाइए आप, जाइए।

भगवान महावीर के साथ कुछ-कुछ ऐसा ही हुआ था। वो निकलना चाहते थे। उनके घर वाले उनको निकलने नहीं दे रहे थे। और घर में स्थितियां भी कुछ बार-बार ऐसी बन जाती थी कि उनका निकलना मुश्किल हो जाता था। कभी घर में किसी की मृत्यु हो गई। कभी कोई बीमार पड़ गया। कभी राज्य की कोई जिम्मेदारी आ गई। यह सब चल रहा था। तो जितनी बार बोले मुझे जाने दो, मुझे जाने दो। तो घर वाले बोलते थे नहीं अभी तुम्हें नहीं जाना है। घर में ऐसी हालत हो गई है। देखो फलाने अब नहीं रहे तो उनका सब काम तुम्हें संभालना है। अभी तुम नहीं जा सकते। जिम्मेदारी। तो बेचारे जा ना पाए हैं।

तो वो घर में ऐसे अन्य मनस खोकर रहने लगे। वो घर में रहते हुए भी ऐसे रहने लगे जैसे वो घर में है ही नहीं। तो फिर घर वालों ने एक दिन खुद ही हाथ जोड़ के उनसे कहा कि जा तो तुम चुके ही हो, अब चले ही जाओ। तुम्हें रोकने से कोई फायदा नहीं हुआ क्योंकि तुम यहां होकर भी यहां के हो तो नहीं। जा तो तुम चुके हो तो अब चले ही जाओ। तो ये अस्तित्व की प्रक्रिया होती है। आपको राहत देने की।

प्रश्नकर्ता: सर वो बिल्कुल हर एक एस्पेक्ट में हो रहा है। वो सिर्फ ऑफिस में नहीं हो रहा है। वो सिर्फ घर में भी सेम हो रहा है कि आप बिल्कुल बुद्ध बन के बैठे हुए हो वहां पे कि या तो आप खत्म कर लो फिर मैं अपना शुरू करूं। तो

आचार्य प्रशांत: समय बचाना चाहते हो तो खुद ही जल्दी कर लो सक्रिय रूप से। समय अपनी ओर से नहीं भी बचाना चाहोगे तो फिर अब स्थितियां स्वयं ही ऐसी बनेंगीं निकल तो जाओगे ही। हां समय बर्बाद होगा। जो काम अभी हो सकता है वह 4 साल बाद होगा।

पर यह आप सब लोग पक्का समझ लीजिए। कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिन्हें देखकर अनदेखा नहीं करा जा सकता। कुछ बातें ऐसी होती हैं जिनको समझने के बाद आप नासमझ बने नहीं रह सकते। अगर मैं सफल हो पाया हूं गीता आपको समझाने में आंशिक रूप से भी। तो आप मुझसे भाग कर भी चले जाओ आप गीता को छोड़कर भी चले जाओ तो आप चैन नहीं पाओगे क्योंकि कुछ बात आपने समझ ली है। अपनी समझ पर खुद ही पर्दा कैसे डालोगे? कुछ है जो आपने सुन लिया है। उसको अनसुना कैसे करोगे?

तो अब आपकी प्रक्रिया शुरू हो गई। मेरी संवेदनाएं, मेरा शोक संदेश आपके साथ है। पर आपकी वो प्रक्रिया तो शुरू करा दी है मैंने। अब वह प्रक्रिया आपके ऊपर है कि जल्दी से पूरी कर लेते हैं झटका दे के या धीरे-धीरे आप कहते हैं कि रक्त बहता रहे, रक्त बहता रहे और पेनफुल प्रोलोंगड डेथ होगी।

मेरी मेरी आमतौर पे जो स्टाइल रहती है वो यह रहती है कि करो करो करो करो बर्दाश्त करो और जब एकदम स्पष्ट हो जाए कि हो गया तो फिर एक झटके में अचानक बिना सूचना बिना चेतावनी के समाप्त। कोई मुझसे भी ज्यादा साहसी हो तो वह और जल्दी भी समाप्त कर सकता है। लेकिन यह पक्का समझ लीजिए कि अंधेरे कमरे में थे आप और सोच रहे थे कि सब पकवान ही पकवान पड़े हुए हैं जमीन पर और चाट रहे थे। सिर्फ 3 सेकंड के लिए कमरे में रोशनी हो गई सिर्फ तीन सेकंड के लिए और फिर उतना ही घूप अंधेरा हो गया जितना पहले था। पहले घूप अंधेरा था जमीन पे आप चाटे आ रहे थे कि पकवान पड़े हैं। तीन सेकंड की रोशनी हुई। उसने दिखा दिया कि जमीन पर टट्टी पड़ी हुई है। और फिर उतना ही अंधेरा हो गया जितना पहले था। क्या आप चाट पाओगे?

कुछ देख लिया आप अनदेखा कैसे करोगे? गीता 3 सेकंड को भी अगर आ गई है जीवन में तो उसके बाद गीता कम्युनिटी से दूर भी भाग जाओगे तो वैसे नहीं रह पाओगे जैसे थे। जल्दी ही कर लो।

प्रश्नकर्ता: प्रणाम सर, सर दुनिया में हमारे इंटरेक्शंस होते हैं तो उसमें लोगों के हिडन मोटिव्स होते हैं कई बार तो वो हमें समझ नहीं आते वो किस मोटिव से बात कर रहे हैं। तो जब समझ नहीं आते कई बार तो तत्काल समझ में आ जाते हैं पर जब समझ नहीं आते तो मन में बार-बार घूमती रहती है वो बात या उनकी बातें। तो सर जानने समझने की जो प्रक्रिया है ये उस चीज का हिस्सा होता है या फिर कुछ मैं गलत समझ रहा हूं इसमें ये जो स्ट्रेस पैदा..

आचार्य प्रशांत: समझ क्या रहे हैं आप

प्रश्नकर्ता: मतलब इससे स्ट्रेस पैदा होती है इससे स्ट्रेस होती है क्योंकि वो

आचार्य प्रशांत: सामने वाले का पता नहीं क्या इरादा है

प्रश्नकर्ता: जी

आचार्य प्रशांत: हां तो क्या पता? उसे ही नहीं पता उसका क्या इरादा है आपको कैसे पता क्या इरादा है? आपको अपने इरादे पता होते हैं? तो आपके सामने जो आपसे व्यवहार कर रहा है उसको अपने इरादे कैसे पता होंगे? किसी को कुछ नहीं पता पर फिर भी व्यवहार भी चल रहा है, बाजार चल रहा है, कारोबार चल रहे हैं, रिश्ते नाते चल रहे हैं। किसी को कुछ पता थोड़ी है। आपकी कुछ करने की, कर्म की जो प्रेरणा है, वह कहां से आ रही है, आपको पता थोड़ी होता है। आप कर्म के अनुभोक्ता होते हैं। आप कर्म के स्रोत थोड़ी होते हैं। एक्शन का जो पूरा प्रोसेस है, जब वह बिल्कुल अपने एंड पॉइंट आखिरी मुकाम पर पहुंच रहा होता है। तब आपको उसका पता चलता है। लगभग वैसे कि जैसे कोई बीमारी आपके भीतर बहुत समय से पनप रही हो आठ महीने से पनप रही थी। पर जब वो बिल्कुल अंत में पहुंच रही है तो आपको उसका सिम्टम पता चलता है। सिम्टम पहले था ही नहीं। बीमारी थी सिम्टम नहीं था। उसी तरह से कर्म की जो पूरी प्रक्रिया होती है उसका आखिरी सिम्टम होता है कर्म। प्रक्रिया तो उसके पीछे बहुत लंबी है। और जो पूरी लंबी प्रक्रिया है उससे हम अनभिज्ञ होते हैं इसी को आत्म अज्ञान कहते हैं।

हमें नहीं पता कि मेरे भीतर क्या लहर चली, जिसके कारण मैंने यह बात बोल दी। मुझे नहीं पता मेरे भीतर क्या लहर कहां से उठी, जिसके कारण मेरा मूड खराब हो गया। कोई मेरे सामने कोई प्रस्ताव लेकर आया था, मुझे नहीं पता मेरे भीतर पूरी वो प्रोसेस, वो पूरा जो प्रोसेस है, उसके अलग-अलग स्टेप्स क्या हैं मैं नहीं जानता। मुझे बस यह पता है कि उसके आखिरी बिंदु पर आकर मुझे ऐसा अनुभव हुआ, लगा, एक्सपीरियंस हुआ कि मुझे यस बोल देना चाहिए तो मैंने हां बोल दिया। आत्मअज्ञान का मतलब है अपनी ही प्रक्रियाओं का स्रोत ना होना बल्कि अनुभोक्ता होना। तो जो कितनी अजीब बात है। हमें ही नहीं पता हमारे भीतर क्या पक रहा है। वो जब पक पुका के बाहर आ जाता है तो हमें पता चलता है जैसे एसिडिटी। आपके भीतर बहुत एसिड है एसिड है एसिड है। आपको पता कब चलता है? जब डकार आती है और गला जलता है। तो कर्म हमारे और शब्द हमारे और भाव हमारे सब एसिडीटी की तरह होते हैं। वो भीतर पक रहे होते हैं, पक रहे होते हैं। हमें नहीं पता होता। फिर जब वो ऐसे रिफ्लेक्स आता है और गला जलता है तो पता चलता है। अच्छा ये था क्या, ये था क्या? वैसे ही वैसे ही होता है।

आप नहीं जानते कि आपको कोई कपड़ा क्यों पसंद है? आप एक्सप्लेन नहीं कर पाओगे। आपसे मैं इतनी देर से पूछता रहा। समस्या बताओ। आप बता ही नहीं पाओगे। आप अनुभव करते हो, जानते नहीं हो। और मैंने इतनी बार बोला है अंडरस्टैंडिंग एंड एक्सपीरियंसिंग ये दो बहुत अलग-अलग बातें हैं। ठीक वैसे-जैसे जैसे हम दुनिया भर की चीजों को एक्सपीरियंस करते हैं जानते तो कुछ है नहीं। वैसे ही हमारे भीतर भी जो चल रहा है हम उसको भी बस एक्सपीरियंस करते हैं। जानते नहीं है।

प्रश्नकर्ता: तो सर जानने के लिए जो है उसमें और पैनी दृष्टि की जरूरत है। और

आचार्य प्रशांत: लंबा समय लगेगा जो उसकी प्रक्रिया है। मैं आपको उसी में साथ ले चल रहा हूं। पूरा गीता कार्यक्रम इसीलिए। जो गीता कार्यक्रम में है ईमानदारी से है मेरी बात को सुन रहा है, समझ रहा है फिर बोल रहा हूं संसार में बेवकूफ नहीं बन सकता। ऐसा नहीं हो पाएगा कि दुनिया आकर आपको ठग ले गई। हां, इतना जरूर हो जाएगा कि दुनिया के प्रति आप ऐसे हो जाओगे कि कोई आपको ठगने आए, हो सकता है आप खुद ही उससे कहो ले जा। तेरे लिए यह बड़ी कीमत का है। मेरे लिए नहीं है उतनी कीमत यार ले जा। वैसे तूने मुझे लूटा नहीं है मैंने तुझे दिया है। ले जा।

प्रश्नकर्ता: तो सर इस प्रोसेस में स्ट्रेस टेंशन ये सब भी

आचार्य प्रशांत: स्ट्रेस टेंशन से कोई फायदा नहीं है क्योंकि नहीं समझ में आ रहा तो स्ट्रेस लेने समझ में तो नहीं आ जाएगा और समझ ऐसी चीज नहीं है कि खट से हो जाना है। अभ्यास करना पड़ता है हर गीता सत्र आपकी समझ को पैनिक करता है। एक कदम और आगे बढ़ाता है। तो यह कहना कि मुझे अभी नहीं आ रहा अभी नहीं आ रहा, भाई वक्त लगेगा वक्त लगेगा। बहुत पुराना जेनेटिक क्लटर है और सोशल कंडीशनिंग है वो साफ होने में वक्त लगता है लेकिन प्रमाण आने शुरू हो जाते हैं कुछ महीने में ही

प्रश्नकर्ता: धन्यवाद सर।

प्रश्नकर्ता: सर ये थोड़ा सा मेरे साथ भी होता है तो मतलब अब तो मैं कॉलेज में हूं तो आई हैव टू इंगेज विद माय फ्रेंड्स क्योंकि अगर मेरे को थोड़ा कुछ पता चला तो आई वांट कि मतलब वो भी समझे चीज। बट बहुत बार यह होता है कि एक ग्रुप मेरा कॉलेज में दोस्तों का है जिनके साथ मैं ऐसी बातें करता हूं एंड दे अंडरस्टैंड और वो समझते भी हैं। बट कुछ ऐसे हैं जिनके सामने जब ऐसी बात करता हूं उनको ऐसा लगता है कि क्यों….

आचार्य प्रशांत: यार आप ना उस समस्या को लेकर आ रहे हो जिसके बारे में मैं कम से कम 50 बार पहले बोल चुका हूं। आप गलत ये नहीं कर रहे हो कि आप समझाना चाहते हो। आप गलत ये कर रहे हो कि आप मात्र पांच सात 10 15 चुनिंदा लोगों को समझाना चाहते हो। और उनको इसलिए समझाना चाहते हो क्योंकि उनको नहीं समझा पाए तो आपके स्वार्थों पर चोट पड़ जाएगी।

मुझे समझाना था तो मैं क्या अपने बस यार दोस्तों को या परिवार वालों को समझा रहा था? आप बैठे हुए हैं लोग अभी भी नहीं समझते। मैं अगर इसी में रुक गया होता कि यह समझेंगे उसके बाद आप तक आऊंगा तो मेरी तो यात्रा शुरू भी नहीं होती। आप अपनी नियत तो लेकर आते हो समझाना है, समझाना है पर वह समझाने का काम नेक नियति नहीं है वहां पर डर है।

उदाहरण के लिए मैं बहुत कोशिश कर रही हूं कि अपने पति को गीता से जोड़ दूं, इसमें डर भी है। डर यह है कि अगर उनको नहीं जोड़ा तो किसी दिन थप्पड़ मार के मेरा भी छुड़वा देंगे। बात समझ में आ रही है? कि अकेले तो मैं वैसे भी नहीं चल पाउंगी तो इनको भी जोड़ देती हूं। तो ये 10-15 ही लोगों से क्यों बात करते हो? अच्छा एक बात बताओ, आप यहां बैठे हुए हो मुझे लगता है भारत का हर राज्य अभी यहां पर मौजूद है। ठीक है ना?

मैं कोई अपने घर, गांव, प्रांत, गांव, कस्बा कहीं जुड़ गया था क्या? कुछ लोग तो हो सकते हैं विदेश से भी आए हुए हो। आपको मालूम है कितने लोगों तक बात पहुंचती है तब जाकर के एक कन्वर्जन होता है। कन्वर्जन से आशय की वो व्यक्ति रुचि दिखाता है।

एक वीडियो है उसको हम सोशल मीडिया पर दिखा रहे हैं कि कितने लोगों तक वो वीडियो पहुंचाना पड़ता है तब जाकर के कोई एक व्यक्ति क्लिक करता है। कितने लोगों तक पहुंचाते हैं कम से कम? हां?

हजारों लाखों तक जब हम पहुंचते हैं तो एक व्यक्ति देखता है फिर उसमें तुम 100 गुना और जोड़ दो तो एक व्यक्ति होता है जिसकी रुचि आती है। फिर और उसमें 100 गुना जोड़ दो तब जाकर के और 100 गुना ही नहीं फिर 4 साल और जोड़ दो तब व्यक्ति एक जाकर के यहां गीता सत्रों में आता है। पूरे देश को हमने खंगाल मारा है तब जाकर आप आप इतने लोग इकट्ठा हो पाए हो। हम अपने मोहल्ले में ही प्रयास करते रह जाते कि इन्हीं सबको बदलेंगे तब तो हो चुका था। आज यहां पे कोई आसाम से भी बैठा होगा, कोई गुजरात से भी बैठा होगा, नागालैंड, मणिपुर वाले भी मौजूद है। अरुणाचल से भी हैं, दक्षिण से भी हैं। कश्मीर से भी हैं। वो कैसे आ गए? क्योंकि रुक नहीं गए थे कि बस इसी को कन्वर्ट करना है। बस इसी को क्यों कन्वर्ट करना है। निश्चित रूप से फिर मेरी कोई आसक्ति है, कोई ऑब्सेशन है कि मैं इसी को कन्वर्ट करना चाहता हूं। मैं इसी को क्यों करूं? भाई वो नहीं सुन रहा तो अगले पे चलो ना। वो नहीं सुन रहा तो अगले को सुनाएंगे। तुम्हें नहीं चाहिए तो मत लो।

ये कहां की बात है कि मैं पिछले 18 महीने से मम्मी को गीता से जोड़ने की कोशिश कर रही हूं। अरे मम्मी को नहीं जोड़ना। मम्मी तुमसे पुरानी है। तुम नहीं थी तब भी मम्मी थी। मम्मी की भी है अपनी भाई, तो इच्छा बोलो माया बोलो उसे नहीं जोड़ना तो नहीं जोड़ना तुम काहे के लिए वहां डेरा डाल के बैठ गई हो कि मम्मी को ही जोड़ना है। इतने प्रयास में तो तुमने ना जाने कितनों को जोड़ दिया होता अब आपको खुद से सवाल ये करना चाहिए कि आपको मम्मी को ही क्यों जोड़ना है? मैं नहीं कह रहा कि मम्मी को मत जोड़ो मम्मी पर भी प्रयास कर लो पर जब दिख जाए कि मम्मी नहीं ही जोड़ना चाहती तो मम्मी पर ही प्रयास करते रहोगे क्या?

यह एक बहुतों की कहानी है। जब भी बात आती है लोगों गीता से जोड़ने की मैंने तो जोड़ा था पर मेरे वाले बोलते हैं कि मैं नहीं सुनूंगा। अच्छा तुमने गलत आदमियों को काहे को जोड़ा था? तुमने जोड़ा नहीं था। तुमने फोर्स फिटिंग करी थी। जोड़ने में और फोर्स फिटिंग में अंतर होता है। फोर्स फिटिंग जानते हो? जो जुड़ सकता ही नहीं उसको जबरदस्ती जोड़ना। और इस चक्कर में जो जुड़ सकता था उस पर प्रयास ही नहीं करा। यह कोई छोटी मोटी चीज नहीं है। जो मैं आपको बोल रहा हूं ना यह जो अभी आपको बात बोल रही है सरल करके बोल दी है। नहीं तो यह जो बात है ये उपनिषदों का उपनिषद है। ये उच्चतम ग्रंथों को जैसे एक बूंद में समेट दिया जाए वैसा सार है। सब थोड़े इसके लायक हो जाते हैं। मैं आप तक आसानी से ले आया हूं तो आपको लगता है कि चीज भी सस्ती है। यह बहुत महंगी चीज है और सब इसके लायक नहीं होते। जब सब इसके लायक नहीं होते तो अपने आसपास वालों पर ही आप क्यों प्रयास करना शुरू कर देते हो? अरे वो इसके लायक नहीं है वो नहीं सुनेंगे। उनसे हजम ही नहीं होगी ये बात। जाओ उसको ढूंढो जो सुन सकता है। उसको लेकर के आओ। और आसपास वालों पे ज्यादा प्रयास करोगे तो आप तो उनको यहां नहीं ला पाओगे। वो आपको बाहर और खींच लेंगे।

एक दर्जन लोग हो जो डूबने की ठान चुके हो और वो डूबे ही जा रहे हो और एक आदमी हाथ दे दे कि उन्हें खींच तो क्या होगा? जल्दी बोलो क्या होगा?

13 डूबेंगे 12 नहीं। जो ठान ही चुका है कि इतनी बार आपको बोला चेतना माने चुनाव जबरदस्ती किसी से कुछ नहीं कराया जा सकता और मुक्ति तो किसी को जबरदस्ती दिलाई ही नहीं जा सकती। जो खुद ठान चुका है कि उसे भबंद में ही रहना है। उसे मुक्ति चाहिए ही नहीं। उसको बेड़ियों में ही जीवन बिताना है। उसको आप जबरदस्ती आजाद कर दोगे क्या? वो फिर आपकी आसक्ति है। कि अब मेरी पत्नी, मेरा पति, मेरी मां, ऐसे नहीं होता।

श्री कृष्ण ने गीता अपने किसी रिश्तेदार को सुनाई थी। हां, अर्जुन से रिश्ता था पर दूर का था। या श्री कृष्ण ने यह कहा था कि अपने ही पुत्र को सुनाऊंगा अपनी ही पत्नी को सुनाऊंगा। यह करा था क्या? जो काबिल हो उसको सुनाई थी ना अपने ही घर में थोड़ी हो जाता है काम। अर्जुन को गीता मिल गई थी तो भाग के बड़े भैया के पास गए थे। भैया भैया रजिस्टर करो तुम भी। भैया बोले हम पहले से धर्मराज हैं। भाग यहां से हम सब जानते हैं। तो अर्जुन ने तकलीफ भी नहीं उठाई। बोले ये तो पहले ही सब ज्ञाता हैं। इनको कुछ नहीं बताएंगे। जो पहले से ही बहुत जानता हो उसको कुछ बताने से फायदा नहीं।

और अपने घर वालों पर प्रयास करना हमेशा टेढ़ी खीर रहा है। वो आखिरी लोग होते तो समझते हैं घर की मुर्गी दाल बराबर पुरानी कहावत है। घर का जोगी जोगना अन गांव का सिद्ध। जीसस ने बोला है किसी ज्ञानी को कहीं भी सम्मान मिल सकता है अपने गांव में नहीं मिल सकता। आप अपने ही घर में लगे हो फिर पीटते हो तो मुंह ले आ जाते हो। मैं क्या करूं? मेरी कोई सुनता नहीं आचार्य जी। आचार्य जी की भी कोई नहीं सुनता।

माने ऐसा-सा है कि जैसे पोलियो की वैक्सीन लगानी है या कुछ और काम करना है अच्छा दुनिया का तो घर ही में अपने सबको इंजेक्शन ठोक दिया अरे उसको लगाओ ना जिसको जरूरत है। दादी को ले जाकर के दादी जरा मुड़ना और पिछवाड़े पर फट! गाली और खाओगे। तो नहीं चाहिए भाई।

जिन्हें आजाद उड़ना है। वो ऐसों के साथ कैसे चलने जिन्हें अपने पंखे नहीं खोलने। और आप मुझे होंगे बहुत प्यारे लेकिन आजादी मुझे किसी से भी ज्यादा प्यारी है। आपकी खातिर अपनी आजादी थोड़ी छोडूंगा। ऐ बोला इन्हें मुझसे ज्यादा प्यारा कोई और है। बेवफा बेवफा निकला तू। ठीक है। जिंदगी भर यही इल्जाम लगा है। आप भी लगा लो। आपने अपनी जिंदगी आज तक जी कैसी है कि कैसे लोगों से आपने संबंध बनाए हैं जिनको आप गीता में ला ही नहीं सकते। सोचिए कितनी खौफनाक बात है। कि आपका घर, परिवार, दोस्त, प्यार, दफ्तर, व्यापार सब ऐसा है कि आप उन्हें कहीं भी ला सकते उन्हें गीता में नहीं ला सकते। तो सोचो आपने जिंदगी कैसी जी है आज तक और कैसों के साथ आपने रिश्ते बनाए कैसों से आपकी यारी है कैसा आपका व्यापार है कैसा आपका प्यार है ओ शेमश सेम अब क्या करें?

प्रश्नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी मैं आपको पिछले एक साल से सुन रही हूं और आपको सुनने से पहले मेरी लाइफ बहुत ही ज्यादा नॉर्मल थी मतलब वही स्टडी, स्टडी के बाद छोटी सी जॉब फिर शादी और फिर बच्चे मतलब इतना ही सीमित था। लेकिन आपको सुनने के बाद मेरा जो दृष्टि है वो थोड़ी बड़ी हुई कि नहीं लाइफ इससे भी ब्रॉड है। तो पहले ये होता था कि अपनी लाइफ में बिजी थी लेकिन आपको सुनने के बाद अब ये हो गया है कि जो चेतना देखने का स्तर है वो थोड़ा ब्रॉड हो गया। जैसे समाज में पहले मतलब एनिमल में कितने ज्यादा मतलब लोग उन पे टॉर्चर कर रहे हैं। अपने उस नीड के लिए उन पे कोई ध्यान नहीं था। हमारा एजुकेशन सिस्टम कितना वीक है उस पे भी कोई ध्यान नहीं था। घर में हम अपने ही जो छोटे बच्चे होते हैं उनके एजुकेशन में हम इनडायरेक्टली क्या उनको बता देते हैं? समझा देते हैं। उनका मेंटल कितना हम उसको डिस्ट्रॉय कर देते हैं। ऐसा कुछ नहीं पता था। आपको सुनने के बाद अब ये चीजें मैं फील करती हूं देखती हूं कि हम अपने खुद से उनको कितनी गलत शिक्षा दे देते हैं।

अब जब ये चीजें मैं देख पा रही हूं तो मैं जब उनसे बात करती हूं इस चीज के बारे में कि आपको ध्यान रखना चाहिए। एनिमल पे नहीं मतलब इतना टॉर्चर नहीं करना चाहिए। थोड़ा आप देखो कि लाइफ इससे भी और ज्यादा ऊपर है। तो वो कहते हैं कि नहीं यह तो नॉर्मल है। ये तो होता ही है ये तो सबके साथ होता है। यह सोचने वाली बात नहीं है। अब मैंने समझ लिया मेरे साथ दुविधा यह है कि पहले नहीं समझा था नॉर्मल था सब कुछ। लेकिन समझ लिया है ना तो अपने अंदर रहता है कुछ मन में कि क्यों समझ लिया। कई बार मतलब गुस्सा भी आता है कि ना समझा होता तो थोड़ा मतलब अंदर से होता है सेटिस्फेक्शन कि नहीं समझा ठीक था। लेकिन समझ लिया है। समझने के बाद उसको चेंज करने की इतनी अभी मतलब है नहीं। ना मैं बन पा रही हूं ना मेरे पास कुछ है कि मैं उसको चेंज कर दूं और चेंज नहीं कर पा रही तो अंदर ही कुछ है कि मतलब इतने का टूट सा एक दम सा एकदम मतलब कि अंदर सी बहुत सैडनेस फील होती है ये सब देख के पहले नहीं देखा तो कोई दिक्कत नहीं थी अब देख लिया है तो ये है कि मतलब फंस ही सी गई हूं मैं ऐसा लगता है क्यों नहीं देख लिया क्योंकि चेंज तो कर सकती नहीं है देख रहे हैं बस पर देखने से होगा क्या।

और मेन बात वो है कि जिन पे ये सब चीजें हो रही हैं जिन पे वो जैसे जानवर है बहुत ज्यादा लोग अत्याचार करते हैं मिल्क से उनका मतलब मांस खाते हैं। ऐसी बहुत सारी चीजें हैं। तो जो लोग वो कर रहे हैं उनसे बात करो तो आप बोलते हैं कि उनसे बात करो जो समझने को तैयार हैं। मतलब पॉइंट ऑफ नो टर्न पे हैं वो लोग उनसे बात करो वो नहीं समझते उस चीज को। अब उनसे बात करो। वो तो समझते नहीं लेकिन उनकी वजह से जो मतलब मासूम है उन पे हो रहा है सब कुछ। तो ये कैसे मैं करूं?

आचार्य प्रशांत: आप भी वैसी शिकायत कर रही हैं बस। मैं क्या बताऊं आपको? आप समझा पाओगे या मैं समझा पाऊंगा?

प्रश्नकर्ता: जैसे आप मेरे पर बताओगे मैं क्या करूं? क्योंकि मेरा मन इस चीज में बड़ा दुखी रहता है।

आचार्य प्रशांत: अच्छा अगर आप कोई समस्या देख रही हैं। आपको पता है मैं समझा पाऊंगा। आपके सामने कोई पेशेंट है। आपको पता है डॉक्टर इलाज कर लेगा। तो ये कितना मासूम सवाल है। मैं क्या करूं? क्या करो?

श्रोतागण: डॉक्टर के पास ले जाओ।

आचार्य प्रशांत: ये सबने मैंने जवाब ही नहीं दिया। ये पूरा ऑडिटोरियम जवाब दे रहा है।

प्रश्नकर्ता: लेकिन सर जो वो कर रहे हैं उनसे बात करो फिर मतलब वो तो है ही नहीं समझने कि उसमें भी फिर क्या करें?

आचार्य प्रशांत: माने करनी खुद ही है बात। कुछ ए से सुनाई पड़ रहा है अहम। माने आचार्य जी ये क्या करते हैं जो ये समझाते हो तो मैं ही समझा दूंगी और जब मैं नहीं समझा पाती तो आचार्य जी से पूछूंगी कि मैं क्यों नहीं समझा पाई

प्रश्नकर्ता: सर मैं जब भी बात करती हूं तो पहले आपको ही बीच में रखती हूं कि हां

आचार्य प्रशांत: तो मुझे ही रखना पड़ेगा और….

प्रश्नकर्ता: हां सर वही करती हूं

आचार्य प्रशांत: और कुछ नहीं कर सकते आप

प्रश्नकर्ता: जब भी मैं किसी से बात करती हूं पहले आपको बीच में ले आती हूं कि हां ऐसे आचार्य जी हैं।

आचार्य प्रशांत: हां तो वही देखिए ये दोनों ही तरीके चुनौती भरे हैं लेकिन सफलता की संभावना ज्यादा इसी तरीके में है कि मेरे पास ले आइए। आप अपरिचित होते अनजाने होते मैं आपसे औपचारिकता निभाता तो मैं बोल देता कि नहीं नहीं सबको अपने स्तर पर प्रयास करना चाहिए। करो करो। पर आप यहां पर कई महीनों से सालों से जुड़े हुए लोग हो अपने लोग हो। इसीलिए जो बिल्कुल ठोस बात है वो साफ-साफ बोल रहा हूं। मेरे पास ले आओगे तो काम हो जाएगा। अपने तल पे करोगे तो होगा नहीं।

मैक्सिम गोरकी का वक्तव्य था कि ऐसा हो कैसे सकता है कि एक आदमी पैदा हुआ है सिर्फ खाने के लिए, शादी करने के लिए, बच्चे पैदा करने के लिए और फिर मर जाने के लिए। ऐसा हो कैसे सकता है? मैक्सिम गोरखी ने बहुत एकदम वंडर में यह बात सोची होगी कि ऐसा हो कैसे सकता है कि कोई इंसान पैदा हुआ है और उसने पूरी जिंदगी में यही किया। कुछ कमाया, खाना बनाया, खाना खाया, परिवार बसाया, नौकरी करी, बच्चे पैदा करे और मर गया। ऐसा कैसे हो सकता है?

और मैं आपसे कह रहा हूं कि यह जो होता है यह तो शायद होता रहेगा। इसको शायद रोका नहीं जा सकता। यह जन्म लेने का दंड है। मैं आपको इसके अलावा कुछ दे सकता हूं। यह सब तो चलेगा। मैं आपको इसके अलावा कुछ दे सकता हूं। इसको शायद रोका नहीं जा सकता। जो पैदा हुआ है वह शायद कमाएगा, खाएगा, बच्चे पैदा करेगा। यह तो करेगा। इसके अलावा कुछ है जो यहां पर हो सकता है। इसके अलावा मैं आपको क्या दे सकता हूं? मेरे पास कोई आनंद या आसमानी मुक्ति नहीं है आपको देने के लिए। मैं आपको एक बेचैनी दे सकता हूं। और जो उस बेचैनी के दंश को स्वीकार करने को तैयार हो यही है सौदा। यही है। नहीं तो आपका हिसाब यह रहेगा कि वही सब कुछ चलेगा। खाना बनाना, खाना खाना, ऑफिस जाना, पैसे कमाना, बच्चे पैदा करना, मर जाना वो सब चलेगा और उस सब से आपको बेचैनी भी नहीं रहेगी। मैं आपको उस सब के प्रति बेचैन कर सकता हूं। और अगर बेचैन हो जाओगे तो शायद कुछ बदल जाए। शायद कुछ बदल जाए। आ रही है बात समझ में?

लेकर आओ। मैं कुछ दे रहा हूं, मुझे देने दो। और मुझे नहीं पता कि देखो बात यह नहीं है कि मैं आपको सेंटीमेंटल करना चाहता हूं पर प्रकृति का नियम है, काल को कोई नहीं जानता। कोई नहीं जानता कि कब, क्या, कहां, क्या हो जाए। बोथस्थल वाले मुझे डॉक्टर ने ईसीजी लिखकर दिया हुआ है। कुछ बोल रहे हैं कुछ बात है कब से लिख करके दिया हुआ है। एक तारीख को यहां आया था तब से मैंने अभी तक कराया नहीं है। मैं आपके सामने खड़ा हुआ था। बिल्कुल एकदम इसलिए नहीं बोल रहा हूं कि आपके भीतर भावना उठे। भावना पाश्विक होती है। मुझे नहीं उठवानी है। मैं आपके सामने खड़ा हुआ था मेरे दर्द हो रहा था। अभी मुश्किल से 5 मिनट पहले, मस्कुलर हो सकता है बिल्कुल जरूरी नहीं है कार्डियाक हो। मुझे नहीं पता कि मैं कब तक दे पाऊंगा। जब तक हूं तब तक मुझे दे लेने दो। ले आओ लोगों को जिनको मैं दे सकूं। और हो सकता है 50 साल चलूं बिल्कुल हो सकता है। हो सकता है कि 5 साल भी नहीं।

अब समस्या ये आती है ना जब मैं ये लिखता हूं तो इससे आपकी चेतना बढ़ती नहीं है। इतनी देर में कई दीदियों ने लिख दिया आचार्य जी आप हमारी जान है आप मर मत जाना। अरे, यह मत लिखो। मैं किसी और वजह से यह बता रहा हूं। भावुक तो आपको आपके घर वाले भी करते रहते हैं। मुझे वो नहीं करना है।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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