इंद्रियों से संसार है, और संसार से इंद्रियाँ || तत्वबोध पर (2019)

Acharya Prashant

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इंद्रियों से संसार है, और संसार से इंद्रियाँ || तत्वबोध पर (2019)

प्रश्नकर्ता: तत्वबोध के अनुसार आकाश, जल, वायु और अग्नि आदि तत्वों से कान, नाक, जीभ, त्वचा और आँख आदि इंद्रियों की उत्पत्ति हुई, लेकिन पाँच तत्व तो अचेतन हैं, उनसे इंद्रियों की उत्पत्ति कैसे हो सकती है? कृपया समझाएँ।

आचार्य प्रशांत: यहाँ उत्पत्ति विषयों की और इंद्रियों की क्रमशः नहीं है; विषयों और इंद्रियों की उत्पत्ति में कारण और कार्य का सम्बंध नहीं है। ऐसा नहीं कहा जा रहा है कि पंचतत्व, जो इंद्रियों के विषय हैं, वे पहले आए और फिर उनके आने के फलस्वरूप इंद्रियाँ आईं, इसको ऐसे मत पढ़ लेना। इंद्रियों के विषयों से इंद्रियों की उत्पत्ति है और साथ-ही-साथ इंद्रियों से इंद्रियों के विषयों की उत्पत्ति है। तो ये बात क्रमिक नहीं है, शृंखला में नहीं हो रहा है काम। उत्पत्ति को क्रमात्मक की जगह द्वैतात्मक जानना, जैसा बुद्ध ने कहा था, ‘समुत्पाद’।

जब क्रमश: उत्पत्ति होती है तो एक पहले होता है, दूसरा उसके होने के फलस्वरूप आता है, जैसे माँ और बच्चा, और द्वैतात्मक उत्पत्ति में दोनों एकसाथ आते हैं, दोनों एक-दूसरे का कारण हैं। और वास्तव में कोई किसी का कारण नहीं है। हाँ, जब जिज्ञासु मन पूछने ही लग जाए कि “इंद्रियाँ कहाँ से आईं?” तो कहा जाएगा, “इंद्रियाँ आईं विश्व से।” विश्व माने पंचभूत, पंचतत्व। और जब मन बहुत कौतूहल से पूछने लग जाए कि “संसार कहाँ से आया?” तो कहा जाएगा, “संसार आया इंद्रियों से।”

तो सत्य क्या है फिर, दोनों कहाँ से आए? दोनों जहाँ से आए, उसी का नाम तो निरंजन, निराकार है। वो ना संसार में समाहित है और ना इंद्रियों की पकड़ में आता है, वो दोनों से ही अछूता है। इंद्रियाँ बनती हैं संसार से और देखती भी हैं…?

श्रोतागण: संसार को।

आचार्य: संसार को। संसार का निर्माण इंद्रियाँ करती हैं संसार को प्रक्षेपित कर-करके। और संसार ना हो तो इंद्रियों का क्या वजूद! लेकिन फिर हम दोनों में से किसी को भी व्याख्यायित कैसे करें? फँस गए हैं न।

ऐसी स्थिति आ गई है कि कोई पूछे कि, "ये 'अ' कहाँ बैठा है?" तो हम कह दें, "'ब' के निकट", और 'ब' कहाँ बैठा है? तो कह दें, "'अ' के निकट।" और कोई पूछे, "दोनों कहाँ बैठे हैं?" तो हमारे पास कोई जवाब ही ना हो।

इस लाजवाब होने को, इस उत्तरहीनता को, इस अवाक् रह जाने को ही कहते हैं परमतत्व। इसी को ऋषियों ने कहा है - वहाँ तक मन, वाणी, बुद्धि, कुछ नहीं पहुँचते। बता ही नहीं पाओगे कि मामला क्या है। वो कारणों का कारण है और स्वयं सर्वथा अकारण है। इंद्रियों का कारण तुम ढूँढ़ सकते हो, जैसा कि तुमने उद्धृत किया। तुमने इंद्रियों का कारण बता दिया?

प्र: तत्व है।

आचार्य: कि तत्व है इंद्रियों का कारण। और तत्वों का कारण भी तुम ढूँढ़ सकते हो। उनके पीछे भी तुम कुछ कारण बता दोगे। सत्य दोनों में से कोई भी नहीं। सत्य वो जो सब कारणों के पीछे है और जिसका अपना कोई कारण नहीं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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