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आज की पीढ़ी क्यों बर्बाद हो रही है?
आज की पीढ़ी क्यों बर्बाद हो रही है?
12 min
आदमी बेहतर तब बनता है जब उसे अपनी कमियों का एहसास होता है, और यह एहसास दुख, असफलता, और निराशा से आता है। आज मेहनत और ज्ञान से ज़्यादा कीमत पैसे और स्टाइल की है, जिससे वर्तमान पीढ़ी को अपनी असफलता और अज्ञानता का दुख भी नहीं होता। जब तक उनका ऊँचाइयों से परिचय नहीं होगा, वे नीचे ही रहेंगे। इसलिए आज सही संगति की और गुण-ज्ञान अर्जित करने की बहुत आवश्यकता है, क्योंकि असली सुंदरता और मौज उसी में है।
कला और प्रतिभा की सही परिभाषा
कला और प्रतिभा की सही परिभाषा
13 min

प्रश्नकर्ता: कला क्या है? सिर्फ़ म्यूज़िक (संगीत), पोएट्री (कविता) या पेंटिंग (चित्रकारी) ही कला है? और, यू नो , इतनी प्रैक्टिकल (व्यावहारिक), प्रैग्मैटिक (व्यवहारमूलक) दुनिया के लिए, प्रैक्टिकली (व्यवहार में) कला का क्या कुछ यूज़ (उपयोग) है? डज़ इट लीड टू समथिंग (क्या कला से कुछ मिलता है)?

आचार्य प्रशांत:

On Education, Corporate Life and Career Progress
On Education, Corporate Life and Career Progress
32 min

Questioner: Good evening everyone, my name is Saurabh Sardana and you are watching the first episode of season 2, ‘Recast.’ I’m so glad to have you with me today, Acharya Prashant Ji. I’m pretty sure, that most of you that most of you sort of follow him on one of

Not Acting Is Not an Option
Not Acting Is Not an Option
4 min

Questioner: Sir, I am pursuing MSc in physics. After watching your videos and reading the Bhagavat Gita, I understand that whatever in this world we achieve to please ourselves does not really give us peace. I also find that doing science might be just pleasing myself or my ego. It

अपनी प्रतिभा का कैसे पता करूँ?
अपनी प्रतिभा का कैसे पता करूँ?
4 min

आचार्य प्रशांत: सवाल है, ‘ये टैलेंट, प्रतिभा नाम की चीज़ क्या होती है? और कैसे पता करूँ कि मुझेमें क्या प्रतिभा है?’

निशांत, जिसको तुम प्रतिभा बोलते हो, यह तो आदमी की बनाई हुई धारणा है न, तुम अगर भारत में हो और तुमको एक लकड़ी से एक गेंद को

ऐसी जवानी चाहिए
ऐसी जवानी चाहिए
4 min

प्रश्नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी। मैं आजकल देख रहा हूँ कि युवाओं में बहुत हीनभावना बढ़ रही है और समय मिलता है, देश छोड़ देते हैं, आत्म गौरव जैसी चीज़ नहीं है। मैंने उपनिषद् का एक श्लोक पढ़ा था, वो मेरे जहन में बैठ गया है। मैं पढ़ना चाहता हूँ।

युवा

Hidden perversions || Neem Candies
Hidden perversions || Neem Candies
1 min

The fellow who watches child porn, is he really very different from a rapist? He is probably a bit cleverer but not really different. He adopts a relatively safer route. He says “I will please myself by watching the heinous act on the screen. I will be careful not to

The pride in winning || Neem Candies
The pride in winning || Neem Candies
1 min

You need not manage hurt; you need to keep playing on. Two things: one, there must be fun in the game; secondly, there must be a subtle pride at stake. Believe me, there is no player worth his name who has not played in pain, not played through pain. Believe

In such battles, even defeat is victory || Neem Candies
In such battles, even defeat is victory || Neem Candies
1 min

There is some worthy battle that deserves to be fought, but you are not accepting the challenge. Because you are not accepting the challenge, there is an intrinsic misery in life; self-respect is missing.One is not really able to admire oneself.That’s not at all a nice place to be in.

Lose the trivial battles || Neem Candies
Lose the trivial battles || Neem Candies
1 min

Real courage is needed only when you fight a real battle, and the real battle is against yourself.

Not all problems are worth facing. Most problems you must totally avoid, even if that means that you will be called a coward by others.

Not all battles are worth fighting. In

A message for youngsters ||Neem Candies
A message for youngsters ||Neem Candies
1 min

Unless the youth indulges in consumption, how will the markets sell? And the youth can absorb a lot, eat a lot, travel a lot, so it’s great to trap them.

Youth is not really a period where you are to make merry. Youth is the period when you are rushing

Champion even in defeat || Neem Candies
Champion even in defeat || Neem Candies
1 min

Remember, it is not situations that defeat you. Situations are just situations. A situation by definition is something outside of you, whereas defeat is something inside of you.

Situations can at worst be adverse, correct? And a situation is always external. The sense of defeat is an internal thing; that

जन्माष्टमी विशेष: औसत और साधारण ही रहना हो, तो छोड़ो कृष्ण को || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू
जन्माष्टमी विशेष: औसत और साधारण ही रहना हो, तो छोड़ो कृष्ण को || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू
11 min

आचार्य प्रशांत: हर उत्कृष्टता एक इशारा है, एक संकेत है। आसमान की ओर संकेत है और प्रकृति के विरुद्ध विद्रोह है। जब सबको एक जैसा होना चाहिए था तो कोई ख़ास हो कैसे गया? जो ख़ास हो गया, उसको तुम मानो कि वही अगर भगवान नहीं तो भगवत्ता का प्रतिनिधि

नौकरी और पैसे के बारे में कुछ अहम बातें || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव ऋषिकेश में (2021)
नौकरी और पैसे के बारे में कुछ अहम बातें || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव ऋषिकेश में (2021)
20 min

प्रश्नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी, मेरा नाम शुभम है। मैं एक-डेढ़ साल से सुन रहा हूँ आपको। मैं कॉर्पोरेट नौकरी में हूँ, इंजीनियरिंग जॉब भी है तो मेरा सवाल ये था कि किसी भी काम में जाते हैं शुरुआत में तो वो नया होता है, उसके बाद वो दिनचर्या बन जाता

भारत आज भी अंधविश्वास से ग्रस्त क्यों – मूल कारण || आचार्य प्रशांत, गीता दीपोत्सव (2023)
भारत आज भी अंधविश्वास से ग्रस्त क्यों – मूल कारण || आचार्य प्रशांत, गीता दीपोत्सव (2023)
24 min

प्रश्नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी! पहले मैं सोशल मीडिया पर ज़्यादा सक्रिय नहीं था। लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय आने के बाद, मैं थोड़ा ज़्यादा सक्रिय हो गया हूँ। तो मैं देखता हूँ, सोशल मीडिया पर आजकल बहुत सारे बाबा लोग हैं, जो अपना आधिकारिक ऐप बना लिये हैं। और ऐड के माध्यम

एक दिन कामयाब हो जाओगे || नीम लड्डू
एक दिन कामयाब हो जाओगे || नीम लड्डू
1 min

जीवन परिवर्तन के लिए जिसको मैं कहता हूँ ठंडी उर्जा, शाश्वत उत्साह चाहिए। एक भीतर ऐसी हार्दिक प्रेरणा चाहिए जो दसों साल थमे नहीं, कमे नहीं, मिटे नहीं। गर्म जोश में वो बात होती ही नहीं है। गर्म जोश के खिलाफ़ तो सावधान रहा करिए, वो फ़िल्मी होता है।

“मैं

कुछ पाने के लिए चालाक होना ज़रूरी है क्या? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)
कुछ पाने के लिए चालाक होना ज़रूरी है क्या? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)
6 min

प्रश्न: अगर हम चालाकी नहीं दिखाएँगे, तो क्या हमें कुछ नहीं मिलेगा?

आचार्य प्रशांत: चालाकी दिखाने वाले को क्या मिलता है? क्या मिलते देखा है?

प्रश्नकर्ता: जो नहीं दिखाते, उन्हें कुछ नहीं मिलता है।

आचार्य प्रशांत: जो चालाकी नहीं दिखाते, वैसे लोग तो शायद तुम्हारे संपर्क में आए ही नहीं।

जब हाथ फैलाओगे तो स्वतंत्र कैसे रह पाओगे? || आचार्य प्रशांत, युवाओ के संग (2012)
जब हाथ फैलाओगे तो स्वतंत्र कैसे रह पाओगे? || आचार्य प्रशांत, युवाओ के संग (2012)
5 min

प्रश्न: आचार्य जी, हम क्यों अपने माता-पिता के निर्णयों के आगे हथियार डाल देते हैं?

आचार्य प्रशांत: तुम बताओ, तुमने डाले हैं।

प्रश्नकर्ता: बहुत कम लोग होते हैं जो अपने निर्णय ख़ुद लेते हैं, तक़रीबन १०-५ प्रतिशत।

आचार्य प्रशांत: देखो तुम हथियार नहीं डालते हो, तुम व्यापार करते हो।

तुम

अपनी क्षमता का कैसे पता करें? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)
अपनी क्षमता का कैसे पता करें? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)
14 min

श्रोता : आचार्य जी, हम अपने शरीर और मन को किस तरह से नियंत्रित कर सकते हैं? ग़लत चीज़ों की तरफ एकदम से खिंचे चले जाते हैं, और सही चीज़ से भागते हैं।

जैसे, हमने कोई दिनचर्या बनाई पढ़ाई के लिए, उसका पालन ही नहीं कर पाते कभी। ध्यान कहीं

लड़की होने का तनाव और बंदिशें || आचार्य प्रशांत, युवाओ के संग (2014)
लड़की होने का तनाव और बंदिशें || आचार्य प्रशांत, युवाओ के संग (2014)
5 min

प्रश्न : आचार्य जी, एक लड़की होने के कारण हमारे ऊपर बहुत सारी बंदिशें लगाई जाती हैं, जब भी अगर कुछ गलत होता है तो उसका इल्ज़ाम हम पर ही लगता है, क्या करूँ?

आचार्य प्रशांत : क्या नाम है?

श्रोता :- शिवांगी।

आचार्य प्रशांत : शिवांगी बैठो। शिवांगी ने

अपनी रुचियों को गंभीरता से मत ले लेना || आचार्य प्रशांत, युवाओ के संग (2012)
अपनी रुचियों को गंभीरता से मत ले लेना || आचार्य प्रशांत, युवाओ के संग (2012)
4 min

आचार्य प्रशांत : आपकी जो रुचियाँ हैं, वो आपके संस्कार से ही तो आती हैं ना? आपकी रुचियाँ कहाँ से आते हैं? रुचियों का स्रोत क्या है? भारत में गोरी चमड़ी पर बड़ा ज़ोर है ।

भारत में गोरी चमड़ी पर बड़ा ज़ोर है । ग़ुलामी बिलकुल छायी हुई है

सीख पाना मुश्किल क्यों? || (2018)
सीख पाना मुश्किल क्यों? || (2018)
9 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, मैं आपकी सभी बातें पूर्ण रूप से ग्रहण नहीं कर पाता, मैं क्या करूँ?

आचार्य प्रशांत: तुम फँस इसीलिए जाते हो क्योंकि तुम्हें तकलीफ़ सिर्फ़ तब होती है जब ऊँचे काम खराब होते हैं, कि, "ऊँचा काम हो रहा था और मैं किसी निचले केंद्र में ही

आदमी की होशियारी किसी काम की नहीं || आचार्य प्रशान्त (2014)
आदमी की होशियारी किसी काम की नहीं || आचार्य प्रशान्त (2014)
12 min

आचार्य प्रशांत: कुछ भी संयोगवश नहीं है। पाँच उँगलियाँ भी हैं तुम्हारी, तो पाँच ही होनी थी, छह नहीं हो सकती। पूरी जो शरीर की विकास प्रक्रिया रही है, जिसमें अस्तित्व के एक एक अणु का योगदान है, उसने ये तय किया है कि पाँच उँगलियाँ हों, और इतना कद

तर्क निश्चित सिद्ध कर देंगे कि मेरे पास आना व्यर्थ है || (2015)
तर्क निश्चित सिद्ध कर देंगे कि मेरे पास आना व्यर्थ है || (2015)
3 min

प्रश्नकर्ता: मैं जीवन में जो भी कर रहा हूँ उस के विरुद्ध जब तर्क आते हैं तो और उन तर्कों को काटने के लिए मेरे पास तर्क नहीं होते, तो ख़ुद पर संदेह होता है। जीवन में संदेह कैसे कम करें?

आचार्य प्रशांत: जितने भी आपको तर्क दिए जाते हैं

विवेक का अर्थ क्या है? || आचार्य प्रशांत (2014)
विवेक का अर्थ क्या है? || आचार्य प्रशांत (2014)
20 min

वक्ता: विवेक क्या है? विवेक, विवेक का शाब्दिक अर्थ तो भेद करना ही है; अंतर करना। लेकिन किस-किस में अंतर करना? एक अंतर ये होता है कि एक ही आयाम, एक ही डायमेंशन की दो अलग-अलग इकाईयों में तुम अंतर करो, कि X एक्सिस है और उसमें तुम अंतर कर

मस्तमौला, हरफनमौला || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)
मस्तमौला, हरफनमौला || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)
8 min

प्रश्न: सर, हरफनमौला और मस्तमौला में अंतर क्या है?

वक्ता: एक ही बात है । देखो, मस्ती भी बटी हुई नहीं रहती है । मस्ती, भी तभी मस्ती है, जब वो लगातार है। अगर तुम्हारी मस्ती निर्भर है परिस्थितियों पर, तो ये बड़ी डरी-डरी मस्ती है। जो कांपती रहेगी कि

तुम मूल में निर्गुण हो || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)
तुम मूल में निर्गुण हो || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)
4 min

प्रश्न: सर, हर व्यक्ति में कोई मूल गुण होता है। उसे कैसे पहचानें?

वक्ता: शशांक ने कहा कि हर व्यक्ति में कोई मूल गुण होता है, उसे कैसे पहचानें? मूल जो होता है तुम्हारा, ‘केन्द्र’, ‘स्त्रोत’ इसका कोई गुण नहीं होता, वो निर्गुण है। उसका कोई गुण नहीं होता। वो

क़ाबिलियत मुताबिक़ प्रदर्शन || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
क़ाबिलियत मुताबिक़ प्रदर्शन || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
9 min

वक्ता: सवाल है कि अपनी काबिलियत पता है, ये भी पता है कि क्या कर के दिखा सकती हूँ, उसके बाद भी अगर सफलता नहीं मिलती तो क्या करूँ? तुम्हें काबिलियत पता है या फिर तुमने बस मान लिया है कि काबिलियत है? जिसको तुमने मान लिया है कि काबिलियत

न तुम, न तुम्हारा श्रम || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
न तुम, न तुम्हारा श्रम || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
12 min

प्रश्न: सर सफलता कैसे पाएँ?

वक्ता: तुम मुझे बताओ कि सफलता क्या है?

श्रोता: परिश्रम करने से सफलता मिलती है।

वक्ता: तुम कहना चाहते हो कि परिश्रम करने से सफलता मिलती है। यह पंखा देखो। यह कितना परिश्रम कर रहा है, परिश्रम करते-करते गरम हो गया है।

श्रोता: यह पंखा

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तामसिकता का अर्थ आलस्य होना आवश्यक नहीं, हालांकि सतह पर यह आलस्य जैसा लग सकता है। असली तमस स्वयं को यह भरोसा दिलाने में निहित है कि "मैं ठीक हूँ," "मैं स्वस्थ हूँ," "मुझे सब पता है," जबकि वास्तव में न तो मैं ठीक हूँ, न स्वस्थ, न ही स्वयं का जानकार। ऐसे व्यक्ति या तो स्वयं जागें, या फिर ज़िंदगी शायद उन्हें झंझोड़कर जगा पाए — जिसकी संभावना बहुत कम होती है। सबसे अच्छा विकल्प है स्वयं जाग जाना, क्योंकि जब जीवन सिखाता है, तो फिर वह किसी भी तरह की रियायत नहीं देता।
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Obsession with the future is a compulsion with the ego. The only way to be free of the future is to be free of yourself. Be free of yourself and flow like the wind. But will the right things happen to me then? Can you assure me? Is there a guarantee? So desireless, motiveless action and faith, they always go together. Somebody who's asking for guarantees, somebody who is craving for assurances, he is unfit to even touch the Bhagavad Gita. This is only for the courageous ones.
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टूटफूट ही वो जरिया है जो आपको बताएगा कि आपके पास कुछ ऐसा भी है जो टूट नहीं सकता। जब सब बिखरा पड़ा होगा उसके बीच ही अचानक आपको पता चलेगा, अरे एक ऐसी चीज है जो नहीं बिखरी बड़ा मजा आएगा। उसके बाद यही लगेगा कि इसको और बार-बार पटको और जितना बार-बार पटको और जितना यह नहीं टूटता उतना इसमें विश्वास और गहरा होता जाता है और आदमी और खुलकर खेलता है। यह सबके पास है। यह सबके पास है। हमें इसका पता इसीलिए नहीं है क्योंकि हमने इसको कभी आजमाया ही नहीं।
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4 min
जीतने के लिए मत खेलो। तुम खेलो वो सर्वश्रेष्ठ करने के लिए, जो तुम कर सकते हो। और जो सर्वश्रेष्ठ तुम कर सकते हो, वो जीतने से ज़्यादा ऊपर की बात है। परिणाम की चिंता न करते हुए, प्रतिपक्षी की चिंता न करते हुए, जीवन के हर मैदान में, तुम अपना सर्वश्रेष्ठ करो। खिलाड़ी का धर्म है कि वो लगातार उत्कृष्टता की ही पूजा करे। चाहे क्रिकेट का मैदान हो, चाहे जीवन का कोई भी क्षेत्र हो।
भगवद गीता - कर्मयोग: अध्याय 3, श्लोक 9
भगवद गीता - कर्मयोग: अध्याय 3, श्लोक 9
53 min

यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धन: | तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसङ्ग: समाचर ||3. 9||

अन्वय: यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र (यज्ञ के लिए किए कर्म के अलावा अन्य कर्म में) लोकोऽयं (लगा हुआ) कर्मबन्धनः (कर्मों के बन्धन में फँसता है) कौन्तेय (हे अर्जुन) मुक्तसङ्गः (आसक्ति छोड़कर) तत्-अर्थ (यज्ञ के लिए) कर्म (कर्म) समाचर (करो)

काव्यात्मक अर्थ: बाँधते

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5 min
To lead is to not be a fool. You're not there to—to charm people. You must first of all go within and figure out: what do you have for the other? It is great disrespect to the other, and injustice, to speak to him or her or even approach him before being internally sorted. I do not know my own life. I do not know the source of my own motivations. I do not know where my own desires come from, and I want to infect the other with the same desire in the name of leadership and motivation?
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The Gita is useful because its setting is extremely relatable. Just like us, Arjuna does not know himself—he's a victim of multiple identities and all kinds of conditioning. Therefore, the Gita is about letting Arjuna know who he is, and this illumination enables him to do what he must. So, first of all, see that you are Arjuna. Then, step by step, verse by verse, there will be some resolution.
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देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः। परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ।।

~ श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय 3, श्लोक 11

अर्थ: यज्ञ से देवताओं को आगे बढ़ाओ, तो वो दैवत्य तुम्हारी उन्नति करेंगे। इस तरह परस्पर (आपस में) उन्नति करते हुए तुम परम श्रेय प्राप्त करते हो।

काव्यात्मक अर्थ: *यज्ञ से देवत्व बढ़े देवत्व से

(Gita-27) Krishna's Warning to Arjuna: Everyone is Making This Mistake
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Who are the people who never understand Shri Krishna? The ones whose minds are full of Karmakand. If your mind is full of Karmakand, Shri Krishna himself has very clearly said, you will never understand the Gita because Karma Kand deals with desire, because whatever you do, you do for the sake of desire.
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सहयज्ञाः प्रजाः सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापतिः । अनेन प्रसविष्यध्वमेषः योऽस्त्विष्टकामधुक् ॥ १० ॥

अर्थ: सृष्टि के आरंभ में ही ब्रह्मा ने कहा था कि यज्ञ के द्वारा ही वृद्धि को प्राप्त करोगे। यह यज्ञ ही तुम लोगों को अभीष्ट फल देगा और कामधेनुतुल्य सर्वाभीष्टप्रद होगा।

काव्यात्मक अर्थ:

सगुण हो बंधन चुना

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If all that the Ego wants is liberation from itself, which means coming to see its own non-existence, then the only way to see its non-existence is by paying attention to itself. The more the Ego pays attention to itself, it sees that it does not exist. The more the Ego remains attached to this and that, all the sensory inputs, the Ego feels that is real and this is real.
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Ambition is a very stale thing. It’s a dead thing. Do not forget where it comes from; it comes from your past in the jungle. You are conditioned to be desirous, and social forces just encourage you to be even more desirous of the same things that you have been wanting since a million years. The same things.
भगवद गीता - कर्मयोग: अध्याय 3, श्लोक 8
भगवद गीता - कर्मयोग: अध्याय 3, श्लोक 8
52 min

श्लोक: नियतं कुरु कर्म, त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः। शरीरयात्रापि च ते न, प्रसिद्ध्येदकर्मणः॥3.8॥

काव्यात्मक अर्थ:

कर्म के परि त्याग से, श्रेष्ठ है नि यत कर्म । कर्मयात्रा पर चल पड़े, जि स क्षण लि या जीव जन्म॥

आचार्य जी: श्रीमद्भगवद्गीता गीता, तीसरा अध्याय कर्म का विषय है, पिछले सत्र में

उसे सौंप दो, उसे संभालने दो, तुम रास्ते से हटो
उसे सौंप दो, उसे संभालने दो, तुम रास्ते से हटो
47 min
यह आदमी जो अपने ऊपर हंसना शुरू करता है, यह अकर्ता हो जाता है। नॉन-डूअर हो जाता है। नॉन-डूअर का मतलब यह नहीं कि अब नॉन-डूइंग हो गई। डूइंग तो बहुत होगी! ज़बरदस्त होगी! घनघोर होगी! कल्याणप्रद होगी! ऑसपिसियस होगी! डूइंग होगी, डूअर नहीं होगा। पर कर्ता नहीं होगा। और जो यह कर्ता-हीन कर्म होता है, "द डीड विदाउट डूअर", इसके क्या कहने! यह फिर अवतारों की लीला समान हो जाता है। यह जीवन को खेल बना देता है। यह पृथ्वी पर स्वर्ग उतार देता है। यह बहुत पुराना जो कैदी है, उसे आकाश की आज़ादी दे देता है।
श्रीमद्भगवद्गीता दूसरा अध्याय २, श्लोक 15-24
श्रीमद्भगवद्गीता दूसरा अध्याय २, श्लोक 15-24
45 min
मनुष्य की देह होने भर से आपको कोई विशेषाधिकार नहीं मिल जाता, यहाँ तक कि आपको जीवित कहलाने का अधिकार भी नहीं मिल जाता। सम्मान इत्यादि का अधिकार तो बहुत दूर की बात है, ये अधिकार भी नहीं मिलेगा कि कहा जाए कि ज़िन्दा हो।
Is Pop Religion Compatible With the Gita?
Is Pop Religion Compatible With the Gita?
38 min
The center of the Gita is 'Nishkamta'—desireless action stemming from self-knowledge. Whereas popular religion is all about the fulfillment of desire. We go to a supernatural power and beg him to grant our desires. That is popular religion. You can either have the Gita or the entirety of religion as practiced in common culture. They are totally incompatible.
सफलता या संयोग?
सफलता या संयोग?
12 min
सफलता इस बात से तय होनी चाहिए कि आपने अपने लक्ष्य की ओर कदम किन चुनौतियों का सामना करते हुए बढ़ाया है। आपके सामने कठिनाइयाँ क्या थीं, और किन मुश्किलों के खिलाफ़ आपने अपनी यात्रा की है, यही तय करेगा कि आप सफल हैं या असफल। अपने आप से यही पूछो—‘जो कुछ मैंने पाया है, कितनी चुनौतियों को हराकर पाया है?’ अगर बिना किसी चुनौती के पा लिया है, तो वह व्यर्थ है, क्योंकि परिस्थितिवश मिली चीज़ें सफलता नहीं, महज़ संयोग हैं।
भगवद गीता – अध्याय 2 (सांख्य योग), श्लोक 5-11
भगवद गीता – अध्याय 2 (सांख्य योग), श्लोक 5-11
22 min

गुरूनहत्वा हि महानुभावान् श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके। हत्वार्थकामांस्तु गुरूनिहैव भुञ्जीय भोगान्तधिरप्रदिग्धान् ।।५।।

“मैं तो महानुभाव गुरुओं को न मारकर, इस लोक में भिक्षान्न भोजन करना कल्याणकर मानता हूँ, क्योंकि गुरुओं का वध करके मैं रक्त से सने हुए अर्थ और काम रूपी भोगों को ही तो भोगूँगा।“

~ श्रीमद्भगवद्गीता, श्लोक

भगवद गीता - अर्जुन विषाद योग: अध्याय 1, श्लोक 39-47
भगवद गीता - अर्जुन विषाद योग: अध्याय 1, श्लोक 39-47
53 min

आचार्य प्रशांत: हम देखेंगे कि श्रीकृष्ण अर्जुन के सब भावुक, मार्मिक वक्तव्यों को किस प्रकाश में देख रहे हैं। तो अपनी ही मोहजनित पीड़ा को आगे अभिव्यक्त करते हुए कहते हैं अर्जुन कि

यद्यप्येते न पश्यन्ति लोभोपहतचेतस:। कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम्।।

कथं न ज्ञेयम स्माभि: पापादस्माननिवर्तितुम। कुलक्षयकृतं दोषं प्रपश्यदिर्जनार्दन।।

भगवद गीता - अर्जुन विषाद योग: अध्याय 1, श्लोक 20-39
भगवद गीता - अर्जुन विषाद योग: अध्याय 1, श्लोक 20-39
54 min

आचार्य प्रशांत: तो शंखनाद होता है दोनों सेनाओं की ओर से। और संजय बताते हैं कि शंखनाद ने विशेषतया धृतराष्ट्र के पुत्रों के, कौरवों के हृदय में हलचल कर दी। मन उनके कम्पित हो गये, हृदय विदीर्ण हो गया। ये सुनने के बाद अब आते हैं दूसरे पक्ष पर। अर्जुन

How Did Bhagavad Gita Help Subhash Chandra Bose?
How Did Bhagavad Gita Help Subhash Chandra Bose?
10 min
There is no revolution possible without wisdom literature. The quest for independence of freedom fighters was actually a manifestation of their inner quest for liberation. What kind of revolution can one do if it's the body that's always at the top of your mind? You require a Gita to tell you that this body is perishable and would anyway go. Gita only teaches you, "Endure and fight."