अपनी प्रतिभा का कैसे पता करूँ? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

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अपनी प्रतिभा का कैसे पता करूँ? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

आचार्य प्रशांत: सवाल है, ‘ये टैलेंट, प्रतिभा नाम की चीज़ क्या होती है? और कैसे पता करूँ कि मुझेमें क्या प्रतिभा है?’

निशांत, जिसको तुम प्रतिभा बोलते हो, यह तो आदमी की बनाई हुई धारणा है न, तुम अगर भारत में हो और तुमको एक लकड़ी से एक गेंद को बड़े बढ़िया तरीके से मारना आता है तो तुम एक प्रतिभा कहलाओगे, क्योंकि भारत में क्रिकेट नाम का खेल चलता है। तुम्हारी यही स्किल, तुम्हारी यही कला, यही काबिलियत कि तुम एक लकड़ी से एक आती हुई गेंद को मार लेते हो कई और देश हैं वहाँ किसी काम की नहीं है, क्योंकि वहाँ दूसरे खेले जाते हैं, वहाँ पर ये ज़्यादा बड़ी काबिलियत है कि तुम एक ज़्यादा बड़ी गेंद को पाँव से कैसे मार लेते हो, तो यह तो देश काल परिस्थिति की बात है कि किस चीज़ को प्रतिभा माना जाता है और किसको नहीं माना जाता।

तुम भारत में हो तो उसी चीज़ को प्रतिभा माना जायेगा, तुम ब्राज़ील में हो तो उसको प्रतिभा नहीं माना जायेगा।

एक ख़ास किस्म का संगीत अगर तुमको आता है, अगर तुम्हें उसमें पारंगत हासिल है, तो तुम एक देश में बड़े संगीतज्ञ बन जाओगे, दूसरे देश में जहाँ पर उस तरह के संगीत को कोई स्वीकृति नहीं है, वहाँ पर तुममें कोई गुण नहीं देखा जायेगा कि तुम्हें कुछ आता है। तो प्रतिभा तो समाज की एक धारणा है, समाज सिर्फ उन योग्यताओं को प्रतिभा का नाम देता है जो उसके काम की हों, जो कुछ समाज के काम का है, समाज कह देगा यह प्रतिभा है, और यह प्रतिभाशाली आदमी है, वर्ना तो तुम जैसे हो, जो भी हो और जो भी कर रहे हो अगर उसमें पूर्णतया डूब के करते हो तो वही प्रतिभा है, वही टैलेंट है।

एक बांस की खोखली पोंगरी ली जाए और उसको तुम बजाने लग जाओ, बहुत सारी जगह हैं जहाँ इसमें कोई प्रतिभा नहीं मानी जाएगी, पर अगर कोई समाज ऐसा है जिसको उसी में रस आ गया, जिसने यह मन लिया कि हमारे एक अवतार थे जो इसी पोंगरी को ले कर रहते थे, तो उस देश में इसको बहुत बड़ी कला माना जायेगा, और तुमको बांसुरीवादक का नाम दे दिया जाएगा।

तुम इस चक्कर में तो पड़ो ही मत कि क्या प्रतिभा है और क्या प्रतिभा नहीं है, समाज तो कुछ गिनी-चुनी चीज़ों को ही प्रतिभा का नाम देगा, पर तुम उस आधार पर अपनी ज़िन्दगी थोड़ी बिता सकते हो, तुमको तो जो भी रुचता है, जिस में भी तुमको रस आता है, तुम उसी में डूब जाओ और पूरी तरह डूब जाओ, कोई फर्क नहीं पड़ता कोई तुम्हें प्रतिभाशाली कहता या प्रतिभाहीन।

नहीं माना जाएगा देश में समाज में कि पतंग उड़ाना बड़ी प्रतिभा है, पर मैं कहता हूँ वो भी करते हो तो पूर्णता के साथ करो, और फिर पूरी तरह भूल जाओ कि कुछ और है।

और जो भी कर रहे हो उसी में डुबो, क्योंकि अगर सिर्फ कुछ ऐसे काम हैं जिनको तुमनें टैलेंट का नाम दे रखा है तो वही सब तो तुम चौबीसों घंटे नहीं कर सकते न, या तुम कहोगे मैं चौबीसों घंटे बांसुरी बजाता हूँ?

तो अगर तुम्हारी प्रतिभा सिर्फ बांसुरी बजाने कि है, और दिन में तुम दो घंटे बजाते हो तो बाकी बाईस घंटे तो तुम प्रतिभाहीन हो गए न?

चौबीसों घंटे जो करो उसको पूर्णता के साथ करो, पूरे ध्यान के साथ जैसे इसके अलावा हम कुछ हैं ही नहीं, यही है सिर्फ, यही है एक मात्र प्रतिभा है, जीवन को ध्यान में जीना, सिर्फ वो प्रतिभा है और कुछ नहीं, बाकी सब तो लेबल्स हैं, ठप्पे, कि तुमने ठप्पा दे दिया कि, ‘हाँ भई! यह टैलेंट है’, अगर वास्तव में तुममें प्रतिभा है तो वो ध्यान की ही है।

शब्द-योग सत्र से उद्धरण। स्पष्टता के लिए सम्पादित।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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