मस्तमौला, हरफनमौला || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)

Acharya Prashant

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मस्तमौला, हरफनमौला || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)

प्रश्न: सर, हरफनमौला और मस्तमौला में अंतर क्या है?

वक्ता: एक ही बात है । देखो, मस्ती भी बटी हुई नहीं रहती है । मस्ती, भी तभी मस्ती है, जब वो लगातार है। अगर तुम्हारी मस्ती निर्भर है परिस्थितियों पर, तो ये बड़ी डरी-डरी मस्ती है। जो कांपती रहेगी कि अगर परिस्थिति बदली तो मेरा क्या होगा। अगर तुम एक विशेष स्थिति में ही आनन्द मग्न हो सकते हो, मस्त हो सकते हो, तो तुम्हारा आनन्द, आनन्द है ही नहीं। वो तो लगातार याचना करता रहेगा कि ये स्थिति ना बदले। आज की रात नाच पा रहा हूं, सुबह ना आए क्योंकि सुबह आ गई तो पता नहीं। फूल अभी रात में खिला है, सुबह झड़ जाएगा। फिर वो मस्ती, ‘मस्ती’ नहीं है। उसमें डर घुला हुआ है। ‘हरफनमौला’ का भी यही अर्थ है कि जो लगातार डूबा हुआ है। और ‘मस्तमौला’ का भी यही अर्थ है कि जो लगातार मस्त है।

मस्ती, ‘मस्ती’ नहीं अगर वो लगातार नहीं है, और हरफनमौला ‘तुम’ नहीं, अगर तुम जो भी कर रहे हो, उसी में बैठ नहीं गये, तो दोनों एक ही हैं। कोई ‘हरफनमौला’ ऐसा नहीं हो सकता, जो ‘मस्त’ ना हो, और कोई ‘मस्त’ ऐसा नहीं हो सकता, जो ‘हरफनमौला’ ना हो। ऐसे समझ लो। और अगर ऐसा पाते हो कि साहब अपने आप को मस्त बोलते हैं पर इनकी मस्ती, बड़ी सिमित रहती है, प्रसंगवश रहती है, तब कहना, ‘तुम मस्त नहीं हो’। देखे हैं न ऐसे लोग, जो जब शराब पीते हैं, तभी उनकी मस्ती जगती है? ये कोई खाक मस्ती है? ये तो लगातार बस यही मानेंगे कि नशा न उतरे क्योंकि नशा उतरेगा तो मौज भी ख़त्म हो जानी है। मस्त ऐसे रहो कि तुम्हें किसी मौके की ज़रुरत ना पड़े। हममें से ज़्यादातर लोग ज़िंदगी को इसी इंतजार में जीते हैं कि कोई खास मौका आएगा, तब हम मगन हो लेंगे। ऐसे ही जीते हो ना?

जीवन हमारे लिए प्रतीक्षा जैसा है। हम सब लगातार इंतजार कर रहे हैं। किस-किस चीज़ का इंतजार कर रहे हो? तुम इंतज़ार कर रहे हो कि एक विशेष परिणाम आ जाए, कोई मिल जाए, कुछ पैसा इकट्ठा हो जाए। एक खास दिन आएगा, इसकी प्रतीक्षा में बैठे हो। है ना? तुमने अपनी मस्ती को भी स्थगित कर रखा है। लगातार उसे आगे बढ़ा रहे हो, आगे के लिए। ये कोई बात नहीं हुई। मस्ती वो, जो निरंतर है। उठते-बैठते, चलते, खाते, और वो मस्ती मनोरंजन नहीं है। जब मैं मस्ती कह रहा हूँ, तो उसका वही अर्थ मत ले लेना, जो आम-तौर पर लिया जाता है। मस्ती से मेरा अर्थ है, एक प्रकार की ‘निर्भयता’। एक प्रकार की ‘निश्चिन्तता’। ‘निश्चिन्तता’ समझते हो? मन में कोई चिंता नहीं है। ‘निर्भयता’ समझते हो ना? कोई डर नहीं बैठा हुआ। और यही दोनो हैं जो मस्ती को काटते हैं। डर, बिना बात का चिंतन, जो ये नहीं कर रहा है, वही मस्त है।

मस्ती तुम्हें लगातार ही मिल जाएगी। तुम अस्तित्व को देखो, जानवरों को देखो, बच्चों को देखो। वो प्रतीक्षा नहीं कर रहे होते हैं। वो जिस हालत में होते हैं, उसी हालत में पूरे होते हैं। दिन और घड़ियां नहीं गिन रहे होते हैं। आदमी ने ये बला पाल ली है कि वो दिन और घडियां गिनता है, ‘वो दिन आएगा, तब मैं अपने आप को हक़ दूंगा खुश होने का। अरे! जब तक मेरी नौकरी नहीं लग जाए, मैं खुश कैसे हो सकता हूं?’ ये सब बीमारी आदमी के मन की है। तुम बैठे हो, मस्ती में बैठो। तुम चल रहे हो, मस्त हो कर चलो। खेलते हो, मौज में खेलो। यूं ही बात कर रहे हो, कह रहे हो, सुन रहे हो। मस्ती में गाओ, मस्ती में सुनो। पर हम वैसे नही रहते हैं। भविष्य की चिंता में हमारे कंधे झुके-झुके रहते हैं। ऐसा ही रहता है ना? हमने हक़ ही नहीं दिया अपने आप को मगन होने का। हम तो कहते हैं, ‘कुछ चमकता हुआ सा आदर्श सामने है, उसको पा लेना है, तब हम अधिकारी होंगे। अभी हम अधिकारी नहीं हैं’। फिर चहरा उदास रहता है, आँखें, सूनी-सूनी सी रहती हैं। जल्दी से डर जाते हो। कुछ ज़रुरत नहीं है, ना चिंता की, ना डर की, कोई जरुरत ही नहीं है। तुम्हें किस बात की फ़िक्र है बहुत? कौन- सा बोझ उठा रखा है? और कौन- सा काम तुम्हारे ही करने से होना है? जो भी कुछ महत्वपूर्ण है, वो तुम्हारे बिना किये हो रहा है, और हुआ है। तुम फालतू ही मन पर बोझ लेकर फिर रहे हो कि ये करना है, और वो करना है। ये बोझ ही तुमको मस्त नहीं होने दे रहा। समझ रहे हो बात को?

(मौन)

तुम बच्चे थे ना कभी? जब बच्चे थे, तब भी ऐसे ही सूने-सूने रहते थे? तो ये बीमारी तुमने कहां से पाल ली? क्या हो गया है? इतनी ‘गंभीरता’ कहां से तुमने पाई? और इस गंभीरता से तुम्हें क्या मिल जाता है? अभी भी मैं तुमसे ये कह रहा हूं, तो तुम्हारा आत्मबल इतना गिर चुका है कि तुममें से बहुत कम लोग हैं जो मेरी तरफ देख पा रहे हैं। कुछ तो आंखे ही झुका कर के बैठ गए हैं। तुम्हारी हालत ऐसी ही है कि जैसे तुम्हारे चारों ओर पार्टी चल रही हो, उत्सव, त्यौहार, बड़ा सा मेला लगा हुआ हो, और तुम उसके बीच में बैठ कर सुबक रहे हो, अकारण, बिना बात के। और कोई तुम्हें बताने आया है कि मेला लगा हुआ है, और तुम कह रहे हो, ‘कहां?’ तुम्हें दिख भी नहीं रहा। मैं बताता हूं, कहां।

अभी हमने खाना खाया। खाना खाने के बाद यहां आने का दस मिनट का हमारे पास टाइम था। तो मैंने इससे (अपने मोबाइल फ़ोन की तरफ इशारा करते हुए) यहां के फूलों की दो-चार फोटो ले ली। आपके सर ने कहा, ‘फूल? अरे, मैं पूरा बड़ा एसएलआर कैमरा लेकर आया हूं, उससे फ़ोटो लेते हैं’। जिसे मौज मनानी है, वो कभी भी मनाता है। नहीं तो सोच सकते थे कि ऑफिशियल ड्यूटी पर हैं, फॉर्मल काम कर रहें हैं, प्रोफेशनल हैं। जब कोई प्रोफेशनल काम करने जाता है, तो अपने साथ इतना बड़ा कैमरा लेकर के तो नहीं जाता है। हम कोई टूरिज़म् पर थोड़े ही आए हैं। पर जिसे करना है, कभी भी कर लेता है । तुम में से कुछ लोग कहेंगे, ‘ये सब घूमन-फिरना क्या लगा रखा है? मस्त मत हो जाना। मौज मत मनाना। गंभीर रहना क्योंकि जो गंभीर लोग होते हैं, उन्हीं को जीवन में कुछ प्राप्त होता है। गंभीर रहो’।

(मौन)

तुम्हें किसने रोका है प्रतिपल मौज मानाने से? जहां भी हो, वहीँ नाच लो ना। जो भी स्थिति है, उसी में ढूंढ लो मस्ती। तुम क्यों उसको स्थगित किये हुए हो? क्यों? तुम क्यों कहते हो, ‘होली, दीवाली, ईद, जब मेरा जन्म दिन होगा, जब नया साल आएगा, मैं सिर्फ उन दिनों में प्रसन्न हो सकता हूं और घर को सजा सकता हूं’। तुम आज क्यों नही पार्टी दे सकते? तुम अभी क्यों नही मैदान में नाच सकते? बात सुनने में ही कितनी अजीब लग रही है। ‘सर, कैसी बातें कर रहें हैं? सर, ऐसे थोड़े ही होता है। हम भले घर के लोग हैं। हम नाचते नहीं हैं, हम रोते हैं, क्योंकि जो भले घरों के लोग होते हैं ना, उन्हें गंभीर रहना चाहिए। जितने आंसू गिरें, वो उतने ज्यादा भले घर के हैं। सर, ये छिछोरे काम मत सिखाइए हमको। हम कोई नाचने वाले घर से लगते हैं क्या?’

(सब हंस देते हैं)

‘अरे! हमारी भी कोई इज्ज़त है’। लेकर बैठे रहो इज्ज़त।

(मौन)

नहीं समझ में आ रहा ना, क्या कह रहा हूं? बड़ा गंभीर मसला है, जो पकड़ कर बैठे हुए हो । ‘सर आप समझोगे नहीं, अभी आपकी उम्र नहीं है’।

(सब हंस देते हैं)

‘आप भी जब हमारी उम्र के हो जाओगे, तब आपको समझ में आएगा, जिंदगी में क्या-क्या पेचीदगियां हैं। अभी तो आप बच्चे हो’।

(सब हंस देते हैं)

‘अरे सर! आपको क्या पता स्त्री होने का क्या अर्थ होता है’।

(सब फिर हंस देते हैं)

“अबला जीवन, हाय तुम्हारी यही कहानी,आँचल में है दूध, और आँखों में पानी”

‘आपको कैसे पता ये सब? आप नहीं जानोगे। हमारे दिल का हाल हम ही जानते हैं’।

(सब फिर हंस देते हैं)

‘अरे, हम पर बड़ी जिम्मेदारियां हैं। हमें बड़े कर्तव्य निभाने हैं । हमसे हंसा ही नहीं जाता, हम हंसते भी हैं, तो ऐसा लगता है मिमियां रहे हैं।

(सब फिर हंस देते हैं)

और बहुत ज़ोर से हंसते हैं, तो रोना आ जाता है।

‘मस्तमौला’ क्या है?, यह पूछो नहीं, मस्तमौला हो जाओ । पूछो नहीं कि ‘मस्तमौला’ क्या है, ‘मस्तमौला’ हो जाओ । कुछ नहीं बिगड़ेगा । आश्वासन दे रहा हूं । कुछ नही बिगड़ेगा, बल्कि बहुत कुछ पा लोगे । पक्का पा लोगे ।

-‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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