Acharya Prashant is dedicated to building a brighter future for you
Articles
ऐसी जवानी चाहिए || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव ऋषिकेश में (2021)
Author Acharya Prashant
Acharya Prashant
4 min
66 reads

प्रश्नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी। मैं आजकल देख रहा हूँ कि युवाओं में बहुत हीनभावना बढ़ रही है और समय मिलता है, देश छोड़ देते हैं, आत्म गौरव जैसी चीज़ नहीं है। मैंने उपनिषद् का एक श्लोक पढ़ा था, वो मेरे ज़ेहन में बैठ गया है। मैं पढ़ना चाहता हूँ।

युवा स्यात् साधु युवाध्यायकः। आशिष्ठो दृढिष्ठो बलिष्ठः॥

युवा बनो — अच्छे व्यवहार वाला युवा, अध्ययनशील, विनम्र, दृढ़ निश्चयी और मज़बूत बनो। ~ तैत्तिरीयोपनिषद्

तो आचार्य जी, मैं ये जानना चाहता हूँ कि सच्चा भारतीय युवा कैसा होना चाहिए।

आचार्य प्रशांत: जैसा उपनिषद् के ऋषि उसे चाहते थे कि हो, वैसा होना चाहिए सच्चा भारतीय युवा। अभी तुमने श्लोक उद्धृत कर ही दिया — ज्ञानी, साहसी, निडर, मज़बूत। वो असली बाप थे हमारे। उन्होंने हमारे लिए सपना देखा था एक कि ऐसा हो हर जवान आदमी, जवान लड़की भी, जवान लड़का भी, दोनों — निडर, साहसी, मज़बूत। और इस सपने को साकार करने के लिए वो जो कुछ कर सकते थे, उन्होंने किया।

ज़मीन-जायदाद नहीं छोड़कर गये, लेकिन उपनिषद् छोड़कर गये हमारे लिए। उन्हें पता था कि अगर इनके साथ रहोगे तो कोई कमज़ोरी तुम्हें नहीं पकड़ेगी। ज्ञान समान दूसरा बल नहीं। जिसके पास ज्ञान है, जिसके पास जिज्ञासा है, वो कभी कमज़ोर पड़ नहीं सकता। उसके चेहरे पर तुम कभी भी असहायता का भाव नहीं देखोगे, तुम उसे गिड़गिड़ाकर दुर्बलता में कभी भीख माॅंगते नहीं पाओगे।

वैसा ही युवा चाहिए होता है, ऋषियों ने भी उसी की प्रार्थना करी थी। महात्मा बुद्ध के संघ में भी अधिकांश युवा ही थे, फिर बाद में उन्होंने युवतियों को भी अनुमति दी। विवेकानन्द कहते हुए चले गये कि बस सौ मिल जाएँ, सौ, नचिकेता समान जवान लोग मैं दुनिया बदल दूँगा, भारत बदल दूँगा कम-से-कम।

तलाश मैं भी रहा हूँ वैसे ही युवाओं को। असल में तलाशने की बात नहीं होती, तराशने पड़ते हैं। मिलेंगे नहीं, बनाने पड़ते हैं। बनाने की प्रक्रिया में माँ ही बनना पड़ता है, जन्म देना पड़ता है ऐसे युवा को। बहुत बेचैन करती है मुझको ये बात कि भारत की जवान पीढ़ी एकदम बर्बाद हुई जा रही है — कमज़ोर, बलहीन, पिद्दी। उसका शौर्य बस किसमें है? गाली-गलौज करने में। कि जैसे पिद्दी सा कोई आ जाए एकदम, कुछ कर नहीं सकता, उसको इतना ही बोल दो, ये गमला उठा दो तो उससे उठेगा नहीं। जब गमला नहीं उठेगा तो गालियाँ देनी शुरू कर देगा। ऐसी नस्ल निकलकर आ रही है।

न विचार कर सकती है, न विद्रोह, न समर्पण है उसके पास, न संकल्प, क्या है बस? उथली कामनाएँ। ‘कैनेडा चला जाऊँ, पैसे बना लूँ।’ क्या करेगा उस पैसे का? ‘ वीकेंड पार्टी में ड्रग्स फूॅंकूगा।’ वेदान्त के अलावा कोई चारा नहीं, एक नया भारत पैदा ही करना पड़ेगा। बना-बनाया नहीं मिलेगा, निर्मित करना पड़ेगा और ये नया भारत पूरे विश्व को बदल डालेगा।

अहंकार वाली मज़बूती नहीं चाहिए कि जो खड़े होकर कहे कि बताइए क्या है, हम जवान पट्ठे हैं, हम जान दे देंगे! ज्ञान वाली मज़बूती चाहिए। दोनों का अन्तर समझते हो न? अहंकार भी कई बार बहुत मज़बूत दिखता है, बड़ी-बड़ी बातें करेगा, ये-वो; वो वाली नहीं। ज्ञान वाली शीतल मज़बूती चाहिए, जो चट्टान की तरह मौन रहती है पर जिसे कोई डिगा नहीं सकता। मेंढक वाली उछल कूद नहीं, टर्र-टर्र उछल रहे हैं — ‘मैं ये कर दूँगा, मैं वो कर दूँगा, टर्र-टर्र।’ दम कुछ नहीं है, टर्र-टर्र।

अपने जिन युवा दोस्तों का भला चाहते हो, कम-से-कम उन्हें सर्वसार उपनिषद् ज़रूर भेंट करना। इसके अलावा कहना वेबसाइट पर आकर वहाँ पर अपना नाम-पता लिखवा देंगे तो उनके घर सर्वसार की एक प्रति पहुँच जाएगी, जनवरी में अब उसको भेजना हम शुरू करेंगे।

और जब तक सर्वसार नहीं पहुँच रहा है तुम्हारे घर, तब तक वेदान्त विषयक जो भी पुस्तकें हैं, उन्हें दो। और भले ही रिश्तों में खटास आती हो, लेकिन उनसे आग्रह कर-करके उनको पढ़वाओ। भले ही वो बोलें कि अरे! अब तुम कूल नहीं रहे, ये तुम क्या पढ़वा रहे हो! तुम बोलो, ‘भाड़ में गयी कूलनेस , तू ये पढ़, तू ये पढ़ और फिर मुझसे इस पर चर्चा कर।’

Have you benefited from Acharya Prashant's teachings?
Only through your contribution will this mission move forward.
Donate to spread the light
View All Articles