तुम मूल में निर्गुण हो || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)

Acharya Prashant

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तुम मूल में निर्गुण हो || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)

प्रश्न: सर, हर व्यक्ति में कोई मूल गुण होता है। उसे कैसे पहचानें?

वक्ता: शशांक ने कहा कि हर व्यक्ति में कोई मूल गुण होता है, उसे कैसे पहचानें? मूल जो होता है तुम्हारा, ‘केन्द्र’, ‘स्त्रोत’ इसका कोई गुण नहीं होता, वो निर्गुण है। उसका कोई गुण नहीं होता। वो समस्त गुणों को जन्म देता है, पर उसका अपना कोई गुण होता नहीं। तो ये कोई अगर कहे कि ये मेरा मूल गुण है, तो उसने अभी अपने केन्द्र को जाना नहीं है। कोई कोर क्वालिटी नहीं होती। ‘क्वालिटी’ माने गुण। गुण सारे मन में होते हैं। केन्द्र का कोई गुण नहीं होता। उसका कोई गुण नहीं है, वो सिर्फ है। उसके होने से सारे गुणों का कोई वजूद है पर उसका अपना कोई गुण नहीं है। उसके होने से सारा रूप-रंग, सारी दुनिया, सारे आकार हैं, पर उसका ना कोई अपना रूप है ना आकार है। वो तुम्हें देखने की ताकत देता है पर तुम उसे देख नहीं सकते। उसके होने से तुम्हें सब सुनाई देता है पर तुम उसे सुन नहीं सकते। सब कुछ उसका है पर वो किसी में सीमित नहीं है।

तो तुम ये कहो कि मैं कैसे पहचानूँ कि मेरा क्या मूल गुण है, तुम अपने आपको सीमित कर रहे हो क्योंकि हर गुण उपलब्ध है तुमको। तुम्हारे ऊपर कोई बाध्यता ही नहीं है कि तुम अपने आपको दो गुणों और चार गुणों में बाँध कर रखो। ये तो कंडीशनिंग है। ये तो तुम संस्कारित हो गए। तुम्हें ये सीमा खींचने की आवश्यकता है ही नहीं। क्योंकि जब भी तुम कहोगे कि ये कि ये मेरा केन्द्रीय गुण है, तो तुम ये कह रहे हो कि इसके अतिरिक्त जितने भी गुण हैं उनसे मैं दूर हूँ। वो मुझमें है नहीं। ना।

सब कुछ उपलब्ध है तुम्हें। जो निर्गुण को पा लेता है अब सारे दरवाजे खुल गए उसके लिए क्योंकि वो किसी एक गुण से अपने आपको बाँध कर नहीं रखेगा। तादात्मय नहीं रखेगा। वो नहीं कहेगा कि मैं पढ़ने भर में अच्छा हूँ। वो कहेगा कि मैं दौड़ भी सकता हूँ, मैं तैर भी सकता हूँ, मैं खाना भी बहुत अच्छा बनता हूँ। पर हम देखते हैं कि ऐसे ही होता है। हम दो गुणों और चार गुणों में अटक कर, फंस कर रह जाते हैं। हरफनमौला जैसी चीज नहीं पाते हम। ‘मैं लड़की हूँ’, तो क्या गुण होने चाहिए? ममता होनी चाहिए। एक अच्छी गृहणी के गुण होने चाहिए। मदद का, सेवा का भाव चाहिए। तुमसे किसने कह दिया कि तुम्हें ऐसा ही होना है? ‘मैं भारतीय हूँ’ और भारतीयता के ये जो लक्षण हैं, मुझमें होने चाहिए। और जो बाकि है वो नहीं होने चाहिए तुममें? ‘मैं हिन्दू हूँ या मैं मुसलमान हूँ, तो मुझमें ये गुण होने चाहिए’। और बाकि गुण? ‘मैं जैन हूँ तो मुझे हिंसा नहीं करनी है’। अच्छा! अगर मुसलमान हो तो हिंसा करनी है। ‘मैं ब्राह्मण हूँ तो मुझे ज्ञान अर्जित करना है’। अच्छा! अगर बनिए हो तो ज्ञान नहीं अर्जित करना है। जो भी गुण तुम पकड़ोगे तो पाओगे कि एक पकड़ा तो दस छोड़े। और दस क्यों छोड़ना चाहते हो? तो दोनों हाथों लूटो।

जब सब उपलब्ध है तो छोड़ने की क्या वजह है? देनेवाले ने तो सब कुछ दिया, तुम क्यों उसमे रेखा खींचते हो? तुमसे किसने कह दिया कि अगर तुम बहुत अच्छे वैज्ञानिक हो, तो तुम नाच नहीं सकते। किसने कह दिया? कि कह दिया है किसी ने। पर हम ऐसे ही रहते हैं। कोई केन्द्रीय गुण नहीं है। केन्द्र है और उसका होना काफी है। याद रखना वो निर्गुण है। याद रखना वो ‘अचिन्त्य’ है। उसकी कोई कल्पना मत किया करो।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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