क़ाबिलियत मुताबिक़ प्रदर्शन || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

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क़ाबिलियत मुताबिक़ प्रदर्शन || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

वक्ता: सवाल है कि अपनी काबिलियत पता है, ये भी पता है कि क्या कर के दिखा सकती हूँ, उसके बाद भी अगर सफलता नहीं मिलती तो क्या करूँ? तुम्हें काबिलियत पता है या फिर तुमने बस मान लिया है कि काबिलियत है? जिसको तुमने मान लिया है कि काबिलियत है, उसमें तो बस इतना ही दम है कि वो तुम्हें असफलता ही देती है। तुमने जिसको अपनी काबिलियत मान लिया है उससे तो तुम्हें कुछ मिल नहीं रहा। उसमें कितना दम है ये बात तो सामने ही है ना। खुद ही कह रही हो कि उस पर चल के बस असफलता ही हाथ लगती है। तुमने जिन बातों को अपनी काबिलियत मान लिया है वो तुम्हारी काबिलियत हैं हीं नहीं और तुमने जिसको अपनी नाकाबिलियत मान लिया है, वो भी तुम्हारी नाकाबिलियत हैं नहीं। किसी ने तुमसे कह दिया कि तुम फ़िज़िक्स में बहुत अच्छी हो। क्यों? क्योंकि तुम्हारे आसपास का जो सारा झुण्ड था, उसमें तुम ही अच्छे थे फ़िज़िक्स में और तुमने मान लिया कि मैं बड़ी काबिल हूँ। और किसी ने आ कर तुमसे कह दिया कि कोई चीज़ तुम्हारी नाकाबिलियत है क्योंकि उनको ऐसा लगता है और क्योंकि ये बात बहुत लोगों ने कही और बार-बार कही तो तुमने इसको भी मान लिया कि ये मेरी नाकाबिलियत है। जिनको तुम अपनी काबिलियत माने बैठे हो, वो तुम्हारी काबिलियत हैं नहीं। जिनको तुम अपनी नकाबिलियत माने बैठे हो, वो भी दूसरों ने बस कह दी हैं। वो तुम्हारी वास्तविक नाकाबिलियत नहीं हैं।

तुम्हारी काबिलियत तुम्हारा होना भर है। तुम हो ना? तो बस काबिल हो। ये ना पूछो कि किस बात के काबिल हैं? जिस भी काम में डूबे हो उसी के काबिल हो। डूब कर पढ़ाई कर रहे हो तो उसके काबिल हो। खेल रहे हो तो उसके काबिल हो। गा रहे हो तो उसके काबिल हो। खाना खा रहे हो तो उसके काबिल हो। तुम अपनी जो काबिलियतें जानते हो वो ऑब्जेक्ट स्पेसिफिक हैं, वस्तु सापेक्ष कि मैं बहुत काबिल हूँ रीडिंग में। तुमने चुनाव कर लिया है, तुमने हिस्से कर दिये हैं। ये मेरी काबिलियत, और ये मेरी नाकाबिलियत। हिस्से हैं ही नहीं। ये झूठे हिस्से कर रखे हैं तुमने। तुमने जबरदस्ती अपने मन में ये बात ठूँस रखी है। तुम्हारी काबिलियत पूर्ण है। जो कर रहे हो उसी के काबिल हो। अभी सुन रही हो ना, ध्यान से सुनने के काबिल हो। अभी चलोगी ना, तो ध्यान से चलने के काबिल हो। और जब नाचो, तो वही काबिलियत है। जिस क्षण में जो है वही तुम्हारी काबिलियत है। वही तुम्हारा होना ही तुम्हारी काबिलियत है। बशर्ते पूरी तरह हो। हम पूरी तरह होते नहीं हैं। कम लोग होंगे जो सुनने में पूरी तरह होंगे। कम लोग होते हैं जो किसी भी क्षण में पूरी तरह होते हैं। हमारा होना अधूरा-सा है, खाली-सा क्योंकि मन कहीं और रहता है। मन कहीं और ही रहता है। हमारा होना पूरा नहीं है।

जब किताब के पास जाओ और ये कह के जाओ कि इस विषय में तो मेरी काबिलियत है तो ठीक से पढ़ नहीं पाओगे क्योंकि पहले ही एक बात मन में बैठी हुई है कि मैं तो काबिल हूँ इसमें। और अगर किसी किताब के पास ये सोच कर गए कि इसमें तो नाकाबिलियत है, तो भी नहीं पढ़ पाओगे। ना ये सोच कर जाओ, ना वो सोच कर जाओ। बस जाओ और पूरी तरह जाओ कि पढ़ रही हूँ, तो बस पढ़ रही हूँ।’ नहीं पता मुझे कि काबिलियत-नाकाबिलियत क्या होती है, नहीं पता मुझे कि सफलता-असफलता क्या होती है। नहीं पता मुझे कि पढ़ने की वजह क्या है। बस पढ़ रही हूँ।’ कोई लक्ष्य नहीं है कि पढ़ करके एक दिन परीक्षा लिख देनी है। परीक्षा के लिए पढ़ रहे होतो क्या पढ़ रहे हो? कुछ नहीं पढ़ रहे। कुछ सिद्ध करने के लिए पढ़ रहे हो तो भी नहीं पढ़ पाओगे।’ मुझे दिखा देना है पूरी दुनिया को कि मैं कुछ कर सकता हूँ।’ तो भी नहीं पढ़ पाओगे। क्योंकि अब ध्यान पढ़ने पर नहीं दुनिया पर है कि दुनिया को दिखा देना है। परीक्षा के लिए पढ़ रहे हो तो भी नहीं पढ़ पाओगे क्योंकि ध्यान पढ़ने पर नहीं परीक्षा पर है। मन में कुछ ना रहे। बस तुम हो और वो क्षण है, काफ़ी है। फिर देखो। फिर जो होना होगा वो अपने आप होगा। फिर जो होना होता है वो अपने आप होता है। और जो भी होता है तुम्हें उससे शिकायत नहीं रह जाती। फिर तुम ये नहीं कहते कि असफल रह गए क्योंकि उस होने में ही तुम्हारी सफलता थी।’ मैंने इतना अच्छा समय गुज़ारा है अभी इस किताब के साथ, हो गया सफल। अब आगे की कौन सोच रहा है। प्यार हो गया किताब से, आगे की कौन सोच रहा है।’ जब प्रेम में होते हो, और किसी से गले मिल रहे होते हो, तो क्या परिणाम की सोचते हो? वास्तव में जो पढ़ते हैं वो गले ही मिलते हैं किताब से।तो जब प्रेम में गले मिले हुए होते हो तो क्या सोच रहे होते कि छ: महीने बाद क्या करना है। और अगर सोच रहे हो तो बड़े खतरनाक आदमी हो। गले मिलना ही काफ़ी है ना, या सफलता-असफलता सोचते हो? कि आज इसके साथ दो-तीन घण्टे बिताए, चौदह सौ रुपये खर्च किये सफल हुआ कि नहीं? कुछ लोग हिसाब भी रखते हैं इस तरह का। जो जीवन में सफलता-असफलता का बड़ा ध्यान रखते हों, वो बड़े व्यापारी किस्म के आदमीं हैं। उनका मन ही व्यापारी है। वो गिनती कर रहेहैं कि इतनी कोशिश की, इतना समय लगाया, इन्वेस्टमेंट है, वसूली भी तो होनीचाहिए। किताब से वसूली नहीं की जाती, किताब से प्यार किया जाता है। और फिर मज़े देखो, फिर तुम्हें फ़िक्र नहीं रहेगी कि आगे क्या होगा। फिर कहोगे कि हो गया जो होना था, वो अभी हो गया। और फिर समय का भी पता नहीं चलेगा। पढ़ने बैठोगे, सोचोगे कि दो घण्टा पढ़ना है, रात बीत जाएगी, ना थकान, ना नींद और तब जानोगे कि जीवन क्या होता है, मज़ा क्या होता है, पढ़ाई क्या होती है और कुछ भी क्या होता है।

लक्ष्य और सफलता का कैल्कूलेटर मत चलाया करो हर समय, कितना नफ़ा, कितना नुकसान, जैसे एक बूढा दुकानदार होता है। सब जवान होना? सफलता-असफलता, हानि-लाभ, बड़े गणित मत लगाया करो जल्दी से।

श्रोता १: लेकिन सर, काबिलियत का कोई प्रमाण भी तो होना चाहिए?

वक्ता: किसके लिए? ये प्रमाण किसको दिखाना है। जल्दी बोलो किसको दिखाना है प्रमाण। दूसरों को।’ मैंने खाना खा लिया, मेरा पेट भर गया’। अब खुद को तो प्रमाण मैं दूँगा नहीं कि खाना खा लिया है। किसी और को ही देना होगा। मेरा तो पेट भर गया और पेट का भरना ही प्रमाण है। मैंने मौज कर ली और मौज कर ली ये अपना प्रमाण खुद है। निश्चित ही किसी और को प्रमाण देना है। किसी और की नज़रों में अपनी छवि बनानी है। किसी और से दुश्मनी है तो उसको सिद्ध करना है।’मुझे कुछ सिद्ध करके दिखाना है, तू मुझे बचपन से ही बेवक़ूफ़ समझता था ना। ये देख मेरा रिज़ल्ट। बेवक़ूफ़ नहीं हूँ मैं।’ क्यों किसी को कुछ सिद्ध करना है? तुम खुद जानते हो तो बस खुश।

क्यों छवि चमकानी है? जिसके सामने कुछ सिद्ध करना चाहते हो, उसके गुलाम बन जाते हो। वो तुम्हारा मालिक हो गया। तुम उसको कुछ जताने के लिए अपनी ज़िंदगी जीते हो। वो मान जाए इसलिए तुम्हारा जीवन चल रहा है।ये तो बड़ी विपरीत बात है। वो बड़ा महत्वपूर्ण हो गया तुम्हारे लिए। हमने कहा था कि सीरियस मत हो जाना, तुम बड़ी सीरियस हो गयी हो दूसरों के बारे में। अपने लिए करो, अपने लिए, उसके बाद सब बढ़िया रहेगा।’ जो भी है, मेरे अपने लिए है। किसी को जताना नहीं है, किसी को दिखाना नहीं है। कुछ सिद्ध करने के लिए नहीं है। मैं जानती हूँ और इतना काफी है। और अगर मुझमें है तो अपने आप, जिनमें आँख होगी, उनको दिखेगा।’ सूरज के पास रोशनी है, वो विज्ञापन नहीं लगाता कि आईये, सुबह-सुबह बहुत रोशनी रहेगी। जो अँधा नहीं है उसको रोशनी दिख जायेगी, और जो अँधा है उसको कभी दिख भी नहीं सकती। सूरज अंधों को कभी सिद्ध नहीं कर पायेगा कि उसके पास रोशनी है। चमकता रहे सूरज। अंधे कभी नहीं मानेंगे कि सूरज है। अब सूरज लगा हुआ है प्रमाणित करने में, प्रमाण लेकर आया है और जोर से चमक रहा है। इतना ही होगा कि इतनी ज़ोर से चमकने की कोशिश करेगा कि खुद ही जल मरेगा। ये बातें कुछ साथ रहेंगी या भुला दी जाएंगी?

सभी श्रोता (एक स्वर में): रहेंगी सर।

वक्ता: अब मैं तुमसे कह रहा हूँ कि इन बातों को जबरदस्ती साथ नहीं रखना है। ध्यान देना, पूरा ध्यान देना और फिर जो ठीक लगेगा वो अपने आप तुम्हारे साथ रहेगा। जो तुम्हारे ध्यान पर खरा नहीं उतर रहा वो वैसे भी तुम्हारे साथ रहेगा नहीं। तो दोनों बातें कह रहा हूँ । जो ध्यान पर खरा उतरे, जो तुम्हारी समझ के अनुरूप हो वो तुम्हारे साथ रहेगा, उस पर चलोगे। और जो बात समझ में नहीं आयी है उसको ज़बरदस्ती मत ढोना। उसको भूल जाना। चलिये, फिर मिलेंगे। धन्यवाद।

– ‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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