भगवद गीता - कर्मयोग: अध्याय 3, श्लोक 11

Acharya Prashant

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भगवद गीता - कर्मयोग: अध्याय 3, श्लोक 11

देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः। परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ।।

~ श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय 3, श्लोक 11

अर्थ: यज्ञ से देवताओं को आगे बढ़ाओ, तो वो दैवत्य तुम्हारी उन्नति करेंगे। इस तरह परस्पर (आपस में) उन्नति करते हुए तुम परम श्रेय प्राप्त करते हो।

काव्यात्मक अर्थ: *यज्ञ से देवत्व बढ़े देवत्व से बढ़ो आप परस्पर यूँ बढ़ते रहो कर यज्ञ हो निष्पाप

आचार्य जी: बोलता है हां और आप ही के भीतर ऐसा है जो बोलता है उसको ना। आप ही के भीतर एक है जो बहुत साफ सुथरा है ,और आप ही में कोई ऐसा है जो बड़ा मेला कुचेला है।

आप ही में कोई है जो किसी से नहीं डरता, और आप ही में कोई है जो बात बात पे घबरा जाता है । क्या आप इन दोनों से परिचित हैं, हुआ है, परिचय ।और आप क्या ये देखते हैं की, जीवन भर दिन भर इन दोनों में आपस में संघर्ष राहत है।

एक जो उठ बैठना चाहता है, और एक जो बोलता है अभी नींद गहरी है। इन दोनों के संघर्ष का अनुभव किया या अपने, वही महाभारत है वही कुरुक्षेत्र है ।एक जो कृष्णा की तरफ जाना चाहता है,और दूसरा कहता अरे अभी दूसरे कम बहुत बाकी हैं। इन दोनों का संघर्ष अनुभव कर पाते हैं आप अपने प्रतिदिन के जीवन में। यह दोनों ही मौजूद रहते हैं ऊपर एक जो ध्यान में उतरना चाहआचार्य जी :- जिस दिन से मनुष्य है मैंने मनुष्य की चेतना है उसी दिन से यज्ञ भी है। मनुष्य की चेतन को सही गति देने के लिए। क्योंकि मनुष्य अकेला है जिसकी चेतना कुछ विशेष मांगती है और उस विशेष को पाने का जो साधन है वो है,निष्काम कर्म, निष्काम कर्म जो आत्मज्ञान से उद्भूत होता है। और उसे निष्काम कर्म के लिए जो सबसे सफल और सुंदर प्रतीक है वह है यज्ञ इसको हम कभी नहीं भूलेंगे की यज्ञ का अर्थ गीता के संदर्भ में निष्काम कर्म है हां हवे या हवै या आहुति । वह है जो समर्पण करने योग्य है और समर्पण किया जा रहा है उसको जो हमारी वर्तमान स्थिति से ऊपर का है,तो जो कम मूल्य का है उसको बड़े मूल्य हेतु न्योछावर कर देने को या निवेश कर देने को या त्याग देने को "यज्ञ" कहते है।

अब आज श्लोक हमसे का रहा है की यज्ञ के द्वारा तुम देवताओं को आगे बढ़ाओ।और फिर देव तुमको आगे बढ़ाएंगे और इस प्रकार परस्पर आगे बढ़ो।दो शब्द है आज विशेष उनको लिख लीजिए, इनको समझ गए तो बात पुरी साफ हो जाएगी।

देव ,देवत्व। देव स्लैश देवत्व।अब दूसरा उन्नति या वृद्धि। देव शब्द रूप धातु से आया है और दिल से आसान होता है प्रकाशित ,प्रकाशित, आलोकित चमत्कारमय, दिव्य। तो देव कौन है एकदम मूल अर्थ में हम बताना चाहते हैं व्यापारी के सांस्कृतिक अर्थ में नहीं प्रचलित अर्थ हम नहीं खोज रहे हम बिल्कुल जो तांत्रिक अर्थ उसकी मीमांसा करना चाहते हैं दीव माने प्रकाशित अलौकिक । तो फिर कौन हुआ आत्मा को प्रकाश की संज्ञा दी जाती है कहते हैं आत्मा प्रकाश मान हैं प्रकाश की उपस्थिति में सब होती वस्तुओं की सच्चाई ज्ञात हो जाती है आत्मा प्रकाश मात्र है आत्मा कोई वस्तु नहीं है प्रकाश मात्र है प्रकाश से ऐसे नहीं होता है कि वह किरण है कोई रेडिएशन है प्रकाश से आशय वह होता है जो आपको देखने की शक्ति देता है वह जिस की उपस्थिति में अज्ञान का अंधेरा नहीं रहता है वह जिस की उपस्थिति में दूध का दूध पानी का पानी हो जाता है भ्रम मिट जाता है।

वह जिसके आते ही संसार का और वस्तुओं का सही स्वरूप ज्ञात हो जाता है जब प्रकाश नहीं रहता तो कोई भी चीज कोई दूसरी चीज हो सकती है पेड़ भूत जैसा लग सकता है झोपड़ी महल जैसी लग सकती है कोहरे में बनी कोई आकृति किसी मनुष्य जैसी लग सकती है कहीं कपड़े टंगे हो ऐसा लग सकता है कोई झूला झूल रहा हो कुछ भी लग सकता है प्रकाश वह है जो आकर के धर्म को दूर कर देता है तो आत्मा को प्रकाश की संज्ञा दी गई है। तो दीव माने प्रकाशित , दीव माने प्रकाशित । तो दे वह है जो आत्मा के निकट है देव उस मनुष्य को कहना है जो आत्मा के निकट है अतः आत्मा के प्रकाश में नहाया हुआ है।

प्रकाश का स्रोत नहीं है देव ,तो प्रकाशित है अतः उन्हें अतः एक ही साधन हो सकता है प्रकाश की निकटता। क्योंकि प्रकाश तो आत्मा मात्र है ठीक है, देव तो क्या हुआ फिर देव तो क्या हुआ हम का आत्मा की ओर झुकने का संकल्प क्योंकि प्रकाश हो तभी मिलेगा ना जब आत्मा की और झुको गेम उठोगे तो सत्य मुखी होना या आत्ममुखी होना देवत्व हुआ । पीठ कल लेंगे सूरज की तरफ तो चेहरा तो अंधेरी की तरफ ही हो गाना तो अंधेरा अंधेरा ही रह जाएगा तो आज का श्लोक कह रहा है कि यज्ञ से देवत्व की वृद्धि करो यज्ञ से देवता की वृद्धि करो देवता भी वही है जिसमें देवता की प्रधानता हो वही देव है यज्ञ से देवत्व की वृद्धि करो निष्काम कर्म की परिभाषा ही यही है कि जिसमें तुम्हारा वह सब कुछ जो निम्न कोटि का है वह कम हो जाए और उसको तुम शक्ति दो जो तुम्हारे भीतर उनके स्थान का है।

उपनिषद कहते हैं मनुष्य मन से मन को आलोकित करो ,आगे बढ़ने का रास्ता ही यही होता है कि अपने ही भीतर हमें ही जो प्रकाश मुखी उड़ जाए उसको समर्थन और ऊर्जा दो और अपने ही भीतर कोई ऐसा है जो गिरने की हो तत्पर है, उसको अग्नि को समर्पित कर दो, त्याग दो भस्म कर दो भस्म कर दो, आहुति दे दो। यज्ञ का मतलब समझ रहे हैं आप ही के भीतर एक है जो सच्चाई कोता है, खुद को खो कर । दूसरा जो ध्यान से बहुत भगत है, क्योंकि ध्यान में छोटी चीज़ें हट जाति हैं , वो छोटी चीजों पर आशक्त है, वो ध्यान से घबराता है ।एक जो सब कुछ भूल कर के जो प्रेम की राह है उस पर चल देना चाहता है, और दूसरा कहता है,की अजी अभी कहां प्रेम वगैरा तो ठीक है ,पर संसार में तो व्यवहारिक बातें करनी पड़ती है। संसार ऐसी अफलातून की बातों से नहीं चलता ।

ये श्लोक बहुत विशेष है, ये आपको आपके आंतरिक जगत में यज्ञ का अर्थ समझता है । ये कह रहा है ,अपने ही भीतर जो बढ़ाने लायक है उसको बढ़ाने को कहते हैं "यज्ञ",और अपने ही भीतर जो बढ़ाने लायक है वो आप बड़ा नहीं पाओगे, जब तक आप उसकी आहुति नहीं दोगे जो जलाने लायक है। जो आपसे बाहर की कोई शक्ति नहीं है,आप ही के भीतर जो प्रकाशित है उसे "देवत्व" कहते हैं।और यज्ञ में उसको बल देना होता है।

"अमृत बिंदु उपनिषद", बहुत साफ उदघोषणा करता है,मुक्ति भी तुम हो ,और बंधन भी तुम। जो मुक्ति की और झुका हुआ है, वो मुक्त है। और जो बंदों का अभिमानी है, वो बध्य है ।अपने सबसे बड़े मित्र भी तुम स्वयं हो, अपने सबसे बड़े शत्रु भी तुम स्वयं हो । यज्ञ का अर्थ है उसको ताकत देना जो मित्र है तुम्हारा तुम्हारे भीतर ।और उसको ताकत देने के लिए उससे ताकत छिननी पड़ेगी जो अपने आंतरिक दुश्मन को दे राखी है।

अपने भीतर जो प्रकाश का प्रेमी है ,उसका समर्थन करो ,उसे ऊर्जा दो ,अपने सारे संसाधन दो, समय दो उसको ।और अपने ही भीतर जो अंधेरे का पैरोकार है , उसको जो कुछ भी दे रखा है उसे वापस खींचो ,ये "यज्ञ "है ।कृष्ण कह रहे हैं यज्ञ से देवत्व की वृद्धि करो, और देवत्व तुम्हारी वृद्धि करेगा। देवत्व मतलब तुम्हारा भीतरी कल्याण।और फिर वो देवत्व तुम्हारी वृद्धि करेगा, माने तुम्हारे कर्म फिर कल्याण उन्मुखी हो जाएंगे।

तुम उसको बढ़ाओ जो बढ़ाने लायक है ,वो बाढ़ गया तो तुम आगे बाढ़ जाओगे । ये हमें लेकर आता है आज के दूसरे शब्द पर की, वृद्धि का अर्थ क्या होता है? वृद्धि का सिर्फ एक अर्थ हो सकता है और ये अर्थ हमने पिछले श्लोक में भी देखा था लिखा हुआ है आपने? पिछले श्लोक में भी यही कहा था, वृद्धि का एक ही अर्थ हो सकता है "बढ़ाना", प्रगति का अर्थ होता है , सही दिशा में गति। वृद्धि का अर्थ सही दिशा में बढ़ाना, और वही प्रगति का भी अर्थ है।

तो आप जब किसी से कहे की तुम्हारी वृद्धि हो रही है, तो इस शब्द का उपयोग बहुत सोच समझकर करें। वृद्धि का अर्थ है सही दिशा में ,सत्यम मुक्ति की दिशा में बढ़ाना । उस दिशा में वो व्यक्ति बड़ा हो तभी कहे की, तुम्हारी वृद्धि हुई है, नहीं तो नहीं हुई है कहे की कोई प्रगति कर रहा है ,तरक्की कर रहा है अपने आप को कहना चाहते हैं, की मैंने बड़ी प्रगति तरक्की कारी है, तो सावधान हो जाए। क्या सचमुच आपकी गति सत्य की ओर रही है , अगर रही है तो उसे प्रगति का सकते हैं अन्यथा नहीं ।

तो हमारे भीतर ये दोनों मौजूद हैं, देव भी और दानव भी, और जिसका जितना वजन होता है उसके अनुसार जो गुरुत्वाकर्षण का भीतरी केंद्र है, वो स्थापित हो जाता है । सेंटर ऑफ ग्रेविटी, झूला देखा है , see- saw, उसमें एक तरफ कोई भारी बैठ गया हो और एक तरफ हल्का तो क्या होता है उधर कोई छूट जाता है ना।और वो जो केंद्र निर्धारित होता है, देव और दानव के बीच का वो "अहम" की अवस्था होती है बना लीजिए।

एक रेखा खींच लीजिए,चपटी होरिजेंटल,ठीक है । उस पर एक तरफ लिखिए प्रकाश,एक बिंदु पर लिखिए प्रकाश, एक बिंदु पर लिखिए अंधकार। प्रकाश का वजन, सम्मान, महत्व, अगर आपने निर्धारित करा है आप माने अहम ,अगर आपने निर्धारित करा है , बस 20 मिनट वहां लिखिए 20 मिनट प्रकाश के नीचे और अंधकार का वजन आपने निर्धारित करा है 80 इकाई , लिखिए 80 अंधकार के नीचे तो देख लीजिए कि फिर इस स्केल पर अहम कहां निर्धारित होगा। है ना अंधकार की तरह,ठीक है । प्रकाश से फिर उसकी दूरी अगर होगी 3 मिनट की 4 मिनट की तो अंधकार से उसकी दूरी बस एक यूनिट की होगी ।माने वो किसके ज्यादा निकट होगा, अंधकार के ज्यादा निकट होगा तो तो वहां पर लोकेट कीजिए कि "आई "कहां पर बनेगा "अहम" कहां पर बनेगा उस स्केल पर ।ये इस पूरे श्लोक का सार है ।

नहीं समझ पा रहे हो, एक स्केल है,( आचार्य जी टेबल के दोनों लास्ट कॉर्नर को हाथ से टच करते हुए),ये क्या है? प्रकाश। यह क्या है? अंधकार। अहम के पास कुल मिलाकर के,100 यूनिट संसाधन है , 100 यूनिट संसाधन है,और ये उसका चुनाव है की वो किसको कितना देगा ।हम देखना यह चाहते हैं की इस चुनाव से अहम पर क्या असर पड़ता है ।

ये है अगर प्रकाश ,और इसको दिए सिर्फ 20 और इसको दिए 80 ,100 का बटवारा ऐसे करा।क्योंकि अहम के पास तो जो कुछ है, वो सीमित ही है , सौ ही है उसके पास। इसको दिया 20(आचार्य जी प्रकाश साइड बिंदु पर हाथ लगाते हुए) और इसको दिया 80(आचार्य जी अंधकार साइड के बिंदु पर हाथ लगातेहुए) तो ये जो स्केल है, ये जो डाइमेंशन है इस पर अहम कहां पर स्थापित हो जाएगा? उसकी लोकेशन कहां हो जाएगी ? 80 इसको दिया है 20 इसको दिया है तो अहम यहां पर कहीं पर होगा ,यहां पर ।इसके बहुत पास और इससे बहुत दूर ।

इससे बहुत पास ,और इससे बहुत दूर। इस दूरी में और इस दूरी में कितने का अनुपात होगा, 4 और 1 का।इससे बहुत दूर होगा, इतनी दूर। चार यूनिट और इसके बहुत पास होगा, बस एक यूनिट। तो अहमने अपनी ओर से ,अहम ने अपनी ओर से तो चतुराई दिखाई ,क्या चतुराई दिखाई?वे देखिए ये बहुत मैथमेटिकल श्लोक है, इसके अलावा कोई तरीका नहीं है इसको समझने का । क्योंकि इसमें बताया जा रहा है की तुम उनकी वृद्धि करो, तो वो तुम्हारी वृद्धि करेंगे इस तरह परस्पर वृद्धि होगी । ये जो परस्परता है, म्युचुअलिटी मैं वो समझना चाह रहा हूं, बहुत मैथमेटिकली है और कोई तरीका नहीं है इसको समझना पड़ेगा।

तो अहम ने अपनी और से तो चलाकी दिखा दी,क्या चलाकी दिखा दी? प्रकाश को दिया सिर्फ कितना 20, और अंधकार को दिया कितना? और अहम खुश हो रहा है, कह रहा है ,यहां पर तुम मजा आता है, विषय रस मिलता है भोगनी को मिलता है तो सब कुछ मैंने अपना यहां लगा दिया, इन्वेस्ट कर दिया। जितना ₹100 थे उसके पास इसको 20 ही दिया, 80 इसको लगा दिया और सोच रहा हैं मैं चतुर हूं । लेकिन उसका एक बड़ा खतरनाक नतीजा निकलता है, जो अहम जानता नहीं। तुम इनको और इनको कितना दोगे वो तय कर देगा की इस एक्सिस पर तुम कहां सिचुएटेड हो।

ये 20 और ये 80 , अहम की लोकेशन बन गए ना।ये 20 है तो अहम कहां बैठ गया यहां l(अंधेरी बिंदु के साइड हाथ रखते हुए) तुमने इसको ज्यादा दे दिया है तो उसकी सजा तुमको ये मिलने की तुम यही घर मिल गया। तुम जिसको ज्यादा दे दोगे उसी के पास तुम्हाररा घर बन जाएगा।समझ में आ रही बात। अब ये अपना फैसला पलट दें ,इधर 80 कर दे इधर 20 कर दे। तो अहम का क्या होगा । अहम यहां पहुंच जाएगा, ये इसको क्या मिल गया? पुण्य मिल गया, लाभ मिल गया ।

तो एक बड़ी महत्वपूर्ण बात है वेदांत में, कर्म करने में चुनाव है आपका, कर्मफल में चुनाव नहीं है।यहां तक तो आपका अधिकार चलता है की मैं 20 दूंगा की, 80 दूंगा, 40 दूंगा, 75 दूंगा, दो दूंगा, पांच दूंगा ये आपके चुनाव की बात है। लेकिन उस चुनाव का जो परिणाम आएगा वो आपके हाथ में नहीं रहता।जो करोगे सो बोलो ? बोलो? बोए पेड़ बबूल के, बोए पेड़ बबूल के!

श्रोतागण: * आम कहां से पाए।

आचार्य जी: दीया सिर्फ स्कोर 20 मुक्ति कहां से पाए बोए पेड़ बबूल का आम कहां से खाए और प्रकाश को दिया सिर्फ 20 अब मुक्ति कहां से पाएं। 80 किसको दिया था ? अंधेरे को , तो उसी अंधेरी गुफा के पास तुम्हारा घर बन जाना है ।दोनों को 50-50 दे दिया तो घर कहां बनेगा अहम का? एकदम बीचो-बीच।आप जिसको देते हो उसी के पास आपका घर बन जाता है ।जैसे सेंटर ऑफ मास ,सेंटर ऑफ ग्रेविटी, जैसे फ्री बोलना चाहो, जिस भी तरीके से समझना चाहो।

बात समझ रहे हो, तो कृष्ण का रहे हैं यज्ञ के द्वारा तुम प्रकाश की वृद्धि करो, और प्रकाश की वृद्धि करोगे तो प्रकाश तुम्हारी वृद्धि करेगा। तुम उसको बढ़ाओ, वो तुम्हें बढ़ाएगी। लगभग वही बात जो धर्मो रक्षति रक्षिता में है।तो कुछ ऐसा नहीं है की तुम देवत्व पर कुछ एहसान कर रहे हो, अगर तुमने उसको 20 की जगह 80 दिया। तुमने अगर उसको 80 दिया है, तो उससे तुम ही बादल गए। तुम यहां से उठ करके यहां पहुंच गए, हमारा घर बादल गया। तुम्हारी लोकेशन बादल गई ,और अहम क्या है? हम मैन वो स्थान जहां वो स्थापित है, बैठा हुआ है आशिक है।

तो अहम का निर्धारण किसी बात से हो जाता है इसलिए वह अपने भीतर की रोशनी को कितना देता है, और अपने भीतर के अंधेरे को कितना देता है।कृष्ण कह रहे हैं तुम यज्ञ के मध्य से देवत्व की वृद्धि करो देवत्व तुम्हारी वृद्धि करेगा। और इस तरह परस्पर वृद्धि करते हुए कल्याण करो। ये सूत्र है, तो अहम के पास ये चुनाव तो है ,अधिकार तो है की वो इधर 20 ही दे ,इधर 80 दे। लेकिन ये कर चुकने के बाद। वो ये ज़िद नहीं कर सकता की दिया तो 20 है, लेकिन रहूंगा भी यही पर। बेटा अगर उसको 20 ही दिया है, इसको 80 दिया है ना तो, जहां 80 दिया वहीं जाकर रह । जहां 80 दिया है वही जाकर रहे यही कर्मफल है।

तुम्हारे पास चुनने का अधिकार था, सिर्फ कब तक था जब तक बंटवारा कर रहे थे। ये रिसोर्स एलोकेशन जब तक कर रहे थे तब तक तो अधिकार था। एक बार ये कर दिया तो बंदूक से गोली निकाल गई । रिगर दबाने तक तो हक राहत है की दबाना है की नहीं दबाना है, किस दिशा में दबाना है? एक बार ट्रिगर दबा दिया गोली निकल गई आप गोली पर तुम्हारा हक नहीं है ,वो जहां हो गई अब लगेगी। यह बात समझ में आ रही है।तो यज्ञ का मतलब होता है, उसको देना। लेकिन जो उसको देता है ,उसको माने किसको ?प्रकाश को ।हमने कहा देव से अर्थ हम प्रकाश लेंगे। क्योंकि दिव्य जो धातु है उसका अर्थ होता है प्रकाशित।

आप अगर प्रकाश को दे रहे हो, तो है तो ये निष्काम लेकिन इसका फल मिलता बहुत मीठा है। और इसका फल दूना होता है ,दो तफा होता है। पहले तो ये ,की कम सही किया , आहुति दी तो किसको दी प्रकाश को दी और दूसरा ये कि जिसको आहुति, दी वो अपने पास बुला लेते हैं।बोलता है , आओ जब हमको इतना समर्पित हो रहे हो तो आओ मेरे पास ही आ जाओ यहीं रहो अब। जो जिसको अपना जितना दे डालेगा हो पाएगा। उसको वहीं पर स्थान घर मिल गया है। जीवन में आप की लोकेशन क्या है लोकेशन राजस्थान वह इसी से निर्धारित होता है कि आपने अपना समय ,धन हर तरह के रिसोर्सेस ,बुद्धि ये सब किसको दिए। गलत दिशा को देने का नतीजा ये होगा की आपको भी जिसको दिया है, उसी के पास बसना पड़ेगा ,आप बस जाओगे।

कभी ये मत समझना है की किसी को कुछ दे रहे हो, तो दे करके मुक्त हो गए मुक्त नहीं हुए जिसको दिया है उसके पास बसना भी पड़ेगा , ये अजीब नियम है जीवन का।जिसको बहुत दे दोगे उसके तो घर में ही बसना पड़ेगा। ऐसा क्यों होता है, ऐसा क्यों होता है, यानी की जिसको दे रहे हो वो चाहता है ना की उसको मिलता रहे, तो फिर पास ही बैठा लेता है। जिसको दे रहे हो मुक्त नहीं छोड़ता, खासकर अंधेरा, सोचना। जिसको आप बहुत दे हो, वो बहुत आग्रही रहेगा आपको जड़ने का। क्योंकि आपको अगर छोड़ दिया उसने, तो उसको मिलन बंद हो जाएगा ।अंधेरे को इतना पोषण दोगे तो अंधेरा जकड़ लेगा ना, ये बढ़िया मिला है, आशामी। इसको पकड़ कर रखो और अगर आपको कोई पकड़ लेता है तो यही तो बंधन कहलाता है ना।बंधनों का करण समझ में आ रहा है, आपको बंधन अनायास नहीं मिलते। आपने उनको बहुत कुछ दिया है, तो फिर उन्होंने आपको पकड़ लिया है। मतलब हमने अपनी सुपाड़ी खुद दी है।

माने हम वहां पैसा देकर के आते हैं, की तुम हमें अब गुलाम बनाओ। जी ।In case,or in kind, जरूरी नहीं है कि तुम वहां पैसा ही देखकर आते हो जरूरी नहीं कि पैसा ही दिया जाए समय भी दिया जा सकता है भावनाएं भी जा सकती है, प्यार दिया जा सकता है, हमारा वाला प्यार। जो किसी से प्यार भार बातें करके आओ, वो ना तुमको अपने घर में बैठा ले तो। काहे की कौन देगा उसको झुन्नू लाल को इतना प्यार। तुम ही मिले हो उसको तो पकड़ कर बैठा ही लगा रहेगा जाना नहीं तुम, तुम बिल्ली के भाग से छींका फुटा।बड़ी मुश्किल से कोई मिला है, जो हम जैसे को भी प्यार दे सकता है। अब यहीं बैठ जाओ जाना नहीं यहां से उसको बोलते हैं पजेसिवनेस अब समझ में आ रहा है पजेसिवनेस क्या है गीता पड़ी होती तो प्रोजेक्ट नहीं हुए होते, ना पसेसे किया होता किसी को । सूत्र समझिए, जिसको जितना दोगे जिसमें जितना निवेश करोगे उसके उतना निकट स्थापित हो जाओगे बस जाओगे घर में बसना पड़ेगा या घर बनाना पड़ेगा उसके बगल में।

ये क्या हो गया , ये मुक्ति का सूत्र भी है। उससे मुक्त होना चाहते हो तो क्या करो, उसे देना बंद करो, खुद ही भाग देगा। कौन सा उसने प्यार के नाश्ते तुम्हें बसाया है।इस नाते बसाया था की जितना पास रहेगा उतना निगाह में रहेगा उतना इससे वसूलना आसन रहेगा। उसे देना बंद कर दो खुद ही बोल देगा ,ऐसा करिए जरा थोड़ा दूर जाकर बसिये।मुक्ति का सूत्र क्या मिला, बंधनों को पोषण देना बंद करो । वो तुमको इसलिए नहीं पकड़ते की उन्हें तुमसे प्रेम है, वो इसलिए पकड़ते हैं क्योंकि जब तुम उनके पास होते हो तो उनको आहार देते हो।

आप जब बोलते हो फलाने ने आपको पकड़ रखा है ,अरे फालना बंधन है, वो तो छोड़ता ही नहीं, इसका मतलब बस इतना है की आप उसको खिलाते पिलाते बहुत ज्यादा हो। जिसको इतना खिलाओगे पिलाओगे वो आपको कभी आजाद छोड़ेगा क्या?जो चीज आपके जितने , काम के हो जाएगी आप उसको उतना गुलाम बना के रखोगे, सोचिएगा क्योंकि उसको आजादी देना खतरनाक है ।उसको जितना गुलाम बनोगे, उतना आपकी सुख सुविधा के लिए अच्छा रहेगा।रहता है की नहीं, जो चीज आपकी किसी कम की नहीं होती आप उसकी परवाह करते हो।

आप अंधेरे के बहुत काम के हो गए, तो इसलिए अंधेरे में आपकी बहुत प्रवाह कर डाली।नई गाड़ी खरीदते हो, चाबी बिल्कुल बंद के रखते हो की नहीं जेब में ,गाड़ी को आजाद छोड़ोगे क्या? कौन है जो अपनी गाड़ी को आजाद छोड़ता है, जा जिले अपनी जिंदगी चार पहिए तेरे पास भी है।अगर मैं नहीं चला रहा तुझे तो, हैंड ब्रेक लगा कर छोडूंगा। अपनी से कहीं को चल ना देना । या तो मैं चलाऊंगा तुझे या हैंड ब्रेक लगेगा अपनी मर्जी से कहीं मत चले जाना।

उससे लाभ हो रहा है जिससे लाभ हो रहा है,इसमें पैसा भी लगाओगे। कर्मफल क्या है किसी के पास बस जाओगे माने वही कर अभी यहां(आचार्य जी सर पर हाथ पकड़ते हुए) बस जाएगी वही वही दिमाग में घूमेगी। जिसमें तुमने इन्वेस्ट कर दिया वही अब तुम्हारे दिमाग में घूमेगा, तुम उसके पास बस गए। जिसमें अपने आप को निवेदिता कर देते हो क्या वही दिमाग में नहीं घूमने लगता,तो फिर हो गई ना आसपास बसई, दोनों बस गए आसपास।

अपनी जीवन ऊर्जा थोड़ी सी भी , कहीं लगाने से पहले बहुत सतर्क रहो।आप जिसको कुछ दे रहे हो,उसके अपने भी तो कुछ इरादे है ना, जितना अपने दिया है वो उतना ही पानी से संतुष्ट नहीं होगा। वो जान गया है, की आपसे कुछ मिल सकता है उसको,आपने उसके मुंह खून लगा दिया है । और आपसे उसको कुछ मिलता रहे इसके लिए वो आपको पकड़ लेगा , इसी को बंधन कहते हैं।

तो बंधन यूं ही नहीं आ जाते, बंधन तभी आते हैं जब आप बहुत कुछ देते हो। और यज्ञ का अर्थ है बंधनों से वापस खींचना, जो उन्हें दे रखा है ,और कहना स्वाहा।जो तुझे दे रखा था, वो अब उसको देते हैं जो उसको पाने लायक है। तुझे व्यर्थ ही कुछ दे रखा था गलत शेयर में इन्वेस्ट किया था बेच दिया। मलाई नुकसान हुआ वह भेज दिया पैसा निकाल करके सही शेर में इन्वेस्ट कर दिया। ऐसे ही करते हो ना, गलत स्क्रिप्ट में पैसा लगा दिया है नुकसान पर चल रही है ,थोड़ी कहते हो की अब तभी बेचेंगे जब मुनाफा होगा। और वेट करोगे तो वो और गिरेगी, नुकसान होता तो भी बीच दो, और सही जगह लगाओ पैसे को, ये "यज्ञ" है। स्टॉक ट्रेडिंग,गलत स्क्रिप्ट को बैच दो, क्या बोल के स्वाहा ।और सही जगह उसको इन्वेस्ट कर दो ।कृष्ण कहते हैं, इससे वृद्धि होगी वह शेर की भी वृद्धि होगी क्योंकि उसमें अपने पैसे लगाए उसने पैसे लगाने का भी दाम बढ़ता है ,तुम्हारी भी वृद्धि होगी। क्योंकि तुम्हारे ही तो शेयर है, अगर उसका दाम बढ़ेगा तो तुम्हारी भी वृद्धि होगी । क्योंकि उसका दाम बढ़ेगा तो तुम्हारा ही तो शेर है, तुम्हारी भी वृद्धि हो गई। ये है आ रही है बादशाह है समझ में वृद्धि का क्या अर्थ है कौन बताएगा?

फैलने का वृद्धि कहते हैं? फैल गए पूरा फैल गए , समेटे नहीं समेट रहे हैं इतना फैल गए, इसको वृद्धि बोलते हैं। प्रगति किसको बोलते हैं?विकास भी फिर किसको बोलेंगे?

सही दिशा कौन सी होती है?

श्रोतागण: आत्मा की ओर बड़ना।

आचार्य जी: तो इन शब्दों का इस्तेमाल प्रगति, वृद्धि, उन्नति, तरक्की, विकास आप किसी को बहुत हल्के तरीके से करते सुने तो जान लीजिएगा , अनाड़ी आदमी है। इसको पता ही नहीं है की कृष्णा कौन है सत्य क्या है गीता से इसका दूर-दूर कोई वास्ता नहीं है। अहम कहां लोकेटेड होता है? जहां उसने अपनी ऊर्जा का निवेश किया होता है, ठीक। यह सूत्र याद रहेगा जहां जाकर उसे बस ना होता है उसे बसा ही पड़ेगा,गलत जगह अगर लगा रहे हो अपने संसाधन ,तो सिर्फ संसाधनों का अपवाह नहीं हुआ है तुम्हारी स्थिति ही खराब हो गई है, क्योंकि तुम्हें अब वहां पर बसना पड़ेगा। दोहरी चोट पड़ती है।टिहरी एक तो यह दूसरा वहां बसे, और सबसे बड़ा नुकसान है वह तो यह की जिसको देना था उसको दिया नहीं उससे दूर हो गए। उससे वंचित र गए रोशनी से चूक गए बिल्कुल।

अब श्लोक का कोई स्थूल अर्थ न करें, ऊपर आसमान में देवता बैठे हैं और उन देवताओं को हम जब कुछ देते हैं तो देवता ऊपर से हमें देते हैं, तो इस तरह हमारी वृद्धि होती है। इस तरह बहुत सारे भाषियों में पाएंगे ,यहां से हमने देवता जी को चीज भेजी थी ना अग्नि में खाने पीने की चीज डाली वो ऊपर बैठे थे अग्नि कोरियर की तरह ऊपर पहुंचे उनको खाने-पीने की चीज दी, वो खुश हो गए । तो ऊपर से फिर उन्होंने हमारे लिए वरदान भेज दिया कैसे वरदान भेज दिए, गायों को दूध ज्यादा आने लग गया, फासले ज्यादा होने लग गई, झरनों में पानी आ गया ,बारिश बढ़ गई, हो गई ये बहुत ही स्थूल अर्थ है, बड़ा-बड़ा बचकाना बड़ा विकृत है, ऐसे अर्थ नहीं करने है।

स्पष्ट हुआ सबको, अब देखिए आज की चर्चा लग रहा है की इतनी जल्दी जहां तक उसके व्याख्या वाले अंश संबंध है पुरी हो रही है। क्यों? क्योंकि गणित का जादू ही ऐसा है जो बात आप कर पन्ने, हिंदी और संस्कृत में लिखकर के बताते। वो गणित में एक समीकरण में बता दी जाती है।एक पन्ने, चार पन्ने जो आपने भाषा में लिखा होता है, वो गणित में अभिव्यक्त हो जाता है एक ही क्वेश्चन में। है तो हमने उसकी इक्वेशन बना दी उसे समीकरण ने साड़ी बात साफ कर दी ।मैं उम्मीद कर रहा हूं बाद साफ कर दी साफ हुई है?

चलिए अच्छा है जल्दी समझ में आ गया आज तो तो फिर हम बातचीत कर सकते हैं चलिए सवाल जवाब लेते हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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