अगर जीवन में हिम्मत की कमी लगती हो

Acharya Prashant

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अगर जीवन में हिम्मत की कमी लगती हो

प्रश्नकर्ता: नमस्कार गुरुजी, मुझे ये बोलना है कि मुझे काफ़ी हिम्मत की कमी महसूस होती है। उस कारण से कोई निर्णय भी स्पष्टता से नहीं ले पाता हूँ, न कुछ पूरी तरह हाँ होता है और न कुछ पूरी तरह ना होता है। मुझमें कोई स्पष्टता नहीं आ पाता। कृपया मार्गदर्शन करें।

आचार्य प्रशांत: ये सब अपने स्वरूप के प्रति अज्ञान के कारण ही होता है। जब तुम्हें पता ही नहीं कि तुम कौन हो, जीवन क्या है, जीना किसलिए है, तो तुममें क्या क्लैरिटी (स्पष्टता), क्या स्पष्टता आएगी! जो व्यक्ति कुछ समझता ही नहीं, वो तो किसी भी जगह पर स्पष्ट और सशक्त निर्णय ले ही नहीं पाएगा न। निर्णय लेता भी रहेगा तो डगमग-डगमग रहेगा।

तो ये न कहो निर्णय इत्यादि नहीं ले पाता, वो सब लक्षण हैं, बस। जो मूल व्याधि है वो दूसरी है। मूल व्याधि ये है कि पशु पैदा हुए थे और पूर्ण इंसान बनने की शिक्षा मिली नहीं; बहुत कम लोगों को मिलती है। आधा इंसान हमें बना कर छोड़ दिया गया है; या तो पूरा पशु ही रहने दिया जाता तो भी कोई दिक्कत नहीं थी। इंसान को जंगल में छोड़ दिया जाए — बच्चा पैदा हो उसे तुम जंगल में छोड़ दो, उसे किसी तरह की कोई मानसिक या आध्यत्मिक समस्या कभी उठेगी ही नहीं। वो मस्त रहेगा।

किसी पशु को देखा है कभी गहन विचार में, परेशान? कभी देखा है कि 'अरे! मेरा अपमान हो गया, मैं आत्महत्या कर लूँ।' कोई कुत्ता घूम रहा है मुँह लटकाए। 'क्या हुआ?' 'अरे नहीं! ये मेरे पिल्ले मेरी इज्ज़त नहीं करते।' ऐसा होता है क्या? होता है?

पशुओं को कोई समस्या नहीं है अस्तित्वगत तल पर। उनकी जो सारी समस्या है वो शरीर की है, बस। खाना नहीं मिला तो परेशान हो जाएगा इधर-उधर, या उसके क्षेत्र पर, टेरिटरी पर कोई दूसरा पशु आ गया तो कहेगा। "भाग यहाँ से!" लड़ाई हो जाएगी। पशुओं की समस्याएँ इतनी ही होती हैं। पशु मस्त जीता है, और जो मुक्त पुरुष है वो भी मस्त जीता है। उसे भी कोई समस्या नहीं होती। इसीलिए कहा गया है कि जो मुक्त पुरुष है वो एक मामले में पशु जैसा हो जाता है, तुम उसे परेशान नहीं पाओगे। वो पशुओं की तरह ही फिर निर्भीक स्वछंद घूमता है, उन्मुक्त बिलकुल, जैसे आज़ाद पंछी हो।

हम बीच के फँस गए बिचौलिए, हम आधे ही इंसान बने हैं। हमें शिक्षा ही नहीं मिली मुक्त पुरुष बनने की और पशु हमें रहने नहीं दिया गया। थोड़ी बहुत हममें शिक्षा डाल दी गई — घर पर कुछ सिखा दिया गया, स्कूल में कुछ सिखा दिया गया, समाज ने कुछ सिखा दिया। कुछ-कुछ बातें हमें सिखा दी गयी, पूरी बात हमें बताई नहीं गयी। तो उसका नतीजा वो स्थिति है जो इस वक़्त तुम्हारी है — परेशानी, संशय, डर, उहापोह।

अब दो काम कर सकते हो — या तो पूरे पशु बन जाओ, जंगल चले जाओ। तो जितनी तुम्हारी समस्याएँ हैं वो सारी दूर हो जाएँगी। पेड़ से लटकना, फल खाना, बंदरों के साथ दौड़ लगाना, मछलियों के साथ तैरना, कोई शेर आ जाए तो मर जाना। समस्या क्या है? या तो ये कर लो कि जंगल चले जाओ वापिस और वहाँ धीरे-धीरे सब भुला दो — सभ्यता, संस्कृति, भाषा, ज्ञान। जो कुछ तुमको पिछले बीस-तीस सालों में, पैंतीस सालों में इस दुनिया ने दिया है वो सब भुला दो, यहाँ का सारा ज्ञान। बिलकुल डीकंडीशंड (संस्कार रहित) हो जाओ जिस हद तक हो सकते हो। तो भी तुम्हारी समस्याएँ दूर हो जाएंगी।

और दूसरा रास्ता ये है कि मुक्त हो जाओ। मुक्त होने के लिए तुम्हें शिक्षित होना पड़ेगा। शिक्षा तुम्हें मिली नहीं है। शिक्षा के नाम पर हमको रोज़गार के साधन बता दिए जाते हैं। शिक्षा के नाम पर तुम्हें क्या दे दिया जाता है? "वकील बन जाओ, इंजीनियर बन जाओ, डॉक्टर बन जाओ" — ये सब क्या हैं? ये तो रोज़गार के धंधे हैं, शिक्षा कहाँ है इसमें! इनको तो अभी अनएजुकेटेड (अशिक्षित) में आना चाहिए।

(एक श्रोता की ओर इशारा करते हुए) कल ये बोल रहे थे आईआईटियन हैं, उसमें आईआईटियन हैं। आईआईटियन को तो सबको अनएजुकेटेड (अशिक्षित) मानना चाहिए, शिक्षा कहाँ मिली है! तुमको रोज़गार का एक साधन बता दिया गया है। उस मामले में आईआईटी (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान) और आईटीआई (औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान) एक ही आयाम पर है, बस आईटीआई पीछे है, आईआईटी बहुत आगे है, पर काम तो दोनों जगह एक ही हो रहा है न। वहाँ इलेक्ट्रिकल का डिप्लोमा मिलता है, वहाँ इलेक्ट्रिकल की डिग्री मिलती है; आईटीआई में जाओगे तो इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग का सर्टिफिकेट (प्रमाण पत्र) मिल जाएगा या डिप्लोमा मिल जाएगा, आईआईटी जाओगे तो डिग्री मिल जाएगी, पर दोनों है क्या? रोज़गार के साधन हैं। शिक्षा कहाँ मिली है अभी तक! इंसान कहाँ बने!

पशु को धन्धा सिखाया जा रहा है — ये हमारी शिक्षा व्यवस्था है। पशु को धन्धा करना सिखाया जा रहा है, अब वो धंधेबाज पशु बन जायेगा, पर इंसान तो अभी भी नहीं बना न। अब वो क्या बन गया है? धंधे में बड़ा निष्णात पशु, धंधे में बड़ा प्रवीण हो गया है। जानवर है जो कंप्यूटर इंजीनियर बन गया है, ज़बरदस्त कंप्यूटर इंजीनियर और उसने कंप्यूटर इंजीनियरिंग में पीएचडी कर ली है, पर है तो अभी भी जानवर ही न। जैसे किसी गोरिल्ले ने कंप्यूटर इंजीनियरिंग कर ली हो, पर है तो अभी गोरिल्ला ही, इंसान कहाँ बना!

इंसान बनने वाली शिक्षा हमें दी नहीं गई अभी तक। कोई इंजीनियरिंग, कोई डिप्लोमा, कोई हॉस्पिटल, कोई मेडिकल की शिक्षा, किसी तरह की कोई प्रोफेशनल एजुकेशन (पेशेवर शिक्षा) तुम्हें इंसान नहीं बनाती। इसका मतलब ये नहीं है कि ह्यूमैनिटीज (मानविकी) की शिक्षा तुम्हें इंसान बना देगी, वहाँ भी नहीं बनाया जाता।

तुमको इतिहास पढ़ा दिया गया या समाजशास्त्र पढा दिया गया या राजनीति शास्त्र पढ़ा दिया गया, इससे भी इंसान नहीं बन जाओगे। इससे तुम थोड़े ज्ञानी पशु बन जाओगे। तो गोरिल्ले को ज्ञान दे दिया गया है, अब ये गोरिल्ला अपने आपको इंटेलेक्चुअल (बुद्धिजीवी) गोरिल्ला बोलता है। इसने चश्मा लगा लिया है, मुँह में सिगार रखता है और गोष्ठियों में बोलता है अंग्रेज़ी में, और सब अखबारों में इसके लेख छपते हैं, पर है तो अभी भी गोरिल्ला ही न। है तो अभी भी गोरिल्ला ही, इंसान तो अभी भी नहीं बना।

इंसान बनने की शिक्षा नहीं मिली है। वो शिक्षा ले लो, तो मन में जो भ्रम-संशय चल रहे हैं, वो हटेंगे। वो शिक्षा नहीं लोगे तो गोरिल्ला बने बने भी बहुत कुछ कर सकते हो; गोरिल्ला बने बने तुम कुछ भी बन सकते हो — किसी विश्वविद्यालय के कुलपति बन सकते हो, देशों के राष्ट्रपति बन सकते हो, बड़े व्यवसाई बन सकते हो। कुछ भी बन सकते हो, बहुत कुछ बन सकते हो, लेकिन रहोगे गोरिल्ला ही।

वृत्तियाँ तुम्हारी सब गोरिल्ले की ही रहेंगी, इंसान नहीं बनोगे, नरपशु कहलाओगे। क्या हो? नर नहीं, नरपशु। बच्चा पशु पैदा होता है, मुक्त पुरुषों को नर मानना और ये जो पूरा समाज है, हम सब हैं, हमें मानो — नरपशु। हम ना पशु हैं, ना नर बन पाए, हम नरपशु हैं; ऊपर से नर अंदर से पशु।

इसको (बोद्धशिविर को) तुम एक विश्वविद्यालय भी मान सकते हो, बस ये है कि वो जो बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटीज़ (विश्वविद्यालय) हैं उनको समाज की स्वीकृति मिली हुई है। उनके पास सैंकड़ों और हज़ारो करोड़ के फण्ड (निधि) होते हैं, तो उनके पास बड़ी इमारते हैं, बड़ा नाम है, सैंकड़ों-हज़ारो प्रोफेसर्स (प्राध्यापक) हैं, कर्मचारियों की फौज है। ये जो विश्वविद्यालय है इसे समाज की स्वीकृति नहीं मिली हुई है। तो ये ऐसे ही जिस तरीके से काम कर सकता है कर रहा है। पर ये शिक्षा ही दी जा रही है तुमको, इंसान बनाया जा रहा है, और ये शिक्षा कोई उस पार जाने की शिक्षा नहीं है, परलोक की शिक्षा नहीं है, ये इसी लोक में तमीज़ से जीने की शिक्षा है।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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