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वो जो घर में ही पड़े रहते हैं || नीम लड्डू

Author Acharya Prashant

Acharya Prashant

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वो जो घर में ही पड़े रहते हैं || नीम लड्डू

लड़का पच्चीस साल का, तीस साल का है और कुल एक भाई एक बहन है। अकसर माँ-बाप कार्यरत रहे थे, दोनों ही कमाते थे तो बचत है घर में। मकान अपना है। लड़का अगर पच्चीस-तीस साल का है तो माँ-बाप कितने साल के हैं?

साठ-पैंसठ।

अभी-अभी रिटायर (सेवानिवृत) हुए हैं, तो रिटायरमेंट का भी पी.एफ़ का पैसा, ग्रेच्युटी का पैसा, ये सब भी घर में आ गया है। घर भी है, घर में पैसा भी है, और साहेबज़ादे हैं, उन्हें नौकरी की ज़रूरत क्या है? पाँच भाई-बहन हैं ही नहीं कि सब बँटेगा, अकेले ही हैं। उसे जीवन भर कुछ करने की ज़रूरत नहीं है।

वह घर में पड़ा रहता है तसल्ली में और माँ-बाप को यह बात अखरती भी नहीं है। वो कहते हैं, “हमने कमाया किसके लिए? तेरे लिए ही तो कमाया, तू घर में बैठ! घर में बैठ और बुढ़ापे का सहारा बन। अब हम साठ-पैंसठ के हैं। हमें अस्पताल कौन लेकर जाएगा? तू घर में बैठ।“

यह व्यवस्था चल रही है। बहुत ज़्यादा चलने लगी है। इससे बचना।

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