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ज़्यादा सोने की आदत है? || नीम लड्डू

Author Acharya Prashant

Acharya Prashant

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ज़्यादा सोने की आदत है? || नीम लड्डू

कुछ साल मिले हैं जगने के लिए, उसके बाद तो खूब सोना है। तो यह तुम कैसे आदत अभी पाले हुए हो कि, “ज़रा और सो लें एक घण्टा, दो घण्टा”?

भीतर एक चेतना होनी चाहिए, लगातार एक गूंज होनी चाहिए कि, “लंबे पाँव पसार कर के अनंत समय के लिए सो जाने की घड़ी कभी भी आ सकती है। उससे पहले थोड़ा जग लें भाई!” कि ऐसा है कि मान लो जीने के लिए तुम्हें अभी अधिक-से-अधिक तीस-चालीस साल और हैं और उसमें भी तुमने एक तिहाई समय, माने दस-पंद्रह वर्ष, सो कर गुज़ार दिए। जब भीतर ये नगाड़ा बजता रहता है न कि समय का डंका, घड़ी की चोट, तो अपने-आप खड़े हो जाओगे। सोने की आदत कहाँ गई, कहाँ गई हमें नहीं पता, थी? याद भी नहीं कब छूट गई, कैसे छूट गई।

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