दुनिया तुम्हें डराती क्यों है?

Acharya Prashant

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दुनिया तुम्हें डराती क्यों है?
मैं तुमसे कह रहा हूँ कि डरो मत, नक़ली हटेगा तो असली चमकेगा। तुमको ऐसा लगता है जैसे कोई तुम्हारी करोड़ों की जमापूँजी है और मैं उसको तुमसे छीने ले रहा हूँ। तुम्हारे पास कुछ नहीं है, जिन रिश्तों को तुम पकड़ कर बैठे हो बेटा, वो रिश्ते धूल बराबर हैं क्योंकि वह प्रेम पर आधारित नहीं हैं। ईमानदारी से अपने दिल को टटोलोगे तो जान जाओगे। तो वह गन्दगी अगर मैं तुमसे छीन भी रहा हूँ तो उसे छिनने दो, प्रतिरोध मत करो। गन्दगी हटेगी तो साफ़-साफ़ कुछ और चमकेगा, मस्त रहोगे, प्रसन्न रहोगे। यह सारांश प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के स्वयंसेवकों द्वारा बनाया गया है

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, हम डर का इस्तेमाल क्यों करते हैं?

आचार्य प्रशांत: डर के अलावा कुछ और बता दो जिसका उपयोग कर सकें।

प्रश्नकर्ता: हम कुछ इसलिए भी तो कर सकते हैं कि वो करना अच्छा है।

आचार्य प्रशांत: ऐसा होता है? तुम जो भी काम करते हो वो इसलिए करते हो कि वो अच्छे हैं या इसलिए करते हो कि उनमें लालच है? इमानदारी से बताओ।

प्रश्नकर्ता: ये तो ऑब्वियस (ज़ाहिर) है।

आचार्य प्रशांत: ऑब्वियस मत बोलो। यह तो तुम सिद्धांतों की बात कर रहे हो। हक़ीक़त की बताओ मुझे। तुम कौन-सा खाना खाते हो? नीम की पत्ती कौन-कौन पीता है? चाट कौन-कौन खाता है? अच्छा खाते हो या वह खाते हो जिससे ज़बान को लालच है? कितने लोग हैं जो नीम की पत्ती खाते हैं?

क्यों बेकार की बात कर रहे हो कि जो अच्छा है हम उसकी ओर जाएँगे, तुम कभी गये हो उसकी ओर जो अच्छा है? मैं भूल नहीं पाता, पिछले साल दो मूवी एक साथ रिलीज हुई थी — 'शिप ऑफ थिसियस' और 'दबंग'। मैं खड़ा हुआ था एक मल्टीप्लेक्स (सिनेमाघर) में, वो (दोनों फ़िल्में) अगल-बगल की स्क्रीन पर चल रही थीं, एक अच्छी थी और एक में लालच था। 'शिप आफ थिसियस' में पूरे हॉल में दो लोग थे और दबंग के आगे इतनी (बड़ी) लंबी लाइन लगी हुई थी।

तुम किसकी ओर जाते हो, अच्छे की ओर या लालच की ओर? दो-चार उदाहरण दे दो अपने जीवन से कि 'नहीं सर, हमने लालच को छोड़ा, हमारा मन इतना साफ़ है कि हमने लालच को त्यागा, हम डर पर चढ़ बैठे और हमने वही किया जो उचित था।' दे दो दो-चार उदाहरण।

और जो लोग वैसा उदाहरण देने लग जाएँ उन्हें फिर डर अनुभव होगा ही नहीं। जैसा मैंने कहा था कि उनके सामने फिर हम भूत का मुखौटा लेकर जाएँगे तो वो हसेंगे, वह कहेंगे 'डराओ नहीं, अब हम जो कर रहे हैं अपनी चेतना में कर रहे हैं। तुम डरा भी रहे हो तो हमें उसमें डर लग नहीं रहा।' और जब तक तुम्हें डर लग रहा है तब तक इससे प्रमाणित होता है कि अभी तुम्हें डराये जाने की ज़रूरत है। देखो, तुम्हारा तर्क ही कैसे फँस रहा है। तुम कहते हो हमें डराइए मत। मैं पूछ रहा हूँ, डर लग रहा है? तुम कहते हो, 'हाँ, तभी तो हम कह रहे हैं कि डराइए मत।'

मैं कह रहा हूँ, अगर अभी डर लग रहा है तो इससे यही सिद्ध होता है कि तुम डर पर ही चलते हो। अगर तुम डर से मुक्त हो गये होते तो तुम्हें डर लगता कैसे? फिर तो तुम हमारा मुखौटा देखकर हँसते। और याद रखना हम जितना भी तुम्हें डराते हैं न वह हमारा मुखौटा ही है, हम कोई भयानक हैं थोड़े ही इतने। अगर तुम डर से मुक्त हो गये होते तो तुम कहते कि 'ठीक, क्या फ़र्क पड़ता है, नंबर आये न आये हम खुद से ही पढ़ कर आएँगे। अटेंडेंस मिले न मिले, हम ख़ुद ही साढ़े बारह बजे अंदर घुस जाएँगे, डर की ज़रूरत नहीं। प्लेसमेंट मिले न मिले, हमें तो अच्छा लग रहा है पढ़ना, लालच की ज़रूरत नहीं।' पर तुम ऐसे हो कहाँ!

और चाहो तो एक-आध बार प्रयोग करके देख लेते हैं, घोषणा कर देते हैं कि इस हफ़्ते 'एच.आई.डी.पी.' की अटेंडेंस (उपस्थिति) काउंट (गिनती) नहीं होगी, या ऑप्शनल (वैकल्पिक) है आना; एक्स्ट्रा क्लास है, ऑप्शनल है, देखते हैं कितने आते हैं। अगर पच्चीस प्रतिशत से ज़्यादा आ जाएँ तो तुम जीते।

प्रश्नकर्ता: जो पढ़ना चाहेंगे वो आएँगे।

आचार्य प्रशांत: अरे! कौन है जो नहीं आएगा?

प्रश्नकर्ता: ये भी तो एक फियर है।

आचार्य प्रशांत: अरे यह फिअर (भय) नहीं है, यह तथ्य है, करके देखो। मैं कह रहा हूँ प्रयोग करो, मैं कल्पना नहीं कर रहा हूँ। मैं कह रहा हूँ प्रयोग करके देखो। यह प्रयोग है। सच है, तथ्य है। है न तथ्य कि नहीं आएँगे?

श्रोता: लेकिन सर जिनका इंटरेस्ट (रुचि) होगा वह ज़रूर आएँगे।

आचार्य प्रशांत: इंटरेस्ट क्या है, तुम्हारा किनमें इंटरेस्ट है?

श्रोता: सर, जो हमारा मन करता है।

आचार्य प्रशांत: अरे, तुम्हारा मन क्या करता है? तुम्हारा मन करता है लड़कियाँ, चाट, दुनिया भर की मक्कारियाँ, तुम्हारा मन और क्या करता है?

श्रोता: सर, कभी-कभी मन करता है पढ़ें।

आचार्य प्रशांत: क्या पढ़ें? तुमने 'लाउत्जो' को पढ़ा? मैथ्स तो वही है जो तुम्हें तुम्हारे पाठ्यक्रम ने तुमको दी है डरा-डराकर। पाठ्यक्रम से बाहर का तुमने क्या पढ़ा है, मुझे बताओ। इतनी तुम्हारी उम्र हो गई, तुमने ‘खलील जिब्रान’ को पढ़ा, तुमने डेसकार्ट को पढ़ा, तुमने हेराक्लिटस को पढ़ा? और अगर इनको नहीं पढ़ा तो क्यों नहीं पढ़ा, यह जवाब दे दो। सिर्फ़ इसलिए नहीं पढ़ा क्योंकि तुम्हें कभी डराया नहीं गया कि इनको पढ़ो। डराया गया होता तो तुमने इनको भी पढ़ा होता।

श्रोता: जब फियर होता है तो बात समझ में आती है।

आचार्य प्रशांत: नहीं, फिअर से समझते नहीं हो, फिअर से कुछ समझते नहीं। बात को समझो बेटा, फिअर से तुम समझते नहीं हो। फिअर से क्या पेशेंट (मरीज) ठीक हो जाता है? नहीं, फिअर से वो क्लीनिक (चिकित्सालय) तक आता है, फिर डॉक्टर इलाज़ करेगा। फिअर से वह ठीक नहीं हो गया। फिअर से थोड़ी ठीक होगा। फिअर तो बीमारी है ही, पहले से है। फिअर से वो क्लीनिक तक आता है।

अब तुम न आओ साढ़े बारह बजे, कोई अभी घुस रहा हो, कोई बाद में घुस रहा हो, तो सबके लिए यह सेशन (सत्र) बर्बाद होगा या नहीं होगा? और तुम्हारी आदतें कुछ ऐसी पड़ गई हैं, तुम्हारी ज़बान का स्वाद कुछ ऐसा पड़ गया है कि नीम की पत्ती तुम कभी खाओगे ही नहीं स्वेच्छा से।

तुम इंटरेस्ट की बात कर रहे हो, कब होगा तुम्हारा इंटरेस्ट नीम की पत्ती में, कभी होगा स्वेच्छा से? तुम्हारी ज़बान का स्वाद परवरिश ने और शिक्षा ने और माहौल ने बिलकुल ख़राब कर दिया है।

श्रोता: ये तो हमारी मर्ज़ी भी हो सकती है न।

आचार्य प्रशांत: बेटा, अहंकार पर मत लो। अगर वास्तव में प्रेम है माँ-बाप से तो अंधे नहीं बन जाओगे, ख़ुद भी जागोगे और उनको भी जगाओगे। दिल पर चोट मत खाओ। प्रेम का लक्षण यह नहीं है, यह सिर्फ़ अहंकार का लक्षण है। जिसे तुम कहते हो न मेरी मर्ज़ी, मेरी इच्छा, मेरा इंटरेस्ट , सबसे पहले तो यह समझो कि तुम्हारी एक-एक इच्छा कंडीशंड डिजायर (संस्कारित चाह) है। डिजायर (चाह) का अर्थ ही है वह जो कंडीशनिंग (संस्कार) से उठी है।

जब तुम कहते हो मेरा इंटरेस्ट , तुममें से कितनों का 'आइस हॉकी' में इंटरेस्ट है? तुममें से कितनों का 'धूमिल' की कविताओं में इंटरेस्ट है? तुम्हारा किनमें इंटरेस्ट है तुम अच्छे से जानते हो, तुम्हारे फेसबुक अकाउंट गवाह हैं कि तुम्हारा इंटरेस्ट कहाँ है। प्रमाण है, सामने रखा हुआ है प्रमाण।

तुम्हारे सारे इंटरेस्ट तो उन प्रभावों से आते हैं जो बचपन से लेकर आज तक तुम्हारे ऊपर डाले गये, टीवी, मीडिया, घर, परिवार, शिक्षा, धर्म द्वारा। वही सब मन में चढ़े हुए हैं, उन्हीं से तुम्हारा इंटरेस्ट निर्धारित होता है। तो तुम कहो कि सर हमारा इंटरेस्ट होगा तो करेंगे, उस इंटरेस्ट की कोई क़ीमत है?

लड़कियों का इंटरेस्ट लड़कों में, लड़कों का इंटरेस्ट लड़कियों में है, हिंदुस्तानियों का इंटरेस्ट क्रिकेट में है। ब्राजीलियन का इंटरेस्ट फुटबॉल में है। इंटरेस्ट की क्या क़ीमत है, कोई है क़ीमत? हिंदू का इंटरेस्ट गीता में है, मुसलमान का इंटरेस्ट कुरान में है। इसमें क्या ख़ास है! इससे तो इतना ही पता चलता है कि तुम्हारी पूरी की पूरी मनोदशा प्रभावित है बस।

मुश्किल है मुसलमान का दिख जाना जो मंदिर के घंटे की आवाज़ सुनकर कहे 'बहुत इंटरेस्टिंग लगा, मैं झुक गया, मैंने प्रणाम कर लिया।' मुश्किल है, लाखों में एक। और मुश्किल है ऐसे हिंदू का मिल जाना जो कहे कि सुबह जब नमाज़ के लिए आवाज़ आती है तो इतनी सुंदर लगती है कि मैं गाने लग जाता हूँ। मुश्किल है, लाखों में एक।

इस बात को समझो, इंटरेस्ट्स को वजन देना बंद करो। इंटरेस्ट्स तो बस समाज की गुलामी है। तुम्हें समाज ने बता दिया है कि किधर इंटरेस्ट होना चाहिए तुम्हारा। हिंदू घर में पैदा होते ही तुम्हें बता दिया जाता है कि रामायण में इंटरेस्ट होना चाहिए, मुसलमान घर में पैदा होते हो तो बता दिया जाता है कि क़ुरान में इंटरेस्ट होना चाहिए। तो इंटरेस्ट में क्या रखा है? शरीर के हार्मोंन हैं, वो तुम्हें बता देते हैं एक उम्र के बाद कि अब लड़कियों में इंटरेस्ट आना चाहिए तुम्हारा, एक उम्र से पहले नहीं होता इंटरेस्ट। तो इंटरेस्ट में क्या रखा है?

तुम बोलो कि आई एम इंटरेस्टेड इन हर (मैं उस लड़की में रुचि रखता हूँ)। यू आर नॉट इंटरेस्टेड, द ब्लडी केमिकल्स आर इंटरेस्टेड एंड रिमूव दोज़ केमिकल्स एंड योर इंटरेस्ट विल गो अवे। एंड वन एक्स्ट्रा डोज़ ऑफ केमिकल्स एंड यू विल बी सुपर इंटरेस्टेड (‘तुम’ लड़कियों में रुचि नहीं रखते, यह सब रसायनों का खेल है। यदि उन रसायनों को निकाल दिया जाए तो रुचि भी नहीं रहेगी और उन्हीं रसायनों का अतिरिक्त खुराक दे दिया जाए तो तुम्हारी रुचि भी विशेष रूप से बढ़ जाएगी)।

प्रश्नकर्ता: तो इसका साॅल्यूशन (समाधान) क्या है सर?

आचार्य प्रशांत: सबसे पहले तो अपने इंटरेस्ट को भाव देना बंद करो।

प्रश्नकर्ता: सर, हमेशा हमने सीखा ही सबको देखकर है, बड़ों को देखकर कि किसमें इंटरेस्ट रखना चाहिए।

आचार्य: छोटे के पास और कोई विकल्प भी नहीं होता। वह ठीक भी है। देखो एक उम्र तक अगर बड़ों से नहीं सीखोगे तो बड़ा ख़तरा है। छोटा बच्चा, उसे कुछ पता थोड़ी है कि अब यह बिजली का बोर्ड है। वह जाकर इसमें उँगली डाल सकता है। तो उसके लिए बहुत ज़रूरी है कि बड़े जैसा बताएँ चुपचाप वैसा करे। बहुत ज़रूरी है, एक उम्र तक। पर तुम्हारी वो उम्र तो कब की ही बीत गई, तुम क्यों अभी तक ऐसे ही चलते हो?

छः की उम्र, आठ की उम्र, चलो दस-बारह की उम्र तक भी ज़रूरी है कि जो दूसरे बताएँ वह भले समझ में न आये पर फिर भी आज्ञा पालन करो। अगर तुम्हें बताया जाए कि सड़क पर इस तरफ़ चलो, तो चलो चुपचाप, नहीं तो मर जाओगे। अगर तुम्हें बताया गया है कि उस कमरे में मत जाना, वहाँ कुछ गड़बड़ है, तो मत जाओ। तुम अभी समझ नहीं पाओगे कि क्या गड़बड़ है।

तो ठीक है, ज़रूरी है कि एक उम्र तक बच्चे को कुछ निर्देश दिए जाएँ। कोशिश तब भी यही की जानी चाहिए कि समझे वह, पर पूरी तरह नहीं समझ पाएगा। आप बच्चे को नहीं समझा पाओगे कि इलेक्ट्रिसिटी (विद्युत धारा) के फंडामेंटल्स (आधारभूत सिद्धांत) क्या हैं। आपको उसे कुछ कहानी-सी देनी पड़ेगी, 'यह देखो, उस साॅकेट में न, वहाँ पर अंदर एक चूहा रहता है और उँगली डालोगे तो चूहा काट लेगा।' बात झूठ है, हो सकता है कि बच्चा कहे कि 'नहीं, हम चूहे को काट लेंगे।' तो आपको बच्चे को कहना पड़ेगा कि चुपचाप मान ले। ठीक है, तब तक ठीक है।

पर अब तुममें से कौन है ऐसा जो सोचता है कि चूहा है अंदर? कोई है अभी भी, अब तो नहीं है न। जब अब नहीं है, तो आँखें खोलो। बात बड़ी सीधी है, आँखें खोलो और दुनिया को अपनी दृष्टि से देखो। दुनिया को अपनी दृष्टि से देख सको, इसके लिए ज़रूरी है कि पहले अपने इंटरेस्ट से मुक्त हो जाओ। जब तक तुम्हारे मन में यह भाव बैठा है कि मुझे तो अपनी मर्ज़ी के काम करने हैं तब तक तुम फँसे रहोगे क्योंकि तुम्हारी मर्ज़ी तुम्हारी मर्ज़ी है ही नहीं।

और तुम भूल कर रहे हो कि बार-बार अपनी मर्ज़ी की दुहाई देते हो; तुम्हारी मर्ज़ी तुम्हारी मर्ज़ी नहीं है, समझो। जब यह सब इंटरेस्ट्स और नक़ली मर्जियाँ इनको पीछे छोड़ोगे न तब वास्तव में जानोगे कि ख़ुद का होना क्या है, मुक्ति, फ्रीडम क्या है और ताक़त क्या है। और फिर बहुत आनंद आएगा। बहुत मज़ा आएगा।

और एक बात और है, मुझे तुम्हारे रिश्ते तोड़ने में कोई रुचि नहीं है। न मैं तुम्हारे प्रेमी-प्रेमिका वाले रिश्ते तोड़ना चाहता हूँ, न मुझे यह रुचि है कि मैं माँ और बेटे के बीच में दरार डाल दूँ। सच तो यह है कि अगर जो मैं कह रहा हूँ उसको समझोगे तो तुम्हारे सम्बन्ध डर पर आधारित नहीं रहेंगे, वास्तविक प्रेम पर आधारित रहेंगे। कुछ ग़लत मत समझो।

अभी जो तुम्हारे सम्बन्ध हैं, क्यों अपने आपसे धोखा करते हो, क्या यह सच नहीं है कि तुम्हारे सम्बन्धों में डर और लालच कूट-कूट कर भरा हुआ है? और क्या उसमें तुम्हें अच्छा लगता है, अच्छा लगता है? क्या तुम मुखौटा पहनकर नहीं रहते घर में? ईमानदारी से बताओ। क्या सत्तर बातें ऐसी नहीं है जो तुम्हारे दोस्तों को पता है पर तुम अपने माँ-बाप को नहीं बता सकते? हाँ या ना में जवाब दे लेना अपनेआप को।

पचासों बातें ऐसी हैं जो तुम अपने यार के साथ तो खोल दोगे अपना दिल, पर तुम्हारी हिम्मत नहीं है कि माँ-बाप के सामने खोल सको, डरे हुए हो। इसी से पता चलता है कि घर में तो मुखौटा चल ही रहा है और यह कोई अच्छी बात तो नहीं है। यह तो घुटन की बात है न, घुटन की। मैं कह रहा हूँ तुम्हारे और तुम्हारे माँ-बाप के सम्बंध ऐसे हों जिसमें पूरी सफ़ाई और पूरी ताज़गी हो, बोलो मज़ा आएगा कि नहीं आएगा? माँ से कुछ छुपाना नहीं है और माँ को अगर चाय बनाकर दे रहा हूँ तो इस नाते नहीं दे रहा हूँ कि डर है या फ़र्ज़ है, इस नाते दे रहा हूँ कि प्यार है। बोलो, अच्छा रहेगा कि नहीं रहेगा?

पर असली दिखाई दे इसके लिए नक़ली को हटना पड़ेगा न। और तुम्हें नक़ली से बड़ा मोह है, तुम नक़ली को पकड़ कर बैठे हो, तुम्हें डर है कि नक़ली हट गया तो कुछ नहीं बचेगा। मैं तुमसे कह रहा हूँ कि डरो मत, नक़ली हटेगा तो असली चमकेगा। तुमको ऐसा लगता है जैसे कोई तुम्हारी करोड़ों की जमापूँजी है और मैं उसको तुमसे छीने ले रहा हूँ। तुम्हारे पास कुछ नहीं है, जिन रिश्तों को तुम पकड़ कर बैठे हो बेटा, वो रिश्ते धूल बराबर हैं क्योंकि वह प्रेम पर आधारित नहीं हैं। ईमानदारी से अपने दिल को टटोलोगे तो जान जाओगे।

तो वह गन्दगी अगर मैं तुमसे छीन भी रहा हूँ तो उसे छिनने दो, रेजिस्ट (प्रतिरोध) मत करो। गन्दगी हटेगी तो साफ़-साफ़ कुछ और चमकेगा, मस्त रहोगे, प्रसन्न रहोगे। पर तुम्हें तो धूल से ही मोह हो गया है। मुझसे ज़्यादा ख़ुशी किसी को नहीं होगी अगर स्वस्थ सम्बन्ध दिखाई दें। पर स्वस्थ सम्बन्ध हैं कहाँ, कहाँ है स्वस्थ सम्बन्ध?

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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