सपने नहीं, जागृति का उत्सव || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

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सपने नहीं, जागृति का उत्सव || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

वक्ता: सपने क्यों? आंख खोलो और जियो! सपने तो इस बात की निशानी हैं कि आंख बंद है।

क्यों, किसलिए? पर मैं समझ रहा हूँ कि तुम कहाँ से आ रहे हो। तुम आ रहे हो वहाँ से जहाँ पर बड़े-बड़े लोगों ने कई बार तुमको ये कहा है कि जीवन में आगे वही बढ़ता है, जो सपने लेता है। तुमने ऐसी बातें सुनी हैं कि ऊँचा उड़ने के लिए, सपने बड़े देखो। तुमने बहुत लोगों की आत्मकथा में पढ़ लिया है कि उसने अपने सपनों को हकीकत में बदला और इसी कारण वो महान था। और ये सब मूर्खतापूर्ण बातें पढ़-पढ़ करके तुमको ये लगता है कि जीवन का अर्थ ही यही है कि सपने लो और उनके पीछे भागो।

तुम ये नहीं समझ रहे हो कि सपने लेने वाला कौन है? इसलिए कह रहा हूँ कि मत कहो कि सपने अच्छे हैं या बुरे हैं। सपने चीज़ क्या हैं ये समझ लो। ये सपनों का पूरा मामला क्या है? ये समझ लो कि ये सपने आते कहाँ से हैं और कोई इन्हें कब लेता है। कितने लोग यहाँ बैठ करके सपने ले रहे हो अभी?

(कोई भी श्रोतागण हाथ नहीं उठाता)

हाथ नहीं उठा रहे हो, एक दूसरे को देख रहे हो। कुछ न कुछ सपने देखने वाले, यहाँ बैठे ज़रूर होंगे। जीवन में हर पल उतना ही कीमती है होता है जितना ये है। अगर अभी सपने नहीं ले रहे हो तो कभी भी सपने क्यों लेते हो? तुम कहोगे कि सर अभी तो सपने नहीं ले रहा पर बाहर जाकर सपने ले सकता हूँ। नहीं! जैसे ये पल कीमती है वैसे ही वो पल भी कीमती होगा जब बाहर जाओगे। क्या अभी तुम जान रहे हो कि सपने नहीं लेने हैं। अभी सपने क्यों नहीं लेने?

श्रोता १: क्योंकि अभी वर्तमान में हैं।

वक्ता: अभी सपने लिए तो क्या हो जाएगा?

श्रोता २: वर्तमान में नहीं जी पाएंगे।

वक्ता: इसका अर्थ क्या है?

जो हो रहा है ख़त्म हो जाएगा, कुछ मिलेगा नहीं। अगर अभी सपने लेने में गड़बड़ है, तो कभी भी सपना लेना ठीक कैसे हो सकता है? अभी अगर सपने लोगे तो अभी जो हो रहा है उसको खो दोगे। कहीं भी और सपने लोगे, तो तब जो हो रहा है होगा उसको खोओगे। चूकोगे! चूकना तो पक्का है। सपने लिए नहीं कि चूके।

जब भी सपने लोगे, भूल जाओगे कि वर्तमान क्या है, और *यही असली बात है इसलिए हम सपने लेते हैं*, ताकि हम भूल सकें कि वर्तमान क्या है। हम इतने दुःख में जीते हैं, इतनी घुटन की जिंदगी जीते हैं कि हमारे लिए ज़रूरी हो जाता है सपने लेना, कि किसी तरह मुक्ति तो मिले। मैं समझ सकता हूँ कि दुःख बहुत है, गहरा विषाद रहता है इसलिए सपने लेते हो। काश कि सपने लेने से वो दुःख दूर हो सकता। क्या सपने लेने से दुःख दूर हो जाता है?

सभी श्रोतागण: नहीं, सर।

वक्ता: हाँ! पर जैसे ड्रग्स लेने से कुछ समय के लिए लगता है कि पहुँच गये नयी कल्पनाओं की दुनिया में और घूम-फिर कर। पर घूम-फिर कर वापस कहाँ आओगे?

सभी श्रोतागण: यहीं पर।

वक्ता: और वापस कहाँ आओगे? और वापस आओगे और फिर वही सड़ा-गला वर्तमान पाओगे, और दुःख पहले से चौगुना हो जाएगा क्योंकि अब सपने और ले आये।

कहीं बेहतर न होता कि वर्तमान को ठीक-ठीक समझते और फिर जो उचित कदम था उसको उठाते। क्या ये बेहतर नहीं होता? अगर वर्तमान में कुछ ऐसा है जो बदलने की ज़रूरत है तो उसको बदलो। सपने क्यों ले रहे हो? अगर वर्तमान में कुछ ऐसा है जो मांग रहा है कि ठीक अभी कर्म करो, तो करो। सपने क्यों ले रहे हो? तुम्हें कर्म करने से कौन रोक रहा है? सपने तुम्हारे लिए काम करने नहीं आएंगे। जो कुछ तुम्हें मिलता नहीं, तुम उसके सपने लेने शुरू कर देते हो और खेल ये है कि सपने लेने से भी नहीं मिल जाता। हाँ, सपने लेने से समय नष्ट और कर दिया जिसमें कि वो शायद उपलब्ध था ही। समझ रहे हो न?

कितना आनंद आता है कि आंख बंद की और उड़ गए। पता नहीं कहाँ-कहाँ हो आए और क्या-क्या कर आए। जीयो सपनों में। कब तक जीयोगे? या तो ये कह दो कि हमें वापस ही नहीं आना है, हम जा रहे हैं किसी स्वप्नलोक में ही रहेंगे। ऐसा तो हो नहीं पायेगा, यथार्थ तो यहीं है। लौटोगे, और और दुखी होगे।

जो है उसके पास आओ, उससे दूरी मत बनाओ, उससे भागो नहीं, उसको समझो, उसको जानो। और उसको समझोगे, उसको जानोगे तो उसी से उसमें परिवर्तन आ जाएगा। अगर आना चाहिए, अपने आप आ जाएगा। तुम्हें कोशिश भी नहीं करनी पड़ेगी, अपने आप आ जाएगा। समझ रहे रहो?

जीयो! आंख खोलो और जागो; वो ज़रूरी है।

– ‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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