आचार्य प्रशांत: बी पॉज़िटिव ताकि तुम इस दुनिया से और ज़्यादा लूट सको। बी पॉज़िटिव माने उम्मीदें बुलंद रखो। उम्मीद है किस बात की? तुम्हें सच्चाई की उम्मीद है, तुम्हें मुक्ति की उम्मीद है, तुम्हें सच्चे प्यार की उम्मीद है? या कोई तुम्हें तुम्हारे झूठे सपनों से झंझोड़ कर जगा देगा ये है तुम्हारी उम्मीदें?
पॉज़िटिविटी का मतलब यही होता है न कि दिल मत छोटा करो, हार मत मानो, निराश मत हो जाओ। (व्यंग्य करते हुए) तुम्हारे साथ अभी वह घटना घटेगी जिसका तुम्हें इंतज़ार है, बालक तेरी मनोकामनाएँ पूरी होंगी। यही है ना बी पॉज़िटिव का मतलब?
इसमें यह बात तो पूछी ही नहीं जाती कि, "तुम्हारी मनोकामना है कौन-सी बालक?" यह बात तो बहुत गुप्त दबा कर रखी जाती है। क्योंकि बालक की मनोकामना अगर शब्दों में प्रकट हो गई तो बड़ी गड़बड़ हो जाएगी। बालक की मनोकामना तो यह है कि पूरी दुनिया को वो भोग डाले। जो हो नहीं सकता। इसीलिए बार-बार बालक को फ़िर नीचे से गैस मारनी पड़ती है बी पॉज़िटिव।
अगर पूरी दुनिया को इतना ज़्यादा इस पॉज़िटिव विटामिन की ज़रूरत पड़ती है, इतना पंप लगाना पड़ता है तो इसका मतलब तो यही है न कि तुम जो चाह रहे हो वह हो रहा नहीं होता है। तभी बार-बार उत्साहवर्धन करना पड़ता है। तुमसे कहा जाता है कि, "नहीं-नहीं हार मत मानिए मैदान मत छोड़िए।" वजह तो समझो न। तुम जो चाह रहे हो वह चीज़ ही ऐसी है कि जो पूरी हो ही नहीं सकती। और अगर पूरी हो रही हो तो भगवान ना करे कि वह पूरी हो। तुम जो माँग रहे हो अगर वह हो गया तो तुम्हारा ही नहीं पूरी दुनिया का अनिष्ट है।
वास्तव में इस समय दुनिया को जो सबसे ज़्यादा ज़रूरत है वह है बी नेगेटिव। "बेटा जो तुम चाह रहे हो वह चाहने लायक नहीं है। मत चाहो।" सिर्फ अपनी इच्छाओं के प्रति ही नकारात्मक ना रहो, बल्कि अपने प्रति भी नकारात्मक रहो। तुम्हारी कामनाएँ भी मूर्खतापूर्ण हैं क्योंकि सबसे पहले तुम ही मूर्ख हो। चूँकि तुम्हें अपना ही कुछ पता नहीं इसलिए तुम सब अंट-संट चीज़ें चाहते रहते हो।
तुम्हें नकारना पड़ेगा अपनी इच्छाओं को और अपने आपको भी, इसी को कहते हैं निगेशन। इसीलिए बी नेगेटिव। पर तुम पाते ही नहीं हो कि कोई किसी को बोल रहा हो कि बी नेगेटिव। बल्कि तुम्हें जब किसी को बुरा ठहराना होता है, किसी की बुराई करनी होती है तो तुम कहते हो, "बड़ा नेगेटिव इंसान है!" इस दुनिया को और ज़्यादा नेगेटिव इंसान चाहिए। इस अर्थ में नहीं कि वो निंदा करते रहें, मज़ाक बनाते रहें वगैरह-वगैरह। उस अर्थ में नहीं। इस अर्थ में कि वो तुम्हें तुम्हारी हस्ती का झूठ दिखाते रहें। वो नकारते रहें उन सभी चीज़ों को जिनको तुम स्वीकारते रहते हो। उस अर्थ में नेगेटिव कह रहा हूँ मैं।
यह जो पॉज़िटिविटी का कल्चर है, इसी ने पिछले पचास-सौ साल में पूरी दुनिया की दुर्गति कर दी है। पॉज़िटिविटी का मतलब समझते हो क्या है? जो तुम्हें चाहिए वही इसको चाहिए, वही उसको चाहिए। और तुम सबसे क्या कह रहे हो? " बी पॉज़िटिव , तुम सबको मिलेगा।" चाह तुम क्या रहे हो? तुम भी यही चाह रहे हो कि भोगूँ, वह क्या चाह रहा है मैं भी भोगूँ। और तुमने सबको पंप मार रखा है कि बी पॉज़िटिव। नतीजा क्या होगा? तुम भी ज़्यादा-से-ज़्यादा कंज़्यूम (भोगना) करोगे और वो भी करेगा। और वह बेचारा पाँचवाँ छठवाँ सातवाँ आठवाँ है कतार में, वह अगर नहीं कर पा रहा तो फ़िर वह भोगने के नए-नए तरीक़े निकालेगा। यही कर-कर के तो तुमने पृथ्वी को कहीं का नहीं छोड़ा न।
कहाँ गए सारे जंगल? वो बी पॉज़िटिव की भेंट चढ़ गए। कहाँ गई वो लाखों प्रजातियाँ पौधों की, पक्षियों की, पशुओं की, कीट-पतंगों की जो विलुप्त हो गई और रोज़ विलुप्त हो रही हैं दर्जनों में, सैकड़ों में? कहाँ गई वो? वो हमारी पॉज़िटिविटी की आग में स्वाहा हो गई। कभी समझो तो कि पॉज़िटिविटी का और कंज़म्प्शन (भोग) का कितना गहरा अनन्य संबंध है। ये एक ही शब्द हैं सकारात्मकता और भोगवादिता। ये बिलकुल एक हैं।
ग़ौर से देखना जिसको भी तुम कहोगे बड़ा पॉज़िटिव आदमी है, वह किस बारे में पॉज़िटिव है। कभी यह तो पूछ लिया करो। किस चीज़ को लेकर उसने मंसूबे बाँध रखे हैं? क्या पाने की उम्मीद में वह पॉज़िटिव ही बने हुआ है? कहते तो हो तुम कि, "यह कभी अपना हौसला नहीं छोड़ता है, इसके इरादे कभी नहीं टूटते।" पर इरादे हैं क्या? बड़े कुत्सित इरादे हैं। ग़ौर से उन इरादों की तो जाँच-पड़ताल करो। पर माहौल कुछ ऐसा बन गया है कि, "नहीं साहब! मूल मंत्र है — जो तुम चाहते हो उसको पाने के लिए जी जान से डूब जाओ और पाए बिना छोड़ मत देना।" क्या है?
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