परम लक्ष्य सबसे पहले || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)

Acharya Prashant

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परम लक्ष्य सबसे पहले || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)

वक्ता: जहाँ कहीं भी तुम परम लक्ष्य बनाओगे, उससे चाहते तो तुम एक प्रकार की ख़ुशी ही हो। यही तो चाहते हो और क्या चाहते हो? परम लक्ष्य नही होता है। परम ये होता है कि उसी ख़ुशी में रह कर तुम ने अपने बाकी सारे काम करे। छोटे- बड़े, लम्बे-चौड़े जो भी है। बात स्पष्ट नहीं हो पा रही है कि कि क्या बोल रहा हूँ? आखिर में क्या चाहिए? ख़ुशी। मैँ कह रहा हूँ तसल्ली, ख़ुशी, आनंद, जो भी बोल लो। मैं कह रहा हूँ कि उसमें रहते हुए ही बाकी सारे काम करो। परम को पहले पाओ और शॉर्ट टर्म को बाद में पाओ। सुनने में अजीब लगेगा। ज़िन्दगी में आम तौर पर ये होता है कि जो पास का होता है वो पहले मिलता है, जो दूर का होता है वो बाद में मिलता है। मैं तुमसे कह रहा हूँ कि जो दूर का है उसे पहले पा लो। फिर जो पास वाले हैं इनको पाते रहना। नहीं आ रही समझ में बात? क्योंकि जो दूर का है वो अभी है। अभी है। हमने कहा परम तो तुम्हरी ख़ुशी ही है। इसने कहा तसल्ली ही है। जो भी करो, तसल्ली में करो। जो भी करो, ख़ुशी में करो। तो परम तो मिल गया। अब छोटे-मोटे लक्ष्य पाते रहेंगे।

श्रोता १: सर, लेकिन जो इंसान संतुष्ट हो जाता है, जिसकी तसल्ली हो जाती है, उसकी चाहत या इच्छा ख़त्म हो जाती है।

वक्ता: उसकी इच्छा ख़त्म नही होती। उसकी बदहवासी ख़त्म हो जाती है। जिसको ख़ुशी मिली हुई है, जो तसल्ली में है, ऐसा तो नहीं वो कुछ भी करेगा नहीं। पर वो जो कुछ भी करेगा, वो तसल्ली में करेगा। जिसको ख़ुशी नहीं मिली हुई है, वो जो भी कुछ करेगा वो कैसी स्थिति में करेगा?

सभी श्रोता: बदहवासी में।

वक्ता: अगर मैं खुश नहीं हूँ तो मैं जो कुछ भी कर रहा हूँ, वो अपनी कैसी हालत में कर रहा हूँ? दुख में करूँगा न। ख़ुशी नहीं है, तो दुखी ही है। और दुख में तुम जो भी कुछ करोगे, वो अच्छा तो हो नहीं सकता। समझ में आ रही है बात? मैं तुम से कह रहा हूँ कि ऐसा नहीं होता कि पहले शॉर्ट टर्म गोल, फिर लॉन्ग टर्म गोल और फिर ऐब्सलूट गोल। मैं तुमसे कह रहा कि ऐब्सलूट, परम, वो सबसे पहले आता है। फिर उसके बाद तुम करते रहना कि शॉर्ट टर्म, लॉन्ग टर्म, तुम्हें जो करना है वो करते रहना। उस परम को पहले पाओ क्योंकि वो परम लगने में दूर का है। वास्तव में है वो बहुत पास है। तुम थोड़ा सा ज़िन्दगी को समझ जाओ तो तुम्हें वो परम बात समझ आ जानी है। और जो आदमी तसल्ली में काम करता है, उसके सारे काम बढ़िया होते हैं। जो आदमी बदहवासी में काम करता है वो कुछ भी करेगा, उल्टा-पुल्टा करेगा भले ही कितना बढ़िया काम कर रहा हो। भले ही दुनिया को ये लग रहा हो कि पता नहीं इसने क्या कर दिया। पर वो वास्तव में उल्टे-पुल्टे काम कर रहा होगा।

श्रोता २: सर, जैसा आपने कहा था कि …

वक्ता: पहले ये बताओ कि समझ में आ गयी ये बात? आगे मत भागो।

श्रोता २: सर, नहीं आई समझ में।

वक्ता: मैंने बहुत साधारण बात कही थी। इतनी साधारण कही है कि उसमेँ तुम्हें कुछ झोल दिख रहा होगा। मैं तुमसे कह रहा हूँ क़ि आखिर में क्या चाहिए?

सभी श्रोता: संतुष्टि।

वक्ता: संतुष्टि, खुशी, जो भी कहना चाहते हो। मैं कह रहा हूँ कि उसको आखिर में मत पाओ। उसको पहले पाओ। सबसे पहले उसको पालो। उसके बाद बाकी सारे काम कर लेना। कुछ कर कर के तुम्हें संतुष्टि नहीं मिलेगी। संतुष्टि पाई नहीं जाती। संतुष्ट आदमी सब कुछ पा जाता है। पहले संतुष्ट, हो जाओ उसके बाद दौड़ लगाओ। दौड़ लगाने से संतुष्टि नहीं मिलेगी। हाँ जब जो संतुष्ट हो कर दौड़ लगाता है, तब वो जीत जाता है। तुम्हें शायद ये लगता होगा क़ि जो लोग सबसे भूखे होते हैं, वो जीतते हैं। जो लोग सबसे ज़्यादा आतुर होते हैं जीतने के, वो जीतते हैं। मैं विपरीत बात कह रहा हूँ। मैं कह रहा हूँ कि जो जितना अपने-आप में भरा है पूरा है, जिसको ये नहीं लग रहा है कि कुछ कमी है जीवन में, वही जो कुछ करता है बढ़िया करता है।

श्रोता २: सर तो प्रतिस्पर्धी होना भी तो जरूरी है।

वक्ता: तुमसे किसने कह दिया कि प्रतिस्पर्धी होना बड़ी जरूरी बात है। प्रतिस्पर्धी मन होना ही नहीं चाहिए।

श्रोता २: सर, आपके कहने का अर्थ ये है कि पहले मन की शांति होनी चाहिए। लेकिन मन की शांति अगर हम इस उम्र में करेंगे तो आगे की तीस-चालीस साल क़ी पूरी ज़िन्दगी जो बाकी है उसका क्या होगा?

वक्ता: ये सब तुम्हें किसने बताया कि एक उम्र होती है शांति पाने की।

श्रोता २: बड़े, बुज़ुर्ग बताते हैं।

वक्ता: उनको मिली है?

श्रोता २: जी मिली है तभी तो बताते हैं।

वक्ता: उनको मिली होती तो ये बताते कि एक उम्र होती है। जिसको मिलेगी वही तो उसकी कीमत जानेगा। वो कहेगा, ‘अभी पाओ’। ये सब बातें जो तुम्हें बता रहे हैं वो नासमझ लोग हैं जिन्हें खुद कभी शांति नहीं मिली। वो अशांति से भरे हुए हैं इसलिए वो अशांति फैला रहे हैं। प्रमाण ये रहा। जो अशांति से भरा होता है वही तो अशांति फैलाता है। उनमें खुद इतनी अशांति हैं इसलिए वो सबको अशांत देखना चाहते हैं।

श्रोता २: सर, एक उत्सुकता ख़त्म हो जाती है।

वक्ता: तुम्हारी खत्म हुई है उत्सुकता? तो तुम्हें कैसे पता कि जब उत्सुकता ख़त्म हो जाएगी तो क्या होगा ?

श्रोता ३: सर, ये तो फिर एक तरीके का ख़तरा हो गया।

वक्ता: ख़तरा, रिस्क हो ही गया। पर जो अभी कर रहे हो वो देखो वो कितना बड़ा ख़तरा है। मैं उससे छोटे ख़तरे की बात कर रहा हूँ । तुम तो ये कह रहे हो कि मुझे अशांत ही रह जाना जीवन के अंत तक, ये कितना बड़ा ख़तरा है ये तो देखो। मैं तो उससे छोटे ख़तरे की बात कर रहा हूँ। हमें बीमार रहने की इतनी आदत लगने लग जाती है कि स्वास्थय हमें ख़तरनाक लगने लग जाता है। जैसे किसी आदमी को बैशाखी पर चलने की आदत पड़ गयी है। पाँव उसका ठीक है पर आदत लग गयी हैं क़ि बैशाखी पर ही चलना है। अब उसे हटा दो तो क्या बोल रहा है कि ख़तरा है। तो ऐसे ही तुम्हारी हालत है। पहले शांत हो जाओ फिर जो करना है सो करना है। परम को पहले पाओ, छोटे-मोटे आने दो। परम आखिर लक्ष्य नहीं है, वो पहला है अभी है। ये जिन भी लोगों ने तुम्हारे मन में बातें डाली हों कि पहले छोटे-मोटे लक्ष्य पाने चाहिए और फिर परम लक्ष्य को पाया जायेगा, ये नासमझ लोग हैं, जीवन को नही देखा उन्होंने। परम लक्ष्य छोटे- मोटे लक्ष्यों को पा कर के नहीं मिलता। वो इतना बड़ा है कि छोटे-मोटे की कोई तुलना ही नहीं है। वहाँ कोई सीढ़ी नहीं ले जाती तुमको। पहले एक कदम फिर एक और कदम और फिर परम कदम, ऐसा कुछ नहीं होगा। पहला कदम ही परमकदम होना चाहिए। फिर तुम्हें उसके बाद जो कदम है उठाना, नाचना, खेलना, दौड़ लगाना, जो तुम्हें करना हो करना। पहले सत्य में आ जाओ, शांत हो जाओ, मस्त हो जाओ, मौज में आ जाओ। उसके बाद जो करना हो करना।

श्रोता ३: सर, इसको अपनी ज़िंदगी से रिलेट करें कि अगर हम किसी पर्टिकुलर जॉब में जाना चाहते हैं और जब तक वो पर्टिकुलर जॉब ना मिल जाए तब तक क्या दूसरी जॉब में चले जाएँ?

वक्ता: हम परमलक्ष्यों की बात कर रहे हैं और तुम तुच्छ लक्ष्यों की बात कर रहे हो। जॉब १, जॉब २, जॉब ३, जॉब ४। परमलक्ष्य समझते हो क्या होता है?

श्रोता ४: फिलहाल मैं ये सोचता हूँ कि मेरे दिमाग में ये पर्टिकुलर कंपनी है, कि इस कंपनी में ये पोस्ट मिल जाए।

वक्ता: ये सब छोटे-छोटे लक्ष्य हैं। तुम्हें वो पोस्ट भी मिल सकती है अगर तुम उद्वलित हो, बदहवासी की हालत में हो? उस पोस्ट के साथ जो भी तुम करना चाहते हो, उसके साथ न्याय कर पाओगे अपनी वर्तमान हालत में? मैंने तुम लोगो को आखिर के १५ मिनट क्या बोला था? कि तुम्हारी जो हालत है अगर यही हालत रही, तो तुम इस हालत में कुछ भी नहीं कर सकते। पहले तो ये हालत बदलनी है। उसके बाद कुछ भी होगा। परमलक्ष्य जानते हो क्या होता है? मैं किसकी बात कर रहा हूँ? मुस्लिम हो?

श्रोता ४: हाँ सर।

वक्ता: मैं उसकी बात कर रहा हूँ। वो जॉब करके मिलेगा? अरे वो जब हज करके नहीं मिलता तो वो जॉब कर कर के कैसे मिल जायेगा? मैं किसकी बात कर रहा हूँ और तुम किस चीज से उसकी तुलना कर रहे हो। मैं यहाँ बैठ करके ईश्वर या बृह्म की बात कर रहा हूँ। मैं बहुत सीधी सीधी बात कह रहा हूँ। मैं कह रहा हूँ कि मैच में अगर तुम्हें पूरी ऊर्जा के साथ खेलना है, तो मन पहले शांत होना चाहिए। तुम्हें अगर लड़ाई पूरी ताकत से लड़नी है तो शांत मन से ही लड़ पाओगे। मैं तुमसे ये कह रहा हूँ कि पहले शांत मन से जाओ, फिर लड़ाई करने जाओ। क्योंकि जो लड़ाई में अशांत मन के साथ उतरता है उसका तो सिर कटेगा। उसको तो घाव लगेंगे, मरेगा वो। और जितनी भीषण लड़ाई तुम्हें लड़नी है, उतना ही पहले शांत होना पड़ेगा। जो शांत नहीं है वो लड़ाई नहीं लड़ पायेगा।

श्रोता ५: सर, जैसे कहते हैं कि भूखा शेर ज़्यादा खतरनाक होता है।

वक्ता: अरे, जानवरो पर जो बातें लागू होती हैं, तुम उसको अपने ऊपर लागू करने में जुटे हो।

श्रोता ५: सर, किसी भी तरीके से मैं संतुष्ट हो जाऊँ तो मैं उसे पराजित कर दूँगा। मैं अपने आपको शांत कर दूँगा।

वक्ता: संतुष्ट होने का मतलब ये नहीं होता है कि मैं उसे पराजित कर दूँगा। तुम संतुष्टि का बहुत गलत अर्थ लेकर बैठे हुए हो। मैं उसकी बात नहीं कर रहा हूँ जो शर्तों वाली संतुष्टि है। मैं एक दूसरी चीज की बात कर रहा हूँ जिसे कंटेंटमेंट बोलते हैं। वो होता है अपने आप में पूरा होना। वो ये कहता है, ‘मैंने अगर रेस जीत ली तो बहुत अच्छा, नहीं जीती तो भी मेरा कुछ बिगड़ नहीं गया। मुझ पर कोई आंच नहीं आ गयी। मेरा कुछ कम नहीं हो गया। तो मैं दौड़ रहा हूँ पूरी ताकत से। मैं जीत जाऊँगा तो बहुत अच्छा। नहीं भी जीता तो मस्ती है, हम कल फिर दौड़ लेंगे’। और जब तुम ये कह कर दौड़ते हो कि नहीं जीता न, तो मेरी इज्ज़त पर आंच आ जाएगी, तो फिर तुम्हारा दिल टूट जाता है। फिर ना तुम दूसरे दिन दौड़ पाते हो और पहले दिन भी जब तुम पाते हो कि तुम हार रहे हो, तो तुम्हारे हाथ पाँव थर-थराने लगते हैं, पसीने छूटने लगते हैं। ये देखा है कि नहीं? परीक्षा शांत मन से दो, तब ज्यादा अच्छे मन से लिख पाते हो या थर-थराते, डूबे हुए, पसीने में तब?

सभी श्रोता: शांत मन से।

वक्ता: तो पहले क्या करना है? पहले वो शांति पानी है। उस शांति में बैठ कर के, उसी में आसन लगा कर फिर जो करना है सो करो।

श्रोता ५: कैसे पाएँ फिर शांति?

वक्ता: अशांति कैसे पाई?

श्रोता ४: बाहर से।

वक्ता: तो शांति कहाँ से आएगी?

श्रोता ४: अंदर से।

वक्ता: बहुत बढ़िया। तुरंत समझ गया। बहार से तो नहीं आएगी। बहार से तो क्या आई है ?

श्रोता ४: अशांति।

वक्ता: अशांति आई है। लेकिन शांति तो पाई जा सकती है। तो इसका मतलब वो कहाँ है ?

श्रोता ४: अंदर।

वक्ता: है भीतर ही। पानी ही नहीं है। तभी तो तब से कह रहा हूँ कि जो ऐब्सलूट है, परम है, वो सबसे पास है। ये जो तुम ने इधर-उधर से, बाहर से चीज़ें इकठ्ठा कर ली हैं, इन्हें दूर करना है। जो ऐब्सलूट है वो तो सबसे पास है। बस ये जो तुमने कचरा इकठ्ठा कर रखा है इसको जरा साफ़ करो। जैसे तुमने जो इकट्ठा कर रखा था कि बताया गया है कि इस उम्र में ये करना है और उस उम्र में वो करना है, ये कचरा है। तुमने इसकी जांच पड़ताल भी नहीं करी बस इकठ्ठा कर लिया।

श्रोता ५: क्योंकि सर हमारी जो उम्र थी वो…

वक्ता: अब नहीं है न। किस उम्र में किया था? चलो पांच साल के थे। अब तो नहीं हो। अब जो बीस साल बीत गए हैं, इस बात को। अभी भी लेकर के क्यों बैठे हुए हो।

श्रोता ४: सर, मुख्य चीज़ ये है कि अपनी सोच को बदलें।

वक्ता: बदलें नहीं। सोच को साफ़ रखे।

श्रोता ५: हर चीज़ की जांच पड़ताल करें …

वक्ता: और ईमानदार रहें। झूठा जीवन नहीं बिताएँगे।

श्रोता ५: हमारे आने वाली जिंदगी के मूल्यों की आप बात कर रहे हो।

वक्ता: ये मूल्य नहीं हो सकते। मूल्य तो ये है कि एक बात पकड़ लो। मैं कह रहा हूँ कि तुम मूल्यों की भी जांच पड़ताल कर लो। ये एक इंटेलीजेंट वे ऑफ़ लिविंग है। ये मोरालिटी नहीं है। मैं जो बोल रहा हूँ तुमसे। अगर ऐसे तुम हुए, तो मूल्यों को तो तुम तोड़ फोड़ दोगे क्योंकि ज़्यादातर मूल्यों में कुछ रखा हुआ ही नहीं है। नैतिकता में ही कुछ रखा नहीं है। नैतिकता का मतलब है कि बाहर से तुम्हें किसी ने दो-चार बातें बता दी। मैं तुमसे कह रहा हूँ कि तुम ताकतवर हो, तुममें समझने की क्षमता है। तुम समझो, जानो, जगे हुए रहो। बस।

श्रोता ३: सर, हमारा लक्ष्य क्या है ?

वक्ता: इतनी देर से ऐब्सलूट-ऐब्सलूट कर रहे थे वो क्या है? जब तुम मस्त रहते हो, तो तुम लक्ष्य मांगते हो? कभी खुश हुए हो, मौज में हो, नाच रहे हो, उस वक्त पूछते हो कि मेरा लक्ष्य क्या है? पूछते हो क्या?

सभी श्रोता: नहीं सर।

वक्ता: कभी प्यार से किसी के गले लगे हो क्या? फिर पूछते हो कि अभी बताना कि लक्ष्य क्या है? अभी मौज में हो, मग्न हो तो लक्ष्य की किसको याद आती है। क्या लक्ष्य-लक्ष्य लगा रखा है? लक्ष्य तो दुखी चित्त मांगता है। जब तुम दुखी होते हो, तब तुम कहते हो कि लक्ष्य चाहिए। परेशानी में लक्ष्य का सवाल उठता है। वरना लक्ष्य क्या है? कुछ नहीं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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