सपने नहीं, समझ || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2012)

Acharya Prashant

4 min
108 reads
सपने नहीं, समझ || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2012)

वक्ता: क्या इस बात को समझ रहे हो? इस पल में जो है, उसी से तो अगला निकलता है। अगर ये पल ठीक नहीं है तो क्या अगला ठीक हो सकता है?

श्रोता १: उसका कोई कारण भी तो होना चाहिए?

वक्ता: जिसको तुम आगे जाना कह रहे हो, उसका तो कारण होगा ही, लेकिन वो मात्र कल्पना ही होगी। तुम इस बात को समझो। तुम आगे जाना किसको कह रहे हो? चलो इस बात को ऐसे समझो। मैं यहाँ बैठा हूँ, तुम एक सवाल पूछते हो, उसका तुरंत एक जवाब आ रहा है। बात आगे जा रही है ना? क्या सपने में जा रही है? क्या स्वतः ही हम आगे नहीं बढ़ते? अभी हम ध्यान से सुन रहे हैं; मैं तुम्हारी बात ध्यान से सुन रहा हूँ; तुम मेरी बात ध्यान से सुन रहे हो; क्या इस सुनने सुनाने के फलस्वरूप हम स्वतः ही आगे नहीं बढ़ रहे?

आगे बढ़ने के लिए क्या हम सपने में हैं या ध्यान में हैं? ध्यान में रहकर हम कितने अच्छे तरीके से आगे बढ़ रहे हैं। एक बात से दूसरी बात निकल रही है और हम कल्पनाओं में नहीं हैं, हमने कोई योजना भी नहीं बना कर रखी कि कौन-सा सवाल पूछें, कौन-सा नहीं। क्या हम पूर्वाभ्यास करके आये हैं? क्या मुझे पता है कि तुम कौन-से सवाल पूछोगे? क्या तुम्हें पता है कि मैं क्या जवाब दूंगा? जो कुछ हो रहा है, इसी क्षण में हो रहा है। और क्या इससे हम अपने आप आगे नहीं बढ़ रहे? बढ़ रहे हैं या नहीं बढ़ रहे? बढ़ रहे हैं ना!

श्रोता १: लेकिन सर, इस क्षण में आने के लिए भी हमने कुछ सोचा होगा?

वक्ता: अभी देखो कि क्या हो रहा है। और ये स्पष्ट प्रमाण है इस बात का कि आगे बढ़ने के लिए सपने नहीं, ध्यान चाहिए। आगे बढ़ने के लिए हकीकत से संपर्क होना चाहिए। और जब तुम जानते हो कि अभी क्या है, तो उसी के परिणाम स्वरुप अपने आप सब सही होता चला जाता है।

ऐसे समझो, मैं अपने भविष्य की योजना बनाता हूँ – सपने। अगर मैं खुद को जानता हूँ तो क्या मैं वो नहीं करूँगा जो मेरे लिए सही होगा? तो इसमें योजना का क्या काम पड़ेगा? आमतौर पर हम योजना बनाते ही इसलिए हैं क्योंकि हमें अपना कुछ पता नहीं होता। जिसे अभी का कुछ पता नहीं, वो ही आगे की योजना बनाने की कोशिश करता है। और उसकी वो योजना बेकार जानी है, क्योंकि उसे अभी का तो कुछ पता नहीं है। और अपना पता न होकर आगे जो भी योजना होगी, वो व्यर्थ ही है। अपना पता है तो योजना की आवश्यकता क्या? एक कर्म से दूसरा अपने आप निकलेगा, अपने आप निकलेगा। जो होगा स्वतः ही होगा। योजना नहीं बनानी पड़ेगी, सपने नहीं देखने पड़ेंगे।

अभी यहाँ आग लग जाए, तो क्या तुम सपने देखोगे यहाँ से भागने के लिए या स्वतः ही भागोगे? तुम ध्यान से समझ जाओगे कि यहाँ आग लगी है, तुम ध्यान से समझ जाओगे कि वहां दरवाज़ा है, तुम उठोगे और चल दोगे। सपने की क्या आवश्यकता है? कर्म स्वयं होगा, अपने आप होगा, स्वतः होगा। सपना क्यों चाहिए? और अब एक दूसरे आदमी के बारे में सोचो। यहाँ आग लगी है, वो आग को जानता नहीं, किसी और दुनिया से आया है। इस कक्ष को भी जानता नहीं, दरवाज़ा जैसा कुछ होता है, वो जानता नहीं। वो ज़रूर सपना देखेगा यहाँ से निकलने का।

जो समझता है, वो सपने नहीं लेता, वो कर्म करता है। सपने वही लेता है, जो समझता नहीं। वो सोचेगा की मैं इस ज़मीन में सुरंग बनाऊंगा और फिर उससे निकलूंगा। अगर वो समझता होता कि ये रहा दरवाज़ा, तो ऐसा सोचता क्या? वो सोचेगा की ये रही छत, इसे डायनामाइट से तोडूंगा और फिर निकलूंगा। अब वो सपने में डायनामाइट के बारे में सोचेगा कि मेरा बेटा होगा, वो डायनामाइट की फैक्ट्री खोलेगा, वो मेरे पास डायनामाइट लेकर आएगा, उससे मैं ये छत उड़ाऊंगा, फिर मैं यहाँ से निकलूंगा और बाहर जाऊँगा। अब ये उसका सपना है, वो उस सपने को पाल रहा है।

श्रोता २: सर , एक खिलाड़ी है। उसने सपना देखा था कि वो एक प्रख्यात खिलाड़ी बनेगा, और वो बना। तो क्या सपना सच नहीं हुआ?

वक्ता: वो खिलाड़ी सपने ले लेकर पहुंचा है, या खेल के मैदान में खेलकर?

-‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories