मौज करो, गंभीर मत हो जाना || नीम लड्डू

Acharya Prashant

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मौज करो, गंभीर मत हो जाना || नीम लड्डू

यही जीवन जीने की कला है, मौज करो, मस्ती करो! गंभीर मत हो जाना। बिलकुल हल्के रहो, क्योंकि रखा क्या है?

आज तुम जिस बात को गंभीरता से लेते हो, कल वो तुम्हारे लिए दो पैसे की हो जाएगी। याद है, जब चौथी-पाँचवी में रिज़ल्ट आया था तो तुम कैसे फूट-फूट कर रोए थे और कितना डर लग रहा था?

आज तुम हँसोगे कि, ‘मैं उस बात पर इतना गंभीर हो गया था?’ तुम कहते हो, ‘गंभीरता वाले मुद्दे तो वो हैं जो आज मेरे सामने हैं।‘

ज़रा उस चौथी-पाँचवी वाले बच्चे से पूछो कि, ‘चौथी-पाँचवी का रिज़ल्ट गंभीर मुद्दा था कि नहीं था?’ वो कहेगा, ‘था!’

मन की जो अवस्था होती है, उसको उसी में जो है, वो गंभीर लगता है। “ये पिद्दी-सी बातें! मैं इनको पकड़ कर बैठा हुआ था?” और आज तुम्हारे लिए जीवन-मरण का प्रश्न है। तुम कहते हो, “बाप रे बाप! इतनी बड़ी-बड़ी बातें?”

अरे! रखा क्या है? आज हैं कल चली जाएँगीं, सपना है!

समय ही सपना है; आता है चला जाता है। जो आए और चला जाए उसको क्या गंभीरता से लेना?

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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