प्रश्नकर्ता: सर, सपने कहाँ से आते हैं?
आचार्य प्रशांत: मैं इतनी देर से अभी और हम क्या बात कर रहें हैं? मैंने एक सवाल पूछा था किसी से कि क्या फ्रेंच में कुछ सोच सकते हो? यही पूछा था? वैसे मैं तुमसे पूछूँ कि सपने में भी फ्रेंच बोल सकते हो क्या? बोल सकते हो?
प्रश्नकर्ता: नहीं बोल सकते।
आचार्य प्रशांत: अभी से पता है न कि कैसा भी सपना आ जाए, ये सपना तो नहीं आ सकता कि मैं फ्रेंच बोल रहा हूँ। तुम सपने में भी फ्रेंच क्यों नहीं बोल सकते? बोलो, जल्दी बोलो। जो बात मन में नहीं है, वो सपने में भी नहीं आ सकती। और जो कुछ सपने में आ रहा है, वो निश्चित रूप से जाग्रत अवस्था में कहीं-न-कहीं मन में है। वरना सपने में नहीं आता।
बात समझ रहे हो?
मन एक ही है। जो सपने में आया है, उसका तुम्हें कुछ-न-कुछ अनुभव हुआ है। वो कहीं से मन में है। और जो मन में है, वही सपना आएगा। उससे अधिक कुछ आ नहीं सकता। ये तो एक बात हुई।
दूसरी बात तुमने बोली कि क्या ड्रीम्स रियल लाइफ़ से सम्बन्धित हैं। तुम रियल को शायद ये समझ रहे हो — जब ऑंख खुली हुई है तो जो दिखायी देता है, इन सबको रियल कह रहे हो। अगर ये रियल है तो कब रियल है? ध्यान देना अब।
ये रियल है तो कब रियल है? अभी रियल है न जब आँख खुली है। जब आँख खुली है तो वो रियल है जो खुली आँखों को दिखायी देता है। और जब आँख बंद है तब क्या रियल है? जो बंद आँखों को दिखायी देता है। तो रियल किसको बोलोगे?
नहीं समझे बात को? जब सपना देख रहे होते हो तो क्या कह रहे होते हो कि ये अनरियल है? जब आँख बंद है तो क्या रियल है? क्या रियल है?
प्रश्नकर्ता: सपना।
आचार्य प्रशांत: जो सपना है वही रियल है न! जो जिस मानसिक अवस्था में है, वो उसको ही क्या बोलता रहता है? जो सपने में है, उसके लिए सपना क्या है?
प्रश्नकर्ता: रियल है।
आचार्य प्रशांत: जो जागा हुआ है, उसके लिए दीवार क्या है?
प्रश्नकर्ता: रियल है।
आचार्य प्रशांत: तुम्हें कैसे पता, ये रियल है? अगर अभी तुम सपना ही ले रहे हो तो? और अचानक से जागो! जब सपने में होते हो तब भी तो सबकुछ पूरा-पूरा, पक्का-पक्का, जाग्रत, वास्तविक ही तो दिखाई देता है। जैसे अभी ये दीवार रियल लग रही है, वैसे सपने में जो कुछ होता है, वो उस वक्त रियल ही लग रहा होता है न। तो रियल मत बोलो इन सबको।
मन की अवस्था है एक। मन की किसी भी हालत को रियल बोलना उचित नहीं है। तुम बैठे हुए हो। अचानक तुम्हें लगे कि साॅंप पर बैठ गये हो, भागोगे ज़ोर से। तुमसे कोई पूछे कि किससे भागे, तुम बोलोगे?
प्रश्नकर्ता: साॅंप से भागे।
आचार्य प्रशांत: तुम ये बोलोगे, अनरियल साॅंप से? वो रस्सी थी। तुम ये बोलोगे क्या कि मैं अनरियल साॅंप से भागा हूॅं? जो डर कर भाग रहा है, उसके लिए साॅंप क्या है? रियल या अनरियल?
प्रश्नकर्ता: रियल।
आचार्य प्रशांत: हम सब अपनी जिस दुनिया में जीते हैं, हम उसे क्या सोचते हैं?
प्रश्नकर्ता: रियल।
आचार्य प्रशांत: अब वही रस्सी उसके लिए कौन-सा साॅंप है जो पड़ोसी है? अनरियल। क्योंकि उसे दिख रहा है कि रस्सी है। और वही रस्सी इसके लिए क्या है? याद रखना वही रस्सी एक पड़ोसी के लिए क्या है?
प्रश्नकर्ता: अनरियल।
आचार्य प्रशांत: और इसके लिए क्या है?
प्रश्नकर्ता: रियल।
आचार्य प्रशांत: हम सब अपने-अपने ख्वाबों में जी रहे हैं, जिसे हम क्या बोल देते हैं?
प्रश्नकर्ता: रियलिटी।
आचार्य प्रशांत: रियलिटी। रियलिटी कुछ है नहीं। कम-से-कम हम जिसे रियलिटी बोलते हैं, वो रियलिटी नहीं है। ये बात समझ में आ रही है? हम कैसे दल बदलू हैं? जागते हैं तो छत को रियल बोल देते हैं और सोते हैं तो ख्वाबों को रियल बोल देते हैं।
अरे! एक बात पक्का कर लो। ख्वाब रियल है तो फिर कभी जागो मत और जागते में जो दिखाई दे रहा है तो कल्पना मत करो। इससे मन के बारे में तुम्हें कुछ समझ में आ रहा है?
जो जिस मानसिक स्थिति में होता है, जो जिन विचारों के साथ होता है, वो उन्हें ही वास्तविक समझकर महत्त्व दिये जाता है। क्या बोलता है? ये क्या है? रियल हैं।
और जो रियल है चीज़, उसको फिर इंपॉर्टेंस देनी पड़ेगी, उसके बारे में गम्भीर होना पड़ेगा। और कोई भी व्यक्ति कभी ये नहीं कहेगा कि मैं तो सोच रहा हूॅं, वो क्या है?
प्रश्नकर्ता: अनरियल।
आचार्य प्रशांत: अनरियल। मज़ा देख रहे हो? कभी भी कोई, क्या ये कह सकता है कि वो जो सपना देख रहा है, वो झूठा है? क्या कभी भी ये हो सकता है कि तुम सपना देखते भी जा रहे हो और साथ-ही-साथ ये भी कहते जा रहे हो कि सपना ही तो है। ऐसा हो सकता है?
तुम जिस मानसिक अवस्था में हो, वो तुम्हें वही क्या लगेगी?
प्रश्नकर्ता: रियल।
आचार्य प्रशांत: और हर मानसिक अवस्था बदल जाती है, कुछ और बन जाती है। यानि कि हर मानसिक अवस्था क्या है?
प्रश्नकर्ता: अनरियल।
आचार्य प्रशांत: हर मानसिक अवस्था है तो अनरियल और लगती क्या है?
प्रश्नकर्ता: रियल।
आचार्य प्रशांत: मतलब तुम जो भी कुछ सोचते हो, जो भी सपने देखते हो, जो भी लक्ष्य पालते हो, जो भी तुम्हारी कल्पनाऍं और विचारणा है, वो सब क्या है? वो अनरियल ही है। उसको गम्भीरता से मत लेना।
सब ऐसा ही है। इसमें हकीकत कुछ नहीं है। प्रक्षेपण है। हाॅं, इतना ही है कि जाग्रत अवस्था में जो है, मन की इस हालत में जिसमें ऑंखें खुली रहती हैं। ऑंखें माने ये ऑंखें (ऑंख की ओर संकेत)। बोध की ऑंखें नहीं, ये ऑंखें। इस अवस्था में जो है, उसको अगर तुम बोलोगे कि ये सब रियल नहीं है तो उसको बड़ा अटपटा लगेगा। लगता है न?
अभी अगर तुम्हें कहा जाए कि ये दीवार नहीं है। तुम कहोगे, ‘कैसे नहीं है, दिख रही है, छू सकते हैं। दीवार है कैसे नहीं?’ तुम यहीं पर अभी सो जाओ और सपने लेने लगो कि तुम्हारे चारों तरफ़ मखमल-ही-मखमल है, कि परदे हैं। तब दीवार है या मखमल है?
प्रश्नकर्ता: मखमल है।
आचार्य प्रशांत: और याद रखना जब तुम्हारे चारों ओर मखमल के परदे हैं, सपने में तब तुम उन परदों को छू सकते हो या नहीं? छू सकते हो कि नहीं? बिलकुल छूते हो। सपने में दौड़ते भी हो, हाॅंपते भी हो। देखा है, सपने में जब गिरते हो तो कितना डर लगता है। सबकुछ हो जाता है सपने में।
ये सब जो ऑंखों से दिखाई देता है न, इन्द्रियों से — ये मेंटल प्रोजेक्शन है। हमको ऐसा लगता है कि ये बाहर है। ये बाहर नहीं है, ये मन प्रोजेक्ट कर रहा है। जैसे ये प्रोजेक्टर है और ये यहाॅं पर निश्चित रूप से कोई आकृति बना सकता है। वो आकृति दीवार पर लगेगी, पर है कहाॅं पर? लगेगा कि वो दीवार पर है, पर है कहाॅं पर?
प्रश्नकर्ता: प्रोजेक्टर में।
आचार्य प्रशांत: वो प्रोजेक्टर में है न। कुछ-कुछ ऐसा ही हमारा मन है। तुम बाहर जो दुनिया देखते हो, लगता है बाहर है। पर वो तुम्हारे इस कंफीग्रेशन (दिमाग की ओर संकेत) का नतीज़ा है कि बाहर दिखाई देती है।
और चूॅंकि मन अलग-अलग है, इसीलिए हम सबकी दुनिया भी अलग-अलग है। बड़ी अजीब बात है कि हम बात करते हैं रियलिटी की और वो रियलिटी सबके लिए अलग-अलग है। अगर रियलिटी रियल होती तो सबके लिए एक होती न! वो एक है ही नहीं।
एक प्रयोग कर लो। अभी मैं तुमसे एक-डेढ़ घण्टे से बात कर रहा हूॅं, मैं तुमसे कहूॅं कि लिखो कि अभी तक हमने क्या बात करी। तुम सब क्या एक बात लिखोगे?
अब बात कही मैंने कितनी हैं? बात तो एक ही कही होगी न। और लिखोगे कितनी? जितने बैठे हो, सब अलग-अलग लिखोगे। सुना सबने अलग-अलग है। और जिसने जो सुना उसको क्या लग रहा है?
प्रश्नकर्ता: रियल है।
आचार्य प्रशांत: अब पचास रियलिटी कहाॅं से आ गयी? ये तो बताओ। पचास अलग-अलग रियलिटी कहाॅं से आ गयी? और वो पता है इतनी अलग हो सकती हैं कि तुम कच्चा खा जाओ। तुम जो लिखो कि सर ने ये कहा, तुम्हारा पड़ोसी उससे बिलकुल विपरीत बात लिखेगा कि सर ने ये कहा। इतनी अलग-अलग हो सकती है।
तो तुम किसको रियलिटी बोलोगे? एक बात रियल है बस — ये समझ पाना कि जो चल रहा है, ये सिर्फ़ मेंटल ऑक्यूपेशन है। ये रियल है। उसी को हम बार-बार इंटेलिजेंस कहते हैं, समझदारी। भ्रम में न पड़ना, ये रियलिटी है। भ्रम में न जीना कि हकीकत है, सिर्फ़ उसको रियल कह सकते हैं। और कुछ नहीं रियल है।
न बंद ऑंखों वाले सपने सच्चे हैं, न खुली ऑंखों वाले सपने सच्चे हैं। सच्ची है सिर्फ़ तुम्हारी समझने की शक्ति। आयी बात समझ में?