प्रश्नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी। मेरा सवाल हाल ही में हुई तीन घटनाओं को लेकर है। एक गाज़ियाबाद में एक व्यक्ति ने यू-ट्यूब तांत्रिकों के प्रभाव में आकर एक हत्या कर दी। और वहीं गुजरात में एक तांत्रिक को कई हत्याओं के आरोप में पुलिस ने हिरासत में ले लिया। और वहीं कुछ दिनों पहले यूपी में एक स्कूल के मालिक ने सैकेंड क्लास के बच्चे की बलि दे दी।
तो ये घटनाएँ सुनने में तो बड़े बीते ज़माने की लगती हैं, पुरानी लगती हैं लेकिन आजकल ये आए दिन हो रही हैं। तो ये जिसको हम मॉर्डन सोसाइटी (आधुनिक समाज) बोलते हैं, उसमें ये अंधविश्वास और तंत्र-मंत्र का इतना प्रभाव क्यों देखने को मिल रहा है? ऐसा क्यों हो रहा है?
आचार्य प्रशांत: ये आप जो दूसरी खबर बता रहे हैं, आपने अगर पूरी बताई होती, तो उसी में उत्तर छुपा हुआ था ना। वो जो गुजरात वाला अभी मामला है, उसमें भी उस व्यक्ति ने बताया है कि उसको प्रेरणा यू-ट्यूब से ही मिली है अगर मैं उसी मामले की बात कर रहा हूँ जिसकी आप बात कर रही हैं। और उसमें अब ताज़ा खबर, आज की खबर ये है कि उस व्यक्ति की पुलिस हिरासत में मौत भी हो गई है।
ये जो तांत्रिक पकड़ा गया था, जो कम-से- कम दस-बारह लोगों को मार चुका था और शायद ये उनको सोडियम नाइट्राइट पिलाकर मारता था। और इसने भी ये सारा जो काम है, ये सीखा यू-टयूब से ही था कि तंत्र वैगरह की बातें कैसे करनी हैं और कौन-सी बातें बोल दो तंत्र की, तो लोग सुन लेते हैं। ये सब उसने खुद ही ये सब कबूला है।
जो पहली आपने घटना बोली थी, वहाँ भी वही निकलकर आया था कि वहाँ तो दो व्यक्ति थे जिन्होंने एक की हत्या की क्योंकि यू-ट्यूब पर ही उन्हें कोई तांत्रिक मिला था जिसने बोला था कि हत्या अगर कर दोगे तो तुमको पचास करोड़ मिल जाएगा। शायद कुछ ऐसा बोला था कि उसकी हत्या करके उसका खोपड़ा अपने पास रखना और उस खोपड़े की पूजा-वूजा करना तो इससे हो जाता है। और इससे ये सारा काम बिल्कुल चल यू-ट्यूब से ही रहा है, क्योंकि आप कहाँ जाओगे ऐसा तांत्रिक-वांत्रिक खोजने।
तो यू-ट्यूब पर मिल जाता है। ये है पूरी कहानी इसकी। इसमें बात तो बहुत सीधी है, इसमें मैं आपको क्या बताऊँ। जब ऐसी कोई घटना हो जाती है, मर जाते हैं लोग, फिर कई बार उस घटना को दबाने के लिए पुलिस भी अपराधी को मार देती होगी क्योंकि अपराधी अगर ज़िंदा रह गया तो ना जाने कौन-कौन से राज़ खोल देगा।
गुजरात पुलिस ने जो ये तांत्रिक था, कहा है कि ये तो बेचारा कस्टडी में ही मर गया, इसने खुद ही आत्महत्या कर ली। अगर मैं सही समझ रहा हूँ जिस केस की आप बात कर रही हैं अगर मैं उसी की बात कर रहा हूँ तो। पुलिस कस्टडी में मर गया। पता नहीं वो कौन से राज़ बताता कि यू-ट्यूब पर उसने क्या देखा था, किसको देखा था यू-ट्यूब पर। तो वो सब अब कभी पता नहीं चलेगा, सब राज़ दफ़न हो गए।
लेकिन आप बात सिर्फ़ तब करने आई हैं जब मौतें हो गईं बहुत सारी। जब तक मौतें नहीं हुई थीं, तब तक इन्हीं तांत्रिकों की बातें, इनके जो भी ये वहाँ पर अपना फूँ-फ़ाँ कर रहे थे, वो आप भी देखते थे और उसके मिलियंस व्यूज़ भी आते थे। जब जो व्यक्ति इन तांत्रिकों से प्रभावित होता है, वो उन व्यूज़ से भी तो प्रभावित होता है ना कि आपने दिखाया कि वो खासकर पॉडकास्ट दिखा दिया आपने तांत्रिक का और...।
बहुत सारे पॉडकास्ट हैं, वो तो चलते ही इसी बुनियाद पर हैं। एक तांत्रिक, दूसरा तांत्रिक, तांत्रिक लाओ, मिलियंस ऑफ व्यूज़ पाओ। तांत्रिक आकर ये बताएगा, वो बताएगा। बैल की खोपड़ी, ऊँट का पाँव, आदमी का गला, इन सबको मिलाकर ऐसे-ऐसे करो फ़लानी रात को, फ़लानी नदी के किनारे या शमशान में, तो ये निकल आता है।
आप भी तो उसी के समर्थक हो ना, आप भी तो उसी को पैट्रनाइज़ (संरक्षण) करते हो। नहीं तो उन सब विडियोज़ के ये मिलियंस ऑफ व्यूज़ कहाँ से आ जाते। और आप जो मिलियंस ऑफ व्यूज़ देते हो ये तांत्रिकों के चैनल को या तांत्रिकों के पॉडकास्ट को, उसी से फिर आम आदमी भी ये सब करना शुरू कर देता है, आज़माना ही शुरू कर देता है।
ये आपने सिर्फ़ तीन मौतें बताई हैं। ये अब दो हज़ार चौबीस बीत रहा है, इस साल इस तरह के दर्ज़नों मामले आए हैं। तंत्र वगैरह से संबंधित अपराधों में, हत्याओं में गजब की वृद्धि हुई है पिछले एक-दो सालों में। और इसमें वो लोग तो चलिए गुनहगार हैं ही जिन्होंने ये सब करा, वो भी गुनहगार हैं जो तांत्रिक बनकर बैठे हैं।
जिसने तांत्रिक के प्रभाव में आकर हत्या वगैरह कर दी, वो भी गुनहगार हैं, तांत्रिक भी गुनहगार है पर क्या आम आदमी गुनहगार नहीं है? क्या जो पूरी इस वक्त हवा बह रही है, वो गुनहगार नहीं है? उस हवा में तो यही है ना कि जो कुछ भी लोक संस्कृति में चलता रहा है, परम्परा में चलता रहा है, वो सब श्रेष्ठ है। वो सब हिन्दू धर्म का हिस्सा है और उस पर आपत्ति करोगे, तो तुम एन्टी हिन्दू कहलाओगे। तो हिन्दू धर्म को आगे बढ़ाने के लिए ये सब जितनी कचरा बातें हैं, इन सब बातें को आगे बढ़ाओ।
क्योंकि हिन्दू धर्म का असली मतलब क्या है, वो तो किसी को पता है नहीं। कौन-सा किसी ने श्रुति, ग्रंथ पढ़े हैं। तो उनके लिए जो कुछ भी ओम फट फाम फुट होता है, यही धर्म है। यही हवा बह रही है। यही आम आदमी कह रहा है। इसी की पॉलिटिक्स (राजनीति) भी चल रही है। तो जब हवा ही ऐसी बहेगी, तो उसमें फिर पत्ते तो झड़ेंगे ना।
इतनी रूचि से आप लोग ये वीडियोज़ देखते हो, उन्हीं वीडियोज़ के ऊपर ये हत्याएँ हैं। उन्हीं वीडियोज़ से खून चू रहा है। आप नहीं देखें और नीचे आप लोग हज़ारों कमेन्ट करते हो कि मजा आ गया, मजा आ गया-अननोन सीक्रेट्स ऑफ हिन्दूइज़्म (हिन्दुत्व के अनजाने रहस्य) ऐसा एक होगा वीडियो। ‘रॉ एंड रियल तंत्राʼ और आप ही उसको जा-जाकर के देखोगे भी और शेयर भी करोगे। अब उससे मौतें भी हो रही हैं, कर लो।
जितने तरीके की बिल्कुल अजायबघर वाली बकवास थी, वो धर्म का चोला पहनकर वापस आ गई है। जो कुछ हमें लगा था कि समय की धूल है, वो साफ़ हो रही है और धीरे-धीरे धर्म का वास्तविक स्वरूप अब निखरकर सामने आएगा, उसकी जगह पुराना कचड़ा पूरे रौब-रूतबे, शोर के साथ और शान के साथ वापस लौटा है। और ये नहीं कि इसमें बस कोई पुरानी पीढ़ी ज़िम्मेदार है। आप लोग, युवा लोग, पढ़े-लिखे लोग, इंग्लिश स्पीकिंग लोग, आप लोग हो जो इनमें सबसे ज़्यादा रूचि लेते हो। क्यों आपको बहुत एग्जॉटिक लगता है। आप उसको बोलते हो ''द ऑकल्ट''(रहस्यमय)।
आपके लिए धर्म और अध्यात्म का मतलब ऑकल्टिज़्म हो गया है। ऑकल्टिज़्म मतलब क्या? यही झाड़-फूँक, भूत-प्रेत, डायन-चुड़ैल आपके लिए यही धर्म है। ये तंत्र वगैरह के पॉडकास्ट और वीडियो पर जो सब कमेन्ट होते हैं, वो जवान लागों के ही तो होते हैं। इनको ये सब कैसा लगता है? बहुत एग्जॉटिक, वाउ! ‘नाउ दैट्स रियल इंडियन तंत्राʼ (अब ये सच का भारतीय तंत्र है)।
भाई, आपको तंत्र के बारे में जानना है, तो आप किताब पढ़ोगे ना या आप वीडियो देखोगे? यू-ट्यूब कब से ज्ञान का स्त्रोत बन गया? कोई भी आदमी जो बोले कि मैं यू-ट्यूब देखता हूँ ज्ञान के लिए, सबसे पहले तो वही छिछोरा। जिसको नॉलेज चाहिए, वो किताब पढ़ेगा। किताब नहीं पढ़ सकता, तो कम-से- कम गूगल करेगा, विकिपीडिया पढ़ेगा। ये वीडियोबाज़ी कब से ज्ञान का स्त्रोत बन गई?
वो भी किसका वीडियो? जो किसी भी तरीके से एक्सपर्ट (विशेषज्ञ) नहीं है, जिसके विशेषज्ञ होने का कोई प्रमाण नहीं है। बस जो आकर के आपसे ऐसी लच्छेदार, रसीली बातें कर रहा है, गजब की ऐसी कहानियाँ सुना रहा है,भूत-प्रेत की रोमांचक कहानियाँ, मनोहर कहानियाँ कि आप बच्चे और आप उसमें बिल्कुल बह गए और आपने कह दिया, ‘टुडे आय गेन लॉट ऑफ नॉलेज अबाउट रियल ऑथंटिक इंडियन तंत्रा। वी नीड वन मोर एपिसोड' (आज मैंने भारतीय तंत्र के बारे में बहुत सारा ज्ञान अर्जित किया। हमें एक और प्रसंग चाहिए)।
क्या समस्या है आप लोगों की पीढ़ी को? आप किताबें क्यों नहीं पढ़ सकते हो? आपको वेदांत जानना है, तो उपनिषद् पढ़ोगे ना या वीडियोबाजी करोगे? और संक्षिप्त होते हैं उपनिषद्, प्रिसाइज (सटीक), पढ़ा जा सकता है। वीडियो भी देखना है, तो वो वीडियो देखोगे ना जिसमें सच में उपनिषद् पर बात हो रही हो या वो वीडियो देखोगे जिसमें कुछ भी हवा- हवाई इधर-उधर फायर हो रहा है।
आप लोगों के ऊपर बहुत संकट है। इस इंफॉर्मेशन एक्स्प्लोज़न (सूचना का विस्फोट) में आपको सिर्फ़ मिसइंफॉर्मेशन (गलत जानकारी) और डिसइंफॉर्मेशन (दुष्प्रचार) मिल रहे हैं। हमारी पीढ़ी तो बच गई। हमने किताबें पढ़ लीं पर आप इंफॉर्मेशन एज (सूचना युग) की पैदाइश हो और कोई इंफॉर्मेशन नहीं मिल रही आपको सिर्फ़ झूठ मिल रहा है इंफॉर्मेशन के नाम पर।
हमें इंफॉर्मेशन कम थी, हमें बुक स्टोर जाकर किताबें खरीदनी पड़ती थी। चलो, हम मेहनत कर लेते थे। आपको इंफॉर्मेशन बहुत ज़्यादा है। पर जो इंफॉमेशन आपको है, वो निन्यानवे दशमलव नौ प्रतिशत सिर्फ़ कचरा है और झूठ है।
इंफॉर्मेशन एक्स्प्लोज़न से सच नहीं फैला है, झूठ फैला है। आप ज़्यादा नहीं जानते हो, आप बहुत गलत जानते हो। और जो जानने लायक चीज़ें हैं, वो कचरे के नीचे इतनी दब गई हैं कि उनको आप नहीं जानते हो। दिन-रात बैठकर के कोई तांत्रिक का वीडियो देख रहा है, कोई कुछ देख रहा है अब तो। तांत्रिक आकर हवा-हवाई बातें बता रहा है इंटरव्यू में, वो देख रहे हो।
किताब एक नहीं पढ़ी है। तंत्र है क्या, ज़्यादा नहीं तो एक किताब पढ़ लो इस पर, कोई पतली-सी किताब ही पढ़ लो। उसके बाद वो तांत्रिक तुमको मूर्ख लगेगा बिल्कुल कि ये क्या बोल रहा है तंत्र के नाम पर। सब्जेक्ट मैटर एक्सपर्ट (विषय विशेषज्ञ) से बात करी जाती है पहली बात तो फेस-टू-फेस (आमने-सामने)। किसी भी अंडू-पंडू से थोड़ी बात करी जाती है। और दूसरी बात सब्जेक्ट मैटर एक्सपर्ट से तब बात करी जाती है जब पहले सब्जेक्ट (विषय) में अपनी थोड़ी ग्राउंडिंग (प्रारंभिक शिक्षा) हो गई हो।
आप इकोनॉमिक्स (अर्थशास्त्र) के स्टूडेंट्स (छात्र) हैं मान लीजिए। तो आप पहले एक सेमेस्टर या एक साल तक इकोनॉमिक्स पढ़ोगे। ठीक है ना। उसके बाद आपके कॉलेज में आरबीआई के गर्वनर को हो सकता है बुलाया जाए कि आकर के बच्चों को एक लेक्चर दे दो। वो अच्छी बात है कि आपका फेस-टू-फेस हो रहा है किसी एक्सपर्ट (विशेषज्ञ) के साथ। अब आप इस हालत में भी हो कि उस एक्सपर्ट की कोई बात समझ पाओ। दोनों बातें हैं। पहले तो इसको बुलाया जा रहा है, वो एक बोनाफाइड (प्रामाणिक) एक्सपर्ट है। दूसरी बात, आपने एक साल तक किताबें पढ़ी हैं तब जाकर के आप उस एक्सपर्ट की बात से लाभ लेने की स्थिति में पहुँचे हो।
आपने कोई किताब नहीं पढ़ी, आप बैठकर पॉडकास्ट देख रहे हो। आप जो-जो बोला जा रहा है, पहले तो आपको पता नहीं चलेगा कि वो जो आदमी वहाँ बैठा है, वो यूँही कोई फ्रॉड, फ़र्जी है या कोई असली आदमी है। ज़्यादातर जो लोग आते हैं, वो फ्रॉड ही होते हैं। और दूसरी बात, अगर वो मान लो असली आदमी भी है जो पॉडकास्ट में बैठा है, तो उसकी बात आपको समझ में नहीं आएगी क्योंकि आपकी अपनी तो कोई प्रिपरेशन, कोई ग्राउंडिंग है ही नहीं।
आपने आज तक कोई किताब नहीं पढ़ी, तो वो जो बोल रहा है, वो समझ में भी नहीं आएगा। जब समझ में नहीं आएगा, तो आप कहोगे वो बोर कर रहा है। वो बोर कर रहा है, तो आप देखोगे नहीं। उसको व्यूज़ नहीं दोगे। जब उसको व्यूज़ नहीं दोगे, तो वो आगे और कहीं जाकर के बोलेगा नहीं।
आप यू-ट्यूब पर व्यूज़ किसको देते हो? जो सबसे मक्कार होगा, जो सबसे लच्छेदार बातें करता होगा, उसको ही तो देते हो आसानी से। क्योंकि वो बातें फिर ऐसी बोलता है ना जो बिना किसी तैयारी, बिना किसी मेहनत के भी आपको समझ में आ जाए। आपको कुछ जानना ना पड़े, कोई श्रम ना करना पड़े, आपको बदलना ना पड़े, आपको अपने स्तर पर ही रहते हुए लगे कि मुझे सब समझ में आ गया। तो फ़िर आप कहते हो ये बहुत बढ़िया आज सुना मैंने। लाइक, शेयर, कमेंट सब कर दोगे।
बाबा जी की बातें सुन रहे हो,कभी पूछो तो, ‘बाबा जी आपने कोई किताब पढ़ी? बाबा जी, आपने कोई किताब लिखी?ʼ ये सवाल ही नहीं आता मन में। ना बाबा जी ने कोई किताब पढ़ी है, ना बाबा जी ने कोई किताब लिखी है। बाबा जी ने बस एक चीज़ में महारत हासिल करी है। तुम्हारा मनोरंजन करने में। मनोरंजन कैसे करना है और लोगों का मनोविज्ञान कैसे पकड़कर उनको मूर्ख बनाना है, बाबा जी बस ये जानते हैं।
और इतने जो वहाँ जाकर भक्त बैठ जाते हैं, कोई पूछते भी नहीं कि बाबा जी, ये जो सब ज्ञान बता रहे हो, ऐसा होता है, वैसा होता है भगवान यहाँ आते हैं फ़िर भगवान ये कर देते हैं फिर फ़लानी देवी ऐसी करती हैं, फिर उस वन में ऐसा होता है, ये सब जो ज्ञान बता रहे हो, इसका स्त्रोत क्या है? या यूँही बस सपने में उछाल दिया। और बाबा जी इतने ज्ञानी हो, तो एकाध किताब लिखी भी होगी तुमने, वो भी दिखा दो। कुछ नहीं है।
कुछ तुम्हें पूछना नहीं। ये सब जो है, ये पुस्तकों के अपमान का नतीजा है और अभी तुम्हें इसके और भयावह परिणाम देखने को मिलने वाले हैं। ये जो शॉर्ट अटेंशन स्पैन (अल्प निर्णय अवधि) है ना रीलों वाला, ये खा गया तुम्हारी पीढ़ी को। ये सब जितने पकड़े गए हैं, ये भी कोई बूढ़े लोग नहीं हैं। ये भी सब जवान ही लोग हैं। ये एक-एक मिनट की रीलबाज़ी के कारण किताब अब आप लोगों से पढ़ी ही नहीं जाती। अब आप कहते हो, ‘हम यू-ट्यूब पर देख लेंगे।ʼ
किताब नहीं पढ़ोगे, तो ये भी नही पता चलेगा कि यू-ट्यूब पर जो तुम्हें परोसा जा रहा है, वो कितना असली, कितना नकली है। आप बस इंप्रेस (प्रभावित) जल्दी से हो जाओगे और जो देखोगे, सुनोगे, कहोगे, ‘अब जाकर इसका प्रैक्टिकल (प्रयोग) भी कर डालते हैं।ʼ
तो लो, हो गया प्रैक्टिकल। इतनी मौतें भी हो गईं और हर हफ़्ते दस दिन में यही तंत्र-मंत्र से जुड़ा कोई बहुत भयानक खूनी किस्सा हमारे सामने आ जाता है। और मैं हर बार कहता हूँ ये जो यू-ट्यूब पर अब तंत्र की इतने ज़बरदस्त वीडियोबाजी चल रही है, यही ज़िम्मेदार है। कोई नहीं एफआईआर करने वाला इन पर।
एक स्कूल के प्रिंसिपल ने मार दिया भाई अपने स्कूल के लड़के को कि स्कूल के बच्चे को मार दूँगा तो इससे स्कूल में तरक्की होगी या मेरे घर में तरक्की होगी या पता नहीं क्या। किसी तांत्रिक ने उसको बताया था और वो भी यू-ट्यूब से ही सीखकर आया था। और ये सब वो घटनाएँ हैं जो सामने आ गई।
आमतौर पर इन घटनाओं में जिनको मारा जाता है, वो या तो बच्चे होते हैं या गरीब कमज़ोर किस्म के लोग होते हैं जिनका कोई नाम लेवा नहीं होता, तो ज़्यादातर घटनाएँ तो छुपी भी रह जाती हैं।
और ये अभी हमने जो बात की, सिर्फ़ तो अभी करी वो इंसानों के कटने की। इस चक्कर में जानवर कितने कट रहे हैं, उसका तो कोई हिसाब ही नहीं। जानवर की बलि देने से फ़लानी चीज़ मिल जाएगी, ये सब भी तंत्र के नाम पर ही चलता है। ख़ैर, ये ज़्यादा पुराना है। ये यू-ट्यूब से नहीं आ गया। पर यू-ट्यूब इसको भी बढ़ाने की पूरी कोशिश कर रहा है।
जितने तरीके के छद्म विज्ञान हो सकते हैं, नकली साइंस, सूडो साइंस, उसको कौन बढ़ा रहा है? सोशल मीडिया। और कौन बढ़ा रहा है? इसीलिए कह रहा हूँ कि आपकी पीढ़ी बहुत अनफॉर्चूनेट (बदकिस्मत) है कि उसे इस इंफॉर्मेशन एक्स्प्लोज़न में पैदा होना पड़ा। जितने तरीके के झूठ को आप लोग सच मानते हो, हमने कभी नहीं माना था।
और आप लोग झूठ को इसीलिए सच मानते हो; जर्मन प्रोपेगेंडा शास्त्री था गोएबल्स। उसने कहा था झूठ को भी अगर सौ बार दोहराओ, तो वो सच हो जाता है। इतनी बार आपके सामने सोशल मीडिया पर झूठ दोहराया जाता है, दोहराया जाता है, इतना शेयर, इतना शेयर इतने मिलियन व्यूज़, इतने लाइक्स, ये, वो। आपको लगता है सच ही होगा।
और यहाँ किताबों की दुकानें बंद होती जा रही है। किताबों के दुकानों पर खिलौने बिकने लग गए। किताबों के दुकानों पर कुकवेयर बिकने लग गया। क्रॉकरी बिक रही है। लॉन्जरी बिक रही है। किताबें कोई अब खरीदना, पढ़ना नहीं चाहता।
और इससे भी बड़ा गजब आपको बताऊँ। यही लोग जो यू-ट्यूब पर गंदगी मचाते हैं, यही अब किताबों के ऑथर बन गए। तो पहले तो कोई किताबें पढ़ना नहीं चाहता और जो थोड़ी-बहुत किताबें बिक भी रही हैं, वो इन्हीं यू-ट्यूबरों की बिक रही हैं। इन्हीं की। क्यों?
क्योंकि आपने इनका मुँह देखा है। तो कहीं किताब की दुकान की खिड़की में आप इनकी किताब देख लेते हो। किताब के कवर पेज से इनका मुँह झाँक रहा होता है। आप खरीद लेते हो। आप फैन (प्रशंसक) बन गए हो ना भाई। असली ऑथर (लेखक) कहाँ गए? वो गायब हो गए। असली ऑथर गायब हो गए। कौन पढ़े उनको।
लेकिन हाँ, अभी भी लोग हैं जिन्हें खरा ज्ञान चाहिए। जो कहते हैं ऑथेंटिक नॉलेज (प्रामाणिक ज्ञान) चाहिए, वो किताबें भी पढ़ते हैं, खरीदते भी हैं, प्रोपेगेंडा (प्रचार) से भी दूर रहते हैं और पॉडकास्ट से नॉलेज (ज्ञान) इकट्ठा करने नहीं जाते।
‘इफ़ यू वांट टू लर्न समथिंग, लर्न इट फ्रॉम ए पॉडकास्टʼ (यदि तुम कुछ सीखना चाहते हो तो पॉडकास्ट से सीखो) इससे ज़्यादा वाहियात, बेवकूफ़ी की बात नहीं हो सकती। तुम पॉडकास्ट देखकर के दसवीं का बोर्ड भी पास कर सकते हो क्या? तो हाइयर (ऊँचा) नॉलेज कहाँ से पॉडकास्ट से ले लोगे?
‘पर आचार्य जी, पॉडकास्ट पर तो आप भी बहुत जाते हैं?ʼ
तो झाड़ू लेकर क्या करें? अपने ही सिर पर मारें? जहाँ गंदगी होगी, झाड़ू लेकर के वहीं उतरना पड़ेगा ना? तो जाते हैं। गटर की सफ़ाई करने के लिए गटर में ही उतरना पड़ता है ना। आप सब लोग मुझे मिलोगे कहाँ? वहीं मिलते हो मुझे, पॉडकास्टर्स के यहाँ। आप भी मुझे पहले कहाँ देखकर आई थीं? देखा होगा मुझे भी कहीं इधर-उधर ही। या तो हमारे शार्ट्स देख लिए होंगे। या कहीं इधर-उधर देखा होगा कि आचार्य जी फ़लाने के यहाँ गए थे, वहाँ मैंने देखा।
डेढ़ सौ किताबें हैं हमारी। डेढ़ सौ किताबों का मैं ऑथर (लेखक) हूँ। जिसमें से दस ऐसी हैं जो नेशनल बेस्ट सेलर (राष्ट्रीय सर्वश्रेष्ठ विक्रेता) हैं। उसको प़ढ़कर तो आप नहीं आए होंगे। क्यों नहीं आए होंगे, कारण भी बता देता हूँ। बेस्ट सेलर होना बहुत आसान होता है। हिन्दी में अगर कोई किताब कुछ महीनों में पाँच हज़ार कॉपीज़ (प्रतियाँ) बिक जाएँ, तो वो बेस्ट सेलर कहलाती है और अंग्रेज़ी में अगर कुछ महीनों में आठ-दस हज़ार कापी बिक जाए तो भी बेस्ट सेलर हो जाती है।
इतनी सारी तो आचार्य प्रशांत की बेस्ट सेलर्स हैं लेकिन कोई नहीं मिलता जो किताब पढ़कर आया हो। कोई शार्ट्स देखकर आ रहा है और कोई पॉडकास्ट देखकर आ रहा है। जो पूरे लॉन्ग वीडियो होते हैं चालीस मिनट के, एक घंटे के, डेढ़ घंटे के, वो भी देखकर नहीं आते लोग।
किताबों की तो सोचो ये दुर्दशा है कि कुल किसी किताब की अगर दस हज़ार कॉपीज़ बिक गई, तो उसको अधिकार मिल जाता है ये कहने का कि वो नेशनल बेस्ट सेलर है। बस यही क्राइटेरिया (मानदंड) होता है। पब्लिशर (प्रकाशक) भी यही नापता है कि दस हज़ार कॉपी बिक गई क्या? वो, ठीक है। हो गई, बेस्ट सेलर हो गई। क्योंकि किताब आप पढ़ते ही नहीं। हाँ, जब मेरे पास आ जाते हो, तब पकड़-पकड़कर, पकड़-पकड़कर आपको किताब पढ़वाते हैं कि ये लो, पढ़ लो।
और अपराध सिर्फ़ तब नहीं है जब हत्या ही हो गई किसी की। गलत किस्म की फालतू एडवाइस (सलाह) हर तरीके से दी जा रही है। मनी मैटर्स (पैसों से जुड़ी बातों) में, रिलेशनशिप्स (रिश्तों) में, पॉलिटिक्स (राजनीति) में। वहाँ भी तो आपका नुकसान ही किया जा रहा है ना। और ये सब कुछ आप सोशल मीडिया से सोख रहे हो।
कोई भी आकर वहाँ बन गया है, बैठ गया। ‘मैं रिलेशनशिप एक्सपर्ट हूँ, मैं बताऊँगा।ʼ कोई जिओ पॉलिटिक्स का एक्सपर्ट बनकर बैठ गया। भाई तुम कौन हो, तुमने क्या किया, तुम किस यूनिवर्सिटी से डिग्री लेकर आए हो, इस क्षेत्र में तुम्हारी क्या महारत है, तुम्हारी क्या पात्रता है, तुमने पेपर पब्लिश करे हैं? तुम बस इतना ही बता दो तुमने पढ़ा क्या-क्या है। चलो, खुद अपना नहीं पब्लिश करा, तो यही बता दो। कुछ नहीं पढ़ा होगा।
वो बस आपको लुभाना जानता है क्योंकि आप छोटे हो, बच्चे हो, आपकी कोई समझ नहीं, तो कोई भी आकर आपको बेवकूफ़ बना जाता है। कैमराबाज़ी, रंगबाज़ी, साउंडबाज़ी, साउंड इफ़ेक्टबाज़ी, फिल्टरबाज़ी। एक रील होती है वो आपको बहुत इम्प्रेस (प्रभावित) कर देती है। उसमें से पीछे से म्यूज़िक हटा दो, फिर देखो कि इम्प्रेस करती है कि नहीं।
कोई आकर के कोई बात बोल गया किसी रील में, वो बात आपको ऐसी लग रही है कि गजब की बात बोल दी है। और जिसने बोला है, वो कोई हैंडसम हंक है या कोई सेक्सी एक्ट्रेस है। जिसने बोला है, वो चेहरा हटा दो फिर बताओ कि वो बात अभी भी उतनी इम्प्रेसिव लग रही है क्या?
ये सब होता है वीडियो में। वहाँ नॉलेज डाइल्यूट(तनु) हो जाता है। आपको पता ही नहीं लगता कि आप इम्प्रेस नॉलेज से नहीं हो रहे हो, आप जो सेटअप है, उससे इम्प्रेस हो रहे हो। जो बोल रहा है, आप उसके बाइसेप्स देख रहे हो या उसकी क्लीवेज देख रहे हो। आप उससे इम्प्रेस हो रहे हो। इतना बढ़िया सेटअप करा है बिल्कुल फोर के नहीं एट के में वीडियो अपलोड हुआ है, आप उससे इम्प्रेस हो रहे हो। म्युजिक लगा दिया और जितनी चीज़ें होती हैं, सब कर दिया। आप उससे इम्प्रेस हो रहे हो।
आपको लगता है कि इसका मतलब कि ये जो नॉलेज मिला है, ये बिल्कुल टॉप क्लास है। नॉलेज टॉप क्लास होता, तो उसको इतने तरीके के प्रॉप्स की, बैसाखियों की, क्रचेस की ज़रूरत नहीं पड़ती ना कि उसको इतना सजाया, ये किया, वो किया। फ़िर तो नॉलेज तो सीधा था कि ऐसे आपको सामने एक पोस्टर में एक कोटेशन लिख दी गई होती बस। सिर्फ़ खाली टेक्स्ट। वाइट ओवर ब्लैक या ब्लैक ओवर वाइट। आप उतने में भी कह देते कि वाह! क्या बात है!
और ऐसे ही चलता था। हमने तो ऐसे ही पढ़ा है। ‘सफेद कागज पर काले अक्षर,ʼ उसी से ज्ञान लिया है। पर आप लोगों को तो म्युजिक के साथ चाहिए और बॉडी के साथ चाहिए और ढोल-ढमाके के साथ चाहिए। और ले लो नॉलेज के नाम पर कचरा।
एक बात अच्छे से याद रखना, कभी भी सफ़ाई अपने आप नहीं फैलती, अपने आप हमेशा गंदी फैलती है। कभी ऐसा हुआ है कि अपना गंदा घर आप छोड़कर के गए और एक महीने बाद वापस आए, तो वो साफ़ था। अपने आप साफ़ था। ऐसा होता है? आप अपना घर बिल्कुल गंदा-वंदा छोड़कर चले गए या अपना किचन आप गंदा छोड़कर चले गए और एक महीने बाद आए आपने ताला खोला, तो एकदम साफ़ था। ऐसा होता है क्या?
सफ़ाई अपने आप कभी नहीं फैलती। सफ़ाई अपने आप कभी नहीं हो जाती। सफ़ाई तो मेहनत से करनी पड़ी है पर गंदगी अपने आप फैल जाती है। आप अपना घर पूरा साफ़ करके छोड़ जाओ और आप महीने भर बाद वापस आओ, तो घर में आपको धूल मिलेगी।
यही इस इंफॉर्मेशन एक्स्प्लोज़न में हुआ है। गंदगी फैली है इससे क्योंकि उसी का फैलना आसान होता है। क्योंकि हमारा मन लगातार गंदगी के लिए ही लालायित रहता है। आप किसी को बिल्कुल कोई सही बात बताओ, ट्रू, ऑथेंटिक नॉलेज, बताओ, वो ज़्यादा रूचि से सुनेगा या किसी को आप ज़ायकेदार, मसालेदार बताओ, वो ज़्यादा रूचि से सुनेगा? बोलिए?
प्रश्नकर्ता: ज़ायकेदार, मसालेदार।
आचार्य प्रशांत: हाँ, तो गंदगी ज़्यादा तेजी से फैलती है ना। ये काम सोशल मीडिया ने किया है। ऐसी गंदगी जो हमेशा से थी पर फैल नहीं पा रही थी, सोशल मीडिया ने उसको फैलने का मौका दे दिया और गंदगी फैलाने वालों को इनफ्लुएंसर (प्रभावशाली व्यक्ति) का खिताब दे दिया। वो गंदगी हमेशा से थी पर वो सीमित रहती थी, फैलती नहीं थी। सोशल मीडिया ने एक प्लेटफॉर्म दे दिया कि अब गंदगी फैलाओ, जमकर फैलाओ और फैलाओ। जितना तुम फैलाते जाओगे, उतना हम कहेंगे कि तुम हीरो हो, इनफ्लुएंसर हो, ये हो, वो हो।
तुमको देश के बड़े-बड़े मंचों से हम पदक भी दिलवा देंगे। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री इनको अवार्ड दे रहे हैं। किस बात का? कि इन्होंने खूब गंदगी फैलाई है। सफ़ाई मेहनत वाला काम होता है। अच्छे से समझना, वास्तविक नॉलेज ना हमेशा थोड़ा बोरिंग लगेगा। इंट्रेस्टिंग (दिलचस्प) तो मसाला ही लगता है। जो लोग बोरडम (बोरियत) झेलने को तैयार नहीं हैं, उनको फिर ट्रू नॉलेज कभी मिलेगा भी नहीं।
वास्तविक नॉलेज में एक बार किताब पढ़नी पड़ती है फिर वापस लौटकर फिर वही पन्ना पढ़ना पड़ता है। एक तरह का रिकर्सन करना पड़ता है। उसमें कोई ऐसा नहीं होता कि हँसी के फ़व्वारे छूट रहे हैं, मादकता के फूल खिल रहे हैं। वो 'सो इंटरेस्टिंग!' सो इंटरेस्टिंग! ऐसा नहीं होता।
कोई आदमी गणित की किसी समस्या के साथ जूझ रहा हो, आप ये नहीं पाओगे कि वो ठहाके मार रहा है। आप ये नहीं पाओगे वो कह रहा होगा वाव! वाव! वो डूबा होता है। उसे बहुत बार जान लगानी पड़ती है। ट्रू नॉलेज का जो प्रोसेस होता है, वो लगता है वो थोड़ा-सा डल (उदासीन) होता है, थोड़ा बोरिंग होता है, एफर्ट इंटेंसिव (कठिन परिश्रम वाला) होता है। और जो आप यू-ट्यूब से, सोशल मीडिया से नॉलेज लेते हो, वो मज़ेदार होता है।
एक मिनट में कोई आकर आपको बिल्कुल अखंड ज्ञान दे गया। ‘बेटा, अगर ज़िंदगी तमीज से जीनी हो, तो जिन्होंने बदतमीजी करी हो, उन्हें जीने मत देना।ʼ और उसके बाद एक, ‘पेनेन पेनेन पेनेन पै, पेनेन पेनेन पेनेन पै ( बैकग्राउंड म्यूज़िक) या वो वर्जन, ‘तुझे रोने नहीं दूँगा,ʼ और आपने कहा, ‘क्या गजब की बात बोली है!ʼ दुनियाभर की सारी फिलॉसफी का सार बता दिया, ज़िंदगी तमीज़ से जीनी हो, तो जिसने बदतमीज़ी करी, उसे जीने मत देना। और गजब लग गई बात।
और दूसरी ओर, अब इतनी मोटी किताब है फिलॉसफी (दर्शन) की। ज़िंदगी को जानना हो, तो पढ़ना पड़ेगा। उसमें मेहनत लगती है। आपकी जेनरेशन (पीढ़ी) ने मेहनत बचाने के लिए ज़हर खा लिया बिल्कुल। रील से तो आप ज्ञान ले रहे हो। वहाँ से तो आपकी वैल्यूज़ (मूल्य) आ रही हैं। पॉडकास्ट से आपका नॉलेज (ज्ञान) आ रहा है। क्या होगा आपका? वही, जो हो रहा है, होगा नहीं, भविष्य में नहीं होगा, दिख रहा है होता हुआ।
इंग्लिश एक्सेंट में बात कर रहे हैं और सुपरस्टिशन (अंधविश्वास) परवान चढ़ा हुआ है। गजब का अंधविश्वास है। पूरे तरीके से वेस्टर्नाईज्ड (पश्चिमीकृत) हो गए हैं लेकिन ह्यूज़ली सुपरस्टिसीयश (अत्यधिक अंधविश्वासी) क्योंकि वो सुपरस्टिशन ही आ रहा इंग्लिश पॉडकास्ट में। तो बोलचाल, पहनावे से बिल्कुल क्या हो गए हैं, वेस्टर्नाईज्ड। लेकिन घोर सुपरस्टिसीयश है। आपका क्या नाम है?
प्रश्नकर्ता: पारुल।
आचार्य प्रशांत: पारुल। पारुल के नाम की स्पेलिंग है- पी, ट्रिपल ए, आर, ट्रिपल ओ, एल एल ए एन जेड। ये पारुल के नाम की स्पेलिंग है। क्यों? क्योंकि इनको किसी यू-ट्यूब वाले न्यूमेरोलॉजी वाले ने बताया या जो भी होता है कि ये करना। तंत्र वाले ने बताया कि तीन चीज़ें होनी चाहिए ज़िंदगी में, तो 'ए' भी तीन बार आना चाहिए और 'ओ' भी तीन बार आना चाहिए क्योंकि 'ए' और 'ओ' दोनों क्या है, अल्फाबेट में वॉवेल्स हैं। और पारुल ने अपना नाम लिखा है पी ट्रिपल ए आर डबल ओ एल एन जेन....। ये आपकी जनरेशन, पॉडकास्ट से आपने सीखा ये सब।
अगर हम थोड़ा-सा जगे हुए लोग होते ना, तो इन सब चीज़ों पर प्रतिबबंध लग जाता। इन सब लोगों से हिसाब माँगा जाता। इन पर चार्जशीट भी हो सकती थी। ये तुम क्या फैला रहा हो? क्योंकि ये संवैधानिक अपराध है। अप-होल्डिंग साइंटिफिक टेंपरामेंट (वैज्ञानिक स्वभाव कायम रखना), ये कांस्टिट्यूशनल वैल्यू (संवैधानिक मूल्य) है भारत के संविधान की। जो आदमी जनता में अंधविश्वास फैला रहा हो, वो संविधान के प्रति दोषी है।
पर अभी जैसी हवा चल रही है, उसमें संविधान का तो वैसे भी कोई महत्व रह नहीं गया है। रीडिंग (पढ़िए) करिए, रीडिंग। है ना। और जवानी से अच्छा टाइम नहीं होता रीडिंग करने के लिए। पचास की उम्र में जाकर के कुछ रीडिंग अगर कर भी ली, तो यही पता चलेगा कि हाय राम! चूक गए। पछताने के लिए रीडिंग करनी हो, तो पचास के बाद कर लेना और जीने और जीतने के लिए रीडिंग करनी हो, तो दस की उम्र में, बारह की उम्र में, अठारह की उम्र में, बाइस की उम्र में कर लो। और बेटा पढ़े बिना तो बात नहीं बनेगी।
जितना टाइम यू-ट्यूब पर और इंस्टाग्राम पर और इन पर लगाते हो, वो सब टाइम जो है, हटाकर के बुक्स पर लगाओ, बुक्स पर। और बुक्स भी यू-ट्यूबर वाली नहीं। किताब देखा, किताब पर लिखा हुआ है ऊपर-ओवर टू मिलियन सबस्क्राइबर्स (ग्राहक)। मैंने कहा किताब के सबस्क्राइबर हो गए? किताब के कवर पेज पर लिख रखा है-ओवर टू मिलियंस सबस्क्राइबर्स। ये क्या गज़ब हो गया! किताब के भी सबस्क्राइबर्स हैं? क्यों लिख रखा है?
क्योंकि ये भाई कोई रीलर है, इंस्टाग्रामर है, इंस्टाग्राम पर इनके दो मिलियन हैं। तो इंस्टाग्राम पर इन्होंने जो टट्टी फैलाई है उसी की इन्होंने किताब छाप दी। और किताब बिके इसीलिए ऊपर क्या लिखा है? ओवर टू मिलियन सबस्क्राइबर्स या फॉलोअर्स या जो भी। ये इनका क्लेम टू फेम (प्रसिद्धि का दावा) है। हम रीलें बहुत अच्छी बनाते हैं, हमारी किताब पढ़ लो।
किताब भी उनकी पढ़ो जो पढ़ने लायक हैं। नहीं समझ में आ रहा हो, तो किसी ऐसे से बात कर लो कि कौन सी किताबें पढ़े, कैसी हो रीडिंग लिस्ट, जिसको लगे कि कुछ जानता है ज़िंदगी में। और कुछ नहीं समझ में आ रहा तो कई बार गूगल पर सर्च करो। टॉप हंड्रेड क्लासिक्स (सर्वश्रेष्ठ सौ उत्कृष्ट कृति), टॉप हंड्रेड मोस्ट इंपोरटेंट बुक्स (सर्वश्रेष्ठ सौ अति महत्वपूर्ण किताबें), टॉप हंड्रेड मोस्ट रेड बुक्स (सर्वश्रेष्ठ सौ अधिक पढ़ी जाने वाली किताबें)। ऐसे कर-करकर के जो इंटरसेक्शन (प्रतिच्छेदन) आए इन सब लिस्ट का, इन सब सेट्स का, उसमें समझ जाओगी ये किताबों हैं, मैं इनसे शुरूआत कर सकती हूँ।
और बाकी कुछ इस पर भी होता है कि अपने रूचि का क्षेत्र क्या है। कोई फिलॉसफी (दर्शन) से शुरू करना चाहता है, कोई हिस्ट्री (इतिहास) शुरू करना चाहता है, कोई इकोनॉमिक्स (अर्थशास्त्र) से शुरू करना चाहता है, कोई फिक्शन (कल्पना) से शुरू करना चाहता है, कोई अध्यात्म से शुरू करना चाहता है। ठीक है। उससे ज़्यादा कोई नहीं बर्बाद हो रहा जो अपना पढ़ने का समय रील देखने पर लगा रहा है या पॉडकास्ट देखने पर लगा रहा है और ये सोच रहा है कि पॉडकास्ट देखकर ज्ञानवर्धन हो गया।
और अगर आप एक पॉडकास्टर हैं और बदकिस्मती से आप इस वीडियो को देख रहे हैं, तो मैं आपसे हाथ जोड़कर निवेदन करता हूँ। टुच्चे व्यूज़ और सस्ती सफलता की खातिर अपने पॉडकास्ट में नकली लोगों को बुलाना बंद करो। तुम पूरी मानवता के गुनहगार बनते जा रहे हो अगर ये काम कर रहे हो। तुम अपने आप को कैसे मुँह दिखाओगे। तुमने इतने लोगों के मन को खराब करा वो पॉडकास्ट पब्लिश करके। तुम आईने के सामने कैसे खड़े हो?
तुम अच्छे से जानते हो कि तुम ये जो पॉडकास्ट पब्लिश कर रहे हो, ये पूरी दुनिया के लिए कितना नुकसानदेह है। तुम क्यों कर रहे हो ये काम? और यही मैं उनसे बोलूँगा जो तरह-तरह का सूडो साइंस (छद्म विज्ञान) और सुपरस्टिशन का चैनल चलाते हैं।
नालायकी करके कोई चैन से नहीं जी सकता। मत करो ये नालायकी। बंद कर दो ये चैनल। कोई ढंग का गरिमा का काम खोज लो अपने लिए। क्यों जवान लोगों की ज़िंदगियाँ बर्बाद कर रहे हो ये चैनल चलाकर। ये एक विशियस साइकिल है (दुष्ट चक्र) पारुल।
जिसने रीडिंग जितनी कम करी होती है, वो उतनी आसानी से यू-ट्यूब के फेर में आ जाता है क्योंकि वहाँ आपकी सारी सेंसेस (इन्द्रियों) को गुलाम बना लिया जाता है ना। आप एक पॉडकास्ट देख रहे हो। अब उसमें जो इंटरव्यूअर है, वो ऐसी-ऐसी शक्लें बना रहा है। आपको लग रहा आप नॉलेज ले रहे हो। पर आपको जो चीज़ अच्छी लग रही है, वो ये है कि ये देखो ये बैठा हुआ है कितना क्यूट (मासूम) लग रहा है और ये कैसी-कैसी शक्लें बनाता है। अब उसकी शक्लें बनाने से आपको नॉलेज (ज्ञान) मिल रहा है क्या?
लेकिन आप अट्रैक्ट (आकर्षित) हो रहे हो। आपको पता भी नहीं चलेगा कि आप अट्रैक्ट तो हुए हो पर नॉलेज की तरफ़ अट्रैक्ट नहीं हुए हो। आप वो जो इंटरव्यूअर है, वो लड़का है, लड़की है, आप उसकी शक्ल की ओर अट्रैक्ट हुए हो। एट्रीब्यूशन एरर (आरोपण त्रुटि) हो जाएगा। अट्रैक्शन तो होगा पर पता नहीं चलेगा कि अट्रैक्शन एट्रीब्यूट (आरोपित) किसको करें। मतलब अट्रैक्शन किस वजह से हुआ है।
तो आपको लगेगा कि वो नॉलेज था, इतना अच्छा था कि मुझे पॉडकास्ट अच्छा लगा। आपको नॉलेज की वजह से पॉडकास्ट अच्छा नहीं लगा है। वो जो या तो वो जो इंटरव्यू लेने वाला है या जो इंटरव्यू देने वाला है, दोनों में से कोई ज़रा मीठी तरीके से बात कर रहा था या सज-धजकर आ गया था, आकर्षक था इसीलिए आपको पॉडकास्ट अच्छा लग गया।
मैं कह रहा हूँ विशियस साइकिल है। जितना कम पढ़े-लिखे रहोगे, तुम्हें पॉडकास्ट उतने ज़्यादा अच्छे लगेंगे और तुम पॉडकास्ट में इतना फँसते जाओगे, पढ़ने की तुम्हारी संभावना उतनी कम होती जाएगी। जो सबसे कम पढ़े-लिखे लोग होते हैं, वही यू-ट्यूब और सोशल मीडिया के झाँसे में सबसे ज़्यादा आते हैं। और जितना ज़्यादा वो सोशल मीडिया वाले चक्कर में फँसते जाते हैं, उतना उनके पढ़ने की प्रोबेबिलिटी (संभावना) और कम होती जाती है। और ये बढ़ता ही जाता है सब। अ रेस टू द बॉटम (नीचे तक की दौड़)।
प्रश्नकर्ता: धन्यवाद आचार्य जी।