सोशल मीडिया, पॉडकास्ट और तंत्र-मंत्र का खेल

Acharya Prashant

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सोशल मीडिया, पॉडकास्ट और तंत्र-मंत्र का खेल
आपने कोई किताब नहीं पढ़ी, आप बैठकर पॉडकास्ट देख रहे हो। आप जो-जो बोला जा रहा है, पहले तो आपको पता नहीं चलेगा कि वो जो आदमी वहाँ बैठा है, वो यूँही कोई फ्रॉड, फ़र्जी है या कोई असली आदमी है। ज़्यादातर जो लोग आते हैं, वो फ्रॉड ही होते हैं। और दूसरी बात, अगर वो मान लो असली आदमी भी है जो पॉडकास्ट में बैठा है, तो उसकी बात आपको समझ में नहीं आएगी क्योंकि आपकी अपनी तो कोई प्रिपरेशन, कोई ग्राउंडिंग है ही नहीं। आपने आज तक कोई किताब नहीं पढ़ी, तो वो जो बोल रहा है, वो समझ में भी नहीं आएगा। यह सारांश प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के स्वयंसेवकों द्वारा बनाया गया है

प्रश्नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी। मेरा सवाल हाल ही में हुई तीन घटनाओं को लेकर है। एक गाज़ियाबाद में एक व्यक्ति ने यूट्यूब तांत्रिकों के प्रभाव में आकर एक हत्या कर दी। और वहीं गुजरात में एक तांत्रिक को कई हत्याओं के आरोप में पुलिस ने हिरासत में ले लिया। और वहीं कुछ दिनों पहले यूपी में एक स्कूल के मालिक ने सैकेंड क्लास के बच्चे की बलि दे दी।

तो ये घटनाएँ सुनने में तो बड़े बीते ज़माने की लगती हैं, पुरानी लगती हैं लेकिन आज-कल ये आए दिन हो रही हैं। इसलिए, ये जिसको हम मॉर्डन सोसाइटी (आधुनिक समाज) बोलते हैं, उसमें ये अंधविश्वास और तंत्र-मंत्र का इतना प्रभाव क्यों देखने को मिल रहा है? ऐसा क्यों हो रहा है?

आचार्य प्रशांत: ये आप जो दूसरी खबर बता रहे हैं, आपने अगर पूरी बताई होती, तो उसी में उत्तर छुपा हुआ था न? वो जो गुजरात वाला अभी मामला है, उसमें भी उस व्यक्ति ने बताया है कि उसको प्रेरणा यूट्यूब से ही मिली है, अगर मैं उसी मामले की बात कर रहा हूँ जिसकी आप बात कर रही हैं। और उसमें अब ताज़ा खबर, आज की खबर ये है कि उस व्यक्ति की पुलिस हिरासत में मौत भी हो गई है।

ये जो तांत्रिक पकड़ा गया था, जो कम-से-कम दस-बारह लोगों को मार चुका था और शायद ये उनको सोडियम नाइट्राइट पिलाकर मारता था। और इसने भी ये सारा जो काम है, ये सीखा यूट्यूब से ही था कि तंत्र वगैरह की बातें कैसे करनी हैं और कौनसी बातें बोल दो तंत्र की तो लोग सुन लेते हैं। ये सब उसने खुद ही कबूला है।

जो पहली आपने घटना बोली थी, वहाँ भी वही निकलकर आया था कि वहाँ तो दो व्यक्ति थे जिन्होंने एक की हत्या की क्योंकि यूट्यूब पर ही उन्हें कोई तांत्रिक मिला था जिसने बोला था कि हत्या अगर कर दोगे तो तुमको पचास करोड़ मिल जाएगा। शायद कुछ ऐसा बोला था कि उसकी हत्या करके उसका खोपड़ा अपने पास रखना और उस खोपड़े की पूजा-वूजा करना तो इससे हो जाता है।

और इससे ये सारा काम बिलकुल चल यूट्यूब से ही रहा है, क्योंकि आप कहाँ जाओगे ऐसा तांत्रिक-वांत्रिक खोजने। तो यूट्यूब पर मिल जाता है। ये है पूरी कहानी इसकी। इसमें बात तो बहुत सीधी है, इसमें मैं आपको क्या बताऊँ। जब ऐसी कोई घटना हो जाती है, मर जाते हैं लोग, फिर कई बार उस घटना को दबाने के लिए पुलिस भी अपराधी को मार देती होगी, क्योंकि अपराधी अगर ज़िंदा रह गया तो न जाने कौन-कौनसे राज़ खोल देगा।

गुजरात पुलिस ने — जो ये तांत्रिक था — कहा है कि ये तो बेचारा कस्टडी (हिरासत) में ही मर गया, इसने खुद ही आत्महत्या कर ली। अगर मैं सही समझ रहा हूँ, जिस केस की आप बात कर रही हैं अगर मैं उसी की बात कर रहा हूँ तो। पुलिस कस्टडी में मर गया। पता नहीं वो कौनसे राज़ बताता कि यूट्यूब पर उसने क्या देखा था, किसको देखा था यूट्यूब पर। तो वो सब अब कभी पता नहीं चलेगा, सब राज़ दफ़न हो गए।

लेकिन आप बात सिर्फ़ तब करने आई हैं जब मौतें हो गईं बहुत सारी। जब तक मौतें नहीं हुई थीं, तब तक इन्हीं तांत्रिकों की बातें, इनके जो भी ये वहाँ पर अपना फ़ूँ-फ़ाँ कर रहे थे, वो आप भी देखते थे और उसके मिलियंस (लाखों) व्यूज़ भी आते थे। जब जो व्यक्ति इन तांत्रिकों से प्रभावित होता है, वो उन व्यूज़ से भी तो प्रभावित होता है न, कि आपने दिखाया कि वो — खासकर पॉडकास्ट दिखा दिया आपने तांत्रिक का और (मिलियंस व्यूज़ भी आ गए)।

बहुत सारे पॉडकास्ट हैं, वो तो चलते ही इसी बुनियाद पर हैं। एक तांत्रिक, दूसरा तांत्रिक, तांत्रिक लाओ, मिलियंस ऑफ़ (लाखों) व्यूज़ पाओ। तांत्रिक आकर ये बताएगा, वो बताएगा। ‘बैल की खोपड़ी, ऊँट का पाँव, आदमी का गला, इन सबको मिलाकर ऐसे-ऐसे करो फ़लानी रात को, फ़लानी नदी के किनारे या शमशान में, तो ये निकल आता है।’

आप भी तो उसी के समर्थक हो न, आप भी तो उसी को पैट्रनाइज़ (प्रसिद्ध) करते हो। नहीं तो उन सब विडियोज़ के ये मिलियंस ऑफ़ व्यूज़ कहाँ से आ जाते। और आप जो मिलियंस ऑफ़ व्यूज़ देते हो ये तांत्रिकों के चैनल को या तांत्रिकों के पॉडकास्ट को, उसी से फिर आम आदमी भी ये सब करना शुरू कर देता है, आज़माना ही शुरू कर देता है।

ये आपने सिर्फ़ तीन मौतें बताई हैं। ये अब २०२४ बीत रहा है, इस साल इस तरह के दर्जनों मामले आए हैं। तंत्र वगैरह से संबंधित अपराधों में, हत्याओं में गजब की वृद्धि हुई है पिछले एक-दो सालों में। और इसमें वो लोग तो चलिए गुनहगार हैं ही जिन्होंने ये सब किया, वो भी गुनहगार हैं जो तांत्रिक बनकर बैठे हैं।

जिसने तांत्रिक के प्रभाव में आकर हत्या वगैरह कर दी, वो भी गुनहगार हैं, तांत्रिक भी गुनहगार है पर क्या आम आदमी गुनहगार नहीं है? क्या जो पूरी इस वक्त हवा बह रही है, वो गुनहगार नहीं है? उस हवा में तो यही है न कि जो कुछ भी लोक संस्कृति में चलता रहा है, परंपरा में चलता रहा है, वो सब श्रेष्ठ है। वो सब हिंदू धर्म का हिस्सा है, और उस पर आपत्ति करोगे तो तुम एंटी हिंदू कहलाओगे। तो हिंदू धर्म को आगे बढ़ाने के लिए ये सब जितनी कचरा बातें हैं, इन सब बातों को आगे बढ़ाओ।

क्योंकि हिंदू धर्म का असली मतलब क्या है वो तो किसी को पता है नहीं। कौनसा किसी ने श्रुति, ग्रंथ पढ़े हैं। तो उनके लिए जो कुछ भी ‘ओम फट फाम फुट’ होता है, यही धर्म है। यही हवा बह रही है। यही आम आदमी कह रहा है। इसी की पॉलिटिक्स (राजनीति) भी चल रही है। तो जब हवा ही ऐसी बहेगी, तो उसमें फिर पत्ते तो झड़ेंगे न?

इतनी रुचि से आप लोग ये वीडियोज़ देखते हो, उन्हीं वीडियोज़ के ऊपर ये हत्याएँ हैं। उन्हीं वीडियोज़ से खून चू रहा है। आपने ही देखे हैं और नीचे आप लोग हज़ारों कमेंट करते हो कि मज़ा आ गया, मज़ा आ गया, ’अननोन सीक्रेट्स ऑफ़ हिंदुइज़्म’ (हिंदुत्व के अनजाने रहस्य)। ऐसा एक होगा वीडियो, ‘रॉ एंड रियल तंत्राʼ और आप ही उसको जा-जाकर के देखोगे भी और शेयर भी करोगे। अब उससे मौतें भी हो रही हैं, कर लो?

जितने तरीके की बिलकुल अजायबघर वाली बकवास थीं, वो धर्म का चोला पहनकर वापस आ गई हैं। जो कुछ हमें लगा था कि समय की धूल है, वो साफ़ हो रही है और धीरे-धीरे धर्म का वास्तविक स्वरूप अब निखरकर सामने आएगा, उसकी जगह पुराना कचड़ा पूरे रौब-रूतबे, शोर के साथ और शान के साथ वापस लौटा है। और ये नहीं कि इसमें बस कोई पुरानी पीढ़ी ज़िम्मेदार है। आप लोग, युवा लोग, पढ़े-लिखे लोग, इंग्लिश स्पीकिंग (अंग्रेज़ी बोलने वाले) लोग, आप लोग हो जो इनमें सबसे ज़्यादा रुचि लेते हो। क्यों आपको बहुत एग्ज़ॉटिक (अजीब) लगता है। आप उसको बोलते हो, ‘द ऑकल्ट’ (रहस्यमय)।

आपके लिए धर्म और अध्यात्म का मतलब ऑकल्टिज़्म (रहस्यवाद) हो गया है। ऑकल्टिज़्म मतलब क्या? यही झाड़-फूँक, भूत-प्रेत, डायन-चुड़ैल, आपके लिए यही धर्म है। ये तंत्र वगैरह के पॉडकास्ट और वीडियो पर जो सब कमेंट होते हैं, वो जवान लागों के ही तो होते हैं। इनको ये सब कैसा लगता है? बहुत एग्ज़ॉटिक, ‘वाउ, नाउ दैट्स रियल इंडियन तंत्राʼ (अब ये असली भारतीय तंत्र-मंत्र है)।

भाई, आपको तंत्र के बारे में जानना है तो आप किताब पढ़ोगे न, या आप वीडियो देखोगे? यूट्यूब कब से ज्ञान का स्त्रोत बन गया? कोई भी आदमी जो बोले कि मैं यूट्यूब देखता हूँ ज्ञान के लिए, सबसे पहले तो वही छिछोरा। जिसको नॉलेज़ चाहिए, वो किताब पढ़ेगा। किताब नहीं पढ़ सकता तो कम-से-कम गूगल करेगा, विकिपीडिया पढ़ेगा। ये वीडियोबाज़ी कब से ज्ञान का स्त्रोत बन गई?

वो भी किसका वीडियो? जो किसी भी तरीके से एक्सपर्ट (विशेषज्ञ) नहीं है, जिसके विशेषज्ञ होने का कोई प्रमाण नहीं है। बस जो आकर के आपसे ऐसी लच्छेदार, रसीली बातें कर रहा है, गजब की ऐसी कहानियाँ सुना रहा है, भूत-प्रेत की रोमांचक कहानियाँ, मनोहर कहानियाँ कि आप बच्चे और आप उसमें बिलकुल बह गए और आपने कह दिया, ‘टुडे आय गेन लॉट ऑफ़ नॉलेज़ अबाउट रियल ऑथेंटिक इंडियन तंत्रा, वी नीड वन मोर एपिसोड’ (आज मैंने भारतीय तंत्र-मंत्र के बारे में बहुत सारा ज्ञान अर्जित किया, हमें एक और प्रसंग चाहिए)।

क्या समस्या है आप लोगों की पीढ़ी को? आप किताबें क्यों नहीं पढ़ सकते हो? आपको वेदांत जानना है तो उपनिषद् पढ़ोगे न, या वीडियोबाजी करोगे? और संक्षिप्त होते हैं उपनिषद्, प्रिसाइज़ (सटीक), पढ़ा जा सकता है। वीडियो भी देखना है तो वो वीडियो देखोगे न जिसमें सच में उपनिषद् पर बात हो रही हो, या वो वीडियो देखोगे जिसमें कुछ भी हवा-हवाई इधर-उधर फ़ायर हो रहा है?

आप लोगों के ऊपर बहुत संकट है। इस इंफ़ॉर्मेशन एक्स्प्लोज़न (सूचना का विस्फोट) में आपको सिर्फ़ मिसइंफ़ॉर्मेशन (गलत जानकारी) और डिसइंफ़ॉर्मेशन (दुष्प्रचार) मिल रहे हैं। हमारी पीढ़ी तो बच गई। हमने किताबें पढ़ लीं, पर आप इंफ़ॉर्मेशन एज़ (सूचना युग) की पैदाइश हो और कोई इंफ़ॉर्मेशन नहीं मिल रही आपको सिर्फ़ झूठ मिल रहा है इंफ़ॉर्मेशन के नाम पर।

हमें इंफ़ॉर्मेशन कम थी, हमें बुक स्टोर जाकर किताबें खरीदनी पड़ती थी। चलो, हम मेहनत कर लेते थे। आपको इंफ़ॉर्मेशन बहुत ज़्यादा है। पर जो इंफ़ॉर्मेशन आपको है, वो निन्यानवे-दशमलव-नौ प्रतिशत सिर्फ़ कचरा है और झूठ है।

इंफ़ॉर्मेशन एक्स्प्लोज़न से सच नहीं फैला है, झूठ फैला है। आप ज़्यादा नहीं जानते हो, आप बहुत गलत जानते हो। और जो जानने लायक चीज़ें हैं, वो कचरे के नीचे इतनी दब गई हैं कि उनको आप नहीं जानते हो। दिन-रात बैठकर के कोई तांत्रिक का वीडियो देख रहा है, कोई कुछ देख रहा है अब तो। तांत्रिक आकर हवा-हवाई बातें बता रहा है इंटरव्यू में, वो देख रहे हो।

किताब एक नहीं पढ़ी है। तंत्र है क्या, ज़्यादा नहीं तो एक किताब पढ़ लो इस पर, कोई पतली सी किताब ही पढ़ लो। उसके बाद वो तांत्रिक तुमको मूर्ख लगेगा बिलकुल कि ये क्या बोल रहा है तंत्र के नाम पर। सब्ज़ेक्ट मैटर एक्सपर्ट (विषय विशेषज्ञ) से बात की जाती है, पहली बात तो फ़ेस-टू-फ़ेस (आमने-सामने)। किसी भी अंडू-पंडू से थोड़े ही बात की जाती है। और दूसरी बात सब्ज़ेक्ट मैटर एक्सपर्ट से तब बात की जाती है जब पहले सब्ज़ेक्ट (विषय) में अपनी थोड़ी ग्राउंडिंग (प्रारंभिक शिक्षा) हो गई हो।

आप इकोनॉमिक्स (अर्थशास्त्र) के स्टूडेंट्स (छात्र) हैं मान लीजिए। तो आप पहले एक सेमेस्टर या एक साल तक इकोनॉमिक्स पढ़ोगे। ठीक है न? उसके बाद आपके कॉलेज में आरबीआइ के गर्वनर को हो सकता है बुलाया जाए कि आकर के बच्चों को एक लेक्चर दे दो। वो अच्छी बात है कि आपका फ़ेस-टू-फ़ेस हो रहा है किसी एक्सपर्ट (विशेषज्ञ) के साथ। अब आप इस हालत में भी हो कि उस एक्सपर्ट की कोई बात समझ पाओ। दोनों बातें हैं। पहले तो इसको बुलाया जा रहा है, वो एक बोनाफ़ाइड (प्रामाणिक) एक्सपर्ट है। दूसरी बात, आपने एक साल तक किताबें पढ़ी हैं तब जाकर के आप उस एक्सपर्ट की बात से लाभ लेने की स्थिति में पहुँचे हो।

आपने कोई किबात नहीं पढ़ी, आप बैठकर पॉडकास्ट देख रहे हो। आप, जो-जो बोला जा रहा है — पहले तो आपको पता नहीं चलेगा कि वो जो आदमी वहाँ बैठा है, वो यूँही कोई फ़्रॉड, फ़र्जी है या कोई असली आदमी है। ज़्यादातर जो लोग आते हैं, वो फ़्रॉड ही होते हैं। और दूसरी बात, अगर वो मान लो असली आदमी भी है जो पॉडकास्ट में बैठा है, तो उसकी बात आपको समझ में नहीं आएगी क्योंकि आपकी अपनी तो कोई प्रिपरेशन (तैयारी), कोई ग्राउंडिंग है ही नहीं।

आपने आज तक कोई किताब नहीं पढ़ी, तो वो जो बोल रहा है, वो समझ में भी नहीं आएगा। जब समझ में नहीं आएगा तो आप कहोगे, ‘वो बोर कर रहा है।’ वो बोर कर रहा है तो आप देखोगे नहीं। उसको व्यूज़ नहीं दोगे। जब उसको व्यूज़ नहीं दोगे तो वो आगे और कहीं जाकर के बोलेगा नहीं।

आप यूट्यूब पर व्यूज़ किसको देते हो? जो सबसे मक्कार होगा, जो सबसे लच्छेदार बातें करता होगा, उसको ही तो देते हो आसानी से। क्योंकि वो बातें फिर ऐसी बोलता है न जो बिना किसी तैयारी, बिना किसी मेहनत के भी आपको समझ में आ जाए। आपको कुछ जानना न पड़े, कोई श्रम न करना पड़े, आपको बदलना न पड़े, आपको अपने स्तर पर ही रहते हुए लगे कि मुझे सब समझ में आ गया। तो फ़िर आप कहते हो ये बहुत बढ़िया आज सुना मैंने। लाइक, शेयर, कमेंट सब कर दोगे।

बाबा जी की बातें सुन रहे हो, कभी पूछो तो, ‘बाबा जी आपने कोई किताब पढ़ी? बाबा जी, आपने कोई किताब लिखी?ʼ ये सवाल ही नहीं आता मन में। न बाबा जी ने कोई किताब पढ़ी है, न बाबा जी ने कोई किताब लिखी है। बाबा जी ने बस एक चीज़ में महारत हासिल की है, तुम्हारा मनोरंजन करने में। मनोरंजन कैसे करना है और लोगों का मनोविज्ञान, कैसे पकड़कर उनको मूर्ख बनाना है, बाबा जी बस ये जानते हैं।

और इतने जो वहाँ जाकर भक्त बैठ जाते हैं, कोई पूछते भी नहीं कि बाबा जी, ये जो सब ज्ञान बता रहे हो, ऐसा होता है, वैसा होता है, भगवान यहाँ आते हैं, फिर भगवान ये कर देते हैं, फिर फ़लानी देवी ऐसे करती हैं, फिर उस वन में ऐसा होता है, ये सब जो ज्ञान बता रहे हो, इसका स्त्रोत क्या है। या यूँही बस सपने में उछाल दिया। और बाबा जी इतने ज्ञानी हो तो एकाध किताब लिखी भी होगी तुमने, वो भी दिखा दो। कुछ नहीं है।

कुछ तुम्हें पूछना नहीं। ये सब जो है, ये पुस्तकों के अपमान का नतीजा है और अभी तुम्हें इसके और भयावह परिणाम देखने को मिलने वाले हैं। ये जो शॉर्ट अटेंशन स्पैन (कम ध्यान अवधि) है न रीलों वाला, ये खा गया तुम्हारी पीढ़ी को। ये सब जितने पकड़े गए हैं, ये भी कोई बूढ़े लोग नहीं हैं। ये भी सब जवान ही लोग हैं। ये एक-एक मिनट की रीलबाज़ी के कारण किताब अब आप लोगों से पढ़ी ही नहीं जाती। अब आप कहते हो, ‘हम यूट्यूब पर देख लेंगे।ʼ

किताब नहीं पढ़ोगे तो ये भी नहीं पता चलेगा कि यूट्यूब पर जो तुम्हें परोसा जा रहा है, वो कितना असली, कितना नकली है। आप बस इंप्रेस (प्रभावित) जल्दी से हो जाओगे और जो देखोगे, सुनोगे, कहोगे, ‘अब जाकर इसका प्रैक्टिकल (प्रयोग) भी कर डालते हैं।ʼ

तो लो, हो गया प्रैक्टिकल। इतनी मौतें भी हो गईं और हर हफ़्ते दस दिन में यही तंत्र-मंत्र से जुड़ा कोई बहुत भयानक खूनी किस्सा हमारे सामने आ जाता है। और मैं हर बार कहता हूँ ये जो यूट्यूब पर अब तंत्र की इतने ज़बरदस्त वीडियोबाज़ी चल रही है, यही ज़िम्मेदार है। कोई नहीं एफ़आइआर करने वाला इन पर।

एक स्कूल के प्रिंसिपल ने मार दिया भाई अपने स्कूल के लड़के को, कि स्कूल के बच्चे को मार दूँगा तो इससे स्कूल में तरक्की होगी या मेरे घर में तरक्की होगी या पता नहीं क्या। किसी तांत्रिक ने उसको बताया था और वो भी यूट्यूब से ही सीखकर आया था। और ये सब वो घटनाएँ हैं जो सामने आ गईं। आमतौर पर इन घटनाओं में जिनको मारा जाता है, वो या तो बच्चे होते हैं या गरीब कमज़ोर किस्म के लोग होते हैं, जिनका कोई नाम लेवा नहीं होता। तो ज़्यादातर घटनाएँ तो छुपी भी रह जाती हैं।

और ये अभी हमने जो बात की वो तो सिर्फ़ इंसानों के कटने की। इस चक्कर में जानवर कितने कट रहे हैं, उसका तो कोई हिसाब ही नहीं। जानवर की बलि देने से फ़लानी चीज़ मिल जाएगी, ये सब भी तंत्र के नाम पर ही चलता है। खैर, ये ज़्यादा पुराना है। ये यूट्यूब से नहीं आ गया। पर यूट्यूब इसको भी बढ़ाने की पूरी कोशिश कर रहा है।

जितने तरीके के छद्म विज्ञान हो सकते हैं, नकली साइंस, सूडो साइंस, उसको कौन बढ़ा रहा है? सोशल मीडिया, और कौन बढ़ा रहा है। इसीलिए कह रहा हूँ कि आपकी पीढ़ी बहुत अन्फ़ॉर्चूनेट (बदकिस्मत) है कि उसे इस इंफ़ॉर्मेशन एक्स्प्लोज़न में पैदा होना पड़ा। जितने तरीके के झूठ को आप लोग सच मानते हो, हमने कभी नहीं माना था।

और आप लोग झूठ को इसीलिए सच मानते हो; जर्मन प्रोपेगेंडा (प्रचार) शास्त्री था गोएबल्स। उसने कहा था, ‘झूठ को भी अगर सौ बार दोहराओ, तो वो सच हो जाता है।’ इतनी बार आपके सामने सोशल मीडिया पर झूठ दोहराया जाता है, ‘इतना शेयर, इतने मिलियन व्यूज़, इतने लाइक्स, ये, वो।’ आपको लगता है सच ही होगा।

और यहाँ किताबों की दुकानें बंद होती जा रही हैं। किताबों की दुकानों पर खिलौने बिकने लग गए। किताबों की दुकानों पर कुकवेयर बिकने लग गया। क्रॉकरी बिक रही है। लॉन्ज़री बिक रही है। किताबें कोई अब खरीदना-पढ़ना नहीं चाहता।

और इससे भी बड़ा गज़ब आपको बताऊँ। यही लोग जो यूट्यूब पर गंदगी मचाते हैं, यही अब किताबों के ऑथर (लेखक) बन गए। तो पहले तो कोई किताबें पढ़ना नहीं चाहता और जो थोड़ी-बहुत किताबें बिक भी रही हैं, वो इन्हीं यूट्यूबरों की बिक रही हैं। इन्हीं की क्यों?

क्योंकि आपने इनका मुँह देखा है। तो कहीं किताब की दुकान की खिड़की में आप इनकी किताब देख लेते हो। किताब के कवर पेज से इनका मुँह झाँक रहा होता है। आप खरीद लेते हो। आप फ़ैन (प्रशंसक) बन गए हो न भाई। असली ऑथर कहाँ गए? वो गायब हो गए। असली ऑथर गायब हो गए। कौन पढ़े उनको।

लेकिन हाँ, अभी भी लोग हैं जिन्हें खरा ज्ञान चाहिए। जो कहते हैं, ’ऑथेंटिक नॉलेज़ (प्रामाणिक ज्ञान) चाहिए,' वो किताबें भी पढ़ते हैं, खरीदते भी हैं, प्रोपेगेंडा (झूठ के प्रचार) से भी दूर रहते हैं और पॉडकास्ट से नॉलेज़ इकट्ठा करने नहीं जाते।

‘इफ़ यू वांट टू लर्न समथिंग, लर्न इट फ़्रॉम ए पॉडकास्टʼ (यदि तुम कुछ सीखना चाहते हो, तो पॉडकास्ट से सीखो), इससे ज़्यादा वाहियात, बेवकूफ़ी की बात नहीं हो सकती। तुम पॉडकास्ट देखकर के दसवीं का बोर्ड भी पास कर सकते हो क्या?

प्र: नहीं।

आचार्य: तो हाइयर (उच्च) नॉलेज़ कहाँ से पॉडकास्ट से ले लोगे? ‘पर आचार्य जी, पॉडकास्ट पर तो आप भी बहुत जाते हैं?ʼ

तो झाड़ू लेकर क्या करें, अपने ही सिर पर मारें? जहाँ गंदगी होगी, झाड़ू लेकर के वहीं उतरना पड़ेगा न? तो जाते हैं। गटर (नाला) की सफ़ाई करने के लिए गटर में ही उतरना पड़ता है न? आप सब लोग मुझे मिलोगे कहाँ? वहीं मिलते हो मुझे, पॉडकास्टर्स के यहाँ। आप भी मुझे पहले कहाँ देखकर आई थीं? देखा होगा मुझे भी कहीं इधर-उधर ही। या तो हमारे शार्ट्स देख लिए होंगे। या कहीं इधर-उधर देखा होगा कि आचार्य जी फ़लाने के यहाँ गए थे, वहाँ मैंने देखा।

डेढ़ सौ किताबें हैं हमारी। डेढ़ सौ किताबों का मैं ऑथर हूँ। जिसमें से दस ऐसी हैं जो नेशनल बेस्ट सेलर हैं। उसको प़ढ़कर तो आप नहीं आए होंगे। क्यों नहीं आए होंगे, कारण भी बता देता हूँ। बेस्ट सेलर होना बहुत आसान होता है। हिंदी में अगर कोई किताब कुछ महीनों में पाँच हज़ार कॉपीज़ (प्रतियाँ) बिक जाएँ, तो वो बेस्ट सेलर कहलाती है। और अंग्रेज़ी में अगर कुछ महीनों में आठ-दस हज़ार कॉपी बिक जाएँ, तो भी बेस्ट सेलर हो जाती है।

इतनी सारी तो आचार्य प्रशांत की बेस्ट सेलर्स हैं, लेकिन कोई नहीं मिलता जो किताब पढ़कर आया हो। कोई शार्ट्स देखकर आ रहा है और कोई पॉडकास्ट देखकर आ रहा है। जो पूरे लॉन्ग वीडियो होते हैं चालीस मिनट के, एक घंटे के, डेढ़ घंटे के, वो भी देखकर नहीं आते लोग।

किताबों की तो सोचो ये दुर्दशा है कि कुल किसी किताब की अगर दस हज़ार कॉपीज़ बिक गई, तो उसको अधिकार मिल जाता है ये कहने का कि वो नेशनल बेस्ट सेलर है। बस यही क्राइटेरिया (मानदंड) होता है। पब्लिशर (प्रकाशक) भी यही नापता है कि दस हज़ार कॉपी बिक गई क्या। वो, ठीक है। हो गई, बेस्ट सेलर हो गई। क्योंकि किताब आप पढ़ते ही नहीं। हाँ, जब मेरे पास आ जाते हो, तब पकड़-पकड़कर, पकड़-पकड़कर आपको किताब पढ़वाते हैं कि ये लो, पढ़ लो।

और अपराध सिर्फ़ तब नहीं है जब हत्या ही हो गई किसी की। गलत किस्म की फ़ालतू एडवाइस (सलाह) हर तरीके से दी जा रही है। मनी मैटर्स (पैसों से जुड़ी बातों) में, रिलेशनशिप्स (रिश्तों) में, पॉलिटिक्स में। वहाँ भी तो आपका नुकसान ही किया जा रहा है न। और ये सबकुछ आप सोशल मीडिया से सोख रहे हो।

कोई भी आकर वहाँ बन गया है, बैठ गया। ‘मैं रिलेशनशिप एक्सपर्ट हूँ, मैं बताऊँगा।ʼ कोई जिओ पॉलिटिक्स (भू-राजनीति) का एक्सपर्ट बनकर बैठ गया। भाई तुम कौन हो, तुमने क्या किया, तुम किस यूनिवर्सिटी से डिग्री लेकर आए हो, इस क्षेत्र में तुम्हारी क्या महारत है, तुम्हारी क्या पात्रता है, तुमने पेपर (शोधपत्र) पब्लिश करे हैं? तुम बस इतना ही बता दो, ‘तुमने पढ़ा क्या-क्या है?’ चलो, खुद अपना नहीं पब्लिश किया तो यही बता दो। कुछ नहीं पढ़ा होगा।

वो बस आपको लुभाना जानता है क्योंकि आप छोटे हो, बच्चे हो, आपकी कोई समझ नहीं। तो कोई भी आकर आपको बेवकूफ़ बना जाता है — कैमराबाज़ी, रंगबाज़ी, साउंडबाज़ी, साउंड इफ़ेक्टबाज़ी, फिल्टरबाज़ी। एक रील होती है वो आपको बहुत इम्प्रेस कर देती है। उसमें से पीछे से म्यूज़िक (संगीत) हटा दो, फिर देखो कि इम्प्रेस करती है कि नहीं।

कोई आकर के कोई बात बोल गया किसी रील में, वो बात आपको ऐसी लग रही है कि गजब की बात बोल दी है। और जिसने बोला है, वो कोई हैंडसम हंक है या कोई सेक्सी एक्ट्रेस है। जिसने बोला है, वो चेहरा हटा दो फिर बताओ कि वो बात अभी भी उतनी इम्प्रेसिव लग रही है क्या।

ये सब होता है वीडियो में। वहाँ नॉलेज़ डाइल्यूट (तनु) हो जाता है। आपको पता ही नहीं लगता कि आप इम्प्रेस नॉलेज़ से नहीं हो रहे हो, आप जो सेटअप है उससे इम्प्रेस हो रहे हो। जो बोल रहा है, आप उसके बाइसेप्स देख रहे हो या उसकी क्लीवेज देख रहे हो। आप उससे इम्प्रेस हो रहे हो। इतना बढ़िया सेटअप किया है, बिलकुल फ़ोर के नहीं ऐट के में वीडियो अपलोड हुआ है, आप उससे इम्प्रेस हो रहे हो।

म्युज़िक लगा दिया, और जितनी चीज़ें होती हैं सब कर दिया। आप उससे इम्प्रेस हो रहे हो।

आपको लगता है कि इसका मतलब कि ये जो नॉलेज़ मिला है, ये बिलकुल टॉप क्लास है। नॉलेज़ टॉप क्लास होता, तो उसको इतने तरीके के प्रॉप्स (रंगमच की सामग्री) की, बैसाखियों की, क्रचेस की ज़रूरत नहीं पड़ती न, कि उसको इतना सजाया, ये किया, वो किया। फिर तो नॉलेज़ तो सीधा था कि ऐसे आपको सामने एक पोस्टर में एक कोटेशन (उद्धरण) लिख दी गई होती बस। सिर्फ़ खाली टेक्स्ट। व्हाइट ओवर ब्लैक (काले के ऊपर सफ़ेद) या ब्लैक ओवर व्हाइट (सफ़ेद के ऊपर काला)। आप उतने में भी कह देते कि वाह, क्या बात है। और ऐसे ही चलता था। हमने तो ऐसे ही पढ़ा है। ‘सफ़ेद कागज पर काले अक्षर,’ उसी से ज्ञान लिया है। पर आप लोगों को तो म्युज़िक के साथ चाहिए और बॉडी के साथ चाहिए और ढोल-ढमाके के साथ चाहिए। और ले लो नॉलेज़ के नाम पर कचरा?

एक बात अच्छे से याद रखना, कभी भी सफ़ाई अपनेआप नहीं फैलती, अपनेआप हमेशा गंदगी फैलती है। कभी ऐसा हुआ है कि अपना गंदा घर आप छोड़कर के गए और एक महीने बाद वापस आए तो वो साफ़ था? अपनेआप साफ़ था। ऐसा होता है? आप अपना घर बिलकुल गंदा-वंदा छोड़कर चले गए या अपना किचन आप गंदा छोड़कर चले गए और एक महीने बाद आए, आपने ताला खोला तो एकदम साफ़ था। ऐसा होता है क्या?

सफ़ाई अपनेआप कभी नहीं फैलती। सफ़ाई अपनेआप कभी नहीं हो जाती। सफ़ाई तो मेहनत से करनी पड़ी है, पर गंदगी अपनेआप फैल जाती है। आप अपना घर पूरा साफ़ करके छोड़ जाओ और आप महीने भर बाद वापस आओ, तो घर में आपको धूल मिलेगी।

यही इस इंफ़ॉर्मेशन एक्स्प्लोज़न में हुआ है। गंदगी फैली है इससे, क्योंकि उसी का फैलना आसान होता है। क्योंकि हमारा मन लगातार गंदगी के लिए ही लालायित रहता है। आप किसी को बिलकुल कोई सही बात बताओ, ट्रू, ऑथेंटिक नॉलेज़ बताओ, वो ज़्यादा रूचि से सुनेगा या किसी को आप ज़ायकेदार, मसालेदार बताओ, वो ज़्यादा रूचि से सुनेगा? बोलिए।

प्र: ज़ायकेदार, मसालेदार।

आचार्य: हाँ, तो गंदगी ज़्यादा तेजी से फैलती है न। ये काम सोशल मीडिया ने किया है। ऐसी गंदगी जो हमेशा से थी पर फैल नहीं पा रही थी, सोशल मीडिया ने उसको फैलने का मौका दे दिया और गंदगी फैलाने वालों को इन्फ़्लुएंसर (प्रभावशाली व्यक्ति) का खिताब दे दिया। वो गंदगी हमेशा से थी पर वो सीमित रहती थी, फैलती नहीं थी। सोशल मीडिया ने एक प्लेटफ़ॉर्म दे दिया कि अब गंदगी फैलाओ, जमकर फैलाओ और फैलाओ। जितना तुम फैलाते जाओगे, उतना हम कहेंगे कि तुम हीरो हो, इन्फ़्लुएंसर हो, ये हो, वो हो।

तुमको देश के बड़े-बड़े मंचों से हम पदक भी दिलवा देंगे। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, इनको अवार्ड दे रहे हैं। किस बात का? कि इन्होंने खूब गंदगी फैलाई है। सफ़ाई मेहनत वाला काम होता है। अच्छे से समझना, वास्तविक नॉलेज़ न हमेशा थोड़ा बोरिंग (ऊबाऊ) लगेगा। इंट्रेस्टिंग (दिलचस्प) तो मसाला ही लगता है। जो लोग बोरडम (विरक्ति) झेलने को तैयार नहीं हैं, उनको फिर ट्रू नॉलेज़ कभी मिलेगा भी नहीं।

वास्तविक नॉलेज़ में एक बार किताब पढ़नी पड़ती है, फिर वापस लौटकर फिर वही पन्ना पढ़ना पड़ता है। एक तरह का रिकर्सन (प्रत्यावर्तन) करना पड़ता है। उसमें कोई ऐसा नहीं होता कि हँसी के फ़व्वारे छूट रहे हैं, मादकता के फूल खिल रहे हैं। वो ‘सो इंटरेस्टिंग! सो इंटरेस्टिंग!’ ऐसा नहीं होता।

कोई आदमी गणित की किसी समस्या के साथ जूझ रहा हो, आप ये नहीं पाओगे कि वो ठहाके मार रहा है। आप ये नहीं पाओगे, वो कह रहा होगा ‘वाव! वाव!,’ वो डूबा होता है। उसे बहुत बार जान लगानी पड़ती है। ट्रू नॉलेज़ का जो प्रोसेस (प्रक्रिया) होता है, वो लगता है वो थोड़ा सा डल (उदासीन) होता है, थोड़ा बोरिंग होता है, एफ़र्ट इंटेंसिव (कठिन परिश्रम वाला) होता है। और जो आप यूट्यूब से, सोशल मीडिया से नॉलेज़ लेते हो, वो मज़ेदार होता है।

एक मिनट में कोई आकर आपको बिलकुल अखंड ज्ञान दे गया। ‘बेटा, अगर ज़िंदगी तमीज से जीनी हो, तो जिन्होंने बदतमीज़ी की हो, उन्हें जीने मत देना।ʼ और उसके बाद एक, ‘पेनेन पेनेन पेनेन पे, पेनेन पेनेन पेनेन पे (बैकग्राउंड म्यूज़िक) या वो वर्जन, ‘तुझे रोने नहीं दूँगा,ʼ और आपने कहा, ‘क्या गजब की बात बोली है।’ दुनियाभर की सारी फ़िलॉसफ़ी (दर्शनशास्त्र) का सार बता दिया, ‘ज़िंदगी तमीज़ से जीनी हो तो जिसने बदतमीज़ी की, उसे जीने मत देना।’ और गजब लग गई बात।

और दूसरी ओर, अब इतनी मोटी किताब है फ़िलॉसफ़ी की। ज़िंदगी को जानना हो, तो पढ़ना पड़ेगा। उसमें मेहनत लगती है। आपकी ज़नरेशन (पीढ़ी) ने मेहनत बचाने के लिए ज़हर खा लिया बिलकुल। रील से तो आप ज्ञान ले रहे हो। वहाँ से तो आपकी वैल्यूज़ (मूल्य) आ रही हैं। पॉडकास्ट से आपका नॉलेज़ आ रहा है। क्या होगा आपका? वही, जो हो रहा है। होगा नहीं, भविष्य में नहीं होगा, दिख रहा है होता हुआ।

इंग्लिश एक्सेंट (अंग्रेज़ी लहजा) में बात कर रहे हैं और सुपरस्टिशन (अंधविश्वास) परवान चढ़ा हुआ है। गजब का अंधविश्वास है। पूरे तरीके से वेस्टर्नाइज़्ड (पश्चिमीकृत) हो गए हैं लेकिन ह्यूज़ली सुपरस्टीशियस (अत्यधिक अंधविश्वासी), क्योंकि वो सुपरस्टिशन ही आ रहा इंग्लिश पॉडकास्ट में। तो बोलचाल, पहनावे से बिलकुल क्या हो गए हैं? वेस्टर्नाइज़्ड। लेकिन घोर सुपरस्टीशियस है। आपका क्या नाम है?

प्र: पारूल।

आचार्य: पारूल। पारूल के नाम की स्पेलिंग है — पी, ट्रिपल ए, आर, ट्रिपल ओ, एल, एल, ए, एन, जेड। ये पारूल के नाम की स्पेलिंग है। क्यों? क्योंकि इनको किसी यूट्यूब वाले न्यूमेरोलॉज़ी (अंक ज्योतिष) वाले ने बताया या जो भी होता है कि ये करना। तंत्र वाले ने बताया कि तीन चीज़ें होनी चाहिए ज़िंदगी में, तो भी तीन बार आना चाहिए और भी तीन बार आना चाहिए, क्योंकि और दोनों क्या है? अल्फ़ाबेट में वॉवेल्स (वर्णमाला में स्वर) हैं। और पारूल ने अपना नाम लिखा है — *पी, ट्रिपल ए, आर, डबल ओ, एल, एन, जेन… (व्यंग्य करते हुए)। ये आपकी जनरेशन (है), पॉडकास्ट से आपने सीखा ये सब।

अगर हम थोड़ा सा जगे हुए लोग होते न, तो इन सब चीज़ों पर प्रतिबंध लग जाता। इन सब लोगों से हिसाब माँगा जाता। इन पर चार्ज़शीट (आरोप-पत्र) भी हो सकती थी, ये तुम क्या फैला रहे हो? क्योंकि ये संवैधानिक अपराध है। अप-होल्डिंग साइंटिफ़िक टेंपरामेंट (वैज्ञानिक स्वभाव कायम रखना), ये कांस्टीट्यूशनल वैल्यू (संवैधानिक मूल्य) है भारत के संविधान की। जो आदमी जनता में अंधविश्वास फैला रहा हो, वो संविधान के प्रति दोषी है।

पर अभी जैसी हवा चल रही है, उसमें संविधान का तो वैसे भी कोई महत्व रह नहीं गया है। रीडिंग (पढ़ना) करिए, रीडिंग। है न? और जवानी से अच्छा टाइम नहीं होता रीडिंग करने के लिए। पचास की उम्र में जाकर के कुछ रीडिंग अगर कर भी ली, तो यही पता चलेगा कि हाय राम! चूक गए। पछताने के लिए रीडिंग करनी हो तो पचास के बाद कर लेना और जीने और जीतने के लिए रीडिंग करनी हो तो दस की उम्र में, बारह की उम्र में, अठारह की उम्र में, बाइस की उम्र में कर लो। और बेटा, पढ़े बिना तो बात नहीं बनेगी?

जितना टाइम यूट्यूब पर और इंस्टाग्राम पर और इन पर लगाते हो, वो सब टाइम जो है, हटाकर के बुक्स (किताबें) पर लगाओ, बुक्स पर। और बुक्स भी यूट्यूबर वाली नहीं। (मैंने) किताब पर देखा, किताब पर लिखा हुआ है ऊपर, ‘ओवर टू मिलियन सबस्क्राइबर्स।’ मैंने कहा, ‘किताब के सबस्क्राइबर हो गए?’ किताब के कवर पेज़ पर लिख रखा है, ‘ओवर टू मिलियंस सबस्क्राइबर्स।’ ये क्या गज़ब हो गया, किताब के भी सबस्क्राइबर्स हैं?

क्यों लिख रखा है? क्योंकि ये भाई कोई रीलर है, इंस्टाग्रामर है, इंस्टाग्राम पर इनके दो मिलियन हैं। तो इंस्टाग्राम पर इन्होंने जो टट्टी फैलाई है उसी की इन्होंने किताब छाप दी। और किताब बिके इसीलिए ऊपर क्या लिखा है? ओवर टू मिलियन सबस्क्राइबर्स या फ़ॉलोअर्स या जो भी। ये इनका क्लेम टू फ़ेम (प्रसिद्धि का दावा) है। हम रीलें बहुत अच्छी बनाते हैं, हमारी किताब पढ़ लो।

किताब भी उनकी पढ़ो जो पढ़ने लायक हैं। नहीं समझ में आ रहा हो, तो किसी ऐसे से बात कर लो कि कौनसी किताबें पढ़ें, कैसी हो रीडिंग लिस्ट (पुस्तकों की सूची), जिसको लगे कि कुछ जानता है ज़िंदगी में। और कुछ नहीं समझ में आ रहा तो कई बार गूगल पर सर्च करो। टॉप हंड्रेड क्लासिक्स (सौ उत्कृष्ट कृति), टॉप हंड्रेड मोस्ट इंपोरटेंट बुक्स (सर्वश्रेष्ठ सौ अति महत्वपूर्ण किताबें), टॉप हंड्रेड मोस्ट रेड बुक्स (सर्वश्रेष्ठ सौ अधिक पढ़ी जाने वाली किताबें)। ऐसे कर-करकर जो इंटरसेक्शन (प्रतिच्छेदन) आए इन सब लिस्ट का, इन सब सेट्स का, उसमें समझ जाओगी ये किताबें हैं, मैं इनसे शुरूआत कर सकती हूँ।

और बाकी कुछ इस पर भी होता है कि अपने रुचि का क्षेत्र क्या है। कोई फ़िलॉसफ़ी से शुरू करना चाहता है, कोई हिस्ट्री (इतिहास) से शुरू करना चाहता है, कोई इकोनॉमिक्स (अर्थशास्त्र) से शुरू करना चाहता है, कोई फ़िक्शन (उपन्यास) से शुरू करना चाहता है, कोई अध्यात्म से शुरू करना चाहता है। ठीक है। उससे ज़्यादा कोई नहीं बर्बाद हो रहा जो अपना पढ़ने का समय रील देखने पर लगा रहा है या पॉडकास्ट देखने पर लगा रहा है और ये सोच रहा है कि पॉडकास्ट देखकर ज्ञानवर्धन हो गया।

और अगर आप एक पॉडकास्टर हैं और बदकिस्मती से आप इस वीडियो को देख रहे हैं, तो मैं आपसे हाथ जोड़कर निवेदन करता हूँ। टुच्चे व्यूज़ और सस्ती सफलता की खातिर अपने पॉडकास्ट में नकली लोगों को बुलाना बंद करो। तुम पूरी मानवता के गुनहगार बनते जा रहे हो अगर ये काम कर रहे हो। तुम अपनेआप को कैसे मुँह दिखाओगे। तुमने इतने लोगों के मन को खराब किया वो पॉडकास्ट पब्लिश करके। तुम आईने के सामने कैसे खड़े हो?

तुम अच्छे से जानते हो कि तुम ये जो पॉडकास्ट पब्लिश कर रहे हो, ये पूरी दुनिया के लिए कितना नुकसानदेह है। तुम क्यों कर रहे हो ये काम? और यही मैं उनसे बोलूँगा, जो तरह-तरह का सूडो साइंस (छद्म विज्ञान) और सुपरस्टिशन का चैनल चलाते हैं।

नालायकी करके कोई चैन से नहीं जी सकता। मत करो ये नालायकी। बंद कर दो ये चैनल। कोई ढंग का गरिमा का काम खोज लो अपने लिए। क्यों जवान लोगों की ज़िंदगियाँ बर्बाद कर रहे हो ये चैनल चलाकर। ये एक विशियस साइकिल (दुष्चक्र) है पारूल।

जिसने रीडिंग जितनी कम की होती है, वो उतनी आसानी से यूट्यूब के फेर में आ जाता है, क्योंकि वहाँ आपकी सारी सेंसेस (इंद्रियों) को गुलाम बना लिया जाता है न। आप एक पॉडकास्ट देख रहे हो। अब उसमें जो इंटरव्यूअर है, वो ऐसी-ऐसी शक्लें बना रहा है। आपको लग रहा आप नॉलेज़ ले रहे हो। पर आपको जो चीज़ अच्छी लग रही है, वो ये है कि ये देखो ये बैठा हुआ है कितना क्यूट (प्यारा) लग रहा है और ये कैसी-कैसी शक्लें बनाता है।

अब उसकी शक्लें बनाने से आपको नॉलेज़ मिल रहा है क्या? लेकिन आप अट्रैक्ट (आकर्षित) हो रहे हो। आपको पता भी नहीं चलेगा कि आप अट्रैक्ट तो हुए हो पर नॉलेज़ की तरफ़ अट्रैक्ट नहीं हुए हो। आप वो जो इंटरव्यूअर है, वो लड़का है, लड़की है, आप उसकी शक्ल की ओर अट्रैक्ट हुए हो। एट्रीब्यूशन एरर (आरोपण त्रुटि) हो जाएगा। अट्रैक्शन (आकर्षण) तो होगा, पर पता नहीं चलेगा कि अट्रैक्शन एट्रीब्यूट किसको करें। मतलब अट्रैक्शन किस वजह से हुआ है।

तो आपको लगेगा कि वो नॉलेज़ था, इतना अच्छा था कि मुझे पॉडकास्ट अच्छा लगा। आपको नॉलेज़ की वजह से पॉडकास्ट अच्छा नहीं लगा है। या तो वो जो इंटरव्यू लेने वाला है या जो इंटरव्यू देने वाला है, दोनों में से कोई ज़रा मीठे तरीके से बात कर रहा था या सज-धजकर आ गया था, आकार्षक था इसीलिए आपको पॉडकास्ट अच्छा लग गया।

मैं कह रहा हूँ विशियस साइकिल है। जितना कम पढ़े-लिखे रहोगे, तुम्हें पॉडकास्ट उतने ज़्यादा अच्छे लगेंगे और तुम पॉडकास्ट में इतना फँसते जाओगे, पढ़ने की तुम्हारी संभावना उतनी कम होती जाएगी। जो सबसे कम पढ़े-लिखे लोग होते हैं, वही यूट्यूब और सोशल मीडिया के झाँसे में सबसे ज़्यादा आते हैं। और जितना ज़्यादा वो सोशल मीडिया वाले चक्कर में फँसते जाते हैं, उतना उनके पढ़ने की प्रोबेबिलिटी (संभावना) और कम होती जाती है। और ये बढ़ता ही जाता है सब। अ रेस टू द बॉटम (नीचे तक की दौड़)।

प्र: धन्यवाद आचार्य जी।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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