प्रश्नकर्ता: आप थोड़ी देर पहले बोल रहे थे न कि आदमी को शान्ति भी चाहिए और अशान्ति भी, हमें पता चल रहा होता है कि ये हमारे साथ हो रहा है फ़िर भी हम उसे होने देते हैं क्योंकि हमें मज़ा आ रहा होता है।
आचार्य प्रशांत: शान्ति के साथ और समय बिताइए, एक कसौटी पकड़ लो — इस सूत्र को ध्यान से सुनना — तुम्हें अगर शान्ति भी प्यारी लगती हो और अशान्ति भी, तो जो बात कहने जा रहा हूँ वो तुम्हारे लिये है, ऐसे कितने लोग है, ईमानदारी से बोलो। अशान्ति के साथ तुम सौ जन्म बिता लो, अशान्ति के साथ तुम चाहे कितनी कसमें खा लो, तुम्हारे मन के एक बहुत गहरे और पुराने कोने को शान्ति तब भी प्यारी रहेगी।
अशान्ति के प्रति तुम्हारी कभी पूरी वफ़ादारी नहीं हो पाएगी। ये प्रयोग बता रहा हूँ। अशान्ति के प्रति तुम्हारी पूरी वफ़ादारी नहीं हो पाएगी। अशान्ति के साथ तुम जितना गठबन्धन करना है कर लो अशान्ति के साथ और शान्ति का अपनी तरफ़ से पूर्ण परित्याग कर दो, तुम कहो कि शान्ति के साथ सम्बन्ध-विच्छेद, कोई लेना-देना नहीं तलाक, तलाक, तलाक। शान्ति हमारी कोई लगती नहीं और सौ जन्म रहो तुम अशान्ति के साथ, सौ जन्मों बाद भी तुम यही पाओगे कि अशान्ति से पूरी तुम्हारी वफ़ादारी, निष्ठा हो नहीं पायी है, तुम अभी भी शान्ति की ओर आकृष्ट हो रहे हो, थोड़ा-थोड़ा हो रहे हो, लेकिन हो रहे हो। क्यों? क्योंकि शान्ति स्वभाव है तुम्हारा। अशान्ति नहीं स्वभाव है।
ये बात अभी मैं कह रहा हूँ, जो प्रयोग मैं कह रहा हूँ उससे प्रमाणित हो जाएगी। मैं तो कह भर रहा हूँ, पर प्रमाण भी सामने है। अशान्ति के साथ गुज़ारे गए सहस्त्र कल्प भी शान्ति के प्रति तुम्हारे आकर्षण को न्यून तो कर सकते हैं, शून्य नहीं कर सकते। तुम परमात्मा को भूल तो सकते हो, पर पूरी तरह कभी नहीं भूल सकते।
बात आ रही है समझ में?
इसके विपरीत अगर तुम शान्ति के साथ समय बिताओगे तो अशान्ति से तुम्हारा नाता पूरी तरह टूट जाएगा क्योंकि वो नाता था ही कच्चा। अशान्ति के साथ कितना भी समय बिताओ, शान्ति से तुम्हारा नाता पूरी तरह कभी नहीं टूटता क्योंकि वो नाता पक्का है, स्वभाव है, सत्य है और शान्ति के साथ अगर तुमने समय बिता लिया तो अशान्ति से तुम्हारा नाता टूटने लग जाएगा। उस घर की बुनियाद झूठी है, उस पर ठोकरें पड़ेंगी, वो गिर जाएगा। ये अन्तर है दोनों में।
इसीलिए शान्ति बहुत डरती नहीं। इसीलिए परमात्मा तुमसे कहता है कि तुम जाकर घूमना-फिरना चाहते हो, ज़रा भटकना चाहते हो, जाओ भटको। किस विश्वास पर परमात्मा तुम्हें ये कह देता है कि जाओ भटको संसार में। तुम भटकना चाहते हो बच्चों, घूमो-फिरो। किस आधार पर कह देता है बोलो? नाता पक्का है। परमात्मा तुम्हें पूरी आज़ादी, पूरी ढील दे देता है, जाओ जो करना है करो, क्योंकि नाता पक्का है, उसको पता है तुम्हें कितनी भी ढील दे दें, तुम माया के, शैतान के, कितने भी भक्त बन जाओ, लेकिन परमात्मा से तुम्हारा नाता तब भी टूटेगा नहीं।
सच कभी नष्ट नहीं होता, वो नाता अटूट है। तो इसीलिए परमात्मा की ओर से तुम्हें मिलती है, पूरी आज़ादी। इसके विपरीत जो तुम्हें बन्धन में डालेगा वो हमेशा डरा हुआ रहेगा क्योंकि उसको पता है कि बन्धन कच्चा है। तो वो सदा तुमपर निगाह रखेगा, कहीं तुम भाग तो नहीं रहे। वो जैसे ही तुम्हारे हाथ में देखेगा कि उपनिषद, वो पगला जाएगा कहेगा, ‘ये क्या उठा लिया, छोड़ो, छोड़ो, छोड़ो, छोड़ो, बिलकुल उसका दिल धड़क जाएगा क्योंकि उसको पता है कि उपनिषद से थोड़ी सी तुम्हारी नज़दीकी बनी नहीं कि तुम वो सब त्याग दोगे, जो झूठा है।
तुम सौ तरह की बेवकूफियों में लगते हो, कभी परमात्मा आकर तुम्हें रोकता है? पर तुम ज़रा-सा सत्संग की ओर चलते हो और परिवार आकर तुम्हें रोक देता है। हाँ या न? तुम कितनी भी बेवकूफ़ियाँ कर लो, तुम दुनियाभर के कुकृत्यों में उलझ लो, अस्तित्व तुम्हें रोकने तो नहीं आता न?
तुम देवालय की ओर चले थे, मदिरालय में घुस गये, ऐसा तो नहीं है कि तुम्हारे टाँगों को लकवा मार जाएगा? ऐसा होता है कि अस्तित्व ने सज़ा दे दी, ऐसा हुआ है कभी क्या? जिन टाँगों पर चलकर तुम मन्दिर की ओर जा रहे थे, उन्ही टाँगों से तुम वेश्यालयों में भी घुस सकते हो। जिन हाथों से तुम देवता को नमन करते, उन्ही हाथों से तुम शरीर को भोग सकते हो। ऐसे तो नहीं होता कि तुम्हारें हाथों को काठ मार गया कि तुरन्त ऊपर से बिजली गिरी और तुम्हें राख कर गयी, ऐसा तो नहीं होता।
परमात्मा पूरी आज़ादी देता है वो कहता है, ‘तुम भटकना चाहते हो, जाओ भटको क्योंकि मुझे भरोसा है कि मेरा बच्चा लौटकर आएगा, नाता पक्का है। तू जा जहाँ जाता है, तू लौट कर आएगा।‘
और यही तुम सच्ची राह पर निकलते हो तो जितने तुम्हारे मायावी रिश्ते-नाते होते हैं, वो देखा है कैसे अकुला जाते हैं। कहाँ जा रहे हो, क्यों जा रहे हो और तुम चल ही दो तो पीछे से रोएँगे। लौटकर तो आओगे न, बाबा तो नहीं बन जाओगे?
भाई, वो बाबा बन गया, तू बाबी बन जा। (प्रतिभागी हँसते हुए) दुनिया बुलाएगी तुझे, ‘हाय बॉबी!‘ बाबा-बॉबी साथ-साथ (मुस्कुराते हुए)। देखा है ज़माना कितना काँप जाता है, व्याकुल हो जाता है, जैसे ही कोई बुद्ध चलता है सत्य की ओर, जैसे ही कोई महावीर आसन का, सिंहासन का परित्याग करता है, समाज की दृष्टि से पूर्णतया नग्न हो जाता है। वैसे ही ज़माने में कँपकपी फैल जाती है — ‘ये क्या हो गया, ये क्या हो गया?’ क्योंकि उन्हें पता है कि अब ये गया, अब नहीं लौटेगा।
सच में पूर्ण आत्मविश्वास होता है और झूठ हमेशा डरा हुआ रहता है, खौफ़ में जीता है क्योंकि झूठ को पता है कि पोल कभी भी खुल सकती है, डोर कच्ची है, कभी भी टूट सकती है।
प्रश्नकर्ता: तो जहाँ भी डर है….।
आचार्य प्रशांत: वहाँ झूठ है। तो अनुराधा (प्रश्नकर्ता), सच के साथ और समय बिताएँ और झूठ जब अकुलाये तो ताली बजाएँ। तुम्हारी व्याकुलता बताती है कि तुम झूठे हो, अब यहाँ आयी हैं न तो फेसबुक पर खूब सारी अपनी फोटोज़ डाल दीजिए, आधी आपकी फ्रैंडलिस्ट वैसे ही साफ़ हो जाएगी। अरे! आप देखिए।
आप मुझसे उनकी बातें करेंगे, मुझ पर कोई अन्तर नहीं पड़ेगा, पर जो यहाँ की बात है, उपनिषद की बात है, वो आप कर लीजिए अपने समाज में, आपका समाज खाली हो जाएगा। सच्ची बात उनसे करके देखिए, वो खाली हो जाएँगे, रुकेंगे नहीं। भागते-भागते आप पर इल्ज़ाम भी लगा जाएँगे कि तू झूठी निकली, तू भ्रष्ट निकली, तू बहक गयी। करके देखिए।
आप तो उनके समाज में, उनकी गोष्ठियों में, उनकी चर्चाओं में खूब शिरकत करती हैं, उन्हें यहाँ लाकर देखिए उनका दम घुट जाएगा। आप उनके साथ जाते रहें तब तक मामला बनेगा, आप उन्हे सच्चाई की ओर ले आयें, आपके रिश्तें टूट जाएँगे।
अशान्ति बेचारी की यही तो मजबूरी है, वो शान्ति को बर्दाश्त नहीं कर पाएगी। शान्ति, अशान्ति के मध्य भी कायम रह सकती है। दुनियाभर की अशान्ति के बीच भी, शान्ति कायम रह सकती है, लेकिन अशान्ति का अगर तुमने शान्ति से स्पर्श करा दिया तो अशान्ति मर जाती है।
बात समझ में आ रही है?
अशान्ति मरणधर्मा है, वो झूठी है इसीलिए उसे मरना होगा, जाना होगा। ये बात वो जानती है, इसीलिए वो हर समय व्यग्र रहती है, खौफ़ में जीती है। और शान्ति नित्य है, अमर है इसीलिए वो अशान्ति को चुप-चाप देखें जाती है, झेले जाती है, साक्षी रही आती है।
कुछ ऐसी-सी बात है कि जैसे मौन के सामने उपद्रव गाली-गलौच करता हो। अब मौन तो मौन है, वो उपद्रव से पहले भी मौन था, उपद्रव के मध्य भी मौन है, उपद्रव के बाद भी मौन रहेगा। मौन को क्या अन्तर पड़ना है। लेकिन उपद्रव की ऊर्जा सीमित है, एक क्षण आएगा, जब वो ऊर्जा खत्म हो जाएगी, उसका समय खत्म हो जाएगा और वो गिर जाएगा। उसकी बैटरी डिस्चार्ज होनी-ही-होनी है, इसीलिए वो डरा रहता है। उसको पता है कि मैं इतनी ही आयु लेकर आया हूँ, इतना ही सामर्थ्य लेकर आया हूँ और सत्य की सामर्थ्य अनन्त है।
जो डरा होता है, वो हिंसक हो जाता है, इसीलिए समाज सन्तों के प्रति बड़ा हिंसक हो जाता है। झूठ बोलने वाले घूम रहे हों, उन्हें समाज में खूब स्वीकृति मिल जाएगी। कोई सच बोलता हो, उससे बड़ा आपका कोई दुश्मन नहीं और कौन कितना झूठा है, उसकी पहचान बस एक तरीके से हो सकती है, उसका सच के प्रति क्या रवैया है ये देख लीजिए। जो सच के सामने आने से कतराये, उसके भीतर महा झूठ बैठा है अन्यथा क्यों कतराएगा? और जो सच की तरफ़ स्वयं ही खिंचा चला आये, वो सत्य का गुलाम है, सत्य से अभिप्रेरित है।