सब गोलमाल है || नीम लड्डू

Acharya Prashant

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सब गोलमाल है || नीम लड्डू

नकली चीज़ों का बाज़ार देखो, कई बार असली वस्तु से ज़्यादा गर्म होता है। और जो ख़रीदने वाले हैं वह जानते हैं कि मामला नकली है पर ख़रीदते हैं। भारत में रे-बैन के असली चश्मे कितने बिकते हैं, मुझे नहीं पता, नकली घर-घर में हैं। और ऐसा थोड़े-ही है कि जिन घरों में रे-बैन के नकली चश्में हैं सो रुपए वाले, उनको पता नहीं है कि यह चश्मा नकली है। पर अगर नकली से ही काम चल रहा है तो चला लो, कौन मना कर रहा है!

कुछ ऐसे होते हैं जो कहते हैं, “कितनी भी कीमत अदा करनी पड़े, कितने भी नकली चश्मों को त्यागना पड़े, मुझे तो असली चाहिए।“ वह फिर नकली के साथ कोई मोह नहीं जोड़ते। वह कहते हैं, “नकली से होगा मेरा कोई बहुत पुराना नाता; मेरे पिताजी ने मुझे नकली रे-बैन का तोहफ़ा दिया था, दिया होगा! भले ही पिताजी ने दिया हो, भले ही परंपरा से चला आ रहा हो, भले ही उसके साथ यादें जुड़ी हईं हों, लेकिन नकली पर ठहरूँगा नहीं; मुझे तो असली चाहिए!”

नकली में आसान है, लगा लो, फ़ोटो खींचो, इंस्टाग्राम, वहाँ किसको पता चल रहा है!

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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