रिश्ता बनाने जा रहे हो? || आचार्य प्रशांत, बातचीत (2021)

Acharya Prashant

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रिश्ता बनाने जा रहे हो? || आचार्य प्रशांत, बातचीत (2021)

प्रश्नकर्ता: मेरे विचार से एक व्यक्तिगत संसार होता है और एक सामाजिक संसार होता है। और मेरी आयु वर्ग में — 21 से 30 वर्ष की आयु के बीच जहाँ पर आदमी के के सामाजिक संसार को दो हिस्सों में बाँट दिया जाता है — रिश्ता (पर्सनल लाइफ़) और कैरियर (प्रोफेशनल लाइफ़) तो मैं रिश्तों को कैसे संतुलित करूँ और जब लोग रिश्ता कहते हैं तो इस संदर्भ में रिश्तों का मतलब रोमांटिक रिश्ते और करियर है।

आचार्य प्रशांत: नहीं, दो होने ही नहीं चाहिए। दो हैं तो दो के बीच में पिस जाओगे।

“दुई पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय"

रिलेशनशिप और करियर दो विरोधाभासी, कनफ्लिक्टिंग चीज़ें क्यों होनी चाहिए या इन दोनों के बीच में आपको एक डिवीजन भी क्यों बनाना है कि पर्सनल लाइफ़ अलग है और प्रोफेशनल लाइफ़ अलग है। आपको क्यों करना है?

प्र: तो फिर एक जोड़ी कैसे रहे?

आचार्य: कॉमन सेंटर होना चाहिए न। वो कॉमन सेंटर या तो ये हो सकता है कि मुझे एक प्लेज़र मिलता है पैसे से। तो मैं उस हिसाब से जॉब सिलेक्ट करूँगा या काम सिलेक्ट करूँगा। और दूसरा मुझे प्लेज़र मिलता है एक ख़ूबसूरत बॉडी से तो मैं उस हिसाब से अपने रिलेशनशिप बनाऊँगा। अब ये दोनों चीज़ें आपस में कॉम्पीट (मुकाबला) करेंगी क्योंकि आपने जिस सेंटर से इन दोनों को चुना है न, वो सेंटर ही ग़लत है। दूसरी बात ये हो सकती है कि मुझे बेहतर बन्दा बनना है। मुझे ज़िन्दगी में कोई सही काम करना है। मैं कुछ ऐसा करना चाहता हूँ कि इज्ज़त से जी सकूँ अपनी ही नज़र में। और मैं इस हिसाब से, इस चीज़ को ध्यान में रखकर काम भी चुनूँगा और रिलेशनशिप भी चुनूँगा। ये दोनों ही बातें रिलेशनशिप की हो गयीं कि काम से भी मेरी एक रिलेशनशिप है और दूसरा जो इंसान है, मोस्ट प्रोबेबली अपोजिट जेंडर का, उससे भी मेरी एक रिलेशनशिप है। और दोनों ही रिलेशनशिप्स इसलिए हैं ताकि मेरी ज़िन्दगी ऊँचाई की ओर बढ़ सके।

अब इन दोनों में कॉन्फ्लिक्ट नहीं होगी क्योंकि ये दोनों हैं ही एक सीध में। जैसे कि एयरक्राफ्ट के दो इंजन्स। वो दोनों आपस में नहीं लड़ते न, टग ऑफ वॉर नहीं होता न? होता है? एयरक्राफ्ट के दो इंजन्स हो गये अब ये और दोनों एयरक्राफ्ट को एक ही दिशा में पावर कर रहे हैं। आपकी एक इंसान से भी रिलेशनशिप और आपकी, आपके काम से भी रिलेशनशिप। ऐसे हमको समझ में नहीं आता।

हम बिलकुल दूसरे तरीक़े से करते हैं फिर वहाँ पर हमको टाइम बाँटना पड़ता है। फिर वहाँ वो सब शुरू होता है कि तुम काम को ज़्यादा टाइम क्यों देते हो? तुम वीकेंड पर मुझे टाइम दिया करो।

क्योंकि अब काम का पर्पज़ अलग है और ये जो इधर वाली रिलेशनशिप थी उसका पर्पज़ अलग है। काम आपने इसलिए पकड़ रखा है कि उससे आपको पैसा मिल जाए। यहाँ पर आपने इसलिए पकड़ रखा है कि आपको फिजिकल प्लेज़र मिल जाए। और दोनों आपने इसलिए पकड़ रखें हैं क्योंकि आपकी इगो ये दोनों अलग–अलग चीज़ेंं चाहती है। और इगो ये दोनों अलग–अलग चीज़ ही नहीं चाहती हैं, प्रखर (प्रश्नकर्ता); इगो पचास अलग–अलग चीज चाहती हैं। बताओ क्यों? क्योंकि वो, वो चीज़ नहीं चाह रही जो उसे चाहनी चाहिए। वो है वही चीज़ जिस दिशा में एयरक्राफ्ट को दोनों इंजन आगे बढ़ाते हैं।

प्र: हाँ, बिलकुल

आचार्य: समझो, मुझे अगर नहीं पता कि मुझे क्या चाहिए तो मुझे सौ ची चाहिए। ये समझ में आ रही है बात?

प्र: बिलकुल, बिलकुल।

आचार्य: मैं अगर नहीं जानता कि मुझे क्या चाहिए तो मुझे सौ चीज़ें चाहिए। और ये सौ की सौ चीज़ मेरा टाइम , स्पेस , ज़िन्दगी, एनर्जी सब माँगेंगी। ठीक है न। मेरा बॉस बिलकुल मेरी ज़िन्दगी माँग रहा है वो कह रहा है, 'ओवरटाइम कर'; और घर पर मेरी बीबी है या कहीं पर मेरी गर्लफ्रेंड है या मेरी फैमिली है या मेरे दोस्त हैं या मेरी हॉबीज़ हैं, वो भी क्या माँग रही हैं? मेरा टाइम , मेरी एनर्जी माँग रहे हैं। और ये सब आपस में क्या कर रहे हैं? प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। ये आपस में एक–दूसरे से कॉन्फ्लिक्ट या कम्पीटिशन में हैं।

मैं ख़त्म हो जाऊँगा क्योंकि मैंने पचास चीज़ पकड़ रखी हैं और पचास के बाद मुझे इक्यावनवीं चीज़ की ज़रूरत पड़ेगी क्योंकि ये पचासों ही इंसफिसिएंट हैं। क्योंकि वो चीज़ तो उनमें हैं ही नहीं जो मुझे चाहनी चाहिए। तो पहले सही ची चाहो और उस सही चीज़ के रास्ते में तुमको सही करियर मदद करे ऐसा करियर चुनो और उस सही चीज़ के रास्ते में सही इंसान मदद करे ऐसा इंसान चुनो।

समझ में आ रही है बात?

प्र: बिलकुल, बिलकुल आ रही है

आचार्य: अब ये दोनों आपस में कम्पीट नहीं करेंगे।

प्र: कोपरेट करेंगे। तो आचार्य जी, जो ऑटोमैटिक मेरा सवाल आ रहा है इस बात पर। क्योंकि जब मैंने सुना तो मुझे ये रियलाइज़ हुआ कि अरे! हाँ कुछ ज़िन्दगी तो मैं ऐसे ही जीता हूँ।

आजतक कुछ अपने डिसीज़न तो मैंने इसी एक सीध में लेने की कोशिश में किये हैं। और मेरे पास एक पर्सनल लेवल पर वो है भी सॉर्ट ऑफ काइंड ऑफ , किस डायरेक्शन में ओरिएंट हूँ पक्का वो भी नहीं है हंड्रेड परसेंट क्लैरिटी उस पर भी नहीं है। ले ये क्या सीध है कि कोई उदा होते हैं? क्या फिज़िबल सिंगुलर गोल्स ऐसे हो सकते हैं जिसके रास्ते में मुझे रोमेंटिक रिलेशनशिप , सोशल रिलेशनशिप और करियर?

आचार्य: मैं बहुत–बहुत साफ़ एग्ज़ाम्पल (उदाहरण) नहीं दे पाऊँगा क्योंकि ये चीज़ मॉडलिंग की होती नहीं है कि मैं तुम्हारे सामने एक मॉडल रख दूँ। पर मैं तुम्हें एक एग्जांपल दे देता हूँ — एक फ्रीडम फाइटर है, ठीक है? अब वो जाकर के किसी डरे हुए इंसान से तो प्यार नहीं कर लेगा न?

प्र: नहीं।

आचार्य: मान लो १९३० में हैं हम, ठीक है? एक क्रान्तिकारी है। अब वो क्रान्तिकारी किसी ऐसे को तो अपनी ज़िन्दगी में नहीं ले आ पाएगा न जो अंग्रेज़ों का मुर्गा है।

प्र: वो रिस्पेक्ट ही नहीं कर पाएगा।

आचार्य: तो रिलेशनशिप ऐसे बननी चाहिए कि आपके पास जीने के लिए एक बहुत ऊँचा मकसद है और उस मकसद के हिसाब से आपकी ज़िन्दगी में एक बन्दा या बन्दी प्रवेश करते हैं। इसी तरीक़े से एक साइंटिस्ट है और वो ऐसा साइंटिस्ट नहीं है कि करियर साइंटिस्ट है, वो दिल से साइंटिस्ट है ठीक है? अब वो किसी ऐसे से तो प्यार नहीं करने लग जाएगा न जो कि सुपरस्टीशन (अन्धविश्वास) को प्रमोट करता है या जिसकी पूरी आइडियोलॉजी ही इर्रेशनल है या बेवकूफ़ी-भरी है?

प्र: सही है

आचार्य: वो चूँकि उसे आपने काम से लगाव है इसीलिए उसकी ज़िन्दगी में भी ऐसे लोग आएँगे जो उस काम से अलाइंड हैं। मैं बहुत ट्रांजैक्शनल होने की बात नहीं कर रहा हूँ। मैं काम से यहाँ बिज़नेस से नहीं कर रहा हूँ। मेरा यहाँ काम से मतलब है — हाइयर ऑर्डर वर्क से। तो तुम जब अपनी ज़िन्दगी में ऊँचा उद्देश्य चुन लेते हो तो तुम्हारी ज़िन्दगी में लोग भी फिर उसी हिसाब से आते हैं। अब बहुत ज़्यादा प्रसिद्ध नहीं है लेकिन अभी फ्रीडम फाइटर का एग्ज़ाम्पल लिया वहाँ ऐसी जोड़ियाँ निश्चित रूप से थीं जहाँ पर जो पुरुष है और जो महिला है वो दोनों ही इसी कॉमन सेंटर पर ही यूनाइटेड हैं कि दोनों क्रान्तिकारी हैं; कि मैं तुझे पसन्द ही इसीलिए करता हूँ क्योंकि तू क्रान्तिकारी है, और तू मुझे पसन्द ही इसीलिए करती है क्योंकि मैं क्रान्तिकारी हूँ।

अब ये बन्दा अब अगर किसी मिशन पर निकल गया है और दो महीने वापस नहीं आया तो क्या बन्दी शिकायत करेगी?

प्र: नहीं (धीरे स्वर में)

आचार्य: बन्दी को तो और गर्व होगा न?

प्र: कॉमन मिशन है हमारा।'

आचार्य: वो तो कहेगी कि तुम वही कर रहे हो जो मैं ख़ुद करना चाहती हूँ और मैं चाहती हूँ कि तुम और ज़्यादा करो मुझसे दूर रहो, वो जो काम कर रहे हो वो करो क्योंकि वो काम मुझे बहुत प्यारा है। काम मुझे तुझसे भी ज़्यादा प्यारा है! बन्दा मुझे बाद में प्यारा है, काम मुझे पहले प्यारा है।

प्र: काम बीइंग दैट हायर थिंग। (काम ऊँची चीज़ है)

आचार्य: बन्दी मुझे बाद में प्यारी है काम मुझे पहले प्यारा है। अब ये जो सम्बन्ध बनता है — मेल, फीमेल का या मेल–मेल का या फीमेल–फीमेल का, दोस्ती हो सकती है कोई भी सम्बन्ध हो सकता है, बाप–बेटे का भी हो सकता है। वो फिर सम्बन्ध ऐसा नहीं होता कि उसमें खींचा-तानी चल रही है, ये चल रहा है वो चल रहा है। और न फिर उसमें कोई ये पूछता है कि हाउ डू आई बैलेंस आउट माई प्रोफेशनल लाइफ़ विद माई पर्सनल लाइफ़ (मैं अपने पेशेवर जीवन को अपने निजी जीवन के साथ कैसे सन्तुलित करूँ?)। इफ यू हैव टू बैलेंस आउट ऑफ प्रोफेशनल लाइफ़ एण्ड पर्सनल लाइफ़ देन बोथ दीज़ लाइव्स आर अ बिट ऑफ हेल (अगर आपको प्रोफेशनल लाइफ़ और पर्सनल लाइफ़ में संतुलन बनाना है तो ये दोनों ही ज़िंदगियाँ थोड़ी नर्क जैसी हैं)। तुम दोनों ही लाइफ़ को क्विट करो यार! ये कैसी तुमने लाइव्स पकड़ रखी है।

प्र: ये हायर ऑर्डर वाला सवाल तो आदमी करता नहीं है। स्कूल इतना सॉलिड हार्ड कंडीसन्ड है क्योंकि आपको कोई स्पेस ही नहीं देता कि सोचो तुम एग्जाम के ऊपर। उसके बाद स्कूल से कॉलेज के ट्रांजिशन में भी जल्दी–जल्दी आइआइटी , घुस जाना है अन्दर फिर वहीं से जॉब इट्सेक्ट्रा, इट्सेक्ट्रा (नौकरी, इत्यादि-इत्यादि)।

तो अब आदमी कभी वो वाली सोच तो लाता नहीं, लेकिन जो एक सॉफ्ट कंडीशनिंग साइट्स चल रही है न, थिएटर स्क्रीन्स पर बॉलीवुड की उसका एक अलग ही एक इफ़ेक्ट आता है। और वो इफ़ेक्ट ऐसा होता है कि आदमी प्यार और रिलेशनशिप को इस उम्र में पार्टीकुलरली बीस, बाईस, अठारह, चौबीस, तेईस; इसी को अपना मीनिंग , इसी को अपना वो हायर ऑर्डर कुछ ऐसा मान लेता है कि झूल ही जाता है रिलेशनशिप में आकर के।

और मैंने ये अपने दोस्तों के साथ, खैर अब ये अपने साथ भी जवानी में मैंने ये देखा है और बचपन में लेकिन आदमी ऐसा बिलकुल न यहाँ का, न वहाँ का सिर्फ़ उसी का हो जाता हैं रिलेशनशिप में। और वो एक इन्हेरिएंटली डिस्ट्रेसफुल सिचुएशन है स्टार्ट करने के लिए। जहाँ तुम्हारा सिर, पैर, नॉर्थ, साउथ डिपेंडेंट है किसी और की खुशी पर। वो तो एक स्टेबल मैकेनिज़्म , मैं इमेजिन ही नहीं कर सकता ऐसे हो सकता है आदमी के?

आचार्य: नहीं, ये डिस्ट्रेस कहाँ से आती है ये भी तो समझो। तुम कह रहे हो तुम जेईई की तैयारी कर रहे हो। अब वाकई तुम्हें मैथ , फिज़िक्स बहुत पसन्द है और कोई लड़की, उससे तुम्हारी दोस्ती हो गयी। उसको भी मैथ्स , फिज़िक्स बहुत पसन्द है, दिलो-जान से पसन्द है तो डिस्ट्रेस कहाँ है? डिस्ट्रेस तो इसलिए है न कि जिस लड़की पर तुम्हारा दिल आ गया है उसको मैथ्स , फिजिक्स नहीं पसन्द है उसको सजना, सँवारना ही पसन्द है। अब तुमको समझ में आ रहा कि तुम मैथ्स , फिज़िक्स में ध्यान दो या उसको सजने–सँवारने पर ध्यान दो? अब आपको डिस्ट्रेस आएगा। या अगर तुम लड़की हो तुम भी तैयारी कर रही हो मैथ्स , फिज़िक्स की, और जो लड़का मिला है उसको मैथ्स , फिज़िक्स से कोई मतलब नहीं है तुम्हारी बॉडी से मतलब है।

प्र: और सारा फोकस अपनी बॉडी पर हो।

आचार्य: और तुम पढ़ना चाहती हो वहाँ रेसनिक हेलिड है तुम मिरीडॉक के क्वेश्चन को सॉल्व करना चाहती हो और वो बन्दा तुमको बार–बार मैसेज कर रहा है कि मुझे अपनी न्यूड पिक्स भेजो तो अब डिस्ट्रेस आएगा।

प्र: तो ये मतलब आपने प्रॉपर फिल्टरिंग नहीं करी उस इंसान की, जो आपकी जीवन के उद्देश्यों से जुड़ा है।

आचार्य: आपको ये समझ ही नहीं आ रहा है कि कोई इंसान आपकी ज़िन्दगी का सेंटर नहीं हो सकता। सबसे पहले एक वर्दी (योग्य) पर्पज़ आता है, इंसान उसके बाद आता है। इंसान का क्वालीफाइंग क्राइटेरिया है कि वो उस वर्दी पर्पज़ पर खरा उतर रहा है कि नहीं उतर रहा है। इंसान का क्वालीफाइंग क्राइटेरिया ये नहीं है कि उसकी खुशबू कितनी आ रही है, उसके डोले कितने बड़े हैं, उसकी छाती कितनी चौड़ी है ये नहीं क्वालीफाइंग क्राइटेरिया होता। इंसान का क्वालीफाइंग (क्राइटेरिया) मुझे किसी को अपनी ज़िन्दगी में एंट्री देनी है, नहीं देनी है? एक एंट्रेंस एग्जाम (प्रवेश परीक्षा) होता है वो ये होता है कि मैं जिस पर्पज़ के लिए स्टैण्ड करता हूँ ये बन्दा मुझे उस पर्पज़ के रास्ते वो मदद करेगा या भटका देगा? ये क्वालीफाइंग क्राइटेरिया है।

प्र: आचार्य जी, मैं स्केप्टिकल (उलझन में) इस बात पर भी हूँ कि किसी टाइप का काम और मैं हायर ऑर्डर काम नहीं हमारे पास टर्मिनोलॉजिकल (पारिभाषिक) इश्यू है लेकिन मैं बिज़नेस ट्रांजेशनल डे-टू-डे किसी भी टाइप का काम ही मेरे ख़्याल से एक लॉन्ग टर्म सॉल्यूशन नहीं है अपने ज़िन्दगी के सेंटर पर रखने के लिए या है?

आचार्य: नहीं है, बिलकुल है। उस लॉन्ग टर्म काम को पर्पज़ ऑफ लाइफ़ कहते हैं, ठीक है। उस पर्पज़ ऑफ लाइफ़ तक जाने के लिए जो सकता है तुम बिजनेस भी करो, बिलकुल ऐसा हो सकता है। क्योंकि पर्पज़ ऑफ लाइफ़ तो एक एब्सट्रैक्ट चीज़ है न, एक थोड़ी सी हेज़ी चीज़ है। ज़मीन पर रहकर के तो तुम्हें कॉन्क्रीट एक्शन करना है। उस कॉन्क्रीट एक्शन में बिज़नेस भी आता है, स्पोर्ट्स भी आता है, पॉलिटिक्स भी आती है, एकेडमिक्स भी आता है; सब आता है। तो वो सब चलता रहेगा। लेकिन तुम्हें पता होना चाहिए कि ये सब किस उद्देश्य के लिए है। ऑल दिस इज़ लीडिंग टू व्हाट? (ये सब चीज़ें किधर ले जा रही हैं?)

और अपनी ज़िन्दगी में मुझे उन्हीं लोगों को लाना है जो इस तरफ़ जाने में सहायक साबित हों। जो सहायक साबित नहीं हो रहा है, रास्ते का रोड़ा बन रहा है उसको मैं अपनी ज़िन्दगी में काहे को लेकर के आऊँगा? अधिक से अधिक मैं उसकी मदद कर सकता हूँ। आई एम नॉट हेटिंग दैट पर्सन दैट पर्सन एट बेस्ड बी अ पेशेंट टू मी। मैं पेशेंट की मदद कर सकता हूँ। लेकिन मैं उसको अपनी ज़िन्दगी में एज़ अ पार्टनर तो नहीं ला सकता न।

प्र: बिलकुल। आचार्य जी, ये रेडिकल स्टेटमेंट है क्योंकि आप एक एक तरह से रिलेशनशिप वाली बात पर बात करते हैं और फिर करियर पर आता हूँ मैं। व्हाट यू आर अ ड्रॉइंग अ लाइन ऑन इज़ मोस्ट मैरेजेस इन इण्डिया, व्हाट यू आर सेइंग इज़ दे मोस्टली ऑन थौट और वो वर्थ ऑफ कॉन्फ्लिक्ट है। क्योंकि अब मैं देखता हूँ मेरे आस–पास। आई एम ट्वेंटी फाइव। आई कैन नॉट इवेन कंसेप्चुअलाइज , मैं ये चीज़ रिकॉग्नाइज करता हूँ कि आई एम नॉट इन अ स्टेबल प्लेस माइसेल्फ सो मेनी रीज़न बी दैट फाइनेंशियल।

आचार्य: अभी वॉशरूम से अन्दर आ रहा था वहाँ पर अभी एक लड़की को लेकर के आ रहे हैं। ये क्या है पढ़ी-लिखी होगी। और उसके चारों ओर पचास औरतें और दो लोग उसको बिलकुल डॉल बना रखा है और पता नहीं क्या–क्या उसके मुँह पर पोत रखा है। एक ने भी मास्क नहीं पहन रखा था, ठीक है? ये शुरुआत है। एक पढ़ी-लिखी, शायद वो पोस्ट ग्रेजुएट लड़की होगी, वो कैसे बर्दाश्त कर सकती है कि उसको इस तरीक़े से कितने अनकम्फरटेबल और अनसीमली अट्टायर में डाल दिया गया है और जो कुछ भी उसके साथ हो रहा है। जब शुरुआत ही ऐसे हो रही है तो फिर अब देख लो न आगाज़, अंजाम एक ही होने हैं।

प्र: और ये रिचुआलिस्टिक रिपीटेशन जो है ऐसा नहीं है मेरे घर में नहीं हुआ है। हुआ है, ये हर जगह होता है। तो एक तो फिर आप ऑन वन एण्ड अबाउट रिलेशनशिप व्हाट डू यू आर सेइंग इज़ इफ़ इट इज़ नॉट कॉन्सिएंस एण्ड इंटेंटफुल, इफ यू नॉट अप्लाइड क्वालीफाइंग क्राइटेरिया इन अ फिल्टर, इफ यू नॉट थौट इट थ्रू ह्विच से दस, पन्द्रह, बीस साल व्हाट एवर योर इवेंचुअल पर्पज़ इज़ उसके साथ अलाइन होता है या नहीं।

आचार्य: नहीं उतना लम्बा नहीं पता होता हैं किसी को भी दस, पन्द्रह साल किसी को भी नहीं पता होता। लेकिन इतना तो पता होता है न कि मुझे डरकर नहीं जीना, इतना तो पता है?

प्र: हाँ

आचार्य: उस निडर जीवन के टैंजेबल मैन्यूफेस्टेड फॉर्म क्या होंगे दे विल अनफ्लोड इन टाइम , हमें नहीं पता आज। दस, पन्द्रह साल का हम नहीं जानते। लेकिन इतना तो हम जानते हैं कि आज का दिन हो या चाहे आज से बीस साल बाद की बात हो, सौ साल बाद की बात हो। 'साहब! मैं डरे–डरे तो नहीं जीना चाहता।' तो अपनी ज़िन्दगी में किसी ऐसे को काहे को ला रहे हो को तुमको डरा के रखेगा, जिसका तुम्हारा रिश्ता ही लालच का हो?

ये बात तो पता होनी चाहिए न। उदाहरण के लिए, अब ये एक वैल्यू की बात है कि मुझे किसी ऐसे से रिश्ता नहीं रखना है जो कि अपनी कमज़ोरी का फ़ायदा उठाता हो। कमज़ोरी दिखा दिखाकर के सहानुभूति पाना चाहता हो, कुछ रियायतें पाना चाहता हो, कुछ बेनिफिट्स पाना चाहता हो। तो अपनी ज़िन्दगी में किसी ऐसे ही क्यों लाऊँ? जो बार–बार यही दिखाता हो — ‘देखो मैं इतना कमज़ोर हूँ, तुम्हारा सहारा नहीं मिला तो मैं मर जाऊँगा। और ये एक बहुत कॉमन स्टेटमेंट होता है न? ‘तुम्हारा सहारा नहीं मिला तो मर जाऊँगा।’ ‘साहब! मैं ख़ुद ऐसा बन्दा हूँ जो कमज़ोरी को मूल्य नहीं देता, अगर मैं कमज़ोरी को मूल्य नहीं देता तो मैं कमज़ोर को कैसे मूल्य दे सकता हूँ? तो एक कमज़ोर आदमी अपनी ज़िन्दगी में क्यों ले आये तुम?' ये बात हम सोचते नहीं हैं। और तुम यंग लोगों से बात करते हो, ये बात उनको सोचवाओ।

प्र: एक रिलेशनशिप कैसे निभाना है स्पेशली जो इतना इंटिमेट रिलेशनशिप होता है इतना एक प्राइवेट रिलेशनशिप होता है उसकी कोई प्रैक्टिस नहीं देता। ज़्यादातर लोगों को सीधा शादी में — 'लो! अब सँभालो! अब देखो! हैंडल करो। न तुम्हारी च्वाइस थी और कल से सारी टेंशन तुम्हारी है। बड़ा एसेमेट्रिक डील है।

आचार्य: ये निभाने का मतलब क्या है?

प्र: ऐसा तो होता नहीं, आचार्य जी कि इतने अंतरंग सम्बन्धों में छोटे-छोटे संघर्ष नहीं होते। थोड़ी बहुत तो पेंडुलम यहाँ–वहाँ दौड़ता है। बल मैं तो ये भी कहता हूँ, ‘मैं उम्मीद नहीं कर सकता जो भी मेरी टू होन होंगी उनको इतनी जा है। तो उदाहरण के लिए ऐसा होता है कि अगर आप एक इतने अंतरं में जहाँ आप एक सीमारेखा नहीं बना सकते।। यदि आप नहीं कहते कि क्या सही है, क्या ग़लत है

या क्या बातचीत करने योग्य नहीं है। तो वह सम्बन्ध ज़हरीला हो जाता है एक आदमी सीमारे करता चला जाता है दूसरा वाला आदमी सॉरी–सॉरी बोलता चला जाता है। ये चीज़ मैंने महसूस किया है सम्बन्धों में रहकर। और अगर मैं वो अनुभव नहीं लिया होता तो जब भी मैं शादी करूँगा तो मैं उस दूसरे इंसान से ये भी नहीं कह पाता कि सुनो मुझे सीमारेखा मत पार करने दो।

आचार्य: निभाने का क्या मतलब है?

प्र: आँधी से जहाज़ को बचाना। आँधी तो आयेंगी न।

आचार्य: किधर को जा रही है ये शिप (जहाज़)? क्यों जा रही है?

प्र: मतलब डिपेंड करता है किसकी शिप है? मेरी शिप किसी पर्पज़ से जा रही है।

आचार्य: जैसे तुम्हारी शिप है उस पर कोई बन्दा बैठा हुआ है तो उस निभाने का मतलब क्या हुआ? थोड़ा और ध्यान दो।

प्र: उपहार लोगों को पसन्द आते हैं। मेरे घर पर कभी कल्चर नहीं रहा। हम एक-दूसरे को गिफ्ट उपहार नहीं देते। ये अपने सम्बन्ध को पोषण देने का एक तरीक़ा है ।

आचार्य: नहीं, तुम उसे जो गिफ्ट दे रहे हो वो गिफ्ट उसकी कमज़ोरी को बढ़ा रहा है या उसको खुश कर दे रहा है उसकी कमज़ोरियों को अपीज़ करके, या वो गिफ्ट उसको एक बेहतर इंसान बना रहा है और उठा रहा है? हर बन्दे के अन्दर दो चीज़ें होती है, एक उसके अतीत और आदतों का ज़ोर जो उसको नीचे खींचता है, बन्दा हो चाहे बन्दी हो, उसकी अतीत और उसकी आदतों का ज़ोर जो उसको नीचे खींचता है इसको तुम डाउनवर्ड पुल बोल सकते हो। और एक होती है उसकी चेतना, उसकी कॉन्सियसनेस की आवाज़, कराह जो ऊपर जाना चाहती है, इसको अपवर्ड पुल बोल सकते हो। ऊर्ध्वमन, अध्यात्म में ऐसे बोलते हैं। उत्थान या पतन बोल भी बोल लो। हर बन्दे के भीतर ये दो चीज़ें होती हैं।

तो तुम्हें कैसे निभाना है ये बात जाननी बहुत ज़ है। मेरी वफ़ा, मेरी फेडिलिटी किससे है? तुम्हारे भीतर की उस चीज़ से जो तुम्हें नीचे खींचती है लेकिन तुम्हें बहुत प्यारी है वो क्योंकि उसके साथ तुम्हारा सुख, सहूलियत, सुविधाएँ, कंफर्ट जुड़े हुए हैं। या मेरी वफ़ा तुम्हारे उस हिस्से से है जो ऊपर जाना चाहता है लेकिन आमतौर पर ऊपर जा नहीं पाता क्योंकि उसको माहौल नहीं मिलता, साथी नहीं मिलता, प्रेरणा नहीं मिलती; ‘मैं किससे वफ़ा निभाऊँ?'

कमिटमेंट मेरा किसके प्रति है? तेरे सच के प्रति कि तेरे झूठ के प्रति? तेरे भीतर दोनों हैं। हर बन्दे के भीतर ये दोनों होते हैं — एक सच, एक झूठ। मैं वफ़ा किससे निभाऊँ? ये जानना बहुत ज़रूरी है। ज़्यादातर वफ़ादारी के नाम पर हम दूसरे के झूठ से वफ़ा निभाते जाते हैं। और इससे ज़्यादा अन्याय हम किसी के साथ कर नहीं सकते कि हम उसके झूठ के साथ वफ़ादारी निभाएँ, उसके झूठ को प्रोत्साहन दे दें। और ये सब प्यार के नाम पर होता है कि वो इतना प्यारा है कि मुझे उसके झूठ को भी पालना पड़ता है। झूठ बोलने का मतलब ये नहीं होता कि चार बजा है, मैंने बोल दिया कि पाँच बजा है। झूठ का मतलब समझ रहे हो न?

प्र: हाँ, हाँ, हाँ।

आचार्य: जो है नहीं पर जिसको तुमको कहना चाहते हो, मानना चाहते हो कि है, वो झूठ है। तो बिलकुल निभाओ, बेशक निभाओ, लेकिन सही से निभाओ न! जो चीज़ सही है उससे निभाओ।

तुम मेरे पास आओ कि आओ दोनों चलकर के गटर में मुँह दे देते हैं! मैं यारी क्यों निभाऊँ तुमसे?

प्र: बिलकुल।

आचार्य: तुम मेरे पास आओ कि चलते हैं किसी ऊँचे एक्सपेक्टेशन पर। मैं कहूँगा, 'बिलकुल जान का जोखिम है लेकिन मैं तेरे साथ चलूँगा, यार है तू मेरा।' अब निभाएँगे न यारी, अब निभाएँगे वफ़ादारी, कि वहाँ पर जान भी जा रही होगी लेकिन तेरा साथ नहीं छोडूँगा क्योंकि काम वो ऊँचा है। ‘अब तू ऊँचा नहीं है, तूने जो अभी अपने भीतर चयन किया न ऊँचे वर्सेज़ नीचे में वो चयन वो च्वाॉइस थी। तू तो ऊँचा भी हो सकता है, नीचा भी हो सकता है। हर बन्दे के भीतर दोनों है — ऊँचाई भी, निचाई भी। तो तुम्हारी ऊँचाई, तुम्हारा क्रेडिट , तुम्हारा श्रेय इसमें है। तुम्हारा श्रेय इसमें है कि तुम्हारे भीतर की ऊँचाई को चुनो, और मेरा इसमें है कि मैं तुम्हारी मदद करूँ ऊँचे-ही-ऊँचे जाने में।'

तुमने अगर ग़लत चुनाव कर रखा है, तुम कहते हो कि नहीं आई एम साइडिंग विथ द बेसिक टेंडेंसी ऑफ माइन , वो सब कुछ जो घटिया है, गिरा हुआ है मैं तो साहब, उसी के साथ आइडेंटिफाइड हूँ, मुझे उसी का समर्थन करना है तो साहब! हम इसमें आपके साथ नहीं हैं। एण्ड दैट्स द बेस्ट फेवर दैट आई कैन डू टू यू (और ये सबसे अच्छा उपकार है जो मैं तुम पर कर सकता हूँ), आई विल डिसोसिएट।'

‘मैं हटूँगा क्योंकि इस वक्त तुम ग़लत चुनाव कर रहे हो और इस ग़लत चुनाव में मैं तुम्हारा पार्टनर नहीं बन सकता। हटकर के मैं तुमको एक सन्देश दे रहा हूँ, एक मैसेज दे रहा हूँ बल्कि एक इंस्पिरेशन दे रहा हूँ कि अपने चुनाव को बदलो। अगर तुम सही चुनाव नहीं करोगे तो यू आर नॉट फाइंडिंग मी नियर यू' (तुम मुझे अपने आस–पास नहीं पाओगे)।

प्र: आचार्य जी, एक दोस्ती में ये कर पाना ज़्यादा आसान होता है एज़ अपोज़िट टू एक रोमेंटिक रिलेशनशिप।

आचार्य: रोमेंटिक कुछ नहीं है। दोस्ती में फिजिकल प्लेज़र कुछ नहीं होता यार! रोमेंटिक में ये लगता है बन्दी छूट जाएगी, सेक्स नहीं मिलेगा, और कोई बात नहीं है। बस यही है और कुछ नहीं है। ये तो तुम बन्दी के साथ अन्याय कर रहे हो न कि उसकी बॉडी को भोगने के लिए तुम उसको सच्चाई दिखाने को ही राज़ी नहीं हो।

प्र: बिलकुल सही।

आचार्य: और बन्दों ने बन्दियों के साथ हमेशा यही इनजस्टिस किया है।

प्र: फॉर एवर (हमेशा के लिए)।

आचार्य: फॉर एवर कि बन्दी को कोई बन्दा आईना दिखाना ही नहीं चाहता। वो कहता है, ‘कौन इसको सच्चाई बताकर के इसको परेशान करे! मैं इसको सच्चाई बता दूँ, ये चली जाएगी, मुझे सेक्स कैसे मिलेगा? तो मैं उसको झूठ बताऊँगा, मैं इसे बहला–फुसलाकर रखूँगा। इसी बहाने मेरी सेक्स की सप्लाई अनइनटरप्टेड रहेगी।

प्र: बिलकुल इतनी गिरी हुई बात है ये।

आचार्य: बिलकुल इतनी गिरी हुई बात है, इतनी ही गन्दी बात है। इससे भी ज़्यादा गन्दी बात ये है कि बन्दियाँ इसमें बराबर की पार्टनर बनती हैं। उन्हें पता भी चलता है न कि बन्दा मेरी झूठी तारीफ़ कर रहा है सिर्फ़ सेक्स पाने के लिए तो भी वो ख़ुद मानना चाहती हैं कि तारीफ़ सच्ची हैं।

अरे, वो तेरे मुँह पर तूझसे झूठ बोल रहा है उसका इरादा सिर्फ़ रात का है। तू क्यों उसकी बात मान रही है!

प्र: एट दिस प्वाइंट रिस्ट्रेन इज़ नॉट योर बेस्ट फ्रेंड। मे बी इट इज़ एक्सपेरिमेंटेशन, मे बी इट इज़ फिगरिंग ऑउट एण्ड मेकिंग मिस्टेक्स सो बाय द टाइम ट्वेंटी एट, ट्वेंटी नाइन यू आर प्रिपेयर्ड (इस बिंदु पर संयम आपका सबसे अच्छा मित्र नहीं है। हो सकता है कि ये प्रयोग हो, हो सकता है कि ये पता लगाना हो और ग़लतियाँ करना हो, इसलिए अट्ठाईस, उन्तीसवें समय तक आप तैयार हो जाएँगे)

आचार्य: विद दैट एक्सपेरिमेंटेशन हैज टू हैपन विथ आई ऑन द ट्रूथ (उस प्रयोग के साथ सत्य पर नज़र रखनी होगी)। नॉट एन आई ऑन कंजप्शन (उपभोग पर नज़र नहीं)। सी, देयर इज़ एन काइंड ऑफ एक्सपेरिमेंटेशन दैट सेज़ (देखिए, ये एक प्रकार का प्रयोग है जो कहता है), ‘मेरे को ये भी ट्राई करना है, मेरे को ये भी ट्राई करना है, मेरे को ये भी ट्राई करना है, मेरे को भाँति–भाँति के ड्रिंक्स ट्राई करने हैं'; काहे के लिए? ज़्यादा मज़ा इसमें आएगा? ये नहीं। प्लेज़र एक्सपेंशन , ये नहीं करना भाई!

एक्सपेरिमेंटेशन हैज़ टू बी विथ अ निगेटिव इंस्पिरेशन (प्रयोग नकारात्मक प्रेरणा से होना चाहिए)। नेगेटिव इंस्पिरेशन क्या? ‘मैं एक्सपेरिमेंट कर रहा हूँ इसको भी ठुकराने के लिए।’

प्र: एलिमिनेशन (निकाल देना) के लिए।

आचार्य: एलिमिनेशन के लिए, इसको भी निगेट करने के लिए, इसको भी निगेट करने के लिए। ये भी वो नहीं है, ये भी वो नहीं है। इसलिए नहीं कि इसको भी भोग लिया, इसको भी चूस लिया, इसको भी गटक लिया। ये नहीं है मेरा उद्देश्य।

प्र: एक तरफ़ आपने मेजोरिटी शादियाँ और रिलेशनशिप को एक लाइन में सीधा बोल दिया कि यू आर नॉट वेल थॉट (आप अच्छे से नहीं सोचा है)। लाइक वाइज़ यू हैव डन विथ मोस्ट करियर चॉइस फॉर मोस्ट पिपल एवर एज़ वेल।

आचार्य: एवरीथिंग योर मैरेज, योर डिसिजन टू मैरी इज़ जस्ट अ रिफ़्लेक्शन एण्ड कंटिनुएशन ऑफ द वे यू हैव बीन ऑन योर लाइफ़ (सबकुछ आपकी शादी के बारे में, शादी करने का आपका निर्णय आपके जीवन के तरीक़े का एक प्रतिबिंब और निरंतरता है)। इट कैन नॉट बी एनी डिफरेंट (ये कोई भिन्न नहीं हो सकता)।

जैसे आपका सबकुछ ही अनथाॅट (बिना सोचा समझा हुआ), इंडीस्क्रीट है। वैसे ही आपने जिस बन्दे या बन्दी को पकड़ लिया है अपनी ज़िन्दगी में वो भी ऐसे ही है, रैंडम।

प्र: उस चीज़ के प्रति किस तरीक़े से मूवमेंट करी जाए, किस तरीक़े से ओरिएंटेशन की जाए कि ये चीज़ेंं मेरे लिए एम्प्लीफिकेशन बने, रिस्ट्रिक्शन या कॉन्फ्लिक्ट न बने।

आचार्य: देखो, छोटी-से-छोटी चीज़ में तुमको ये याद रखना होगा कि इसका जो परिणाम है वो बहुत बड़ा होनेवाला है। इसलिए नहीं कि मैं अगर एक ग़लत बेवरेज पी रहा हूँ तो वो भीतर जाकर के मेरे पेट को ख़राब कर देगी। इसलिए क्योंकि एक ग़लत च्वाइस मुझे और ज़्यादा कंडिशन्ड करती है और ज़्यादा ग़लत च्वाइसेज़ करने के लिए।

मैं झुन्नूलाल हूँ। मुझे ये नहीं पता मुझे चप्पल कौनसी पहननी है। मुझे ये नहीं पता कि मुझे टूथब्रश कौनसा खरीदना है, मैं ये नहीं जानता मैं कौनसी किताब पढूँ, जब शादी करने का टाइम आएगा तो मुझे आइनराइंड थोड़े ही मिल जाएगी।

प्र: राइट, राइट, राइट।

आचार्य: ठीक है? झुन्नूलाल को आइनराइंड नहीं मिल जाएगी लेकिन झुन्नूलाला की ख़्वाहिश यही रहती है कि मैं ज़िन्दगी में कैसा भी हूँ, मैं एक–एक चीज़ ग़लत कर रहा हूँ, सबकुछ ग़लत कर रहा हूँ। उस पर जब मैं छोटी सी ग़लत करता हूँ तो मैं हँसता हूँ बहुत ज़ोर से — ‘हा, हा, हा…’। बल्कि मैं उसकी इंस्टाग्राम रील्स बनाकर के डाल देता हूँ। ‘देखो, मैं कितना बड़ा बेवकूफ हूँ’, वो वायरल हो जाती है। लेकिन उसकी तम्मन्ना यही रहती है, बल्कि उम्मीद भी रहती है कि शादी के लिए तो मुझे पता नहीं मुझे कौनसी टॉप नॉच बन्दी मिल जाएगी। अरे! तुम अपनी ज़िन्दगी देखो। तुम जैसे हो तुम्हें वैसी बन्दी मिलेगी।

इतना ही नहीं, तुम जिसको टॉप नॉच समझोगे वो टॉप नॉच होगी ही नहीं। ये तुम्हारी ट्रेज़ेडी होगी। क्योंकि तुम्हें ये पता ही नहीं है कि टॉप बोलते किसको हैं? तुमने बॉटम को टॉप का नाम दे रखा है, तुमने गिरे हुए को ऊँचा समझ रखा है। तो तुम जिस बन्दी को ऊँचा समझोगे वो भी वास्तव में गिरी हुई होगी लेकिन तुम उसे ऊँचा समझ रहे होगे। समझ में आ रही है बात?

प्र: बिलकुल

आचार्य: तो ज़िन्दगी में इसीलिए हर छोटी–छोटी चीज़ में थोड़ा होश रखना चाहिए कि मैं कर क्या रहा हूँ।

प्र: तो आचार्य जी इतनी टेंशन आदमी कहाँ कैरी करेगा?

आचार्य: वो टेंशन नहीं है। ये होश है, ये ईमानदारी हैं।

प्र: मतलब ग़लती करने का कोई स्कोप नहीं है क्या?

आचार्य: तुम मुझसे बात कर रहे हो मैं पगलाता रहूँ, मैं बेहोश रहूँ, मैं इधर–उधर सोचता रहूँ, मैं गाने सुनूँ। मुझे कोई टेंशन नहीं है। मैं यहाँ सहज बैठा हुआ हूँ। तुम्हारी बात का जबाब दे रहा हूँ। इसे होश बोलते हैं, भाई। यही ज़िन्दगी है। हमारा-तुम्हारा जो अभी सम्बन्ध है यही तो ज़िन्दगी है न। अभी हमारा, तुम्हारा सम्बन्ध है। अभी मेरा और इस चाय का सम्बन्ध है। अभी मेरा के इसका सम्बन्ध है (सामने इशारा करते हुए), इस कैमरे का सम्बन्ध है। यही सब ज़िंदगी दगी है, और इसमें आपको एक सहजता रखनी है; उसी सहजता का नाम होश है। दिक्कत ये है कि हम बेहोशी के इतने अभ्यस्त हो गये हैं कि होश हमको टेंशन जैसा लगता है। होश, टेंशन नहीं है।

प्र: लेकिन मान लीजिए कि मैं बड़ी होशपूर्ण ज़िन्दगी जीता हूँ।

आचार्य: ये जैसे तुमने बोला न, ऐसे जी ही नहीं पाओगे। होशपूर्ण ज़िन्दगी ऐसे नहीं होता।

(दोनों हँसते हैं)

आचार्य: होशपूर्ण का मतलब बस ये होता है कि यार! तुम साधारण ही कहीं चले जा रहे हो। तुमको पसन्द आएगा कि कोई तुम पर आकर के कीचड़ डाल जाए?

प्र: नहीं।

आचार्य: बस यही होश है! कि हम बात कर रहे हैं उसमें मुझे पसन्द नहीं आएगा कि इस बातचीत में मैं ऐसा कुछ कर दूँ कि बातचीत पर कीचड़ आ जाए। ये होश है, ठीक है? मैं चाय पी रहा हूँ; तुम दाल–चावल खा रहे हो, तुम्हें पसन्द आएगा कि इसमें कंकड़ आ जाए?

प्र: नहीं।

आचार्य: नहीं पसन्द आता न? ये होश है। बस इतनी तो सेंसिटिविटी रखो न, कि कुछ ग़लत हो रहा है, ये होश है। इतनी सी सेंसिटिविटी कि कुछ ग़लत हो रहा है और मुँह में कंकड़ आ गया यार! तो उसको चबाते नहीं रहना है, थूक देना है।

प्र: लेकिन एक शिफ्ट तो है न गियर्स में। एक मिनिमम शिफ्ट तो है कि नहीं है वो भी?

आचार्य: अब मुझे मालूम नहीं है कि डाल–चावल खाते हुए कंकड़ आ जाए तो उसमें शिफ्ट क्या है।

प्र: क्या हमें बेहोशी को एज़ अ प्योर अवॉइडेंट (दूर करने योग्य) तरीक़े से देखना चाहिए? जैसे मैं बेहोशी का एग्जाम्पल देता हूँ–क्या मेरी इस इंटेंटफुल लाइफ़ में…

आचार्य: किसी ऐसे के बगल में बैठना चाहिए जिसके मुँह में जो कंकड़ आ जाता हो तो वो थूक देता हो। तो हमने जो इतनी रिहर्सल कर रखी है न, कंकड़ को भी चबाने की, हमें उसी वक्त ये स्ट्राइक करेगा कि ये बेवकूफ़ी का काम है।

अभी होता क्या है कि पूरी एक टेबल बैठी हुई है कंकड़ चबाने वालों की, उनके बीच में हम बैठे हैं और वहाँ कंकड़ चबाने का तरह–तरह से अभ्यास किया जा रहा है बल्कि ये प्रतियोगिता ही चल रही है कि कौन कंकड़ कैसे चबा पाएगा। बचपन से यही देख रहे हैं। तो हमको ये बात अकर ही नहीं करती है, सूझती ही नहीं है कि कंकड़ थूका जाना चाहिए भाई! और जब तुमको ये बात सुझती है न, तो तुम्हें हँसी आती है क्योंकि ये बात इतनी औब्वियस (स्पष्ट) थी।

बुद्ध धर्म को यही बोलते हैं कि जब उसको चमका था तो हँसने लग गया था। और उसका यही था कि ये तो इतनी सहज, इतनी औब्वियस बात है, ‘ये मुझे इतने दिनों से समझ में क्यों नहीं आ रही थी!' क्योंकि कोई बात है ही नहीं। कोई दिव्य ज्ञान नहीं है ये, बहुत सीधी सी बात है कि मुँह में कंकड़ आए तो इसे…

प्र: थूक दो!

आचार्य: थूक दो! बस यही है होश।

प्र: ठीक है। तो आचार्य जी, इसी लाइन में मैं आजकल इस चीज़ के बारे में सोचने लगा हूँ, इनफैक्ट मैं कोई रिसोर्सेज पढ़ रहा था जो आपने लिखे हैं उसमें बहुत एक इंटरेस्टिंग बात थी। और वो इंटरेस्टिंग बात ये थी कि ध्यान दो कि जो तुम जो म्यूज़िक भी सुन रहे हो उसमें क्या लिरिक्स विस्पर हो रहे हैं (उस गाने के बोल जो सुनाई दे रहे हैं)। और मैं म्यूज़िक का बड़ा शौकीन, बचपन से शौक रखा है, हर तरह का म्यूज़िक सुना है, एवरीथिंग। एण्ड मैंने वो कैजुअली पढ़ा, मैसेज पास हो गया। मैं आगे अपनी ज़िन्दगी जी रहा था। एक मेरे को अचानक बड़ा रोमेंटिक सैड सॉन्ग मिला बड़े दिनों के बाद, मेरा टेस्ट नहीं है बस सुनने लगा। अचानक मैंने रियलाइज़ करा मैं न ख़्यालों में खो चुका हूँ कि आई एम थिंकिंग अबाउट समथिंग। और वो ऐसा भी नहीं म्यूज़िक सुनते हुए। सुनने के बाद रात को सोने से पहले नये ख़्याल आ रहे हैं, वही पुराने।

एण्ड देन इट्स स्ट्रक में वॉस लाइक दिस इज़ समथिंग इंटरेस्टिंग फैक्ट कि इस लेवल पर ये चीज़ेंं इफेक्ट करती हैं। योर एनवायरमेंट एनफ्लुएंसेस यू मैसिवली (आपका वातावरण आपको व्यापक रूप से प्रभावित करता है)। दैट यू मस्ट बी इंटेंटफुल ऑफ हाउ यू डेकोरेट योर एनवायरमेंट (कि आपको इस बात से संतुष्ट रहना चाहिए कि आप अपने पर्यावरण को कैसे सजाते हैं)।

एवरीथिंग फ्रॉम द वे योर रूम इज़, टू द वे योर ड्रेस, व्हाट यू लिसन टू सॉर्ट ऑफ इनफ्लुएंस ऑफ योर बिहेवियर (आपका कमरा कैसा है, आपके कपड़े पहनने के तरीक़े से लेकर आप जो सुनते हैं, सब कुछ आपके व्यवहार को प्रभावित कर सकता है), किस चीज़ को तुम कैसे खेलना चाहते हो। संगति, जैसे हमें सिखाया जाता है कि यू आर द एवरेज ऑफ द फाइव पिपल अराउंड योरसेल्फ़ (आप अपने आसपास के पाँच लोगों में औसत हैं)। आई थिंक दिस मैसेज डज नॉट गेट पास्ड ऑन इनइफेक्टिवली एनफ़ (मुझे लगता है कि ये संदेश असीमित रूप से प्रसारित नहीं होता है)।

आचार्य: उससे ज़्यादा तो कुछ महतवपूर्ण है ही नहीं। कुछ और नहीं! कुछ और नहीं!

प्र: मेरे आस–पास जो लोग हैं जिनकी मैं परवाह करता हूँ, जिनकी मैं फिक्र करता हूँ उनके कोई एस्पिरेशनल तो छोड़ो, कोई वेल थॉट आउट भी एजेंडाज़ नहीं हैं लाइफ़ के।

अब मैं उनको डिस्कार्ड कर दूँ? या मैं नये लोग ढूँढूँ? इसका कन्वर्स ये है कि मेरे कुछ एजेंडाज़ हैं लाइफ़ में लेकिन मेरे आस–पास के लोग उन बातों में भी इंटरेस्टेड नहीं है। कहाँ ढूँढूँ मैं ऐसे लोगों को?

आचार्य: देखो कोई किसी के लिए भगवान नहीं बन सकता। तुम उनकी मदद करने की कोशिश कर सकते हो। अगर ये साफ़ दिख गया है कि वो जिस हालत में है उन्हें मदद की ज़रूरत है। उन्हें मदद करने की ज़रूरत है तो तुम उनकी मदद करने की कोशिश कर सकते हो। लेकिन भगवान नहीं हो तुम। उनकी मदद हो पाएगी या नहीं हो पाएगी ये तो उन पर निर्भर करता है। उन्हें ये निर्णय करना होगा कि हम बेहतर होना चाहते हैं।

वो बेहतर होना चाहते हैं तुम्हारे साथ आ जाएँगे। वो बेहतर नहीं होना चाहते तो तुम ज़बरदस्ती तो कर नहीं सकते। तो बस यही तरीक़े है। डिस्कार्ड नहीं करना है। अगर अभी तक एक ग़लत बात के आधार पर रिश्ता था, तुम जाकर के सही बात करो या कहो, जो भी। दस में से दो-तीन होंगे जो सुधरना चाहते हैं, जो और ज़्यादा निखरना चाहते हैं अपनी संभावना, अपनी पोटेंशियल को साकार करना चाहते हैं वो तुम्हारे साथ आ जाएँगे। बाक़ी आधी तो तुम्हारी सुनेंगे ही नहीं या तुम्हारे विरोध में हो जाएँगे। उनका तुम कुछ कर नहीं सकते। उनको एक-दो बार को समझाने की कोशिश कर लो लेकिन एक एडल्ट , वयस्क, जवान आदमी का तुम कान तो पकड़कर के लाओगे नहीं कि तुझे सुधरना ही होगा। उसको, तुम्हें उसके हाल पर छोड़ना पड़ेगा। तुम्हारे पास और कोई विकल्प नहीं है।

प्र: इफ़ माय बॉस इज़ सो एन्ड सो देन व्हाट? ये बड़ा इंपोर्टेंट क्वेश्चन है कि मेरा बॉस मुझे ऐसे ट्रीट करता है, मेरा बॉस मुझे वैसे ट्रीट करता है। एक तो सर, ज़रूरत की बात है कि आदमी को ज़रूरत होती है पैसे कमाने की। मैं समझता हूँ इफ यू आर गोइंग टू अ जॉब, इफ यू आर गोइंग टू टेक अ लीडर यू हैव टू बी वैरी कॉन्सियस ऑफ हू यू लेट इनसाइड योर माइंड (यदि आप नौकरी करने जा रहे हैं, यदि आप कोई लीडर बनाने जा रहे हैं तो आपको इस बात के प्रति बहुत सचेत रहना होगा कि आप किसे अपने दिमाग में आने देते हैं) लेकिन ये फोर्स , ये लाइन ऑफ रीजनिंग गेट ऑब्स्ट्रेक्टेड बाय ज़रूरत वाला क्लॉज , कि फिर मैं क्या करूँ, ‘मुझे पैसे भी तो कमाने हैं घर पर भी तो देने हैं।'

तो क्या ये हम इंडियन्स की डेस्टिनी है कि हम इस तरीक़े से पिसें? या कोई एक वे आउट है ये थोड़ा प्रैग्मेटिक सवाल है।

आचार्य: सवाल सारे प्रैग्मेटिक (व्यावहारिक) ही होने चाहिए। ज़िन्दगी जीनी है प्रैक्टिकली।

देखो, मेहनत बढ़ानी पड़ेगी और कोई तरीक़ा नहीं है। मैं इस बात से सहमत हूँ कि आपकी कोई बिलकुल वाज़िब ज़रूरत हो सकती है कि घर पर पैसे देने हैं। कई बार ग़ैर–वाजिब भी होती है कि आपको ज़बरदस्ती देने हैं घर में। फालतू के कंजप्शन के लिए देने हैं घर में, कि मैं कह रहा हूँ कि मेरे घर में तीन कमरे हैं साहब! हर कमरे में ढ़ाई–ढ़ाई टन का एसी लगवाऊँगा इसलिए घर में पैसे देने हैं। या घर में एक गाड़ी है, मैं दूसरी बड़ी गाड़ी लेकर के आऊँगा इसलिए पैसे देने हैं। तो ये तो ग़ैर–वाजिब ज़रूरत है। पर वाजिब ज़रूरत भी हो सकती है मैं डिनाइ (मना करना) भी नहीं करता उसमें।

आप अभी जिस बॉस के साथ हैं आपको पक्का भरोसा है कि वो बदतमीज़ है। तो खोजो न! दूसरी जगह पर जाओ, खोजो। उसमें मेहनत लगती है। किसी दूसरे क्षेत्र में जाओ, वहाँ भी मेहनत लगती है। तो अगर तुम्हें पक्का भरोसा हो ही गया है कि तुम किसी तरीक़े के बन्धन में हो या तुम कहीं पर दलदल में फँसे हुए हो, रट में गिरे हुए हो तो बाहर आओ। बाहर निकलने के लिए हाथ–पाँव चलाने पड़ेंगे, मेहनत लगेगी। तो इनसब चीज़ों का एक ही ज़बाब है लेट्स स्ट्राइफ़ (संघर्ष करना)।

प्र: या तो आज डाउन पेमेंट ले लो मेहनत की या सारी ज़िन्दगी एक–एक किश्त में चुकाते रहो दुःख। यही ऑप्शन रह जाता है।

आचार्य: या ये देख लो कि तुम जिस पैसे के लालच में उस बॉस की ग़ुलामी कर रहे हो, तुम्हें वो पैसा कितना चाहिए। ये दो चीज़ें हैं जिनको बैलेंस आउट कर लो। एक तरफ़ है तुम्हारे पैसे की तथाकथित ज़रूरत — ज़रूरत विदिन कोट्स , ज़रूरत। और दूसरी तरफ़ है वो सब अपमान या दुर्व्यवहार या जो तुमको अपने बॉस से सहन करना पड़ता है। तुम देख लो कि क्या ज़्यादा वैल्युएबल है? ये बिलकुल हो सकता है कि जिस चीज़ को तुम कह रहे हो कि मुझे पैसे की ज़रूरत है, उसमें काफ़ी कमी की जा सकती हो, शायद तुम्हें उतने पैसे की ज़रूरत न हो जितनी तुमने अपने लिए गढ़ रखी है या किस्सा बना रखा है।

एक बार तुम्हारी ज़रूरतें कम हो गयीं तो साथ ही तुम्हारी जो मजबूरी है बॉस को झेलने की, वो मजबूरी भी कम हो जाएगी। पर आप ये नहीं कर सकते कि मुझे इसी बन्दे से इतना पैसा लेना है लेकिन उस बन्दे को मेरे हिसाब से व्यवहार करना चाहिए।

यार! वो क्यों करेगा तुम्हारे साथ ऐसे व्यवहार?

प्र: और तुम कन्फ्लिक्टेड रहोगे। तुम ट्रबल्ड रहोगे।

आचार्य: बिलकुल, बिलकुल। तुम या तो चुप होकर के बैठ जाओ कि पैसा मिल रहा है न तो वो लात भी मारेगी तो झेलनी ही है। चुप–चाप ठीक है, डील है। अब उस डील को तुमने ख़ुद ही साइन किया है तो स्वीकार करो कि वो मुझे पैसा देगा बदले में लात मारेगा, सीधी–सीधी डील है। या दूसरी बात ये है कि तुम देख लो कि उतने पैसे की ज़रूरत नहीं है। और तीसरी बात ये है कि अगर ज़रूरत है तो मेहनत करके फिर अपने लिए कोई और रास्ता निकालो।

प्र: बिलकुल, बिलकुल। जो पॉलिटिकल रेडिक्लाइजेशन में अठारह, उन्नीस साल के बच्चे मैं देखता हूँ, वो मैं अट्ठाइस, उनतीस साल के आदमी में नहीं देखता। और वो पार्टी इसलिए होता है कि उस अठारह, उन्नीस साल के बच्चे में उसकी बैंडविड्थ के साथ रिस्पॉन्सिबिलिटी टाई नहीं हुई है अभी। अभी वो कॉलेज में हैं अभी एक चीज़ फ़िगर आउट कर रहा है। मैं इतना सरप्राइज़ होता हूँ कि पॉलिटिकल कल्चरल वर्ल्ड्स आर थ्रोन अराउंड विथ सो मच सर्टेनिटी फ्रॉम सिवेंटीन ईयर ओल्ड इट इज़ अनबिलिवेवल। एज इफ़ फ़िगर आउट व्हाट इज़ राईट ऑर रॉन्ग पॉलिटिकली और ये..

आचार्य: ये फिर चीज़ दूसरी है। ये बताता हूँ क्या है। ये नॉलेज-लेस कॉन्फिडेंस है। आपको पक्का पता चल गया है, फॉर एग्जांपल, दैट द राईट इज़ इविल (उदाहरण के लिए, कि जो सही है वो बुरा है)। क्यों? क्योंकि आपने दो ट्वीट पढ़ी हैं लाइफ़ में। आपने ज़िन्दगी में दो ट्वीट पढ़ी थीं और उसके बाद आपको पता चला राईट इज़ इविल। और आप इतने कॉन्फिडेंट हो कि आप ही ने अपनेआप को कन्विन्स कर दिया कि द राइट इज़ इविल। अब रात में मॉन्स्टर आ रहा है, राइट से और वो आपको सोने नहीं दे रहा। ये सबकुछ क्यों हो रहा है? क्योंकि आपमें राइट नॉलेज के लिए या डीप नॉलेज के लिए न कोई रिगार्ड है या न रिस्पेक्ट है। आप में सारी रिगार्ड और रिस्पेक्ट सिर्फ़ कॉन्फिडेंस के लिए है। कॉन्फिडेंस! —'भैया! मेरे को पता है।' अब मेरे को ये पता है आप किसको बताने गये थे? मैंने अभी दो ट्वीट पढ़ी पहले मैंने प्रखर के बोला — 'मेरे को पता है!'

क्या पता है?

राइट इज़ मॉन्सटर्स

फिर मैंने इसको बोला, ‘मेरे को पता है, मैंने उसको बोला मेरे को पता है। मैं कॉन्फिडेंट हूँ भाई! कल्चर ही कॉन्फिडेंस का है न। मैंने इसको बोला–राईट इज़ इविल। ये पाँच को बोलने के बाद छठा कौन था जिसको बोला मैंने?

ख़ुद को।

मैं ख़ुद ही कन्विन्स हो गया हूँ कि राईट इज़ इविल। और मैं कन्विन्स होने के बाद अब मैं बहुत बुरी तरह डर रहा हूँ। और डरकर के मैं कुछ कर भी नहीं सकता, बताओ क्यों? क्योंकि मुझे पता तो है ही नहीं कि राईट क्या होता है, लेफ्ट क्या होता है? वो कुछ नहीं जानता न राइट, लेफ्ट , सेंटर कुछ नहीं पता। पर उस दो ट्वीट्स ने उसे कन्विन्स कर दिया कि कुछ चल रहा है। ये जो चीज़ है न इजली कन्विन्स हो जाने की दिस काइंड ऑफ अ फूलिश लस्ट फॉर कॉन्फिडेंस विच इज़ बैटर देन कॉल्ड एबिलिबिलिटी। ये बहुत बड़ा रोग है आज के समय का। आज हर बन्दा ऐसे चौड़ में चलना चाहता है। 'चौड़ में चलना चाहता हूँ, चौड़ में चलना चाहता हूँ।' हमारे यहाँ इसको बोलते हैं निब्बा कॉन्फिडेंस। वो घूम रहा है उसको सब पता है। ‘हाँ जी, मुझे कोई बताना नहीं मैं बाप हूँ…।’ ये जो आज का रहता है – ‘बाप को मत सिखा।’ ठीक है, भैया! कुछ नहीं सिखाएँगे। लेकिन तुझे हम नहीं सिखाएँगे तो पता नहीं कहाँ से सीखेगा और फिर जहाँ से तू सीखता है वो चीज़ तुझे खा जाती है। फिर तुझे रात में नींद नहीं आती, तू बिस्तर गीला करता है। और फिर तू बोलता है, ‘अरे! अरे! एंग्जाइटी हो गयी।’ सबसे पहले जो हमें आज के कल्चर में चीज़ लानी है वो है — रिस्पेक्ट फॉर नॉलेज। नॉलेज ख़त्म हो गया है। अब सारा नॉलेज ट्वीट्स में चलता है।

प्र: ढाई सौ कैरेक्टर।

आचार्य: ढाई सौ कैरेक्टर , इंस्टाग्राम में फ़ोटो लगा दी वो नॉलेज बना जा रहा है। किताबें कौन पढ़ रहा है? लाइब्रेरी कौन जा रहा है? जरनल्स की मेंबरशिप कौन ले रहा है? कोई नहीं! लेकिन नॉलेजेबल सब हैं! ठीक है?

इनसे अभी पूछ दो — ‘भैया, तू कम्युनिज्म और मार्कसिज्म में अन्तर बता दे।’ ये नहीं बता पाएगा। पर ये लेफ्टी बनकर के घूम रहा है बिलकुल। इससे यही पूछ दो — ‘अच्छा लेफ्ट और कम्युनिस्ट में अन्तर क्या है? वो ये भी नहीं बता पाएगा। उससे पूछ दो — ‘तू राइट–राइट करता रहता है, राइट माने क्या होता है?’ ये नहीं बता पाएगा। पर वो बना बैठा है एकदम बना बैठा है। और बना ही नहीं बैठा है, वो कॉन्फिडेंट है। वो अपनी विडियोज निकाल रहा है, वो कुछ भी कर रहा है। ‘तुझे इतनी जल्दी क्या है वीडियो बनाने की? तुझे इतना जल्दी क्या है अपने दोस्तों के बीच में चौड़ दिखाने की? कुछ जान तो ले, कुछ समझ तो ले। थोड़ा समझ तो ले।’ कुछ भी नहीं, बहस कर रहे हैं और ये बहुत टॉक्सिक चीज़ हो गई है जहाँ पर हमने नॉलेज से रिस्पेक्ट एकदम हटा दी है।

आप कितने नॉलीजेबल हो इसका कोई मतलब नहीं है क्योंकि राइटिंग तो अब होती नहीं न? अब क्या होती है?

प्र: टेक्सटिंग।

आचार्य: (बोलने का संकेत करते हुए) न! बकर होती है। और बकर में आप कुछ भी बोलकर निकल सकते हो आप। आपके पास स्टाइल होनी चाहिए, आप कुछ भी बोलकर के निकल सकते हो। अब डिबेटिंग नहीं होती है अब रोस्टिंग होती है।

प्र: आई हैव फाउंड क्रिएटिसाइजिंग सम्बडी फॉर दैट कंटेंट इज अल्सो नॉट वेरी एक्सेप्टेड (मैंने किसी को इस बात के लिए आलोचना करते हुए पाया है कि सामग्री भी बहुत स्वीकार्य नहीं है। पिपल गेट वेरी फेनेटिकल वेरी फैनमोड अबाउट पिपल दैट एडमायर वेरी क्विकली अबाउट इट लोग उन लोगों के बारे में बहुत कट्टर हो जाते हैं, जो इसकी बहुत जल्दी प्रशंसा करते हैं। आप इसे इसमें कैसे फिट होते हुए देखते हैं?

आचार्य: सी, एडमायरर हैज़ टू बी अ क्रिटिक। क्रिटिसिज़म का मतलब निन्दा नहीं होता। क्रिटिसिज़्म का मतलब अंडरस्टेंडिंग होता है। इफ आई एम अ क्रिटिक देन आई अंडरस्टैंड। रचनाकार के जितना ही स्थान आलोचक का होता है और आलोचना ये नहीं होती है कि ये बुरा है, वो बुरा है, किसी को पुट डाउन, डिस्पराज ये सब नहीं होती है। क्रिटिसिज्म शब्द का मतलब ही गड़बड़ हो गया है। हमने क्रिटिसिज्म शब्द का मतलब ले लिया है किसी को गाली दे देनी है या बोल देना कि इसका तो कॉन्टेंट एकदम बेकार है। क्रिटिसिज्म का मतलब होता है समझना। क्रिटिसिज्म होता है समझना। और कोई समझने का खेल ही नहीं बचा है। अभी तो ये चल रहा है कि हाथ किसका ऊपर है।

प्र: अपीयरेंसेज।

आचार्य: अपीयरेंसेज और चौड़, बिना बात की चौड़। और हर आदमी को चौड़ में जीने का बहुत सस्ता तरीक़ा मिल गया है बस कि उसको गाली कर दो तो तुम्हें चौड़ आ गयी। चौड़ अपनेआप में बुरी चीज़ नहीं है अगर वो वेल अर्न्ड हो वो चौड़ जो एक एकेडमिक , एक स्कॉलर या कुछ भी ज़िन्दगी के चालीस साल लगा के अर्न करता है, राइटफुली अर्न करता है। वो एक अठारह-बीस साल का बस यूँ ही धारण करके घूम रहा है। तुम हो कुछ नहीं, तुम्हें रत्तीभर का कुछ नहीं पता लेकिन चौड़ तुमको पूरी है। ये चीज़ इस जेनरेशन को, ये कल्चर को हमारे, पूरी पृथ्वी को खा जानी है।

प्र: हॉलो कर देनी है।

आचार्य: हॉलो कर देनी है क्योंकि देखो एक बहुत फंडामेंटल्स स्प्रिचुअल क्वालिटी होती है– ह्यूमिलिटी (विनम्रता)। ये जो चौड़ है न, ये उस ह्यूमिलिटी का एंटीथीसिस है। और ह्यूमिलिटी नहीं है तो रिसेप्टिविटी नहीं है। तुम कुछ सीखोगे नहीं। जब सीखोगे नहीं तो जानवर मरोगे बिलकुल। और वही है ये जितने चौड़ वाले हैं सब जानवर जैसे ही तो हैं।

प्र: ये सिचुएशन मेरे ख़्याल से कॉन्ट्रैक्ट होनी कुछ लेवल पर तब शुरू होती है जब इंसान की फैमिली आ जाती है। वेन देयर इज़ इमिडिएट रिस्पांसिबिलिटी , एक लक्ष्मणरेखा खींच देता है ज़माना तुम्हारे लिए कि भाई! पहले ये कर लो उसके बाद सारी इधर–उधर की बात सोचते रहना। दिस फैमिली एस्पेक्ट इज़ वेरी न्यू (ये पारिवारिक पहलू बहुत नया है)। आई डोन्ट नो हाउ टू थिंक ऑफ हैविंग किड्स (मुझे नहीं पता कि मैं बच्चे पैदा करने के बारे में कैसे सोचूं)। आई नो हाउ टू थिंक बीइंग अ किड टू अ पेरेंट (मैं जानता हूँ कि माता-पिता को बच्चा होने के बारे में कैसे सोचना चाहिए)। आई डोन्ट नो टू बी अ पेरेंट टू अ किड (मैं किसी बच्चे का माता-पिता बनना नहीं जानता)।

आचार्य: कोई जवान आदमी इस बारे में सोचना ही नहीं चाहता। आप बहुत कम कन्वर्सेशन होता है इस मुद्दे पर…

प्र: कि फैमिली कैसे बनायी जाए?

आचार्य: कि तुम बाप बनने वाले हो, तुम माँ बनाने वाले हो और बहुत दूरी नहीं है। तुम आज पच्चीस के हो, तुम तीस के होते–होते तुम शायद बाप बन चुके होगे। तुम्हारी बात नहीं, जेनरली। तो ये इस मुद्दे पर जितना ध्यान दिया जाना चाहिए और जितनी इसपर चर्चा होनी चाहिए वो होती ही नहीं है। फालतू की बातों पर चर्चा होती रहेगी, कि जीन्स का नया कट कौन–सा आनेवाला है; या अगले सीज़न में फैशन क्या होनेवाला है। ये सब बातें चलती रहेंगी। जबकि ये बातें आपकी ज़िन्दगी में एक-दो प्रतिशत से ज़्यादा का महत्व रखती नहीं हैं। आपका बहुत सारा टाइम जाना है ये बच्चेबाज़ी में, पहले पैदा करने में फिर परवरिश करने में। लेकिन मुझे कोई जवान आदमी नहीं दिखता जो इस मुद्दे की चर्चा करना चाहता हो कि बच्चे क्या चीज़ होते हैं। और ये बच्चा पैदा करना क्या चीज़ होती है? और पैदा करके फिर पालना क्या चीज़ होती है।

आप हद से यहाँ तक फिर भी चर्चा कर लेते हो कि मुझे बन्दी या बन्दा बहुत पसन्द आ गया। फिर जब पसन्द आ जाता है तो उधर से प्रेसर बढ़ने लग जाता है फिर कुछ दिनों में, सालों में शादी कर लेते हो, यहाँ तक तो फिर भी आपकी सोच जाती है। लेकिन उसके आगे जो एक बहुत बड़ा — जिसे कहते हैं न एलीफेंट इन द रूम है — उसकी कोई जवान आदमी बातचीत करता दिखता नहीं है कि ये बच्चाबाज़ी क्या बात है? और चूँकि तुम उसकी कोई बात नहीं करते तुम्हें पता नहीं होता तो बच्चा फिर आपकी ज़िन्दगी में एक रैंडम अकरेंस (घटना) की तरह आता है कि आसमान से टपक पड़ा। एक बेहोशी में की हुई हरकत हो जाता है वो।

प्र: बेहोशी में, मुझे लगता है कि होता क्या होगा आदमी सोचता है कि कितनी ख़ूबसूरत बात है एक मेरा बच्चा हो। और उस ख़ूबसूरती के चक्कर में वो बाय इन करता है इस दुनिया में, इस डोर में और फिर जब वो दूसरी तरफ़ निकलता है। वेन एवर दैट माइट बी (जब भी ऐसा हो सकता है)। वेन योर चाइल्ड इज़ प्रोबेबली मैरिड देमसेल्व (जब आपके बच्चे ने संभवतः स्वयं से विवाह किया हो)। योर लाइफ़ चेंज्ड एंटायरली (आपका जीवन पूरी तरह से बदल गया)। यू डोन्ट अंडरस्टैंड बारगेन इन फॉर (आप सौदेबाज़ी को नहीं समझते)।

आचार्य: उतनी दूर क्यों जा रहे हो — ‘वेन योर चाइल्ड इज़ मैरिड?’ वो पाँच साल का होता है न इतने में ही तुमको बिलकुल मज़े आ जाते हैं। वो शादी–वादी उसकी बहुत, अपनी शादी ही नहीं हुई है तो इतनी दूर बच्चे की शादी क्या सोचना? लेकिन वो पाँच, छः साल का, सात साल का हो इतने में ही माँ–बाप का बुढ़ापा आ जाता है बिलकुल। बढ़िया अन्दर वाला बुढ़ापा आ जाता है।

और जो तुमने कहा कि जो हम सोचते हैं कि बच्चा पैदा करना बहुत ख़ूबसूरत बात होगी वो इतना भी नहीं सोचते — ‘बहुत ख़ूबसूरत बात होगी’। वो सब करते हैं इसलिए करना होता है।

प्र: भेड़ चाल।

आचार्य: सब कर रहे हैं भाई! वरना शादी क्यों करी थी? सवाल उठता है बच्चा नहीं पैदा करना है तो शादी क्यों करी थी? तो शादी आप इसलिए करते हो क्योंकि एक बेहोश आकर्षण हो गया है आपका, लड़की की तरफ़ या लड़के की तरफ़। तो आपको पता नहीं चला जब आप लड़की की ओर खींच रहे होते हो तो क्या उसी समय ये इमेज फ्लैश करती है कि आपकी गोद में एक बच्चा है और वो टट्टी मार रहा है? नहीं करती है न! जबकि है यही। पूरा गेम ये है। लेकिन जब आप उस बन्दी को देख रहे हो तो आपको उसकी जुल्फें दिखायी दे रही है, उसके कर्ल्स दिखायी दे रहे हैं, आँखे दिखायी दे रही हैं। आपको तो ये ख़्याल ही नहीं आ रहा न कि उसके तुरन्त बाद यही है। और वो जो अट्रैक्शन भी हो रहा है वो भी इसीलिए हो रहा है। आपको ये समझ में ही नहीं आता।

तो आप उसकी ओर से बिलकुल बेपरवाह रहते हो, बिलकुल ऐसे रहते हो जैसे कि ये चीज़ तो कोई साइडी चीज़ है। वो साइडी चीज़ नहीं है वो सेंट्रल चीज़ है।

प्र: तो आचार्य जी, अगर मैं पाँच साल में बूढ़ा हो जाऊँगा तो क्यों व्हाय वुड आई इन्वेस्ट मायसेल्फ समथिंग लाइक दैट (मैं अपने लिए ऐसा कुछ निवेश क्यों करूँगा)?

आचार्य: ये तुम पूछते कहाँ हो?

प्र: मैं अभी पूछ रहा हूँ, बताओ न!

आचार्य: तो पूछोगे तो तुम करोगे ही नहीं जिसमें तुम बूढ़े हो जाने हो।

प्र: तो फिर मतलब आप जो सुझाव दे रहे हैं वह ये है कि बच्चे पैदा न करें?

आचार्य: आई एम सजेस्टिंग यू डोंट डू एनीथिंग इन अ ड्रंकेन स्टेट (मैं आपको सुझाव दे रहा हूँ कि नशे की हालत में आप कुछ भी न करें)।

प्र: सो, इवेन इफ आई एम डूइंग इट इन अ कॉन्सियस स्टेट व्हाय वुड आई पुट माइसेल्फ थ्रू द मिज़री ऑफ (भले ही मैं इसे सचेतन अवस्था में कर रहा हूँ, फिर भी मैं ख़ुद को इस दुख में क्यों डालूँगा) मतलब आई एम जस्ट सेइंग इट्स साउन्ड मिज़रेबल फ्रॉम द फैक्ट द स्टेटमेंट दैट यू मेक (मैं सिर्फ़ ये कह रहा हूँ कि आप जो बयान दे रहे हैं, उससे ये दुखद लगता है) कि पाँच साल में बूढ़े हो जाओगे। तो फिर क्यों — व्हाय आई वुड इन्टू गेट इन टू दैट कॉन्ट्रैक्ट विथ माइसेल्फ (मैं अपने साथ उस अनुबंध में क्यों पडूँगा)?

आचार्य: इवेन द वे वी आर वी शुड नॉट गेट इन टू एनी काइंड ऑफ कॉन्ट्रैक्ट ऑर एनी काइंड ऑफ प्रोक्रिएशन (हम जैसे भी हैं हमें किसी भी प्रकार के अनुबंध या किसी भी प्रकार की संतानोत्पत्ति में शामिल नहीं होना चाहिए)। क्योंकि आप बेहोश हो यार! तुम एक बात बताओ न तुम! एक बहुत एकदम बहुत बेसिक एनालॉजी है। तुम्हें ज़ोर की शराब चढ़ी हुई है तुम अपनी इस दशा में एक लाइफ़ लॉन्ग कॉन्ट्रैक्ट करना चाहोगे क्या?

प्र: नहीं।

आचार्य: और तुम्हें ख़ूब नशा चढ़ा हुआ है तुम इस हालत में बच्चा पैदा करना चाहोगे क्या?

प्र: नहीं।

आचार्य: बस यही है। पहले नशा उतर लो फिर बाद में बात करेंगे। जब उतर जाएगा तब बात ही दूसरी हो जाती है। अब सिर्फ़ वो बात कर सकते हैं जो नशा उतारेगी। बस वो बात कर सकते हैं को नशा उतारेगी। उसके बियोंड की बात तुम इनलाइटनमेंट पूछ रहे हो फिर। वही गड़बड़ कर रहे हो। हमें इनलाइटनमेंट की बात नहीं करनी है। इनलाइटनमेंट का मतलब अगर फ्रीडम होता है तो उसकी बात मत करो उस फ्रीडम की ओर बढ़ो। इनलाइटनमेंट का मतलब अगर नशे से मुक्ति होता है तो उसकी बात नहीं करो नशे से मुक्ति की ओर बढ़ो। वरना इनलाइटनमेंट अपनेआप में एक और नशा हो जाएगा। ‘यार! एक और बना दे मेरे लिए पैग। ये इनलाइटनमेंट के नाम।’

तो इगो इनलाइटनमेंट को ऐसे ही यूज़ करती है। आपको इनलाइटनमेंट इतना ही प्यारा है तो आप वो सब अपनी ज़िन्दगी में लाइए न! जिसका सिंबल है इनलाइटनमेंट। इफ़ इनलाइटनमेंट मींस अ फ़्री माइंड, प्योर कॉन्सियसनेस तो अपनी कॉन्सियसनेस से गन्दगी हटाओ! अपनी ज़िन्दगी से बाउंडेज़ेस (बाधाएँ) हटाओ अगर वो फ़्रीडम इतनी ही प्यारी है जिसको इनलाइटनमेंट बोलते हैं। तो अब ये मत पूछो कि अगर मैं फुली कॉन्सियस हो गया तो मैं शादी करूँगा या नहीं करूँगा, बच्चा करूँगा या नहीं करूँगा; वो सब हवा–हवाई, काल्पनिक बातें हैं। पहले कॉन्सियस होने की तरफ़ बढ़ो।

प्र: तो आप ये कह रहे हो कि तुम व्यक्तिगत तौर पर पहले कॉन्सियस होने की तरफ़ बढ़ो, उसके बाद ये बात करेंगे कि बच्चा करेंगे कि नहीं।

आचार्य: उसके बाद तुम्हें मुझसे कोई बात करनी नहीं पड़ेगी।

प्र: तो मतलब टू आंसर टू द क्वेश्चन वेदर आर शुड हैव किड्स ऑर नॉट इज बी कॉन्सियस (इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए कि हमें बच्चे पैदा करने चाहिए या नहीं, सचेत रहना होगा।

आचार्य: द आन्सर इज़ दैट इन द करेंट स्टेट एनी डिबेट ऑन एनी अदर स्टेट इज़ फिक्शन ( उस वर्तमान स्थिति में किसी अन्य राज्य पर कोई भी बहस काल्पनिक है)। हाउ डू आई कम्युनिकेट टू अ ड्रंकार्ड और पर्सन हू ड्रंकन स्टेट (मैं एक शराबी और एक ऐसे व्यक्ति से कैसे संवाद करूँ जो नशे की हालत में है)? व्हाट डिड मींस टू बी सोबर? (सोबर बनने का क्या मतलब है?)

प्र: तो ये जो नॉन ड्रंक स्टेट है। एण्ड आई मे बी आई रिपीटिंग माय क्वेश्चन बट आई वांट टू गेट अ गुड ग्रिप ऑन दिस (और मैं अपने सवाल को दोहरा रहा हूँ लेकिन मैं इस पर एक अच्छी पकड़ प्राप्त करना चाहता हूँ। ये नॉन ड्रंक स्टेट तक पहुँचने के लिए क्या किया जाए? क्या सिर्फ़ ग़ुलामी और झूठ?

आचार्य: बस! बस! बस! कॉम्प्लिकेट मत करो। इतनी सी चीज़ है। झूठ हटाओ, ग़ुलामी हटाओ। बस!

प्र: और उसके लिए जो लगता है करते जाओ।

आचार्य: जो कीमत अदा करनी है करो, डरो नहीं, पेन (दर्द) से पीछे मत हटो। अपने भीतर ताक़त पैदा करो, माद्दा पैदा करो कि सफरिंग (कष्ट) झेल लेंगे और सीना पैदा करो कि जो भी कीमत देनी है दे देंगे लेकिन झूठ और ग़ुलामी बर्दाश्त स्त नहीं करेंगे।

प्र: आइ थिंक आई हैव अ गुड ग्रिप ऑन दिस टॉपिक टू। (मुझे लगता है कि इस विषय पर भी मेरी अच्छी पकड़ बन गयी है।)

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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