बच्चे का भला चाहते हों तो उसे आध्यात्मिक परवरिश दें || आचार्य प्रशांत (2019)

Acharya Prashant

14 min
85 reads
बच्चे का भला चाहते हों तो उसे आध्यात्मिक परवरिश दें || आचार्य प्रशांत (2019)

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, मेरी एक बेटी है। इस बार वो कह रही थी कि मुझे घूमने जाना है कॉलेज ट्रिप में जयपुर वग़ैरह। पहली बार वो बाहर जा रही है अकेले। वो अभी सिर्फ़ बारह वर्ष की है।

हमने कहा कि तुम अभी छोटी हो, मत जाओ। उसने कहा कि नहीं, मैं अब बड़ी हो गयी, मैं तो जाऊँगी। उसने ज़िद किया तो फिर हमने बोला कि चलो जाओ। सौ, दो सौ विद्यार्थी हैं।

फिर वो इतनी जिद्दी थी, कोई काम नहीं करती थी, आलस्य। उसका आलस्य भगाने के लिए बोला कि तुम ये सब काम करो, फिर तुम्हें भेजेंगे। मतलब, तात्पर्य यही था कि व्हाट इज द राइट टाइम टू अलाउ चाइल्ड (उचित समय क्या होता है बच्चे को अनुमति देने का)?

आचार्य प्रशांत: चाइल्ड (बच्ची) है?

प्र: अभी तो टीनएजर (किशोर) है…

आचार्य: पिछला शिविर याद है डॉक्टर साहब?

प्र: पिछला शिविर?

आचार्य: जिसमे आप आए थे..

प्र: (स्मरण करते हुए) नैनीताल?

आचार्य: (हाँ कहते हुए) उसमें उसने जैसे आपको डाँट लगाई थी वो चाइल्ड का काम नही था। दो पल मिले थे आपको मदहोशी के और दो स्त्रियों ने जम कर कुटाई करी आपकी — एक पत्नी, एक बेटी। और आप चाइल्ड बोल रहे हो उसको?

प्र: उम्र के चलते..

आचार्य: उम्र छोड़िए न! मन की बात करिए। घर का माहौल कुछ ऐसा है कि बचपन जल्दी विदा हो गया है। ज़िम्मेदार आप भी हो। इतना समझाया बाप लोगों ने कि जिस घर में संतों की बात नही होगी, जिस घर में भजन नही होगा, उस घर में शांति मुश्किल है। आप मानेंगे नहीं।

बिटिया को आपके बगल में यहाँ होना चाहिए था इस वक़्त। पर आपने माहौल कुछ ऐसा कर दिया है घर का कि वो आपके साथ आएगी ही नहीं।

प्र: कल एग्जाम्स (परीक्षा) हैं।

आचार्य: न होते तो आ जाती? दिल से बताना।

प्र: नहीं आती।

आचार्य: बस।

आचार्य: और सोचो आप, कि अगर उसे यहाँ आने से ऐतराज़ है तो उसे कहाँ जाना अच्छा लग रहा होगा। बात बहुत ज़ाहिर है न?

प्र: दोस्त।

आचार्य: अरे! दोस्त हटाओ न। खुल्ली बात करो। जहाँ पर बात पवित्रता की और परमात्मा की हो रही है वहाँ आना जिसको नापसंद है, निश्चित रूप से उसे कहाँ जाना पसंद होगा? जहाँ बात मलिनता की, देह की, यही हो रहा होगा। अरे! ये तो आप भी जानते हो। देश-दुनिया का हाल देख ही रहे हो।

इसमें अचरज क्यों होता है भाई? ऐसा तो होना तय है। ग्यारह साल-चौदह साल का होते-होते मन का बहक जाना तय है। वो तो होना ही होना है, लिखी बात है, बंधी बात है। उसको काटने के लिए, उस होनी को टालने के लिए सतनाम होता है। वो सतनाम अगर नहीं लिया गया घर में तो बच्चा तो उस तरफ़ को जाएगा ही न जिस तरफ़ को उसकी वृत्तियाँ प्रेरित करती हैं; अब कैसे रोकोगे? चाइल्ड नहीं है!

अभी भी समय है, बेटा छोटा है, उसकी ख़ातिर चेतो। आप बड़ी फँसी हुई स्थिति में हो। और स्थिति इतनी बुरी भी नहीं है क्योंकि स्थिति बिलकुल वैसी है जैसी सबकी है। तो अगर तुलनात्मक दृष्टि से देखोगे तो कहोगे मेरा वही हाल तो है जो हर घर का है। हर जगह यही चल रहा है तो मेरे घर में भी यही चल रहा है, तो बुरा क्या चल रहा है! तुलनात्मक दृष्टि से देखोगे तो यही लगेगा कि 'ठीक है, होने दो, आजकल ऐसे ही होता है।' पर अगर प्रेम की दृष्टि से देखोगे, वास्तव में पिता का हृदय है, तो कहोगे जो हो रहा है वो ठीक नहीं हो रहा है।

अभी भी रोको, जिस भी तरीक़े से हो सके — समझा कर, बुझा कर, प्रेम से, प्रयोग से — मैं कहता हूँ, साम-दाम-दंड-भेद सब लगा लो, पर घर में उसका (सतनाम का) ज़िक्र ले करके आओ; जिस भी रास्ते हो सके।

देखो, जहाँ कहीं उसकी बात नहीं हुई है वहाँ पर कष्ट-संकट आया ही आया है। तुम अपवाद नहीं हो सकते। पिछले शिविर की वो रात याद करना और याद रखना बार-बार। वो आईना है, हर बात खुल कर सामने आ जाएगी। अपने जी का हाल भी पता चल जाएगा और परिवार के लोगों का भी।

मन एक अपूर्णता है, उसे किसी भी तरह से अपनेआप को भरना है। एक खाली जगह है मन जो अपने खालीपन से व्याकुल है। उसे कुछ भी करके अपनेआप को पूर्णता देनी है। तुम अगर उसे सच्चाई नहीं दोगे तो वो झूठ का और कचरे का इस्तेमाल करके अपनेआप को भरेगा, पर भरेगा वो ज़रूर। एक वैक्यूम (निर्वात) की तरह है मन, कुछ-ना-कुछ तो वो सोखेगा।

और, ये बात बिलकुल मन से निकाल देना कि बच्चे का मन तो ठीक होता है, भोला होता है। बच्चे का मन सबसे ज़्यादा बेताब होता है कचरा सोखने के लिए। तभी तो सबसे ज़्यादा संस्कारित हो जाते हो तुम अपने बाल्यकाल में ही। तुम्हारे मन पर सबसे ज़्यादा प्रभाव कब की घटनाएँ डालती हैं? बचपन की।

सात साल का होते-होते तुमने ना जाने क्या-क्या सोख लिया होता है। उसी से जीवन भर के लिए तुम्हारा व्यक्तित्व चलता है। इसका क्या मतलब है? कि तुम्हारी वृत्ति सर्वाधिक सक्रिय रहती है बचपन में ही। तुम बचपन से ही, पैदा होते से ही बेताब हो जाते हो संस्कारित होने के लिए और फिर बचपन में जो संस्कार मिलते हैं वो जीवन भर के लिए बड़े अमिट हो जाते हैं।

तो बच्चा तो बड़ी आफ़त की स्थिति में होता है। और तुम्हारा कथन कुछ ऐसा है, मान्यता ऐसी है, तुम्हारी मिथ (कल्पना), तुम्हारा कल्चर (माहौल) कुछ ऐसा है कि तुमने बच्चे को मान लिया है कि ये तो मासूम है। अरे मासूम नहीं है, वो टाइम बम है!

वो जल्दी-जल्दी-जल्दी-जल्दी विस्फोटक सामग्री इकट्ठा कर रहा है कि ग्यारह साल, चौदह साल का हो जाऊँ और फटूँ। बच्चे से ज़्यादा ख़तरनाक हालत में कोई नहीं होता। इसीलिए सबसे ज़्यादा सहायता की आवश्यकता होती है बच्चे को ही।

देखा है बच्चे को कैसे देखते हैं चीज़ों को, कुछ भी हो रहा होता है तो? ये वो क्या कर रहा है? ये वो सोख रहा है, सोख रहा है। कभी देखना तुम, तुम गाड़ी चला रहे हो, तुम्हारे आगे दूसरी गाड़ी जा रही है। एक बच्चा है वो पीछे के शीशे से यूँ (अचरज से बाहर देखते हुए) खड़ा है और देख रहा है। वो क्या कर रहा है? वो सामग्री इकट्ठा कर रहा है, सामग्री इकट्ठा कर रहा है। और जो कुछ भी देख रहा है, उसको बिना जाँच-पड़ताल के, बिना विवेक के संग्रहित कर रहा है। विवेक तो उसके पास है ही नहीं। क्या-क्या दिखा दिया बच्चे को, सब सोख लिया उसने!

पहली गंदगी वो सोख के आता है माता के गर्भ से। बहुत सारा मल वो सोखता है, तभी तो उसका जिस्म पैदा होता है। गर्भ में तुम्हें क्या लगता है, अमृत है? अंधकार है और बदबू है! अंधकार है और बदबू है।

शास्त्र कहते हैं कि गर्भ में शिशु इतना दुख पाता है, इतना दुख पाता है कि पूछो मत। शरीर का तापमान कितने डिग्री सेंटीग्रेड होता है अच्छा डॉक्टर साहब?

प्र: अट्ठान्वे डिग्री।

आचार्य: ये तो फॉरेन्हेइट है! सेंटीग्रेड मे कितना होता है?

प्र: सैंतीस।

आचार्य: सैंतीस डिग्री शरीर का तापमान है। ठीक! आप ए.सी. कितने पर चलाते हो?

प्र: टवेन्टी टू।

आचार्य: बाईस पर। सैंतीस डिग्री किसी दिन तापमान हो, आपको कैसा लगेगा? कैसा लगता है? लू चल रही है, पगला जाते हो। बच्चे को नौ महीने तक कैसा लगेगा? गर्भ के भीतर क्या तापमान है? गर्भ में क्या तापमान है? सैंतीस से भी ज़्यादा।

बात अतिशयोक्ति की है, पर इशारा समझो। ये मै शिव गीता को उद्धृत कर रहा हूँ। पूरा एक अध्याय वहाँ समर्पित है बालक के कष्ट को लेकर के। कि जब गर्भ में है शिशु, तो वो बार-बार कसमें खा रहा है कि मैंने बड़ी भूल कर दी जो मै गर्भ मे आ गया, कसम खाता हूँ दोबारा गर्भ में नहीं आऊँगा। यहाँ अंधेरा है, बदबू है, असहाय हूँ, हाँथ-पाँव भी नही चला सकता, बंधा हुआ हूँ, और गर्मी कितनी ज़्यादा है!

तो कुछ तो, जो बालक है वो मल सोख कर ही पैदा होता है। बल्कि कह दो कि गर्भ का जो मल होता है वही बालक का शरीर बन जाता है, वही पैदा होता है। और बाक़ी वो सोख लेता है पैदा होने के बाद?

प्र: संसार से।

आचार्य: संसार से।

बालक की हालत निरुपायता की भी है, असहायता की भी है और विस्फोटक भी है। हल्के में मत ले लिया करो कि बच्चा है। मैं कह रहा हूँ टाइम बम है।

एक प्रकार से देखो तो बालक यही कह रहा है कि तुमने जो मुझे इतना कष्ट दिया है पैदा करके, उसी कष्ट का प्रायश्चित करो तुम मेरी देखभाल करके। तुमने पहला पाप ये किया कि तुमने मुझे पैदा किया। चूँकि तुमने पाप किया है इसीलिए अब भुगतान तुम करोगे। और वो भुगतान तुम्हें करना चाहिए क्योंकि पाप तुमने ही किया है। तो अब भुगतान करो! भुगतान किया क्या? पूरा भुगतान करो!

जब अब ले ही आए हो बच्चे को दुनिया में, तो फिर अपना फ़र्ज़ अदा करो, बल्कि अपना धर्म निभाओ। ये नहीं कि पैदा तो कर दिया और फिर बच्चा जहाँ से जो चाहे वो सोख रहा है। सोखने और सीखने में अंतर होता है, समझते हो ना? कंडीशनिंग (संस्कार) और लर्निंग (समझ) में अंतर होता है। अधिकांश बच्चे सीखते नहीं हैं, सोखते हैं। हमारे बच्चों की लर्निंग नहीं होती, कंडीशनिंग होती है।

उसने कहाँ से सीखा कि ये कूल है, फ्रेंड्स के साथ जयपुर जाना?

प्र: स्कूल के सारे ही उसके दोस्त कह रहे थे कि जाएँगे।

आचार्य: सोख लिया न? फिर तो जो सब कुछ होता है ऐसी ट्रिप्स में, वो भी वो सीखेगी। जब इतना पता चल गया कि 'इट्स कूल टु हैंग-आउट विथ फ्रेंड्स एट प्लेसेस लाइक जयपुर!' (जयपुर जैसी जगहों पर दोस्तों के साथ घूमना-फिरना कूल है) तो फिर आगे कि कहानी भी सीखेगी। (आचार्य जी उँगलियों से सींग इंगित करते हुए) ये माजरा क्या है? ये चीज क्या है? समझाओ! ये क्या है? सींग है? क्या है ये?

श्रोता: डेविल्स हॉर्न्स (दानव के सींग)।

आचार्य: डेविल्स हॉर्न्स हैं ये? हँ? ल्यो!

श्रोता: दिस सिंबलाइज़ेस द वर्षिप् ऑफ सेटन (यह चिह्न शैतान की पूजा का सूचक है)।

आचार्य: सिर्फ़ मज़ाक़ नहीं है ये। मज़ाक़ से आगे की बात है ये। वी आर ऐक्चुअल्ली वर्शिपिंग द सेटन (हम वास्तव में शैतान की पूजा कर रहे हैं)। ऐंड इट्स नॉट कूल (ये कोई कूल बात नहीं है)! हैल इज़ हॉट ऐज़ हैल!

पर क्या करें, हमे तो बड़ा अच्छा लगता है जब बोलते हो 'हॉट' ! उन्हें शायद अभी पता नहीं है 'हॉट' का मतलब। दुर्भाग्य ये है कि जब तक पता लगेगा तब तक बहुत जल चुके होंगे।

(एक श्रोता की टी-शर्ट की ओर मुस्कुराकर इशारा करते हुए) तुम भी कुछ वैसे ही खिलाड़ी हो! क्या लिखा हुआ है? एक्टिव-गियर!

श्रोता: एन एडवेंचर इज़ अबाउट टू बिगिन (एक रोचक यात्रा शुरू होने जा रही है)।

आचार्य: एन एडवेंचर इज अबाउट टू बिगिन! हँ? ये सब लिखे होने के कारण टी-शर्ट सस्ती मिल रही हो तो ठीक। लेकिन अगर खरीदी ही इसलिए है कि ये सब लिखा है तो गड़बड़ है।

अध्यात्म से शुरुआत न कर सकते हों तो सांसारिक ज्ञान से शुरुआत करिए। दुनिया में क्या चल रहा है, यही बताइए। ये भी अध्यात्म की ही शुरुआत है। राजनीति क्या चीज़ है, व्यापार क्या चीज़ है, अर्थव्यवस्था कैसे चलती है, अलग-अलग देशों के अलग-अलग संविधान कैसे हैं। मोटा-मोटा, ऊपर-ऊपर से ये सब बताना शुरू करिए।

अगर बच्चे का सामान्य ज्ञान भी बढ़ेगा तो उसे दुनिया की समझ आएगी। और अगर संसार की समझ आनी शुरू हुई, तो अध्यात्म की शुरुआत भी हो गयी। टीवी ही दिखाइए बहुत सारा और जानकारी पूरी रहे, पता रहे। वर्ण व्यवस्था क्या है? ये जातियाँ क्या हैं? भारत में इस वक़्त जितने ज्वलंत मुद्दे हैं, वो क्या हैं? कर्णाटक-तमिलनाडु किस बात पर लड़ रहे हैं? भारत-चीन के बीच विवाद क्या है? अमेरिका क्यों कह रहा है कि हम चीन से सामान का आयात रोक देंगे?

आप इन्हीं सब बातों में बच्चे का मन लगाइए। अगर बच्चे को राम नाम नहीं पसंद है तो ये सब ही पूछिए। पूछिए ये साइकिल है, अच्छा बताओ कैसे चलती होगी। इसके अलग-अलग पुर्ज़े क्या हैं। वो अलग-अलग कैसे बनते होंगे। वो थोड़ा सोचे तो कि एक फैक्ट्री में साइकिल का फ्रेम कैसे तैयार होता होगा।

इन्हीं बातों में उसका जी लगे। ये भी ठीक है। जैसे यही है, एक टी-शर्ट है, उसको पसंद आ रही है तो बोलिए कि सोच पहले ये टी-शर्ट बनती कैसे होगी। और जानते हो, टी-शर्ट एक धागे से बनती है! ये जो टी-शर्ट तुमने पहन रखी है, ये अजूबा है। ये कितने धागे से बनी है? एक धागा है ये! पूछो, "बता एक धागे से पूरी टी-शर्ट कैसे बन गयी?" तो वो टी-शर्ट को कूल बोले या हॉट बोले, उससे पहले ज़रा दिमाग़ तो लगाए।

इसी तरह से, आप तो मेडिकल साइंस के ज्ञाता हैं। उससे कहिए कि अच्छा तू सोच ज़रा कि अगर दिल से ख़ून को भेजे तक पहुँचना है तो दिल कितनी ज़ोर से धड़कता होगा। कुछ तो वो तुक्का लगाएगी। दिल अगर एक पंप है तो कितनी ज़ोर से धड़के कि ख़ून उछल करके यहाँ (खोपड़ी की ओर इशारा करते हुए) तक पहुँच जाए। और ख़ून का यहाँ तक आना किन बातों पर निर्भर करता है। और फिर पूछिए कि "अच्छा एक बात बता, इसका मतलब जब आदमी लेट जाता होगा तो क्या दिल पर कम ज़ोर पड़ता होगा, क्योंकि अब दिल को ख़ून ऊपर तो फेंकना नहीं है।"

ये सब सवाल भी बच्चे को सच्चाई की तरफ़ ही ले जाएँगे। इन बातों में ही उसको प्रवीण करें। फ़सलों की बात करें। इतना ही पूछ दीजिए, "अच्छा बता, रबी और खऱीफ में अंतर क्या है। अच्छा बता, लाल मिर्च किस पेड़ पर होती है, हरी मिर्च किस पेड़ पर होती है।" कहिए "जा तू खोजकर आ, लाल मिर्च का पेड़ और हरी मिर्च का पेड़। अच्छा, जा पता करके आ, खरबूजा कितनी ऊँचाई पर लगता है। जा पता कर, किस पेड़ पर चढ़कर मिलेगा खरबूजा।"

आपको क्या लगता है बिटिया को ये सब बातें पता हैं, खरबूजा किस पेड़ पर लगता है? ये सब पता करवाइए न। ये है वास्तव में कूल होना! खरबूजा तो कूल…(हास्य)।

उससे कहिए, "तू पता कर कि कौन-कौन से जानवर हैं जो चिड़ियाघर में दिखते हैं लेकिन विलुप्त होने की कगार पर हैं। पता कर। चल दस ऐसी प्रजातियों के नाम लिखकर आ जो ख़तरे में हैं।"

"अच्छा बेटा, क्या तू पता लगा सकती है कि भारत में अभी घड़ियाल कितने बचे होंगे।" "अच्छा बेटा, तू पता लगा सकती है गंगा नदी की कितनी डॉल्फिन बची हैं।

चैलेंज (चुनौती) की तरह दीजिए, "जा, चुनौती है! पता करके आ!"

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories