मंदिरों में जाने के लाभ और नुकसान
विहाय चैरिणं काम्मर्थं चानर्थसंकुलं, धर्ममप्येतयोर्हेतुं सर्वत्रादरं करु।
~ अष्टावक्र गीता
अर्थ:
जब तक जीवन स्वार्थों के पीछे भाग रहा है तब तक जीवन में आनन्द का होना ना-मुमकिन है।
आचार्य प्रशांत:
“विहाय चैरिणं काम्मर्थं चानर्थसंकुलं, धर्ममप्येतयोर्हेतुं सर्वत्रादरं करु।”
‘काम को छोड़कर, जोकि शत्रु है। अर्थ को छोड़कर, जो अनर्थ से… read_more