
आचार्य प्रशांत: एक तरफ़ तो राम निरंजन न्यारा रे, तो राम निरंजन हो सकता है। दिवाली का मतलब — राम निरंजन न्यारा रे — आपने ऐसी दिवाली मनाई, गा रहे हैं संतों की बात को। और एक हो सकता है कि मनोरंजन प्यारा रे। तो अब राम निरंजन न्यारा रे कि मनोरंजन प्यारा रे, कौन सी दिवाली?
श्रोता: राम निरंजन न्यारा रे।
आचार्य प्रशांत: देखते हैं कल? इसीलिए तो मैं बहुत स्ट्रेटेजिक तरीके से आपको एक-दो दिन पहले बुला लेता हूँ। अब देखते हैं कि निरंजन वाला खेल चलेगा कल कि मनोरंजन वाला; वैसे चलेगा वही जो साल भर चला होगा। कल आप कुछ विशेष नहीं कर पाओगे, वही तो करोगे न जो आप हो। तो साल भर जो निरंजन में जिया है, उसके लिए कल राम निरंजन; और साल भर जिसने मनोरंजन ही पाला है, उसके लिए फिर पर्व भी मनोरंजन। अंजन माने क्या होता है? कालिमा। तो राम निरंजन न्यारा रे, अंजन सकल पसारा रे। समझ रहे हो? अब आपको तय करना है कि सकल पसारा माने चहुदिश जो ये व्याप्त है, आपको इसका होना है या इससे न्यारा होना है। न्यारा माने अलग, अस्पर्शित।
आप यहाँ बैठे हुए हो; अभी से बता देता हूँ। सबसे गंदा, सबसे अश्लील जो अभी विभाजन देखने को मिलने वाला है, वो होगा शुरू, जिस क्षण आप इस हॉल से बाहर पैर रखोगे और वापस जाकर के लोकधर्म की गोद में बैठ जाओगे, क्योंकि कल दिवाली है। मेरे मन में था कि दीपोत्सव है तो फिर दीपावली के दिन ही होना चाहिए। था कि ये बात करेंगे कल रात। मैंने कहा छोड़ो, अभी दम नहीं है इतना, बच्चे हैं बिखर जाएँगे। अगर यहाँ आ गए तो पाएँगे कि बाहर धरना प्रदर्शन शुरू हो गया है, और अगर नहीं आ पाए तो और बिखर जाएँगे क्योंकि अपनी नज़रों में गिर जाएँगे। तो गलतफ़हमी अभी थोड़ी कायम रहने दो, गलतफ़हमी थोड़ी बची रहने दो।
कहिए, क्या होता अगर इसको मैंने कल रात को रख दिया होता? और ऑडिटोरियम उपलब्ध था। चलिए अब झूठ बोलने की प्रतियोगिता करते हैं, कितने लोग हैं जो कल रात जैसे मैं करता हूँ सत्र कि आपको 9:00 बजे बुलाया जाता, 10:00 बजे बात शुरू होती और 1:00 बजे तक चलती और बाहर बिल्कुल धूमधाम, बम, पटाखा। कितने लोग कल यहाँ आते? (सारे श्रोता अपना हाथ उठाते हैं)। गोल्ड मेडल किसको दें झूठ बोलने में?
आफ़त को न्योता मत दो। अपनी तो जैसे ऐसे-तैसे थोड़ी ऐसे या वैसे कट जाएगी, आपका क्या होगा जनाब-ए-अली? अपने आगे न पीछे, न कोई ऊपर नीचे रोने वाला, न रोने वाली। आपका क्या होगा जनाब-ए-अली? बोल तो रहा हूँ; वहाँ बाहर धरने प्रदर्शन शुरू हो जाएँगे वहाँ पर। पटाखे तो पटाखे हैं, वहाँ गोलियाँ बजने लगेंगी, गोलियाँ बज रही हैं, चूड़ियाँ तोड़ी जा रही हैं। सब शुरू हो जाएगा।
जिस दिन आप में इतना दम आ गया, उस दिन देखिएगा। बहुत धीरज के साथ आपका इंतज़ार कर रहा हूँ। आप वहाँ तक आइए तो सही, फिर जलवे देखिएगा। और ये बात एक दिन के उबाल की नहीं होती है कि करके दिखा दिया। उसमें भी अहंकार बहुत फूलता है, कि हमने पता है क्या ख़ास काम करके दिखाया था? हम दिवाली की रात चले गए थे। तुम्हारी तरह नहीं हैं। बात साल भर की है, एक रात की नहीं है। मुझे आप पर भरोसा तब आएगा जब मैं साल भर आपके कर्म देख लूँगा। और तब शायद हो सकता है कि हर रात दिवाली की रात हो जाए, किसी एक ख़ास रात आपको बुलाने की जरूरत ही न पड़े, है न?
हाँ, डब्बे-शब्बे तैयार हैं। तैयार हैं कि नहीं तैयार हैं? ऐसे ही तो याद करा जाता है श्रीराम को। है न? पहले बहुत बोलता था, नहीं अब दो-तीन साल से नहीं बोलता। कल इन्होंने एक ये वीडियो निकाल रहे थे, कमलेश। इन्होंने दिखाया, बोले, देखिए आपने बोला है इसको कर दें? मैंने कहा मर्ज़ी है तुम्हारी कर दो; पर अब नहीं बोलूँगा। तो उसमें मैंने कहा था कि जिनके सामने, कम-से-कम कथा ऐसा ही कहती है, कि जिनके सामने हज़ारों टन सोना था और वो विजित राज्य था जहाँ पर विजेता का अधिकार माना जाता है, कुछ ले जाने का; कम-से-कम उतना ले जाने का जितना कि उसकी हानि हुई है।
भाई, सेना में भी ख़र्चा आया, सैनिक भी मरे; तो पारंपरिक रूप से जो विजेता रहा है, वो अपनी क्षतिपूर्ति करता रहा है। वो कहता है, कि अब हम जीत गए हैं तो हम डैमेजेज़ लेंगे। वर्ल्ड वॉर वन के बाद भी किया था यही जर्मनी के साथ, है न? उन्होंने सोना इतना नहीं छुआ, और धनतेरस! किसके नाम के साथ क्या जोड़ रहे हो? जिनके सामने हज़ारों टन सोना मौजूद था और परंपरा कह रही थी कि तुम्हारा अधिकार है जितना अब ले जाना चाहते हो, वापस अयोध्या ले जाओ; नहीं तो वापस भी नहीं ले जाना, तुम्हें ही यहाँ पर राज्य करना है तो तुम ही राज्य कर लो, ये सारा सोना तुम्हारा है। उन्होंने इतना नहीं छुआ सोना।
पहले बोलता था, अब नहीं बोलता हूँ। अभी मैं इंतजार कर रहा हूँ बच्चों के बड़े होने का। देखता हूँ। होंगे, कभी तो होंगे। आज नहीं तो चार सौ साल बाद होंगे। हाँ ऐसा ही होता है, कुछ काम बहुत जल्दी नहीं होते कई बार।
जो भी आपके पास चतुराई भरे तर्क हैं, उनको लिफ़ाफ़े में बंद करिए और फेंक दीजिए। कल कहा था आपसे, सही काम का अंजाम सोचना ही पाप है।
कहा था न? जो सही है वो करिए, पहले से हिसाब लगाना कि ये करूँगा तो ऐसा हो जाएगा। हो सकता है जो तुम सोच रहे हो वैसा हो भी जाए, पर तुम्हें उसके आगे की बात भी क्या पता है? वो हो जाएगा तो क्या होगा? हो सकता है, आप जो सोच रहे हो या आशंका कर रहे हो कि सही काम करूँगा तो वैसा हो जाएगा, हो सकता है वैसा हो भी जाए, पर ये भी क्या पता है कि वो हो जाएगा तो आप पर क्या प्रभाव पड़ेगा? आप अभी सोच रहे हो कि वैसा कुछ हो गया तो मुझ पर ऐसा असर पड़ेगा। हो सकता है उससे अलग कुछ असर पड़े। आपको कैसे पता? जो पूरा नेटवर्क होता है कॉज़लिटी का, वो इंटरमिनेट होता है। उसमें कार्य-कारण की इतनी परस्पर गुथी हुई श्रंखलाएँ होती हैं कि जानना असंभव है कि कुछ करने से आगे क्या होगा। तो इसीलिए सही यही होता है कि चुपचाप सर झुका करके जो सही है वो कर दो, आगे जो होगा देखा जाएगा।
किस-किस को डर लगता है? ईमानदारी से हाथ खड़ा करो, (सारे श्रोता हाथ उठाते हैं)। डर लगता है तो लगे, डर का लगना तो और सूचित करता है, बढ़िया किया। मुश्किल थी, फिर भी डट कर किया। है न? जाइए, बैठिए घरवालों के साथ, या जो भी इतनी सत्यनिष्ठा या संवेदनशीलता या समझदारी या सेंस रखता हो कि किसी अच्छी चर्चा में सम्मिलित हो सके। काम से अवकाश है, बैठिए और वो बातें करिए जो वास्तव में सत्संग कहलाती हैं।
सत्संग ज़रूरी थोड़ी है कि पारंपरिक तरीके से ही किया जाए। डिनर टेबल पर भी हो सकता है न, कि नहीं हो सकता? दीप जलेंगे कल, तो करिए प्रकाश पर बात, वो पहले से तैयारी करिए, कि ग्रंथों में प्रकाश को लेकर कौन-कौन से वक्तव्य आते हैं। उनको पहले से इकट्ठा कर लीजिए, लिख लीजिए कहीं पर, प्रिंट ले लीजिए। और घर में जब दीप प्रज्वलित हो रहे हों, हम कि लड़ियाँ जलाई जा रही हों, तो कहिए कि आओ, बैठो, थोड़ा बात करते हैं। कोई बैठने को नहीं तैयार है तो चलते-चलते कर लीजिए, वॉकिंग सत्संग।
कोई है वो सुनने को नहीं तैयार है, वो जाकर के अपनी दीवार पर एक के बाद एक मोमबत्तियाँ लगा रहे हैं, या लगा रही हैं। आप पीछे-पीछे चलते जाइए। पीछा तो वैसे भी बहुत किया है, कुछ नेक काम के लिए भी कर लीजिए। वहाँ मोमबत्तियाँ लगा रहे हैं, आप पीछे से उनको उपनिषद् सुनाते चलिए, प्रकाश की बातें सारी। और ऐसी भाषा में जो समझ में भी आए। पहले से तैयारी कर लीजिए, एक अच्छी सी प्लेलिस्ट बना लीजिए, सुंदर गीत, भजन, और ज़रूरी नहीं है कि वो गीत बिल्कुल प्रकट तौर पर धार्मिक ही हों। फिल्मी भी हो सकते हैं और मज़ा आ जाएगा घर में सबको कि अरे, फिल्मी गाने में भी इतनी मज़ेदार बात निकल सकती है। ये कैसी प्लेलिस्ट आज चला दी! सब गाने वही हैं जो सुनने में मज़ेदार लगते हैं, लेकिन इनका तो आज दूसरा ही मतलब निकल रहा है। आ रही है बात समझ में?
लक्ष्मी पूजन है, तो धन माने क्या? क्यों नहीं चर्चा होनी चाहिए? और कोई सुनने को नहीं तैयार है तो आप लिखकर लगा दीजिए। मंदिर में अगर श्लोक हैं, दोहे हैं, तो इससे तो मंदिर का मान और बढ़ता है न। तो आपके भी घर में मंदिर होंगे, छोटे मंदिर घरों में होते हैं। वहाँ पर अच्छे श्लोक, अच्छे दोहे लगा दीजिए कल जाकर के। और इन सब में श्रेष्ठता का भाव मत आने दीजिएगा अपने भीतर, नहीं तो कड़वाहट फैलेगी। चुपचाप करिए, धीरे-धीरे करिए। जता कर मत करिए, किसी पर छाने की नियत से मत करिए, कोई नहीं पसंद करता डॉमिनेट होना।
बच्चों को पकड़िए छोटे, वो अच्छी सामग्री होते हैं। जितने हों इधर-उधर के सबको घेर लीजिए और कहिए, आओ बैठ के कुछ गाते हैं, कुछ रटा दीजिए और फिर छोड़ दीजिए। बोले, अब जाओ जहाँ-जहाँ जा रहे हो, यही-यही गाओ। त्यौहार का दिन है आज नहीं पिटोगे, कुछ भी गाओ, जाओ। पर ऐसा होगा नहीं। पुड़ियाँ तली जाएँगी, AQI1400 पहुँचेगा, और इन सब चीज़ों का संबंध जोड़ा जाएगा धर्म रक्षा से, सनातन की विजय से।
आपने सोचा कभी कि बारूद तो नई-नई चीज़ है, ये पटाखे कहाँ से आ गए परंपरा में? सोचा कभी? जाके आज पढ़िएगा कि पटाखे जुड़े ही कब दिवाली के साथ, अभी हाल में। जिसको हम जोड़ रहे हैं, सनातन। सनातन माने कालातीत। आपको ऐसा लगने लगा है जैसे दिवाली माने पटाखा, पटाखा तो अभी हाल में बजना शुरू हुआ है, पटाखा तो था ही नहीं कभी। पर जब असली चीज़ नहीं पता होती है, धर्म की गहराई नहीं पता होती है, तो सतही चीज़ असली लगने लगती है। लगता है दिवाली माने यही तो होता है, झालर लगाएँगे, पटाखा बजाएँगे और बर्फी बाँटेंगे।
प्रकाश माने वो जिसमें दिखाई दे — दर्शन। जाकर खोजिएगा कि शास्त्रों में दर्शन संबंधित कितने श्लोक हैं, बड़े सुंदर। उनकी सूची बनाइए और जिस अर्थ में आपके दोस्त, यार, परिवार, मोहल्ले, समाज वाले समझ पाएँ, जाकर उनकी चर्चा करिए। ये नहीं कि अच्छा वाला काम तो हम इस ऑडिटोरियम के भीतर अब कर आए हैं। अब बाहर निकले, अब थोड़ा अपना वाला काम भी तो शुरू करना है। वो नहीं करिए। आ रही है बात समझ में? यही विभाजन करके आपने अपने लिए सब खो दिया, जो यहाँ मिलता है, सब खो देते हो क्योंकि उसको यहीं तक सीमित कर देते हो।
कबीर साहब के कितने भजन हैं? राम राम राम राम, क्यों नहीं गाते? और ख़ुद नहीं गा सकते तो कुमार गंधर्व थे, उन्होंने गाए बहुत प्यारे और सब उन्होंने निर्गुणी भजन ही लिए हैं। निर्गुणी भजन माने जिसमें राम का जो उच्चतम अर्थ है, वो सामने आया है। निर्गुणी अर्थ, ख़ुद नहीं गा सकते तो उनको लगा दो घर में, बजा दो। और जो थोड़ा भी सुनने को तैयार हो उसको बोलो, थोड़ा आओ बैठो। और सिर्फ़ लगाना काफ़ी नहीं होगा क्योंकि कई बार, जिन्होंने पढ़ नहीं रखा होता, वो सुनेंगे तो उन्हें समझ में नहीं आएगा। तो उसको कहीं लिख कर रख लो या प्रिंट निकाल कर रख लो ताकि थोड़ा सा भी कोई दिखाई दे कि रुचि दे रहा है। कोई झुका, थोड़ा ऐसे कान दिए कि क्या बोला जा रहा है, तुरंत उसके सामने। दुनिया की दुकानें तो बहुत चला ली, थोड़ा सत्य का सेल्समैन भी बन लो। बढ़िया, उसमें तनख़्वाह मिलती है।
कबीर सो धन संचिए जो आगे को होए। आगे वाला धन मिलता है। आगे माने भविष्य नहीं, अतीत। अतीत माने ट्रांसेंडेंटल बियॉन्ड, आगे का, पार का धन मिलता है।