मुक्तिका उपनिषद् है, उसमें राम ही कह रहे हैं, ‘एक उपनिषद् को कोई पढ़ ले वो तर जाएगा।‘ अच्छा एक में काम नहीं होता तो चलो जो १० या ११ प्रमुख उपनिषद् हैं उनको पढ़ लो! अच्छा उनसे भी काम नहीं होता तो लो मैं सूची दिए देता हूँ १०८ उपनिषदों की, उनको पढ़ लो।
और अगर उपनिषद् समझ में आ गए, कुंजी हाथ लग गई, सिर्फ़ तब तुम भारतीय संस्कृति के एक-एक प्रतीक का सही अर्थ कर पाओगे। और ऐसा अर्थ खुलेगा कि तुम अचंभित रह जाओगे। तुम कहोगे, “बाप रे बाप! खजुराहो का यह अर्थ है! महाकालेश्वर का यह अर्थ है! उज्जैन का यह अर्थ है! ऋषिकेश का यह अर्थ है! शक्तिपीठों का यह अर्थ है! तीर्थों का यह अर्थ है!”
हर वह व्यक्ति जिसे भारत से प्रेम हो, हर वह व्यक्ति जो भारतीय संस्कृति की दुर्दशा को देखकर दुखी हो, उसे वेदांत की ओर जाना ही होगा।