सच मिट्ठा आशिक प्यारे नू || आचार्य प्रशांत, संत बुल्लेशाह पर (2014)

Acharya Prashant

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सच मिट्ठा आशिक प्यारे नू || आचार्य प्रशांत, संत बुल्लेशाह पर (2014)

चुप्प कर के करीं गुज़ारे नूं

सच्च सुणदे लोक ना सहिंदे नी, सच्च आखिए तां गल पैंदे नी, फिर सच्चे पास ना बहिंदे नी, सच्च मिट्ठा आशक प्यारे नूं । चुप्प करके करीं गुज़ारे नूं ।

सच्च शर्हा करे बरबादी ए सच्च आशक दे घर शादी ए, सच्च करदा नवीं आबादी ए जेही शर्हा तरीकत हारे नूं । चुप्प करके करीं गुज़ारे नूं ।

चुप्प आशक तों ना हुन्दी ए, जिस आई सच्च सुगंधी ए, जिस माला सुहाग दी गुन्दी ए छड्ड दुनियां कूड़ पसारे नूं । चुप्प करके करीं गुज़ारे नूं ।

बुल्ल्हा शौह सच्च हुण बोले हैं, सच्च शर्हा तरीकत फोले हैं, गल्ल चौथे पद दी खोल्हे हैं, जेही शर्हा तरीकत हारे नूं । चुप्प करके करीं गुज़ारे नूं ।

~बुल्ले शाह

प्रश्न : तो ये जो चुप्पी की बात हो रही है – एक तो होता है, पाओ और गाओ। और कभी-कभी ऐसा होता है, कि हमने अगर कुछ भी पढ़ लिया, हमें कुछ नयी चीज़ पता चलती है, तो हम अपने सम्बन्धों में बताते हैं कि मुझे ये पता है। तो उसमें कुछ अलग से बात उठ रही है, कि मैं कुछ जानता हूँ। तो क्या उसके लिए ये चुप होना बोला गया है?

आचार्य प्रशांत : किसको कहा गया है चुप रहने को?

श्रोता : अहंकार को। जो मैं जानता हूँ, जो ज्ञान इक्कठा कर रहा हूँ।

आचार्य जी: तो ये समझना ज़रूरी है ना, कि किसको कहा गया है। ये सवाल व्यर्थ है कि सत्य मिल जाए तो क्या करें? सत्य मिल जाएगा तो तुम्हें कुछ करना ही नहीं है, जो करेगा सत्य करेगा। अगर सत्य मिल गया, और अभी भी तुम कुछ कर रहे हो, तो क्या मिला? तो, ये सवाल कि सत्य मिल जाए तो उसके बाद चुप रहें या औरों को बताएँ, ये सवाल फ़िज़ूल है।

सत्य जिन्हें मिलता है, उसके बाद जो करना होता है सत्य खुद कर लेता है, आपको नहीं करना है। चुप रहने को आपको कहा गया है। चुप रहने को आपको कहा गया है, सच को बोलने दीजिये, आप चुप रहिये, इतनी सी बात।

आप बोलेंगे, अपना ही नुकसान करेंगे, औरों का भी नुकसान करेंगे। आप बोलने से रोकेंगे अपने आप को, तो भी नुकसान करेंगे। सवाल, फिर न ‘बोलने’ का होगा, न ‘न बोलने’ का, सवाल होगा कि “आप क्यों कर्ता बने हुए हो?” आपको कर्ता नहीं बनना है। चुप रहना यही है। आप मौन रहें, सत्य स्वयं बोलेगा। उसके पास बहुत तरीके हैं। आप जैसा बोल सकते हैं, उससे वो बहुत अच्छा बोलेगा, बहुत सुंदर बोलेगा, बहुत उचित बोलेगा।

बस इतनी सी ही बात है।

तो जब तक आपको ये सवाल उठ रहा है ना कि मुझे तो पता चल गया है, औरों को बताऊँ कि न बताऊँ, समझ लीजिये कि आपको अभी कुछ पता नहीं चला है!

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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