मोह भय में मरे, प्रेम चिंता न करे || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)

Acharya Prashant

7 min
41 reads
मोह भय में मरे, प्रेम चिंता न करे || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)

वक्ता: रोहित ने कहा कि छिन जाने के डरों में एक डर ये भी है कि जो हमारे जो परिवार के लोग हैं, हमारे प्रियजन हैं, उन्हें कुछ हो न जाये, वो न छिन जायें । तो रोहित का सवाल है कि क्यों है ये डर? और आगे फिर निःसंदेह ये भी होगा कि कैसे सामना करें?

रोहित हमने लगाव जाना है; लगाव मतलब ‘लग जाना’, अटैचमेंट । प्रेम हमने जाना नहीं । जिन लोगों के प्रति ये डर है कि उन्हें कहीं कुछ हो न जाये – ये डर हम सबको लगता है – ईमानदारी से पूछो, क्या अभी, ठीक इसी पल, आज उनसे संबंध स्वस्थ हैं ? वही हैं जो होने चाहिए? कल उन्हें कुछ हो न जाये इसकी तो हमें बड़ी चिंता सताती है, सताती है न? कल उन्हें कुछ हो न जाये, कल माने भविष्य । आज क्या चल रहा है कभी ये भी देखा? जीवित क्या है, वर्तमान या भविष्य…?

सभी श्रोतागण: वर्तमान ।

वक्ता: भविष्य की चिंता करना बड़ा सुविधापूर्ण है, “मेरे मरने के बाद मेरे बीवी-बच्चों का क्या होगा, चलो इंश्योरेंस खरीद लेता हूँ ।” बड़ी चिंता लगी, बड़ी फ़िक्र लगी, डर उठा तो मैंने क्या समाधान निकाला…?

सभो श्रोतागण: इंश्योरेंस ।

वक्ता: इंश्योरेंस खरीद लेता हूँ । मैंने ये देखा कि आज मेरे क्या संबंध हैं मेरे बच्चों से और मेरी बीवी से? मैंने ये देखा क्या ?

मैं खूब पैसा इकठ्ठा कर रहा हूँ, किसके लिए? अपने बेटे के लिए । खूब पैसा इकठ्ठा कर रहा हूँ कि भविष्य में इसके काम आयेगा पर आज क्या चल रहा है मेरे और मेरे बेटे के बीच में? और ज्यादा महत्त्वपूर्ण क्या है, भविष्य की कल्पना या वर्तमान का तथ्य…?

सभी श्रोतागण(एक स्वर में): वर्तमान का तथ्य ।

वक्ता: ये मैंने कभी देखा नहीं कि आज क्या चल रहा है, भविष्य में क्या होगा, क्या नहीं होगा वो मुझे बड़ा महत्त्वपूर्ण लगा । एक कहावत चलती है –

*“पूत सपूत तू क्यों धन संचय ,* *पूत कपूत तू क्यों धन संचय*

*“पूत सपूत तू क्यों धन संचय ”*

आज पर ध्यान दो न । अगर लड़का सपूत निकल गया तो उसे तुम्हारे पैसे की ज़रूरत ही नहीं ।

*“पूत कपूत तू क्यों धन संचय ”*

और अगर लड़का बेकार ही निकल गया तो उसे पैसा दे मत देना, वो तुम्हारे पैसे से बम बनाएगा और पूरी दुनिया उड़ा देगा ।

(सभी श्रोतागण हँसते हैं)

दोनों ही स्थितियों में तुम पैसा क्यों इकट्ठा कर रहे हो ? लड़के पर ध्यान दो । पर लड़के पर ध्यान देने के लिए लड़के से प्रेम होना चाहिए । अभी, क्योंकि लड़का सामने है ।

पर कहाँ है प्रेम ? दिखाओ ।

न, प्रेम नहीं है, तो हमने प्रेम का एक सस्ता और घटिया विकल्प खोज लिया है, भविष्य । प्रेम होता तो अभी छलकता न; अभी तो कहीं छलकता दिखाई नहीं देता । तो तुम एक विकल्प लेकर आते हो कि, “अब इसके प्रति मैं अपने कर्मों का निर्वाह तो कर ही रहा हूँ न, कैसे ? लड़की के नाम बीस लाख की फिक्स्ड डिपाजिट करवा दी है, दहेज़ दूँगा” । तुम्हें वाकई प्रेम है? प्रेम होता तो ये हरकत करते तुम? तुम्हें प्रेम होगा तो घर में लड़की पैदा होगी तो फिक्स्ड डिपाजिट खुलवाओगे उसके नाम की ? ये प्रेम का लक्षण है ? ध्यान से देखना, लगता यही है कि यही प्रेम है। और ये सारी औलादें जो निकलती हैं घरों से, इन्हीं से न दुनिया ऐसी हो गई है । हम तो कहते हैं कि दुनिया बड़ी ख़राब है, गड्ढे में जा रही है, ये तो सोचो कि दुनिया किससे बनी है…?

सभी श्रोतागण: हमसे ।

वक्ता: उन्हीं लोगों से बनी है न जो हमारे घरों से, हमारे कॉलेजों से निकल रहे हैं, उन्हीं से तो बनी है न ?

इंसान की गहरी से गहरी प्यास होती है प्रेम की; वो जब मिलती नहीं है तो दिमाग बिल्कुल रुखा-सूखा और भ्रष्ट हो जाता है । प्रेम कल की परवाह नहीं करता, वो समझदार होता है, वो अच्छे से जानता है कि कल आज से ही निकलेगा । प्रेम कहता है आज में पूरी तरह से डूबो, आज अगर सुन्दर है तो कल की चिंता करने की ज़रूरत ही नहीं । ये प्रेम का अनिवार्य लक्षण है कि प्रेम आज में जियेगा । तुमने लगाव की बात करी थी न इसलिए कह रहा हूँ, ये प्रेम का अनिवार्य लक्षण है कि प्रेम आज में जियेगा, कल की फ़िक्र करेगा नहीं क्योंकि प्रेम बहुत समझदार है और वो अच्छे से जानता है कि जिसने आज को पूरा-पूरा जी लिया, पी लिया उसका कल अपनेआप ठीक रहेगा, बिना फ़िक्र किये । पर जहाँ प्रेम नहीं होता वहाँ आज की अवहेलना कर दी जाती है और कल की कल्पना की जाती है । *आज की अवहेलना*, कल की कल्पना

या आज को अगर देखा भी जाता है तो सिर्फ इस तरह कि कल की कल्पना पूरी करने का माध्यम बन जाये आज । “मेरी कल्पना है कि जिनसे मुझे लगाव है, जो मेरे प्रियजन हैं वो ऐसे-ऐसे हो जायें । उनको भविष्य में वैसा बनाना है इसलिए आज मैं कुछ कर रहा हूँ । ऐसे लोगों के लिए आज, आज नहीं रहता, आज सिर्फ माध्यम बन जाता है कल की प्राप्ति का । कल कुछ पाना है उसके माध्यम के तौर पर आज को इस्तेमाल करो । जहाँ कल होगा वहाँ चिंता होगी ही होगी । चिंता प्रमाण है इस बात का कि संबंधों में प्रेम नहीं है । जहाँ प्रेम है वहाँ कल नहीं है और जहाँ कल नहीं है वहाँ चिंता नहीं है । अगर तुम्हें चिंता करनी पड़ रही है किसी व्यक्ति के बारे में तो साफ़-साफ़ जान लेना कि तुम्हें प्यार नहीं उससे, लगाव है । और प्यार और लगाव विपरीत हैं, उनको आसपास का भी मत समझ लेना । लगाव और प्रेम विपरीत हैं । प्रेम में चिंता नहीं होती, प्रेम में कल की कल्पना ही नहीं होती । प्रेम ये नहीं कहता कि, “चलो कुछ ऐसा आयोजन करें कि हम तुम कभी जुदा ही न हों । तीन महीने से मिल रहें हैं, अब शादी की बात की जानी चाहिए ताकि ज़िन्दगी भर के लिए गारंटी हो जाये, इंश्योरेंस” । ये सब हरकतें होते देखना तो साफ़ समझ लेना कि प्रेम है नहीं, खतरा है, भागो ।

(सभी श्रोतागण हँसते हैं)

मन जब कल की चिंता से भरे तो पूछो कि अभी क्या है जो करना उचित है । यदि अभी ठीक वो कर रहे हो जो अभी होना चाहिए तो कल की चिंता कर नहीं सकते । कल की चिंता बार-बार उठ रही है तो ये साक्षी है इस बात का अभी वो नहीं हो रहा जो अभी होना चाहिए । यदि अभी ठीक वो हो रहा हो जो होना चाहिए तो कल की चिंता उठ नहीं सकती । “समय किसके पास है सोचने का, हम तो डूबे हुए हैं उसमें जो अभी है, आगे की सोचने का समय किसके पास है ?” आगे की सोचेंगे तो अभी को खोयेंगे और अभी को अगर खो दिया तो आगे भी कैसे कुछ मिलेगा ? बीज को अगर खो दिया तो पेड़ मिल सकता है क्या? अभी को खो दिया तो आगे मिल सकता है क्या? आगे की सोचनी पड़ रही है तो जान लेना प्यार नहीं करते हो । डर रहे हो तो जान लेना प्यार नहीं है, लगाव है । लगाव है, और लगाव होता क्या है? ज़हरीला होता है लगाव; चिंता, डर, कलह, क्लेश, हिंसा, यही देता है ।

~ ‘संवाद-सत्र’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं ।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories