दृश्य और द्रष्टा - द्वैत के दो सिरे || आचार्य प्रशांत (2013)

Acharya Prashant

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दृश्य और द्रष्टा - द्वैत के दो सिरे || आचार्य प्रशांत (2013)

प्रश्न: मान लीजिये कि एक कमरे में 20 लोग बैठे हैं, एक साथ, और उनमें से एक या दो या तीन रियलाइज्ड हैं। क्या उसका असर संगति पर भी पड़ेगा?

वक्ता: पहली बात तो रियलाइज़ेशन जैसा कुछ होता नहीं है। रियलाइज़ेशन किसका? किसी भी व्यक्ति पर ये ठप्पा लगा देना कि वो रियलाइज्ड है, ऐसा कुछ नहीं है। किसी भी समय पर अगर आप ध्यानस्थ हैं, तो उस समय के लिए, उस क्षण भर के लिए आपमें और बुद्ध में कोई अंतर नहीं है। सिर्फ़ उस क्षण भर के लिए। पर ये सोचना कि एक पक्का-पक्का विभाजन किया जा सकता है, अनरियलाइज्ड और रियलाइज्ड में, लीडर और फ़ोलोवेर में, गुरु और शिष्य में, ये बात कुछ ठीक नहीं है।

श्रोता: सर, एक गाँव पर जब हमला हो जाता है, तो उनके पास कोई भी हथियार नहीं थे। तो उसने 100-200 लोग थे उनको बिठा दिया और कहा कि आपके पास कुछ भी नहीं है। तो उन लोगों के पास हथियार नहीं थे, तो उन लोगों ने उनके छक्के छुड़वा दिए। ऐसा रोबर्ट फ्रॉस्ट का पॉइंट था।

वक्ता: नहीं ये तो बहुत बार हुआ है देखिये। ध्यान से बड़ी ऊर्जा उठती है। आप जो कुछ भी कर रहे हैं, जब भी आप ध्यान में करते हैं तो ज़बरदस्त ऊर्जा आती है उसमें। ‘सवा लख नाल एक लड़ावा’ उसका अर्थ क्या है? क्या अर्थ है?

श्रोता: ध्यान में।

वक्ता: सवा लाख से एक कैसे लड़ सकता है? तभी जब वो एक ध्यानी हो और उसी का नाम फिर उन्होंने सिख दिया। शिष्य, कि जो इतने ध्यान में हो कि जिसमें इतनी ऊर्जा उठती हो कि एक सवा लाख पर भारी पड़े। उसका ये नहीं मतलब है कि मेडिटेशन में आपको कोई दिव्यास्त्र मिल जाते हैं। तो ये आप ध्यान कर रहे हैं और आपको एक विशेष मिसाइल मिल गई और आपने दे मारी और सवा लाख मर गए – ये नहीं अर्थ होता है इसका।

श्रोता: एक ध्यानस्थ आदमी 25 को ध्यानस्थ करा सकता है?

वक्ता: आवश्यक नहीं है क्यूँकी उन 25 को भी कुछ करना होगा या एक आदमी ही कर लेगा सब? सारी ज़िम्मेदारी उस एक पर ही डाल दीजिये, बड़ा अच्छा है! वो 25 भी कुछ करेंगे अपनी ज़िन्दगी में?

श्रोता: एक बार आँखें बंद कर के बैठेंगे, कई बार मन में ही कितने सवाल चल रहे होते हैं, कितनी बातें चल रही होती हैं। पर किसी…

वक्ता: ये सब ज़िम्मेदारी से मुँह मोड़ने वाली बातें हैं; अपने ज़िम्मेदार हम सब खुद हैं पर दावा बढ़िया है। दुकान के लिए दावा अच्छा है। 25 का बैच बनाता हूँ और सबको पार लगाता हूँ।

श्रोता: ऐसा मैंने देखा है प्रैक्टिकल कि एक आदमी दूर बैठा हुआ अगर ध्यान करते हैं, तो उसकी एनर्जी से दूसरों को उसका असर होता है, वो भी उस मार्ग पर चलते हैं।

वक्ता: एनर्जी जो है, विज्ञान का बड़ा प्रीसाईस शब्द है। ठीक है? जिसको नापा भी जा सकता है। जिसके नियम होते हैं। मैं यहाँ बैठ कर के कोई एनर्जी नहीं दे सकता आपको, जब तक कि मैं आपको कोई किताब ही उछाल कर के न दे दूँ। तो फिर इसमें कोई काइनेटिक (गतिज) एनर्जी होगी, आप पकड़ेंगे आपको मिल जाएगी। कोई तरीका ऐसा आज तक नहीं आविष्कृत हुआ जिससे एक व्यक्ति यहाँ बैठ कर के दूसरे को ऊर्जा दे सके।

श्रोता: इनकी बात से ध्यान आया जैसे एक नाम दिया गया हमें रेकी में यही कहा जाता है कि दूर बैठ कर भी आप अपनी एनर्जी जो है, ट्रान्सफर कर सकते हो।

वक्ता: आठवी क्लास का विज्ञान का स्टूडेंट आपको बता देगा कि एनर्जी क्या चीज़ है और कैसे –कैसे ट्रान्सफर होती है। मैं यहाँ बैठ कर के कोई एनर्जी नहीं दे सकता आपको। मैं यहाँ बैठ कर के इसको कोई एनर्जी नहीं दे सकता।

श्रोता: आपने कई बार यूज़ किया है ये शब्द कि मुझे पता चल जाता है। आपने अभी कहा कि भाई जैसे जिस बन्दे को रिअलाईज़ेशन होती है उसको ज़्यादा देखने की ज़रूरत नहीं पड़ती, उसके अन्दर ऑटोमेटिक सिस्टम चलता है कि ये इन सब विषयों के बारे में अवगत है सो…

वक्ता: अवेयरनेस का मतलब ही है सिस्टम से मुक्ति। सिस्टम तो सबके भीतर चल रहा है, उसी सिस्टम का नाम तो मशीन है न? हम बार-बार कहते हैं कि हम संस्कारित मशीन हैं। सिस्टम तो सबके भीतर चल रहा है, उस सिस्टम से मुक्त होने का अर्थ है *रियलाईज़ेशन*। रियलाइज्ड आदमी में कोई सिस्टम नहीं चल रहा, वो सिस्टम से हट गया। सिस्टम तो इसमें चल रहा है, इसमें खूब सिस्टम चल रहे हैं।

श्रोता: ऐसा आदमी अंजानों को करवा सकता है?

वक्ता: ऐसा कुछ भी नहीं है। हर आदमी अपने लिए खुद उत्तरदायी है, दूसरा आदमी थोड़ी मदद कर सकता है बस। मदद ये कर सकता है कि मन के कुछ नियम होते हैं, उदाहरण के लिए शान्ति में मन स्थिर होता है। अभी हम इन्द्रियों की बात कर रहे थे न। इन्द्रियगत इनपुट्स जितने कम से कम आएँगे, मन के अस्थिर होने की संभावना उतनी कम होती जाएगी। हम बात कर रहे थे न उपचार की? ये सब बात करी है न? तो ये सब वही है। एक दूसरे आदमी आपके लिए अधिक से अधिक माहौल बना सकता है।

मैं एक उदाहरण दे सकता हूँ मैं कुछ बच्चों को छत पर ले जा सकता हूँ और कह सकता हूँ: ‘’आओ एक खेल खेलें पर मैं उनको विवश नहीं कर सकता खेलने के लिए।‘’ एक दो होंगे ऐसे छोटे-मोटे से बच्चे, जो खेल के बीच में से भाग जाएँगे। जो खेलेंगे ही नहीं। तो क्या कर सकता हूँ मैं? क्या करूँ? आप एक माहौल तैयार करके दे सकते हो। इतना कर सकते हो, पर जो उस दिन आया ही न हो उसका क्या करोगे? खेलने के लिए प्रस्तुत ही न हो, उसका क्या करोगे? तो सीमा है, अंततः ज़िम्मेदारी अपने ऊपर है।

श्रोता: सर, इसमें बात करते हैं कि एनर्जी हो सकता है कि जा सकती है क्यूँकी उसमे क्षमता होती है शब्द मेरे शायद गलत हों या अनुचित हों लेकिन हर कोई नहीं आपको कर सकता कि मेरी बात सुनो या मेरी बात कहो। कुछ ही लोग होते हैं, जिनकी बात आप सुनते हो या समझते हो।

वक्ता: किसकी बात सुनोगे आप?

श्रोता: वो उसको इसमें एक कंडीशन दे दे रहा है।

वक्ता: तुम किसकी बात सुनती हो बताओ न? हम सब किसी न किसी की सुनते हैं, हम किसकी सुनते हैं? अरे हम सब किसी न किसी की सुनते हैं, हम किसकी सुनते हैं?

जो हमारे मन मुताबिक़ होता है, उसकी सुन लेते हैं। और हमारे मन मुताबिक़ क्या है? हम जीते ही हैं भय और लोभ में, तो जो हमें डराता है, हम उसकी सुन लेते हैं या जिससे हमें कुछ मिलना होता है हम उसकी सुन लेते हैं। वो हमें क्या दे पाएगा? जो आदमी…

श्रोता: नहीं, जैसे *अनकंडीशनल*। कह रहे हैं कंडीशन ही न हो, बस दे दो, ही इज़ एट द सेंटर तो उसके थिएटर में पिक्चर का कोई मीनिंग ही नहीं है। उसको कोई पिक्चर का मीनिंग नहीं है, उलटी है या सीधी है। तब भी उस मौन में, वो क्षमता तो रखता है।

वक्ता: उसका मौन आपको उपलब्ध कहाँ हो पाएगा? आप उसके पास जाओगे कहाँ? आपके सामने एक इनोसेंट व्यक्ति आ जाए, जो पूरा खाली है बिलकुल आर-पार कुछ है ही नहीं। बिलकुल आप उसकी ओर आकर्षित हो गए, तो आप उसकी बात सुनोगे क्या? सुनने के लिए, वो आपको ज़ंजीर में जकड़ के तो नहीं बिठाएगा ना? काम तो आपका है कि आप बैठो। काम तो आपका है कि आप चुनो और आपके सामने दुनिया भर के चुनाव उपलब्ध हैं। आप कहीं भी जा के बैठ सकते हो। ठीक इस समय हम लोग यहाँ बैठे हैं, क्या हमारे सामने दस विकल्प और नहीं थे? हम कहीं भी तो और हो सकते थे। अगर आपको वाकई मिल जाए पूर्णतया स्वस्थ आदमी। एक दम निरंजन, कोई दाग नहीं है उसमें। न वो आपको कोई लोभ दे रहा है कि तुम्हें मुझसे कुछ मिल जाएगा कि 25 का बैच बनाऊँगा और सबको एनलाइटेन करा दूँगा और न वो आपको डरा रहा है कि आओगे नहीं तो डिसइंसेंटिव लगा दूँगा। वो दोनों में से कोई काम नहीं कर रहा। तो आप उसके सामने बैठोगे क्या? कहाँ बैठोगे?

श्रोता: नहीं, एक जैसे ये है न निराकार शक्ति सारे संसार को चला रही है।

वक्ता: निराकार शक्ति नहीं है बिलकुल भी नहीं है क्यूँकी जो संसार है ही नहीं उसको चलाने का सवाल ही नहीं पैदा होता और आपने शक्ति की बात कही, शक्ति का अर्थ ही है जो पदार्थ को एक से दूसरी जगह ले जाए। शक्ति का अर्थ ही है समय और आकाश। शक्ति चाहिए इस बिस्किट को यहाँ से यहाँ उठा के रखने के लिए। मतलब शक्ति की अवधारणा भी तभी अर्थपूर्ण है, जब बिस्किट हो। जहाँ कुछ नहीं, वहाँ शक्ति करेगी क्या? जिन्होंनें जाना है कि ये संसार सिर्फ़ हमारे मन का प्रक्षेपण है, वो ये भी जान रहे हैं कि शक्ति भी सांसारिक ही है।

श्रोता: प्रक्षेपण मीन्स?

वक्ता: *प्रोजेक्शन*। हमने बनाया है। शक्ति किसलिए चाहिए? एनर्जी चाहिए इसको उठाने के लिए। यहाँ तक उठा के लाया हूँ, तो क्या हुआ है?

श्रोता: पोटेंशियल एनर्जी आ गई।

वक्ता: और ये छोड़ दिया, तो इसने गेन करा। अगर ये ही न हो तो एनर्जी क्या करेगी? और एनर्जी है कहाँ? एनर्जी बसती है इसमें। इसका जो पूरा वज़न है, वो पूरा एनर्जी मात्र है। एनर्जी को आप E=MC2 बोलते हो। और जो जानता है, वो अच्छे से जानता है कि ये ही नहीं है। जब M ही नहीं है E=MC2 है, और जब M ही नहीं है तो E कहाँ गया? एनर्जी पदार्थ के अलावा और है क्या? और जब पदार्थ ही नकली है, तो एनर्जी कहाँ से आ गई और ये बड़ा प्यारा भुलावा है: इश्वर एक शक्ति है। अरे! इश्वर कोई शक्ति-वक्ति नहीं है। इश्वर शक्ति है, ये कहना इसी के समतुल्य है कि इश्वर पदार्थ है क्यूँकी शक्ति पदार्थ है।

श्रोता: हम ये चीज़, ये आकाश, चाँद सितारे ये चीज़ें मानव निर्मित तो है। नहीं ये कहाँ से आई हैं?

वक्ता: ये बिलकुल मानव रचित हैं। आपने ही हिमालय बनाया है, आपको पता नहीं है। दावा मत करने चले जाइएगा कि मेरा है।

(सभी हँसते हैं)

श्रोता: ये सूरज, चन्द्रमा, तारे – ये सब हम लोगों ने ही बनाए हैं क्या?

श्रोता: उसको हम ही तो नाम दे रहे हैं न।

वक्ता: नहीं ये नाम देने भर की बात नहीं है। पूरा-पूरा बनाया है, और मज़े की बात ये है कि हिमालय ने आपको बनाया है। आपने हिमालय को बनाया, हिमालय ने आपको बनाया, दोनों ने एक दूसरे को बनाया और दोनों हैं ही नहीं। जब न हिमालय हैं, न आप हैं तो शक्ति का सवाल ही कहाँ पैदा होता है?

श्रोता: लेकिन इस बात को तो थोड़ा सा एक्सप्लेन कर दें कि ऐसा क्यूँ नहीं है?

वक्ता: आपके मन की एक संरचना है, एक कॉन्फिगरेशन। वो दुनिया को उसी तरीके से देखता है, छूता है। अगर आपके पास ये दीवाल है और इसी दीवाल के काउंटरपार्ट , इसी के समकक्ष, आपके पास स्पर्श करने की शक्ति है। इस दीवाल का होना और आपके पास स्पर्श की शक्ति का होना एक ही बात है। दृश्य है और आपके पास दृश्य देखने की शक्ति है। वो दोनों एक ही बात हैं। अगर एक दूसरे तरीके का प्राणी ठीक यहाँ पर हो और हज़ारों तरीके के प्राणी इस वक़्त यहाँ पर हैं, जिनको आप देख नहीं सकते हैं क्यूँकी वो आपकी इन्द्रियों की पहुँच से बाहर हैं। तो उनके लिए ये दीवाल दीवाल नहीं है। हो सकता है उनके लिए यहाँ बीच में कुछ हो।

आप संसार को उतना ही जानते हो जितनी आपकी इन्द्रियों की संरचना है और आप हिमालय को इसलिए जान रहे हो कि आप वहाँ जाओगे, उसे छूओगे, तो वो दिखाई देगा। क्या हो अगर कोई जाए और जिसे आप हिमालय कहते हो, उसे छूए और उसे कुछ प्रतीत न हो क्या तब भी हिमालय है? अगर कोई प्राणी एसा हो जो जाए और हिमालय को छुए और उसे हिमालय प्रतीत ही न हो क्या तब भी हिमालय है? बल्कि आप जाएँगे और कहेंगे कि देखो, हिमालय तो कहेगा बेवक़ूफ़, कुछ है ही नहीं। ये देखो मैं आर पार जा रहा हूँ।

हिमालय का होना और आप में स्पर्श की शक्ति का होना, एक ही बात है और ऐसे प्राणी बिलकुल हैं और हो सकते हैं। जिनकी इन्द्रियाँ आपसे बिलकुल हट कर हों। जिनके न आँख हों, न कान हों, आप उन्हें जीवित ही नहीं मानोगे। आप कह दोगे ये जीवित ही नहीं है क्यूँकी आपके लिए जीवन का अर्थ ही है ऐसे प्राणी, जिनमें इस प्रकार की इन्द्रियाँ हो। अब इसके पास वही सब इन्द्रियाँ हैं कान भी है, नाक भी है तो आप इसे जीवित मान लेते हो। आप पत्थर को जीवित ही नहीं मानते। बहुत दिनों तक पेड़ों को जीवित नहीं माना जाता था।

हिमालय की रचना आपने ही करी है, और आपकी रचना हिमालय ने करी है। हिमालय जो कुछ है, वो आप भी हो। हिमालय एक दृश्य है; आप आँख हो। हिमालय पत्थर, चट्टान है; आप स्पर्श हो। हिमलय पर नदियाँ बह रही हैं कल-कल ध्वनि है; आप कान हो। कुछ-कुछ बात पल्ले पड़ रही है? ऐसे समझिए कि जिस रूप में ये खरगोश इस संसार को देखता है वो बहुत अलग रूप है जिस रूप में आप संसार को देखते हो। खरगोश आपसे थोड़ा ही अलग है और भी इससे अलग हुआ जा सकता है। इस वक़्त इस रूम में करोड़ों बैक्टीरिया मौजूद हैं और वो किस प्रकार इस संसार को देखते हैं उनके लिए संसार क्या है?

उनके लिए संसार बिलकुल अलग है क्यूँकी उनके लिए मन का संरचना अलग है। संसार आपके मन का प्रक्षेपण है, प्रोजेक्शन है ये दीवाल है नहीं। ये दीवाल इसलिए है क्यूँकि आपके पास एक शरीर है जो इस दीवाल जैसा ही है और जो इस दीवाल से टकराएगा तो इसे दीवाल प्रतीत होगी। यदि आपका शरीर ऐसा न हो जिसे इस दीवाल से टकराने पर प्रतीत हो तो फिर ये दीवाल कहीं नहीं है और यदि आपका शरीर इतना सूक्ष्म हो जाए कि उसे हवा से टकराने पर भी प्रतीति हो, तो फिर हवा भी दीवाल है।

आप बात समझ रहे हैं?

नहीं, ये जो सब दृश्यमान जगत है, जिन्होंने भी जाना, उन्होंने पहली चीज़ यही जानी है कि ये मुझसे अलग नहीं है। इसने मुझे निर्मित किया है, मैं इसे निर्मित करता हूँ और दोनों चूँ कि एक दूसरे पर निर्भर करते हैं, तो दोनों द्वैत के दो सिरे भर हैं और कुछ नहीं हैं। सत्य इनमें से कोई भी नहीं है: न दुनिया सत्य है, न मैं सत्य हूँ और इसी बात को कृष्णमूर्ति थोड़ा नीट तरीके से कहते हैं कि ‘*आब्जर्वर इस द ऑबज़र्व्ड*’। इसी बात को वो कहते हैं कि आब्जर्वर इस द ऑबज़र्व्ड। हिमालय तुम हो और तुम हिमालय हो। तुममें और हिमालय में दिखने भर का अंतर है, गुणात्मक रूप से कोई अन्तर नहीं है।

श्रोता: जैसे गुरु नानक देव जी के शब्द हैं शब्दे धरती, शब्दे आकाश, शब्दे शक्ति हुआ प्रकाश, सारी सृष्टि आनंद बाजे सारे घटे घट बाजे।

वक्ता: लेकिन ये वो शब्द नहीं है, जो कानो पर पड़ता है ये भी आप जानते हैं अच्छे से। नानक उस शब्द की बात नहीं करते, जो कानों पर पड़ता है।

श्रोता: तो इसको क्या कहेंगे?

वक्ता: बस ये ही, जो अभी बात करी।

श्रोता: नहीं, नानक जी ने इसको शब्द बोला।

वक्ता: नानक जी ने कहा है कि ये जान लो कि इन सब में व्याप्त तत्त्व एक ही है। उस तत्त्व को वो नाम दे रहे हैं शब्द का। कुछ तो बोलना पड़ेगा न ए, बी,सी बोल दें, उससे अच्छा शब्द बोल दिया। कुछ तो बोलना पड़ेगा न?

श्रोता: मैंने परसों भी बोला था आपको सच्चा शब्द तो आपने कहा था कि नहीं, कुछ नहीं होता।

वक्ता: कुछ नहीं है आप नानक से भी पूछेंगे, तो वो भी कहेंगे कुछ नहीं है। शब्द के लिए तो पहली चीज़ क्या बोलते हैं जपुजी में? पहली पाई बताइए?

श्रोता: एक ओंकार सतनाम करता पूरक।

वक्ता: तो कौन सा शब्द है ये? अरे! अभी तो बोला। ओंकार। ये उसी शब्द की बात कर रहे हैं ओंकार शब्द है। शब्द तो वो, जिसका अर्थ हो। हर शब्द का अर्थ होता है कि नहीं होता है? नानक का शब्द ओंकार है, और ओंकार का कोई अर्थ होता है क्या? नानक का शब्द, शब्द है ही नहीं, पर कुछ नाम देना है तो बोल देते हैं शब्द।

श्रोता: ये प्रणव शक्ति नहीं है ओंकार?

वक्ता: प्रणव ही है पर प्रणव माने क्या? प्रणव माने ओंकार और ओंकार माने प्रणव। दोनों का मतलब क्या? शून्य, कुछ नहीं।

श्रोता: जैसे हमार अन्दर प्रण शक्ति है।

वक्ता:- उससे मतलब नहीं है उससे सब निकलता है ये कहना एक बात है, वो कुछ है ये कहना बिलकुल दूसरी बात है।

श्रोता: पर ऐसा ही क्यूँ कि जो लाइफ़ है, वो धरती पर ही है?

वक्ता: किसने कह दिया?

श्रोता: या फिर दूसरी जगह वही है कि हम देख नहीं सकते।

वक्ता: यहाँ पर इस समय अरबों असंख्य तरीके का जीवन मौजूद है जिसको आप जान नहीं सकते हो। न वो आपको जान सकते हैं। कोई भूत प्रेत की बात नहीं कर रहा हूँ कि यहाँ पर छाया डोल रही हैं, घबरा जाएँ कि इस कमरे में कुछ एसा पाल रखा है क्या पता इनका? ये खरगोश पालते हैं, ये भूत भी पालते हों। नहीं, ऐसा कुछ नहीं है, लगातार ऐसा ही है। आप नहीं जान सकते उनको, तो आप उनको अलाइव बोलते ही नहीं हो, तो बड़ी मूर्खतापूर्ण बात है कि जो वैज्ञानिक निकलते हैं न, कि हम लाइफ़ खोजने जा रहे है। तुम लाइफ़ के नाम पर क्या खोजोगे तुम मूलतः?

ये कह रहे हो कि तुम इंसान खोजने जा रहे हो। तुम देखो न कि तुम एलियन लाइफ़ की कल्पना भी किस तरह करते हो? एक फिल्म आई थी ऋतिक रोशन की, जादू। अब वो जादू भी आपने क्या बनाया? एक आदमी ले लो, खरगोश ले लो दोनों को मिला दो जादू बन गया और उसके ऊपर नीला रंग की स्याही डाल दो, तो जादू हो गया। आपने जो जाना है, जो अतीत का अनुभव है आप उसी के आधार पर सोच लेते हो कि जो फॉरन लाइफ़ होगी, वो भी ऐसी ही होगी।

अभी हम एक फिल्म देखने गए थे उसमे बड़े बड़े काईजू थे। अब वो काईजू क्या है, उसके एक पूँछ है, पूँछ तो इसके भी है आपको पता है कि उसके भी पूँछ है तो आपने उसके भी पूँछ लगा दी। उनका आकर इतना बड़ा था आपने हाथी देखे हैं, जब हाथी इतना बड़ा हो सकता है तो उसी को दस गुना कर दो। उनकी आँखें थी, उनकी जीभ भी, उनकी नाक भी थी, उनका खून था पर नीला था अब जब लाल हो सकता है तो नीला भी हो सकता है।

श्रोता: उनके पैरासाइट भी थे।

वक्ता: उनके पैरासाइट भी थे। पैरासाइट होते तो हैं छोटे-छोटे, उनके इतने बड़े-बड़े थे। बक्सों में ले कर के इतने बड़े-बड़े पैरासाइट घूम रहे हैं। तो आप देखिये न कि जब आप बोलते भी हो कि हम जीवन की तलाश कर रहे हैं, तो आपका अभिप्राय यही होता है कि जैसा हमने जीवन जाना है, इसी से मिलता जुलता, इसी के सामान जीवन हम खोजने जा रहे हैं। उसे अलग कुछ आपको जीवन मिल गया तो आप बोलोगे ये जीवन है ही नहीं। आप पत्थर को जीवित बोलते हो क्या? आपको हक़ किसने दिया ये बोलने का कि पत्थर मुर्दा है। आप पत्थर को सिर्फ़ इसी लिए मुर्दा बोल लेते हो क्यूँकी वो आपके जैसा नहीं है नहीं, तो आप कैसे दावा कर रहे हो कि पत्थर मुर्दा है? पत्थर से पूछो तो हो सकता है कि कहानी कुछ और हो। वो कहे कि ये हमारी दुनिया है इसमें कुछ इस तरह के कीड़े-मकौड़े घूमते रहते हैं। ये निर्जीव लोग घूम रहे हैं और हमारा अहंकार देखिये हम दावा करते हैं कि पत्थर, निर्जीव, बेकार, पाँव की ठोकर खाता है।

पत्थरों की कहानी कुछ और होगी ये बड़ा गहरा अहंकार है कि हम सोचें कि जो हमारे जैसा है, वही जीवित है इसीलिए भारत में पहाड़ों की, नदियों की, जानवरों की, धूल तक की पूजा हुई कि आप होते कौन हो ये कहने वाले कि सिर्फ मैं जीवित हूँ? आप होते कौन हो? आपसे किसने कह दिया कि जीवन का अर्थ सिर्फ आँख, कान, नाक, साँस बस। आपसे किसने कह दिया कि यही जीवन है। ये बस आपका गहरा अहंकार है कि मेरे जैसे हो, तब तो जीवित हो और मेरे जैसे नहीं, तो तब मुर्दा हो।

मन वाणी का स्वामी रहे, विवेक मन का स्वामी रहे और विवेक आत्मा से उद्भूत हो और आत्मा से क्या अर्थ है? वही जो मेरा तत्त्व है, जो मेरा मूल तत्त्व है। सब कुछ उससे जुड़ा हुआ रहे, वही स्रोत रूप रहे। मन स्रोत में समाया हुआ है, मन स्रोत में समाया हुआ रहे। यही जब मन स्रोत से अलग होता है उसी को फिर भक्ति वाणी विरह का नाम देते हैं। मन का स्रोत से अलग हो जाना ही विरह है।

देखो इसमें क्या कहा जा रहा है?

वाणी मन में समाई हुई रहे, मन विवेक में और विवेक आत्मा में। इतनी सीढियाँ न भी बनाओ, तो बस ये कहा जा रहा है कि मन स्रोत के संपर्क में रहे। मैं लगातार अपने साथ रहूँ, मैं लगातार अपने साथ रहूँ।

श्रोता : स्रोत का मतलब क्या होता है?

वक्ता: स्रोत का कोई मतलब नहीं होता। ये वैसा ही सवाल है कि भगवान क्यूँ हैं।

श्रोता: नहीं, मेरा मतलब इंग्लिश में मैं समझी नहीं।

श्रोता: ओरिजिन।

वक्ता:

स्रोत का अर्थ वो , जो मन से भी पहले।

मन विचारों में होता है, स्रोत समझिएगा। मन विचारों में होता है, बिना विचारों के आप जो हो, उसका नाम स्रोत है। बिना विचारों के आप जो हो उसका नाम स्रोत है। मन का अर्थ है विचार, मन का अथ है संस्कार, बिना विचारों के और बिना संस्कारों के आप जो हो, उसका नाम है स्रोत।

श्रोता: जहाँ कोई स्वीकार या अस्वीकार नहीं है।

वक्ता: हाँ, बढ़िया क्यूँकी स्वीकार और अस्वीकार मन के भीतर होता है, ये उसी मन के अन्दर के द्वैत के हिस्से हैं। ये बड़ी मज़ेदार चीज़ होती है खेल की तरह है। कोई शब्द हाथ में आए न, उसका अपोजिट ढूँढिये, विपरीत। अगर विपरीत मिल गया तो मना कर दीजिये, छोड़ दीजिये। मन में प्रेम उठे, अगर उसका विपरीत मिल गया कि क्या उसका विपरीत संभव है?

श्रोता: हर प्रॉब्लम का हल हो जाता है।

वक्ता : सोल्यूशन इस तरह हो जाता है कि दिख जाता है कि ये सब मन की ही कृति है। कोई इसका आधार-भूत सत्य नहीं है। हवा-हवाई कृति है मन की।

श्रोता: सर, बहुत बारी ऐसा होता है कि कई बारी हम बैठे हों और कोई सामने वाला पूछता है। कुछ चल नहीं रहा होता है दिमाग में न कोई विचार, न कोई व्यक्ति, न कोई इमेज तो उसको क्या ये स्टेट कहोगे? कि होता है कि आप बिलकुल ब्लैंक हो, न कोई सिचुएशन चल रही होती है, न कोई..

वक्ता: अंतर है। एब्सेंट माइंडेड होने और प्रेसेंट होने में अतर है। तीन स्थितियाँ हैं, अलग-अलग हैं, इनको देखिएगा। एक है मन अराजक है, दूसरा है मन खोया हुआ है एब्सेंट माइंडेड है और तीसरा है कि मन डूबा हुआ है। हम जिसको कहते हैं कि, ‘’मैं अभी कुछ सोच नहीं रहा,’’ वो आम तौर पर मन के खोये हुए होने की स्थिति है। ये वो नहीं है, ये ऐसा है कि जैसे इस कमरे में कुछ भी हो रहा हो लेकिन ये कमरे में रौशनी जल रही है न पीछे, ये मन की वो स्थिति है कि कमरे के भीतर आप कुछ भी करो मन कुछ भी कर रहा है, हाथ-पाँव चल रहे हैं, कुछ बोला जा रहा है, सब कुछ हो रहा है लेकिन पीछे एक रौशनी लगातार जल रही है। ये मन की वो स्थिति है, एक सतत सतर्कता बनी हुई है। एक निरंतर जागरुकता बनी हुई है। नहीं समझे?

इस कमरे में बहुत कुछ हो रहा होगा, उठा-पटक भी हो सकती है, बहुत बातें हो सकती हैं, प्रेम हो सकता है, गोलियाँ भी चल सकती हैं। ये रौशनी लेकिन लगातार क्या कर रही होगी? इस कमरे में एक रौशनी है, वो लगातार क्या कर रही होगी? वो जल रही है न, उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा। स्रोत में डूबे होना मन की वो स्थिति है, जहाँ पर दुनियादारी के जो भी काम हैं, वो चल रहे हैं, कमरा भरा हुआ है। दुनियादारी से, और दुनियादारी चल रही है। पीछे वो रौशनी लगातार जल रही है, सब कुछ प्रकाश में हो रहा है।

श्रोता: बेहोशी माइंड?

वक्ता: प्रकाश में कुछ भी बेहोशी में नहीं होता। बेहोशी का तो मतलब ही है कि सोए हुए हैं। एक पीछे हल्का सा जानना। ज़्यादा जोर का जानना तो फिर विचार बन जाता है। बिलकुल सूक्ष्म रूप में जानना। ये है। अभी बोल रहे हैं न और बोलते समय भी बोलने में एक बोध बना हुआ है। दौड़ रहे हैं पर दौड़ते में एक बोध बना हुआ है लगातार कि खो न जाएँ।

श्रोता: जिसको कृष्णमूर्ति पैसिव अवेयरनेस कहते हैं?

वक्ता: हाँ, बहुत बढ़िया। और पैसिव ही होती है, जिसने उसको एक्टिव बना लिया। हम बड़े एक्टिविस्ट होते हैं न, जल्दी कर लें। तो हम पैसिव अवेयरनेस को एक्टिव बनाने में लग जाते हैं। एक्टिव अवेयरनेस कुछ नहीं है, वो थॉट है। वो अवेयरनेस है ही नहीं। वो थॉट बन जाती है। पैसिव , सूक्ष्म से भी सूक्ष्म, हल्की से भी हल्की।

श्रोता: चॉइसलेस्नेस मतलब?

वक्ता: चॉइसलेसनेस मतलब कि जब ये रोशनी जल रही है तो ये चुनाव नहीं कर रही है कि ये आप पर पड़े, या आप पर पड़े। ये सब कुछ ही रोशन कर रही है। ये चुनाव नहीं कर रही है। तो ये चॉइसलेस अवेयरनेस है। ये आपको भी रोशन कर रही है, उधर हत्या हो रही हो, तो ये उस हत्या को भी रोशन कर रही होगी, यहाँ प्रेम हो रहा हो तो ये उस प्रेम को भी रोशन कर रही होगी।

श्रोता: एक स्विफ्ट अवेयरनेस की भी बात करते हैं।

वक्ता: स्विफ्ट का अर्थ है *टाइमलेस*। स्विफ्ट का अर्थ है टाइम लेस, कि जिसमें समय नहीं लगता कि जो समय के परे है क्यूँकी जिसने टाइम ले लिया, तो फिर तो वो विश्लेषण हो जाता है कि घटना घट गई और फिर आप रौशनी डाल रहे हो, ये पोस्ट मोर्टेम है। टाइम लेस का अर्थ है तात्कालिक, स्विफ्ट का अर्थ है तात्कालिक, उसी क्षण, उसी समय, स्पोन्टेनिअस , उसी समय।

श्रोता: अलर्ट मीन्स?

वक्ता: अलर्ट मतलब जान रही है, जगी हुई है पर ये डर वाली सावधानी नहीं है, जगने की सावधानी है। इसमें कोई डर नहीं है। हम जगे हुए तब होते हैं जब हम डरे हुए होते हैं, सावधान। ये वो वाली नहीं है।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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