भारत की भुजाओं को शक्ति चाहिए || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

Acharya Prashant

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भारत की भुजाओं को शक्ति चाहिए || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

आचार्य प्रशांत: भारत भी ऐसे ही थोड़ी है, अंग्रेजों से आज़ादी मिले भी सत्तर से ऊपर बरस हो गए और हम कहते हैं कि भारत विविधताओं का देश है। इतनी विविधताऍं होते हुए भी क्या है जो सब लोगों को एक सूत्र में पिरोकर रखता है? ज़रूर कोई शेयर्ड आइडियल (साझा आदर्श) है, ज़रूर कुछ साझी मान्यताऍं हैं, कुछ साझे मूल्य हैं। बात समझ में आ रही है? और वो ऊँचे-से-ऊँचे मूल्य होते हैं—या होने चाहिए कम-से-कम। किसी राष्ट्र की बुनियाद में अगर ऊँचें मूल्य नहीं होंगे, तो वो राष्ट्र बहुत दिन फिर चलेगा भी नहीं, विखंडित हो जाएगा, कुछ और हो जाएगा उसके साथ। समझ रहे हो बात को?

भारत के बारे में कहते हैं ना कि कुछ बात तो है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। वो क्या बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी? राजनैतिक स्तर पर तो भारत ना जाने कितनी बार टूटा-फूटा। तो देश तो यहाँ पर कोई एक स्थायी रह ही नहीं पाया, रह पाया क्या? भारत का नक्शा लगातार बदलता रहा है, हर पचास साल में बदलता रहा है, बदलता रहा है कि नहीं राजनैतिक नक्शा? लेकिन एक राष्ट्र के तौर पर भारत लगभग अक्षुण्ण रहा है, अखण्ड रहा है। उसकी वजह है। यहाँ के सब लोगों के निश्चित रूप से कुछ साझे और ऊँचे मूल्य हैं।

ये दोनों शर्तें पूरी होनी चाहिए: मूल्य साझे होने चाहिए और मूल्य ऊँचे होने चाहिए। वो जो साझे और ऊँचे मूल्य हैं, जो भारत को एक राष्ट्र के तौर पर एक रखते हैं, वो मूल्य वास्तव में आध्यात्मिक हैं, ठीक है? तो जो ये भारत देश है, फिर मुझे बताओ कि ये क्या है? ये उन आध्यात्मिक मूल्यों की राजनैतिक अभिव्यक्ति है। भारत राष्ट्र है और उसके केंद्र में क्या है? आध्यात्मिक मूल्य।

आध्यात्मिक मूल्य हैं तभी तो वो चले आ रहे हैं पिछली बीस शताब्दियों से। नहीं तो मैं कह रहा हूँ कि भारत कब का अपने मूल्य खो चुका होता, पर भारतीयों की एक अलग पहचान है। वो बात भारतीयों को भले ही कम समझ में आती है किंतु विदेशियों से पूछोगे तो वो बता देंगे। वो जानते हैं कि राष्ट्र के तौर पर, कंट्री (देश) नहीं, नेशन (राष्ट्र) के तौर पर भारत की क्या पहचान है। वो जानते हैं कि भारत की जो केंद्रीय पहचान है, उसमें बोध आता है, उसमें गहराई आती है, उसमें सत्य आता है, उसमें करुणा आती है, मतलब कि उसमें अध्यात्म आता है।

अध्यात्म ही है जो भारत को एक राष्ट्र के तौर पर पिछली बीस-पच्चीस शताब्दियों से एक रखे हुए है। राष्ट के तौर पर एक रहे हैं, देश के तौर पर बनते-बिगड़ते रहे हैं।

भई, अभी सत्तर-पिछत्तर साल पहले तक पाकिस्तान, बांग्लादेश भी राजनैतिक तौर से सब भारत का ही हिस्सा थे, ब्रिटिश इंडिया का, थे कि नहीं? और इतना ही नहीं, पाँच-सौ राजे-रजवाड़े थे जो अपनी-अपनी अलग सत्ता चला रहे थे। तो राजनैतिक तौर पर तो बहुत उथल-पुथल चलती ही रहती है, राष्ट्रीयता लगातार कायम रहती है। अब 1947 के बाद से एक अभिनव प्रयोग हुआ है। वो अभिनव प्रयोग ये है कि वो जो भारत राष्ट्र था वो भारत देश बनकर सामने आया है। बात समझ रहे हो? राष्ट्रीय मूल्यों को राजनैतिक अभिव्यक्ति मिली है। तो ये देश कोई हल्की-फुल्की चीज़ नहीं है। भारत को यूँ ही कोई एक पॉलिटिकल एंटिटी (राजनैतिक इकाई) मत मान लेना; एक राजनैतिक इकाई नहीं है भारत।

भारत, फिर से कह रहा हूँ, चौथी-पाँचवीं बार दोहरा रहा हूँ, जो ये भारत देश भी है, द कंट्री कॉल्ड इंडिया , ये गहरे आध्यात्मिक मूल्यों की राजनैतिक अभिव्यक्ति है, तो ये पूजनीय है। ये पूज्यनीय किसलिए है? क्योंकि ये भारत देश रहेगा, तो वो आध्यात्मिक मूल्य भी कायम रहेंगे। उन आध्यात्मिक मूल्यों के कायम रहने के लिए आवश्यक है कि ये भारत देश रहे, एक राजनैतिक सत्ता रहे। वो राजनैतिक सत्ता जब रहती है, तो वो फिर देश में इस तरह का माहौल तैयार कर सकती है, इस तरह का नियम-कायदा-कानून रख सकती है कि वहाँ बसने वालों, वहाँ पैदा होने वालों, वहाँ पलने और बढ़ने वालों में एक खास तरह की मानसिकता रहे, मूल्य उनके ऊँचे रहें, संस्कार उनके शुद्ध रहें।

देश का मतलब ये ही नहीं होता कि सरकार है, और सरकार बिजली-पानी-सड़क का काम कर देगी। ये तो आपने बहुत ही अटपटी बात कर दी। कम-से-कम भारत देश तो ऐसा नहीं है जिसमें राज्य का काम बस ये है कि वो आपके लिए सड़क, पानी और बिजली की, कानून की व्यवस्था का इंतज़ाम देखता रहे। नहीं! नहीं!

भारत देश इसलिए है ताकि भारत राष्ट्र सुरक्षित रहे

राष्ट्रों के पास फ़ौजें नहीं होती, राष्ट्रों के पास बस एक भावना होती है, एक आदर्श होता है। अगर सामान्य भाषा में कहूँ, तो राष्ट्रों के पास फ़ौजें नहीं होती, राष्ट्रों के पास आत्मा होती है। फ़ौजें देश के पास ही हो सकती हैं।

तो जो भारत देश है वो शरीर है, और जो भारत राष्ट्र है, ऊँचे मूल्यों वाला, वो उस शरीर की आत्मा है। अब एक बात बताओ, शरीर नहीं रहेगा, तो बेचारी आत्मा करेगी क्या?

कोई संत हों, कोई ऋषि हों, कृष्ण हों, बुद्ध हों, इनके शरीर की कोई कीमत है या नहीं है? या ये कहोगे कि सत्य तो आत्मा मात्र है, शरीर रहे ना रहे? कोई पूज्यनीय आदमी हो, कोई ऊँचा आदमी हो, उसके शरीर की कीमत कुछ है या नहीं है? शरीर की कीमत है क्योंकि शरीर नहीं रहेगा, तो फिर आत्मा को अभिव्यक्ति कौन देगा? कबीर साहब याद हैं ना? सब घट मेरा साइयाँ सूनी सेज न कोय ।

बलिहारी वा-घट्ट की जा-घट पर-गट होय ।।

~ कबीर साहब

‘घट’ माने शरीर। आत्मा तो सर्वत्र है—संतजन कह गए हैं कि आत्मा तो सर्वत्र है—कौन-सी ऐसी जगह है जहाँ आत्मा ना हो? आत्मा के अलावा तो कुछ है नहीं। लेकिन वो शरीर अद्भुत होता है, विरल होता है, जिसमें वो आत्मा अभिव्यक्ति लेती है। ऐसा बस किसी-किसी का शरीर होता है—कभी किसी कृष्ण का, कभी किसी कबीर का—जहाँ पर वो शरीर वाहन बन गया हो आत्मा की अभिव्यक्ति का।

तो जो भारत देश की परिकल्पना करी गयी थी, वो इसी आधार पर थी कि वो उच्चतर मूल्यों का वाहक बनेगा। इसीलिए उस देश की रक्षा की जानी बहुत आवश्यक है। आप ये नहीं कह सकते कि देश तो एक राजनैतिक इकाई है, टूटती है तो टूट जाने दो। ये बात किसी भी देश पर लागू नहीं होती, भारत पर तो बिल्कुल भी लागू नहीं होती। भारत देश बस एक राजनैतिक इकाई नहीं है; भारत देश अपने आप में रौशनी है। भारत देश के पीछे बहुत ऊँचे सिद्धांत हैं। अगर ये देश नहीं रहेगा, तो उन सिद्धांतों को भी ताकत और अभिव्यक्ति देने वाला कौन रहेगा? सिद्धांत बच जाऍंगे पर उन सिद्धांतों की अभिव्यक्ति नहीं बचेगी। सिद्धांत तो बच जाऍंगे पर उन सिद्धांतों के आधार पर चलने वाली कानून व्यवस्था नहीं बचेगी; सिद्धांत तुम लेकर बैठे रहना।

तो अगर भारत देश, भारत राष्ट्र की अभिव्यक्ति है, और इसीलिए भारत देश पूज्यनीय है—और देश से मेरा मतलब है एक बाहरी व्यवस्था, एक शरीर, एक राजनैतिक व्यवस्था, एक ज़मीनी व्यवस्था—तो उस ज़मीन की सीमाओं का फिर जो प्रहरी है, उसको भी कुछ इज़्ज़त दोगे या नहीं दोगे, बोलो?

और भारत देश किसी आसान माहौल में तो रहता नहीं है। हमारा मौहल्ला जानते हो ना कैसा है? पड़ौसी हमारे देखे हैं ना कैसे हैं? छोटे-बड़े सब आँख दिखाते हैं। कोई इधर से नोचने को तैयार है, कोई उधर से खसोटने को तैयार है, कोई नीचे से परेशान कर रहा है, कोई दाएँ से कील चुभो रहा है, कोई बाएँ से। तो इसलिए इस माहौल में जो व्यावहारिक बात है वो ये है कि सेना और सैनिकों का महत्त्व निश्चित रूप से है। अगर ये देश महत्वपूर्ण है, अगर ये देश किन्हीं मूल्यों, सिद्धांतों, आदर्शों का प्रतिनिधि है, तो इस देश की जो रक्षा करने वाला है वो निश्चित रूप से विशेष है, वो सम्मान का अधिकारी है।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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