तुम्हारे जीवन पर जो हक पूरा दिखाते हैं,वो मौत के समय कहाँ छुप जाते हैं?

Acharya Prashant

4 min
48 reads
तुम्हारे जीवन पर जो हक पूरा दिखाते हैं,वो मौत के समय कहाँ छुप जाते हैं?

दोहा : कुल करनी के कारने , ढिग ही रहिगो राम। कुल काकी लाजि है , जब जमकी धूमधाम

वक्ता : जब समय था कि राम को पा लो, तब तो घर, खानदान, परिवार इन्होंने खूब भांजी मारी।

वो याद है न, क्या कहा था कबीर ने?

*मात पिता* सुत इस्तरी आलस बन्धु कानि।

साधु दरस को जब चले ये अटकावै खानि।।

जब तो राम का नाम लेने का समय था, तो माँ-बाप ने, पति-पत्नी ने, बंधुओं ने और सखाओं ने तुम्हें लेने नहीं दिया। इन्होंने तुमसे कहा, “नहीं, नहीं तुम अपनी दूसरी ज़िम्मेदारीयाँ पूरी करो। परिवार के प्रति बड़ी ज़िम्मेदारी है तुम्हारी, वर्णाश्रम धर्म है। अब तुम्हारी इतनी उम्र हो गयी है, तो तुम्हारी ज़िम्मेदारी है कि तुम विवाह करो और बच्चे पैदा करो।”

तब तो उन्होंने तुम्हें दुनिया भर की उलझनें दे दीं, और कर्त्तव्य थमा दिए। और अब ये सब कहाँ हैं? जब यमराज लेने आया, तब ये सब कहाँ हैं? अब तुम्हें मृत्यु से कौन बचाएगा? अमर होने का जो अवसर था, वो तो तुमने खो दिया, इनकी वजह से। अब जब मृत्यु सामने आई है, तो क्या ये तुम्हें बचाएँगे? अमर होने का जो मौका था, वो तो खो दिया तुमने।

बार-बार कहते हैं कबीर, “चलो अमरपुर देस”। तो अमरपुर जाने का जो मौका था, वो तो तुमने खोया। तब तो तुम नून-तेल-लकड़ी, और चूल्हा-चौकी, और बच्चा, और व्यवस्था, और संस्कार, इन्हीं में उलझे रहे। और अब जब मृत्यु सामने खड़ी है, तो कौन बचाएगा तुम्हें? और याद रखिये, जब कबीर ‘मृत्यु’ की बात करते हैं, तो उससे उनका आशय किसी एक ‘क्षण’ का नहीं है। मरने के क्षण की बात नहीं करते। ‘मृत्यु’ से अर्थ है – भय। भय का प्रत्येक क्षण, मृत्यु का क्षण है।

कबीर कह रहे हैं, “ये सब जो तुम्हारे सखा-सम्बन्धी बनते हैं, इनसे कहो न कि ये तुम्हें भय से भी मुक्ति दिल दें”। जब भय सामने खड़े होते हैं, तब तो ये कहीं आसपास दिखाई नहीं देते, बल्कि ये स्वयं भय का बहुत बड़ा कारण हैं। हाँ, जब भय से मुक्ति का अवसर होता है, तब ये अड़ंगा डालने से पीछे नहीं हटते।

जब ये अड़ंगा डालने आएँ अगली बार, तो इनसे कहियेगा, “ठीक, हम वही करेंगे जो तुम करोगे, पर फ़िर हमारी कुछ माँगें हैं, वो पूरी कर दो। हमारे मन में जो ये चक्र चलते रहते हैं, इनसे मुक्ति दिल दो। हमारे मन में जो डर बैठे हैं, हमें उनसे मुक्ति दिला दो। हममें जो हिंसा है, हममें जो रिक्तता है, हमें उससे मुक्ति दिला दो। तुम हमारे शुभेक्षु हो न, तुम यही कहते हो न कि तुम हमारे बड़े सगे हो। तुम हमारे बड़े सगे हो, तो बस इतना सा कर दो – हमें शांति दे दो। शांति दे सकते हो, तो हमें रोको। नहीं तो हमें वो करने दो, जो उचित है।”

“शांति तो तुम दे नहीं सकते, बेचैनी से मुक्ति तुम नहीं दिला सकते, फ़िर तुम क्यों हमारी राह का काँटा बनकर खड़े हो जाते हो? हम रहे जाएँगे, बिल्कुल तुम्हारे ही घर में रह लेंगे, और हम वही करेंगे जो तुम चाहते हो, बस तुम हमें थोड़ी-सी, दो-चार चीज़ें दे दो।”

“हमें आनंद दिल दो, हमें इच्छाओं से मुक्ति दिल दो। हमें दिन-रात का, जो मृत्युतुल्य भय का कष्ट है, हमें उससे मुक्ति दिल दो। दिला सकते हो, तो बात करो। और नहीं दिला सकते, तो थोड़ी सद्बुद्धि तुममें भी जगे, हम जिस राह चल रहे हैं, हमारे साथ चलो। और अगर साथ नहीं चल सकते, तो कम से कम, हमारी राह में बाधा मत बनो।”

~’शब्द-योग’ सत्र पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories