प्यार नहीं मिला? || नीम लड्डू

Acharya Prashant

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प्यार नहीं मिला? || नीम लड्डू

प्रश्नकर्ता: “जाने वो कैसे लोग थे, जिनके प्यार को प्यार मिला।“

आचार्य प्रशांत: वो बहुत अलग लोग थे, तुम्हारे जैसे लोग नहीं थे; 'जाने वो कैसे लोग थे, जिनके प्यार को प्यार मिला, हमने तो जब कलियाँ माँगी तो काँटों का हार मिला।' अरे! तुम ख़ुद बहुत बड़ा काँटा हो! जो अपने ही दिल में धँसा हुआ है। काँटे को काँटा नहीं मिलेगा तो और क्या मिलेगा? और अच्छी बात है कि काँटे को काँटा मिले क्योंकि काँटे को काँटा ही निकालता है।

काँटे के कलियाँ किस काम की? जैसे तुम हो, वैसा ही फिर तुम्हें कोई मिल जाएगा, क्योंकि वैसा ही तुम खोजने में लग जाते हो। यह सबको रहता है कहते हैं, 'देखो जो भी लोग प्रेम करते हैं, वो राधा-कृष्ण जैसे रहते हैं।' ऐसे कैसे भाई! ऐसे नहीं होता, सॉरी !

एक बिलकुल औसत आदमी घूम रहा होगा, औसत भी निकृष्ट, घटिया लेकिन जब उसकी भी आशिक़ी तन जाएगी तो कहेगा, 'तू मेरी राधा, मैं तेरा कान्हा।' तुम किस मामले में कान्हा के समतुल्य हो भाई! बताना?

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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