श्री प्रशांत: प्रेम निश्चय ही एक ऐसी अवस्था है जिसमें कोई दुविधा नहीं है। तो अगर इस क्षण तुम पूरी तरह उसके साथ हो जो मैं कह रहा हूँ, गहरे ध्यान में हो, और बात को समझ रहे हो, तो इस क्षण तुम्हारे और मेरे बीच में यह एक प्रेम प्रसंग है। हाँ, वाकई ऐसा है। अब नहीं है, ख़त्म हो गया, क्योंकि तुम उसकी तरफ़ मुड़ गए।
यह प्रेम है, यह तुम्हारी सारी परिभाषाओं के विपरीत है, यह तुम्हारी प्रेम की सारी तथाकथित मान्यताओं के विपरीत है।
प्रेम तुम्हारी एक आंतरिक स्थिति है। जिसमें तुम आनंदित हो।
मस्त, बेपरवाह, बेफ़िक्र – बस वही प्रेम है। उसके लिए ज़रूरी नहीं है कि कोई और भी हो सामने।
प्रेम तुम्हारी आंतरिक अवस्था है। यही प्रेम है।
इस अवस्था में तुम प्रेमपूर्ण होते हो। इस अवस्था में तुम सभी से प्रेम करोगे, एक खरगोश से, एक कुत्ते से, अपनी किताबों से , अपने माँ-बाप से, अपने प्रेमी से। तुम पूरी प्रकृति से प्रेम करोगे, नदी से, पहाड़ से, सब से। क्योंकि सर पर कोई बोझ नहीं है, कुछ गलत नहीं हो रहा है, कोई परेशानी नहीं है।
दूसरे शब्दों में प्रेम तनाव से मुक्त होना है, मस्ती।
वो बेहोशी की मस्ती नहीं है, मस्ती तो दारु पी के भी चढ़ जाती है। मैं उस मस्ती की बात नहीं कर रहा।
प्रेम जागरूकता की मस्ती है, समझ की मस्ती।
और जब तुम समझते हो तब तुम्हारे और दूसरे व्यक्ति के बीच में कोई हिंसा नहीं होती, कोई दीवारें नहीं होती, रक्षा नहीं होती। और जब अपनी रक्षा नहीं होती तो वही प्रेम है, मैं पूरी तरह से उपलब्ध हूँ।
जब मैं यहाँ आया मैंने तुम लोगो से बात कही कि मुँह पर हाथ मत रखो, यह अपनी रक्षा का तरीका है। प्रेम भेद्यता है, भेद्यता होता है कि मैं रक्षात्मक नहीं हूँ। मुझे चोट भी पहुँचाना चाहो तो पहुंचा सकते हो, इसका नाम प्रेम है। मैं रक्षात्मक नहीं हूँ, मैं बख्तरबंद वाहन नहीं हूँ। टैंक कभी देखा है? उसका इतना मोटा (हाथ से इशारा करते हुए) कवच होता है। शायद मैं कम बोल रहा हूँ, इससे भी मोटा कवच होता होगा। रक्षा- चोट न लग जाए कहीं मुझे।
जो लोग चोट लगने से डरते हैं, वो लोग प्रेम कभी नहीं समझ सकते। प्रेम का मतलब है पूरी तरह खुला हुआ हूँ, अब चोट लगती है तो लगे। फर्क किसे पड़ता है? आण दे! की फ़र्क पैंदा है! वो प्रेम है। और जब तक फर्क पैंदा है तब तक प्रेम नहीं है।
दुनिया क्या कहेगी, यह प्रेम नहीं है। यह तो छोड़ ही दो कि दुनिया क्या कहेगी, बॉयफ्रैंड क्या कहेगा, तो भी प्रेम नहीं है। जिसको तुमने विषय बना रखा है प्रेम का उसके बारे में भी बहुत सोचना पड़ रहा है तो भी प्रेम नहीं है।
अगर बेफ़िक्री नहीं है, बेपरवाही नहीं है, तो प्रेम नहीं है।
और वही सब कुछ है, वही ज़िन्दगी है।
तो सही प्रेमी की तलाश करना बंद करो, यह प्रेम नहीं है। कोई ज़िन्दगी में आ जाएगा, मेरे सूनेपन को भर देगा, तो प्रेम होगा। वो सब नहीं होता प्रेम। वो तो हार्मोनल गेम (खेल) है। खेल लो, उसमें कोई बुराई नहीं है। शरीर मिला है तो खेलो। कोई दिक्कत नहीं है।
~ ‘शब्द योग’ सत्र पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।