प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, एक प्रश्न मेरा भी है। हम अक्सर लोगों से बात करते हैं और अक्सर बात होती है कि आचार्य जी को ज्ञान तो बहुत है, शास्त्रीय ज्ञान। पुस्तकें बहुत पढ़ी हैं उन्होंने; पर एक्सपीरियंस (अनुभव) नहीं है। और एक्सपीरियंस की बात बहुत होती है। कहते हैं कि ज्ञान हो न हो, एक्सपीरियंस होता है तो बात ठीक रहती है। अक्सर ये तर्क इतनी ज़ोर से आते हैं; कबीर साहब का भी ज़िक्र होता है इसमें।
'पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।।
बोलते हैं कि ज्ञान हो न हो, एक्सपीरियंस की बात कर रहे हैं कबीर साहब, कि एक्सपीरियंस होना चाहिए। पढ़-पढ़कर क्या हो जाएगा? और मुझसे भी पूछते हैं कि आप तो आचार्य जी के साथ रहते हो, क्या एक्सपीरियंस होते हैं आपको, बताओ। तो मैं बड़े असमंजस में पड़ जाता हूँ। समझ में नहीं आता, क्या बोलूॅं?
आचार्य प्रशांत: नहीं, बता दिया करो न! (श्रोतागण हँसते हैं) ये जो ऐसे बोल रहे हैं कि आचार्य जी ने पढ़ाई-लिखाई तो खूब कर ली है, लेकिन उन्हें अनुभव नहीं है, इन्हें धोखा हो रहा है। मैंने बहुत पढ़ा लिखा भी नहीं है। (श्रोतागण फिर हँसते हैं) तुम्हें कुछ भी कैसे पता; तुम्हें कैसे पता कि मैंने बहुत पढ़ा है? तुम्हें कैसे पता, अच्छा बताओ।
तुम्हें ये भी कैसे पता कि जिसको तुम अनुभव बोलते हो, जो भी तुम्हारी परिभाषा है, वो मुझे नहीं है? वो भी कैसे पता? तुम मुझे कितना जानते हो?
पर जैसी तुम्हारी ज़िन्दगी चल रही है, उसी का प्रदर्शन तुम यहाँ भी कर देते हो। कहीं कुछ सत्यता नहीं, कहीं कुछ खरापन नहीं, कहीं कोई जाॅंच-पड़ताल नहीं। कहीं मूल तक, जड़ तक, सच्चाई तक, पहुँचने की चेष्टा नहीं। बस यूँही जो सुन लिया, वो मान लिया।
आचार्य जी ने अपने ही मुँह से बोल दिया, ‘मैंने पढ़ा है।’ तो पढ़ा है। तुम्हें कैसे पता मैंने पढ़ा है? हो सकता है मैंने कुछ न पढ़ा हो। बुद्धू तो हो तुम! तुमको और बुद्धू बनाने के लिए बहुत पढ़ने लिखने की क्या ज़रूरत है?
चार श्लोक पता हों, फट से बुद्धू बन जाओगे। यहाँ तो ऐसे-ऐसे भी तुमको बुद्धू बना रहे हैं जो खुलेआम घोषणा करते हैं कि हमने कभी एक श्लोक नहीं पढ़ा। जब वो तुमको बुद्धू बना सकते हैं, तो मैंने तो अगर चार भी श्लोक पढ़ लिये हों तो भी बना दूॅंगा। तुम्हें कैसे पता कि मैंने खूब पढ़ा है?
कुछ भी नहीं, ये एक मानसिक मॉडल (ढ़ाॅंचा) है उसमें तुम मुझे फिट कर देना चाहते हो। कि एक तरह के लोग होते हैं जो ज्ञानी होते हैं पर जिनके पास अनुभव नहीं होता। ऐसे लोग बस आपको ऊपरी बातें, किताबी बातें बता सकते हैं। लेकिन ये आपको असली अनुभव नहीं दे सकते। तो असली अनुभव कौन देता है?
वो तो वो देते हैं जो, यूँ फुर्ररर, आत्माएँ पकड़ लाते हैं या तो ऐसे आँख बन्द करते हैं और तुरन्त ऐसे, देवलोक पहुँच जाते हैं; वो अनुभव उनको होता है। तुम्हें ये भी कैसे पता कि मुझे वो अनुभव नहीं हुआ है?
मैं अभी बोल दूँ, हुआ है! तो? (श्रोतागण ज़ोर से हँसते हैं) मुझे हुआ है और प्रमाण है ये अनुज! मैं बोल रहा हूँ, मैं इसको साथ लेकर गया था। मैं जा रहा था, मुझे लगा अकेलापन; रास्ते में कोई साथ में चाय पीने वाला होना चाहिए, मैंने झट से पकड़ लिया! मैंने कहा, ‘देवलोक तू भी चलेगा।’
बताओ सबको, गये थे कि नहीं गये थे? (आचार्य जी, प्रश्नकर्ता की ओर इशारा करते हुए) ये भी गया था। (सब हँसते हैं) अब बताओ, कौन कहता है कि मुझे अनुभव नहीं है?
तुम्हें कैसे पता कि क्या है, क्या नहीं है? कुछ भी नहीं। ज़िन्दगी में कुछ सच्चा नहीं। तुम ख़ुद को नहीं जानते, तुम मुझे क्या जानोगे? तुम अपने घर को नहीं जानते, तुम अपने बच्चे को नहीं जानते। न माँ को जानते हो अपनी, न बाप को जानते हो।
कभी ज़िन्दगी में किसी पक्ष में सच्चाई अनावृत करने का प्रयास भी करा है? तुम्हें कुछ नहीं पता ज़िन्दगी के बारे में। तुम मेरे बारे में धारणा बना रहे हो! ‘इनको ये पता है, उनको वो पता है।’ मैं परेशान रहता हूँ कि सालों बीते जा रहे हैं और हज़ारों किताबें रखकर बैठा हूँ और पढ़ने का समय नहीं मिल रहा। और तुम बोल रहे हो, ‘आचार्य जी ने बहुत पढ़ लिया है।’
मैं कह रहा हूँ, ‘मैं अनपढ़ हूँ।’ न जाने कितना है जो पढ़ना अभी बाक़ी है। तुम्हें लग रहा है, पढ़ लिया है। और न जाने किस चीज़ को तुम अनुभव बोलते हो। अनुभव माने क्या? अनुभव तो सभी को हो रहे हैं दिन-रात।
जो मेरे साथ रहते हैं उनको भाँति-भाँति के अनुभव होते हैं। ऐसे अनुभव! अनिर्वचनीय! बता नहीं सकते आप लोगों को! आप कोशिश कर लो, ये कमलेश से पूछो, इसे कैसे-कैसे अनुभव हुए हैं। ये ज़िन्दगी में किसी को न बता पाये। वजह दूसरी है।
तो अनुभव किसको नहीं हो रहे? तुम किन ख़ास अनुभवों की बात कर रहे हो? चिड़िया फुर्ररर! इस कान में तोता डाला, इस कान से खरगोश निकला! मुझे भी होते हैं।
ये बताएँगे ( एक व्यक्ति की ओर इशारा करते हुए ) खरगोश नहीं निकाला था मैंने कान से? निकाला था। मानो न! क्यों नहीं मान रहे? बोले, ‘नहीं उन्होंने करके दिखाया’; हम भी करके दिखा देंगे।, VFX (visual effects दृश्य-प्रभाव) का ज़माना है।
क्या रखा है? किसी को सच बताने से बहुत-बहुत-बहुत ज़्यादा आसान है, उसको बुद्धू बनाना। मेरे लिए बहुत आसान होगा, मैं अभी बुद्धू बना दूँ।
मैं क्यों रोज़ पाँच-पाँच घंटे बोलकर इतनी मेहनत कर रहा हूँ? पाँच मिनट में यहाँ पर आकर, ‘हूगा ला ला हूगा ला ला शूम शूम भो!’ तो काम हो जाएगा। तुम सीधे मुझे देवता घोषित कर दोगे। हाथ की सफ़ाई दिखानी है बस थोड़ी सी।
तुम्हें अनुभव चाहिए, किसी दिन गुस्सा आ गया मुझे, तो दिखा भी दूँगा; लो अनुभव! अनुभव माने क्या चाह रहे हो? क्या माने, अनुभव माने क्या कर दें? हिप्नोटाइज़ (सम्मोहित) कर दें तुम्हें? क्या करें? क्या अनुभव चाहते हो?
या मैं अपना क्या अनुभव बता दूँ? एक बार मैं देह छोड़कर के बाहर उड़ गया था! ततैया बनकर जाकर मैंने गन्धर्वों को काट लिया! तो उन्होंने मुझे यक्षों के पास भेज दिया। वो बोले, ‘देवराज इन्द्र से क्षमा प्रार्थना करो, नहीं तो सात हज़ार साल के लिए तुमको कींचड़ के बीच में पेड़ बना देंगे, वहीं सड़ते रहोगे।’
ये सब बताऊँ? ऐसा हुआ था? हाँ हुआ था, ये मैं कोई कहानी थोड़े ही बता रहा हूँ। सचमुच हुआ था। दो न गवाही कि हुआ था यार तुम! इस धन्धे में चेले-चपाटे बहुत काम आते हैं। (श्रोतागण हँसते हैं)
उनके अलावा कौन फिर तुम्हारा बिगुल बजाएगा? कोई तो चाहिए न जो बोले, ‘गुरु जी महान हैं!’ तो इस तरह के बहुत सारे, सब गुरु लोग पालते हैं, वो पीछे पूरी फ़ौज खड़ी करते हैं। वो इसीलिए होती है। वो इतनी ज़ोर से जय-जयकार करते हैं कि दुनिया को लगता है, करनी ही चाहिए; इतने कर रहे हैं तो हम भी करें।
तुम काम कर नहीं रहे हो ठीक से। (श्रोतागण हँसते हैं) अपनी तुम वो बना लो, कोई कॉलर ट्यून या कुछ ऐसे ही; उसमें, ‘गुरु जी को अनुभव हुए, मैं साथ में था, कोई बहस नहीं होगी अब इस बात पर।’ कौन-कौन है भाई यहाँ अनुभव का खिलाड़ी? एक ज़ोर का चाॅंटा पड़ जाए न किसी के कान पर, इतने अनुभव होने लग जाते हैं मन को। सबको हुए होंगे। हुए हैं कि नहीं हुए हैं? भाँति-भाँति के अनुभव हो जाते हैं। थोड़ा गाॅंजा फूँक लो, अभी अनुभव होने शुरू हो जाएँगे।
कितने गुरुओं ने तो ये करा भी है। उन्होंने कहा है कि ये सब भाँग-धतूरा, साइकेडेलिक्स (psychedelics- भ्रमित करने वाला रसायन) ज़रूरी हैं आध्यात्मिक यात्रा में। क्योंकि अनुभव तो इन्हीं से मिलते हैं।
ऐसे-ऐसे पेय पदार्थ हैं, बोलो! अभी पिलाएँ, कैसे अनुभव हो जाएँगे; एकदम छत पर जाकर बैठ जाएँगे। बोले, ‘गुरु जी महान हैं, बिना छुए सीधे छत पर बैठा दिया।’ और जब छत पर गये, तो पाया गुरूजी ख़ुद वहाँ बैठे हुए हैं। बोले, ‘देखा मेरा चमत्कार!’ अब से ये तयशुदा बात है, ठीक है? सबसे बोल रहा हूँ मैं, संस्था में। हमारे आचार्य जी चमत्कारी हैं। ठीक है? काली चाय उनके सामने ले जाकर रखते हैं, वो अपने होंठों से लगाते हैं, उसमें दूध आ जाता है। इसीलिए तो वो कहते हैं कि किसी को दूध पीने की ज़रूरत नहीं। उनकी रगों में रक्त की जगह दुग्ध प्रवाहित होता है।
बताओ न सबको! मेरा B12 कभी कम आता है? इतने टेस्ट होते हैं; संस्था में सबका ऐसे ही रहेगा; बॉर्डरलाइन किसी का कम भी रहेगा, मेरा हमेशा तीन सौ आता है, कैसे आता है? हमारी महिमा का कुछ गुणगान करो न! हम चमत्कारी हैं। जब तक वो नहीं होगा, तब तक मूर्खों को बात सुनायी ही नहीं पड़ेगी, समझ में ही नहीं आएगी, ये स्वीकारेंगे ही नहीं। इनको सच्चा बोलने वाला साधारण आदमी नहीं चाहिए। इन्हें चाहिए, इन्हें बेवक़ूफ़ बनाने वाला जादूगर या कलाकार।
बन जाते हैं, ठीक है। अब देखिएगा आप लोग सब। ब्रांड ट्रांसफॉर्मेशन। (ब्रांड परिवर्तन )
वो एक वीडियो है। जिसमें है 'क्या शरीर में देवी-देवताओं का प्रवेश सम्भव है?’ एक है, 'क्या भूत-प्रेत होते हैं?’ उसमें जितने आते हैं, वो बिलकुल यही बात बोल रहे होते हैं, ‘अजी, आपने अभी भूत-प्रेत अनुभव नहीं किये न, इसलिए आपको पता नहीं है।’
मैंने कहा, ‘अभी तक नहीं किये थे, अब कर लिया। तू है तो सामने भूत!’ बोले, ‘भूत होते हैं, मैंने ख़ुद देखा है।’ तुम तो कुछ भी देख लेते हो। तुम तो एक साधारण लड़की में परी भी देख लेते हो। तुम्हारा क्या भरोसा?
बोला, ‘फ़लाने बाबा जी हैं; वहाँ पर देखो जाकर के, उनके सामने पाँच भूत नाचते हैं। एक भूत तो वो अपनी जेब में लेकर चलते हैं।’ बोतल का तो देखो, ऐसा है कि साधारण आदमी भी भूत बन जाए।
बोतल बहुत आवश्यक होती है, आध्यात्मिक लोगों के लिए; ख़ासतौर पर जो अनुभव की तलाश में होते हैं। जब कहीं और से नहीं मिलते, तो फिर बोतल से मिलते हैं।
जैसे 'शोले' में था न! ‘तो बेटा तुम्हारे ये जो दोस्त हैं, इन्हें कुछ 'अनुभव' हुए हैं क्या?’ ‘बस मौसी, जैसे ही बोतल खुलेगी, 'अनुभव' भी हो जाएँगे।’ ‘माने, ये तुम्हारे दोस्त बोतल वगैरह का भी चक्कर रखते है?’
‘नहीं, वो जब भूत-प्रेत-जिन्नात पकड़ लेते हैं, तो बोतल की ओर तो जाना ही पड़ता है न मौसी?’ ‘अच्छा-अच्छा-अच्छा! तो इन्हें भूत-प्रेत भी पकड़े हुए हैं?’ ‘नहीं-नहीं मौसी, वो तो उस चुड़ैल के घर थोड़ा आना-जाना है इनका और उसी ने ये भूत-प्रेत पाल रखे थे, तो वो भी पकड़ लेते हैं।’
जीवन के जो रोज़ के साधारण अनुभव हैं इनको तो समझ नहीं पा रहे कि क्यों हो रहे हैं? किसी को देखते हो, भीतर ईर्ष्या उठ जाती है, आज तक ग़ौर किया उस पर? कोई दिख गया उससे तुरन्त दब जाते हो या डर जाते हो। आज तक इस अनुभव पर ग़ौर किया?
जो सीधे, साधारण, प्रकट, प्रत्यक्ष अनुभव हैं, उनका तो तुमको कुछ पता नहीं और चाहत है तुममें विशिष्ट अनुभवों की। क्या पागल आदमी हो! कोई विशिष्ट अनुभव नहीं होते।
‘अनुभव’ अनुभव मात्र है। और अनुभव की जड़ में जाकर जिसने अनुभोक्ता को पकड़ लिया, समझ लिया; समझ लो, उसने सारे भूत-प्रेत पकड़ लिये। अध्यात्म उस अनुभोक्ता का शोध है। उसी को अहम् कहते हैं।
उसको जानने के अलावा अध्यात्म का कोई लक्ष्य नहीं होता। ये फिरकीपने की बातें, शरीर का इधर-उधर उड़ना, सूक्ष्म शरीर, ये, वो, पचास जिन्न, चुड़ैल; कानों में घंटियों का बजना, आँखों के आगे प्रकाश आ जाना, बेहोश हो जाना,उल्टी-पुल्टी बातें करना; ये विक्षिप्तता है, अध्यात्म नहीं।
और इसमें बेईमानी भी बहुत सारी होती है। चूँकि अब वो जान गये हैं कि तुम्हें इन सब चीज़ों में विश्वास है, तो वो सब इन्हीं चीज़ों का प्रदर्शन करते रहते हैं और तुम प्रभावित हो जाते हो। कौनसा आदमी आध्यात्मिक नहीं है, किसी व्यक्ति को अगर परखना हो कि ये आध्यात्मिक है या नहीं, तो उसका पहला मैं आपको लक्षण, खरी कसौटी बता देता हूँ।
जो भी व्यक्ति विशिष्ट अनुभवों की बात करता हो, मेटाफिज़िकल एक्सपिरियंसेज़ (पारलौकिक अनुभव) पैरानॉर्मल बिलीफ्स (असाधारण विश्वास); ये सब रखता हो, तुरन्त जान जाना कि ये तो आध्यात्मिक नहीं हो सकता।
मेटाफिज़िकल और पैरानॉर्मल। जहाँ ये शब्द सुनो और जहाँ डिसएमबॉडीड बीइंग्स (disembodied beings- अशरीरी अस्तित्व) वगैरह की बात सुनो कि बॉडी (शरीर) के बाहर भी कोई बॉडी है जो इधर-उधर घूम रही है हवा में।
उसके आगे कुछ सुनने की ज़रूरत ही नहीं है, तुरन्त वहाँ से चम्पत हो जाना। वो व्यक्ति कुछ भी हो सकता है; वो अच्छा व्यापारी ज़रूर हो सकता है, लेकिन वो आध्यात्मिक तो नहीं है व्यक्ति। तुम तो बाक़ी समझ ही गये हो अब क्या करना है। ट्रेनिंग अभी वापस चलकर देते हैं तुम्हें।