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सम्पन्नता ये नहीं कि तुम्हारे पास क्या है, सम्पन्नता है कि तुम क्या हो || आचार्य प्रशांत (2013)

Acharya Prashant

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सम्पन्नता ये नहीं कि तुम्हारे पास क्या है, सम्पन्नता है कि तुम क्या हो || आचार्य प्रशांत (2013)

प्रश्न: क्या हमारे अन्दर सम्पन्नता की भावना होनी चाहिए?

वक्ता: इस सवाल का जवाब देने से पहले ये समझना जरूरी है कि सम्पन्नता का मतलब क्या है? मैं आप लोगों से ही जानना चाहूँगा।श्रोता: ज़्यादा पाने की भावना।श्रोता: उम्मीद से ज़्यादा पाने की भावना।श्रोता: औरों से ज़्यादा पाना।वक्ता: इन तीनों जवाबों में से एक चीज़, समान निकल कर आई है, ‘पाना।’ वो लोग भी बताएं जिन्होंने अभी तक कुछ बोला नहीं है।श्रोता: जब इंसान मूलभूत जरूरतों से ज़्यादा पाने की कामना करता है।वक्ता: फिर से, पाना। घर पाना, नौकरी पाना, सुविधाएँ, सुरक्षा और बाकी सब पाना। है ना?श्रोता: सर, संतोष की भावना।वक्ता: ये नया है! बाकी चार जवाबों से अलग। दो चीज़ें हैं, एक वो जो तुम हो, दैट व्हिच यू आर और दूसरी वो जो तुम्हारे पास है, दैट व्हाट यू हैव । अब सवाल ये है कि सम्पन्नता किसमें है, दैट व्हिच यू आर या दैट व्हाट यू हैव ?

सभी { एक साथ }: दैट व्हिच यू आर। वक्ता: पर हम तो प्रोस्पेरिटी को हमेशा ‘दैट व्हाट यू हैव’ से जोड़ कर देखते हैं। हमें ये सब तो बहुत अच्छे से पता है कि, ‘व्हाट डू आइ हैव ’ । अच्छा देख ही लेते हैं।

{श्रोताओं से पूछते हुए} क्या है आपके पास?

श्रोता: मेरे पास एक रजिस्टर है।

वक्ता: और क्या है हमारे पास? और ध्यान से देखिए।श्रोता: हमारे पास मित्र हैं।वक्ता: क्या हम इस बात संबंधो से जोड़ सकते हैं? तो मेरे पास एक भौतिक पदार्थ है और मेरे पास मेरे रिश्ते हैं। और क्या है मेरे पास?

श्रोता: शरीर।

वक्ता: बहुत अच्छा जवाब! मेरे पास एक शरीर है।

श्रोता: सेल्फ

वक्ता: सेल्फ से क्या मतलब है आपका?

श्रोता: सेल्फ़ से मेरा मतलब है कि एक आतंरिक भाग है शरीर का जो शरीर के साथ सामंजस्य बनाकर उसे सही से कार्य करने में सहायता करता है।

वक्ता: आप मस्तिष्क की बात कर रहे हो, और वो भी आपके शरीर में ही होता है। अच्छा! और क्या होता है हमारे पास? ध्यान से सोच कर बताइए। इनके परे भी कुछ है?

श्रोता: खुशी।

वक्ता: वो भी आपकी एक मनोस्थिति है। है न? तो चलिए हम इन तीन तक ही सीमित रहते हैं: पदार्थ, सम्बन्ध और जो कुछ भी मस्तिष्क से आता है। आप उनको ख़ुशी बोलें, विचार बोलें, मान्यताएँ बोलें या कुछ और। उदाहरण के तौर पर जो भी आप अभी प्रश्न लिख रहे हैं। ये सभी प्रश्न आपके पास हैं और आपके मस्तिष्क से ही आ रहे हैं। ये सभी वो चीज़ें हैं, जो हमारे पास हैं। ये बाहर से आती हैं और बाहर से ही चली जाएँगी। हम सोचते हैं सम्पन्नता इसी में है कि दिमाग में, और ज्ञानवर्धन हो सके या फिर मेरे पास छोटा मोबाइल है और मैं उससे अग्रिम मोबाइल ले लूँ, तो वो मेरे लिए सम्पन्नता है या मैं सोचता हूँ कि मैं अपने सम्बन्ध बढा लूँ, तो मैं प्रोस्पर हो जाऊँगा। कई लोग पेशेवर नेटवर्कर्स होते हैं और इसी में लगे रहते हैं कि अपनी नेटवर्किंग बढ़ा लूँ। हम ये सब इक्कट्ठा करते रहते हैं।

माइंड का स्वभाव ही है इक्कट्ठा करना। इसको भी इक्कट्ठा करेगा, उसको भी इक्कट्ठा करेगा, कलम इक्कट्ठा करेगा, कागज़ इक्कट्ठा करेगा, ज्ञान इक्कट्ठा करेगा, डिग्रीज़ इक्कट्ठा करेगा। तुमने कभी देखा है कि कई डॉक्टर्स होते हैं, जिनके क्लिनिक के आगे लगी उनके नेम प्लेट पर कई डिग्रीज लिखी होती हैं जो तीन-चार लाइनों में भी समा नहीं पाती हैं? और वो अजीब-अजीब डिग्रीज़ होंगी जिनका अर्थ, शायद ही हमें पता होता है! एक कॉलेज है, ग्रेटर नॉएडा में, जहाँ पर उनके डायरेक्टर का कहना है कि, ”मैंने 17 अलग-अलग डिसिप्लिन में बी.टेक किया है।” निश्चित तौर पर वो हवाई बातें कर रहे हैं, पर 17 को छोड़ भी दें अगर, तो भी, 3 भी हैं तो पागलपन है। किसी को भी क्यूँ ज़रूरत है ऐसे डिग्रीज़ इकट्ठा करने की?

आप ऐसे लोगों से नहीं मिले हैं क्या जो आदती तौर पर संग्रही होते हैं? जिनको बस इक्कट्ठा करना है और उन्हें बस इक्कट्ठा करने में ही मज़ा आता है, उनके लिए सम्पन्नता की परिभाषा ही वही है ‘व्हाट आइ हैव ’ और वो बीमारी कई रूप में सामने आती है। कोई नेटवर्क बढ़ाता है, कोई डिग्री बढ़ाता है, कोई ज्ञान बढ़ाता है, कोई इज्ज़त बढ़ाता है पर बढ़ाने में हर कोई लगा रहता है। कुछ न कुछ बढ़ना और विस्तृत होना तो अनिवार्य है। और ‘*वाट आई हैव ’*’ को विस्तृत करने की इस पूरी प्रक्रिया में हम भूल ही जाते हैं कि? व्हाट आइ आलरेडी ऍम । क्योंकि ‘हैव ’ तो हमेशा बाहर से ही आएगा तो उसमें आलरेडी जैसा कुछ लग ही नहीं सकता। एकत्रित करने की इस पूरी कोशिश में हम, जो ‘हम’ हैं, उसके प्रति एक उपेक्षा उत्पन्न कर लेते हैं।

बन्दे की कीमत करना! तुम सब एक स्पेशल पॉइंट पर हो ज़िन्दगी के जहाँ पर इतने छोटे भी नहीं हो कि तुम्हें कुछ समझ में ना आए और इतनी उम्र भी नहीं हुई कि तुम्हारे सर पर बहुत सारा भार रहे। ना अभी तुम्हें घर चलाना है, ना अभी बीवी है, ना बच्चे हैं, ये सब तुम्हारे ऊपर दायित्व नहीं है और इतने छोटे भी नहीं हो कि ये कह सको कि हमें कुछ समझ में ही नहीं आता। ‘’मैं एक नन्हा सा, मुन्ना सा, छोटा सा बच्चा हूँ!’’

हालाँकि, तुम रहना वही चाहते हो, एक छोटे बच्चे। अब आगे दुनिया खुलेगी तुम्हारे आगे और दुनिया का मतलब है, सम्बन्ध। आपको अपने सभी संबंधों को बड़ी स्पष्टता से देखना होगा। जब भी किसी को देखना, चाहे वो बॉस हो, चाहे वो दोस्त हो और चाहे वो कोर्टशिप का केस हो, प्रेमी हो या प्रेमिका, उसको ऐसे मत देखना कि उसके पास क्या है, ये देखना कि वो क्या है। ये मत देखना कि व्हाट डज़ ही हैव , देखना कि व्हाट ही ऑर शी ईज़। हमारी आँखें धोखा खा जाती हैं। हमारा ध्यान ‘हैव ’ खींच ले जाता है कि इसके पास क्या है। हम ये नहीं देख पाते कि ये क्या है। अंतर समझ में आ रहा है?

श्रोता: हाँ, सर।

वक्ता: सिर्फ़ अभी समझ आया तो कोई फ़ायदा नहीं होगा। उस मोमेंट पर इस अंतर को याद रखना क्योंकि जो उसके पास है वो तो उसने कहीं बाहर से पाया है और वो छिन भी सकता है, किसी कीमत का नहीं है।

कीमत उस चीज़ की है जो तुम हो और वही है असली सम्पन्नता। तुम क्या हो, यही है असलीसम्पन्नता।

और उसमें क्या चीज़ है पाने लायक? हमने बात की थी इंटेलिजेंस की, हमने बात की थी सत्य की, फ्रीडम की, यूथफुलनेस की। ये देखना कि बन्दे में या बंदी में ये हैं क्या? क्या जब बाहर के मौसम बदलते हैं तो ये भी बदल जाता है या इसके पास कुछ ऐसा है जो मौसम के बदलने के बाद भी बदल नहीं पाता। कोई ऐसा मिले तो उससे सम्बन्ध जोड़ना। बेशक जोड़ना। ये मत देखने लग जाना कि इसके पास कितनी डिग्रीज़ हैं या कौन सी जॉब है? ये सब तो ‘हैव ’ वाली चीज़ें हैं। व्हाट यू आर एंड व्हाट ही ईज़ , ये इम्पोर्टेन्ट हैं नाकि *व्हाट यू हैव ऑर व्हाट ही हैज़।*हम बहुत आसानी से प्रभावित हो जाते हैं प्रभावी और संग्रही लोगों से, उसमें बह मत जाना। असली सम्पन्नता को पाना। असली सम्पन्नता है यह देख पाना कि क्या सामने वाला प्रेम के क़ाबिल है? क्या वो मानसिक तौर पर स्वतंत्र है? क्या हिम्मत है उसमें या छोटे दिल का है, जो दुसरे की टिप्पणियों से घबराता है? ‘’हमेशा डरा-डरा है क्या? तो फिर इस लायक नहीं है। हमेशा दूसरों को प्रभावित करने में लगा रहता है क्या? तो फिर इस लायक नहीं है, डरता है। छोड़ो इसे, भले ही बड़ा अच्छा हो देखने में।‘’ तुमने ही कहा ना कि बॉडी इज़ व्हाट वी हैव, तो बॉडी को भी मत देखना क्योंकि बॉडी भी ‘हैव’ में ही आती है। शरीर अभी है, चला जाएगा और कितने दिन तक तुम किसी का खूबसूरत चेहरा ताकते रहोगे? कितने दिन तक? कितने दिन तक तुम किसी कंपनी के ब्रांड से चिपके रहोगे? ज़िन्दगी बितानी है न वहाँ पर? लाइफ़ इज़ मोमेंट टू मोमेंट। ‘हैव ’ पर मत जाना। असली सम्पन्नता है: व्हाट आइ ऍम।

‘शब्द-योग’ सत्र पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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