मानने से पहले, समझो || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)

Acharya Prashant

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मानने से पहले, समझो || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)

वक्ता: सवाल है किसी पर बहुत विश्वास करते है और विश्वास टूट रहा हो तो क्या करना चाहिए ? हर विश्वास टूटेगा ही टूटेगा। विश्वास अगर किया है तो तुम चोट खाने की तैयारी पहले ही कर के बैठ गए हो। विश्वास का अर्थ समझते हो क्या होता है ? विश्वास का अर्थ होता है कि जाना नहीं, बस यकीन कर लिया। समझा नहीं, बस यकीन कर लिया। वो यकीन कैसे भी आ सकता है। वो यकीन ऐसे आ सकता है कि बिल्कुल ही सुनी सुनाई बात है मान ली। तो वहाँ आमतौर पर ये स्पष्ट हो जाता है कि ये विशवास ‘अन्धविशवास’ है। उसमें तुम आमतौर पर फसते नहीं हो। तुम समझ ही जाते हो कि ये अन्धविशवास है। पर वहाँ भी पक्का नहीं है। कई बार वहाँ भी फंस जाते हो कि सब लोग कह रहे हैं तो ठीक होगा, मान लो। अब सब लोग कह रहे हैं तो ठीक ही होगा, ये बड़ी असंभावना है। आमतौर पर जो बात सब लोग कह रहे हों, वो ठीक होती ही नहीं।

दूसरे तरह का विश्वास ये है कि मुझे लग रहा है तो ठीक ही होगा। यहाँ भी गड़बड़ है क्योंकि हमें जो लग रहा होता है, उस लगने के पीछे कारण भी दूसरों ने ही दिए हुए होते हैं। तुम्हें एक विशेष प्रकार की नौकरी बड़ी अच्छी लग रही होती है। और क्यों लग रही होती है? क्योंकि तुम्हारे मन में ये बात बैठा दी जाती है कि ऐसी ही नौकरी अच्छी होती है। बात यहाँ तक जा रही होती है कि अगर कोई तुम्हें एक चेहरा है जो बड़ा सुन्दर लग रहा होता है, तो उसके पीछे भी कारण संस्कारों के ही होते हैं, कारण सामाजिक ही होते हैं। इसी कारण अलग-अलग देशो में और अलग-अलग समय के लोगों को अलग-अलग तरह के चेहरे पसंद आते हैं क्योंकि उन सबको अलग-अलग तरह के घुट्टी पिलाई गयी है। तो वहाँ पर अगर तुम कहो कि मुझे लग रहा है तो ठीक ही होगा, तो बात जमी नहीं। ये विश्वास भी टूटेगा ही टूटेगा। तुम्हें जो आज अच्छा, बड़ा सुन्दर, बड़ा आकर्षक लगा था, वो कल को नहीं लगेगा। और अगर दूसरों पर निर्भर होकर कुछ मान लिया, अपने मन पर निर्भर होकर कुछ मान लिया और विश्वास कर लिया, तो वह भी टूटेगा।

अन्धविशवास- विश्वास, इनसे आगे भी कुछ होता है। इनसे आगे होता है जानना। उस जानने को बड़े नाम दिए गए हैं, कोई चेतना कह लेता है, कोई श्रद्धा कह लेता है, कोई बोध कह लेता है, कोई प्रेम कह लेता है। लेकिन वहाँ पर फिर ठोकर लगने की गुंजाइश नहीं होती। ये तुमने कहा कि विश्वास करते हैं और विश्वास टूटता है। अन्धविशवास है टूटेगा, दूसरों से आया है। अपने आप पर विश्वास कर रहे हो, अपनी बुद्धि और अपनी चालाकियों पर, वो भी टूटेगा। क्योंकि परोक्ष रूप से दूसरों से आया है। ये जो तीसरा है ये नहीं टूट सकता क्योंकि ये बोध है। ये तुमने स्वयं जाना है। ये असली है इसकी टूटने की कोई सम्भावना ही नहीं है।

तो तुमने पूछा कि विश्वास करते हैं और विश्वास टूट जाता है, क्या करें? मैं कह रहा हूँ हर विश्वास टूटेगा। जिनके नहीं टूटे हैं आजतक उनके कल टूटेंगे। टूटना ही उसकी नियति है क्योंकि वो वास्तविक नहीं है। जो वास्तविक नहीं है वो कब तक चलेगा। हर सपने को टूटना ही होता है क्योंकि कभी न कभी तो आँख खुलती है। कभी न कभी तो उसका वास्तविकता से सामना होता है। वो टूटेगा। छोटी बात में विश्वास कर रहे हो तो भी ठोकर खाओगे और जिनको तुम बड़ी बात कहते हो वहाँ विश्वास है तो वहाँ भी ठोकर खाओगे। हश्र एक ही विश्वास का, ठोकर खाना। और फिर दुख लगेगा तुम्हें, पीड़ा पाओगे। इसलिए कह रहा हूँ विश्वास मत करो, जानो। जानने की क्षमता पूरी तरह तुम्हारे पास है।

तुम क्यों विश्वास करो किसी पर? जो जान सकता है वो क्यों सुनी-सुनाई पर चले। आँखें ना हो तुम्हारे पास तो तुम्हें पूछना पड़ेगा कि कदम कैसे बढ़ाऊँ। और जिसके पास आँखें हो वो क्यों पूछ-पूछ कर कदम रखे? वो क्यों चले विश्वास पर? मैं तुमको अविश्वासी होने को नहीं कह रहा हूँ। मैं तुमसे यह नहीं कह रहा हूँ कि सब पर संदेह करो। गलत मत समझ लेना। कोई भरोसा नहीं कि सर, अभी आप कह रहे थे कि शक्की होना चाहिए। अभी तो आपने बोला था। मैं तुमसे शक करने के लिए नहीं कह रहा हूँ। क्योंकि शक का अर्थ भी बस इतना ही है कि मैं विश्वास करना चाहता हूँ कि करूँ या ना करूँ। मैं तुमसे कह रहा हूँ कि तुमको आवयश्कता ही नहीं है, ना विश्वास की और ना संदेह की। जब बोध का बल तुम्हारे पास है तो तुम क्यों इधर-उधर निर्भर हो। जब अपनी टाँगे तुम्हारे पास हैं, तो तुम क्यों बैशाखियों पर चलते हो। और जो अपनी टांगों पर दौड़ रहा हो, वो कभी ये शिकायत नहीं कर पायेगा कि मुझे किसी ने धोखा दे कर गिरा दिया। ‘ये दो लोग थे। मुझे संभाल कर चल रहे थे और ये अचानक हट गए तो मैं गिर पड़ा’। जो अपनी टांगो पर दौड़ रहा हो वो अगर गिरेगा भी तो वो जानेगा कि ठीक है, दौड़े तो। आ रही है बात समझ में? जो भी स्थिति है, जो भी व्यक्ति है जिस पर यकीन कर बैठे, अब अगली बार जब ऐसी परिस्थिति आये, तो जल्दी से यकीन पर मत उतर जाना। समझना कि क्यों इसकी तरफ आकर्षित होता हूँ? क्यों इससे मित्रता करने को मन करता है? क्यों इस पर विश्वास कर लेता हूँ ? और जैसे ही इन प्रश्नों के निकट जाओगे, वैसे ही चीज़ें साफ़ होने लगेंगी, रोशनी आने लगेगी। अब दिल नहीं टूटेगा।

-‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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